अध्यक्षों और सहायक सेवकों को ईश्वरशासित तरीके से नियुक्त किया जाता है
“अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है।”—प्रेरितों 20:28.
1, 2. यशायाह 60:22 की भविष्यवाणी आज कैसे पूरी हो रही है?
यहवा ने काफी सालों पहले बता दिया था कि अंत के समय में एक अनोखी घटना घटेगी। भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए यह बताया गया था: “छोटे से छोटा एक हज़ार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूँ; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।”—यशायाह 60:22.
2 क्या आज हमारे पास ऐसा कोई सबूत है जिससे यह पता चले कि इस भविष्यवाणी की पूर्ति हो रही है? जी हाँ, सबूत है! 1870 के दशक में ऐलेघनी, पॆन्सिलवेनिया, अमरीका में यहोवा के सेवकों की सिर्फ एक कलीसिया की स्थापना हुई थी। उस छोटी-सी शुरूआत के बाद से संसार-भर में हज़ारों कलीसियाएँ बनी और तरक्की कर रही हैं। सारे संसार में 235 देशों में आज राज्य संदेश सुनानेवाले लाखों लोग यानी एक बड़ी जाति 91,000 से भी ज़्यादा कलीसियाओं में इकट्ठी होती है। बेशक, यह इस बात का सबूत है कि “भारी क्लेश” के शुरू होने से पहले जो कि अब बहुत करीब है, यहोवा अपने सच्चे उपासकों को इकट्ठा करने के काम में तेज़ी ला रहा है।—मत्ती 24:21; प्रकाशितवाक्य 7:9-14.
3. ‘पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से’ बपतिस्मा लेने का क्या अर्थ है?
3 यहोवा को अपना जीवन समर्पित करने के बाद, और यीशु की आज्ञाओं के मुताबिक इन लाखों लोगों ने “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लिया है। (मत्ती 28:19) “पिता . . . के नाम से” बपतिस्मा लेने का अर्थ है कि ये समर्पित लोग यहोवा को अपना पिता परमेश्वर और जीवन दाता मानते हैं, और वे उसकी हुकूमत को स्वीकार करते हैं। “पुत्र . . . के नाम से” बपतिस्मा लेने का अर्थ है कि ये लोग यीशु को अपना मुक्तिदाता, अगुआ, और राजा स्वीकार करते हैं। “पवित्रात्मा के नाम से” बपतिस्मा लेने का अर्थ है कि वे अपने जीवन में परमेश्वर की पवित्र आत्मा या सक्रिय शक्ति के महत्व को समझते हैं और उसके मुताबिक जीवन जीते हैं। ऐसा करने से यह संकेत मिलता है कि उनका बपतिस्मा पवित्र आत्मा के नाम से हुआ है।
4. मसीही सेवकों की नियुक्ति कैसे होती है?
4 बपतिस्मे के वक्त परमेश्वर यहोवा के सेवकों के रूप में नए चेलों की नियुक्ति होती है। उन्हें कौन नियुक्त करता है? 2 कुरिन्थियों 3:5 में दिया गया सिद्धांत इन सेवको पर भी लागू होता है: “[सेवकों के तौर पर] हमारी योग्यता परमेश्वर की ओर से है।” वे इससे बड़े सम्मान की भला और क्या कामना कर सकते हैं कि खुद परमेश्वर यहोवा उन्हें नियुक्त करे! अगर वे परमेश्वर की पवित्र आत्मा के मार्ग-दर्शनों के मुताबिक चलते रहें और उसके वचन को अपने जीवन में लागू करते रहें, तो वे अपने बपतिस्मे के बाद, “सुसमाचार” के प्रचारक के तौर पर आध्यात्मिक रूप से बढ़ते रहेंगे।—मत्ती 24:14; प्रेरितों 9:31.
लोकतंत्र—के बजाए ईशतंत्र द्वारा—नियुक्ति
5. क्या मसीही अध्यक्षों और सहायक सेवकों को लोकतंत्र के ज़रिए चुना जाता है? समझाइए।
5 जैसे-जैसे ये जोशीले सेवक बढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे उनकी आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए काबिल अध्यक्षों की निगरानी और सहायक सेवकों के कुशल सहयोग की ज़रूरत पड़ती है। (फिलिप्पियों 1:1) इन आध्यात्मिक पुरुषों को कैसे नियुक्त किया जाता है? ईसाईजगत में जिन तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है उनके अनुसार नहीं। उदाहरण के लिए मसीही अध्यक्षों को लोकतंत्र द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता है यानि कलीसिया में लोगों के ज़्यादा-से-ज़्यादा मतों के आधार पर नहीं। इसके बजाए ये नियुक्तियाँ ईशतंत्र के द्वारा की जाती हैं। ईशतंत्र के द्वारा नियुक्ति का मतलब क्या है?
6. (क) सच्चा ईशतंत्र क्या है? (ख) क्यों कहा जा सकता है कि अध्यक्षों और सहायक सेवकों की नियुक्तियाँ ईशतंत्र के ज़रिए होती हैं?
6 साफ-साफ शब्दों में कहें तो सच्चे ईशतंत्र का मतलब है परमेश्वर द्वारा शासन। यहोवा के साक्षी अपनी इच्छा से परमेश्वर के शासन के अधीन रहते हैं और एक-दूसरे को सहयोग देते हैं जिससे वे सभी परमेश्वर की इच्छा पर चल सकें। (भजन 143:10; मत्ती 6:9, 10) मसीही अध्यक्षों, प्राचीनों, और सहायक सेवकों की नियुक्ति ईशतंत्र के ज़रिए की जाती है क्योंकि ऐसी भारी ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों की सिफारिश और नियुक्ति, पवित्रशास्त्र में दिए गए परमेश्वर के प्रबंध के अनुसार की जाती है। “सभों के ऊपर प्रधान” होने की वजह से बेशक यहोवा को यह निश्चित करने का पूरा-पूरा हक है कि उसका दृश्य संगठन किस तरह चलना चाहिए—1 इतिहास 29:11, NHT; भजन 97:9.
7. यहोवा के साक्षी किस तरह से शासित किए जाते हैं?
7 ईसाईजगत के अलग-अलग गुटों से भिन्न, यहोवा के साक्षी खुद यह चुनाव नहीं करते कि वे किस आध्यात्मिक सरकार के अधीन काम करेंगे। इसके बजाए ये सच्चे मसीही यहोवा के स्तरों का सख्ती से पालन करने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। इनमें अध्यक्षों की नियुक्ति कलीसिया के लोगों, अधिकार रखनेवाले भाइयों, या चर्च के किसी पादरी संघ के ज़रिए नहीं की जाती। इतना ही नहीं, अगर संसार के तत्त्व या लोग इन नियुक्तियों में दखल देने की कोशिश करते हैं तो यहोवा के साक्षी किसी भी तरह का समझौता करने से इनकार कर देते हैं। वे पहली शताब्दी के उन मसीहियों की तरह दृढ़ता से अपने स्तरों का पालन करते हैं जिन्होंने खुलकर ऐलान किया था: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना” ज़रूरी है। (प्रेरितों 5:29) इसलिए, साक्षी अपने आपको सभी बातों में परमेश्वर के अधीन रखते हैं। (इब्रानियों 12:9; याकूब 4:7) जी हाँ, ईशतंत्र व्यवस्था का पालन करने से परमेश्वर उन्हें स्वीकार करता है।
8. लोकतंत्र और ईशतंत्र के तरीकों में क्या अंतर है?
8 महान ईश्वरशासक यहोवा के सेवकों के तौर पर हमारे लिए लोकतंत्र और ईशतंत्र के तरीकों के बीच फर्क समझना बहुत ज़रूरी है। लोकतंत्र में बराबरी की माँग की जाती है जिसमें पद के लिए चुनाव लड़ना पड़ता है और सबसे ज़्यादा मत या बहुमत हासिल करना पड़ता है। मगर ईशतंत्र की नियुक्तियों में इस तरह का तरीका नहीं अपनाया जाता। ईशतंत्र में नियुक्तियाँ ना तो इंसानों की ओर से और ना ही किसी कानूनी माध्यम से की जाती हैं। प्रेरित पौलुस ने यीशु और यहोवा द्वारा “अन्यजातियों के लिये प्रेरित” के तौर पर अपनी नियुक्ति के बारे में गलतियों को बताया था कि वह “न मनुष्यों की ओर से, और न मनुष्य के द्वारा नियुक्त हुआ, परन्तु यीशु मसीह और परमेश्वर पिता के द्वारा, जिसने उस को मृतकों में से जीवित किया।”—रोमियों 11:13; गलतियों 1:1, NHT.
पवित्र आत्मा द्वारा नियुक्त किए गए
9. प्रेरितों 20:28 में मसीही अध्यक्षों की नियुक्ति के बारे में क्या लिखा है?
9 पौलुस ने इफिसुस में रहनेवाले अध्यक्षों को बताया था कि उनकी नियुक्ति पवित्र आत्मा के द्वारा हुई थी। उसने कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है।” (प्रेरितों 20:28) उन मसीही अध्यक्षों को झुंड की रखवाली करने की ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए, लगातार पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के मुताबिक चलते रहना था। अगर नियुक्त होने के बाद एक पुरुष, परमेश्वर की माँगों और नियमों के अनुसार नहीं जीता, तो समय आने पर पवित्र आत्मा उसे उसके पद से निकालने के लिए कार्यवाही करती।
10. ईशतंत्र नियुक्तियों में पवित्र आत्मा एक महत्वपूर्ण भूमिका कैसे अदा करती है?
10 पवित्र आत्मा कैसे इतनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है? पहली बात तो यह है कि जिस किताब में आध्यात्मिक निगरानी करनेवालों से की गई माँगों के बारे में लिखा है, वह पवित्र आत्मा से प्रेरित है। अध्यक्षों और सहायक सेवकों को जिन स्तरों की कसौटी पर खरा उतरना था, उनका पौलुस ने तीमुथियुस और तीतुस को लिखे अपने पत्र में सारांश दिया। कुल मिलाकर, उसने करीब 16 अलग-अलग माँगों के बारे में लिखा। उदाहरण के लिए अध्यक्षों को निर्दोष, संयमी, समझदार, सभ्य, अतिथि सत्कार करनेवाला, शिक्षा देनेवाला और परिवार के मुखियापन में आदर्श होना था। उन्हें शराब के इस्तेमाल में संतुलन रखना था, पैसों के प्रेम से दूर रहना था, और खुद पर संयम रखना था। ऐसे ही ऊँचे स्तर उनके लिए भी थे, जो सहायक सेवक की नियुक्ति के लिए आगे बढ़ रहे थे।—1 तीमुथियुस 3:1-10, 12, 13; तीतुस 1:5-9.
11. ऐसी कुछ योग्यताएँ कौन-सी हैं जो कलीसिया की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए आगे बढ़नेवाले पुरुषों में होनी चाहिए?
11 इन योग्यताओं का फिर से मुआयना करने से यह पता चलता है कि जो यहोवा की उपासना में अगुवाई लेते हैं, उन्हें मसीही आचरण में एक मिसाल होना चाहिए। जो भाई कलीसिया की ज़िम्मेदारियों के लिए आगे बढ़ते हैं, उन्हें सबूत देना चाहिए कि उन पर पवित्र आत्मा काम कर रही है। (2 तीमुथियुस 1:14) यह बात साफ ज़ाहिर होनी चाहिए कि परमेश्वर की आत्मा इन पुरुषों में “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम” जैसे फल पैदा कर रही है। (गलतियों 5:22, 23) संगी मसीहियों और दूसरों के साथ उनके बर्ताव में ये फल, दिखाई पड़ेंगे। बेशक, हो सकता है कि कुछ भाई आत्मा के इन फलों को दिखाने में दूसरों से बढ़कर हों और दूसरे, अध्यक्षों के लिए दी गई योग्यताओं में किसी श्रेष्ठ गुण को दिखा रहे हों। फिर भी, कुल मिलाकर उनके पूरे जीवन से यह दिखना चाहिए कि जो भी अध्यक्ष या सहायक सेवक बनने की आशा रखते हैं, उन्हें प्रदर्शित करना चाहिए कि वे आध्यात्मिक पुरुष हैं और परमेश्वर के वचन की माँगों को पूरा करते हैं।
12. किन लोगों को कहा जा सकता है कि ये पवित्र आत्मा से नियुक्त किए गए हैं?
12 पौलुस दूसरों को उसका अनुकरण करने के लिए बे-झिझक, साहस के साथ इसलिए कह सका क्योंकि वह खुद यीशु मसीह का अनुकरण कर रहा था जो ‘हमारे लिए एक आदर्श छोड़ गया है, कि हम भी उसके चिन्ह पर चलें।’ (1 पतरस 2:21; 1 कुरिन्थियों 11:1) इस तरह, वे जो अध्यक्षों और सहायक सेवकों के तौर पर अपनी नियुक्ति के समय शास्त्रीय माँगों को पूरा करते हैं, उनके लिए यह कहना सही होगा कि वे पवित्र आत्मा के ज़रिए नियुक्त किए गए हैं।
13. कलीसिया में सेवा करनेवालों के लिए जो सिफारिश करते हैं पवित्र आत्मा उनकी मदद कैसे करती है?
13 एक और पहलू है जो यह सूचित करता है कि कैसे अध्यक्षों की नियुक्ति और सिफारिश के लिए पवित्र आत्मा काम करती है। यीशु ने कहा कि “स्वर्गीय पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र आत्मा” देता है। (लूका 11:13) जब कलीसिया के प्राचीन, किसी को कलीसिया की ज़िम्मेदारी देने की सिफारिश के लिए इकट्ठे होते हैं, तो वे परमेश्वर की आत्मा से मार्गदर्शन पाने के लिए प्रार्थना करते हैं। वे इन सिफारिशों को परमेश्वर के प्रेरित वचन के आधार पर करते हैं और पवित्र आत्मा उन्हें यह समझने में मदद करती है कि जिस व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए वे सोच रहे हैं, क्या वह सचमुच बाइबल में दी गई माँगों को पूरा कर रहा हैं। जिन पर इन सिफारिशों को करने की ज़िम्मेदारी दी गई है उन्हें किसी के बाहरी रूप, शिक्षा संबंधी उपलब्धियों या पैदाइशी खूबियों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। उन्हें खासकर इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या वह एक आध्यात्मिक व्यक्ति है, जिसके पास जाकर आध्यात्मिक सलाह लेने में कलीसिया के सदस्यों को मुश्किल महसूस न हो।
14. प्रेरितों 6:1-3 से हम क्या सीखते हैं?
14 जबकि प्राचीनों का निकाय और सफरी ओवरसियर मिलकर भाइयों को प्राचीन और सहायक सेवक बनने की सिफारिश करते हैं, सही में इनकी नियुक्तियाँ पहली शताब्दी के नमूने के आधार पर की जाती हैं। एक बार जब आध्यात्मिक तौर से काबिल भाइयों को एक ज़रूरी कार्यभार सँभालने की ज़रूरत पड़ी तो शासी निकाय ने यह निर्देश दिया: “अपने में से सात सुनाम पुरुषों को जो पवित्र आत्मा और बुद्धि से परिपूर्ण हों, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें।” (प्रेरितों 6:1-3) हालाँकि ऐसे भाइयों की सिफारिश वहाँ मौजूद भाइयों ने की थी मगर उनकी नियुक्तियाँ यरूशलेम के ज़िम्मेदार भाइयों ने की। इसी नमूने का आज भी पालन किया जाता है।
15. पुरुषों को नियुक्त करने में शासी निकाय किस तरह से शामिल है?
15 यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय सीधे-सीधे खुद ब्रांच कमेटी के सदस्यों को नियुक्त करता है। जब यह निर्णय लिया जाता है कि ऐसी भारी ज़िम्मेदारी को किस के हाथ में सौंपना चाहिए, तब शासी निकाय यीशु के शब्दों को अपने ध्यान में रखता है: “इसलिये जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से बहुत मांगेंगे।” (लूका 12:48) ब्रांच कमेटी के सदस्यों की नियुक्ति के साथ-साथ शासी निकाय बॆथॆल प्राचीनों और सफरी ओवरसियरों को भी नियुक्त करता है। फिर भी, कुछ दूसरी नियुक्तियों के लिए शासी निकाय ज़िम्मेदार भाइयों को उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए ठहराता है। इसके लिए भी एक शास्त्रीय नमूना या आधार है।
‘मेरी आज्ञा के अनुसार, नियुक्त करे’
16. पौलुस ने तीतुस को क्रेते में क्यों छोड़ा, और इससे ईशतंत्र नियुक्तियों के बारे में क्या संकेत मिलता है?
16 पौलुस ने अपने सहकर्मी तीतुस से कहा था: “मैं इसलिये तुझे क्रेते में छोड़ आया था, कि तू शेष रही हुई बातों को सुधारे, और मेरी आज्ञा के अनुसार नगर नगर प्राचीनों को नियुक्त करे।” (तीतुस 1:5) फिर पौलुस ने तीतुस को उन योग्यताओं के बारे में बताया जिन्हें, उसे इन नियुक्तियों के लिए योग्य ठहराए जानेवाले पुरुषों में देखनी थी। इसी कारण आज शासी निकाय, शाखाओं में काबिल भाइयों को नियुक्त करता है ताकि ये भाई, प्राचीनों और सहायक सेवकों की नियुक्ति करने में शासी निकाय का प्रतिनिधित्व कर सकें। इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि जो शासी निकाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, वे भाइयों को नियुक्त करने के लिए बाइबल की हिदायतों को साफ-साफ समझें साथ ही उनका पालन भी करें। इस तरह, शासी निकाय के मार्ग दर्शन के अधीन काबिल भाइयों को संसार-भर में यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में नियुक्त किया जाता है।
17. अध्यक्षों और सहायक सेवकों को नियुक्त करने की सिफारिशों को शाखा दफ्तर कैसे मंज़ूर करता है?
17 जब अध्यक्षों और सहायक सेवकों की नियुक्तियों के लिए वॉच टावर सोसाइटी के शाखा दफ्तर को सिफारिश भेजी जाती है, तब अनुभवी भाई ये नियुक्तियाँ करने में मार्ग दर्शन के लिए परमेश्वर की आत्मा पर निर्भर करते हैं। ये भाई खुद को जवाबदेह महसूस करते हैं, यह जानते हुए कि उन्हें किसी पर भी जल्दबाज़ी में हाथ नहीं रखना चाहिए ताकि कहीं वे उनके पापों में भागी न हों।—1 तीमुथियुस 5:22.
18, 19. (क) कुछ नियुक्तियों की सूचना कैसे दी जाती है? (ख) सिफारिशों और नियुक्तियों की सब कार्यवाहियाँ किस तरह मार्गदर्शित होती हैं?
18 कुछ नियुक्तियाँ, पत्रों के ज़रिए भेजी जाती हैं, इन पत्रों पर ऑफिशियल स्टाम्प लगी होती है जिन्हें संगठन की कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त सोसाइटी के नाम से भेजा जाता है। कलीसिया में एक से ज़्यादा भाइयों की नियुक्ति के लिए इस पत्र को इस्तेमाल किया जाता है।
19 ईशतंत्र नियुक्तियाँ यहोवा की ओर से यीशु के द्वारा होती हैं, साथ ही पृथ्वी पर यहोवा का दृश्य माध्यम, “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” और इनसे बने शासी निकाय के ज़रिए। (मत्ती 24:45-47) ये सब सिफारिशें और नियुक्तियाँ परमेश्वर की पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन के आधार पर की जाती हैं। ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि इन नियुक्तियों की योग्यताएँ परमेश्वर के वचन में दीं गई हैं जो पवित्र आत्मा से प्रेरित किया गया है। और जो नियुक्त किया जाता है, वह इस बात का सबूत देता है कि उसने पवित्र आत्मा के फल पैदा किए हैं। इसलिए, इन नियुक्तियों को पवित्र आत्मा की ओर से मानना चाहिए। ठीक जिस तरह पहली शताब्दी में अध्यक्षों और सहायक सेवकों को नियुक्त किया जाता था, आज भी उसी तरह किया जाता है।
यहोवा के मार्गदर्शन के लिए एहसानमंद
20. भजन 133:1 में लिखी दाऊद की भावनाओं के हम क्यों भागीदार होते हैं?
20 आज जब प्रचार काम में आध्यात्मिक सफलता और ईश्वरशासित उन्नति हो रही है, हम शुक्रगुज़ार हैं कि अध्यक्षों और सहायक सेवकों की नियुक्तियों के लिए खासकर यहोवा ही ज़िम्मेदार है। यह शास्त्रीय प्रबंध, यहोवा के साक्षियों के तौर पर हमारे बीच परमेश्वर के ऊँचे स्तरों को बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा इन पुरुषों की मसीही मनोवृति और पूरे उत्साह से की गई कोशिशें, यहोवा के सेवको के तौर पर हमारी शानदार एकता और शांति के लिए बहुत बड़ा योगदान देती हैं। भजनहार दाऊद की तरह, यह कहने के लिए हमारा दिल भर आता हैं: “देखो, यह क्या ही भली और मनोहर बात है कि भाई लोग आपस में मिले रहें!”—भजन 133:1.
21. यशायाह 60:17 की पूर्ति आज कैसे हो रही है?
21 परमेश्वर के वचन और पवित्र आत्मा के ज़रिए यहोवा के मार्ग दर्शन के लिए हम उसके कितने एहसानमंद हैं! यशायाह 60:17 (NHT) में लिखे शब्द वाकई कितने सच हैं: “मैं कांसे के स्थान पर सोना लाऊंगा, लोहे के बदले चाँदी, लकड़ी के बदले कांसा और पत्थर के बदले लोहा ले आऊंगा। मैं शान्ति को तेरा शासक और धार्मिकता को तेरा प्रशासक ठहराऊंगा।” जैसे-जैसे, यहोवा के साक्षियों के बीच ईशतंत्र के तौर-तरीकों का पूरी तरह पालन किया जाने लगा, वैसे-वैसे पृथ्वी पर परमेश्वर के संगठन में हमने आशीषों भरे हालात अनुभव किए हैं।
22. किसके लिए हम वाकई एहसानमंद हैं, और क्या करने के लिए हमारा इरादा मज़बूत होना चाहिए?
22 हमारे बीच जो भी ईश्वर शासित प्रबंध किए गए हैं उनके लिए हम पूरे दिल से एहसानमंद हैं। अध्यक्ष और सहायक सेवक जो ईशतंत्र द्वारा नियुक्त किए गए, उनकी मेहनत और संतुष्टपूर्ण काम के लिए हम पूरे दिल से उनकी सराहना करते हैं। स्वर्ग में रहनेवाले हमारे पिता यहोवा की हम तहे दिल से तारीफ करते हैं, जिसने हमें आध्यात्मिक सफलता दी है साथ ही हमें इतनी भरपूर रीति से आशीषें दी हैं। (नीतिवचन 10:22) तो आइये, हम यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने का इरादा मज़बूत करें। मगर सबसे ज़रूरी, आइये हम सब मिलकर, यहोवा के महान और पवित्र नाम के सम्मान, गुणगान, और गौरव के लिए लगातार सेवा करते रहें।
आप कैसे जवाब देंगे?
• हम कैसे कह सकते कि अध्यक्षों और सहायक सेवकों की नियुक्ति ईशतंत्र के ज़रिए होती है ना कि लोकतंत्र के ज़रिए?
• ज़िम्मेदार मसीही भाई पवित्र आत्मा के ज़रिए किस तरह से नियुक्त किए जाते हैं?
• अध्यक्षों और सहायक सेवकों की नियुक्तियों में शासी निकाय कैसे शामिल है?
• ईशतंत्र नियुक्तियों के लिए हमें यहोवा का एहसानमंद क्यों होना चाहिए?
[पेज 15 पर तसवीरें]
प्राचीनों और सहायक सेवकों के लिए बड़े सम्मान की बात है कि उन्हें ईशतंत्र तरीकों से नियुक्त किया जाता है