यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाते हुए चलिए
“शान्तिदाता परमेश्वर . . . तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिस से तुम उस की इच्छा पूरी करो।”—इब्रानियों 13:20,21.
1. दुनिया की आबादी क्या है और अलग-अलग धर्मों में कितने लोगों को गिना गया है?
सन् 1999 में दुनिया की आबादी 6 अरब हो गई थी! द वर्ल्ड एल्मैनेक के मुताबिक, इस संख्या में करीब 1,16,50,00,000 लोग मुस्लिम हैं; 1,03,00,00,000 रोमन कैथोलिक; 76,20,00,000 हिन्दू; 35,40,00,000 बौद्ध; 31,60,00,000 प्रोटेस्टेंट और 21,40,00,000 लोग ऑर्थोडॉक्स हैं।
2. आज के धार्मिक माहौल के बारे में क्या कहा जा सकता है?
2 आज धर्मों में जो फूट और गड़बड़ी फैली हुई है, उसे देखते हुए क्या हम कह सकते हैं कि ये सभी लाखों लोग परमेश्वर की इच्छा पर चल रहे हैं? नहीं, “क्योंकि परमेश्वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है।” (1 कुरिन्थियों 14:33) दूसरी तरफ, यहोवा के सेवकों को देखें तो वे दुनिया भर में प्यार के एक बंधन में बँधे हुए हैं। (1 पतरस 2:17) उनके बारे में ध्यान से जाँच करने से यह साबित होता है कि ‘शान्तिदाता परमेश्वर उन्हें हर एक भली बात के लिए सिद्ध कर रहा है, जिस से वे उस की इच्छा पूरी कर सकें।’—इब्रानियों 13:20, 21.
3. सामान्य युग 33 में पिन्तेकुस्त के दिन यरूशलेम में क्या हुआ और इसकी वजह क्या थी?
3 यहोवा के साक्षियों पर परमेश्वर की आशीष है या नहीं, इसका फैसला बेशक हमें उनकी संख्या को देखकर नहीं करना चाहिए; न ही परमेश्वर की नज़रों में लोगों की संख्या कोई मायने रखती है। प्राचीन समय में उसने इस्राएलियों को अपनी खास जाति चुना था जबकि उनकी गिनती सब देशों के लोगों से “अधिक” नहीं बल्कि ‘थोड़ी’ थी। (व्यवस्थाविवरण 7:7) लेकिन बाद में यहोवा ने इस्राएलियों को ठुकरा दिया क्योंकि वे विद्रोही बन गए थे। और उनकी जगह सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन यीशु मसीह के शिष्यों से बनी नई कलीसिया को चुन लिया। तब उन्हें यहोवा की पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया गया और वे परमेश्वर और मसीह के बारे में पूरे जोश के साथ प्रचार करने निकल पड़े।—प्रेरितों 2:41, 42.
हमेशा आगे बढ़ते रहे
4. यह क्यों कहा जा सकता है कि शुरू की मसीही कलीसिया लगातार प्रगति करती रही?
4 पहली सदी में मसीही कलीसिया लगातार प्रगति करती रही। मसीहियों ने नए-नए इलाकों में जाकर प्रचार किया, चेले बनाए और परमेश्वर के उद्देश्यों के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा समझ हासिल करते रहे। उन्हें परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गई चिट्ठियों के ज़रिए जो आध्यात्मिक रोशनी दी जाती थी, उसके मुताबिक वे कदम-से-कदम मिलाते हुए चलते रहे। प्रेरित और दूसरे मसीही अलग-अलग कलीसियाओं में जाकर भाई-बहनों का जोश बढ़ाते थे जिससे वे अपना प्रचार काम पूरा कर सकें। उनके कामों का एक अच्छा रिकॉर्ड मसीही यूनानी शास्त्र में दर्ज़ है।—प्रेरितों 10:21, 22; 13:46, 47; 2 तीमुथियुस 1:13; 4:5; इब्रानियों 6:1-3; 2 पतरस 3:17, 18.
5. परमेश्वर का संगठन आज क्यों आगे बढ़ रहा है और हमें इसके साथ कदम-से-कदम मिलाकर क्यों चलना चाहिए?
5 जिस तरह मसीहियों की संख्या शुरू में बहुत कम थी, उसी तरह आधुनिक समय में भी जब यहोवा के साक्षियों की शुरूआत हुई तब उनकी संख्या बहुत कम थी। (जकर्याह 4:8-10) मगर 19वीं सदी के आखिरी सालों से यह साफ ज़ाहिर हुआ है कि परमेश्वर की आत्मा उसके संगठन पर काम कर रही है। हम बाइबल की समझ में और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में लगातार प्रगति करते रहे हैं। इसकी वजह यह है कि हमने अपनी ताकत पर भरोसा नहीं किया, बल्कि पवित्र आत्मा के निर्देशन के मुताबिक काम किया है। (जकर्याह 4:6) अब हम “अन्तिम दिनों” में जी रहे हैं इसलिए यह और भी ज़रूरी है कि हम लगातार आगे बढ़ रहे परमेश्वर के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलते रहें। (2 तीमुथियुस 3:1-5) ऐसा करने से हम अपनी आशा उज्ज्वल बनाए रख सकते हैं और इस दुष्ट संसार के अंत से पहले परमेश्वर के स्थापित राज्य की गवाही देने में लगे रह सकते हैं।—मत्ती 24:3-14.
6, 7. हम ऐसे किन तीन विषयों पर गौर करेंगे जिनमें यहोवा के संगठन ने तरक्की की है?
6 आज हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने 1920, 30 या 40 के दशकों में यहोवा के संगठन के साथ चलना शुरू किया था। शुरूआत के उन दिनों में भला कोई सोच सकता था कि हमारी गिनती में इतनी बढ़ोतरी होगी और संगठन इस कदर तरक्की करेगा? ज़रा याद कीजिए कि आधुनिक समय में यहोवा के संगठन ने किन मामलों में तरक्की की है, जो कि गौरतलब है। यहोवा ने अपने संगठन के लोगों के ज़रिए जो काम पूरा करवाया है, उस पर विचार करना हमारे लिए वाकई आध्यात्मिक रूप से बहुत फायदेमंद होगा।
7 प्राचीन समय में दाऊद ने भी जब यहोवा के आश्चर्यकर्मों पर विचार किया, तो वह बहुत प्रभावित हुआ था। उसने कहा: “मैं तो चाहता हूं कि खोलकर उनकी चर्चा करूं, परन्तु उनकी गिनती नहीं हो सकती।” (भजन 40:5) आज हमारी भी वही मजबूरी है, हम भी उन सभी महान और प्रशंसनीय कामों का हिसाब नहीं रख सकते जो यहोवा ने हमारे दिनों में किए हैं। लेकिन फिर भी आइए हम ऐसे तीन विषयों पर गौर करें जिनमें यहोवा के संगठन ने तरक्की की है: (1) सच्चाई की बढ़ती समझ, (2) सेवकाई में सुधार और बढ़ोतरी और (3) संगठन के काम करने के तरीकों में सही समय पर किए गए सुधार।
आध्यात्मिक समझ के लिए शुक्रगुज़ार
8. नीतिवचन 4:18 के मुताबिक, आध्यात्मिक रोशनी पाने की वजह से हम राज्य के बारे में क्या समझ पाए हैं?
8 आध्यात्मिक बातों की बढ़ती समझ के बारे में नीतिवचन 4:18 की बात बिलकुल सच साबित हुई है। वहाँ लिखा है: “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” हमने आध्यात्मिक समझ पाने में जो तरक्की की है, उसके लिए हम कितने शुक्रगुज़ार हैं। 1919 में ओहायो के सीडर पॉइन्ट में हुए अधिवेशन में परमेश्वर के राज्य पर खास रोशनी डाली गई। उस समय बताया गया कि यहोवा, अपने नाम को पवित्र ठहराने और अपनी हुकूमत पर लगे दोष को मिटाने के लिए इस राज्य का इस्तेमाल करेगा। आध्यात्मिक रोशनी की वजह से ही हम यह समझ पाए हैं कि उत्पत्ति से लेकर प्रकाशितवाक्य में परमेश्वर का कौन-सा उद्देश्य बताया गया है। परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि वह अपने राज्य के ज़रिए, जिसमें उसका पुत्र राजा होगा, अपने नाम को पवित्र ठहराएगा। इससे धार्मिकता के प्रेमियों को एक शानदार आशा मिलती है।—मत्ती 12:18, 21.
9, 10. सन् 1920 के सालों में राज्य के बारे में और दो विरोधी संगठनों के बारे में क्या समझ मिली और इससे क्या फायदा हुआ है?
9 सन् 1922 में सीडर पॉइन्ट में हुए अधिवेशन में प्रमुख वक्ता, जे. एफ. रदरफर्ड ने परमेश्वर के लोगों से आग्रह किया: “राजा और उसके राज्य की घोषणा करो, घोषणा करो, घोषणा करो।” मार्च 1, 1925 के द वॉच टावर में यह लेख छपा था: “राष्ट्र का जन्म।” इसमें उन भविष्यवाणियों पर आध्यात्मिक समझ दी गई जिनमें बताया गया है कि 1914 में परमेश्वर का राज्य स्थापित होगा। 1920 के दशकों में यह समझ भी मिली कि दुनिया में दो संगठन हैं जो एक-दूसरे के बिलकुल खिलाफ हैं। एक है यहोवा का संगठन और दूसरा शैतान का संगठन जिसमें वे सभी लोग हैं जो यहोवा के पक्ष में नहीं। इन दोनों संगठनों के बीच लड़ाई अब भी जारी है और अगर हम जीतनेवालों में से होना चाहते हैं तो हमें यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलना होगा।
10 ऐसी आध्यात्मिक समझ पाकर हमें क्या फायदा हुआ है? हमें यह बात समझ आयी कि हमें इस संसार का भाग नहीं होना चाहिए क्योंकि परमेश्वर के राज्य का और उसके राजा यीशु मसीह का इस संसार से कोई संबंध नहीं है। संसार से अलग रहने पर यह ज़ाहिर होगा कि हम सच्चाई के पक्ष में हैं। (यूहन्ना 17:16; 18:37) जब हम देखते हैं कि यह दुष्ट संसार कैसी बड़ी-बड़ी समस्याओं में उलझा हुआ है तो हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि हम शैतान के संगठन के कोई भाग नहीं हैं! और इस बात से भी हम कितने खुश हैं कि यहोवा के संगठन में हमें आध्यात्मिक सुरक्षा मिलती है।
11. सन् 1931 में परमेश्वर के लोगों ने बाइबल से कौन-सा नाम अपनाया?
11 सन् 1931 में कॉलंबस, ओहायो के अधिवेशन में यशायाह 43:10-12 को सही तरह से लागू किया गया। उस अधिवेशन में बाइबल विद्यार्थियों ने एक अलग नाम अपनाया: यहोवा के साक्षी। परमेश्वर के नाम के बारे में लोगों को साक्षी देना हमारे लिए कितने बड़े सम्मान की बात है क्योंकि इससे दूसरों को भी परमेश्वर का नाम लेने और उद्धार पाने का मौका मिलता है।—भजन 83:18; रोमियों 10:13.
12. सन् 1935 में बड़ी भीड़ के बारे में कौन-सी आध्यात्मिक समझ दी गई?
12 सन् 1930 के दशक से पहले परमेश्वर के कई लोगों को यह पक्का नहीं मालूम था कि उन्हें अनंत जीवन कहाँ मिलेगा। हालाँकि कुछ लोगों के मन में स्वर्ग में जीने का विचार था मगर बाइबल की यह शिक्षा जानकर उनके मन में उमंग पैदा हो रही थी कि ज़्यादातर लोगों को एक खूबसूरत पृथ्वी पर जीवन मिलेगा। 1935 में वॉशिंगटन, डी. सी. में हुए अधिवेशन में यह सुनकर सभी के अंदर खुशी की लहर दौड़ गई कि प्रकाशितवाक्य अध्याय 7 में बताई गई बड़ी भीड़ ऐसे लोगों का समूह है जिन्हें पृथ्वी पर जीवन मिलेगा। तब से बड़ी भीड़ को इकट्ठा करने का काम बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। आज क्या हम इस बात के लिए शुक्रगुज़ार नहीं हैं कि बड़ी भीड़ के बारे में हमनें सही-सही जान लिया है? आज जब हम खुद अपनी आँखों से देखते हैं कि किस तरह सभी जातियों, कुलों और भाषाओं में से भारी तादाद में लोगों को इकट्ठा किया जा रहा है, तो हमारे अंदर यह प्रेरणा जगती है कि हम यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने में पहले से ज़्यादा जोश दिखाएँ।
13. सन् 1941 में सॆंट लुई, मिसूरी के अधिवेशन में किस बड़े मसले पर रोशनी डाली गई?
13 सन् 1941 में, सॆंट लुई मिसूरी के अधिवेशन में सबसे बड़े मसले के बारे में बताया गया जिस पर दुनिया के हर इंसान को ध्यान देना ज़रूरी है। वह है, इस पूरे विश्व पर हुकूमत करने का हक! यह एक ऐसा मसला है जिसे जल्द-से-जल्द सुलझाया जाना है। इसलिए जिस दिन यह सुलझाया जाएगा, वह भयानक दिन तूफान की तरह तेज़ी से समीप आ रहा है! 1941 में यह भी समझाया गया कि इस मसले के साथ एक और मसला भी जुड़ा है जो कि इंसान की खराई का मसला है। यह हम में से हरेक को यह साबित करने का मौका देता है कि हम परमेश्वर की हुकूमत को कबूल करते हैं या नहीं।
14. सन् 1950 के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में यशायाह 32:1, 2 में बताए गए राजकुमारों के बारे में क्या समझाया गया?
14 सन् 1950 में न्यू यॉर्क शहर के अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में एकदम साफ बताया गया था कि यशायाह 32:1, 2 में जिन राजकुमारों का ज़िक्र है, वे असल में कौन हैं। जब भाई फ्रैड्रिक फ्रांज़ ने इस विषय को समझाते हुए कहा कि नई पृथ्वी में जो राजकुमार होंगे, वे आज यहाँ अधिवेशन में हमारे बीच मौजूद हैं, तो सुननेवालों में एक सनसनी दौड़ गई। उस अधिवेशन में और उसके बाद हुए अधिवेशनों में कई दूसरी बातों पर भी आध्यात्मिक रोशनी डाली गई। (भजन 97:11) वाकई, हम इस बात के लिए कितने एहसानमंद हैं कि हमारी चाल “उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।”
सेवकाई में बढ़ते रहना
15, 16. (क) 1920 और 1930 के सालों में हमने सेवकाई में कैसी प्रगति की? (ख) पिछले कुछ दशकों में कौन-सी किताबें मसीही सेवकाई को आगे बढ़ाने में मददगार साबित हुई हैं?
15 एक दूसरा क्षेत्र, जिसमें यहोवा का संगठन आगे बढ़ा है, वह हमारे सबसे मुख्य काम यानी राज्य के प्रचार काम और चेला बनाने के काम से संबंधित है। (मत्ती 28:19, 20; मरकुस 13:10) इस काम को पूरा करने के लिए संगठन ने हमेशा हमें सेवकाई में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लेने के लिए उकसाया है। 1922 में सभी मसीहियों से प्रचार काम में भाग लेने का आग्रह किया गया था। उस वक्त बताया गया था कि हर मसीही को ऐसे समझना चाहिए कि अपनी ज्योति चमकाना और सच्चाई की गवाही देना मेरा फर्ज़ है। (मत्ती 5:14-16) 1927 से रविवार के दिन प्रचार करने का प्रबंध किया जाने लगा। और फरवरी 1940 से साक्षियों ने बिज़नॆस के क्षेत्रों में सड़कों पर लोगों को द वॉचटावर और कन्सोलेशन (जो अब अवेक! कहलाती है) पत्रिकाएँ देना शुरू किया।
16 सन् 1937 में मॉडल स्टडी पुस्तिका रिलीज़ की गयी जिससे रिटर्न विज़िट करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया ताकि लोगों को बाइबल की सच्चाई सिखाई जा सके। उसके बाद के सालों से बाइबल अध्ययन करने पर खास ज़ोर दिया जाने लगा। बाइबल अध्ययन के लिए 1946 में “लॆट गॉड बी ट्रू” और 1968 में सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताबें रिलीज़ की गयीं। फिलहाल, हम बाइबल अध्ययन के लिए ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब इस्तेमाल करते हैं। इन किताबों में ऐसे विषय दिए गए हैं कि इनके ज़रिए लोगों के साथ अध्ययन करने से उनकी आध्यात्मिक नींव मज़बूत बनती है।
संगठन में हुए सुधार के साथ आगे बढ़ना
17. यशायाह 60:17 के मुताबिक, यहोवा का संगठन किस तरह आगे बढ़ा है?
17 तीसरा क्षेत्र जिसमें यहोवा का संगठन आगे बढ़ा है वह है, संगठन के काम करने के तरीकों में सुधार। यशायाह 60:17 में यहोवा ने वादा किया था: “मैं पीतल की सन्ती सोना, लोहे की सन्ती चान्दी, लकड़ी की सन्ती पीतल और पत्थर की सन्ती लोहा लाऊंगा। मैं तेरे हाकिमों को मेल-मिलाप और तेरे चौधरियों को धार्मिकता ठहराऊंगा।” इस भविष्यवाणी के मुताबिक, राज्य के प्रचार काम की निगरानी करने और झुंड की देखभाल करने के मामले में कई सुधार किए गए।
18, 19. बीते कई सालों के दौरान, संगठन को चलाने के तरीकों में कौन-से सुधार किए गए?
18 सन् 1919 में हर कलीसिया के लिए एक सेवा निर्देशक नियुक्त किया गया ताकि प्रचार के काम का अच्छा इंतज़ाम हो सके। इससे प्रचार काम में और तेज़ी आ गई। पहले कलीसिया में वोट डालकर बहुमत के आधार पर प्राचीनों और डीकनों को चुना जाता था मगर यह तरीका 1932 में बंद कर दिया गया। एक और भारी बदलाव 1938 में हुआ। तब से कलीसिया के सभी सेवकों को नियुक्त करने के बारे में परमेश्वर के बताए गए तरीके का और भी करीबी से पालन किया जाने लगा, ठीक उसी तरह जैसे पहली सदी की मसीही कलीसियाओं में किया जाता था। (प्रेरितों 14:23; 1 तीमुथियुस 4:14) पहली सदी की तरह ही 1972 से कलीसिया की देखभाल करने के लिए ओवरसियरों और सहायक सेवकों को नियुक्त किया जाने लगा। तब से पूरी कलीसिया की ज़िम्मेदारी एक ही ओवरसियर के हाथ में देने के बजाय, फिलिप्पियों 1:1 और दूसरी आयतों के अनुसार हर कलीसिया में प्राचीनों का एक निकाय बनाया गया, जिसमें ऐसे भाई नियुक्त किए गए जो बाइबल में दी गई माँगों के मुताबिक अध्यक्ष बनने के योग्य थे।—प्रेरितों 20:28; इफिसियों 4:11, 12.
19 उसके बाद, 1975 में एक और नया इंतज़ाम किया गया। दुनिया भर में चल रहे परमेश्वर के संगठन के काम की निगरानी करने के लिए शासी निकाय के सदस्यों की अलग-अलग कमेटियाँ नियुक्त की गईं। साथ ही, ब्राँच कमेटियाँ भी नियुक्त की गईं ताकि हर ब्राँच अपने इलाके में होनेवाले काम की निगरानी कर सके। तब से वॉच टावर सोसाइटी के मुख्यालय में और अलग-अलग ब्राँचों में काम को और सरल बनाने पर ध्यान दिया जाने लगा ताकि ‘उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जान सकें।’ (फिलिप्पियों 1:9, 10) मसीह के अधीन काम करनेवाले चरवाहों के कंधों पर प्रचार के काम में अगुवाई लेने, कलीसिया को सिखाने और परमेश्वर के झुंड की सही तरीके से रखवाली करने की ज़िम्मेदारियाँ हैं।—1 तीमुथियुस 4:16; इब्रानियों 13:7, 17; 1 पतरस 5:2, 3.
यीशु इस काम में अगुवाई ले रहा है
20. यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने के लिए हमें यीशु के बारे में कौन-सी बात कबूल करनी ज़रूरी है?
20 यहोवा के आगे बढ़ते संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने के लिए हमें यह कबूल करना ज़रूरी है कि परमेश्वर ने यीशु मसीह को “कलीसिया का सिर” नियुक्त किया है। (इफिसियों 5:22, 23) यशायाह 55:4 की बात भी गौर करनेलायक है। वहाँ हमसे कहा गया है: “सुनो, मैं [यहोवा] ने उसको राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।” बेशक यीशु अच्छी तरह जानता है कि अगुवाई कैसे लेनी चाहिए। वह जानता है कि उसकी भेड़ें कौन हैं और वे क्या कर रही हैं। जब उसने एशिया माइनर की सात कलीसियाओं का मुआयना किया था, तब उसने पाँच बार यह बात दोहराई थी: ‘मैं तेरे कामों को जानता हूँ।’ (प्रकाशितवाक्य 2:2, 19; 3:1, 8, 15) अपने पिता यहोवा की तरह, यीशु यह भी जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं। आदर्श प्रार्थना सिखाने से पहले यीशु ने कहा था: “तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पहिले ही जानता है, कि तुम्हारी क्या क्या आवश्यकता है।”—मत्ती 6:8-13.
21. मसीही कलीसिया में यीशु किस तरीके से अगुवाई ले रहा है?
21 यीशु किन तरीकों से संगठन की अगुवाई कर रहा है? एक तरीका है, ‘मनुष्यों में दान’ यानी मसीही ओवरसियरों के ज़रिए। (इफिसियों 4:8) प्रकाशितवाक्य 1:16 में बताया गया है कि अभिषिक्त ओवरसियर मसीह के दहिने हाथ में हैं यानी उसके अधीन काम कर रहे हैं। उसी तरह आज भी प्राचीनों का जो इंतज़ाम है वह यीशु के निर्देशन के मुताबिक है, फिर कोई प्राचीन चाहे स्वर्ग में जीने की आशा रखनेवाला हो या पृथ्वी पर। जैसा कि पिछले लेख में समझाया गया है, उन्हें बाइबल में दी गई माँगों के मुताबिक पवित्र आत्मा से नियुक्त किया जाता है। (1 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:5-9) पहली सदी के दौरान यरूशलेम में प्राचीनों से बना एक शासी निकाय था जो सभी कलीसियाओं पर और राज्य के प्रचार काम पर निगरानी रखता था। आज यहोवा का संगठन उसी आदर्श पर चल रहा है।
कदम-से-कदम मिलाकर चलिए!
22. शासी निकाय किन तरीकों से मदद करता है?
22 पृथ्वी पर राज्य से संबंधित काम की ज़िम्मेदारी “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को दी गयी है, और इस दास वर्ग का प्रतिनिधि यहोवा के साक्षियों का शासी निकाय है। (मत्ती 24:45-47) शासी निकाय मसीही कलीसिया को खासकर आध्यात्मिक शिक्षा और मार्गदर्शन देने पर ध्यान देता है। (प्रेरितों 6:1-6) और अगर प्राकृतिक विपत्ति के कारण किसी जगह के भाई-बहन मुसीबत में होते हैं, तो शासी निकाय उन्हें राहत पहुँचाने की ज़िम्मेदारी एक या उससे ज़्यादा कानूनी एजेन्सियों को सौंपता है। ये एजेन्सियाँ पीड़ित भाई-बहनों के घरों और किंगडम हॉलों की मरम्मत आदि का इंतज़ाम करती हैं। अगर कहीं मसीहियों पर ज़ुल्म ढाया जाता है या उन्हें सताया जाता है तो शासी निकाय उनका विश्वास मज़बूत करने के लिए कुछ इंतज़ाम करता है। इसके अलावा जिन जगहों पर प्रचार काम में ‘असुविधाएँ’ होती हैं, वहाँ प्रचार जारी रखने के लिए हर तरह से मदद देता है।—2 तीमुथियुस 4:1, 2, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
23, 24. यहोवा के लोगों के सामने चाहे जैसी भी स्थिति आए, यहोवा उन्हें लगातार क्या देता है और हमें क्या ठान लेना चाहिए?
23 यहोवा के लोगों के सामने चाहे जैसी भी स्थिति आए, यहोवा उन्हें लगातार आध्यात्मिक भोजन और ज़रूरी हिदायतें देता रहता है। इतना ही नहीं, यहोवा ज़िम्मेदार भाइयों को परख-शक्ति और अंदरूनी समझ भी देता है ताकि वे परमेश्वर के संगठन को और आगे बढ़ा सकें और उसमें सुधार ला सकें। (व्यवस्थाविवरण 34:9; इफिसियों 1:16, 17) संसार भर में प्रचार काम पूरा करने और चेला बनाने की अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने के लिए हमें जो भी मदद चाहिए वह सब हमें यहोवा ज़रूर देता है।—2 तीमुथियुस 4:5.
24 हमें पूरा-पूरा भरोसा है कि यहोवा अपने वफादार लोगों को कभी नहीं छोड़ेगा। वह आनेवाले “बड़े क्लेश” के वक्त ज़रूर उनका उद्धार करेगा। (प्रकाशितवाक्य 7:9-14; भजन 94:14; 2 पतरस 2:9) हमें शुरू में जो भरोसा था, उसे अंत तक बनाए रखने के लिए हमारे पास वाजिब कारण हैं। (इब्रानियों 3:14) तो आइए हम ठान लें कि हम यहोवा के संगठन के साथ हमेशा कदम-से-कदम मिलाकर चलते रहेंगे।
आप क्या जवाब देंगे?
• हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा का संगठन लगातार आगे बढ़ रहा है?
• इस बात का क्या सबूत है कि परमेश्वर के लोगों की आध्यात्मिक समझ लगातार बढ़ रही है?
• मसीही सेवकाई में किस तरह के सुधार किए गए हैं?
• यहोवा के संगठन के काम करने के तरीकों में सही समय पर कौन-से सुधार किए गए?
[पेज 17 पर तसवीर]
दाऊद की तरह हम भी यहोवा के सभी आश्चर्यकर्मों का हिसाब नहीं लगा सकते
[पेज 18 पर तसवीर]
संगठन के काम करने के तरीके में सही समय पर सुधार किए जाने से परमेश्वर के झुंड को फायदा हुआ है