पाठकों के प्रश्न
दानिय्येल 9:24 की भविष्यवाणी के मुताबिक “परमपवित्र” का अभिषेक कब किया गया था?
दानिय्येल 9:24-27 की भविष्यवाणी, “अभिषिक्त प्रधान” यानी मसीह के प्रकट होने के संबंध में है। इसलिए इस भविष्यवाणी में बताए गए “परमपवित्र” का अभिषेक करने का मतलब, यरूशलेम के मंदिर के अति पवित्र-स्थान को अभिषेक करना नहीं है। इसके बजाय, यह शब्द “परमपवित्र,” स्वर्ग में परमेश्वर के निवासस्थान को सूचित करता है, जो कि यहोवा के महान आत्मिक मंदिर का स्वर्गीय अति पवित्र-स्थान है।a—इब्रानियों 8:1-5; 9:2-10, 23.
परमेश्वर के आत्मिक मंदिर ने कब से काम करना शुरू किया था? यह जानने के लिए पहले इस बात पर गौर कीजिए कि जब सा.यु. 29 में यीशु ने बपतिस्मे के लिए खुद को प्रस्तुत किया, तब क्या हुआ था। उस समय से भजन 40:6-8 में लिखे शब्द यीशु पर पूरे होने लगे। प्रेरित पौलुस ने बाद में बताया कि यीशु ने बपतिस्मे के वक्त परमेश्वर से यह प्रार्थना की थी: “बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया।” (इब्रानियों 10:5) यीशु जानता था कि परमेश्वर ने यह ‘नहीं चाहा’ कि यरूशलेम के मंदिर में जानवरों की बलि चढ़ाने का काम जारी रहे। इसके बजाय, यहोवा ने यीशु के लिए एक सिद्ध मानव देह तैयार की थी ताकि वह उसे एक बलिदान के तौर पर अर्पित कर सके। अपने दिल की इच्छा ज़ाहिर करते हुए यीशु ने प्रार्थना में आगे कहा: “देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।” (इब्रानियों 10:7) और तब यहोवा ने क्या किया? इस बारे में सुसमाचार की किताब, मत्ती कहती है: “यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिये आकाश खुल गया; और उस ने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर की नाई उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और देखो, यह आकाशवाणी हुई, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।”—मत्ती 3:16, 17.
इस तरह जब यीशु ने अपनी देह बलिदान के लिए प्रस्तुत की और यहोवा ने उसे स्वीकार किया, तब यह ज़ाहिर हुआ कि यरूशलेम के मंदिर की वेदी से कहीं बढ़कर एक महान वेदी अस्तित्त्व में आई है। यह परमेश्वर की “इच्छा” की वेदी थी या दूसरे शब्दों में कहें तो यीशु के मानव जीवन के बलिदान को स्वीकार करने का एक इंतज़ाम था। (इब्रानियों 10:10) पवित्र आत्मा से यीशु का अभिषेक किए जाने से यह ज़ाहिर हुआ कि परमेश्वर ने अब अपने पूरे आत्मिक मंदिर की व्यवस्था शुरू कर दी है।b इसलिए, परमेश्वर के स्वर्गीय निवासस्थान का अभिषेक, यीशु के बपतिस्मे के समय हुआ था यानी परमेश्वर के स्वर्गीय निवासस्थान को महान आत्मिक मंदिर की व्यवस्था में “परमपवित्र” के तौर पर अलग किया गया था।
[फुटनोट]
a परमेश्वर के आत्मिक मंदिर के अलग-अलग भागों की चर्चा जुलाई 1, 1996 की प्रहरीदुर्ग के पृष्ठ 14-19 में की गई है।
b इसका ज़िक्र दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें! किताब के पृष्ठ 195 में किया गया है।
[पेज 27 पर तसवीर]
“परमपवित्र” का अभिषेक तब हुआ जब यीशु का बपतिस्मा हुआ था