क्या आप उनमें से एक हैं जिनसे परमेश्वर प्रेम रखता है?
“जिस के पास मेरी आज्ञा हैं, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा।”—यूहन्ना 14:21.
1, 2. (क) यहोवा ने सभी इंसानों के लिए अपना प्यार कैसे दिखाया? (ख) सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात को यीशु ने किस समारोह की शुरूआत की?
यहोवा अपनी सृष्टि, इंसान से बेहद प्यार करता है। वह सभी इंसानों से इतना प्यार करता है कि “उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना 3:16) जैसे-जैसे मसीह की मौत का स्मारक दिन करीब आ रहा है, सच्चे मसीहियों को इस बात पर और भी गहराई से सोचने की ज़रूरत है कि यहोवा ने “हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा।”—1 यूहन्ना 4:10.
2 सामान्य युग 33 के निसान 14 की रात को यीशु और उसके 12 प्रेरित फसह का पर्व मनाने के लिए यरूशलेम की एक ऊपरी कोठरी में इकठ्ठे हुए। यह पर्व इस्राएलियों के मिस्र से छुटकारे की याद में मनाया जाता था। (मत्ती 26:17-20) इस यहूदी पर्व को मनाने के बाद यीशु ने यहूदा इस्करियोती को बाहर भेज दिया। फिर उसने एक यादगार भोज मनाने की शुरूआत की जो आगे चलकर मसीह की मौत का स्मारक कहलाता।a इस सामूहिक भोज में यीशु ने अपनी देह और लहू के प्रतीकों के रूप में अखमीरी रोटी और लाल दाखरस का इस्तेमाल किया। इन प्रतीकों को उसने वहाँ मौजूद बाकी के 11 प्रेरितों में बाँटा। इस अवसर पर यीशु ने क्या-क्या किया इसका ब्योरा सुसमाचार की पहली तीन किताबों के लेखक मत्ती, मरकुस और लूका देते हैं। साथ ही प्रेरित पौलुस भी इसकी जानकारी देता है, जिसने इस समारोह को “प्रभु का संध्या भोज” कहा।—1 कुरिन्थियों 11:20, NW; मत्ती 26:26-28; मरकुस 14:22-25; लूका 22:19, 20.
3. यीशु ने अपने शिष्यों के साथ ऊपरी कोठरी में जो आखिरी वक्त बिताया, उस बारे में प्रेरित यूहन्ना का लिखा वृत्तांत दूसरों से कैसे अलग है?
3 दिलचस्पी की बात यह है कि प्रेरित यूहन्ना ने अपनी सुसमाचार की किताब में रोटी और दाखरस के बाँटे जाने का ज़िक्र नहीं किया। हो सकता है कि जब उसने अपनी किताब लिखी (करीब सा.यु. 98 में) उस वक्त तक शुरू के मसीही स्मारक मनाने के तरीके से अच्छी तरह वाकिफ थे। (1 कुरिन्थियों 11:23-26) मगर परमेश्वर की प्रेरणा से यूहन्ना ने बताया कि यीशु ने अपनी मृत्यु के स्मारक की शुरूआत करने से पहले और बाद में क्या कहा और क्या किया। इन बातों के बारे में अहम जानकारी सिर्फ यूहन्ना ही देता है। यह रोमांचक जानकारी यूहन्ना की सुसमाचार की किताब के कम-से-कम पाँच अध्यायों में दी गयी है। इन अध्यायों में साफ-साफ समझाया गया है कि परमेश्वर किस किस्म के लोगों से प्रेम करता है। आइए यूहन्ना के 13 से लेकर 17 अध्यायों की जाँच करें।
यीशु के प्यार की बेहतरीन मिसाल से सीखिए
4. (क) स्मारक की शुरूआत करते समय यीशु ने जिस खास विषय पर बात की उसके बारे में यूहन्ना ने कैसे खुलकर बताया? (ख) यहोवा, यीशु से प्रेम करता है, इसकी एक अहम वजह क्या है?
4 प्रेम ही इन अध्यायों का खास विषय है जिनमें यह ब्योरा दिया गया है कि यीशु ने अपने चेलों से बिछड़ते वक्त उन्हें क्या सलाह दी थी। दरअसल, इन अध्यायों में “प्रेम” शब्द 30 बार आता है। यीशु अपने पिता, यहोवा और अपने चेलों से बेहद प्रेम करता है, इसके बारे में इन अध्यायों में सबसे ज़्यादा विस्तार से बताया गया है। यहोवा के लिए यीशु के प्रेम का सबूत, उसके जीवन के बारे में बतानेवाली सुसमाचार की सभी किताबों से मिलता है। मगर सिर्फ यूहन्ना की किताब में ही यीशु का खुलकर दिया गया बयान दर्ज़ है: “मैं पिता से प्रेम रखता हूं।” (यूहन्ना 14:31) यीशु ने यह भी कहा कि यहोवा उससे प्रेम करता है और उसने इसकी वजह भी बतायी। उसने कहा: “जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।” (यूहन्ना 15:9, 10) जी हाँ, यहोवा अपने बेटे से इसलिए प्रेम करता है क्योंकि वह उसकी हर आज्ञा मानता है। यीशु मसीह, अपने सभी चेलों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल है!
5. यीशु ने अपने चेलों के लिए प्यार कैसे दिखाया?
5 प्रेरितों से यीशु की आखिरी मुलाकात के बारे में यूहन्ना के वृत्तांत के बिलकुल शुरू में ही ज़ोर दिया गया है कि यीशु के दिल में अपने चेलों के लिए गहरा प्यार था। यूहन्ना बयान करता है: “फसह के पर्ब्ब से पहिले जब यीशु ने जान लिया, कि मेरी वह घड़ी आ पहुंची है कि जगत छोड़कर पिता के पास जाऊं, तो अपने लोगों से, जो जगत में थे, जैसा प्रेम वह रखता था, अन्त तक वैसा ही प्रेम रखता रहा।” (यूहन्ना 13:1) उस यादगार शाम को यीशु ने दूसरों की प्यार से सेवा करने के संबंध में एक ऐसी सीख दी जिसे वे ज़िंदगी भर नहीं भूलते। उसने उनके पैर धोए। दरअसल उनमें से हरेक को यीशु और अपने साथियों के पैर धोने के लिए तैयार होना था, मगर वे ऐसा करने से पीछे हट गए। यीशु ने यह दीनता का काम किया और फिर अपने चेलों से कहा: “मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पांव धोना चाहिए। क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।” (यूहन्ना 13:14, 15) सच्चे मसीहियों को अपने भाइयों की सेवा खुशी-खुशी करने के लिए तैयार रहना चाहिए।—मत्ती 20:26, 27; यूहन्ना 13:17.
नयी आज्ञा का पालन करो
6, 7. (क) यूहन्ना ने यीशु के स्मारक के संबंध में कौन-सी ज़रूरी बात दर्ज़ की है? (ख) यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी नयी आज्ञा दी और उसमें नयी बात क्या थी?
6 निसान 14 को ऊपरी कोठरी में जो हुआ उसके बारे में सिर्फ यूहन्ना की किताब ही यहूदा इस्करियोती के चले जाने का ज़िक्र करती है। (यूहन्ना 13:21-30) सुसमाचार के दूसरे वृत्तांतों से तुलना करने पर पता चलता है कि उस विश्वासघाती के जाने के बाद ही यीशु ने अपनी मौत का स्मारक मनाने की शुरूआत की। फिर उसने अपने वफादार प्रेरितों के साथ काफी देर तक बातें की और बिछड़ने से पहले उन्हें सलाह और हिदायतें दीं। इस वक्त जब हम यीशु के स्मारक समारोह में हाज़िर होने की तैयारी कर रहे हैं तो यह जानने में हमें गहरी दिलचस्पी लेनी चाहिए कि यीशु ने उस अवसर पर क्या कहा था। और यह खासकर इसलिए ज़रूरी है क्योंकि हम उन लोगों में होना चाहते हैं जिनसे परमेश्वर प्रेम रखता है।
7 यीशु ने अपनी मौत की यादगार मनाने की शुरूआत करने के बाद जो सबसे पहली हिदायत दी, वह एक नयी आज्ञा थी। उसने कहा: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:34, 35) इस आज्ञा में नयी बात क्या थी? उसी शाम यीशु ने कुछ देर बाद यह बात अच्छी तरह समझाते हुए कहा: “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।” (यूहन्ना 15:12, 13) मूसा की व्यवस्था में इस्राएलियों को ‘एक दूसरे से अपने ही समान प्रेम रखने’ की आज्ञा दी गयी थी। (लैव्यव्यवस्था 19:18) लेकिन यीशु की आज्ञा में कुछ और भी शामिल है। मसीहियों को चाहिए कि वे एक-दूसरे से मसीह के समान प्रेम करें और अपने भाइयों के लिए जान तक देने को तैयार रहें।
8. (क) निःस्वार्थ प्रेम दिखाने में क्या शामिल है? (ख) आज यहोवा के साक्षी निःस्वार्थ प्रेम कैसे दिखाते हैं?
8 स्मारक का यह समय एकदम सही मौका है कि हम निजी तौर पर और पूरी कलीसिया के तौर पर अपनी जाँच करके देखें कि क्या हम वाकई मसीह जैसा प्रेम दिखाते हैं, जो सच्चे मसीही धर्म का चिन्ह है। इस तरह का निःस्वार्थ प्रेम दिखाने का मतलब है कि एक मसीही अपने भाइयों के साथ विश्वासघात करने के बजाय उनकी खातिर अपनी जान की बाज़ी लगाने के लिए तैयार हो जाए और कई बार मसीहियों ने ऐसा करके दिखाया भी है। लेकिन ज़्यादातर हमें अपने भाइयों और दूसरों की सेवा और मदद करने के लिए अपनी जान नहीं बल्कि अपनी ख्वाहिशों का त्याग करना पड़ता है। ऐसा करने में प्रेरित पौलुस ने एक बढ़िया मिसाल कायम की। (2 कुरिन्थियों 12:15; फिलिप्पियों 2:17) दुनिया भर में, यहोवा के साक्षी त्याग की भावना के लिए जाने जाते हैं। वे अपने भाइयों और दूसरों की मदद करने, साथ ही बाइबल की सच्चाई बताने में खुद को पूरी तरह लगा देते हैं।b—गलतियों 6:10.
अनमोल रिश्ते
9. यहोवा और उसके बेटे के साथ अनमोल रिश्ता बनाए रखने के लिए, क्या करने में हमें खुशी होती है?
9 हमारे लिए यहोवा और उसके बेटे, यीशु मसीह का प्यार, सबसे अनमोल खज़ाना है जिसकी तुलना किसी चीज़ से नहीं की जा सकती। लेकिन इस प्यार को पाने और महसूस करने के लिए हमें भी कुछ करने की ज़रूरत है। अपने चेलों के साथ बितायी आखिरी रात में यीशु ने कहा: “जिस के पास मेरी आज्ञा हैं, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूंगा।” (यूहन्ना 14:21) हम परमेश्वर और उसके बेटे के साथ के अपने रिश्ते की दिलो-जान से कदर करते हैं, इसलिए हम खुशी से उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं। उन आज्ञाओं में निःस्वार्थ प्रेम दिखाने की नयी आज्ञा और मसीह का वह आदेश भी शामिल है, जो उसने अपने पुनरुत्थान के बाद दिया था कि “लोगों में प्रचार करो; और गवाही दो” और खुशखबरी स्वीकार करनेवालों को ‘चेला बनाने’ में लगे रहो।—प्रेरितों 10:42; मत्ती 28:19, 20.
10. अभिषिक्त जनों और ‘अन्य भेड़’ के लोगों को किनके साथ अनमोल रिश्ता रखने का बढ़िया मौका मिला है?
10 उसी रात, अपने वफादार प्रेरित यहूदा (तद्दै) के एक सवाल का यीशु ने यह जवाब दिया: “यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ बास करेंगे।” (यूहन्ना 14:22, 23) अभिषिक्त मसीही जिन्हें स्वर्ग में मसीह के साथ शासन करने का बुलावा दिया गया है, इस धरती पर रहते वक्त भी उनका, यहोवा और उसके बेटे के साथ एक खास रिश्ता होता है। (यूहन्ना 15:15; 16:27; 17:22; इब्रानियों 3:1; 1 यूहन्ना 3:2, 24) मगर उनके साथियों यानी अन्य भेड़ों का भी, अपने ‘एक ही चरवाहे,’ यीशु मसीह और अपने परमेश्वर यहोवा के साथ एक अनमोल रिश्ता है। और इन अन्य भेड़ के लोगों को धरती पर हमेशा तक जीने की आशा है। लेकिन यह रिश्ता इस बिनाह पर है कि वे हमेशा उनकी आज्ञाओं को मानें।—यूहन्ना 10:16, NW; भजन 15:1-5; 25:14.
‘तुम इस संसार के भाग नहीं’
11. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी गंभीर चेतावनी दी?
11 अपनी मौत से पहले अपने वफादार चेलों के साथ इस आखिरी मुलाकात के दौरान यीशु ने उन्हें एक गंभीर चेतावनी दी: जिस इंसान से परमेश्वर प्रेम करता है, उससे संसार नफरत करेगा। उसने साफ बताया: “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उस ने तुम से पहिले मुझ से भी बैर रखा। यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, बरन मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है इसी लिये संसार तुम से बैर रखता है। जो बात मैं ने तुम से कही थी, कि दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्हों ने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।”—यूहन्ना 15:18-20.
12. (क) यीशु ने अपने चेलों को यह चेतावनी क्यों दी कि संसार उनसे नफरत करेगा? (ख) स्मारक का दिन करीब आते देख किस बात पर ध्यान देना हम सभी के लिए अच्छा होगा?
12 यीशु ने यह चेतावनी इसलिए दी ताकि इन 11 प्रेरितों और उनके बाद आनेवाले सभी सच्चे मसीहियों से जब संसार नफरत करे, तब वे निराश होकर हिम्मत ना हार जाएँ। उसने यह भी कहा: “ये बातें मैं ने तुम से इसलिये कहीं कि तुम ठोकर न खाओ। वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, बरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं। और यह वे इसलिये करेंगे कि उन्हों ने न पिता को जाना है और न मुझे जानते हैं।” (यूहन्ना 16:1-3) एक बाइबल शब्दकोश के मुताबिक शब्द ‘ठोकर खाना’ के लिए जिस क्रियापद का इस्तेमाल किया गया है, उसका मतलब है, “एक इंसान को जिस पर भरोसा करना चाहिए और जिसकी आज्ञाओं को मानना चाहिए, उस पर से उसका भरोसा उठ जाने और उसे छोड़ देने का कारण बनना; किसी के बहक जाने का कारण बनना।” जैसे-जैसे स्मारक दिन नज़दीक आ रहा है, अच्छा होगा कि सभी लोग अतीत के और आज के समय के वफादार जनों की ज़िंदगी पर मनन करें और परीक्षाओं के बावजूद डटे रहने में उनकी मिसाल पर चलें। आपका विरोध किए जाने या आपको सताए जाने पर भी, आप यहोवा और यीशु को कभी मत छोड़िए। इसके बजाय उन पर हमेशा भरोसा रखने और उनकी आज्ञाओं को मानने की ठानिए।
13. यीशु ने अपने चेलों की खातिर पिता से क्या बिनती की?
13 यरूशलेम की ऊपरी कोठरी में प्रेरितों से अपनी मुलाकात का अंत यीशु ने प्रार्थना से किया। उसने अपने पिता से कहा: “मैं ने तेरा वचन उन्हें पहुंचा दिया है, और संसार ने उन से बैर किया, क्योंकि जैसा मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं। मैं यह बिनती नहीं करता, कि तू उन्हें जगत से उठा ले, परन्तु यह कि तू उन्हें उस दुष्ट से बचाए रख। जैसे मैं संसार का नहीं, वैसे ही वे भी संसार के नहीं।” (यूहन्ना 17:14-16) हम इस बात पर पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा जिनसे प्यार करता है, वह उन्हें बचाए रखता है और संसार से अलग रहने की हिम्मत देता है।—यशायाह 40:29-31.
पिता के प्रेम और पुत्र के प्रेम में बने रहो
14, 15. (क) यीशु ने अपनी तुलना किसके साथ की और उसने किसे “जंगली दाखलता” कहा? (ख) “सच्ची दाखलता” की “डालियां” कौन हैं?
14 निसान 14 की रात सिर्फ अपने वफादार चेलों के साथ बात करते वक्त यीशु ने अपनी तुलना “सच्ची दाखलता” से की, जबकि विश्वासघाती इस्राएलियों को उसने “जंगली दाखलता” कहा। उसने कहा: “सच्ची दाखलता मैं हूं; और मेरा पिता किसान है।” (यूहन्ना 15:1) सदियों पहले भविष्यवक्ता यिर्मयाह ने यहोवा के इन शब्दों को दर्ज़ किया था जो उसने अपने विश्वासघाती लोगों से कहे थे: “मैं ने तो तुझे उत्तम जाति की दाखलता . . . करके लगाया था, फिर तू क्यों मेरे लिये जंगली दाखलता बन गई?” (यिर्मयाह 2:21) और भविष्यवक्ता होशे ने लिखा: “इस्राएल एक जंगली दाखलता है। वह अपने लिए ही फल पैदा करती है। . . . उनका मन कपटी हो चुका है।”—होशे 10:1, 2, NW.
15 इस्राएल, सच्ची उपासना के फल पैदा करने के बजाय, यहोवा के रास्ते से हट गया और उसने सिर्फ अपने लिए ही फल पैदा किया। अपने वफादार चेलों के साथ हुई आखिरी मुलाकात से तीन दिन पहले यीशु ने कपटी यहूदी अगुवों से कहा: “मैं तुम से कहता हूं, कि परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।” (मत्ती 21:43) वह नयी जाति ‘परमेश्वर का इस्राएल’ है जो 1,44,000 अभिषिक्त मसीहियों से बना है और जिन्हें “सच्ची दाखलता,” यीशु मसीह की “डालियां” कहा गया है।—गलतियों 6:16; यूहन्ना 15:5; प्रकाशितवाक्य 14:1,3.
16. यीशु ने 11 वफादार प्रेरितों को क्या करने के लिए उकसाया, और इस अंतिम समय में रहनेवाले बचे हुए वफादार लोगों के बारे में क्या कहा जा सकता है?
16 यीशु ने ऊपरी कोठरी में मौजूद 11 प्रेरितों से कहा: “जो डाली मुझ में है, और नहीं फलती, उसे वह काट डालता है, और जो फलती है, उसे वह छांटता है ताकि और फले। तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते।” (यूहन्ना 15:2, 4) हमारे दिनों में यहोवा के लोगों का इतिहास दिखाता है कि बचे हुए वफादार अभिषिक्त मसीही अपने सिर, यीशु मसीह के साथ एकता में बने रहे। (इफिसियों 5:23) उन्होंने अपने आपको यहोवा के हवाले कर दिया ताकि वह उन्हें शुद्ध करे और उनकी कटाई-छँटाई करे। (मलाकी 3:2, 3) सन् 1919 से वे बड़ी मात्रा में राज्य का फल लाए हैं। इन फलों में सबसे पहले, बचे हुए अभिषिक्त मसीही थे और 1935 से उनके साथियों की एक “बड़ी भीड़” आ रही है जिनकी गिनती लगातार बढ़ती ही जा रही है।—प्रकाशितवाक्य 7:9; यशायाह 60:4, 8-11.
17, 18. (क) यीशु के कौन-से शब्द, परमेश्वर के प्यार में बने रहने के लिए अभिषिक्त जनों और अन्य भेड़ों की मदद करते हैं? (ख) स्मारक में उपस्थित होने से यहोवा के प्रेम में बने रहने का हमारा संकल्प कैसे दृढ़ होगा?
17 सभी अभिषिक्त मसीहियों और उनके साथियों पर यीशु ने जो आगे कहा वे शब्द लागू होते हैं: “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे। जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो। यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।”—यूहन्ना 15:8-10.
18 हम सभी मसीही परमेश्वर के प्रेम में बने रहना चाहते हैं और यही बात हमें फल पैदा करने की प्रेरणा देती है। ऐसा करने के लिए हम हर मौके पर ‘राज्य का सुसमाचार’ प्रचार करते हैं। (मत्ती 24:14) हम अपनी ज़िंदगी में “आत्मा का फल” पैदा करने की भी पूरी कोशिश करते हैं। (गलतियों 5:22, 23) यीशु की मौत के स्मारक में उपस्थित होने से ऐसा करते रहने का हमारा संकल्प और भी दृढ़ होगा क्योंकि उस अवसर पर हमें याद दिलाया जाएगा कि परमेश्वर और मसीह, हमसे कितना प्यार करते हैं।—2 कुरिन्थियों 5:14, 15.
19. अगले लेख में किस मदद के बारे में चर्चा की जाएगी?
19 स्मारक मनाने की शुरूआत करने के बाद यीशु ने वादा किया कि उसका पिता वफादार चेलों के पास एक “सहायक अर्थात् पवित्र आत्मा” भेजेगा। (यूहन्ना 14:26) यह आत्मा, यहोवा के प्रेम में बने रहने में अभिषिक्तों और अन्य भेड़ों की मदद कैसे करती है, यह हम अगले लेख में देखेंगे।
[फुटनोट]
a बाइबल की गणना के मुताबिक सन् 2002 में निसान 14, मार्च 28 गुरुवार को सूर्यास्त के बाद शुरू होगा। उस शाम संसार भर के यहोवा के साक्षी प्रभु यीशु मसीह की मौत का स्मारक मनाने के लिए इकट्ठे होंगे।
b यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज्य की घोषणा करनेवाले (अँग्रेज़ी) के अध्याय 19 और 32 देखिए।
पुनर्विचार के लिए प्रश्न
• प्यार से सेवा करने के बारे में यीशु ने अपने चेलों को कौन-सा कारगर सबक दिया?
• स्मारक का समय किस मामले में खुद की जाँच करने का सही मौका है?
• हमसे नफरत किए जाने और हमें सताए जाने के बारे में यीशु की चेतावनी से क्यों ठोकर नहीं खानी चाहिए?
• कौन “सच्ची दाखलता” है? कौन “डालियां” हैं, और उनसे क्या उम्मीद की जाती है?
[पेज 15 पर तसवीर]
यीशु ने अपने प्रेरितों को दूसरों की प्यार से सेवा करने के संबंध में एक ऐसी सीख दी जिसे वे ज़िंदगी भर नहीं भूलते
[पेज 16 पर तसवीरें]
मसीह के चेले निःस्वार्थ प्रेम दिखाने की उसकी आज्ञा मानते हैं