राजाओं की मिसाल पर चलिए
“[वह] इसी व्यवस्था की पुस्तक . . . [की] एक नकल अपने लिये कर ले। और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे।”—व्यवस्थाविवरण 17:18,19.
1. एक मसीही किन लोगों की तरह बन सकता है?
आप खुद को राजा या रानी समझ बैठें, ऐसा तो शायद मुमकिन न हो। और न ही ऐसा कोई वफादार मसीही, या बाइबल का अध्ययन करनेवाला होगा जो यह सोचे कि वह दाऊद, योशिय्याह, हिजकिय्याह या फिर यहोशापात जैसे भले राजाओं की जगह पर है और उनकी तरह दूसरों पर हुकूमत कर सकता है। मगर, एक खास तरीके से आप उन राजाओं के जैसे हो सकते हैं, और आपको होना भी चाहिए। वह कैसे? और आपको उनके जैसा क्यों बनना चाहिए?
2, 3. यहोवा ने मूसा के दिनों में पहले से क्या जान लिया था और इस्राएली राजाओं को क्या करने का हुक्म दिया गया था?
2 मूसा के दिनों में ही परमेश्वर ने जान लिया था कि भविष्य में इस्राएली, अपने लिए इंसानों में से एक राजा की माँग करेंगे। इसलिए इंसानी राजा की हुकूमत की इजाज़त देने के बहुत पहले, यहोवा ने मूसा को प्रेरणा दी कि व्यवस्था-वाचा के कानून लिखते वक्त वह उसमें राजाओं के लिए भी कुछ ज़रूरी आदेश लिखे। ये शाही हुक्म थे, यानी खुद राजा के लिए नियम।
3 परमेश्वर ने कहा: “जब तू उस देश में पहुंचे जिसे तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है, और . . . कहने लगे, कि चारों ओर की सब जातियों की नाईं मैं भी अपने ऊपर राजा ठहराऊंगा; तब जिसको तेरा परमेश्वर यहोवा चुन ले अवश्य उसी को राजा ठहराना। . . . और जब वह राजगद्दी पर विराजमान हो, तब इसी व्यवस्था की पुस्तक, . . . उसकी एक नकल अपने लिये कर ले। और वह उसे अपने पास रखे, और अपने जीवन भर उसको पढ़ा करे, जिस से वह अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानना, और इस व्यवस्था और इन विधियों की सारी बातों के मानने में चौकसी करना सीखे।”—व्यवस्थाविवरण 17:14-19.
4. परमेश्वर ने राजाओं के लिए जो आदेश दिए, उन्हें पूरा करने के लिए एक राजा को क्या-क्या करना था?
4 जी हाँ, यहोवा अपने लोगों के लिए जिस राजा को चुनता, उसे पवित्रशास्त्र के कुछ भागों की नकल उतारनी होती थी। ये भाग आज आपकी बाइबल में भी मौजूद हैं। नकल उतारने के बाद राजा को इसे रोज़ और बार-बार पढ़ना था। इस पढ़ाई का मकसद यह नहीं था कि राजा अपनी याददाश्त बढ़ाने के लिए रट्टा लगाए। दरअसल, यह अध्ययन करने का एक तरीका था और राजा, फायदा पाने के उद्देश्य से ऐसा करता था। अगर राजा, यहोवा को खुश करना चाहता था तो उसे इस तरह अध्ययन करने की आदत डालनी थी जिससे वह अपने अंदर सही रवैया पैदा कर सके और उसे कायम रखे। अगर वह एक कामयाब और समझदार राजा बनना चाहता था, तो उसे परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे शास्त्र का अध्ययन करने की ज़रूरत थी।—2 राजा 22:8-13; नीतिवचन 1:1-4.
एक राजा की तरह सीखें
5. राजा दाऊद के ज़माने में बाइबल का कौन-सा भाग, नकल उतारने और पढ़ने के लिए मौजूद था और दाऊद ने इसके बारे में कैसा महसूस किया?
5 जब दाऊद, इस्राएल का राजा बना तो आपको क्या लगता है कि उसे क्या करना पड़ा होगा? उसे भी पंचग्रन्थ (उत्पत्ति, निर्गमन, लैव्यव्यवस्था, गिनती, व्यवस्थाविवरण) की किताबों की एक नकल बनानी पड़ी होगी। ज़रा सोचिए कि जब दाऊद ने खुद अपनी आँखों से देखकर और अपने हाथों से लिखकर व्यवस्था की नकल उतारी होगी तो इसका उसके दिलो-दिमाग पर कितना गहरा असर पड़ा होगा! मूसा ने शायद अय्यूब की किताब और भजन 90 और 91 भी लिखे थे। क्या दाऊद ने इनकी भी नकल उतारी? हो सकता है। इनके अलावा उसके पास शायद यहोशू, न्यायियों और रूत की किताबें भी थीं। ज़ाहिर है, राजा दाऊद के पास बाइबल का काफी बड़ा भाग मौजूद था, और उसने इसे पढ़ा, समझा और इससे सीखा। हम ऐसा मान सकते हैं, क्योंकि गौर कीजिए कि भजन 19:7-11 में दाऊद किस तरह परमेश्वर की व्यवस्था के बारे में अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करता है।
6. हम पूरे यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं कि यीशु को भी अपने पुरखे दाऊद की तरह शास्त्र से लगाव था?
6 दाऊद की संतान और महान दाऊद यीशु, इसी मिसाल पर चला। हर हफ्ते आराधनालय में जाना, यीशु का दस्तूर था। वहाँ जब शास्त्र पढ़ा जाता और उसका मतलब समझाया जाता तो यीशु ध्यान से सुनता था। इतना ही नहीं, कभी-कभी यीशु खुद सबको, परमेश्वर का वचन ज़ोर से पढ़कर सुनाता और उसके पूरा होने के बारे में समझाता था। (लूका 4:16-21) बाइबल पढ़ते वक्त, आपको यह जानने में ज़रा-भी देर नहीं लगेगी कि यीशु को पवित्रशास्त्र का कितना अच्छा ज्ञान था। सिर्फ सुसमाचार की किताबें ही पढ़िए और देखिए कि यीशु ने कितनी बार कहा कि “लिखा है,” या कितनी बार उसने शास्त्र के कुछ खास भागों का हवाला दिया। मत्ती के लिखे पहाड़ी उपदेश में ही देखा जाए, तो यीशु ने इब्रानी शास्त्र से 21 दफा हवाले दिए।—मत्ती 4:4-10; 7:29; 11:10; 21:13; 26:24, 31; यूहन्ना 6:31, 45; 8:17.
7. यीशु अपने ज़माने के धर्मगुरुओं से कैसे अलग था?
7 यीशु ने भजन 1:1-3 की सलाह मानी, जहाँ लिखा है: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो दुष्टों की युक्ति पर नहीं चलता, . . . परन्तु वह तो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। . . . जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” यीशु अपने ज़माने के धर्मगुरुओं से कितना अलग था! कहने को तो ये धर्मगुरु ‘मूसा की गद्दी पर बैठे थे,’ मगर उन्होंने “यहोवा की व्यवस्था” से मुँह फेर लिया था!—मत्ती 23:2-4.
8. यहूदी धर्मगुरुओं को बाइबल पढ़ने और उसका अध्ययन करने का फायदा क्यों नहीं हुआ?
8 लेकिन, बाइबल में लिखी यीशु की एक बात से कुछ लोग उलझन में पड़ सकते हैं। इसे पढ़कर उन्हें शायद ऐसा लगे कि यीशु हमें बाइबल का अध्ययन करने से मना कर रहा है। यीशु की यह बात यूहन्ना 5:39, 40 में लिखी है, जहाँ उसने अपने समय के कुछ लोगों से कहा: “तुम पवित्रशास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है। फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते।” ऐसा कहकर यीशु, अपने सुननेवाले यहूदियों को शास्त्र का अध्ययन करने से रोक नहीं रहा था। वह तो उनके ढोंग या कपट की पोल खोल रहा था। वे मानते थे कि शास्त्र उन्हें अनंत जीवन की राह दिखा सकता है, मगर जिस शास्त्र में वे ढूँढ़-ढाँढ़ कर रहे थे, उसी की मदद से उन्हें पहचानना चाहिए था कि यीशु ही मसीहा है। मगर ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने मसीहा को ठुकरा दिया। शास्त्र के अध्ययन का उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि उनका मन साफ नहीं था और वे सीखने के लिए तैयार नहीं थे।—व्यवस्थाविवरण 18:15; लूका 11:52; यूहन्ना 7:47, 48.
9. प्रेरितों और प्राचीनकाल के भविष्यवक्ताओं ने कौन-सी बढ़िया मिसाल पेश की?
9 मगर यीशु के चेले और प्रेरित ऐसे हरगिज़ नहीं थे! वे “पवित्र शास्त्र” का अध्ययन यह मानकर करते थे कि यह उन्हें “उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।” (2 तीमुथियुस 3:15) इस मामले में वे प्राचीनकाल के भविष्यवक्ताओं के जैसे थे, जिन्होंने “सावधानीपूर्वक खोजबीन और जांच-पड़ताल की।” उन भविष्यवक्ताओं ने सिर्फ कुछ महीनों या एक साल तक मन लगाकर खोजबीन नहीं की। प्रेरित पतरस कहता है कि “वे इस बात की खोज में लगे हुए थे” कि मसीहा क्या करेगा और इंसान के छुड़ानेवाले की हैसियत से जब वह काम करेगा तो उससे क्या-क्या आशीषें मिलेंगी। खुद पतरस ने भी अपनी पहली पत्री में, बाइबल की दस किताबों का 34 दफे हवाला दिया।—1 पतरस 1:10, 11, NHT.
10. हममें से हरेक को बाइबल का अध्ययन करने पर ध्यान क्यों देना चाहिए?
10 तो फिर, साफ ज़ाहिर है कि प्राचीन इस्राएल में राजाओं पर परमेश्वर के वचन का मन लगाकर अध्ययन करने की ज़िम्मेदारी थी। यीशु भी इसी मिसाल पर चला। बाइबल का अध्ययन करने की ज़िम्मेदारी उन लोगों की भी है जो स्वर्ग में मसीह के साथ राजा बनकर शासन करेंगे। (लूका 22:28-30; रोमियों 8:17; 2 तीमुथियुस 2:12; प्रकाशितवाक्य 5:10; 20:6) और राजाओं की इस मिसाल पर चलना, आज उन लोगों के लिए भी बेहद ज़रूरी है जो परमेश्वर के राज्य के अधीन इस पृथ्वी पर आशीषें पाने की उम्मीद करते हैं।—मत्ती 25:34, 46.
राजाओं की और आपकी ज़िम्मेदारी
11. (क) अध्ययन करने के मामले में मसीही किस खतरनाक हालात में पड़ सकते हैं? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल पूछने चाहिए?
11 हम पूरा ज़ोर देकर और दिल से कह सकते हैं कि हर सच्चे मसीही को बाइबल का अध्ययन करना चाहिए। यह सिर्फ उन लोगों के लिए ही ज़रूरी नहीं है जिन्होंने हाल ही में यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया है। हममें से हरेक को यह पक्का इरादा करना होगा कि हम प्रेरित पौलुस के ज़माने के उन लोगों की तरह न बनें, जो कुछ वक्त के बाद निजी अध्ययन करने में ढीले पड़ गए। उन्होंने सिर्फ “परमेश्वर के वचनों की आदि शिक्षा” यानी ‘मसीह की शिक्षा की आरम्भ की बातें’ सीखीं। मगर उन्होंने अध्ययन करना जारी नहीं रखा, इसलिए वे “सिद्धता की ओर आगे” नहीं बढ़ पाए। (इब्रानियों 5:12–6:3) हम भी अपने आप से पूछ सकते हैं: ‘मसीही कलीसिया से मेरा नाता चाहे अभी-अभी जुड़ा हो या मैं बरसों से इसके साथ रहा हूँ, मगर मैं परमेश्वर के वचन का निजी अध्ययन करने के बारे में कैसा महसूस करता हूँ? पौलुस ने अपने समय के मसीहियों के लिए प्रार्थना की कि वे “परमेश्वर के ज्ञान में बढ़ते” जाएँ। क्या मैं भी परमेश्वर के ज्ञान में बढ़ने की ऐसी ही ख्वाहिश ज़ाहिर करता हूँ?’—कुलुस्सियों 1:9, 10, NHT.
12. परमेश्वर के वचन के लिए निरंतर लगाव बढ़ाना ज़रूरी क्यों है?
12 अध्ययन करने की अच्छी आदत डालने के लिए सबसे ज़रूरी है कि हम अपने अंदर परमेश्वर के वचन के लिए लगाव पैदा करें। भजन 119:14-16 बताता है कि अगर हमें परमेश्वर के वचन से प्रसन्नता पानी है तो हमें इस पर लगातार मनन करना चाहिए और यह जानना चाहिए कि इसमें हमारे लिए क्या सबक हैं। यह बात हर मसीही पर लागू होती है, फिर चाहे वह कितने ही समय से सच्चाई में क्यों न रहा हो। इस बात को अच्छी तरह समझने के लिए आइए हम तीमुथियुस की मिसाल पर गौर करें। वह एक मसीही प्राचीन था और “मसीह यीशु के अच्छे योद्धा की” तरह सेवा कर रहा था, मगर फिर भी पौलुस ने उसे उकसाया कि वह ‘सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाने’ के लिए प्रयत्न करे। (2 तीमुथियुस 2:3, 15; 1 तीमुथियुस 4:15) ज़ाहिर है कि “प्रयत्न” करने में अध्ययन करने की अच्छी आदत डालना भी शामिल है।
13. (क) बाइबल अध्ययन के लिए ज़्यादा समय कैसे निकाला जा सकता है? (ख) कौन-सी तबदीलियाँ करने से आप अध्ययन करने के लिए वक्त निकाल सकेंगे?
13 अध्ययन करने की अच्छी आदत डालने का पहला कदम है, नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करने के लिए समय अलग रखना। इस मामले में अब तक आपने क्या किया है? जवाब चाहे जो भी हो, क्या आपको लगता है कि निजी अध्ययन के लिए ज़्यादा समय निकालने से आपको फायदा होगा? लेकिन आप शायद सोच रहे होंगे कि ‘मैं इसके लिए वक्त कैसे निकालूँ?’ कुछ लोग सुबह थोड़ा जल्दी उठकर बाइबल अध्ययन के लिए ज़्यादा वक्त निकाल पाते हैं। इस वक्त अध्ययन करने का उन्हें बहुत फायदा होता है। वे चाहें तो 15 मिनट बाइबल पढ़ते हैं या फिर बाइबल के किसी खास विषय पर अध्ययन करते हैं। वक्त निकालने का एक और तरीका यह हो सकता है कि आप अपने हफ्ते के शेड्यूल में छोटी-मोटी तबदीलियाँ करें। मिसाल के लिए, अगर आपको हफ्ते के ज़्यादातर दिन अखबार पढ़ने या टी.वी. पर शाम का समाचार देखने की आदत है, तो क्या आप हफ्ते में सिर्फ एक दिन ये काम छोड़कर उस वक्त को बाइबल अध्ययन करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं? अगर आप हफ्ते में एक दिन 30 मिनट का वक्त, समाचार के बजाय निजी अध्ययन के लिए दें, तो साल-भर में आप निजी अध्ययन के लिए 25 से ज़्यादा घंटे दे पाएँगे। ज़रा सोचिए, बाइबल पढ़ने या अध्ययन करने में 25 घंटे ज़्यादा बिताने से आपको कितना फायदा होगा! एक और सुझाव: आनेवाले हफ्ते के दौरान, हर दिन के आखिर में ध्यान दीजिए कि आपने पूरे दिन क्या-क्या किया। और देखिए कि क्या ऐसे कुछ काम हैं जिन्हें न करने से या उन पर ज़्यादा वक्त ज़ाया न करने से आप बाइबल पढ़ने या अध्ययन करने के लिए ज़्यादा वक्त निकाल सकेंगे।—इफिसियों 5:15, 16.
14, 15. (क) निजी बाइबल अध्ययन में लक्ष्य रखना क्यों ज़रूरी है? (ख) बाइबल को पढ़ने के लिए क्या-क्या लक्ष्य रखे जा सकते हैं?
14 आपको अध्ययन करना ज़्यादा आसान और अच्छा लगे, इसके लिए आपको क्या करना चाहिए? लक्ष्य रखिए। अध्ययन में आप ऐसे कौन-से लक्ष्य रख सकते हैं जिन्हें आप हासिल कर पाएँगे? कई लोगों का सबसे पहला लक्ष्य होता है, पूरी बाइबल पढ़ना और यह वाकई बढ़िया लक्ष्य है। शायद आपने कभी-कभी, बाइबल के अलग-अलग भाग पढ़े होंगे और उनसे फायदा भी पाया होगा। क्या अब आप पूरी बाइबल पढ़ने का पक्का इरादा कर सकते हैं? इसके लिए आप सबसे पहले सुसमाचार की चार किताबें पढ़ने का लक्ष्य रखिए। उसके बाद, मसीही यूनानी शास्त्र की बाकी किताबें पढ़िए। बाइबल के इस भाग को पढ़ने से सच्ची खुशी और फायदा पाने के बाद, आपका अगला लक्ष्य होगा मूसा की किताबों को एक-के-बाद-एक पढ़ना और एस्तेर तक इतिहास बतानेवाली सारी किताबें पढ़ना। यह सब करने के बाद, आप देखेंगे कि बाइबल की बाकी किताबें पढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं है। एक स्त्री ने करीब 65 साल की उम्र में बपतिस्मा लिया और अपनी बाइबल की जिल्द के अंदर वह तारीख लिखी जब उसने बाइबल पढ़नी शुरू की और बाद में वह तारीख लिखी जब खतम की। अब तक वह पाँच बार पूरी बाइबल पढ़ चुकी है! (व्यवस्थाविवरण 32:45-47) उसने किसी कंप्यूटर स्क्रीन पर या कंप्यूटर से कागज़ पर प्रिंट करके बाइबल नहीं पढ़ी, बल्कि सीधे बाइबल से पढ़ा।
15 जिन लोगों ने पूरी बाइबल पढ़ ली है, वे अपने अध्ययन से और अच्छे नतीजे हासिल करने, साथ ही फायदे पाने के लिए कुछ और कदम भी उठाते हैं। एक कदम है, बाइबल की हर किताब को पढ़ने से पहले उसके बारे में कुछ जानकारी लेना। “ऑल स्क्रिप्चर इज़ इंस्पायर्ड ऑफ गॉड एण्ड बैनिफीशियल” और इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स में बाइबल की हर किताब के बारे में बेहतरीन जानकारी मिल सकती है, जैसे कि वह किताब इतिहास के किस दौर में लिखी गयी, किस शैली में लिखी गयी, और वह हमारे लिए कैसे फायदेमंद है।a
16. बाइबल का अध्ययन करने में हमें किसकी मिसाल पर नहीं चलना चाहिए?
16 बाइबल का अध्ययन करते वक्त, आजकल के बाइबल विद्वानों का तरीका मत अपनाइए। वे मानते हैं कि बाइबल, इंसानों की लिखी किताब है, इसलिए वे हर वचन की बारीकियाँ हद-से-ज़्यादा जाँचते हैं। कुछ विद्वान यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि हर किताब किन लोगों को मन में रखकर लिखी गयी थी। वे यह अंदाज़ा लगाने की कोशिश करते हैं कि उसके लेखक ने किस मकसद से और किस नज़रिए से यह किताब लिखी होगी। ऐसी सोच का अंजाम यह होता है कि वे बाइबल की किताबों का इस तरह अध्ययन करते हैं मानो ये इतिहास की किताबें हैं या ऐसी किताबें हैं जो धर्म के विकास की जानकारी देती हैं। कई विद्वान ऐसे भी हैं जो बाइबल में इस्तेमाल किए गए शब्दों या उसकी भाषा का अध्ययन करने में तल्लीन रहते हैं। वे परमेश्वर के संदेश की अहमियत को छोड़कर, यह बताने में लगे रहते हैं कि उसमें लिखे शब्द कहाँ से निकले और उनके इब्रानी और यूनानी शब्दों का मतलब क्या है। क्या आपको लगता है कि इन तरीकों से बाइबल का अध्ययन करने से हमारे अंदर मज़बूत विश्वास पैदा होगा और क्या हमारे कामों से हमारा यह विश्वास ज़ाहिर होगा?—1 थिस्सलुनीकियों 2:13.
17. हम यह क्यों कह सकते हैं कि बाइबल का संदेश पूरी दुनिया के लिए है?
17 क्या विद्वानों का इन नतीजों पर पहुँचना ठीक है? क्या यह सच है कि बाइबल की हर किताब का एक ही खास मुद्दा है और उसे सिर्फ एक ही किस्म के लोगों के लिए लिखा गया था? (1 कुरिन्थियों 1:19-21) हकीकत तो यह है कि परमेश्वर का वचन, हर उम्र और हर संस्कृति के लोगों के लिए है और वक्त के गुज़रने से इसकी अहमियत बिलकुल भी कम नहीं होती। यह सच है कि कुछ किताबें किसी एक व्यक्ति के नाम लिखी गयी थीं, जैसे कि तीमुथियुस या तीतुस या फिर लोगों के किसी समूह के लिए, जैसे कि गलतियों या फिलिप्पियों के लिए। मगर उन किताबों का अध्ययन करने से आज हमें भी फायदा होगा, और इसलिए हमें उनका अध्ययन करना चाहिए। ये किताबें हममें से हरेक के लिए बड़ी अहमियत रखती हैं और मुमकिन है कि एक ही किताब में बहुत-से विषयों पर बात की गयी हो और इससे अलग-अलग किस्म के लोगों को फायदा हो। जी हाँ, बाइबल का संदेश पूरी दुनिया के लिए है। तभी तो इसे दुनिया की अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद किया गया है।—रोमियों 15:4.
आपको और दूसरों को फायदा
18. जब आप परमेश्वर का वचन पढ़ते हैं, तो आपको किन बातों पर मनन करना चाहिए?
18 बाइबल का अध्ययन करते वक्त, जब आप उसका अर्थ जानने और उसमें दी गयी छोटी-छोटी जानकारियों का एक-दूसरे से क्या नाता है, यह समझने की कोशिश करेंगे तो इससे आपको बहुत फायदा होगा। (नीतिवचन 2:3-5; 4:7) यहोवा ने अपने वचन के ज़रिए जो जानकारी दी है, वह उसके उद्देश्य से गहरा ताल्लुक रखती है। इसलिए बाइबल पढ़ते वक्त यह ध्यान में रखिए कि उसमें दर्ज़ की गयी घटनाएँ और सलाह, परमेश्वर के उद्देश्य के बारे में क्या बताती हैं। किसी घटना, विचार या भविष्यवाणी के बारे में पढ़ने के बाद गहराई से सोचिए कि इसका यहोवा के उद्देश्य के साथ क्या नाता है। खुद से पूछिए: ‘इससे मैं यहोवा के बारे में क्या सीखता हूँ? इसका परमेश्वर के उद्देश्य के साथ क्या नाता है, जिसे उसका राज्य पूरा कर रहा है?’ आप इस बात पर भी सोच सकते हैं: ‘मैं इस जानकारी को कैसे काम में ला सकता हूँ? क्या मैं इसे, बाइबल से किसी को सिखाने या सलाह देने के लिए इस्तेमाल कर सकता हूँ?’—यहोशू 1:8.
19. जब आप, सीखी हुई बातें दूसरों को बताते हैं तो किसे फायदा होता है? समझाइए।
19 अगर आप अध्ययन करते वक्त दूसरों के बारे में सोचते हैं तो इससे आपको एक और तरीके से फायदा होता है। बाइबल की पढ़ाई और अध्ययन करते वक्त आप बहुत-सी नयी बातें सीखेंगे और कई विषयों पर आपको अंदरूनी समझ मिलेगी। अपने परिवार से और दूसरों से बातचीत करते वक्त इन बातों का ज़िक्र करके उनका हौसला बढ़ाइए। अगर आप सही समय पर और शेखी बघारे बिना ऐसी बातों पर चर्चा करें तो बेशक इसका बहुत फायदा होगा। आप सच्चे मन और जोश से दूसरों को बताइए कि आपने बाइबल से क्या सीखा या आपको कौन-सी बातें अच्छी लगीं। इससे यह जानकारी उनके मन में भी बैठ जाएगी। इतना ही नहीं, इससे आपको भी बहुत फायदा होगा। कैसे? विशेषज्ञों का कहना है कि जब एक इंसान कुछ सीखता या पढ़ता है और इसे फौरन दूसरों को बताकर दोहराता है तो यह बात उसे लंबे अरसे तक याद रहती है।b
20. बाइबल को बार-बार पढ़ने से क्या फायदा मिलता है?
20 बाइबल की किसी भी किताब को जब भी आप एक बार और पढ़ेंगे, तो आप कुछ-न-कुछ नया ज़रूर सीखेंगे। आप उन आयतों को पढ़कर हैरान रह जाएँगे, जो पहले आपके लिए कोई खास मायने नहीं रखती थीं। उन्हें आप और अच्छी तरह समझ पाएँगे। इससे आपका यह एहसास और भी गहरा होगा कि बाइबल की किताबें इंसान की रचनाएँ नहीं, बल्कि परमेश्वर की तरफ से आपके लिए एक खज़ाना हैं, जी हाँ बार-बार अध्ययन करने और फायदा पाने के लिए हैं। याद रखिए कि दाऊद और उसके जैसे राजाओं को ‘अपने जीवन भर उसे पढ़ना’ था।
21. परमेश्वर के वचन का और अच्छी तरह अध्ययन करने से आप किस आशीष की उम्मीद कर सकते हैं?
21 जी हाँ, जो वक्त निकालकर बाइबल का गहराई से अध्ययन करते हैं, उन्हें बेहिसाब फायदे मिलते हैं। उन्हें आध्यात्मिक रत्न और अंदरूनी समझ मिलती है। वे परमेश्वर के और करीब आ जाते हैं, उसके साथ उनका रिश्ता और मज़बूत हो जाता है। इतना ही नहीं, वे दिनों-दिन अपने परिवारवालों के लिए, मसीही कलीसिया के भाई-बहनों के लिए और जो अभी तक यहोवा के उपासक नहीं बने हैं, उनके लिए भी बहुत बढ़िया आशीष बन जाते हैं।—रोमियों 10:9-14; 1 तीमुथियुस 4:16.
[फुटनोट]
a बाइबल का अध्ययन करने में मदद करनेवाली ये किताबें यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित की हैं और ये कई भाषाओं में उपलब्ध हैं।
b अगस्त 1, 1993 की प्रहरीदुर्ग के पेज 21-2 देखिए।
क्या आपको याद है?
• इस्राएली राजाओं को क्या करने का हुक्म दिया गया था?
• बाइबल अध्ययन के मामले में यीशु और उसके प्रेरितों ने क्या मिसाल रखी?
• कौन-सी तबदीलियाँ करने से आप निजी अध्ययन के लिए ज़्यादा वक्त निकाल सकेंगे?
• परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने में आपका रवैया कैसा होना चाहिए?
[पेज 15 पर बक्स]
“हमारे हाथों में”
“अगर हम . . . बाइबल के शब्दों को ढूँढ़ने में मदद चाहते हैं, तो इंटरनॆट से बढ़िया साधन और कोई नहीं है। लेकिन अगर हम बाइबल पढ़ना चाहते हैं, इसका अध्ययन करना, इसके बारे में सोचना और मनन करना चाहते हैं, तो यह हमारे हाथों में होनी चाहिए; तभी इसमें लिखी बातें हमारे दिलो-दिमाग तक पहुँच सकती हैं।”—न्यू यॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी की जानी-मानी रिटायर्ड प्रोफेसर, गर्टरूड हिम्मलफार्ब।