यहोवा का वचन जीवित है
पहले शमूएल किताब की झलकियाँ
सामान्य युग पूर्व 1117 का समय है। वादा किए गए देश पर यहोशू को पूरी तरह कब्ज़ा किए तीन सौ साल बीत चुके हैं। इस्राएल के पुरनिए, यहोवा के नबी के पास एक अनोखी गुज़ारिश लेकर आते हैं। इस बारे में नबी, यहोवा से प्रार्थना करता है और यहोवा पुरनियों की गुज़ारिश मान लेता है। इसी से न्यायियों का दौर खत्म होकर राजाओं का दौर शुरू होता है। इस्राएल जाति के इतिहास में जब यह नया मोड़ आता है, तब बहुत-सी सनसनीखेज़ घटनाएँ घटती हैं। इन्हीं घटनाओं का ब्यौरा, बाइबल में पहले शमूएल नाम की किताब में दिया गया है।
इस किताब को शमूएल, नातान और गाद ने लिखा था। इसमें 102 साल यानी सा.यु.पू. 1180 से 1078 के दरमियान हुई घटनाएँ दर्ज़ हैं। (1 इतिहास 29:29, 30) इसमें इस्राएल के चार अगुवों की दास्तान लिखी है। दो न्यायी हैं और दो राजा; दो ने यहोवा की आज्ञा मानी जबकि दो ने नहीं। इसमें दो स्त्रियों के बारे में भी बताया गया है जो हमारे लिए अच्छी मिसाल हैं। इसके अलावा, इसमें एक योद्धा का भी ज़िक्र है जो वीर होने के साथ-साथ नरमदिल भी था। इन मिसालों से हम अनमोल सबक सीखते हैं कि किन रवैयों और कामों की हमें नकल करनी चाहिए और किन से दूर रहना चाहिए। जी हाँ, पहले शमूएल में दर्ज़ जानकारी हमारी सोच और हमारे कामों पर गहरा असर कर सकती है।—इब्रानियों 4:12.
एली के बाद शमूएल न्यायी बना
बटोरने का पर्व है। रामा की रहनेवाली हन्ना खुशी से फूली नहीं समा रही है।a यहोवा ने उसकी फरियाद सुन ली है और उसे एक बेटा हुआ है। इसके बाद, अपने वादे को निभाते हुए हन्ना अपने बेटे शमूएल को “यहोवा के भवन” में सेवा करने के लिए पेश करती है। वहाँ पर वह “याजक के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करने” लगता है। (1 शमूएल 1:24; 2:11) शमूएल जब नन्हा-सा है, तभी यहोवा उससे बात करता है और एली के घराने पर न्यायदंड सुनाता है। जैसे-जैसे शमूएल बड़ा होता है, इस्राएल में सभी उसे यहोवा का नबी मानने लगते हैं।
इसी बीच पलिश्ती आकर इस्राएल से युद्ध करने लगते हैं। वे वाचा के संदूक पर कब्ज़ा कर लेते हैं और एली के दोनों बेटों को मार डालते हैं। यह खबर सुनते ही बुज़ुर्ग एली दम तोड़ देता है। उसने “इस्राएलियों का न्याय चालीस वर्ष तक किया था।” (1 शमूएल 4:18) पलिश्तियों के कब्ज़े में, जब वाचा का संदूक होता है तो यह उनके लिए बड़ी आफत बन जाता है। इसलिए वे इसे इस्राएलियों को लौटा देते हैं। अब शमूएल इस्राएल में न्याय करता है और देश में शांति होती है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
2:10—हन्ना ने अपनी प्रार्थना में ऐसा क्यों कहा कि यहोवा ‘अपने राजा को बल दे,’ जबकि उस वक्त तक इस्राएल में कोई इंसानी राजा हुकूमत नहीं कर रहा था? दरअसल मूसा की व्यवस्था में भविष्यवाणी की गयी थी कि आगे चलकर इस्राएलियों पर एक इंसानी राजा ठहराया जाएगा। (व्यवस्थाविवरण 17:14-18) अपनी मौत से पहले याकूब ने भविष्यवाणी की थी: ‘यहूदा से राजदण्ड [राजा के अधिकार की निशानी] न छूटेगा।’ (उत्पत्ति 49:10) इसके अलावा, इस्राएलियों की पुरखिन सारा के बारे में यहोवा ने कहा: “उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे।” (उत्पत्ति 17:16) तो इसका मतलब है कि प्रार्थना में हन्ना भविष्य में आनेवाले राजा की बात कर रही थी।
3:3—क्या शमूएल सचमुच परमपवित्र स्थान में सोया था? जी नहीं। शमूएल लेवी गोत्र के कहाती परिवार से था जो याजकवर्ग से जुदा था। (1 इतिहास 6:33-38) इसलिए उसे ‘भीतर जाकर पवित्र वस्तुओं को देखने’ की इजाज़त नहीं थी। (गिनती 4:17-20) शमूएल सिर्फ निवासस्थान के आँगन में आ-जा सकता था, इसलिए वह वहीं सोया होगा। ऐसा लगता है कि एली भी आँगन में ही कहीं सोता था। तो ज़ाहिर है, “जहां परमेश्वर का सन्दूक था,” इन शब्दों का मतलब निवासस्थान का इलाका होगा।
7:7-9, 17—शमूएल ने क्यों मिस्पा में होमबलि चढ़ायी और रामा में एक वेदी बनायी, जबकि सिर्फ यहोवा की चुनी हुई जगह पर नियमित तौर पर बलि चढ़ायी जानी थी? (व्यवस्थाविवरण 12:4-7, 13, 14; यहोशू 22:19) जब शीलो के निवासस्थान से पवित्र वाचा का संदूक हटाया गया, तब से परमेश्वर की मौजूदगी वहाँ नहीं रही। इसलिए परमेश्वर के नुमाइंदे के तौर पर शमूएल ने मिस्पा में होमबलि चढ़ायी और रामा में एक वेदी भी बनायी। और ऐसा लगता है कि उसके इन कामों पर यहोवा की मंज़ूरी थी।
हमारे लिए सबक:
1:11, 12, 21-23; 2:19. प्रार्थना करने, नम्रता दिखाने, यहोवा की कृपा के लिए एहसानमंद होने और ममता दिखाने में हन्ना उन सभी औरतों के लिए एक मिसाल है जो परमेश्वर का भय मानती हैं।
1:8. दूसरों का ढाढ़स बँधानेवाली बातें कहने में एल्काना क्या ही बढ़िया मिसाल है! (अय्यूब 16:5) उसने पहले मायूस हन्ना पर दोष लगाए बगैर उससे पूछा: “तेरा मन क्यों उदास है?” इस पर हन्ना ने अपने दिल का हाल सुनाया। इसके बाद एल्काना ने उसे अपने प्यार का यकीन दिलाते हुए कहा: “क्या तेरे लिये मैं दस बेटों से भी अच्छा नहीं हूं?”
2:26; 3:5-8, 15, 19. अगर हम परमेश्वर का दिया काम पूरी लगन से करेंगे, आध्यात्मिक तालीम का पूरा-पूरा फायदा उठाएँगे, हमेशा तहज़ीब से पेश आएँगे और दूसरों को आदर देंगे, तो परमेश्वर और इंसान दोनों हमसे “प्रसन्न” रहेंगे।
4:3, 4, 10. वाचा का संदूक जैसी पवित्र चीज़ भी हिफाज़त करने के लिए कोई तिलस्मी चीज़ साबित नहीं हुई। हमें “अपने आप को मूरतों से बचाए” रखना चाहिए।—1 यूहन्ना 5:21.
इस्राएल का पहला राजा—कामयाब या नाकाम?
शमूएल उम्र भर यहोवा का वफादार रहता है, मगर उसके बेटे परमेश्वर के मार्ग पर नहीं चलते। जब इस्राएल के पुरनिए एक इंसानी राजा की गुज़ारिश करते हैं, तो यहोवा इसकी इजाज़त दे देता है। यहोवा के निर्देशन पर चलते हुए शमूएल, शाऊल का बतौर राजा अभिषेक करता है। शाऊल, बिन्यामीन गोत्र का एक सजीला पुरुष है। वह अम्मोनियों को हराकर खुद को एक काबिल राजा साबित करता है।
शाऊल का जाँबाज़ बेटा योनातन पलिश्ती सेना की एक चौकी पर फतह हासिल करता है। पलिश्ती अपनी बड़ी फौज लेकर इस्राएल से युद्ध करने आते हैं। ऐसे में शाऊल के दिल में दहशत बैठ जाती है और परमेश्वर की आज्ञा के खिलाफ जाकर खुद होमबलि चढ़ा देता है। शूरवीर योनातन अपने साथ सिर्फ हथियार ढोनेवाले एक जवान को लेकर जाता और पलिश्तियों की एक और चौकी पर धावा बोलता है। मगर शाऊल उतावला होकर एक शपथ खाता है जिसकी वजह से इस्राएलियों की जीत पहले की तरह शानदार नहीं होती। शाऊल ‘अपने चारों ओर के सब शत्रुओं से लड़ता’ रहता है। (1 शमूएल 14:47) यहोवा ने आज्ञा दी थी कि दुश्मनों को हराने के बाद, उन्हें और उनकी हर चीज़ को “नष्ट किया जाना चाहिए।” (लैव्यव्यवस्था 27:28, 29, नयी हिन्दी बाइबिल) मगर अमालेकियों पर फतह हासिल करने के बाद, शाऊल ना तो उन सबको और ना ही उनकी सभी चीज़ों को नाश करता है। इस तरह वह यहोवा की आज्ञा तोड़ देता है। इन्हीं वजहों से यहोवा, शाऊल को बतौर राजा ठुकरा देता है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
9:9—“जो आज कल नबी कहलाता है वह पूर्वकाल में दर्शी कहलाता था,” इन शब्दों के क्या मायने हैं? इन शब्दों का यह मतलब हो सकता है कि शमूएल के दिनों में और इस्राएली राजाओं के ज़माने में, यहोवा की मरज़ी ज़ाहिर करने के लिए नबियों को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाने लगा था। इसलिए “दर्शी” की जगह “नबी” शब्द इस्तेमाल होने लगा। शमूएल को सबसे पहला भविष्यवक्ता माना जाता है।—प्रेरितों 3:24.
14:24-32, 44, 45—जब योनातन ने शाऊल की शपथ तोड़कर मधु खाया, तो क्या उसने परमेश्वर की मंज़ूरी खो दी? ऐसा नहीं लगता कि योनातन ने परमेश्वर की मंज़ूरी खो दी। सबसे पहले तो योनातन अपने पिता की शपथ से बेखबर था। इसके अलावा, शाऊल ने गलत किस्म के जोश में आकर या फिर राजा की हैसियत से अपनी इज़्ज़त की ज़्यादा फिक्र करके जो शपथ खायी, उसकी वजह से लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी हो गयी थीं। भला ऐसी शपथ को क्या परमेश्वर कबूल कर सकता था? हालाँकि योनातन शपथ तोड़ने के अंजाम भुगतने को तैयार था, फिर भी उसकी जान बख्श दी गयी।
15:6—शाऊल ने खास तौर पर केनियों को लिहाज़ क्यों दिखाया? केनी लोग, मूसा के ससुर के बेटे थे। इस्राएलियों के सीनै पर्वत को छोड़ने के बाद केनियों ने उनकी मदद की थी। (गिनती 10:29-32) केनी लोग कनान देश में कुछ वक्त के लिए यहूदा के बेटों के संग रहे। (न्यायियों 1:16) हालाँकि बाद में वे अमालेकियों और दूसरी अलग-अलग जातियों के संग रहे, फिर भी उन्होंने इस्राएलियों के साथ दोस्ती निभाना जारी रखा। इसी वाजिब कारण से शाऊल ने केनियों का नाश नहीं किया।
हमारे लिए सबक:
9:21; 10:22, 27. जब शाऊल राजा बना, तो शुरू-शुरू में वह बहुत नम्र और मर्यादाशील था। इसी रवैए की वजह से जब कई “लुच्चे लोगों” ने उसे राजा कबूल नहीं किया, तो उसने जल्दबाज़ी में कोई गलत काम नहीं किया। इस तरह का रवैया वाकई हमें बिना सोचे-समझे कोई कदम उठाने से बचाता है!
12:20, 21. इंसान पर यकीन करना, देश की फौजी ताकत पर भरोसा रखना और मूर्तिपूजा करना, ऐसी “व्यर्थ वस्तुओं” के बहकावे में मत आइए जो आपको यहोवा की सेवा करने से दूर ले जा सकती हैं।
12:24. यहोवा के लिए दिल में श्रद्धा और भय बनाए रखने और पूरे दिल से उसकी सेवा करते रहने के लिए, हमें यह ‘सोचने’ की ज़रूरत है कि उसने पुराने ज़माने में और आज हमारे समय में अपने लोगों की खातिर “कैसे बड़े बड़े काम किए हैं।”
13:10-14; 15:22-25, 30. अभिमान या अपनी मर्यादा पार करने से सावधान रहिए। ऐसा रवैया हुक्म की नाफरमानी करने या घमंड से ज़ाहिर होता है।—नीतिवचन 11:2.
एक जवान चरवाहे का राजा चुना जाना
शमूएल, यहूदा गोत्र के दाऊद को अगले राजा के तौर पर अभिषिक्त करता है। कुछ ही समय बाद, दाऊद पलिश्ती दानव गोलियत को एक ही गुलेल-पत्थर से मार गिराता है। दाऊद और योनातन के बीच गहरी दोस्ती होती है। शाऊल, दाऊद को अपने योद्धाओं पर सरदार ठहराता है। और जब दाऊद बहुत-से युद्धों में जीत हासिल करता है, तो इस्राएली औरतें उसकी शान में यह गीत गाती हैं: “शाऊल ने तो हजारों को, परन्तु दाऊद ने लाखों को मारा है।” (1 शमूएल 18:7) यह सुनकर शाऊल के तन-बदन में आग लग जाती है और वह दाऊद को जान से मार डालने के मौके तलाशने लगता है। शाऊल, दाऊद पर तीन बार हमला करता है जिसके बाद दाऊद भाग जाता है और यहाँ-वहाँ भटकने लगता है।
भगोड़े की ज़िंदगी बिताते वक्त, दाऊद दो बार शाऊल की जान बख्श देता है। दाऊद की मुलाकात खूबसूरत अबीगैल से होती है और कुछ समय बाद वह उससे शादी कर लेता है। एक बार फिर जब पलिश्ती, इस्राएल से लड़ने आते हैं तो शाऊल, यहोवा को खोजने लगता है। मगर यहोवा ने तो उसे कब का छोड़ दिया है। यही नहीं, शमूएल की भी मौत हो चुकी है। इसलिए शाऊल बेचैन हो जाता है और एक भूत साधनेवाली के पास जाता है जो उसे बताती है कि वह पलिश्तियों के साथ होनेवाली लड़ाई में मारा जाएगा। उस लड़ाई में शाऊल बुरी तरह घायल हो जाता है और उसके बेटों को मार डाला जाता है। फिर शाऊल एक नाकाम इंसान की मौत मरता है और इसी से पहले शमूएल का वृत्तांत खत्म होता है। इस वक्त तक दाऊद छिप-छिपकर ज़िंदगी बिता रहा होता है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
16:14—शाऊल को सतानेवाली दुष्ट आत्मा क्या थी? जिस दुष्ट आत्मा ने शाऊल के मन का चैन छीन लिया था, वह उसी के दिलो-दिमाग में पैदा होनेवाले बुरे खयाल थे जो बार-बार उसे गलत काम करने को उकसा रहे थे। जब यहोवा ने शाऊल पर से अपनी पवित्र आत्मा हटा ली, तो यहोवा की आत्मा ने उसकी हिफाज़त करना छोड़ दिया। तब शाऊल अपनी ही बुरी इच्छाओं के काबू में आ गया। परमेश्वर ने अपनी पवित्र आत्मा की जगह उस बुरी आत्मा को शाऊल पर हावी होने दिया, इसलिए इसे “यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा” कहा जाता है।
17:55—पहला शमूएल 16:17-23 को ध्यान में रखकर यह सवाल उठता है कि शाऊल ने क्यों पूछा कि दाऊद किसका पुत्र है? शाऊल सिर्फ दाऊद के पिता का नाम नहीं पूछ रहा था। इसके बजाय, वह शायद यह जानना चाहता था कि जिस लड़के ने अभी-अभी दानव जैसे आदमी को मारा अगर वह इतना बहादुर है, तो उसका पिता और कितना दिलेर होगा।
हमारे लिए सबक:
16:6, 7. दूसरों का बाहरी रूप देखकर कायल हो जाने या उनके बारे में झट-से कोई राय कायम कर लेने के बजाय, हमें उन्हें यहोवा की नज़र से देखने की कोशिश करनी चाहिए।
17:47-50. हम गोलियत जैसे दुश्मन के विरोध या ज़ुल्मों का सामना करने की हिम्मत रख सकते हैं, क्योंकि “संग्राम तो यहोवा का है।”
18:1, 3; 20:41, 42. सच्चे दोस्त हमें ऐसे लोगों में मिल सकते हैं जो यहोवा से प्यार करते हैं।
21:12, 13. यहोवा हमसे उम्मीद करता है कि ज़िंदगी में मुश्किलों का सामना करने के लिए हम अपनी सोचने की काबिलीयत और हुनर का इस्तेमाल करें। उसने अपना ईश्वर-प्रेरित वचन दिया है, जो हमें चतुराई, ज्ञान और विवेक यानी सोचने की काबिलीयत पैदा करने में मदद देता है। (नीतिवचन 1:4) इसके अलावा, हमारी मदद के लिए ठहराए गए मसीही प्राचीन भी हैं।
24:6; 26:11. यहोवा के अभिषिक्त जन के लिए सच्चा आदर दिखाने में दाऊद एक उम्दा मिसाल है!
25:23-33. अबीगैल की सूझ-बूझ हमारे लिए एक आदर्श है।
28:8-19. लोगों को गुमराह करने या उन्हें नुकसान पहुँचाने के लिए, दुष्टात्माएँ कुछ मरे हुए इंसानों का स्वाँग भर सकती हैं। हमें हर किस्म की भूतविद्या से दूर रहना चाहिए।—व्यवस्थाविवरण 18:10-12.
30:23, 24. यह फैसला गिनती 31:27 की बिना पर किया गया था जो दिखाता है कि यहोवा उन लोगों की बहुत कदर करता है, जो कलीसिया में किसी-न-किसी तरीके से हाथ बँटाते हैं। इसलिए हम जो भी करते हैं, आइए ‘तन मन से करें, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हैं।’—कुलुस्सियों 3:23.
‘बलि चढ़ाने से उत्तम’ क्या है?
एली, शमूएल, शाऊल और दाऊद की आपबीती से किस बुनियादी सच्चाई पर ज़ोर दिया गया है? यह कि “मानना तो बलि चढ़ाने से, और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है। देख, बलवा करना और भावी कहनेवालों से पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतों और गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है।”—1 शमूएल 15:22, 23.
आज हमें दुनिया-भर में राज्य का प्रचार करने और चेला बनाने का जो मौका मिला है, यह हमारे लिए एक बड़ा सम्मान है! इसलिए परमेश्वर को “धन्यवाद रूपी बलि” चढ़ाने के साथ-साथ हमें उन निर्देशनों को मानने में अपना भरसक करना चाहिए, जो यहोवा अपने लिखित वचन और धरती पर मौजूद संगठन के ज़रिए हमें देता है।—होशे 14:2; इब्रानियों 13:15.
[फुटनोट]
a पहले शमूएल किताब में जितनी जगहों का ज़िक्र है वे ठीक कहाँ पर हैं, यह जानने के लिए ‘उत्तम देश को देख’ ब्रोशर के पेज 18-19 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
[पेज 23 पर तसवीर]
इस्राएल का पहला राजा शुरू-शुरू में नम्र और मर्यादाशील था, मगर बाद में उसने एक घमंडी तानाशाह बनकर अपनी मर्यादा पार की
[पेज 24 पर तसवीर]
गोलियत जैसे दुश्मन के विरोध का सामना करते वक्त हम किस बात का यकीन रख सकते हैं?