सच्ची नम्रता पैदा कीजिए
“दीन लोगों को तो तू बचाता है।”—2 शमूएल 22:28.
1, 2. दुनिया के कई राजा किस बात में एक जैसे थे?
मिस्र के पिरामिड, देश के उन राजाओं की गवाही देते हैं जो किसी ज़माने में वहाँ हुकूमत करते थे। अश्शूर के राजा सन्हेरीब, यूनान के सिकंदर महान और रोम के जूलियस सीज़र जैसे नामी सम्राटों ने भी इतिहास पर अपनी छाप छोड़ी है। मगर इन सभी राजाओं में एक बात समान थी। इनमें से कोई भी दिल से नम्र नहीं था।—मत्ती 20:25, 26.
2 क्या आप सोच सकते हैं कि इनमें से कोई राजा अपनी रियासत में जगह-जगह घूमकर अपनी प्रजा में ऐसे दीन लोगों को ढूँढ़ता होगा जिन्हें दिलासा देने की ज़रूरत थी? बिलकुल नहीं! ना ही आप यह कल्पना कर सकते हैं कि इनमें से कोई राजा अपनी प्रजा के गरीब-मोहताज लोगों की झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर उनकी हिम्मत बँधाता हो। दुनिया के दीन-हीन लोगों की तरफ इन राजाओं का रवैया सारे जहान के महाराजाधिराज यहोवा परमेश्वर के रवैए से कितना अलग है!
नम्रता की सबसे बेहतरीन मिसाल
3. सारे जहान का महाराजाधिराज अपने इंसानी सेवकों के साथ कैसे पेश आता है?
3 यहोवा इतना महान और इतना गौरवशाली है कि इंसान कभी उसकी महानता को बूझ नहीं सकता, फिर भी उसकी “दृष्टि सारी पृथ्वी पर इसलिये फिरती रहती है कि जिनका मन उसकी ओर निष्कपट रहता है, उनकी सहायता में वह अपना सामर्थ दिखाए।” (2 इतिहास 16:9) और जब उसकी नज़र अपने ऐसे दीन उपासकों पर पड़ती है जो तरह-तरह के क्लेश झेलकर बेहाल हो गए हैं, तो वह क्या करता है? वह अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिए उनके ‘बीच रहता’ है ताकि ‘उन लोगों को नया जीवन दे जो मन से विनम्र हैं और जो हृदय से दु:खी हैं।’ (यशायाह 57:15, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस तरह, परमेश्वर जब अपने उपासकों में जान डाल देता है, तो वे खुशी से दोबारा उसकी सेवा करने लगते हैं। परमेश्वर सचमुच कितना नम्र है!
4, 5. (क) परमेश्वर के हुकूमत करने के तरीके के बारे में भजनहार ने क्या लिखा? (ख) “दीनों” की मदद करने के लिए परमेश्वर के ‘झुकने’ का क्या मतलब है?
4 पापी इंसानों की मदद करने के लिए, सारे जहान के मालिक ने खुद को जिस हद तक नम्र किया है, वैसा पूरी दुनिया में किसी और ने नहीं किया। इसी वजह से भजनहार यह लिख सका: “यहोवा सारी जातियों के ऊपर महान है, और उसकी महिमा आकाश से भी ऊंची है। हमारे परमेश्वर यहोवा के तुल्य कौन है? वह तो ऊंचे पर विराजमान है, और आकाश और पृथ्वी पर भी, दृष्टि करने के लिये झुकता है। वह कंगाल [“दीनों,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] को मिट्टी पर से, और दरिद्र को घूरे पर से उठाकर ऊंचा करता है।”—भजन 113:4-7.
5 यहोवा शुद्ध और पवित्र है, इसलिए उसमें दूर-दूर तक “अभिमान” नहीं। (मरकुस 7:22, 23) ऊपर बतायी आयत में ‘झुकने’ का मतलब है, अपने से कम दर्जेवाले इंसान के बराबर आना या अपने से छोटे इंसान के साथ व्यवहार करने के लिए अपने मान-सम्मान और ओहदे से नीचे आना। भजन 113:6 हमारे नम्र परमेश्वर की क्या ही बेहतरीन तसवीर पेश करता है कि वह कैसे अपने असिद्ध इंसानी उपासकों की ज़रूरतों पर बड़े प्यार से ध्यान दे रहा है!—2 शमूएल 22:36.
यीशु क्यों नम्र था
6. यहोवा ने अपनी नम्रता का सबसे महान सबूत कैसे दिया?
6 परमेश्वर ने अपने सबसे अज़ीज़ और पहिलौठे बेटे को धरती पर भेजा ताकि वह इंसान के रूप में पैदा होकर पूरी मानवजाति का उद्धार कर सके। (यूहन्ना 3:16) ऐसा करके परमेश्वर ने अपनी नम्रता और अपने प्यार का सबसे महान सबूत दिया। यीशु ने हमें अपने स्वर्गीय पिता के बारे में सच्चाई सिखायी और फिर “जगत का पाप” उठा लेने के लिए अपना सिद्ध इंसानी जीवन बलिदान किया। (यूहन्ना 1:29; 18:37) यीशु हू-ब-हू अपने पिता जैसा था, नम्रता दिखाने के मामले में भी। इसलिए पिता ने जो चाहा, वह सबकुछ करने को वह तैयार था। इस तरह, परमेश्वर के सभी प्राणियों में से यीशु ने नम्रता और प्यार की सबसे बेहतरीन मिसाल कायम की। मगर हर किसी ने यीशु की नम्रता की कदर नहीं की। उलटा, उसके दुश्मनों ने उसे ‘छोटे से छोटा मनुष्य’ समझा। (दानिय्येल 4:17) फिर भी, प्रेरित पौलुस को एहसास था कि उसके मसीही भाई-बहनों को यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए और एक-दूसरे के साथ वैसा ही नम्र व्यवहार करना चाहिए जैसा यीशु करता था।—1 कुरिन्थियों 11:1; फिलिप्पियों 2:3, 4.
7, 8. (क) यीशु ने नम्र होना कहाँ से सीखा? (ख) यीशु ने अपने होनेवाले चेलों से क्या गुज़ारिश की?
7 यीशु की उम्दा मिसाल पर ज़ोर देते हुए पौलुस ने लिखा: “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो। जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।”—फिलिप्पियों 2:5-8.
8 कुछ लोग शायद सोचें: ‘यीशु ने नम्र होना कहाँ से सीखा?’ अनगिनत युगों तक अपने स्वर्गीय पिता के साथ-साथ रहने से उसे नम्रता का गुण सीखने की अनोखी आशीष मिली। उस दौरान, यीशु सभी चीज़ों की सृष्टि करने में परमेश्वर के “कुशल कारीगर” की तरह काम करता था। (नीतिवचन 8:30, NHT) अदन में बगावत के बाद, परमेश्वर के इस पहिलौठे पुत्र ने खुद देखा था कि उसका पिता, पापी इंसानों के साथ कैसे नम्रता से पेश आया। इसीलिए जब यीशु धरती पर था तो उसने अपने पिता जैसी नम्रता दिखायी और लोगों से यह गुज़ारिश की: “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।”—मत्ती 11:29; यूहन्ना 14:9.
9. (क) बच्चों की कौन-सी बात यीशु को सबसे अच्छी लगती थी? (ख) एक बच्चे की मिसाल देकर, यीशु ने कौन-सा सबक सिखाया?
9 यीशु दिल से नम्र था इसलिए छोटे बच्चे उससे डरते नहीं थे। उलटा, वे उसके पास खिंचे चले आते थे। खुद यीशु भी बच्चों से बहुत प्यार करता था और उनके लिए समय निकालता था। (मरकुस 10:13-16) बच्चों की कौन-सी बात यीशु को सबसे अच्छी लगती थी? यही कि उनमें कुछ ऐसे मनभावने गुण थे जिन्हें दिखाने में खुद उसके कुछ चेले कई बार नाकाम हुए थे। उदाहरण के लिए, यह एक जानी-मानी बात है कि बच्चे, बड़ों को अपने से ज़्यादा समझदार मानते हैं। तभी तो वे उनसे एक-के-बाद-एक ढेरों सवाल पूछते हैं। जी हाँ, बहुत-से बड़ों के मुकाबले बच्चे सीखने को ज़्यादा तैयार होते हैं और आम तौर पर उनमें घमंड नहीं होता। एक मौके पर यीशु ने एक बच्चे को अपने चेलों के सामने खड़ा किया और उनसे कहा: “यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे।” उसने आगे यह भी कहा: “जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा, वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा।” (मत्ती 18:3, 4) यीशु ने यह नियम बताया: “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”—लूका 14:11; 18:14; मत्ती 23:12.
10. हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
10 इस सच्चाई से कुछ अहम सवाल उठते हैं। अगर हमेशा की ज़िंदगी पाना कुछ हद तक सच्ची नम्रता पैदा करने पर निर्भर करता है, तो फिर कभी-कभी मसीहियों के लिए नम्रता दिखाना क्यों मुश्किल होता है? अपने अहं को दबाना और परीक्षाएँ आने पर नम्रता दिखाना क्यों एक चुनौती होती है? सच्ची नम्रता पैदा करने में क्या बात हमारी मदद करेगी?—याकूब 4:6, 10.
नम्र होना मुश्किल क्यों है
11. यह क्यों हैरानी की बात नहीं कि नम्र बनने के लिए हमें जद्दोजेहद करनी पड़ती है?
11 अगर नम्र बनने के लिए आपको जद्दोजेहद करनी पड़ती है, तो आप अकेले नहीं हैं। कई साल पहले, सन् 1920 में इसी पत्रिका ने जब नम्रता दिखाने के बारे में बाइबल की सलाह पर चर्चा की, तब कहा: “हम देख सकते हैं कि प्रभु नम्रता के गुण को कितना अनमोल समझता है, इसलिए उसके सभी सच्चे चेलों को हर दिन यह गुण बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए।” फिर इस पत्रिका ने यह कबूल किया: “बाइबल से ढेर सारी सलाह मिलने के बावजूद, जो लोग प्रभु के चेले बनते हैं और उसकी राह पर चलने का फैसला करते हैं, उन्हें बाकी गुणों के मुकाबले नम्रता का गुण दिखाने में सबसे ज़्यादा मुश्किल होती है और कड़ा संघर्ष करना पड़ता है, क्योंकि हम इंसान स्वभाव से असिद्ध जो हैं।” इससे हमें एक वजह का पता चलता है कि क्यों सच्चे मसीहियों को नम्र बनने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ती है। यह इसलिए कि हम इंसान स्वभाव से पापी हैं और इसी वजह से हम अपने लिए ऐसी शोहरत चाहते हैं जिसके हम हकदार नहीं। हमें यह स्वभाव आदम और हव्वा से विरासत में मिला है, जिन्होंने अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए पाप किया था।—रोमियों 5:12.
12, 13. (क) नम्रता का गुण पैदा करने में दुनिया कैसे मसीहियों के लिए मुश्किल खड़ी करती है? (ख) नम्रता पैदा करने में कौन हमारे संघर्ष को और भी मुश्किल बनाता है?
12 नम्रता दिखाना क्यों इतना मुश्किल है, इसकी दूसरी वजह यह है कि हम ऐसी दुनिया में जीते हैं जहाँ लोगों को दूसरों से आगे निकलने का बढ़ावा दिया जाता है। आम तौर पर दुनिया में लोग इन अभिलाषाओं को पूरा करने के पीछे भागते हैं: “[पापी] शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड।” (1 यूहन्ना 2:16) इन अभिलाषाओं को अपने ऊपर हावी होने देने के बजाय, यीशु के चेलों को अपनी आँख निर्मल रखनी चाहिए और अपना ध्यान परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने पर लगाए रखना चाहिए।—मत्ती 6:22-24, 31-33; 1 यूहन्ना 2:17.
13 नम्रता पैदा करना और उसे दिखाना क्यों मुश्किल है, इसकी तीसरी वजह यह है कि घमंड को जन्म देनेवाला शैतान इब्लीस इस दुनिया पर राज कर रहा है। (2 कुरिन्थियों 4:4; 1 तीमुथियुस 3:6) शैतान में जो बुराइयाँ हैं, उन्हीं को वह बढ़ावा देता है। मिसाल के लिए, उसने यीशु से उपासना पानी चाही और इसके बदले उसे “सारे जगत के राज्य और उसका विभव” देने का वादा किया। मगर हमेशा नम्र रहनेवाले यीशु ने इब्लीस की पेशकश को ठोकर मार दी। (मत्ती 4:8, 10) उसी तरह शैतान मसीहियों को लुभाता है कि वे भी अपनी शान बढ़ाने की कोशिश करें। मगर नम्र मसीही, यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं और सारी महिमा और आदर सिर्फ परमेश्वर को देते हैं।—मरकुस 10:17, 18.
सच्ची नम्रता पैदा करना और दिखाना
14. “झूठी दीनता” का मतलब क्या है?
14 कुलुस्सियों को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने उन्हें लोगों से वाह-वाही पाने के लिए नम्रता का ढोंग करने से खबरदार किया था। पौलुस ने इसे “झूठी दीनता” (आर.ओ.वी.) कहा। जो लोग नम्र होने का सिर्फ ढोंग करते हैं, वे आध्यात्मिक लोग नहीं होते। बल्कि अनजाने में वे दिखाते हैं कि वे असल में घमंड से ‘फूल’ गए हैं। (कुलुस्सियों 2:18, 23) यीशु ने झूठी नम्रता दिखानेवालों की मिसालें भी दीं। उसने फरीसियों की निंदा की क्योंकि वे लोगों को दिखाने के लिए प्रार्थनाएँ करते थे और लोगों को जताने के लिए कि वे उपवास कर रहे हैं, मुँह लटकाते थे या तरह-तरह से मुँह बनाते थे। अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो हमें इन फरीसियों की तरह नहीं बल्कि नम्रता के साथ परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए।—मत्ती 6:5, 6, 16.
15. (क) मन की दीनता बनाए रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (ख) नम्रता की कुछ अच्छी मिसालें बताइए।
15 यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह नम्रता की सबसे बेहतरीन मिसालें हैं और उनकी मिसालों पर ध्यान देने से मसीहियों को मन की सच्ची दीनता बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके लिए हमें बाइबल और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के ज़रिए बाइबल की समझ देनेवाली किताबों-पत्रिकाओं का नियमित तौर पर अध्ययन करना चाहिए। (मत्ती 24:45) ऐसा अध्ययन मसीही अध्यक्षों के लिए बेहद ज़रूरी है ताकि “[वे] अपने मन में घमण्ड करके अपने भाइयों को तुच्छ न जा[नें]।” (व्यवस्थाविवरण 17:19, 20; 1 पतरस 5:1-3) रूत, हन्ना, इलीशिबा जैसों की मिसालों पर मनन कीजिए जिन्हें अपने नम्र स्वभाव की वजह से आशीषें मिलीं। (रूत 1:16, 17; 1 शमूएल 1:11, 20; लूका 1:41-43) दाऊद, योशिय्याह, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले और प्रेरित पौलुस जैसे लोगों की अच्छी मिसालों पर भी ध्यान दीजिए जो यहोवा की सेवा में बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ सँभालने के बावजूद नम्र बने रहे। (2 इतिहास 34:1, 2, 19, 26-28; भजन 131:1; यूहन्ना 1:26, 27; 3:26-30; प्रेरितों 21:20-26; 1 कुरिन्थियों 15:9) और आज, मसीही कलीसिया में हम नम्रता की जो ढेरों मिसालें देखते हैं, उसके बारे में क्या? इन मिसालों पर मनन करने से सच्चे मसीहियों को ‘एक दूसरे की सेवा [मन की] दीनता’ से करने में मदद मिलेगी।—1 पतरस 5:5.
16. मसीही सेवा कैसे हमें नम्र होने में मदद देती है?
16 मसीही प्रचार के काम में लगातार हिस्सा लेने से भी हमें नम्र होने में मदद मिल सकती है। जब हम घर-घर में और दूसरी जगहों पर अजनबियों से बात करते हैं, तो मन की दीनता का गुण हमें अच्छे नतीजे दिला सकता है। खासकर जब घर-मालिक शुरू-शुरू में राज्य संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता या रुखाई से पेश आता है। अकसर हमारे मसीही विश्वासों के बारे में हमसे सवाल किए जाते हैं। ऐसे मौकों पर नम्रता हमारी मदद कर सकती है कि हम “नरमी और गहरे आदर” के साथ उन सवालों का जवाब दें। (1 पतरस 3:15, NW) परमेश्वर के कई नम्र सेवक नए इलाकों में जाकर बस गए हैं और उन्होंने ऐसे लोगों की मदद की है जिनकी संस्कृति और रहन-सहन उनसे बिलकुल अलग है। इन प्रचारकों को शायद एक नयी भाषा सीखनी पड़े, मगर वे नम्रता से यह मुश्किल चुनौती स्वीकार करते हैं ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुना सकें। उनकी मेहनत वाकई काबिले-तारीफ है!—मत्ती 28:19, 20.
17. ऐसी कौन-सी मसीही ज़िम्मेदारियाँ हैं जिन्हें पूरा करने के लिए नम्रता ज़रूरी है?
17 बहुत-से भाई-बहन नम्रता से अपनी मसीही ज़िम्मेदारियाँ पूरी करते आए हैं और अपनी ख्वाहिशों से ज़्यादा दूसरों की भलाई को पहली जगह देते आए हैं। एक मसीही पिता की मिसाल लीजिए। नम्रता की वजह से वह अपने कामों से समय निकालकर बाइबल अध्ययन के लिए तैयारी करता है ताकि अपने बच्चों को बाइबल से अच्छी तरह सिखा सके। नम्रता, बच्चों को भी अपने माता-पिता का आदर करने और उनका कहना मानने में मदद देती है, इसके बावजूद कि उनके माता-पिता असिद्ध हैं। (इफिसियों 6:1-4) जिन मसीही बहनों के पति सच्चाई में नहीं हैं, उन्हें भी अकसर ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है जहाँ नम्रता दिखाने की ज़रूरत होती है। ऐसे में वे अपने पति का दिल जीतने और उसे सच्चाई की तरफ खींचने के लिए “भय सहित पवित्र चालचलन” बनाए रखती हैं। (1 पतरस 3:1, 2) नम्रता और दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाले प्यार की वजह से हम अपने बीमार और बुज़ुर्ग माता-पिता की ज़रूरतों की भी देखभाल कर पाते हैं।—1 तीमुथियुस 5:4.
नम्रता से समस्याएँ दूर होती हैं
18. समस्याओं को दूर करने में नम्रता कैसे हमारी मदद कर सकती है?
18 परमेश्वर के सभी इंसानी सेवक असिद्ध हैं। (याकूब 3:2) कभी-कभी दो मसीहियों के बीच मन-मुटाव या गलतफहमियाँ पैदा हो सकती हैं। शायद एक के पास दूसरे से नाराज़ होने की जायज़ वजह हो। ऐसे में आम तौर पर इस सलाह को मानने से समस्या दूर की जा सकती है: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।” (कुलुस्सियों 3:13) माना कि इस सलाह को मानना आसान नहीं, मगर नम्रता हमें इस सलाह पर चलने में मदद देती है।
19. जब कोई हमें नाराज़ करता है, तो उससे बात करते वक्त हमें क्या ध्यान में रखना चाहिए?
19 कभी-कभी एक मसीही को लग सकता है कि दूसरे भाई की गलती इतनी गंभीर है कि इस पर परदा डालना और उसे भूल जाना नामुमकिन है। तो फिर, नम्रता उसे उकसाएगी कि वह उस भाई के पास जाए जो उसकी नज़र में गुनहगार है और उससे सुलह करने की कोशिश करे। (मत्ती 18:15) कभी-कभी मसीहियों के बीच बरसों तक गिले-शिकवे इसलिए रहते हैं, क्योंकि उनमें से एक या शायद दोनों पक्ष घमंड के मारे अपनी गलती कबूल करना नहीं चाहते। या, अगर एक मसीही सुलह करने के लिए पहल करता भी है तो उसका तरीका ठीक नहीं होता। वह शायद दूसरे में बहुत ज़्यादा मीनमेख निकाले या खुद को ज़्यादा धर्मी दिखाए। इसके उलट, अगर हम दिल से नम्र हों, तो हम कई झगड़ों को मिटाने में बहुत कामयाब होंगे।
20, 21. नम्र होने में सबसे बड़ी मदद क्या है?
20 नम्रता पैदा करने में सबसे अहम कदम है, परमेश्वर की मदद और उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना करना। मगर याद रखिए कि “परमेश्वर . . . दीनों पर अनुग्रह करता [और उन्हें पवित्र आत्मा भी देता] है।” (याकूब 4:6) इसलिए अगर किसी मसीही भाई या बहन के साथ आपका कोई झगड़ा है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपको अपनी गलती नम्रता से कबूल करने में मदद दे, फिर चाहे वह गलती छोटी हो या बड़ी। अगर ठेस आपको पहुँची है और गलती करनेवाला दिल से कहता है कि “मुझे माफ कर दीजिए” तो नम्र होकर उसे माफ कर दीजिए। अगर ऐसा करने में आपको मुश्किल हो रही है, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि आपके मन में अगर अब भी घमंड है, तो वह उसे दूर करने में मदद दे।
21 नम्रता के कितने फायदे हैं, यह समझने से हमें इस अनमोल गुण को पैदा करने और उसे दिखाते रहने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। और ऐसा करने के लिए हमारे आगे यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह की क्या ही बेहतरीन मिसालें हैं! परमेश्वर के इस वादे को हमेशा याद रखिए: “नम्रता और यहोवा के भय मानने का फल धन, महिमा और जीवन होता है।”—नीतिवचन 22:4.
मनन के लिए मुद्दे
• कौन नम्रता की सबसे बेहतरीन मिसालें हैं?
• नम्रता पैदा करना क्यों मुश्किल है?
• नम्र होने के लिए, क्या बात हमारी मदद कर सकती है?
• नम्र बने रहना क्यों इतना ज़रूरी है?
[पेज 26 पर तसवीर]
यीशु दिल से नम्र था
[पेज 28 पर तसवीर]
दुनिया, लोगों को दूसरों से आगे निकलने का बढ़ावा देती है
[चित्र का श्रेय]
WHO photo by L. Almasi/K. Hemzǒ
[पेज 29 पर तसवीर]
नम्रता होने से हम प्रचार में अजनबियों से बात कर पाएँगे
[पेज 30 पर तसवीरें]
हम किसी मामले पर परदा डालकर, अकसर प्यार से झगड़े मिटा सकते हैं
[पेज 31 पर तसवीरें]
मसीही कई तरीकों से नम्रता दिखाते हैं