जवानो—साथियों के दबाव का विरोध करो
“तुम्हारे बोल हमेशा . . . सलोने हों। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें हर एक को वैसे जवाब देना आ जाएगा, जैसे तुमसे उम्मीद की जाती है।”—कुलु. 4:6.
1, 2. अपने साथियों से अलग दिखने के बारे में बहुत-से जवान कैसा महसूस करते हैं और क्यों?
“साथियों का दबाव।” आपने न सिर्फ इसके बारे में सुना होगा, बल्कि इसका अनुभव भी किया होगा। शायद आपसे कभी कुछ ऐसा करने की ज़बरदस्ती की गयी होगी, जो आप जानते थे कि गलत है। उस वक्त आपको कैसा महसूस हुआ? चौदह साल का क्रिस्टफर कहता है: “मैं यही सोचता था, काश! मैं कहीं गायब हो जाता। या अपने स्कूल के दोस्तों की तरह होता ताकि उनसे अलग दिखने की नौबत ही न आती।”
2 क्या आपके साथियों का आप पर ज़बरदस्त दबाव रहता है? अगर हाँ, तो क्यों? क्या इसलिए कि आप चाहते हैं कि वे आपको पसंद करें? देखा जाए तो ऐसा चाहना गलत नहीं है। बड़े भी चाहते हैं कि उनके दोस्त उन्हें पसंद करें। हम चाहे बड़े हों या छोटे, आखिर ठुकराया जाना कौन पसंद करेगा? दूसरी तरफ, यह भी हकीकत है कि सच का साथ देने पर हमेशा वाहवाही नहीं मिलती। यीशु को भी इस हकीकत से रू-बरू होना पड़ा। फिर भी, उसने हमेशा वही किया जो सही था। कुछ लोग परमेश्वर के बेटे यीशु के दिखाए रास्ते पर चले और उसके चेले बने, मगर कुछ ने उसे तुच्छ समझा और “उसका मूल्य न जाना।”—यशा. 53:3.
साथियों के रंग में रंगने का दबाव, कितना ज़बरदस्त?
3. साथियों के रंग में रंग जाना क्यों गलत है?
3 आपके मन में शायद यह डर हो कि आपके दोस्त आपको ठुकरा देंगे और शायद इसलिए आप सोचें कि उनकी बात मानने में कोई बुराई नहीं। मगर ऐसी सोच रखना गलत है। मसीहियों को छोटे ‘बच्चों’ की तरह नहीं होना चाहिए “जो झूठी बातों की लहरों से यहाँ-वहाँ उछाले जाते” हैं। (इफि. 4:14) बच्चे आसानी-से बहकावे में आ जाते हैं, लेकिन आप बड़े हो रहे हैं, इसलिए अगर आपको पूरा विश्वास है कि यहोवा के स्तर आपकी भलाई के लिए हैं, तो आपको उन स्तरों के मुताबिक जीना चाहिए। (व्यव. 10:12, 13) अपने विश्वास के खिलाफ या दूसरों के दबाव में आकर काम करना ऐसा होगा, मानो आप उनके हाथ की कठपुतली हैं।—2 पतरस 2:19 पढ़िए।
4, 5. (क) हारून दबाव में क्यों आ गया था और उससे आप क्या सबक सीख सकते हैं? (ख) आपके दोस्त आप पर दबाव डालने के लिए कौन-से पैंतरे अपना सकते हैं?
4 एक बार मूसा का भाई हारून भी साथियों के दबाव में आ गया था। जब इसराएलियों ने उस पर एक देवता की मूरत बनाने का दबाव डाला, तो उसने उनकी बात मान ली। हारून डरपोक नहीं था। इससे पहले उसने मूसा के साथ मिस्र के सबसे ताकतवर राजा को बड़ी हिम्मत से परमेश्वर का संदेश सुनाया था। लेकिन जब उसके साथी इसराएलियों ने उस पर दबाव डाला तो उसने हार मान ली। वाकई, साथियों का दबाव बहुत ज़बरदस्त हो सकता है! हारून ने मिस्र के राजा का सामना तो कर लिया, मगर साथी इसराएलियों का नहीं कर पाया!—निर्ग. 7:1, 2; 32:1-4.
5 हारून के उदाहरण से पता चलता है कि साथियों का दबाव सिर्फ जवानों पर ही नहीं आता, बड़ों को भी इसका सामना करना पड़ता है। और यह दबाव सिर्फ उन्हीं पर नहीं आता, जिनमें गलत काम करने की फितरत होती है, बल्कि उन पर भी जो सही काम करना चाहते हैं, जैसे कि आप। आपके दोस्त शायद आपको चुनौती देकर, बुरा-भला कहकर या ताने मारकर गलत काम करने के लिए उकसाएँ। उनका पैंतरा चाहे जो भी हो, मगर यह सच है कि ऐसे दबाव का सामना करना वाकई मुश्किल होता है। तो इसका विरोध करने के लिए पहले खुद के अंदर यह विश्वास पैदा करना होगा कि आप जो मानते हैं, वह सही है।
“तुम खुद क्या हो, इसका सबूत देते रहो”
6, 7. (क) आपने जो सीखा है उस पर यकीन करना क्यों ज़रूरी है और आप यह कैसे कर सकते हैं? (ख) अपना विश्वास मज़बूत करने के लिए आप खुद से कौन-से सवाल पूछ सकते हैं?
6 सबसे पहले खुद को यह यकीन दिलाइए कि आपने बाइबल से जो सीखा है और आपके जो स्तर हैं वे सही हैं। (2 कुरिंथियों 13:5 पढ़िए।) अगर आपका विश्वास मज़बूत है तो आपको हिम्मत मिलेगी, फिर चाहे आपका स्वभाव शर्मीला ही क्यों न हो। (2 तीमु. 1:7, 8) दूसरी तरफ एक इंसान में चाहे कितनी ही हिम्मत हो, लेकिन अगर वह सीखी हुई बातों पर पूरे दिल से यकीन नहीं करता तो वह दोस्तों के दबाव का सामना नहीं कर पाएगा। इसलिए यह बहुत ज़रूरी है कि पहले आप खुद को यकीन दिलाएँ कि बाइबल से आपने जो कुछ सीखा है, वह सौ-फीसदी सच है? आइए कुछ बुनियादी शिक्षाओं पर गौर करें। आप परमेश्वर में विश्वास करते हैं और आपने दूसरों से भी सुना होगा कि वे क्यों परमेश्वर के वजूद पर यकीन करते हैं। अब खुद से पूछिए: ‘मुझे किस बात से यकीन होता है कि परमेश्वर वजूद में है?’ इस सवाल का मकसद दिल में शक पैदा करना नहीं है, बल्कि अपने विश्वास को और पक्का करना है। उसी तरह, यह भी पूछिए, ‘मैं कैसे जानता हूँ कि बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है?’ (2 तीमु. 3:16) ‘मैं क्यों मानता हूँ कि ये “आखिरी दिन” चल रहे हैं।’ (2 तीमु. 3:1-5) ‘क्या बात मुझे यकीन दिलाती है कि यहोवा के स्तर मेरी भलाई के लिए हैं?’—यशा. 48:17, 18.
7 आप शायद ऐसे सवाल पूछने से झिझकें क्योंकि आपको लगता होगा कि इनके जवाब नहीं मिलेंगे। लेकिन यह तो ऐसा हुआ, मानो आप अपनी कार का पेट्रोल-मीटर देखने से डर रहे हैं क्योंकि सुई पेट्रोल “खत्म” होने का इशारा कर रही है। जबकि मीटर तो आप सिर्फ इसलिए देखते हैं कि अगर टंकी में पेट्रोल नहीं है, तो आप पेट्रोल भरवा सकें। उसी तरह ऊपर दिए सवाल पूछकर आपको बस यह पता करना है कि आपके विश्वास में कहाँ और कितनी कमी है, ताकि आप अपने विश्वास को मज़बूत करने के लिए ज़रूरी कदम उठा सकें।—प्रेषि. 17:11.
8. व्यभिचार से दूर रहने के बारे में परमेश्वर ने जो बुद्धि भरी सलाह दी है, उस पर आप अपना विश्वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं, समझाइए।
8 इस उदाहरण पर गौर कीजिए। बाइबल आग्रह करती है, “व्यभिचार से दूर भागो।” अब खुद से पूछिए, ‘इस सलाह को मानना समझदारी क्यों है?’ फिर सोचिए, आपके साथी किन वजहों से ऐसे कामों में हिस्सा लेते हैं। इसके बाद सोचिए कि जो व्यक्ति व्यभिचार करता है, वह कैसे “अपने ही शरीर के खिलाफ पाप” करता है? (1 कुरिं. 6:18) अब इन वजहों को जाँचिए और खुद से पूछिए: ‘कौन-सा रास्ता अपनाना सबसे अच्छा होगा? क्या लैंगिक कामों में हिस्सा लेना सही होगा?’ इस बारे में और गहराई से सोचिए और पूछिए: ‘अगर मैं लैंगिक कामों में हिस्सा लेता हूँ तो बाद में कैसा महसूस करूँगा?’ हो सकता है कि आपके कुछ साथी तुरंत आपकी वाहवाही करें, लेकिन जब आप अपने माता-पिता या राज-घर में संगी मसीहियों के साथ होंगे तब आप कैसा महसूस करेंगे? क्या आप खुले दिल से यहोवा से प्रार्थना कर पाएँगे? सिर्फ दोस्तों की खुशी के लिए क्या आप यहोवा के साथ अपने अच्छे रिश्ते को बिगाड़ लेंगे?
9, 10. आपने जो सीखा है, उस पर विश्वास होने से कैसे आप पूरे यकीन के साथ अपने दोस्तों से बात कर पाएँगे?
9 जवानी ऐसा वक्त होता है, जब आपकी “सोचने-समझने की शक्ति” बड़ी तेज़ी-से बढ़ती है। (रोमियों 12:1, 2 पढ़िए।) इस समय का अच्छा इस्तेमाल कीजिए। गंभीरता से सोचिए कि यहोवा का एक साक्षी होना, खुद आपके लिए क्या मायने रखता है। जब आप इस तरह मनन करेंगे तो सीखी हुई बातों पर आपका विश्वास और मज़बूत होगा। और जब आपके साथी आप पर गलत काम करने का दबाव डालेंगे तो आप तुरंत हिम्मत के साथ उन्हें जवाब दे सकेंगे। आप उस जवान बहन की तरह महसूस करेंगे, जिसने कहा: “अपने विश्वास पर डटे रहने से मैं दूसरों को बता देती हूँ कि मेरी पहचान क्या है। ‘मेरा धर्म’ सिर्फ नाम के लिए नहीं है। इसका असर मेरी सोच, मेरे लक्ष्य और मेरे चालचलन पर होता है। और मेरा वजूद इसी से है।”
10 जी हाँ, जो सही है उस पर बने रहने के लिए काफी संघर्ष करने की ज़रूरत होती है। (लूका 13:24) आप सोचते होंगे, क्या इतनी मेहनत करने का कोई फायदा है? याद रखिए: अगर आप अपने विश्वास पर बने रहने की वजह से दुखी रहेंगे या शर्मिंदा महसूस करेंगे, तो दूसरे यह भाँप लेंगे और इसका फायदा उठाकर वे आप पर ज़्यादा दबाव डालेंगे। दूसरी तरफ अगर आप पूरे यकीन के साथ बात करेंगे तो आपको यह देखकर हैरानी होगी कि आपके साथियों ने आप पर ज़ोर डालना बंद कर दिया।—लूका 4:12, 13 से तुलना कीजिए।
‘सोच कि क्या उत्तर दूं’
11. दबाव का सामना करने के लिए पहले से तैयारी करना क्यों फायदेमंद है?
11 साथियों के दबाव का सामना करने के लिए एक और खास कदम है, तैयारी। (नीतिवचन 15:28 पढ़िए।) तैयारी करने का मतलब है, पहले से सोचना कि किस तरह के हालात खड़े हो सकते हैं। कभी-कभी थोड़ा-सा सावधान रहने से आप पहाड़ जैसी समस्या टाल सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप देखते हैं कि आपके स्कूल के कुछ बच्चे सिगरेट पी रहे हैं। क्या हो सकता है कि वे आप पर भी सिगरेट पीने का दबाव डालें? अगर आपको इस बात का अंदाज़ा हो जाता है तो आप क्या कर सकते हैं? नीतिवचन 22:3 कहता है: “चतुर मनुष्य विपत्ति को आते देखकर छिप जाता है।” ऐसे में आपका दूसरे रास्ते से निकल जाना बेहतर होगा। इस तरह आप विपत्ति आने से पहले ही उसे रोक लेंगे। और ऐसा मत सोचिए कि दूसरा रास्ता लेने का मतलब है कि आप डरपोक हैं बल्कि ऐसा करके आप समझदारी दिखा रहे हैं।
12. अगर आप पर दोस्तों का दबाव आ ही जाता है, तो आप क्या कर सकते हैं?
12 मान लीजिए किसी मौके पर आप पर दोस्तों का दबाव आ ही जाता है, तब क्या? उदाहरण के लिए, अगर आपके दोस्त गलत इरादे से आपसे पूछते हैं, “क्या अभी तक तुम्हें कोई मिला नहीं?” ऐसे समय पर कुलुस्सियों 4:6 की सलाह ध्यान में रखना ज़रूरी है: “तुम्हारे बोल हमेशा मन को भानेवाले, सलोने हों। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें हर एक को वैसे जवाब देना आ जाएगा, जैसे तुमसे उम्मीद की जाती है।” जैसा कि यह आयत बताती है, हालात को देखते हुए आपको जवाब देना चाहिए। इस मौके पर शायद आपको बाइबल पर लंबा-चौड़ा भाषण देने की ज़रूरत नहीं। बस सरल शब्दों में दृढ़ जवाब देना काफी होगा। मिसाल के लिए, आप यूँ जवाब दे सकते हैं: “नहीं,” या “यह मेरा ज़ाती मामला है।”
13. जब ताना मारनेवाले दोस्तों को जवाब देने की बात आती है, तब हम कैसे समझदारी दिखा सकते हैं?
13 यीशु कई बार बहुत कम शब्दों में जवाब देता था, क्योंकि वह जानता था कि ज़्यादा बोलने से भी कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। एक बार राजा हेरोदेस ने उससे कई सवाल पूछे, मगर उसने एक का भी जवाब नहीं दिया। (लूका 23:8, 9) अगर कोई बेरुखी से सवाल करता है तो अकसर चुप रहना ज़्यादा अच्छा होता है। (नीति. 26:4; सभो. 3:1, 7) दूसरी तरफ हो सकता है कि एक इंसान जिसने पहले आपके बारे में बुरा-भला कहा था, अब आपके विश्वास के बारे में जानना चाहता है। मसलन, वह लैंगिक अनैतिकता के बारे में आपका नज़रिया जानना चाहता है, तब क्या? (1 पत. 4:4) ऐसे में शायद आपको उसे बाइबल से अच्छी तरह जानकारी देनी पड़े। अगर ऐसा मौका आता है तो डरिए मत, “पैरवी करने के लिए हमेशा तैयार” रहिए।—1 पत. 3:15.
14. कुछ हालात में आप कैसे एहतियात के साथ उल्टा अपने दोस्तों पर ही दबाव डाल सकते हैं?
14 कभी-कभी आप उल्टा अपने दोस्तों पर ही दबाव डाल सकते हैं। लेकिन ऐसा बड़ी एहतियात के साथ करना चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर स्कूल का दोस्त आपको डरपोक कहते हुए सिगरेट पीने के लिए उकसाता है, तो आप कह सकते हैं, “नहीं, मैं नहीं पीऊँगा” और फिर कह सकते हैं “अरे तुम, तुम सिगरेट पीते हो? मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी!” तो देखा आपने, आप कैसे उल्टा उन्हीं पर दबाव डाल सकते हैं? आपको यह समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी कि आप सिगरेट क्यों नहीं पीते, बल्कि आपका साथी खुद सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि क्या वह सिगरेट पीकर सही कर रहा है।a
15. किस हालात में आपका साथियों के बीच से निकल जाना सही होगा और क्यों?
15 लेकिन तब क्या अगर आपकी कोशिशों के बावजूद साथियों का दबाव कम नहीं होता? ऐसे में वहाँ से चले जाना ही अच्छा होगा। ज़्यादा देर ठहरने से मुमकिन है कि आप कोई-न-कोई समझौता कर बैठें। इसलिए उस माहौल से निकल जाइए। यह मत सोचिए कि आप हार गए। आपने तो हालात को अच्छी तरह सँभाला है। आप अपने साथियों के हाथ की कठपुतली नहीं बने और आपने यहोवा का दिल खुश किया।—नीति. 27:11.
ऐसी “योजनाएं” जो “लाभदायक होती हैं”
16. मसीही होने का दावा करनेवालों की तरफ से कैसे दबाव आ सकता है?
16 कभी-कभी गलत काम करने का दबाव ऐसे जवानों से आ सकता है, जो खुद को यहोवा का सेवक कहते हैं। मसलन, आप ऐसे ही एक साक्षी की पार्टी में पहुँचते हैं और आपको पता चलता है कि इसकी निगरानी के लिए वहाँ कोई बड़ा-बुज़ुर्ग नहीं है? या खुद को साक्षी कहनेवाला एक जवान पार्टी में शराब लाता है, जबकि कानूनी तौर पर न तो आपकी, ना ही वहाँ हाज़िर दूसरे लोगों की उम्र शराब पीने की है। तब आप क्या कर सकते हैं? ऐसे कई हालात पैदा होते हैं, जब आपको बाइबल से तालीम पाए अपने विवेक की सुननी होती है। एक जवान मसीही कहती है: “मैं और मेरी बहन एक फिल्म के बीच में से ही उठकर चले आए क्योंकि उसमें बहुत ज़्यादा गंदी भाषा बोली जा रही थी। पर हमारे समूह के बाकी लोग बैठे रहे। हमारे माता-पिता ने हमें शाबाशी दी। मगर समूह के लोगों को हम पर गुस्सा आया क्योंकि उन्हें हमारी वजह से शर्मिंदा होना पड़ा।”
17. जब आप किसी पार्टी में जाते हैं, तब परमेश्वर के स्तरों पर बने रहने के लिए आप क्या कारगर कदम उठा सकते हैं?
17 हमने उन बहनों के अनुभव से देखा कि बाइबल से तालीम पाए विवेक के मुताबिक चलने पर कई बार हम मुश्किल हालात में पड़ जाते हैं। लेकिन अगर आपको यकीन है कि आपका फैसला सही है, तो कदम उठाइए। पहले से तैयार रहिए। मान लीजिए आप किसी पार्टी में जाते हैं तो पहले से सोच लीजिए कि अगर वहाँ से निकलना पड़ा तो आप कैसे निकलेंगे, क्योंकि हो सकता है कि वहाँ कुछ ऐसा हो रहा हो जो आपके हिसाब से गलत हो। कुछ जवान अपने माता-पिता को पहले से कह देते हैं कि आपके फोन की एक घंटी से ही हम समझ जाएँगे कि अब हमें पार्टी से निकल जाना चाहिए। (भज. 26:4, 5) ऐसी “योजनाएं निःसन्देह लाभदायक होती हैं।”—नीति. 21:5, NHT.
“अपनी जवानी में आनन्द कर”
18, 19. (क) आप कैसे यकीन कर सकते हैं कि यहोवा आपको खुश देखना चाहता है? (ख) जो साथियों के दबाव का विरोध करते हैं, उनके बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है?
18 यहोवा ने आपको जीवन का आनंद लेने के काबिल बनाया है और वह चाहता है कि आप खुश रहें। (सभोपदेशक 11:9 पढ़िए।) और याद रखिए कि आपके बहुत-से दोस्तों की मौज-मस्ती, “पाप का चंद दिनों का सुख भोगने” के बराबर है। (इब्रा. 11:25) जबकि सच्चा परमेश्वर आपके लिए इससे बढ़कर चाहता है। वह आपको हमेशा-हमेशा के लिए खुश देखना चाहता है। इसलिए जब कभी आपके सामने ऐसा काम करने का प्रलोभन आता है जो परमेश्वर की नज़र में गलत है, तो याद रखिए कि यहोवा की माँगों के मुताबिक चलने में ही आपकी भलाई है और उसी से आपको हमेशा का फायदा होगा।
19 आप जवानों को यह समझने की ज़रूरत है कि भले ही आज आप आपने दोस्तों को खुश कर लें, मगर आज से सालों बाद इनमें से ज़्यादातर को आपका नाम भी याद नहीं रहेगा। इसके उलट अगर आप साथियों के दबाव का विरोध करते हैं तो यहोवा आपके हर काम को याद रखेगा। वह आपको और आपकी वफादारी को कभी नहीं भूलेगा। वह “आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा” करेगा। (मला. 3:10) इससे बढ़कर, जब भी आप कमज़ोर महसूस करेंगे, आपको ताकत देने के लिए वह दिल खोलकर अपनी पवित्र शक्ति देगा। जी हाँ, साथियों के दबाव का सामना करने में यहोवा आपकी मदद कर सकता है।
[फुटनोट]
a किताब युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर भाग-2 (अँग्रेज़ी) के पेज 132 और 133 पर दिया चार्ट “पियर प्रेशर प्लानर” देखिए।
क्या आपको याद है?
• साथियों के दबाव में कितनी ताकत है?
• मज़बूत विश्वास कैसे हमें साथियों के दबाव का विरोध करने में मदद देता है?
• आप साथियों के दबाव का सामना करने के लिए कैसे तैयारी कर सकते हैं?
• आप कैसे जानते हैं कि यहोवा आपकी वफादारी की कदर करता है?
[पेज 8 पर तसवीर]
हारून सोने का बछड़ा बनाने के लिए क्यों राज़ी हुआ?
[पेज 10 पर तसवीर]
तैयार रहिए, पहले से सोचिए कि दबाव आने पर आप क्या कहेंगे