परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाइए, न कि दुनिया की फितरत
“हमने दुनिया की फितरत नहीं पायी बल्कि वह पवित्र शक्ति पायी है जो परमेश्वर की तरफ से है, ताकि हम उन बातों को जान सकें जो परमेश्वर ने हम पर कृपा करते हुए हमें दी हैं।”—1 कुरिं. 2:12.
1, 2. (क) सच्चे मसीही किस मायने में युद्ध लड़ रहे हैं? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
सभी सच्चे मसीही एक युद्ध लड़ रहे हैं। हमारा दुश्मन ताकतवर, चालाक और कठोर है, वह ऐसे कई युद्ध लड़ चुका है। उसके पास एक ऐसा असरदार हथियार है, जिसके वार का सामना ज़्यादातर लोग नहीं कर पाए हैं। लेकिन हमें खुद को कमज़ोर समझने या घबराने की ज़रूरत नहीं कि हम भी उसके सामने टिक नहीं पाएँगे। (यशा. 41:10) हमारे पास सुरक्षा का एक हथियार मौजूद है, जिसे कोई भेद नहीं सकता और जो हर वार झेल सकता है।
2 हम सचमुच का युद्ध नहीं लड़ रहे, यह लाक्षणिक युद्ध है। हमारा दुश्मन है शैतान और उसका सबसे असरदार हथियार है “दुनिया की फितरत।” (1 कुरिं. 2:12) शैतान के हमलों का सामना करने के लिए हमारा प्रमुख हथियार है परमेश्वर की पवित्र शक्ति। इस युद्ध में जीतने और आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत बने रहने के लिए हमें परमेश्वर की पवित्र शक्ति माँगने और उसका फल अपने जीवन में दिखाने की ज़रूरत है। (गला. 5:22, 23) इस लेख में हम देखेंगे कि दुनिया की फितरत क्या है और इसका लोगों पर क्यों इतना असर होता है? हम कैसे पता लगा सकते हैं कि दुनिया की फितरत हम पर असर कर रही है या नहीं? पवित्र शक्ति पाने और दुनिया की फितरत का विरोध करने में हम यीशु से क्या सीख सकते हैं?
दुनिया की फितरत क्यों सब जगह फैली है?
3. दुनिया की फितरत क्या है?
3 दुनिया की फितरत शैतान की देन है जो “इस दुनिया का राजा” है और यह फितरत परमेश्वर की पवित्र शक्ति का विरोध करती है। (यूह. 12:31; 14:30; 1 यूह. 5:19) यह ऐसी ताकत है जिसने लोगों की सोच को अपने बस में कर रखा है और वे इसके चलाए चलते हैं। यह फितरत मानव समाज को परमेश्वर की मरज़ी और उसके मकसद के खिलाफ ले जाती है।
4, 5. शैतान जिस फितरत को बढ़ावा देता है, वह पूरी दुनिया में कैसे फैल गयी?
4 शैतान जिस फितरत को बढ़ावा देता है, वह कैसे पूरी दुनिया में फैल गयी? सबसे पहले, शैतान ने अदन के बाग में हव्वा को धोखा दिया। उसने हव्वा को भरोसा दिलाया कि परमेश्वर से आज़ाद होकर वह एक बेहतर ज़िंदगी जी पाएगी। (उत्प. 3:13) उसने कितना बड़ा झूठ बोला! (यूह. 8:44) फिर हव्वा के ज़रिए उसने बड़ी चालाकी से आदम को यहोवा की आज्ञा तोड़ने के लिए बहकाया। आदम के गलत चुनाव की वजह से मानवजाति पाप में बिक गयी और इस तरह आज्ञा न मानने की शैतानी फितरत मानवजाति को विरासत में मिली।—इफिसियों 2:1-3 पढ़िए।
5 शैतान ने काफी स्वर्गदूतों को भी भरमाया जो दुष्ट स्वर्गदूत बन गए। (प्रका. 12:3, 4) परमेश्वर के खिलाफ यह बगावत नूह के जलप्रलय से कुछ समय पहले हुई। उन स्वर्गदूतों ने सोचा कि अगर वे स्वर्ग छोड़कर धरती पर इंसानी रूप धारण करके अपनी बुरी इच्छाएँ पूरी करें, तो वे ज़्यादा खुश रहेंगे। लेकिन परमेश्वर ने उन्हें ऐसा करने के लिए नहीं बनाया था। (यहू. 6) जलप्रलय के दौरान वे स्वर्गदूत फिर से आत्मिक प्राणी बन गए और उनकी मदद से शैतान “सारे जगत को गुमराह” करने लगा। (प्रका. 12:9) लेकिन दुख की बात है कि ज़्यादातर इंसान इन दुष्ट स्वर्गदूतों के असर से बेखबर हैं।—2 कुरिं. 4:4.
क्या दुनिया की फितरत आप पर असर कर रही है?
6. दुनिया की फितरत सिर्फ कब हम पर असर कर सकती है?
6 कई लोग शैतान के असर से अनजान हैं लेकिन सच्चे मसीही बाइबल की मदद से शैतान की चालों को पहचान पाते हैं। (2 कुरिं. 2:11) देखा जाए तो दुनिया की फितरत हम पर तब तक असर नहीं करेगी, जब तक हम उसे ऐसा करने की इजाज़त न दें। आइए हम चार सवालों पर गौर करें जिनसे पता चलेगा कि हम पर परमेश्वर की पवित्र शक्ति का असर हो रहा है या दुनिया की फितरत का।
7. हमें यहोवा से दूर ले जाने के लिए शैतान कौन-सा एक तरीका अपनाता है?
7 मैं जिस तरह के मनोरंजन चुनता हूँ, उनसे मेरे बारे में क्या ज़ाहिर होता है? (याकूब 3:14-18 पढ़िए।) शैतान हमारे अंदर हिंसा के लिए प्यार पैदा करने के ज़रिए हमें परमेश्वर से दूर ले जाने की कोशिश करता है। वह जानता है कि जो भी हिंसा से प्यार करते हैं, यहोवा उनसे नफरत करता है। (भज. 11:5) इसलिए शैतान किताबों-पत्रिकाओं, फिल्मों, संगीत और वीडियो गेम के ज़रिए हमारी शारीरिक इच्छाओं को भड़काने की कोशिश करता है। कुछ वीडियो गेम खून-खराबे और घोर अनैतिकता से भरे होते हैं और उन्हें खेलने के ज़रिए एक तरह से हम उन गलत कामों में हिस्सेदार बन जाते हैं। हो सकता है कि हम अच्छे कामों से प्यार करते हों लेकिन अगर उसके साथ-साथ हम थोड़ा-बहुत बुरे कामों से भी लगाव रखें तो शैतान के लिए इतना ही काफी है।—भज. 97:10.
8, 9. मनोरंजन के मामले में हमें खुद से क्या सवाल पूछने चाहिए?
8 दूसरी तरफ परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमें दयालु, शांति कायम करनेवाले और पवित्र बने रहने में मदद करती है। हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मैं जिस तरह के मनोरंजन चुनता हूँ, क्या उनसे मुझे अच्छे गुण पैदा करने का बढ़ावा मिलता है?’ जो बुद्धि हमें परमेश्वर से मिलती है वह ‘कपटी नहीं होती।’ परमेश्वर की पवित्र शक्ति जिन पर काम करती है, वे ऐसे नहीं होते कि एक तरफ तो अपने पड़ोसियों से शांति और पवित्रता बनाए रखने का प्रचार करें और दूसरी तरफ अकेले में अनैतिकता और खून-खराबे का मज़ा लें।
9 यहोवा चाहता है कि हम सिर्फ और सिर्फ उसी की भक्ति करें। जबकि शैतान बस इतना चाहता है कि हम एक बार उसकी उपासना करें ठीक जैसे उसने यीशु से करवानी चाही थी। (लूका 4:7, 8) हम खुद से पूछ सकते हैं: ‘जिस तरह का मनोरंजन मैं चुनता हूँ क्या उनसे मुझे सिर्फ और सिर्फ यहोवा की भक्ति करने का बढ़ावा मिलता है? मैं जो चुनाव करता हूँ क्या उससे मुझे दुनिया की फितरत से दूर रहने में आसानी होती है या और मुश्किल हो जाती है? मैं जिस तरह के मनोरंजन चुनता हूँ क्या उनमें मुझे कुछ फेरबदल करने की ज़रूरत है?’
10, 11. (क) रुपये-पैसे के मामले में दुनिया की फितरत कैसे रवैए को बढ़ावा देती है? (ख) पवित्र शक्ति की प्रेरणा से लिखा वचन कैसा रवैया रखने का बढ़ावा देता है?
10 रुपये-पैसे के मामले में मैं कैसा रवैया रखता हूँ? (लूका 18:24-30 पढ़िए।) इस दुनिया की फितरत लालच और धन-दौलत का बढ़ावा देकर ‘आँखों की ख्वाहिशों’ को हवा देती है। (1 यूह. 2:16) इससे बहुतों में अमीर बनने का जुनून सवार हो गया है। (1 तीमु. 6:9, 10) यह फितरत हमें यकीन दिलाने की कोशिश करती है कि ढेर सारी चीज़ें बटोरने और धन-दौलत का अंबार लगाने से ही हमेशा की सुरक्षा मिल सकती है। (नीति. 18:11) लेकिन अगर हम यहोवा से ज़्यादा, पैसे से प्यार करेंगे तो शैतान बाज़ी जीत जाएगा। हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या ऐशो-आराम की चीज़ें बटोरना ही मेरी ज़िंदगी का मकसद बन गया है?’
11 दूसरी तरफ परमेश्वर की पवित्र शक्ति की प्रेरणा से लिखा वचन हमें बढ़ावा देता है कि हमें अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए मेहनत करनी चाहिए, लेकिन पैसे के पीछे नहीं भागना चाहिए। (1 तीमु. 5:8) परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमारी मदद करती है कि हम यहोवा की तरह दरियादिल बनें। तब हम चीज़ों से ज़्यादा लोगों को अहमियत देंगे और मुमकिन होने पर अपनी चीज़ें दूसरों के साथ खुशी-खुशी बाँटेंगे। (नीति. 3:27, 28) हम रुपये-पैसे को यहोवा की सेवा से ज़्यादा अहमियत नहीं देंगे।
12, 13. दुनिया की फितरत के उलट परमेश्वर की पवित्र शक्ति कैसे हम पर अच्छा असर करती है?
12 मेरी शख्सियत पर किसका असर हो रहा है, पवित्र शक्ति का या दुनिया की फितरत का? (कुलुस्सियों 3:8-10, 13 पढ़िए।) दुनिया की फितरत शरीर के कामों को बढ़ावा देती है। (गला. 5:19-21) हम पर किस शक्ति का असर हो रहा है यह तब नहीं पता चलता जब सब कुछ ठीक चल रहा हो बल्कि तब, जब हालात खराब होते हैं, जैसे जब कोई भाई-बहन हमें नज़रअंदाज़ करता है, हमें गुस्सा दिलाता है या हमारे खिलाफ कोई पाप करता है। इसके अलावा जब हम घर पर अकेले होते हैं, तब यह ज़ाहिर होता है कि हम पर परमेश्वर की पवित्र शक्ति काम कर रही है या दुनिया की फितरत। अच्छा होगा कि हम खुद की जाँच करें। खुद से पूछिए कि ‘पिछले छः महीनों में क्या मेरी शख्सियत मसीह के जैसी बनी है या मैंने बोली और चालचलन के मामले में बुरी आदतें फिर से अपना ली हैं?’
13 परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमारी मदद करेगी कि हम “पुरानी शख्सियत को उसकी आदतों समेत उतार” फेंकें और “नयी शख्सियत” को पहन लें। यह हमें लोगों से और भी प्यार और दया से पेश आने में मदद करेगी। हम दिल खोलकर दूसरों को माफ कर पाएँगे फिर चाहे हमारे पास शिकायत करने का वाजिब कारण ही क्यों न हो। अगर हमें लगता है कि हमारे साथ नाइंसाफी हो रही है, तब भी हम ‘जलन-कुढ़न, गुस्से, क्रोध, चीखने-चिल्लाने और गाली-गलौज’ से काम नहीं लेंगे। इसके बजाय हम “कोमल-करुणा” दिखाने की पूरी कोशिश करेंगे।—इफि. 4:31, 32.
14. दुनिया के कई लोग परमेश्वर के वचन को किस नज़र से देखते हैं?
14 क्या मैं बाइबल के नैतिक स्तरों का आदर और उनसे प्यार करता हूँ? (नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) दुनिया की फितरत में परमेश्वर के वचन के खिलाफ बगावत झलकती है। जिन पर इस फितरत का असर होता है, वे बाइबल के उन हिस्सों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो उनकी सोच के मुताबिक नहीं होते। इसके बजाय वे इंसानी रीति-रिवाज़ों और फलसफों को मानते हैं। (2 तीमु. 4:3, 4) कुछ लोग परमेश्वर के वचन को पूरी तरह नकार देते हैं। ऐसे लोग कहते हैं कि बाइबल सच्ची किताब नहीं है और वह हमारे किसी काम की नहीं। इस तरह वे खुद की नज़र में बुद्धिमान बनते हैं। वे व्यभिचार, समलैंगिकता और तलाक के मामले में बाइबल के शुद्ध स्तरों को नकारते हैं। वे “बुरे को भला और भले को बुरा कहते” हैं और ऐसा ही सिखाते हैं। (यशा. 5:20) क्या हम पर भी इस फितरत का असर हुआ है? परेशानियों का सामना करते वक्त क्या हम इंसानी बुद्धि पर भरोसा करते हैं, जिसमें हमारे खुद के विचार भी शामिल होते हैं? या हम बाइबल की सलाह मानने की कोशिश करते हैं?
15. अपनी बुद्धि पर निर्भर रहने के बजाय हमें क्या करना चाहिए?
15 परमेश्वर की पवित्र शक्ति हममें बाइबल के लिए आदर की भावना जगाती है। भजनहार की तरह हम परमेश्वर के वचन को अपने पाँवों के लिए दीपक और मार्ग के लिए उजियाला मानते हैं। (भज. 119:105) अपनी बुद्धि पर निर्भर रहने के बजाय हम परमेश्वर के लिखित वचन पर पूरा भरोसा करते हैं कि वह हमें सही और गलत में फर्क करने के काबिल बनाएगा। हम बाइबल का सिर्फ आदर ही नहीं बल्कि परमेश्वर के कानून से प्यार करना भी सीखते हैं।—भज. 119:97.
यीशु के उदाहरण से सीखिए
16. “मसीह का मन” होने में क्या शामिल है?
16 परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाने के लिए हमें “मसीह का मन” पैदा करना होगा। (1 कुरिं. 2:16) अगर हम चाहते हैं कि हमारे “मन का स्वभाव वैसा ही हो जैसा मसीह यीशु का था” तो हमें जानना होगा कि वह कैसे सोचता और काम करता था और फिर उसकी मिसाल पर चलना होगा। (रोमि. 15:5; 1 पत. 2:21) आइए ऐसा करने के कुछ तरीकों पर गौर करें।
17, 18. (क) प्रार्थना के बारे में हम यीशु से क्या सीखते हैं? (ख) हमें क्यों ‘माँगते रहना’ चाहिए?
17 परमेश्वर की पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना कीजिए। परीक्षाओं का सामना करने से पहले यीशु ने परमेश्वर से पवित्र शक्ति की मदद माँगी। (लूका 22:40, 41) हमें भी परमेश्वर की पवित्र शक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। जो पूरे विश्वास से इसके लिए प्रार्थना करते हैं, यहोवा उन्हें दिल खोलकर अपनी पवित्र शक्ति देता है। (लूका 11:13) यीशु ने कहा: “माँगते रहो और तुम्हें दे दिया जाएगा; ढूँढ़ते रहो और तुम पाओगे; खटखटाते रहो और तुम्हारे लिए खोला जाएगा। क्योंकि हर कोई जो माँगता है, उसे मिलता है और जो ढूँढ़ता है, वह पाता है और हर कोई जो खटखटाता है, उसके लिए खोला जाएगा।”—मत्ती 7:7, 8.
18 जब आप यहोवा से उसकी पवित्र शक्ति और मदद माँगते हैं तो एक बार प्रार्थना करके रुक मत जाइए। हमें शायद कई बार प्रार्थना करनी पड़े और उसमें लगे रहना पड़े। कभी-कभी यहोवा प्रार्थनाओं का जवाब देने से पहले अपने सेवकों को यह दिखाने का मौका देता है कि उन्हें उसकी पवित्र शक्ति और मदद की कितनी ज़रूरत है और उनका विश्वास कितना सच्चा है।a
19. यीशु ने हमेशा क्या किया और हमें क्यों उसके दिखाए रास्ते पर चलना चाहिए?
19 यहोवा की हर आज्ञा मानिए। यीशु ने हमेशा वही किया जिससे उसके पिता को खुशी मिलती थी। लेकिन कम-से-कम एक मौके पर वह हालात का सामना कुछ इस तरह करना चाहता था, जो उसके पिता की इच्छा से अलग था। फिर भी उसने पूरे भरोसे के साथ अपने पिता से कहा: “जो मेरी मरज़ी है, वह नहीं बल्कि वही हो जो तेरी मरज़ी है।” (लूका 22:42) खुद से पूछिए: ‘क्या मैं परमेश्वर की आज्ञा तब भी मानता हूँ जब ऐसा करना आसान नहीं होता?’ परमेश्वर की आज्ञा मानने पर ही हमारी ज़िंदगी टिकी है। वह हमारा सृष्टिकर्ता है, हमारे जीवन का स्रोत है और उसे कायम रखता है, इसलिए हमें उसकी हर आज्ञा माननी चाहिए और वह इसका हकदार भी है। (भज. 95:6, 7) उसकी आज्ञा मानने से बढ़कर कुछ नहीं। इसके बिना हम परमेश्वर की मंज़ूरी नहीं पा सकते।
20. यीशु की पूरी ज़िंदगी क्या करने में गुज़री? और हम कैसे उसके नक्शे-कदम पर चल सकते हैं?
20 बाइबल से अच्छी तरह वाकिफ होइए। जब यीशु के विश्वास पर शैतान ने सीधे-सीधे हमला किया तो उसने शास्त्र का हवाला देकर उसका विरोध किया। (लूका 4:1-13) धार्मिक विरोधियों को जवाब देने के लिए भी यीशु ने परमेश्वर के वचन का इस्तेमाल किया। (मत्ती 15:3-6) यीशु की पूरी ज़िंदगी परमेश्वर का कानून जानने और उसे पूरा करने में गुज़री। (मत्ती 5:17) परमेश्वर के वचन से हमारा विश्वास मज़बूत होता है और हमें अपने मन में उसकी बातें समा लेनी चाहिए। (फिलि. 4:8, 9) हममें से कुछ लोगों को शायद निजी और पारिवारिक अध्ययन के लिए समय निकालने में मुश्किल हो। याद रखिए, हमें आसानी से समय नहीं मिलनेवाला, हमें समय निकालना होगा।—इफि. 5:15-17.
21. परमेश्वर के वचन को ज़्यादा अच्छी तरह जानने और उसे लागू करने के लिए हम किस इंतज़ाम का फायदा उठा सकते हैं?
21 “विश्वासयोग्य और सूझ-बूझ” से काम लेनेवाले दास ने हमारे लिए हर हफ्ते पारिवारिक उपासना की शाम का इंतज़ाम किया है ताकि हमें निजी और पारिवारिक अध्ययन के लिए समय मिल सके। (मत्ती 24:45) क्या आप इस इंतज़ाम का पूरा-पूरा फायदा उठा रहे हैं? मसीह का मन पाने के लिए आप चाहें तो अपने अध्ययन में यीशु के सिखाए उन विषयों को सिलसिलेवार ढंग से शामिल कर सकते हैं जिनमें आपको दिलचस्पी है। अपने मनपसंद विषय ढूँढ़ने के लिए आप वॉच टावर पब्लिकेशन्स इंडैक्स में या 15 दिसंबर की प्रहरीदुर्ग के आखिरी पेज पर दी गयी विषय-सूची देख सकते हैं। उदाहरण के लिए सन् 2008 से 2010 की जनता के लिए छपी प्रहरीदुर्ग पत्रिका में आयी 7 लेखों की श्रृंखला, जिसका शीर्षक है, “हम यीशु से क्या सीखते हैं?” आप चाहें तो अपने अध्ययन में इन लेखों का इस्तेमाल कर सकते हैं। सन् 2006 से सजग होइए! पत्रिका में एक लेख आता है जिसका शीर्षक है, “आप कैसे जवाब देंगे?” इसे इस तरह तैयार किया गया कि इसमें दिए सवालों के जवाब ढूँढ़ने से परमेश्वर के वचन के बारे में आपका ज्ञान बढ़ेगा। क्यों न समय-समय पर आप अपनी पारिवारिक उपासना में ऐसे लेख शामिल करें?
दुनिया पर जीत हासिल करना मुमकिन है
22, 23. दुनिया पर जीत हासिल करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
22 यहोवा की पवित्र शक्ति के निर्देशन में चलने के लिए हमें दुनिया की फितरत का विरोध करना होगा। यह आसान नहीं है। इसके लिए संघर्ष करने और जी-जान से लड़ने की ज़रूरत पड़ सकती है। (यहू. 3) लेकिन हम जीत हासिल कर सकते हैं! यीशु ने अपने चेलों से कहा: “दुनिया में तुम्हें तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, मगर हिम्मत रखो! मैंने इस दुनिया पर जीत हासिल की है।”—यूह. 16:33.
23 हम भी दुनिया पर जीत हासिल कर सकते हैं अगर हम इसकी फितरत का विरोध करें और परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करें। वाकई “अगर परमेश्वर हमारी तरफ है, तो कौन हमारे खिलाफ कुछ कर सकेगा?” (रोमि. 8:31) परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाने से और बाइबल में दिए उसके निर्देशन पर चलने से हमें संतोष, शांति और खुशी मिलेगी। साथ ही, हमें यह भरोसा होगा कि हम जल्द ही आनेवाली नयी दुनिया में हमेशा के लिए जीएँगे।
[फुटनोट]
a ज़्यादा जानकारी के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के पेज 170-173 पढ़िए।
क्या आपको याद है?
• दुनिया की फितरत कैसे सब जगह फैल गयी?
• हमें खुद से कौन-से चार सवाल पूछने चाहिए?
• परमेश्वर की पवित्र शक्ति पाने के बारे में हम यीशु से कौन-सी तीन बातें सीख सकते हैं?
[पेज 8 पर तसवीर]
कुछ स्वर्गदूत दुष्ट कैसे बने?
[पेज 10 पर तसवीर]
लोगों को अपने काबू में करने के लिए शैतान दुनिया की फितरत का इस्तेमाल करता है, लेकिन हम उसके चंगुल से निकल सकते हैं