‘तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से प्यार करना है’
“तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।”—मत्ती 22:37.
1. यीशु और उसके पिता के बीच प्यार क्यों गहरा हो गया?
यीशु ने अपने पिता के साथ अपने करीबी रिश्ते के बारे में बताते हुए कहा: “मैं पिता से प्यार करता हूँ” और “पिता को बेटे से गहरा लगाव है।” (यूह. 5:20; यूह. 14:31) धरती पर आने से पहले यीशु ने अपने पिता के साथ अरबों-खरबों साल काम किया। (नीति. 8:30) इस दौरान उसने अपने पिता के गुणों के बारे में बहुत कुछ सीखा, और उन दोनों के बीच का प्यार और गहरा हो गया।
2. (क) किसी से प्यार करने का क्या मतलब होता है? (ख) हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?
2 जब आप किसी से प्यार करते हैं, तो उस व्यक्ति के लिए आपके दिल में गहरी भावनाएँ होती हैं। बाइबल कहती है: “यहोवा गहरी करुणा दिखाता है।” (याकू. 5:11) परमेश्वर हमसे इतना प्यार करता है, इसलिए हमें भी उससे प्यार करना चाहिए। परमेश्वर वादा करता है कि अगर हम उसकी आज्ञा मानेंगे, तो वह हमें प्यार दिखाएगा। (व्यवस्थाविवरण 7:12, 13 पढ़िए।) मगर हम परमेश्वर को देख नहीं सकते, तो फिर हम उससे प्यार कैसे कर सकते हैं? यहोवा से प्यार करने का क्या मतलब है? हमें उससे प्यार क्यों करना चाहिए? और हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम परमेश्वर से प्यार करते हैं?
हम परमेश्वर से प्यार कर सकते हैं
3, 4. हमारे लिए यहोवा से प्यार करना क्यों मुमकिन है?
3 हम परमेश्वर को देख नहीं सकते, क्योंकि परमेश्वर “अदृश्य” है। (1 तीमु. 1:17) फिर भी, यहोवा से प्यार करना हमारे लिए मुमकिन है। दरअसल, बाइबल हमें उससे प्यार करने की आज्ञा देती है। मिसाल के लिए, मूसा ने इसराएलियों से कहा था: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।”—व्यव. 6:5.
4 हमारे लिए परमेश्वर से प्यार करना क्यों मुमकिन है? क्योंकि उसने हमें उसकी उपासना करने की एक ज़रूरत के साथ रचा है, और हमें प्यार ज़ाहिर करने की काबिलीयत भी दी है। तो जब उपासना करने की हमारी ज़रूरत पूरी होती है, तब उसके लिए हमारा प्यार बढ़ता है, और इससे हमें खुशी मिलती है। यीशु के कहने का भी यही मतलब था, जब उसने कहा: “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है, क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” (मत्ती 5:3) अपनी किताब, इंसान अकेले नहीं जीता (अँग्रेज़ी) में लेखक ए. सी. मॉरिसन ने कहा: “यह देखकर हममें विस्मय, आश्चर्य और श्रद्धा पैदा होनी चाहिए कि दुनिया के हर कोने में इंसान एक परमप्रधान की तलाश करता है और उस पर विश्वास करता है।” इस लेखक की तरह बहुत-से लोग कबूल करते हैं कि इंसानों में धर्म में आस्था रखने की पैदाइशी ख्वाहिश होती है।
5. हम कैसे जानते हैं कि हम परमेश्वर को पा सकते हैं?
5 क्या हम कभी परमेश्वर को पा सकते हैं? जी हाँ, और वह चाहता भी है कि हम उसे पाएँ। प्रेषित पौलुस ने इस बात को साफ ज़ाहिर किया, जब उसने पुराने ज़माने के एथेन्स शहर में एक समूह से बात की। उनमें से बहुतों का मानना था कि उनके लिए मंदिर जाना ज़रूरी है, ताकि वे वहाँ अथेना देवी की उपासना कर सकें। मगर पौलुस ने कहा कि वे ‘पूरे विश्व और उसकी सब चीज़ों को बनानेवाले’ सच्चे परमेश्वर को पा सकते हैं, लेकिन मंदिरों में नहीं। उसने समझाया कि परमेश्वर “हाथ के बनाए मंदिरों में नहीं रहता।” फिर उसने कहा कि परमेश्वर ने “एक ही इंसान से सारी जातियाँ बनायीं कि वे सारी धरती पर रहें और उनका वक्त ठहराया और उनके रहने की हदें तय कीं कि वे परमेश्वर को ढूँढ़ें और उसकी खोज करें और वाकई उसे पा भी लें, क्योंकि सच तो यह है कि वह हममें से किसी से भी दूर नहीं है।” (प्रेषि. 17:24-27) जी हाँ, लोग परमेश्वर को पा सकते हैं। पचहत्तर लाख से भी ज़्यादा यहोवा के साक्षियों ने ‘वाकई उसे पा लिया है’ और वे सच्चे दिल से उससे प्यार करते हैं।
यहोवा से प्यार करने का क्या मतलब है
6. “सबसे बड़ी और पहली आज्ञा” क्या है?
6 यहोवा के लिए हमारा प्यार कितना गहरा होना चाहिए? जब एक फरीसी ने यीशु से पूछा: “गुरु, परमेश्वर के कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है?” तो यीशु ने साफ शब्दों में कहा: “‘तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना है।’ यही सबसे बड़ी और पहली आज्ञा है।”—मत्ती 22:34-38.
7. (क) परमेश्वर से अपने “पूरे दिल” से प्यार करने में क्या शामिल है? (ख) उससे अपनी “पूरी जान” से प्यार करने में क्या शामिल है? (ग) उससे अपने “पूरे दिमाग” से प्यार करने में क्या शामिल है?
7 जब यीशु ने कहा कि हमें परमेश्वर से अपने “पूरे दिल,” अपनी “पूरी जान” और अपने “पूरे दिमाग” से प्यार करना चाहिए, तो उसका क्या मतलब था? हमारे “पूरे दिल” का मतलब है हमारे दिल में छिपी भावनाएँ और हमारी ख्वाहिशें। “पूरी जान” का मतलब है हम किस तरह के इंसान हैं, और इसमें वे सभी बातें शामिल हैं, जो हम अपनी ज़िंदगी में करते हैं। और हमारे “पूरे दिमाग” का मतलब है हम किस तरह से और किस बारे में सोचते हैं। इस तरह, यीशु ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हमें यहोवा से जी-जान से प्यार करना चाहिए।
8. हम परमेश्वर को कैसे दिखाते हैं कि हम उससे प्यार करते हैं?
8 हम परमेश्वर को कैसे दिखाते हैं कि हम उससे अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करते हैं? नियमित तौर पर बाइबल का अध्ययन करके, उसकी सभी आज्ञाएँ मानकर और जोश के साथ दूसरों को राज के बारे में बताकर। (मत्ती 24:14; रोमि. 12:1, 2) जब हम ऐसा करते हैं, तो उसके साथ हमारा रिश्ता और भी मज़बूत हो जाता है। (याकू. 4:8) हमें परमेश्वर से प्यार क्यों करना चाहिए, इसकी सभी वजहों की एक सूची बनाना तो नामुमकिन है, लेकिन आइए हम उनमें से कुछ वजहों पर गौर करें।
हमें यहोवा से प्यार क्यों करना चाहिए?
9. आप यहोवा से प्यार क्यों करते हैं?
9 यहोवा हमारा सिरजनहार है और हमारी ज़रूरतें पूरी करनेवाला परमेश्वर है। पौलुस ने कहा: “उसी से हमारी ज़िंदगी है और हम चलते-फिरते हैं और वजूद में हैं।” (प्रेषि. 17:28) यहोवा ने हमारे जीने के लिए हमें यह खूबसूरत धरती दी है। (भज. 115:16) वह हमें खाना और दूसरी चीज़ें भी देता है, ताकि हम ज़िंदा रह सकें। यही वजह है कि पौलुस लुस्त्रा में रहनेवाले लोगों से कह सका कि उन्हें मूरतों की नहीं, बल्कि “जीवित परमेश्वर” यहोवा की उपासना करनी चाहिए। पौलुस ने परमेश्वर के बारे में कहा: “वह भलाई करता रहा और तुम्हें आकाश से बरसात और अच्छी पैदावार के मौसम देता रहा और तुम्हें जी भर के खाना और ढेरों खुशियाँ देकर तुम्हारे दिलों को आनंद से भरता रहा।” (प्रेषि. 14:15-17) अपने सिरजनहार और ज़रूरतें पूरी करनेवाले परमेश्वर से प्यार करने की क्या यह बढ़िया वजह नहीं?—सभो. 12:1.
10. फिरौती बलिदान के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?
10 परमेश्वर आदम से विरासत में मिले पाप और मौत को मिटा देगा। (रोमि. 5:12) बाइबल कहती है: “परमेश्वर ने अपने प्यार की अच्छाई हम पर इस तरह ज़ाहिर की है कि जब हम पापी ही थे, तब मसीह हमारे लिए मरा।” (रोमि. 5:8) अगर हम सच्चे दिल से पश्चाताप करें और फिरौती बलिदान पर विश्वास करें, तो परमेश्वर हमारे पाप माफ कर देगा। हम तहेदिल से यहोवा के शुक्रगुज़ार हैं कि उसने हमसे इतना प्यार किया कि अपने बेटे तक को हमारे लिए कुरबान कर दिया, जिस वजह से हमारे लिए अपने पापों की माफी पाना मुमकिन हो पाया।—यूह. 3:16.
11, 12. यहोवा ने हमें कौन-कौन-सी आशा दी है?
11 यहोवा हमें भविष्य की ‘आशा देता है जो हमें खुशी और शांति से भर देती है।’ (रोमि. 15:13) जब हमारा विश्वास परखा जाता है, तब यह आशा हमें धीरज धरने में मदद देती है। जो अभिषिक्त जन ‘मौत तक विश्वासयोग्य साबित होते हैं उन्हें स्वर्ग में ज़िंदगी का ताज’ मिलेगा। (प्रका. 2:10) और जिन वफादार जनों को धरती पर जीने की आशा है, वे फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। (लूका 23:43) हमें अपनी आशा के बारे में कैसा महसूस होता है? यह आशा हमारे दिलों को खुशी और शांति, साथ ही यहोवा के लिए प्यार से भर देती है, जो हमें “हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन” देता है।—याकू. 1:17.
12 यहोवा ने हमें पुनरुत्थान की आशा दी है। (प्रेषि. 24:15) जब हमारा कोई अज़ीज़ मर जाता है, तो हमें बहुत दुख होता है। लेकिन हम ‘दूसरों की तरह मातम नहीं मनाते जिनके पास कोई आशा नहीं है,’ क्योंकि यहोवा का वादा है कि वह मरे हुए लोगों को दोबारा ज़िंदा करेगा। (1 थिस्स. 4:13) यहोवा परमेश्वर हमसे भी कहीं ज़्यादा उस वक्त की आस लगाए हुए है। वह सचमुच में लाखों-करोड़ों लोगों को ज़िंदा करना चाहता है, खासकर अपने वफादार जनों को। (अय्यू. 14:15) ज़रा कल्पना कीजिए हमें उस वक्त कैसा महसूस होगा, जब हम बच्चों को अपने माँ-बाप से और करीबी दोस्तों को एक-दूसरे से दोबारा मिलते देखेंगे! पुनरुत्थान की शानदार आशा देनेवाले परमेश्वर के लिए हमारे दिल में कितना प्यार उमड़ता है!
13. हम कैसे जानते हैं कि परमेश्वर वाकई हमारी परवाह करता है?
13 यहोवा वाकई हमारी परवाह करता है। (भजन 34:6, 18, 19; 1 पतरस 5:6, 7 पढ़िए।) आज भी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं, क्योंकि हम जानते हैं कि यहोवा हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहता है, जो उसके वफादार रहते हैं। (भज. 79:13) पर कल्पना कीजिए कि परमेश्वर भविष्य में हमारे लिए कितना कुछ करेगा। यीशु परमेश्वर के राज का राजा है, और वह हिंसा, ज़ुल्म और दुष्टता का धरती से नामो-निशान मिटा देगा। फिर परमेश्वर धरती पर शांति कायम करेगा और सभी वफादार इंसानों को वह सारी चीज़ें मुहैया कराएगा, जिससे कि वे ज़िंदगी का पूरा-पूरा लुत्फ उठा सकें। (भज. 72:7, 12-14, 16) जब हम इन वादों पर मनन करते हैं, तो हम परमेश्वर से अपने पूरे दिल, पूरी जान, पूरी ताकत और पूरे दिमाग से प्यार करने के लिए उभारे जाते हैं।—लूका 10:27.
14. परमेश्वर ने हमें क्या अनोखा सम्मान दिया है?
14 यहोवा ने हमें उसके साक्षी होने का अनोखा सम्मान दिया है। (यशा. 43:10-12) हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, क्योंकि उसने हमें उसकी हुकूमत का साथ देने और दुख-तकलीफ सह रहे लोगों को भविष्य की आशा देने का सम्मान दिया है। साथ ही, हम पूरे विश्वास और यकीन के साथ लोगों को खुशखबरी की गवाही दे सकते हैं, क्योंकि हमारा संदेश बाइबल से है, जो परमेश्वर का वचन है और परमेश्वर के वादे हमेशा पूरे होते हैं। (यहोशू 21:45; 23:14 पढ़िए।) यहोवा से प्यार करने की कई वजह हैं। पर हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम वाकई उससे प्यार करते हैं?
हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम परमेश्वर से प्यार करते हैं?
15. परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने से और उसे लागू करने से हमें कैसे मदद मिल सकती है?
15 परमेश्वर के वचन का लगातार अध्ययन कीजिए और उसे लागू कीजिए। ऐसा करके हम दिखाएँगे कि हम यहोवा से प्यार करते हैं और दिल से चाहते हैं कि उसका वचन हमारे ‘मार्ग के लिये उजियाला हो।’ (भज. 119:105) जब हम दुख-तकलीफों से गुज़रते हैं, तब हम इन प्यार-भरे वादों से दिलासा पा सकते हैं: “हे परमेश्वर, तू टूटे और पिसे हुए मन को तुच्छ नहीं जानता।” और “हे यहोवा, तेरी करुणा ने मुझे थाम लिया। जब मेरे मन में बहुत सी चिन्ताएं होती हैं, तब हे यहोवा, तेरी दी हुई शान्ति से मुझ को सुख होता है।” (भज. 51:17; 94:18, 19) यहोवा और यीशु उन सभी को दया दिखाते हैं, जो तकलीफें झेल रहे हैं। (यशा. 49:13; मत्ती 15:32) जब हम बाइबल का अध्ययन करते हैं, तब हम यहोवा के उस प्यार के बारे में सीखते हैं, जो उसने हमारे लिए दिखाया है। इससे हमें उसके लिए अपना प्यार बढ़ाने में मदद मिलती है।
16. लगातार प्रार्थना करने से परमेश्वर के लिए हमारा प्यार कैसे बढ़ता है?
16 परमेश्वर से लगातार प्रार्थना कीजिए। जब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं और देखते हैं कि वह हमारी प्रार्थनाओं का जवाब कैसे दे रहा है, तो उसके लिए हमारा प्यार बढ़ता है। (भज. 65:2) मिसाल के लिए, हो सकता है हमने अनुभव किया हो कि उसने हमें अब तक ऐसी किसी भी परीक्षा में नहीं पड़ने दिया, जो हमारी बरदाश्त के बाहर हो। (1 कुरिं. 10:13) अगर हमें किसी बात की चिंता हो रही हो और हम सच्चे मन से परमेश्वर से मदद की गुहार लगाएँ, तो हम ‘परमेश्वर की शांति’ अनुभव कर सकते हैं। यह शांति मन का एक ऐसा सुकून है, जो सिर्फ यहोवा ही हमें दे सकता है। (फिलि. 4:6, 7) हो सकता है कुछ मौकों पर हम अपने मन में ही प्रार्थना करें, जैसे नहेमायाह ने की थी, और हमें बाद में एहसास हो कि यहोवा ने हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दिया है। (नहे. 2:1-6) अगर हम ‘प्रार्थना में लगे रहें’ और अनुभव करें कि कैसे यहोवा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है, तो उसके लिए हमारा प्यार बढ़ेगा। और जब हमारा विश्वास परखा जाएगा, तो हमें यकीन होगा कि यहोवा धीरज धरने में हमारी मदद करेगा।—रोमि. 12:12.
17. अगर हम परमेश्वर से प्यार करते हैं, तो सभाओं में हाज़िर होने के बारे में हमारा क्या नज़रिया होगा?
17 बिना नागा मसीही सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हाज़िर होइए। (इब्रा. 10:24, 25) इसराएली लोग यहोवा से सुनने और उसके बारे में सीखने के लिए इकट्ठा होते थे, ताकि वे गहरे आदर के साथ उसकी उपासना कर सकें और उसका कानून मान सकें। (व्यव. 31:12) अगर हम वाकई यहोवा से प्यार करते हैं, तो बिना नागा मसीही सभाओं में हाज़िर होना हमारे लिए बोझ नहीं होगा। (1 यूहन्ना 5:3 पढ़िए।) आइए हम सभी मसीही सभाओं में हाज़िर होने को हलकी बात न समझें। हम कभी-भी वह प्यार खोना नहीं चाहते, जो यहोवा के लिए हमारे दिल में उस वक्त था, जब हमने पहली बार उसके बारे में सीखा था।—प्रका. 2:4.
18. परमेश्वर के लिए प्यार हमें क्या करने के लिए उकसाता है?
18 जोश से ‘खुशखबरी की सच्चाई’ दूसरों के साथ बाँटिए। (गला. 2:5) परमेश्वर के लिए प्यार हमें उकसाता है कि हम दूसरों को मसीहाई राज के बारे में बताएँ। हर-मगिदोन में मसीहाई राज का राजा, यीशु, यहोवा के हुकूमत करने के हक की पैरवी करेगा। (भज. 45:4; प्रका. 16:14, 16) आज हमें लोगों को परमेश्वर के प्यार के बारे में और उसकी वादा की गयी नयी दुनिया के बारे में सिखाने में बहुत खुशी होती है!—मत्ती 28:19, 20.
19. हमें झुंड की चरवाही करनेवालों की कदर क्यों करनी चाहिए?
19 दिखाइए कि आप झुंड की चरवाही करनेवालों की कदर करते हैं। (प्रेषि. 20:28) यहोवा हमेशा हमारी भलाई चाहता है, इसलिए उसने हमें मसीही प्राचीन दिए हैं। प्राचीन “मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ . . . या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया” हैं। (यशा. 32:1, 2) ज़रा सोचिए हम उस वक्त कितना सुरक्षित महसूस करते हैं, जब हमें तेज़ आँधी या तूफानी बारिश में कहीं पनाह मिल जाती है! और सोचिए जब छाँव हमें सूरज की तपिश से बचाती है, तब हमें कितनी राहत महसूस होती है! उसी तरह, प्राचीन हमें वह मदद देते हैं और हमारा हौसला बढ़ाते हैं, जिसकी हमें ज़रूरत होती है, ताकि हम ज़िंदगी की मुश्किलों के बावजूद यहोवा की सेवा में लगे रहें। हम प्राचीनों का कहना क्यों मानते हैं? क्योंकि हम इन ‘आदमियों के रूप में तोहफों’ की कदर करते हैं और यहोवा और मसीह से प्यार करते हैं, जो मंडली का सिर है।—इफि. 4:8; 5:23; इब्रा. 13:17.
परमेश्वर के लिए अपना प्यार बढ़ाते जाइए
20. अगर आप परमेश्वर से प्यार करते हैं, तो आप याकूब 1:22-25 में दी सलाह पर कैसे चलेंगे?
20 यहोवा ने हमें “सिद्ध कानून” दिया है, जो बताता है कि वह हमसे क्या चाहता है। (याकूब 1:22-25 पढ़िए।) अगर आप यहोवा के साथ एक करीबी रिश्ता बनाना चाहते हैं, तो सिर्फ उसकी सुनना काफी नहीं। (भज. 19:7-11) आप जो सीखते हैं, उसे आपको लागू भी करना होगा। मिसाल के लिए, परमेश्वर के लिए प्यार आपको उभारेगा कि आप दूसरों को उसके बारे में बताने के लिए मेहनत करें और सभाओं में जवाब देने की कोशिश करें।
21. सच्चे मन से की गयी हमारी प्रार्थनाओं की तुलना किससे की जा सकती है?
21 हम यहोवा से प्रार्थना करने में लगे रहते हैं, क्योंकि हम उससे प्यार करते हैं। इसराएल में, याजक हर रोज़ यहोवा के लिए धूप जलाते थे। राजा दाविद ने अपनी प्रार्थनाओं की तुलना सुगंधित धूप से की, जब उसने अपने गीत में यहोवा के लिए गाया: “मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप, और मेरा हाथ फैलाना, संध्याकाल का अन्नबलि ठहरे!” (भज. 141:2; निर्ग. 30:7, 8) यहोवा ने दाविद की प्रार्थनाएँ सुनीं। अगर हम नम्रता से, सच्चे मन से और धन्यवाद के साथ प्रार्थना करेंगे, तो हमारी प्रार्थनाएँ भी सुगंधित धूप की तरह होंगी और उनसे यहोवा को खुशी मिलेगी।—प्रका. 5:8.
22. हम अगले लेख में किस बारे में सीखेंगे?
22 यीशु ने कहा कि हमें परमेश्वर से प्यार करना चाहिए, मगर उसने यह भी कहा कि हमें अपने पड़ोसी से भी प्यार करना चाहिए। (मत्ती 22:37-39) जब हम यहोवा और उसके दिए सिद्धांतों से प्यार करेंगे, तो हमें अपने पड़ोसी से प्यार करने में भी मदद मिलेगी। अगले लेख में हम सीखेंगे कि इसका क्या मतलब है।