इस मिटती दुनिया के विनाश का मिलकर सामना करना
“हम एक ही शरीर के अलग-अलग अंग हैं।”—इफि. 4:25.
1, 2. हम चाहे छोटे हों या बड़े, परमेश्वर अपने उपासकों से क्या चाहता है?
क्या आप एक नौजवान हैं? अगर हाँ, तो यकीन मानिए, आप दुनिया-भर में फैले यहोवा के संगठन का एक अहम हिस्सा हैं। बहुत-से देशों में बपतिस्मा लेनेवाले ज़्यादातर लोग नौजवान हैं। वाकई, इतने बड़े पैमाने पर नौजवानों को यहोवा की सेवा करने का फैसला लेते देखकर हमें कितनी खुशी होती है!
2 जवान होने के नाते, क्या आपको अपने हमउम्र दोस्तों के साथ वक्त बिताना अच्छा लगता है? बेशक लगता होगा। और यह लाज़िमी भी है। आखिर हममें से किसे अपने दोस्तों के साथ वक्त बिताना अच्छा नहीं लगता? यहोवा भी यही चाहता है। वह चाहता है कि हम सब अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर उसकी उपासना करें। वह चाहता है कि हम सभी एकता में रहें, फिर चाहे हम छोटे हों या बड़े, या हमारी परवरिश चाहे जैसे भी हुई हो। प्रेषित पौलुस ने लिखा कि यहोवा की यही मरज़ी है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो और वे सच्चाई का सही ज्ञान हासिल करें।” (1 तीमु. 2:3, 4) और प्रकाशितवाक्य 7:9 बताता है कि परमेश्वर के उपासक “सब राष्ट्रों और गोत्रों और जातियों और भाषाओं से” निकलकर आ रहे हैं।
3, 4. (क) आज दुनिया के ज़्यादातर नौजवानों में किस तरह की फितरत देखी जा सकती है? (ख) इफिसियों 4:25 में पौलुस ने मंडली की तुलना किस चीज़ से की?
3 आज जो जवान यहोवा की उपासना करते हैं उनमें और जो जवान उसकी उपासना नहीं करते उनमें ज़मीन-आसमान का फर्क है। बहुत-से जवान जो यहोवा की उपासना नहीं करते, वे सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं। कुछ खोजकर्ताओं ने आज की पीढ़ी को अब तक की सबसे “खुदगर्ज़ पीढ़ी” कहा। उनके पहनावे और बातचीत करने के ढंग से साफ झलकता है कि वे बड़े-बुज़ुर्गों का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करते और उन्हें “पुराने खयाल” के लोग समझते हैं।
4 यह फितरत हर कहीं देखी जा सकती है। इसलिए यहोवा की उपासना करनेवाले जवानों को इस फितरत से लड़ने और एकता में काम करने के बारे में यहोवा का नज़रिया अपनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पहली सदी में पौलुस ने भी मसीहियों को इस तरह की फितरत अपनाने से खबरदार किया था, जो उस वक्त “आज्ञा न माननेवालों में काम करती हुई दिखायी” दे रही थी। (इफिसियों 2:1-3 पढ़िए।) जो मसीही नौजवान इस दुनियावी फितरत से दूर रहने और अपने भाइयों के साथ एकता में काम करने की अहमियत समझते हैं, वे वाकई तारीफ के काबिल हैं। उनका यह रवैया पौलुस की इस बात से मेल खाता है कि “हम एक ही शरीर के अलग-अलग अंग हैं।” (इफि. 4:25) जैसे-जैसे हम अंत के नज़दीक आ रहे हैं, हमारे लिए यह और भी ज़रूरी होता जाएगा कि हम अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर एकता में काम करें। आइए हम बाइबल की कुछ मिसालों पर गौर करें, जो हमें इस बात की अहमियत समझने में मदद देंगी।
उन्होंने एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा
5, 6. हम लूत और उसके परिवार से क्या सबक सीख सकते हैं?
5 बीते समय में, जब यहोवा के कई सेवकों ने मुश्किल हालात में भी एक-दूसरे का साथ दिया और मिलकर काम किया, तो यहोवा ने खुशी-खुशी उनकी हिफाज़त की। हम चाहे छोटे हों या बड़े, हम सभी बाइबल में दी मिसालों से सबक सीख सकते हैं। आइए लूत की मिसाल पर गौर करें।
6 लूत और उसका परिवार सदोम शहर में रहता था, लेकिन यहोवा उस शहर का नाश करनेवाला था। लूत और उसके परिवार की जान खतरे में थी। इसलिए यहोवा ने अपने स्वर्गदूतों को लूत के परिवार के पास भेजकर उन्हें आगाह किया कि वे उस शहर को छोड़कर पहाड़ों की तरफ भाग जाएँ। स्वर्गदूतों ने उनसे कहा, “अपने प्राण बचा कर भाग जाओ।” (उत्प. 19:12-22, हिंदी—कॉमन लैंग्वेज) लूत और उसकी दोनों बेटियों ने स्वर्गदूतों की हिदायतें मानीं। मगर अफसोस, उनके परिवार के बाकी सदस्यों ने उनका साथ नहीं दिया। जब लूत ने अपने दामादों से, जिनके साथ उसकी बेटियों की सगाई हो चुकी थी, कहा कि यहोवा सदोम पर नाश लानेवाला है, तो उन्हें लगा कि लूत सठिया गया है और उनके साथ “ठट्ठा” कर रहा है। उन्होंने लूत की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। नतीजा, शहर के साथ उनका भी नाश हो गया। (उत्प. 19:14) सिर्फ लूत और उसकी दो बेटियाँ ज़िंदा बच निकलीं, क्योंकि उन्होंने हिदायतें मानीं और एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा।
7. यहोवा ने एकता में रहकर काम करनेवाले इसराएलियों की मदद कैसे की?
7 एक और मिसाल पर गौर कीजिए। जब इसराएली मिस्र छोड़कर वादा-ए-मुल्क जा रहे थे, तब वे अलग-अलग समूह बनाकर अपने-अपने रास्ते नहीं गए, बल्कि उन्होंने साथ मिलकर सफर तय किया। और जब मूसा ने “अपना हाथ समुद्र के ऊपर बढ़ाया” और यहोवा ने लाल सागर को दो भागों में बाँटा, तब मूसा अकेले या अपने साथ सिर्फ गिने-चुने इसराएलियों को लेकर उस पार नहीं गया। इसके बजाय, पूरा-का-पूरा राष्ट्र उसके साथ गया और यहोवा ने उनकी हिफाज़त की। (निर्ग. 14:21, 22, 29, 30) उन्होंने एकता में रहकर काम किया। किसी ने किसी का साथ नहीं छोड़ा। यहाँ तक कि गैर-इसराएलियों से बनी एक ‘मिली जुली भीड़’ जिन्होंने यहोवा की उपासना करने का फैसला किया था, वे भी उनके साथ-साथ गए। (निर्ग. 12:38) सोचिए अगर उनमें से कुछ लोगों ने, जैसे कि कुछ जवानों ने मिलकर अपना ही एक समूह बना लिया होता और अपनी अक्ल लड़ाकर एक ऐसा रास्ता ले लिया होता, जो उनकी नज़र में सही होता, तो यह कितनी बड़ी बेवकूफी होती। क्योंकि ऐसा करके वे यहोवा की हिफाज़त से महरूम रह जाते।—1 कुरिं. 10:1.
8. यहोशापात के दिनों में इसराएलियों ने एकता कैसे बनाए रखी?
8 राजा यहोशापात के दिनों में एक बहुत ही विशाल और ताकतवर सेना ने इसराएलियों को चारों तरफ से घेर लिया। (2 इति. 20:1, 2) इस पर इसराएलियों ने क्या किया? उन्होंने अपनी ताकत से उन्हें हराने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, उन्होंने यहोवा से प्रार्थना में मदद माँगी। (2 इतिहास 20:3, 4 पढ़िए।) अपने-अपने तरीके से इस समस्या का हल ढूँढ़ने के बजाय, “सब यहूदी अपने अपने बालबच्चों, स्त्रियों और पुत्रों समेत यहोवा के सम्मुख खड़े रहे।” (2 इति. 20:13) छोटे से लेकर बड़े तक, सभी ने मिलकर यहोवा पर भरोसा दिखाया और वही किया, जो उन्हें करने के लिए कहा गया था। किसी ने किसी का साथ नहीं छोड़ा। इसलिए यहोवा ने उन्हें दुश्मनों से बचाया। (2 इति. 20:20-27) परमेश्वर के लोगों ने मिलकर चुनौतियों का सामना करने की क्या ही बढ़िया मिसाल रखी!
9. हम पहली सदी के मसीहियों से क्या सीख सकते हैं?
9 पहली सदी के मसीहियों ने भी इस मामले में एक अच्छी मिसाल रखी। जब कई यहूदी और गैर-यहूदी मसीही बने, तो वे सब एक मन से “प्रेषितों से शिक्षा पाने में लगे रहे और उनका जो कुछ था वे उसे आपस में बाँटा करते, साथ-साथ खाना खाते और प्रार्थना में लगे रहते थे।” (प्रेषि. 2:42) और यह एकता खासकर उस वक्त साफ दिखायी दी, जब उन्हें सताया गया और उन्हें एक-दूसरे की और भी ज़्यादा ज़रूरत थी। (प्रेषि. 4:23, 24) तो जब हमें सताया जाता है और हमें एक-दूसरे की ज़रूरत होती है, तो क्या हमें भी एक-दूसरे का साथ नहीं देना चाहिए?
यहोवा का दिन आने से पहले एकता में बँधिए
10. हमें कब पहले से कहीं ज़्यादा एकता बनाए रखने की ज़रूरत होगी?
10 बहुत जल्द हम एक ऐसे मुश्किल समय का सामना करनेवाले हैं, जिसका इंसानों ने पहले कभी सामना नहीं किया। भविष्यवक्ता योएल ने उस दिन को “अन्धकार भरा” और “उदासी का” दिन कहा। (योए. 2:1, 2, हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन; सप. 1:14) उस वक्त परमेश्वर के लोगों को पहले से कहीं ज़्यादा एकता बनाए रखने की ज़रूरत होगी। यीशु के शब्दों को याद कीजिए: “ऐसा हर राज्य जिसमें फूट पड़ जाए, उजड़ जाता है।”—मत्ती 12:25.
11. भजन 122:3, 4 से यहोवा के लोग एकता के बारे में क्या सीख सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
11 वाकई, जब इस दुनिया पर संकटों से भरा वक्त आएगा, तब हम सभी को सही मायनों में एकता बनाए रखने की ज़रूरत होगी। उस वक्त हमें अपने भाई-बहनों के कितने करीब रहना होगा, यह समझने के लिए ज़रा पुराने ज़माने के यरूशलेम के घरों के बारे में सोचिए। वहाँ सभी घर एक-दूसरे से इतने सटे हुए थे कि भजनहार ने कहा कि यरूशलेम ‘ऐसे नगर के समान है, जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं।’ एक-दूसरे के इतने करीब रहने की वजह से वहाँ रहनेवाले आसानी से एक-दूसरे की मदद और हिफाज़त कर सकते थे। यही नहीं, घरों का इस तरह सटा होना भजनहार को शायद इसराएल के गोत्रों की भी याद दिलाता होगा, जब वे सभी एक राष्ट्र के तौर पर यहोवा की उपासना करने के लिए इकट्ठा होते थे। (भजन 122:3, 4 पढ़िए।) आज और आनेवाले मुश्किल समय में, हमारे लिए यह बहुत ज़रूरी होगा कि हम सब “एक दूसरे से मिले” रहें।
12. परमेश्वर के लोगों पर होनेवाले हमले से बचने के लिए हमें क्या करना होगा?
12 भविष्य में हमारा एकता में बने रहना क्यों इतना ज़रूरी होगा? यहेजकेल अध्याय 38 में भविष्यवाणी की गयी थी कि ‘मागोग देश का गोग’ यहोवा के लोगों पर हमला करेगा। सोचिए यह कितनी बड़ी बेवकूफी होगी अगर हम ऐसे समय पर अपनी एकता में फूट पड़ने दें। साथ ही, हम हरगिज़ नहीं चाहेंगे कि हम उस दुश्मन से लड़ने के लिए दुनिया से मदद माँगें। इसके बजाय, हम अपने भाई-बहनों के करीब रहना चाहेंगे। बेशक, इसका यह मतलब नहीं कि भाई-बहनों के करीब रहने से हमारी जान बच जाएगी। हमें खुद यहोवा पर भरोसा करना होगा और उसकी आज्ञा माननी होगी। जो लोग यहोवा का नाम पुकारते हैं, सिर्फ उन्हें यहोवा और यीशु उस हमले से बचाएँगे और नयी दुनिया में ले जाएँगे। (योए. 2:32; मत्ती 28:20) लेकिन इससे यहोवा के लोगों के करीब बने रहने की अहमियत कम नहीं हो जाती। क्या आपको लगता है कि जो लोग उनका साथ नहीं देंगे, उन्हें यहोवा बचाएगा?—मीका 2:12.
13. अब तक हमने जो चर्चा की, उससे मसीही नौजवान क्या-क्या सबक सीख सकते हैं?
13 जवानो, क्या इससे यह बात साफ नहीं हो जाती कि अगर आप भी अपने दोस्तों की तरह खुद को दूसरों से अलग कर लें और अपनी ही मन-मरज़ी करें, तो आप कितनी बड़ी मुसीबत में फँस सकते हैं? बहुत जल्द हम सभी, जी हाँ छोटे-बड़े सभी, एक ऐसे दौर से गुज़रनेवाले हैं जब हम सभी को एक-दूसरे की बहुत ज़रूरत होगी! इसलिए यही वक्त है कि हम अपने भाई-बहनों के साथ अपनी दोस्ती को मज़बूत करें और साथ मिलकर काम करने की आदत डालें, क्योंकि यही एकता आगे चलकर हमारी जान बचाएगी!
“एक ही शरीर के अलग-अलग अंग”
14, 15. (क) यहोवा हमें अभी से एकता में रहना क्यों सिखा रहा है? (ख) यहोवा हमें क्या सलाह देता है, ताकि हम एकता में बँधे रहें?
14 आज यहोवा हमें अपने भाई-बहनों के साथ ‘कन्धे से कन्धा मिलाकर उसकी सेवा’ करने में मदद दे रहा है। (सप. 3:8, 9) वह हमें भविष्य के लिए तालीम दे रहा है, जब वह ‘सबकुछ मसीह में इकट्ठा करेगा।’ (इफिसियों 1:9, 10 पढ़िए।) जी हाँ, यहोवा स्वर्ग में और धरती पर, सभी को एक करना चाहता है, ताकि वे एक परिवार के तौर पर मिलकर उसकी उपासना करें। और वह ऐसा करने में ज़रूर कामयाब होगा। नौजवानो, क्या अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यहोवा के संगठन के साथ एकता में रहकर काम करना कितना ज़रूरी है?
15 यहोवा हमें नयी दुनिया के लिए तैयार कर रहा है। वह हमें अभी से एकता में रहना सिखा रहा है, ताकि हम नयी दुनिया में दूसरों के साथ मिलकर शांति से रह सकें। यहोवा बार-बार हमसे गुज़ारिश करता है कि हम ‘एक-दूसरे के लिए बराबर फिक्र करें,’ ‘एक-दूसरे के लिए गहरा लगाव रखें,’ ‘एक-दूसरे को दिलासा देते रहें’ और ‘एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते रहें।’ (1 कुरिं. 12:25; रोमि. 12:10; 1 थिस्स. 4:18; 5:11) यहोवा जानता है कि हम असिद्ध हैं और इसलिए एकता बनाए रखना हमारे लिए हमेशा आसान नहीं होता। यही वजह है कि वह हमसे कहता है कि हम हमेशा ‘एक-दूसरे को दिल से माफ करते रहें।’—इफि. 4:32.
16, 17. (क) मसीही सभाओं का एक मकसद क्या है? (ख) नौजवान मसीही यीशु की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
16 एक और तरीका, जिससे यहोवा हमें एकता में रहकर काम करना सिखाता है, वह है मसीही सभाएँ। इब्रानियों 10:24, 25 में जो बढ़ावा दिया गया है, उसे हम अकसर पढ़ते हैं। उन आयतों के मुताबिक, इन सभाओं का एक मकसद है ‘प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लेना।’ गौर कीजिए कि ये सभाएँ हमें मौका देती हैं कि हम “एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ।” और जैसे-जैसे हम यहोवा के दिन को नज़दीक आता देखते हैं, हमें अपनी सभाओं में इकट्ठा होने की “और भी ज़्यादा” ज़रूरत है।
17 यीशु ने इस मामले में हमारे लिए एक बहुत अच्छी मिसाल रखी। जब वह जवान था, तब वह यहोवा के लोगों के साथ इकट्ठा होने के इंतज़ाम की बहुत कदर करता था। मिसाल के लिए, जब वह 12 साल का था, तब वह अपने माता-पिता के साथ मंदिर में एक बड़ी सभा के लिए गया हुआ था। लौटते वक्त यीशु के माता-पिता को एहसास हुआ कि वह उनके साथ नहीं है। उन्हें वह कहीं नज़र नहीं आ रहा था। क्या यीशु दूसरे नौजवानों के साथ वक्त बिताने कहीं चला गया था? नहीं। इसके बजाय, उसके माता-पिता ने उसे वहीं मंदिर में शिक्षकों के साथ शास्त्र पर बात करते हुए पाया।—लूका 2:45-47.
18. प्रार्थना करने से हमारी एकता कैसे मज़बूत हो सकती है?
18 हम अपने भाइयों के लिए प्रार्थना करके भी अपनी एकता मज़बूत कर सकते हैं। जब हम फलाँ भाई या समूह को ध्यान में रखकर खास उनके लिए प्रार्थना करते हैं, तो ऐसा करके हम खुद को याद दिला रहे होते हैं कि हम अपने भाई-बहनों की कितनी परवाह करते हैं। वाकई, एक-दूसरे के लिए प्यार बढ़ाकर, मसीही सभाओं में इकट्ठा होकर और अपने भाई-बहनों के लिए प्रार्थना करके हम अपनी एकता मज़बूत कर सकते हैं। ऐसा सिर्फ बड़े-बुज़ुर्गों को ही नहीं, बल्कि बच्चों और नौजवानों को भी करना चाहिए। नौजवानो, क्या आप इन बातों को लागू करके मंडली में अपने भाई-बहनों के साथ दोस्ती बढ़ा रहे हैं? अगर आप ऐसा करेंगे, तो यकीन मानिए, आप उन लोगों में गिने जाएँगे जो इस दुनिया के विनाश से बच निकलनेवाले हैं, न कि उनमें जो इसके साथ डूबनेवाले हैं।
ज़ाहिर करना कि हम “एक ही शरीर के अलग-अलग अंग हैं”
19-21. (क) एक बेहतरीन तरीका क्या है जिससे हम दिखाते हैं कि हम “एक-दूसरे से जुड़े अंग हैं”? कुछ मिसालें दीजिए। (ख) प्राकृतिक विपत्तियों के दौरान जिस तरह हमारे भाइयों ने एक-दूसरे की मदद की, उससे आप क्या सबक सीखते हैं?
19 कई मिसालें दिखाती हैं कि यहोवा के लोग अभी से रोमियों 12:5 में दिए सिद्धांत को लागू कर रहे हैं, जो कहता है कि हम “एक-दूसरे से जुड़े अंग हैं।” जब हमारे भाई-बहन किसी प्राकृतिक विपत्ति का सामना करते हैं, तो हम उनकी मदद करने के लिए उभारे जाते हैं। मिसाल के लिए, दिसंबर 2011 में फिलिपाईन्स के मिन्डनाओ द्वीप में एक भयानक तूफान आया, जिसकी वजह से वहाँ ज़बरदस्त बाढ़ आ गयी। एक ही रात में 40,000 से भी ज़्यादा घरों में पानी भर गया, जिनमें से कई घर हमारे भाइयों के थे। शाखा दफ्तर की रिपोर्ट बताती है कि इससे पहले कि उन्हें राहत-समितियों से कोई मदद मिलती, “दूसरे इलाकों के मसीही भाइयों ने उनके लिए राहत भेजना शुरू कर दिया था।”
20 उसी तरह, जब पूर्वी जापान में एक भयंकर भूकंप और सुनामी आयी, तो हमारे भाइयों का काफी नुकसान हुआ। कुछ भाइयों का तो सब कुछ तबाह हो गया। मिसाल के लिए, योशीको, जिसका घर सुनामी में बह गया था, राज-घर से करीब 40 कि.मी. (25 मील) दूर रहती थी। वह कहती है: “बाद में हमें यह जानकर ताज्जुब हुआ कि भूकंप के अगले ही दिन एक सर्किट निगरान और एक भाई हमें ढूँढ़ने आए थे।” फिर वह मुसकराते हुए कहती है: “हम बहुत शुक्रगुज़ार थे कि मंडली के ज़रिए हमारी आध्यात्मिक ज़रूरतों का इतनी अच्छी तरह खयाल रखा गया। इसके अलावा, हमें कोट, जूते, बैग और पजामे भी दिए गए।” राहत-समिति में सेवा करनेवाला एक भाई कहता है: “जापान के कोने-कोने से आए सभी भाई-बहन एक-जुट होकर काम कर रहे थे। वे सभी एक-दूसरे की मदद कर रहे थे। यहाँ तक कि अमरीका से भी भाई मदद करने के लिए आए थे। जब उनसे पूछा गया कि वे इतनी दूर से क्यों आए, तो उन्होंने कहा, ‘हम जापान के भाइयों के साथ एकता के बंधन में बँधे हैं और उन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है।’” क्या आपको इस बात पर गर्व महसूस नहीं होता कि आप एक ऐसे संगठन का हिस्सा हैं, जिसमें लोग एक-दूसरे की दिल से परवाह करते हैं? आप यकीन रख सकते हैं कि यहोवा अपने लोगों के बीच ऐसी एकता देखकर बहुत खुश होता है!
21 अगर हम अभी से एकता में रहकर काम करना सीखें, तो आगे चलकर जब मुश्किलों-भरा वक्त आएगा, तब हम मिलकर उसका सामना कर सकेंगे। भले ही उस वक्त हम दुनिया के दूसरे हिस्सों में रहनेवाले अपने भाइयों से संपर्क न कर पाएँ, लेकिन हम अपने इलाके के भाइयों के साथ एकता में होंगे। जापान की रहनेवाली फूमीको, जिसने एक ज़बरदस्त तूफान का सामना किया था, कहती है: “अंत बहुत करीब है। जल्द ही एक ऐसा समय आनेवाला है, जब प्राकृतिक विपत्तियाँ खत्म हो जाएँगी। लेकिन तब तक हमें अपने भाई-बहनों की मदद करते रहने की ज़रूरत है।”
22. हमारी मसीही एकता कैसे भविष्य में हमारी मदद करेगी?
22 अभी से यहोवा के दिन के लिए तैयारी कीजिए। अपने भाई-बहनों के साथ एकता में बँधे रहने के लिए अपनी तरफ से हर मुमकिन कोशिश कीजिए। जब शैतान की दुष्ट दुनिया नाश होगी, तो यहोवा अपने लोगों को बचाएगा, ठीक जैसे उसने पुराने ज़माने में किया था। (यशा. 52:9, 10) याद रखिए, आप चाहे छोटे हों या बड़े, अगर आप शैतान की दुष्ट दुनिया के विनाश से बचना चाहते हैं, तो ज़रूरी है कि आप परमेश्वर के लोगों के साथ एकता में रहकर काम करें। एक और बात जो उस विनाश से बच निकलने में हमारी मदद कर सकती है, वह है उस चीज़ की कदर करना जो हमें पहले से मिली है। इस बारे में हम अगले लेख में चर्चा करेंगे।