परमेश्वर से मिले खज़ाने को अनमोल समझिए
“जहाँ तुम्हारा धन होगा, वहीं तुम्हारा मन होगा।”—लूका 12:34.
1, 2. (क) यहोवा से हमें क्या अनमोल खज़ाना मिला है? (ख) इस लेख में हम क्या देखेंगे?
यहोवा पूरे जहान में सबसे अमीर है। आकाश और धरती पर जो कुछ है, सब उसी का है। (1 इति. 29:11, 12) वह एक दरियादिल परमेश्वर भी है और अपनी चीज़ें दूसरों को देता है। हम कितने एहसानमंद हैं कि उसने हमें अनमोल खज़ाना दिया है। वह क्या है? (1) परमेश्वर का राज, (2) हमारी सेवा और (3) उसके वचन में दी अनमोल सच्चाइयाँ। लेकिन अगर हम सावधान न रहें तो इस खज़ाने के लिए हमारी कदर कम हो सकती है। इसलिए हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि यह खज़ाना कितना अनमोल है और इसके लिए अपना प्यार बढ़ाते जाना चाहिए। यह इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यीशु ने कहा था, “जहाँ तुम्हारा धन होगा, वहीं तुम्हारा मन होगा।”—लूका 12:34.
2 आइए देखें कि हम परमेश्वर के राज, अपनी सेवा और बाइबल की सच्चाइयों के लिए अपना प्यार और कदरदानी कैसे बनाए रख सकते हैं। ऐसा करते वक्त खुद को जाँचिए और सोचिए कि मैं इस खज़ाने के लिए अपना प्यार कैसे गहरा कर सकता हूँ।
परमेश्वर का राज बेशकीमती मोती की तरह है
3. यीशु की मिसाल में बताए व्यापारी ने एक बेशकीमती मोती खरीदने के लिए क्या किया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
3 मत्ती 13:45, 46 पढ़िए। यीशु ने एक ऐसे आदमी की मिसाल दी जो मोतियों का व्यापारी था। एक दिन उसे एक ऐसा मोती मिला जो बाकी सभी मोतियों से बेशकीमती था। वह हर हाल में उस मोती को पाना चाहता था इसलिए उसने अपना सबकुछ बेच दिया और वह मोती खरीद लिया। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उसके लिए वह मोती कितना अनमोल रहा होगा?
4. हम राज की खातिर क्या करने के लिए तैयार रहेंगे?
4 यीशु की मिसाल से हम क्या सीख सकते हैं? परमेश्वर का राज उस बेशकीमती मोती की तरह है। अगर हम इसे उतना ही अनमोल समझते हैं जितना वह व्यापारी उस मोती को समझता था, तो हम अपना सबकुछ त्याग करने के लिए तैयार रहेंगे ताकि हम इस राज की प्रजा बनें और हमेशा इसकी प्रजा बने रहें। (मरकुस 10:28-30 पढ़िए।) आइए दो लोगों के उदाहरण पर गौर करें जिन्होंने ऐसा ही किया।
5. जक्कई ने राज की खातिर क्या किया?
5 जक्कई नाम का एक आदमी कर-वसूलनेवाला था। वह लोगों के पैसे लूटकर अमीर बना था। (लूका 19:1-9) लेकिन एक दिन उसने यीशु को राज के बारे में प्रचार करते सुना। यीशु की बातों का उस पर इस कदर असर हुआ कि वह खुद को पूरी तरह बदलना चाहता था। उसने कहा, “प्रभु देख! मैं अपनी आधी संपत्ति गरीबों को देता हूँ और मैंने जिस-जिस को लूटा है, उसे मैं चार गुना वापस लौटा देता हूँ।” जक्कई ने ऐसा ही किया। उसने बेईमानी से जितना कुछ कमाया था वह वापस लोगों को लौटा दिया और उसने लालच करना छोड़ दिया।
6. एक औरत ने क्या बदलाव किए और किस बात ने उसे ऐसा करने के लिए उभारा?
6 अब एक औरत की मिसाल पर ध्यान दीजिए जिसने कुछ साल पहले राज का संदेश सुना था। उस वक्त वह एक औरत के साथ समलैंगिक संबंध रखती थी। वह एक संगठन की अध्यक्ष भी थी जो समलैंगिक लोगों के हक के लिए लड़ता था। लेकिन जैसे-जैसे उसने बाइबल सीखी और परमेश्वर के राज के लिए उसकी कदर बढ़ी, उसे एहसास हुआ कि उसे अपनी ज़िंदगी में बड़े-बड़े बदलाव करने होंगे। (1 कुरिं. 6:9, 10) वह यहोवा से बहुत प्यार करती थी, इसीलिए उसने वह संगठन छोड़ दिया और अपने समलैंगिक साथी से रिश्ता तोड़ लिया। सन् 2009 में उसने बपतिस्मा लिया और अगले ही साल पायनियर सेवा शुरू की। जी हाँ, इस औरत को अपनी गलत इच्छाओं से ज़्यादा यहोवा से प्यार था और इसी बात ने उसे बड़े-बड़े बदलाव करने के लिए उभारा।—मर. 12:29, 30.
7. क्या बात परमेश्वर के राज के लिए हमारा प्यार कमज़ोर कर सकती है?
7 परमेश्वर के राज की प्रजा बनने के लिए हममें से कई लोगों ने अपनी ज़िंदगी की कायापलट की है। (रोमि. 12:2) लेकिन हमें आगे भी संघर्ष करते रहना है ताकि धन-दौलत की चाहत, गलत यौन इच्छाएँ या कोई और बात परमेश्वर के राज के लिए हमारा प्यार कमज़ोर न कर दे। (नीति. 4:23; मत्ती 5:27-29) इस प्यार को बनाए रखने के लिए यहोवा ने हमें एक और अनमोल खज़ाना दिया है।
हमारी सेवा से लोगों की जान बच सकती है
8. (क) प्रेषित पौलुस ने क्यों प्रचार सेवा को ‘मिट्टी के बरतनों में रखा खज़ाना’ कहा? (ख) पौलुस ने कैसे दिखाया कि उसे अपनी सेवा से लगाव है?
8 यीशु ने हमें राज की खुशखबरी सुनाने और सिखाने का काम सौंपा है। (मत्ती 28:19, 20) प्रेषित पौलुस ने इस सेवा को मिट्टी के बरतनों में रखा खज़ाना कहा। (2 कुरिं. 4:7; 1 तीमु. 1:12) हमें मिट्टी के बरतन कहा गया है क्योंकि हम अपरिपूर्ण हैं। लेकिन हम जिस संदेश का प्रचार करते हैं वह किसी खज़ाने से कम नहीं, क्योंकि इससे हमें और हमारा संदेश सुननेवालों को हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है। तभी पौलुस ने कहा, “मैं सबकुछ खुशखबरी की खातिर करता हूँ ताकि यह खबर मैं दूसरों को सुना सकूँ।” (1 कुरिं. 9:23) पौलुस ने दूसरों को परमेश्वर के राज के बारे में सिखाने में खूब मेहनत की। (रोमियों 1:14, 15; 2 तीमुथियुस 4:2 पढ़िए।) उसे खुशखबरी से इतना लगाव था कि वह ज़ुल्म सहते हुए भी प्रचार करता रहा। (1 थिस्स. 2:2) हम पौलुस की तरह कैसे दिखा सकते हैं कि हमें अपनी सेवा से लगाव है?
9. हम किस तरह दिखा सकते हैं कि हमें अपनी सेवा से लगाव है?
9 पौलुस ने हर मौके पर दूसरों को गवाही दी। पौलुस और शुरू के मसीहियों की तरह हम भी घर-घर जाकर, सरेआम और जहाँ कहीं लोग मिलते हैं वहाँ खुशखबरी सुनाते हैं। (प्रेषि. 5:42; 20:20) इसके अलावा, ऐसे और भी तरीके हैं जिनसे हम ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को प्रचार कर सकते हैं। मिसाल के लिए, हम शायद सहयोगी पायनियर या पायनियर सेवा करें, नयी भाषा सीखें और अपने ही देश के किसी इलाके में सेवा करें। या हो सकें तो हम दूसरे देश में भी जाकर सेवा करें।—प्रेषि. 16:9, 10.
10. आइरीन ने खुशखबरी सुनाने में जो मेहनत की उससे उसे क्या फायदा हुआ?
10 अमरीका में रहनेवाली एक अविवाहित बहन आइरीन की मिसाल पर गौर कीजिए। वह रूसी भाषा बोलनेवालों को खुशखबरी सुनाना चाहती थी। इसलिए 1993 में वह न्यू यॉर्क सिटी में रूसी भाषा बोलनेवाले समूह में जाने लगी। उस वक्त समूह में सिर्फ 20 प्रचारक थे। उसने 20 साल तक खूब मेहनत की मगर वह कहती है, “सच कहूँ तो अब भी मुझे रूसी भाषा पूरी तरह नहीं आती।” फिर भी यहोवा की मदद से आइरीन और दूसरे प्रचारक उस भाषा के लोगों को खुशखबरी सुना पाए। नतीजा, आज न्यू यॉर्क सिटी में रूसी भाषा बोलनेवाली छ: मंडलियाँ हैं। आइरीन ने बहुत-से लोगों के साथ अध्ययन किया और उनमें से 15 लोगों ने बपतिस्मा लिया। उनमें से कुछ बेथेल में सेवा कर रहे हैं, कुछ पायनियर हैं और कुछ प्राचीनों के नाते सेवा कर रहे हैं। आइरीन कहती है, “मैं ज़िंदगी में और भी कुछ कर सकती थी। लेकिन उस काम से मुझे इतनी खुशी नहीं मिलती जितनी इस काम से मिल रही है।” आइरीन सचमुच में अपनी सेवा को अनमोल समझती है!
11. जुल्मों के बावजूद प्रचार करते रहने से क्या अच्छे नतीजे मिलते हैं?
11 अगर हम अपनी सेवा को खज़ाना समझते हैं तो हम प्रेषित पौलुस की तरह ज़ुल्मों के बावजूद प्रचार करते रहेंगे। (प्रेषि. 14:19-22) मिसाल के लिए, 1930 से 1944 के दौरान अमरीका में हमारे भाइयों को बुरी तरह सताया गया, लेकिन उन्होंने प्रचार करना नहीं छोड़ा। जब अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो वे अदालत गए और उन्होंने कई मुकदमे जीते। सन् 1943 में भाई नॉर ने एक मुकदमे का ज़िक्र किया जो हमने अमरीका के सुप्रीम कोर्ट में जीता था। उन्होंने कहा, ‘भाइयों ने प्रचार करना जारी रखा, इसलिए उस अदालत में हमें कई मुकदमे लड़ने पड़े। दुनिया-भर में हमारे भाइयों ने प्रचार करना नहीं छोड़ा और उन्होंने साबित किया कि ज़ुल्म भी उन्हें रोक नहीं पाया है।’ दूसरे देशों में भी भाइयों ने इसी तरह के मुकदमे जीते हैं। जी हाँ, हम अपनी सेवा से प्यार करते हैं इसलिए हम पर चाहे कितने ही ज़ुल्म हों हम प्रचार करना नहीं छोड़ते।
12. आपने क्या करने की ठानी है?
12 जब हम अपनी सेवा को खज़ाना समझते हैं, तो हम सिर्फ यह नहीं सोचेंगे कि हम प्रचार की रिपोर्ट में कितने घंटे डालते हैं। इसके बजाय, हमारी सबसे बड़ी चिंता होगी कि हम “खुशखबरी के बारे में अच्छी गवाही” दें। (प्रेषि. 20:24; 2 तीमु. 4:5) लेकिन हम प्रचार में लोगों को क्या सिखाएँगे? यह जानने के लिए आइए हम परमेश्वर से मिले एक और खज़ाने पर ध्यान दें।
बाइबल से सीखी अनमोल सच्चाइयाँ
13, 14. मत्ती 13:52 में यीशु ने किस “खज़ाने” की बात की और हम इसे कैसे भर सकते हैं?
13 यहोवा ने जो तीसरा खज़ाना दिया है वह है बाइबल से सीखी सच्चाइयाँ। यहोवा सच्चाई का परमेश्वर है। (2 शमू. 7:28; भज. 31:5) वह एक दरियादिल पिता भी है इसलिए वह हमें ये सच्चाइयाँ सिखाता है। अब तक हमने परमेश्वर के वचन, प्रकाशनों, सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों से कई सच्चाइयाँ सीखी हैं। हमने मानो इन सच्चाइयों का एक बड़ा ‘खज़ाना’ इकट्ठा कर लिया है, जिसमें “नयी” और “पुरानी” दोनों सच्चाइयाँ हैं। (मत्ती 13:52 पढ़िए।) अगर हम बाइबल की सच्चाइयों को इस तरह ढूँढ़ें जैसे कोई छिपा हुआ खज़ाना ढूँढ़ता है, तो यहोवा हमारा ‘खज़ाना’ भरने में हमारी मदद करेगा। (नीतिवचन 2:4-7 पढ़िए।) हम कैसे इसकी खोज कर सकते हैं?
14 हमें बाइबल और प्रकाशनों का नियमित तौर पर अध्ययन करना चाहिए और गहराई से खोजबीन करनी चाहिए। इस तरह हम “नयी” सच्चाइयाँ सीख पाएँगे यानी वे बातें जो हमें पहले नहीं पता थीं। (यहो. 1:8, 9; भज. 1:2, 3) जुलाई 1879 में छपी प्रहरीदुर्ग के पहले अंक में बताया गया था कि सच्चाई एक ऐसे फूल की तरह है जो जंगली पौधों के बीच छिपा हुआ है। इसे पाने के लिए एक इंसान को बड़े ध्यान से इसे ढूँढ़ना पड़ता है। जब उसे वह फूल मिल जाता है तो वह बस इसी से खुश नहीं रहता। वह और भी फूल ढूँढ़ता है। ठीक उसी तरह जब हम कोई नयी सच्चाई ढूँढ़ निकालते हैं तो हमें सिर्फ उसी से संतुष्ट नहीं होना चाहिए बल्कि हमें और भी सच्चाइयों की खोज करते रहना चाहिए।
15. कुछ सच्चाइयों को ‘पुराना’ क्यों कहा जा सकता है और इनमें से कौन-सी सच्चाई आपके लिए सबसे अनमोल है?
15 जब हमने बाइबल सीखना शुरू किया था तब हमने कुछ बढ़िया सच्चाइयाँ सीखी थीं। हम इन्हें “पुरानी” सच्चाइयाँ कह सकते हैं क्योंकि हमने इन्हें शुरू-शुरू में सीखा था। ये सच्चाइयाँ क्या हैं? हमने सीखा था कि यहोवा हमारा सृष्टिकर्ता है और उसने इंसानों के लिए एक मकसद ठहराया है। हमने यह भी सीखा था कि उसने अपना बेटा इस धरती पर भेजा ताकि वह फिरौती बलिदान देकर हमें पाप और मौत से छुड़ाए। इसके अलावा, हमने यह भी जाना था कि परमेश्वर का राज सारी दुख-तकलीफें मिटा देगा, फिर इस धरती पर शांति और खुशहाली होगी और हम हमेशा की ज़िंदगी जीएँगे।—यूह. 3:16; प्रका. 4:11; 21:3, 4.
16. जब बाइबल की किसी सच्चाई के बारे में हमें नयी समझ मिलती है तो हमें क्या करना चाहिए?
16 कभी-कभी बाइबल की किसी भविष्यवाणी या आयत के बारे में हमें नयी समझ मिलती है। जब ऐसा होता है तो बहुत ज़रूरी है कि हम समय निकालकर उस बारे में अध्ययन करें और उस पर मनन करें। (प्रेषि. 17:11; 1 तीमु. 4:15) हमारे लिए सिर्फ यह जानना काफी नहीं कि पुरानी समझ और नयी समझ में क्या फर्क है बल्कि हमें नयी समझ की बारीकियों को अच्छी तरह जानना भी चाहिए। जब हम नयी समझ के बारे में गहराई से अध्ययन करेंगे तो यह हमारे खज़ाने का हिस्सा बन जाएगी। इस तरह मेहनत करने से हमें क्या फायदा होगा?
17, 18. पवित्र शक्ति किस तरह हमारी मदद कर सकती है?
17 यीशु ने सिखाया था कि परमेश्वर की पवित्र शक्ति हमें वे बातें याद दिलाएगी जो हमने पहले सीखी थीं। (यूह. 14:25, 26) इससे हमें खुशखबरी सुनाने में कैसे मदद मिलेगी? यह जानने के लिए पीटर नाम के एक भाई की मिसाल पर गौर कीजिए। सन् 1970 में वह 19 साल का था और उसने ब्रिटेन बेथेल में सेवा करना शुरू ही किया था। एक दिन घर-घर के प्रचार में उसे एक दाढ़ीवाला आदमी मिला, जो करीब 50 साल का था। वह एक यहूदी रब्बी था। पीटर ने उससे पूछा कि क्या वह बाइबल सीखना चाहता है। वह आदमी चौंक गया। उसने सोचा, यह जवान लड़का मुझे बाइबल क्या सिखाएगा। उसने पीटर को परखने के लिए पूछा, “अच्छा यह बताओ, दानियेल की किताब कौन-सी भाषा में लिखी गयी थी?” पीटर ने कहा, “इसके कुछ हिस्से अरामी भाषा में लिखे गए थे।” पीटर उस घटना को याद करते हुए कहता है, “वह रब्बी हैरान रह गया, लेकिन उससे ज़्यादा हैरान तो मैं था कि मुझे यह जवाब कैसे पता? जब मैं वापस घर गया तो मैंने पिछले महीनों की प्रहरीदुर्ग और सजग होइए! पत्रिकाएँ देखीं। मुझे एक लेख मिला जिसमें समझाया गया था कि दानियेल की किताब अरामी भाषा में लिखी गयी थी।” (दानि. 2:4, फु.) वाकई पवित्र शक्ति हमें वे बातें याद दिला सकती है जो हमने पहले पढ़ी थीं और अपने खज़ाने में डाली थीं।—लूका 12:11, 12; 21:13-15.
18 अगर हम यहोवा से सीखी सच्चाइयों से प्यार करते हैं और इनकी कदर करते हैं तो हम इन्हें अपने खज़ाने में भरते रहेंगे। हम जितना ज़्यादा अपना खज़ाना भरेंगे उतना ही हम दूसरों को सिखाने में निपुण होंगे।
अपने खज़ाने की हिफाज़त कीजिए
19. हमें परमेश्वर से मिले खज़ाने की हिफाज़त क्यों करनी चाहिए?
19 इस लेख में हमने सीखा कि हमें परमेश्वर से मिले खज़ाने को अनमोल समझना चाहिए। लेकिन शैतान और उसकी दुनिया इस कोशिश में लगी हुई है कि इस खज़ाने के लिए हमारा प्यार कमज़ोर पड़ जाए। हमें शायद बड़े-बड़े सपने दिखाए जाएँ कि हमारे पास अच्छी नौकरी होगी, हम ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीएँगे और दूसरों को दिखाने के लिए हमारे पास बढ़िया-से-बढ़िया चीज़ें होंगी। लेकिन प्रेषित यूहन्ना ने हमें याद दिलाया कि यह दुनिया और इसकी चीज़ें जल्द ही मिटनेवाली हैं। (1 यूह. 2:15-17) इसलिए हमें अपने खज़ाने की कदर करनी चाहिए और इसकी हिफाज़त करनी चाहिए।
20. अपने खज़ाने की हिफाज़त करने के लिए आपने क्या करने की ठानी है?
20 ऐसी हर चीज़ को त्यागने के लिए तैयार रहिए जो राज के लिए आपका प्यार कमज़ोर कर सकती है। ठान लीजिए कि आप जोश के साथ प्रचार करते रहेंगे और इस सेवा के लिए अपना प्यार कम नहीं होने देंगे। बाइबल की सच्चाइयाँ ढूँढ़ने में लगे रहिए। इस तरह आप ‘स्वर्ग में ऐसा खज़ाना जमा करेंगे जो कभी खत्म नहीं होगा, जहाँ न कोई चोर पास फटकेगा, न कोई कीड़ा उसे खाएगा। क्योंकि जहाँ आपका धन होगा, वहीं आपका मन होगा।’—लूका 12:33, 34.