“तू हिम्मत से काम ले . . . और काम में लग जा”
“तू हिम्मत से काम ले और हौसला रख और काम में लग जा। तू डरना मत और न ही खौफ खाना क्योंकि . . . यहोवा तेरे साथ है।”—1 इति. 28:20.
1, 2. (क) सुलैमान को क्या खास ज़िम्मेदारी मिली थी? (ख) दाविद को सुलैमान के बारे में क्या चिंता थी?
सुलैमान को एक खास ज़िम्मेदारी मिली। यहोवा ने उससे कहा कि वह यरूशलेम में एक मंदिर बनाए और उस काम की निगरानी करे। यह उस वक्त का सबसे बड़ा निर्माण काम था। इस मंदिर को ‘इतना आलीशान और सुंदर होना था कि पूरी दुनिया में उसकी शान के चर्चे हों।’ सबसे बढ़कर इस मंदिर को “सच्चे परमेश्वर यहोवा का भवन” कहलाना था।—1 इति. 22:1, 5, 9-11.
2 राजा दाविद को पूरा भरोसा था कि यहोवा इस काम में सुलैमान का साथ देगा। मगर उसे यह भी चिंता थी कि सुलैमान “अभी लड़का ही है और उसे कोई तजुरबा नहीं।” क्या वह हिम्मत रखते हुए इतना बड़ा काम अपने हाथ में लेगा? या कम उम्र और कम तजुरबे की वजह से वह पीछे हट जाएगा? इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए सुलैमान को हिम्मत रखनी थी और काम में लग जाना था।
3. सुलैमान ने हिम्मत रखने के बारे में अपने पिता से क्या सीखा?
3 सुलैमान ने हिम्मत रखने के बारे में अपने पिता दाविद से बहुत कुछ सीखा होगा। दाविद जब छोटा था तो उसने कई मौकों पर दिखाया कि वह हिम्मतवाला है। मिसाल के लिए, वह जंगली जानवरों से लड़ा जो उसके पिता की भेड़ों को उठा ले गए थे। (1 शमू. 17:34, 35) उसने उस वक्त भी हिम्मत से काम लिया जब उसने ताकतवर और खूँखार गोलियत का सामना किया। उसने एक चिकने पत्थर से और यहोवा की मदद से गोलियत को मार गिराया।—1 शमू. 17:45, 49, 50.
4. सुलैमान को हिम्मत की ज़रूरत क्यों थी?
4 दाविद में कमाल की हिम्मत थी! तभी वह सुलैमान को बढ़ावा दे सका कि वह हिम्मत से काम ले और मंदिर का निर्माण करे। (1 इतिहास 28:20 पढ़िए।) अगर सुलैमान में हिम्मत नहीं होती तो डर के मारे वह काम शुरू ही नहीं करता। लेकिन नाकामी की चिंता किए बिना उसने काम शुरू किया।
5. हमें क्यों हिम्मत की ज़रूरत है?
5 सुलैमान की तरह हमें भी यहोवा की मदद की ज़रूरत है। तभी हम हिम्मत के साथ उसका दिया काम पूरा कर पाएँगे। अब आइए कुछ ऐसे लोगों के उदाहरणों पर गौर करें जिन्होंने बीते ज़माने में हिम्मत से काम लिया था। इसके बाद, हम ध्यान देंगे कि हम कैसे हिम्मत रख सकते हैं और अपना काम पूरा कर सकते हैं।
हिम्मत रखनेवालों की मिसाल
6. यूसुफ की हिम्मत के बारे में क्या बात आपको अच्छी लगती है?
6 सबसे पहले गौर कीजिए कि यूसुफ ने कैसे हिम्मत से काम लिया। पोतीफर की पत्नी बार-बार उसे नाजायज़ यौन-संबंध रखने के लिए लुभाती थी। यूसुफ जानता था कि उसे मना करने से उसकी जान भी जा सकती है। मगर वह डरा नहीं बल्कि उसने पोतीफर की पत्नी को साफ मना कर दिया।—उत्प. 39:10, 12.
7. राहाब ने कैसे अपनी हिम्मत का सबूत दिया? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
7 राहाब एक और बढ़िया मिसाल है। जब दो इसराएली जासूस यरीहो में उसके घर आए तो राहाब ने डर के मारे उनकी मदद करने से इनकार नहीं किया। इसके बजाय, उसने यहोवा पर भरोसा रखा और उन जासूसों को छिपाया और बाद में भागने में उनकी मदद की। (यहो. 2:4, 5, 9, 12-16) राहाब को विश्वास था कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है और वह किसी-न-किसी तरीके से इसराएलियों को यह देश ज़रूर देगा। राहाब यरीहो के राजा और उसके आदमियों के डर से सही काम करने से पीछे नहीं हटी। उसने हिम्मत से काम लिया जिस वजह से वह खुद की और अपने परिवार की जान बचा पायी।—यहो. 6:22, 23.
8. यीशु की हिम्मत देखकर उसके प्रेषितों पर क्या असर हुआ?
8 यीशु के वफादार प्रेषितों में भी गज़ब की हिम्मत थी। यह उन्होंने अपने गुरु यीशु से ही सीखा था। (मत्ती 8:28-32; यूह. 2:13-17; 18:3-5) जब सदूकियों ने प्रेषितों से कहा कि वे यीशु के नाम से सिखाना बंद करें, तो प्रेषितों ने उनकी बात मानने से साफ इनकार कर दिया।—प्रेषि. 5:17, 18, 27-29.
9. दूसरा तीमुथियुस 1:7 के मुताबिक हमें हिम्मत कहाँ से मिलती है?
9 यूसुफ, राहाब, यीशु और प्रेषितों ने सही काम करने की ठान ली थी। वे इसलिए हिम्मत रख पाए क्योंकि उन्हें अपनी काबिलीयतों पर नहीं बल्कि यहोवा पर भरोसा था। हमारे सामने भी ऐसे हालात आते हैं जब हमें हिम्मत से काम लेना होता है। ऐसे में हमें खुद पर नहीं बल्कि यहोवा पर भरोसा रखना चाहिए। (2 तीमुथियुस 1:7 पढ़िए।) अब आइए देखें कि हम अपने परिवार में और मंडली में कैसे हिम्मत से काम ले सकते हैं।
हिम्मत की ज़रूरत कब पड़ती है?
10. मसीही नौजवानों को क्यों हिम्मत की ज़रूरत होती है?
10 ऐसे कई हालात उठते हैं जब मसीही नौजवानों को यहोवा की सेवा करने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है। वे सुलैमान की मिसाल से सीख सकते हैं। उसने मंदिर का काम पूरा करने के लिए कई बुद्धि-भरे फैसले किए, जो उसके लिए आसान नहीं थे। यह सच है कि आम तौर पर नौजवानों को अपने माता-पिता के मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है। मगर कुछ फैसले ऐसे होते हैं जो उन्हें खुद लेने होते हैं। (नीति. 27:11) जैसे, वे किस तरह के दोस्त चुनेंगे, कौन-सा मनोरंजन करेंगे, नैतिक तौर पर खुद को कैसे शुद्ध रखेंगे और कब बपतिस्मा लेंगे। इन मामलों में बुद्धि-भरे फैसले करने के लिए उन्हें हिम्मत चाहिए क्योंकि शैतान जो परमेश्वर को दिन-रात ताने मारता है, उनके फैसलों से खुश नहीं होगा।
11, 12. (क) मूसा ने किस तरह हिम्मत से काम लिया? (ख) नौजवान कैसे उसकी मिसाल पर चल सकते हैं?
11 नौजवानों को यह भी फैसला करना होता है कि वे अपनी ज़िंदगी में कौन-से लक्ष्य रखेंगे। कुछ देशों में उन पर ऊँची शिक्षा हासिल करने का दबाव आता है ताकि उन्हें मोटी तनख्वाहवाली नौकरी मिल सके। दूसरे देशों में जहाँ आर्थिक हालत खराब है, वहाँ नौजवानों को लगता है कि अपने परिवार की मदद करने के लिए उन्हें नौकरी करनी होगी। अगर आपके हालात भी ऐसे ही हैं, तो मूसा की मिसाल पर ध्यान दीजिए। वह फिरौन की बेटी के यहाँ पला-बढ़ा था और वह चाहता तो एक बड़ा आदमी बन सकता था और खूब पैसे कमा सकता था। ज़रा सोचिए, यह सब हासिल करने के लिए उसके मिस्री परिवार, शिक्षकों और सलाहकारों ने उस पर कितना दबाव डाला होगा! लेकिन मूसा ने हिम्मत से काम लिया और परमेश्वर के लोगों का साथ दिया। मिस्र और उसकी दौलत ठुकराने के बाद मूसा ने भरोसा रखा कि यहोवा उसे सँभालेगा। (इब्रा. 11:24-26) नतीजा, यहोवा ने उसे ढेरों आशीषें दीं और भविष्य में उसे और भी आशीषें देगा।
12 आज जब नौजवान हिम्मत रखते हुए यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखेंगे और उसके राज को पहली जगह देंगे, तो यहोवा उन्हें आशीषें देगा। वह इस बात का ध्यान रखेगा कि उनके परिवार की ज़रूरतें पूरी की जाए। पहली सदी में नौजवान तीमुथियुस ने अपनी पूरी ज़िंदगी परमेश्वर की सेवा में लगायी थी। आप भी ऐसा कर सकते हैं!a—फिलिप्पियों 2:19-22 पढ़िए।
13. एक बहन को अपना लक्ष्य पाने के लिए हिम्मत की ज़रूरत क्यों पड़ी?
13 अमरीका के ऐलाबामा राज्य में रहनेवाली एक बहन के अनुभव पर गौर कीजिए। उसे परमेश्वर की सेवा में लक्ष्य रखने के लिए हिम्मत की ज़रूरत पड़ी। वह लिखती है, “मैं बचपन से बहुत शर्मीली थी। मैं राज-घर में लोगों से बात करने से घबराती थी और प्रचार में अजनबियों से बात करने की सोच भी नहीं सकती थी।” अपने माँ-बाप और मंडली के भाई-बहनों की मदद से यह बहन पायनियर सेवा का अपना लक्ष्य हासिल कर पायी। वह कहती है, “शैतान की दुनिया ऊँची शिक्षा, नाम, शोहरत, पैसा और ऐशो-आराम की चीज़ें पाने का बढ़ावा देती है। लेकिन ज़्यादातर लोग इन्हें हासिल नहीं कर पाते, उलटा उनकी ज़िंदगी तनाव और दुखों से भर जाती है। वहीं दूसरी तरफ, यहोवा की सेवा करने से मुझे बहुत खुशी और संतुष्टि मिली है।”
14. मसीही माता-पिताओं को कब हिम्मत की ज़रूरत होती है?
14 मसीही माता-पिताओं को भी हिम्मत की ज़रूरत पड़ती है। मिसाल के लिए, आपका बॉस शायद आपको बार-बार ओवरटाइम करने के लिए कहे और वह भी उस दिन जिस दिन आपकी पारिवारिक उपासना होती है या आपको प्रचार या सभाओं में जाना होता है। अपने बॉस को मना करने के लिए आपको हिम्मत की ज़रूरत होगी। लेकिन ऐसा करके आप अपने बच्चों के लिए अच्छी मिसाल रख पाएँगे। एक और हालात पर ध्यान दीजिए। मंडली में कुछ माता-पिता शायद अपने बच्चों को कुछ करने की छूट दें जो आप अपने बच्चों को नहीं देते। ये माता-पिता शायद आपसे इसकी वजह पूछें। तब क्या आप हिम्मत से काम लेंगे और आदर के साथ उन्हें इसकी वजह समझाएँगे?
15. भजन 37:25 और इब्रानियों 13:5 से माता-पिताओं को क्या मदद मिल सकती है?
15 जब माता-पिता अपने बच्चों को परमेश्वर की सेवा में लक्ष्य रखने का बढ़ावा देते हैं और उनकी मदद करते हैं, तो वे हिम्मत से काम ले रहे होते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों को बढ़ावा नहीं देते कि वे पायनियर सेवा को अपना करियर बनाएँ, वहाँ जाकर सेवा करें जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है, बेथेल जाएँ या राज-घरों और सम्मेलन भवनों के निर्माण में हाथ बटाएँ। वे यह सोचकर डरते हैं कि जब वे बूढ़े हो जाएँगे तो उनके बच्चे उनकी देखभाल नहीं कर पाएँगे। मगर समझदार माता-पिता हिम्मत से काम लेते हैं और यहोवा के वादों पर पूरा विश्वास रखते हैं। (भजन 37:25; इब्रानियों 13:5 पढ़िए।) माता-पिता की हिम्मत और यहोवा पर उनका भरोसा देखकर उनके बच्चे भी ऐसा करना सीखेंगे।—1 शमू. 1:27, 28; 2 तीमु. 3:14, 15.
16. कुछ माता-पिताओं ने लक्ष्य रखने में कैसे अपने बच्चों की मदद की और इसका क्या फायदा हुआ?
16 अमरीका में एक माता-पिता ने यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने में अपने बच्चों की मदद की। पिता बच्चों के बारे में कहता है, “हम उन्हें बचपन से ही बताते आए हैं कि पायनियर सेवा और मंडली में सेवा करने से कितनी खुशियाँ मिलती हैं! अब यही उनका लक्ष्य बन गया है। इस वजह से वे शैतान की दुनिया से आनेवाले दबावों का सामना कर पाए हैं और अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा पर लगा पाए हैं।” एक भाई जिसके दो बच्चे हैं लिखता है, “कई माता-पिता अपने बच्चों के लिए खूब मेहनत करते हैं और उन पर बहुत पैसा खर्च करते हैं ताकि बच्चे खेल-कूद में आगे बढ़ें, अपना हुनर बढ़ाएँ और अच्छी शिक्षा लें। लेकिन कितना अच्छा होगा अगर माता-पिता बच्चों पर इसलिए मेहनत करें और साधन लगाएँ ताकि वे परमेश्वर की सेवा में लक्ष्य हासिल करें और यहोवा के साथ उनका रिश्ता मज़बूत हो। हमें इस बात की बहुत खुशी है कि हमारे बच्चों ने अपने लक्ष्य हासिल किए हैं। हमें इस बात की भी खुशी है कि उन लक्ष्यों तक पहुँचने में हम हमेशा उनके साथ रहे।” माता-पिताओ, आप यकीन रख सकते हैं कि जब आप अपने बच्चों को यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने और उन्हें हासिल करने में मदद देते हैं, तो यहोवा आपसे खुश होता है।
मंडली में हिम्मत से काम लीजिए
17. मसीही मंडली में हिम्मत रखनेवालों की मिसाल दीजिए।
17 मंडली में भी हिम्मत से काम लेना ज़रूरी होता है। जैसे, प्राचीनों को उस वक्त हिम्मत से काम लेना पड़ता है जब वे गंभीर पाप के मामले निपटाते हैं या जब उन्हें किसी ऐसे भाई या बहन की मदद करनी होती है जो गंभीर हालत में अस्पताल में है। इसके अलावा, कुछ प्राचीन जेलों में दिलचस्पी रखनेवालों के साथ बाइबल अध्ययन करते हैं और वहाँ सभाएँ रखते हैं। हमारी अविवाहित बहनों के बारे में क्या? वे भी हिम्मत से काम लेती हैं और यहोवा की सेवा करती हैं। जैसे, वे पायनियर सेवा करती हैं, वहाँ सेवा करती हैं जहाँ ज़्यादा ज़रूरत है और ‘स्थानीय योजना और निर्माण’ कार्यक्रम में हाथ बँटाती हैं। यही नहीं, वे राज प्रचारकों के लिए स्कूल में हाज़िर होती हैं और कुछ बहनों को तो गिलियड स्कूल में भी बुलाया जाता है।
18. बुज़ुर्ग बहनें किस तरह हिम्मत से काम ले सकती हैं?
18 बुज़ुर्ग बहनें मंडली के लिए एक आशीष होती हैं और हम उनसे बहुत प्यार करते हैं। यह सच है कि आज वे उतना नहीं कर पातीं जितना पहले करती थीं फिर भी उनके सामने ऐसे कई मौके आते हैं जब वे हिम्मत से काम ले सकती हैं। (तीतुस 2:3-5 पढ़िए।) जैसे, प्राचीन शायद एक बुज़ुर्ग बहन से कहे कि वह किसी जवान बहन को पहनावे के बारे में सलाह दे। बेशक वह जवान बहन को डाँटेगी नहीं, मगर प्यार से उसे समझाने की कोशिश करेगी कि किस तरह उसके पहनावे से दूसरों पर अच्छा या बुरा असर हो सकता है। (1 तीमु. 2:9, 10) इस तरह जब बुज़ुर्ग बहन प्यार से दूसरों की मदद करती हैं, तो मंडली मज़बूत होती है।
19. (क) बपतिस्मा पाए भाइयों को हिम्मत पाने के लिए क्या करना चाहिए? (ख) फिलिप्पियों 2:13 और 4:13 से कैसे भाइयों को हिम्मत से काम लेने में मदद मिलती है?
19 बपतिस्मा पाए हुए भाइयों को भी हिम्मत रखनी चाहिए और काम में लग जाना चाहिए। जब वे मंडली में ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो इससे मंडली को बहुत फायदा होता है। (1 तीमु. 3:1) मगर कुछ भाई ऐसा करने से पीछे हटते हैं। हो सकता है, एक भाई ने बीते समय में कुछ गलतियाँ की हों और इस वजह से उसे लगे कि वह सहायक सेवक या प्राचीन बनने के काबिल नहीं या एक भाई को लगे कि वह ज़िम्मेदारियाँ नहीं उठा पाएगा। अगर आप ऐसा महसूस करते हैं तो यकीन रखिए, यहोवा हिम्मत से काम लेने में आपकी मदद करेगा। (फिलिप्पियों 2:13; 4:13 पढ़िए।) मूसा की मिसाल याद कीजिए। उसे भी लगा था कि वह यहोवा से मिली ज़िम्मेदारी पूरी नहीं कर पाएगा। (निर्ग. 3:11) लेकिन यहोवा ने उसकी मदद की और वह हिम्मत से उसका काम पूरा कर पाया। ऐसी हिम्मत पाने के लिए एक बपतिस्मा-शुदा भाई को क्या करना चाहिए? उसे यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और हर दिन बाइबल पढ़नी चाहिए। उसे बाइबल में दी उन लोगों की मिसाल पर मनन करना चाहिए जिन्होंने हिम्मत से काम लिया था। उसे प्राचीनों से गुज़ारिश करनी चाहिए कि वे उसे प्रशिक्षण दें। यही नहीं, उसे मंडली में कोई भी काम करने के लिए आगे आना चाहिए। हम सभी बपतिस्मा पाए भाइयों को बढ़ावा देते हैं कि वे हिम्मत से काम लें और मंडली की खातिर मेहनत करें।
“यहोवा तेरे साथ है”
20, 21. (क) दाविद ने सुलैमान को क्या यकीन दिलाया? (ख) हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?
20 राजा दाविद ने सुलैमान को यकीन दिलाया कि जब तक मंदिर बनाने का काम पूरा नहीं हो जाता तब तक यहोवा उसके साथ रहेगा। (1 इति. 28:20) सुलैमान ने इस बात पर ज़रूर मनन किया होगा। कम उम्र और कम तजुरबे की वजह से वह इस काम से पीछे नहीं हटा। इसके बजाय, उसने हिम्मत रखी और यहोवा की मदद से उस आलीशान मंदिर को साढ़े सात साल में खड़ा किया।
21 जिस तरह यहोवा ने सुलैमान की मदद की, उसी तरह वह हमारी भी मदद करेगा ताकि हम हिम्मत रख सकें और परिवार और मंडली में अपना काम पूरा कर सकें। (यशा. 41:10, 13) अगर हम हिम्मत के साथ यहोवा की सेवा करें, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि वह हमें आज और भविष्य में आशीषें देगा। इसलिए आइए हिम्मत रखें और काम में लग जाएँ।
a लक्ष्य रखने के बारे में इस लेख में कुछ सुझाव दिए हैं, “आध्यात्मिक लक्ष्य रखने के ज़रिए अपने सिरजनहार की महिमा कीजिए।” यह लेख 15 जुलाई, 2004 की प्रहरीदुर्ग में छपा था।