परमेश्वर की सोच रखने का क्या मतलब है?
“परमेश्वर तुम्हें ऐसी आशीष दे कि तुम्हारी सोच और तुम्हारा नज़रिया मसीह यीशु जैसा हो।”—रोमि. 15:5.
1, 2. (क) कुछ भाई-बहनों ने परमेश्वर की सोच रखने के बारे में क्या कहा? (ख) इस लेख में हम किन ज़रूरी सवालों पर चर्चा करेंगे?
कनाडा में रहनेवाली एक बहन कहती है, “मैंने देखा है कि परमेश्वर की सोच रखने से मैं ज़्यादा खुश रहती हूँ और मुश्किलों का अच्छी तरह सामना कर पाती हूँ।” ब्राज़ील का एक भाई कहता है, “मेरी शादी को 23 साल हो चुके हैं। मैं और मेरी पत्नी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी से बहुत खुश हैं। जानते हैं क्यों? क्योंकि हमने परमेश्वर की सोच रखने की पूरी कोशिश की है।” फिलीपींस का रहनेवाला एक भाई कहता है, “परमेश्वर के जैसी सोच रखने से मुझे मन की शांति मिलती है और मैं अलग-अलग भाई-बहनों के साथ प्यार से रह पाता हूँ।”
2 इन बातों से साफ पता चलता है कि परमेश्वर की सोच रखने से कई फायदे होते हैं। लेकिन हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारी सोच परमेश्वर की सोच से और भी मेल खाए और हमें भी इन भाई-बहनों की तरह फायदा हो? हमें सबसे पहले समझना होगा कि बाइबल, परमेश्वर की सोच रखनेवालों या पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलनेवालों के बारे में क्या बताती है। इस लेख में हमें इन तीन ज़रूरी सवालों के जवाब मिलेंगे: (1) परमेश्वर की सोच रखनेवाला इंसान किसे कहते हैं? (2) परमेश्वर की सोच रखने में कौन-सी मिसालें हमारी मदद कर सकती हैं? और (3) “मसीह के जैसी सोच” रखने से कैसे हमारी सोच परमेश्वर जैसी बन सकती है?
परमेश्वर की सोच रखनेवाला इंसान किसे कहते हैं?
3. बाइबल के मुताबिक परमेश्वर की सोच रखनेवाले में और इंसानी सोच रखनेवाले में क्या फर्क होता है?
3 प्रेषित पौलुस ने समझाया कि ‘परमेश्वर की सोच रखनेवाले’ और “इंसानी सोच रखनेवाले” में क्या फर्क होता है। (1 कुरिंथियों 2:14-16 पढ़िए।) इंसानी सोच रखनेवाला “परमेश्वर की पवित्र शक्ति की बातें स्वीकार नहीं करता, क्योंकि ये उसकी नज़र में मूर्खता की बातें हैं। वह इन बातों को जान नहीं सकता।” मगर परमेश्वर की सोच रखनेवाला इंसान “सबकुछ जाँच-परख सकता है” और वह “मसीह के जैसी सोच” रखता है। पौलुस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे परमेश्वर की सोच रखनेवाले बनें। इंसानी सोच रखनेवाला और किस मायने में परमेश्वर की सोच रखनेवाले से अलग होता है?
4, 5. इंसानी सोच रखनेवाले को हम कैसे पहचान सकते हैं?
4 इंसानी सोच रखनेवाले में दुनिया की फितरत होती है। वह सिर्फ अपनी इच्छाएँ पूरी करने की सोचता रहता है। पौलुस ने कहा कि “यह फितरत . . . आज्ञा न माननेवालों पर असर करती है।” (इफि. 2:2) इसलिए इंसानी सोच रखनेवाला दुनिया के लोगों की देखा-देखी वही करता है जो उसे ठीक लगता है। उसे परमेश्वर के स्तरों की कोई परवाह नहीं होती। उसे सबसे ज़्यादा अपने रुतबे और धन-दौलत से प्यार होता है। वह हमेशा अपने हक के बारे में सोचता है।
5 इंसानी सोच रखनेवाला उन कामों में लगा रहता है जिसे बाइबल “शरीर के काम” कहती है। (गला. 5:19-21) पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखी अपनी पहली चिट्ठी में बताया कि ऐसा इंसान और क्या-क्या काम करता है। वह झगड़ों में पक्ष लेता है, लोगों में फूट डालता है, विद्रोह की आग भड़काता है, दूसरों को अदालत में घसीटता है, मुखियापन का आदर नहीं करता और खाने-पीने को हद-से-ज़्यादा अहमियत देता है। इतना ही नहीं, गलत काम के लिए लुभाए जाने पर वह बड़ी आसानी से उसमें फँस जाता है। (नीति. 7:21, 22) यहूदा ने लिखा कि ऐसे इंसान में यहोवा की पवित्र शक्ति काम नहीं करती।—यहू. 18, 19.
6. परमेश्वर की सोच रखनेवाले की क्या पहचान है?
6 इंसानी सोच रखनेवाले को परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते की कोई फिक्र नहीं होती जबकि परमेश्वर की सोच रखनेवाले को होती है। वह यह जानने की कोशिश करता है कि परमेश्वर क्या सोचता है और मामलों को किस नज़र से देखता है। वह परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलता है और यहोवा की मिसाल पर चलने में मेहनत करता है। (इफि. 5:1) उसके लिए परमेश्वर एक असल शख्स होता है। वह अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में यहोवा के स्तरों पर चलता है। (भज. 119:33; 143:10) वह ‘शरीर के कामों’ में नहीं लगा रहता बल्कि अपने अंदर “पवित्र शक्ति का फल” बढ़ाता है।—गला. 5:22, 23.
7. परमेश्वर की सोच रखनेवालों के बारे में बाइबल क्या कहती है?
7 यीशु ने कहा कि परमेश्वर की सोच रखनेवाले खुश रहते हैं। मत्ती 5:3 में हम पढ़ते हैं, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है क्योंकि स्वर्ग का राज उन्हीं का है।” रोमियों 8:6 समझाता है कि परमेश्वर की सोच रखने से हमें क्या फायदे होते हैं। वहाँ लिखा है, “शरीर की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब मौत है, मगर पवित्र शक्ति की बातों पर ध्यान लगाने का मतलब जीवन और शांति है।” जी हाँ, परमेश्वर की सोच रखने से हम परमेश्वर के साथ शांति बनाए रख पाते हैं, हमें मन की शांति मिलती है और हमेशा की ज़िंदगी की आशा भी मिलती है।
8. हमारे लिए परमेश्वर की सोच बनाए रखना क्यों आसान नहीं?
8 हम बहुत खतरनाक दुनिया में जी रहे हैं और ऐसे लोगों से घिरे रहते हैं जिनकी सोच परमेश्वर की सोच से बिलकुल मेल नहीं खाती। इसलिए अपनी सोच की हिफाज़त करने में हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। अगर हम अपने मन में यहोवा के विचार नहीं भरेंगे, तो यह दुनिया हमारे अंदर अपनी सोच और रवैए भर देगी। इस खतरे से हम कैसे बच सकते हैं? हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारी सोच परमेश्वर की सोच से और भी मेल खाए?
अच्छी मिसालों से सीखिए
9. (क) हम किस तरह परमेश्वर की सोच रखनेवाले इंसान बन सकते हैं? (ख) हम किन अच्छी मिसालों पर गौर करेंगे?
9 जिस तरह एक बच्चा अपने माता-पिता से सीखता है और उनकी अच्छी मिसाल पर चलता है, उसी तरह हमें भी उन लोगों से सीखना चाहिए और उनकी मिसाल पर चलना चाहिए जिनका यहोवा के साथ मज़बूत रिश्ता है। इस तरह हम परमेश्वर की सोच रखनेवाले इंसान बनेंगे। वहीं दूसरी तरफ, शरीर पर मन लगानेवालों की बुरी मिसालों से हम सीखते हैं कि हमें किन बातों से दूर रहना है। (1 कुरिं. 3:1-4) बाइबल में अच्छी-बुरी दोनों मिसालें दी गयी हैं। आइए हम याकूब, मरियम और यीशु की अच्छी मिसालों पर ध्यान दें और देखें कि हम उनसे क्या सीखते हैं।
10. याकूब ने कैसे दिखाया कि वह परमेश्वर की सोच रखता है?
10 याकूब की मिसाल पर ध्यान दीजिए। उसकी ज़िंदगी में कई मुश्किलें आयीं जैसे हमारी ज़िंदगी में आती हैं। उसका अपना भाई एसाव उसकी जान के पीछे पड़ा था। दूसरी तरफ, उसके ससुर ने उसे कई बार धोखा दिया था। मगर याकूब को उस वादे पर पूरा विश्वास था जो यहोवा ने अब्राहम से किया था। वह जानता था कि इस वादे के पूरा होने में उसके परिवार की अहम भूमिका होगी, इसलिए उसने अपने परिवार की देखभाल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। (उत्प. 28:10-15) भले ही याकूब ऐसे लोगों से घिरा था जिनमें इंसानी सोच थी, फिर भी वह यहोवा के वादों को नहीं भूला। मिसाल के लिए, जब उसे लगा कि उसकी जान खतरे में है तो उसने यहोवा से बिनती की कि वह उसे एसाव से बचाए। उसने प्रार्थना की, “तूने मुझसे कहा था, ‘मैं ज़रूर तेरा भला करूँगा और तेरे वंश को इतना बढ़ाऊँगा कि वह समुंदर किनारे की बालू के किनकों जैसा अनगिनत हो जाएगा।’” (उत्प. 32:6-12) इसमें कोई शक नहीं कि याकूब को यहोवा के वादों पर मज़बूत विश्वास था और यह उसने अपने जीने के तरीके से दिखाया।
11. किन बातों से पता चलता है कि मरियम परमेश्वर की सोच रखती थी?
11 अब मरियम की मिसाल पर गौर कीजिए। वह परमेश्वर की सोच रखनेवाली औरत थी। इस वजह से यहोवा ने उसे यीशु की माँ बनने के लिए चुना। ज़रा मरियम के उन शब्दों पर ध्यान दीजिए जो उसने तब कहे थे जब वह अपने रिश्तेदार जकरयाह और इलीशिबा से मिलने गयी। (लूका 1:46-55 पढ़िए।) मरियम की बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि उसे परमेश्वर के वचन से प्यार था और वह इब्रानी शास्त्र अच्छी तरह जानती थी। (उत्प. 30:13; 1 शमू. 2:1-10; मला. 3:12) इस बात पर भी ध्यान दीजिए कि शादी के बाद, मरियम और यूसुफ ने तब तक यौन-संबंध नहीं रखे जब तक कि यीशु पैदा नहीं हुआ। यह दिखाता है कि उनके लिए परमेश्वर की मरज़ी पूरी करना अपनी इच्छाओं से ज़्यादा अहमियत रखता था। (मत्ती 1:25) इसके अलावा, जब यीशु बड़ा हो रहा था तो उसके साथ जो-जो हुआ और उसने जो बुद्धि-भरी बातें कहीं, उन पर मरियम ने ध्यान दिया और “ये सारी बातें अपने दिल में संजोकर रखीं।” (लूका 2:51) मरियम की मिसाल दिखाती है कि उसे मसीहा के बारे में किए गए वादों में गहरी दिलचस्पी थी। क्या हम उसकी मिसाल पर चलेंगे? क्या हम परमेश्वर की मरज़ी को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देंगे?
12. (क) यीशु किस मायने में हू-ब-हू अपने पिता जैसा था? (ख) हम कैसे यीशु की मिसाल पर चल सकते हैं? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
12 परमेश्वर की सोच रखने में यीशु सबसे बढ़िया मिसाल है। धरती पर अपनी ज़िंदगी और सेवा के दौरान उसने दिखाया कि वह अपने पिता की मिसाल पर चलना चाहता था। यीशु अपनी सोच, भावनाओं और कामों में हू-ब-हू अपने पिता जैसा था। उसने परमेश्वर की मरज़ी पूरी की और उसके दिल में उसके स्तरों के लिए गहरा आदर था। (यूह. 8:29; 14:9; 15:10) मिसाल के लिए, जब हम यशायाह में यहोवा की करुणा के बारे में पढ़ते हैं और फिर मरकुस में यीशु की करुणा के बारे में पढ़ते हैं, तो साफ पता चलता है कि यीशु वाकई अपने पिता जैसा था। (यशायाह 63:9; मरकुस 6:34 पढ़िए।) क्या यीशु की तरह हमारे दिल में भी ज़रूरतमंद लोगों के लिए करुणा है और हम उनकी मदद करना चाहते हैं? क्या उसकी तरह हमारा ध्यान भी प्रचार करने और लोगों को सिखाने में लगा हुआ है? (लूका 4:43) परमेश्वर की सोच रखनेवाले लोग दूसरों पर करुणा करते हैं और उनकी मदद करते हैं।
13, 14. (क) आज परमेश्वर की सोच रखनेवाले भाई-बहनों से हम क्या सीखते हैं? (ख) एक उदाहरण दीजिए।
13 आज परमेश्वर की सोच रखनेवाले कई भाई-बहन मसीह की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं। आपने गौर किया होगा कि वे जोश के साथ प्रचार करते हैं, मेहमान-नवाज़ी करते हैं और करुणा से पेश आते हैं। हालाँकि वे परिपूर्ण नहीं, फिर भी अपने अंदर अच्छे गुण बढ़ाने में मेहनत करते हैं और वही करते हैं जो यहोवा उनसे चाहता है। ब्राज़ील की रहनेवाली एक बहन रेचल कहती है, “एक वक्त था जब मैं इस दुनिया के फैशन के पीछे पागल थी। मेरा पहनावा सलीकेदार नहीं था। लेकिन जब मैंने सच्चाई सीखी तो मैंने खूब मेहनत की कि मेरी सोच यहोवा की सोच से मेल खाए। ऐसा करना आसान नहीं था, लेकिन आज मैं ज़्यादा खुश हूँ और मुझे जीने का एक मकसद मिला है।”
14 फिलीपींस की रहनेवाली रेलीन नाम की एक बहन को एक दूसरी मुश्किल का सामना करना पड़ा। वह सच्चाई में तो थी मगर उसका पूरा ध्यान ऊँची शिक्षा और अच्छी नौकरी पाने में लगा था। वह धीरे-धीरे भूल गयी कि उसने परमेश्वर की सेवा में क्या लक्ष्य रखे थे। वह कहती है, “मेरे पास अच्छी नौकरी थी फिर भी मुझे लगने लगा कि किसी चीज़ की कमी है।” फिर रेलीन ने अपनी सोच बदली और यहोवा की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दी। अब उसे मत्ती 6:33, 34 में बताए यहोवा के वादे पर पूरा भरोसा है। वह कहती है, “मुझे पूरा यकीन है कि यहोवा मेरी देखभाल करेगा!” शायद आपकी मंडली में भी ऐसे भाई-बहन हों, जो मसीह की मिसाल पर चलने में मेहनत करते हैं। उन्हें देखकर हमें भी उनके विश्वास की मिसाल पर चलने का बढ़ावा मिलता है।—1 कुरिं. 11:1; 2 थिस्स. 3:7.
“मसीह के जैसी सोच” रखिए
15, 16. (क) मसीह के जैसा बनने के लिए क्या करना ज़रूरी है? (ख) हम क्या कर सकते हैं ताकि हम “मसीह के जैसी सोच” रख पाएँ?
15 हम कैसे मसीह की मिसाल पर चल सकते हैं? पहला कुरिंथियों 2:16 समझाता है कि इसके लिए “मसीह के जैसी सोच” रखना ज़रूरी है। इसके अलावा, रोमियों 15:5 बढ़ावा देता है, “तुम्हारी सोच और तुम्हारा नज़रिया मसीह यीशु जैसा हो।” तो फिर मसीह के जैसा बनने के लिए ज़रूरी है कि हम उसकी सोच, भावनाओं और उसके कामों के बारे में सीखें। यीशु के लिए परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था। तो फिर हम जितना ज़्यादा यीशु के जैसा बनने की कोशिश करेंगे, उतना ज़्यादा हम यहोवा के जैसा बन पाएँगे। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु के जैसी सोच रखना सीखें।
16 हम यीशु की सोच कैसे जान सकते हैं? यीशु के चेलों ने उसके चमत्कार देखे, उसके उपदेश सुनें, उन्होंने गौर किया कि यीशु किस तरह अलग-अलग लोगों के साथ पेश आया और उसने किस तरह परमेश्वर की सोच के मुताबिक काम किया। इसलिए वे कह सके, “हम उन सभी कामों के गवाह हैं जो उसने . . . किए थे।” (प्रेषि. 10:39) आज हम यीशु को नहीं देख सकते लेकिन हमारे पास खुशखबरी की किताबें हैं। हम मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना की किताबें पढ़कर और उन पर मनन करके यीशु की सोच को और अच्छी तरह जान सकते हैं। नतीजा, हम ‘उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चल’ पाएँगे और “उसके जैसी सोच और नज़रिया” रख पाएँगे।—1 पत. 2:21; 4:1.
17. मसीह के जैसी सोच रखने से हमें क्या फायदा होता है?
17 मसीह के जैसी सोच रखने से हमें क्या फायदा होगा? जिस तरह पौष्टिक खाना शरीर को ताकत और मज़बूती देता है, उसी तरह मसीह की सोच रखने से परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता है। फिर किसी भी हालात का सामना करते वक्त हम यह जान पाते हैं कि अगर मसीह हमारी जगह होता तो क्या करता। इस तरह हम ऐसे फैसले कर पाते हैं जिनसे यहोवा खुश होता है और हमारा ज़मीर साफ बना रहता है। वाकई, “प्रभु यीशु मसीह को पहन” लेने की हमारे पास ढेरों वजह हैं!—रोमि. 13:14.
18. इस लेख से आपने परमेश्वर की सोच रखने के बारे में क्या सीखा?
18 इस लेख से हमने सीखा कि परमेश्वर की सोच रखने का क्या मतलब है। हमने उन लोगों की बढ़िया मिसालों पर गौर किया जो पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलते थे। हमने यह भी सीखा कि “मसीह के जैसी सोच” रखने से हमारी सोच परमेश्वर के जैसी बन सकती है और उसके साथ हमारा रिश्ता मज़बूत हो सकता है। मगर हमें कुछ और भी बातें सीखने की ज़रूरत है। जैसे, हम कैसे जान सकते हैं कि यहोवा के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत है? हम कैसे इस रिश्ते को और भी मज़बूत कर सकते हैं? इसका हमारी ज़िंदगी पर क्या असर होता है? इस बारे में हम अगले लेख में सीखेंगे।