सच्ची आज़ादी पाने का रास्ता
“अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे।”—यूह. 8:36.
1, 2. (क) लोग आज़ादी पाने के लिए क्या करते हैं? (ख) इसका क्या नतीजा हुआ है?
आज दुनिया के कई देशों में लोग समान अधिकार और आज़ादी पाने की बातें करते हैं। लोग भेदभाव, अत्याचार और गरीबी से छुटकारा पाना चाहते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि उनके पास पूरी आज़ादी होनी चाहिए कि वे खुलकर अपने विचार बताएँ, जो चाहे वह करें और जैसे चाहे वैसे जीएँ। जी हाँ, हर कहीं लोगों को आज़ादी चाहिए।
2 इस आज़ादी को पाने के लिए वे धरने पर बैठते हैं या आंदोलन चलाकर सरकार को बदलने की कोशिश करते हैं। लेकिन ये सब करने से क्या उन्हें वाकई आज़ादी मिलती है? नहीं! इसके बजाय, वे अपने ऊपर और भी तकलीफें ले आते हैं और कई लोगों की जानें भी चली जाती हैं। राजा सुलैमान ने बिलकुल सही कहा था, “इंसान, इंसान पर हुक्म चलाकर सिर्फ तकलीफें लाया है।”—सभो. 8:9.
3. सच्ची खुशी और संतुष्टि पाने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
3 बाइबल बताती है कि हम सच्ची खुशी और संतुष्टि कैसे पा सकते हैं। चेले याकूब ने कहा, “जो इंसान आज़ादी दिलानेवाले खरे कानून को करीब से जाँचता है और उसमें लगा रहता है, . . . वह खुशी पाता है।” (याकू. 1:25) खरा कानून यहोवा से मिलता है और वह जानता है कि हमें किस बात से सच्ची खुशी और संतुष्टि मिलेगी। उसने आदम और हव्वा को सच्ची आज़ादी और ऐसी हर चीज़ दी थी जिससे उन्हें खुशी मिलती।
जब इंसान सचमुच में आज़ाद थे
4. आदम-हव्वा के पास किस तरह की आज़ादी थी? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
4 उत्पत्ति अध्याय 1 और 2 से पता चलता है कि आदम-हव्वा के पास ऐसी आज़ादी थी, जिसकी आज हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। उनके पास सबकुछ था, किसी चीज़ की कमी नहीं थी। उन्हें किसी बात का डर नहीं था। वे उन चिंताओं से मुक्त थे जो आज खाने-पीने, नौकरी, बीमारी और मौत को लेकर होती हैं। (उत्प. 1:27-29; 2:8, 9, 15) लेकिन क्या इसका मतलब यह था कि आदम-हव्वा को कुछ भी करने की खुली छूट थी? आइए देखें।
5. आज़ादी से फायदा पाने के लिए क्या ज़रूरी है?
5 कई लोगों का मानना है कि अगर एक इंसान को अंजाम की परवाह किए बिना कुछ भी करने की छूट हो, तो उसके पास सच्ची आज़ादी है। द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है कि आज़ादी “वह काबिलीयत है जिससे हम फैसले कर पाते हैं और उन्हें अंजाम दे पाते हैं।” इनसाइक्लोपीडिया यह भी कहती है कि जब एक सरकार लोगों पर गैर-ज़रूरी और हद-से-ज़्यादा सीमाएँ नहीं ठहराती, तो लोग आज़ाद महसूस करते हैं। इससे पता चलता है कि कुछ हद तक सीमाएँ होना ज़रूरी है, तभी लोगों को उस आज़ादी से फायदा होगा। लेकिन इंसानों के लिए कौन-सी सीमाएँ ज़रूरी और सही हैं और इन्हें ठहराने का हक किसे है?
6. (क) यहोवा के पास क्यों पूरी आज़ादी है? (ख) इंसान के पास किस तरह की आज़ादी है और क्यों?
6 हमें याद रखना चाहिए कि सिर्फ यहोवा के पास पूरी आज़ादी है। वह क्यों? क्योंकि उसी ने सबकुछ बनाया है और वह पूरे जहान का मालिक है। (1 तीमु. 1:17; प्रका. 4:11) राजा दाविद ने बड़े ही खूबसूरत शब्दों में यहोवा के इस ओहदे के बारे में बताया। (1 इतिहास 29:11, 12 पढ़िए।) वहीं दूसरी तरफ, स्वर्ग और धरती के प्राणियों के पास पूरी आज़ादी नहीं। उनकी आज़ादी की कुछ सीमाएँ हैं। यहोवा ने ये सीमाएँ क्यों ठहरायीं? ताकि इंसान यह जानें कि सिर्फ यहोवा को ही तय करने का हक है कि कौन-सी सीमाएँ सही और ज़रूरी हैं। देखा जाए तो यहोवा ने शुरू से ही इंसानों के लिए कुछ सीमाएँ ठहरायी हैं।
7. ऐसे कुछ ज़रूरी काम क्या हैं जिन्हें करने से हमें खुशी मिलती है?
7 हालाँकि आदम और हव्वा के पास काफी हद तक आज़ादी थी, मगर उनकी आज़ादी की सीमाएँ थीं। कुछ सीमाएँ उनके लिए स्वाभाविक थीं जैसे, साँस लेना, खाना खाना और नींद लेना। क्या इसका मतलब था कि वे आज़ाद नहीं थे? जी नहीं! यहोवा ने इस बात का ध्यान रखा कि इन कामों में भी उन्हें खुशी और संतुष्टि मिले। (भज. 104:14, 15; सभो. 3:12, 13) देखा जाए तो हम सबको ताज़ी हवा में साँस लेना, अपना मनपसंद खाना खाना और रात को अच्छी नींद लेना पसंद है। हम नहीं सोचते कि ये ज़रूरी काम हम पर कोई बंदिश है बल्कि हम इन्हें खुशी-खुशी करते हैं। बेशक आदम और हव्वा ने भी ऐसा ही महसूस किया होगा।
8. यहोवा ने आदम और हव्वा को कौन-सी खास आज्ञा दी और किस मकसद से?
8 यहोवा ने आदम-हव्वा को एक खास आज्ञा दी। उसने कहा कि वे बच्चे पैदा करें, धरती को आबाद करें और उसकी देखभाल करें। (उत्प. 1:28) क्या इस आज्ञा से उनकी आज़ादी छिन गयी? बिलकुल नहीं! उलटा, उन्हें मौका मिला कि वे पूरी धरती को फिरदौस बनाएँ और अपने परिपूर्ण बच्चों के साथ हमेशा-हमेशा तक जीएँ। यही परमेश्वर का मकसद था। (यशा. 45:18) आज, कुछ लोग अविवाहित रहने या शादी के बाद बच्चे न करने का फैसला करते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे यहोवा की आज्ञा तोड़ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग शादी करते हैं और बच्चे पैदा करते हैं यह जानते हुए भी कि इससे ज़िंदगी में मुश्किलें आ सकती हैं। (1 कुरिं. 7:36-38) वे ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि वे उम्मीद करते हैं कि इससे उन्हें खुशी और संतुष्टि मिलेगी। (भज. 127:3) अगर आदम और हव्वा ने यहोवा से बगावत न की होती, तो वे अपने परिवार के साथ हमेशा-हमेशा तक खुश रहते।
सच्ची आज़ादी कैसे छिन गयी?
9. उत्पत्ति 2:17 में दी आज्ञा मानना क्यों मुश्किल नहीं था?
9 यहोवा ने आदम और हव्वा को एक और आज्ञा दी और उन्हें साफ-साफ बताया कि इसे तोड़ने का क्या अंजाम होगा। उसने कहा, “अच्छे-बुरे के ज्ञान का जो पेड़ है उसका फल तू हरगिज़ न खाना, क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाएगा उस दिन ज़रूर मर जाएगा।” (उत्प. 2:17) क्या इस आज्ञा को मानना हद-से-ज़्यादा मुश्किल था? क्या इससे आदम और हव्वा की आज़ादी छिन जाती? बिलकुल नहीं! दरअसल बाइबल के बहुत-से विद्वानों का मानना है कि परमेश्वर की यह आज्ञा सही और उनके फायदे के लिए थी। एक विद्वान कहता है कि इस आज्ञा से हम सीखते हैं कि “सिर्फ परमेश्वर ही जानता है कि इंसानों के लिए . . . क्या अच्छा है और सिर्फ वही जानता है कि उनके लिए . . . क्या अच्छा नहीं है। अगर इंसान चाहते हैं कि उनके साथ ‘अच्छा’ हो, तो उन्हें परमेश्वर पर भरोसा करना होगा और उसकी आज्ञाएँ माननी होंगी। लेकिन अगर वे उसकी आज्ञा नहीं मानते, तो फिर उन्हें खुद तय करना होगा कि उनके लिए क्या अच्छा है . . . और क्या नहीं।” मगर ऐसा करना इंसान के बस के बाहर है।
10. अपने फैसले खुद करने की आज़ादी का क्या मतलब नहीं है और क्यों?
10 कुछ लोग शायद सोचें कि यहोवा ने आदम को अपनी इच्छा के मुताबिक चलने की आज़ादी नहीं दी। दरअसल, वे इस बात को समझने से चूक जाते हैं कि भले ही हमें यह चुनने की आज़ादी है कि हम कौन-सा रास्ता अपनाएँगे, लेकिन हमें यह तय करने का हक नहीं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या। आदम और हव्वा के पास यह चुनने की आज़ादी थी कि वे परमेश्वर की आज्ञा मानेंगे या नहीं। लेकिन सिर्फ यहोवा को यह तय करने का हक था कि उनके लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा। “अच्छे-बुरे के ज्ञान का पेड़” इसी बात की निशानी थी और यह बात आदम-हव्वा अच्छी तरह जानते थे। (उत्प. 2:9) हम हर बार नहीं जान सकते कि हमारे फैसले का क्या नतीजा निकलेगा न ही यह जान सकते हैं कि वह हमेशा अच्छा ही होगा। इसलिए अकसर देखा गया है कि लोग अच्छे इरादे से फैसले लेते हैं, लेकिन नतीजा बुरा होता है। (नीति. 14:12) जी हाँ, इंसान की कुछ सीमाएँ होती हैं। यहोवा ने आदम और हव्वा को फल न खाने की आज्ञा देकर एक अहम बात सिखायी। वह यह कि सच्ची आज़ादी यहोवा की आज्ञा मानने से ही मिलती है। तो फिर, आदम और हव्वा ने क्या करने का फैसला किया?
11, 12. आदम और हव्वा के फैसले का अंजाम क्यों बुरा साबित हुआ? इसे समझाने के लिए एक मिसाल दीजिए।
11 दुख की बात है कि उन्होंने यहोवा की आज्ञा न मानने का फैसला किया। हव्वा ने शैतान की बात मानी जिसने दावा किया था, “तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी, तुम परमेश्वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।” (उत्प. 3:5) क्या आदम और हव्वा के फैसले से उन्हें वह आज़ादी मिली जिसका दावा शैतान ने किया था? नहीं! इसके बजाय, उन्हें पता चल गया कि यहोवा के निर्देश ठुकराने के कितने भयानक अंजाम होते हैं। (उत्प. 3:16-19) सच तो यह है कि यहोवा ने इंसानों को अपने लिए अच्छे-बुरे का फैसला करने की आज़ादी नहीं दी थी।—नीतिवचन 20:24; यिर्मयाह 10:23 पढ़िए।
12 इसे समझने के लिए एक हवाई-जहाज़ के पायलट की मिसाल लीजिए। अपनी मंज़िल तक सही-सलामत पहुँचने के लिए पायलट को पहले से ठहराए रास्ते से जाना होता है और जहाज़ में दिशा दिखानेवाले उपकरणों का इस्तेमाल करना होता है। उसे कंट्रोल टावर से भी बातचीत करते रहना होता है। लेकिन अगर पायलट इन निर्देशों को नहीं मानता और जहाज़ को अपनी मरज़ी से उड़ाता है, तो इससे दुर्घटना हो सकती है। उस पायलट की तरह आदम और हव्वा भी अपने तरीके से काम करना चाहते थे। उन्होंने यहोवा का मार्गदर्शन ठुकरा दिया। इसका बहुत बुरा अंजाम हुआ! वे पाप और मौत के शिकार हुए और उन्होंने अपने बच्चों को भी विरासत में पाप और मौत दी। (रोमि. 5:12) अपने लिए अच्छे और बुरे का फैसला करके आदम और हव्वा ने सच्ची आज़ादी खो दी।
सच्ची आज़ादी कैसे मिलेगी?
13, 14. हम सच्ची आज़ादी कैसे पा सकते हैं?
13 कुछ लोग सोचते हैं कि अगर हमारी आज़ादी की कोई सीमा न हो, तो हम ज़्यादा खुश रहेंगे। लेकिन क्या हम सच में खुश रहेंगे? हालाँकि आज़ादी के कई फायदे होते हैं, लेकिन अगर सबको खुली छूट दी जाए और किसी पर कोई बंदिश न हो, तो सोचिए यह दुनिया कैसी होगी? द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया कहती है कि हर संगठित समाज के नियम-कानून बहुत पेचीदा होते हैं। ये नियम इसलिए बनाए जाते हैं ताकि लोगों की आज़ादी छिन न जाए साथ ही, वे उस आज़ादी का गलत फायदा न उठाएँ। ऐसा करना हमेशा आसान नहीं होता, तभी तो इन नियमों को समझने और इन्हें लागू करने के लिए ढेरों वकीलों और जजों की ज़रूरत पड़ती है।
14 इसके उलट यीशु मसीह ने समझाया कि हम सच्ची आज़ादी कैसे पा सकते हैं। उसने कहा, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।” (यूह. 8:31, 32) तो सच्ची आज़ादी पाने के लिए हमें दो कदम उठाने होंगे। पहला, यीशु ने जो सच्चाई सिखायी थी, हमें उसे कबूल करना होगा। दूसरा, हमें उसका चेला बनना होगा। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हमें सच्ची आज़ादी मिलेगी। लेकिन हमें किस बात से आज़ादी मिलेगी? यीशु ने कहा, “हर कोई जो पाप करता है वह पाप का गुलाम है। . . . अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे।”—यूह. 8:34, 36.
15. यीशु ने जिस आज़ादी का वादा किया, वह किस मायने में हमें “सचमुच आज़ाद” करेगी?
15 यीशु ने जिस आज़ादी का वादा किया, वह उस आज़ादी से कहीं बेहतर है जिसके लिए आज लोग तरसते हैं। जब यीशु ने कहा, “अगर बेटा तुम्हें आज़ाद करे, तो तुम सचमुच आज़ाद हो जाओगे,” तब वह पाप की गुलामी से आज़ाद होने की बात कर रहा था। इस गुलामी से बदतर और कोई गुलामी नहीं! हम किस मायने में पाप के गुलाम हैं? पाप हमसे बुरे काम करवाता है। इतना ही नहीं, यह हमें सही काम करने से रोकता है और अगर हम जी-जान से कुछ अच्छा करना चाहते हैं, तो वह भी करने नहीं देता। इससे हमें निराशा, दर्द, तकलीफ और मौत मिलती है। (रोमि. 6:23) प्रेषित पौलुस भी अच्छी तरह जानता था कि एक इंसान पाप का गुलाम होने से कितना लाचार हो जाता है। (रोमियों 7:21-25 पढ़िए।) जब पाप को पूरी तरह से मिटाया जाएगा तब हम सही मायने में उस आज़ादी का मज़ा लेंगे, जो एक वक्त पर आदम और हव्वा के पास थी।
16. हम कब और कैसे सचमुच में आज़ाद होंगे?
16 यीशु के इन शब्दों से क्या पता चलता है, “अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे”? यही कि आज़ादी पाने के लिए हमें कुछ करना होगा। एक समर्पित मसीही बनने के लिए हमें खुद से इनकार करना होगा और उन सीमाओं को कबूल करना होगा जो यीशु अपने चेलों के लिए ठहराता है। (मत्ती 16:24) भविष्य में हमें फिरौती बलिदान का पूरा-पूरा फायदा मिलेगा और तब हम सचमुच में आज़ाद होंगे ठीक जैसा यीशु ने वादा किया था।
17. (क) किस बात से हमें सच्ची खुशी और जीने का मकसद मिलता है? (ख) अगले लेख में हम क्या सीखेंगे?
17 यीशु के चेले होने के नाते उसकी शिक्षाओं को मानने से हमें सच्ची खुशी और जीने का मकसद मिलता है। यही नहीं, आगे चलकर हमें पाप और मौत की गुलामी से हमेशा के लिए छुटकारा मिलेगा। (रोमियों 8:1, 2, 20, 21 पढ़िए।) अगले लेख में हम सीखेंगे कि हम अपनी आज़ादी का सही इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं। तब हम सच्ची आज़ादी के मालिक, यहोवा परमेश्वर का आदर हमेशा-हमेशा तक कर पाएँगे।