अध्ययन लेख 49
काम और आराम का “एक समय होता है”
“आओ, . . . किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।”—मर. 6:31.
गीत 143 यहोवा के दिन की राह देखते रहें
लेख की एक झलकa
1. काम के बारे में लोगों का क्या नज़रिया है?
आज काम के बारे में ज़्यादातर लोगों का क्या नज़रिया है? आप जहाँ रहते हैं, वहाँ लोग इस बारे में क्या सोचते हैं? कई देशों में लोग घंटों काम करते हैं, दिन-रात मेहनत करते हैं। उनके पास इतनी फुरसत भी नहीं होती कि वे आराम कर सकें, परिवार को समय दे सकें या ईश्वर के लिए वक्त निकाल सकें। (सभो. 2:23) वहीं दूसरी तरफ, ऐसे भी लोग हैं जो काम से दूर भागते हैं और काम न करने के बहाने ढूँढ़ते रहते हैं।—नीति. 26:13, 14.
2-3. काम के बारे में यहोवा और यीशु ने क्या मिसाल रखी?
2 काम के बारे में यहोवा और यीशु का नज़रिया लोगों से बिलकुल अलग है। इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा मेहनती है। यीशु ने कहा, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।” (यूह. 5:17) ज़रा सोचिए, यहोवा ने लाखों-करोड़ों स्वर्गदूतों, तारों और ग्रहों को बनाने में कितनी मेहनत की होगी! यही नहीं, जब हम धरती पर चारों तरफ नज़र दौड़ाते हैं, तो हमें यहोवा की कारीगरी के ढेरों सबूत मिलते हैं। भजन के एक लेखक ने बिलकुल सही कहा था, “हे यहोवा, तेरे काम अनगिनत हैं! तूने ये सब अपनी बुद्धि से बनाया है, धरती तेरी बनायी चीज़ों से भरपूर है।”—भज. 104:24.
3 यीशु हू-ब-हू अपने पिता की तरह है। जब परमेश्वर ने “आसमान को ताना,” तो यीशु ने “एक कुशल कारीगर” की तरह इस काम में उसका हाथ बँटाया। (नीति. 8:27-31) इसके सदियों बाद जब यीशु धरती पर आया, तो उसने यहोवा का काम बहुत अच्छी तरह किया। यीशु के लिए यह काम उतना ही अहमियत रखता था जितना कि खाना। उसके कामों से साबित हुआ कि यहोवा ने ही उसे धरती पर भेजा था।—यूह. 4:34; 5:36; 14:10.
4. आराम करने के मामले में हम यहोवा और यीशु से क्या सीखते हैं?
4 जैसे हमने देखा, यहोवा और यीशु दोनों बहुत मेहनती हैं। लेकिन क्या इसका मतलब यह है कि हमें हर वक्त काम करते रहना चाहिए? जी नहीं। अगर यहोवा की बात करें, तो वह हम इंसानों जैसा नहीं है। वह कभी नहीं थकता, पर हम थक जाते हैं। हाँ, बाइबल यह ज़रूर बताती है कि आकाश और पृथ्वी को बनाने के बाद यहोवा ने “सातवें दिन विश्राम किया।” (निर्ग. 31:17) इसका मतलब है कि सातवें दिन यहोवा ने धरती पर सृष्टि का काम करना बंद कर दिया और उसने जो बनाया था, उसका आनंद लिया। यीशु ने भी धरती पर रहते वक्त कड़ी मेहनत की, फिर भी उसने आराम करने और दोस्तों के साथ खाना खाने के लिए वक्त निकाला।—मत्ती 14:13; लूका 7:34.
5. कई मसीहियों को क्या करना मुश्किल लगता है?
5 बाइबल में परमेश्वर के सेवकों को बढ़ावा दिया गया है कि वे मेहनत करें और आलसी न बनें। (नीति. 15:19) हो सकता है, आप अपने परिवार की रोज़ी-रोटी के लिए नौकरी करते हों। इसके अलावा, मसीह के सभी चेलों को खुशखबरी सुनाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इन कामों को करने के साथ-साथ आपको आराम करने की भी ज़रूरत है। लेकिन क्या कभी आपको नौकरी, प्रचार काम और आराम के बीच सही तालमेल बिठाना मुश्किल लगता है? आप कैसे जान सकते हैं कि आपको कितना काम करना चाहिए और कितना आराम?
काम और आराम के बारे में सही नज़रिया कैसे रखें?
6. मरकुस 6:30-34 से हमें कैसे पता चलता है कि यीशु काम और आराम के बारे में सही नज़रिया रखता था?
6 काम और आराम के बारे में सही नज़रिया रखना बहुत ज़रूरी है। राजा सुलैमान ने परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा, “हरेक काम का एक समय होता है।” जैसे, बोने का समय और उखाड़ने का समय, रोने का समय और हँसने का समय। (सभो. 3:1-8) इससे पता चलता है कि ज़िंदगी में काम और आराम दोनों ज़रूरी हैं। इस मामले में यीशु ने एकदम सही नज़रिया रखा। एक मौके पर जब उसके प्रेषित प्रचार करके लौटे, तो वे इतने व्यस्त हो गए कि “उन्हें खाने तक की फुरसत नहीं मिली।” तब यीशु ने उनसे कहा, “आओ, तुम सब अलग किसी एकांत जगह में चलकर थोड़ा आराम कर लो।” (मरकुस 6:30-34 पढ़िए।) भले ही यीशु और उसके प्रेषित हमेशा उतना आराम नहीं कर पाते थे जितना उन्हें करना चाहिए था, फिर भी यीशु जानता था कि उन्हें आराम की ज़रूरत है।
7. सब्त के इंतज़ाम पर ध्यान देने से हमें क्या फायदा होगा?
7 हम सबको समय-समय पर थोड़ा आराम करना चाहिए या हर दिन हम जो करते हैं, उससे कुछ अलग करना चाहिए। इस बात को समझने के लिए एक इंतज़ाम पर ध्यान दीजिए, जो परमेश्वर ने इसराएलियों के लिए किया था। वह था सब्त का इंतज़ाम। हालाँकि आज हम मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं, फिर भी इस इंतज़ाम पर ध्यान देने से हमें फायदा होगा। इससे हम खुद की जाँच कर पाएँगे कि काम और आराम के बारे में हमारा नज़रिया सही है या नहीं।
सब्त का दिन—आराम और उपासना का दिन
8. निर्गमन 31:12-15 के मुताबिक इसराएलियों को सब्त के दिन खास किस बात पर ध्यान देना था? समझाइए।
8 बाइबल बताती है कि परमेश्वर ने छ: “दिन” तक धरती पर अलग-अलग चीज़ें बनायीं, फिर उसने विश्राम किया। (उत्प. 2:2) लेकिन यहोवा को काम करना अच्छा लगता है और कई मायनों में वह “अब तक काम कर रहा है।” (यूह. 5:17) जिस तरह यहोवा ने छ: दिन काम करने के बाद सातवें दिन आराम किया, उसी तरह उसने इसराएलियों को हर हफ्ते सातवें दिन आराम करने को कहा। परमेश्वर ने कहा कि सब्त उस करार की निशानी है, जो उसने उनके साथ किया था। सब्त “पूरे विश्राम का दिन” और “यहोवा के लिए पवित्र दिन” होता। (निर्गमन 31:12-15 पढ़िए।) उस दिन किसी को काम नहीं करना था, बच्चों और दासों को भी नहीं। जानवरों से भी कोई काम नहीं करवाया जाना था। (निर्ग. 20:10) इस तरह सब्त के दिन लोग अपना पूरा ध्यान परमेश्वर की उपासना करने में लगा सकते थे।
9. यीशु के दिनों में सब्त के बारे में कुछ लोगों की क्या गलत सोच थी?
9 सब्त का दिन मनाने से यहोवा के लोगों का भला होता था। लेकिन अफसोस, यीशु के दिनों में धर्म गुरुओं ने सब्त के बारे में ढेर सारे सख्त नियम बना दिए थे। उनका यह तक कहना था कि इस दिन अनाज की बालें तोड़ना या किसी बीमार को ठीक करना कानून के खिलाफ है। (मर. 2:23-27; 3:2-5) लेकिन यहोवा उनकी टेढ़ी सोच से सहमत नहीं था और यह बात यीशु ने अपने सुननेवालों को साफ-साफ बतायी।
10. मत्ती 12:9-12 के मुताबिक सब्त के बारे में यीशु की क्या सोच थी?
10 यीशु और उसके यहूदी चेले मूसा के कानून के अधीन थे, इसलिए वे सब्त मनाते थे।b मगर यीशु ने अपनी बातों और अपने व्यवहार से यह भी ज़ाहिर किया कि सब्त के दिन किसी की मदद करना गलत नहीं है। उसने साफ शब्दों में कहा, “सब्त के दिन भला काम करना सही है।” (मत्ती 12:9-12 पढ़िए।) यीशु की सोच उन धर्म गुरुओं से कितनी अलग थी! उसकी नज़र में किसी पर दया करके उसकी मदद करना, कानून का उल्लंघन करना नहीं था। इस तरह यीशु ने अपने कामों से ज़ाहिर किया कि सब्त मनाने की सबसे बड़ी वजह क्या थी। परमेश्वर के लोगों को इस दिन काम नहीं करना था, ताकि वे अपना पूरा ध्यान परमेश्वर की उपासना पर लगा सकें। यीशु खुद एक ऐसे परिवार से था, जो सब्त के दिन यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने पर पूरा ध्यान लगाता था। हम यह इसलिए कह सकते हैं क्योंकि बाइबल बताती है कि जब यीशु अपने शहर नासरत में था, तो “अपने दस्तूर के मुताबिक वह सब्त के दिन वहाँ के सभा-घर में गया और पढ़ने के लिए खड़ा हुआ।”—लूका 4:15-19.
काम के बारे में आपका क्या नज़रिया है?
11. काम करने के मामले में कौन यीशु के लिए अच्छी मिसाल था?
11 यूसुफ ने अपने बेटे यीशु को बढ़ई का काम सिखाया था और इस दौरान बेशक उसे काम के बारे में यहोवा की सोच भी बतायी होगी। (मत्ती 13:55, 56) यीशु ने देखा होगा कि किस तरह यूसुफ अपने बड़े परिवार की देखभाल के लिए हर दिन मेहनत करता था। उसने आगे चलकर अपने चेलों से कहा, “काम करनेवाला मज़दूरी पाने का हकदार है।” (लूका 10:7) इसमें कोई शक नहीं कि यीशु ने कड़ी मेहनत करना सीखा था।
12. किन आयतों की मदद से हमें कड़ी मेहनत के बारे में पौलुस की सोच पता चलती है?
12 प्रेषित पौलुस भी कड़ी मेहनत करना जानता था। उसका मुख्य काम था, यीशु और उसकी शिक्षाओं के बारे में प्रचार करना। लेकिन पौलुस अपना गुज़ारा चलाने के लिए भी मेहनत करता था। थिस्सलुनीके के भाई-बहन जानते थे कि पौलुस “रात-दिन कड़ी मेहनत और संघर्ष” करता है, ताकि वह किसी पर “खर्चीला बोझ” न बने। (2 थिस्स. 3:8; प्रेषि. 20:34, 35) जब पौलुस ने अपने काम के बारे में लिखा, तो शायद वह तंबू बनाने के काम की बात कर रहा था। पौलुस कुरिंथ में अक्विला और प्रिस्किल्ला के यहाँ रहा और इस दौरान उसने ‘उनके साथ काम किया,’ क्योंकि वे भी “तंबू बनाया करते थे।” जब पौलुस ने कहा कि वह “रात-दिन” काम करता है, तो उसका यह मतलब नहीं था कि वह काम में ही डूबा रहता है। सब्त के दिन वह यह काम नहीं करता था। इसके बजाय वह यहूदियों को प्रचार करता था, जो उसकी तरह सब्त के दिन काम नहीं करते थे।—प्रेषि. 13:14-16, 42-44; 16:13; 18:1-4.
13. हम पौलुस से क्या सीख सकते हैं?
13 प्रेषित पौलुस अपना गुज़ारा चलाने के साथ-साथ “परमेश्वर की खुशखबरी सुनाने का पवित्र काम” भी करता रहा। (रोमि. 15:16; 2 कुरिं. 11:23) उसने दूसरों को भी प्रचार करते रहने का बढ़ावा दिया। इस वजह से अक्विला और प्रिस्किल्ला ‘मसीह यीशु में उसके सहकर्मी’ थे। (रोमि. 12:11; 16:3) पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को यह बढ़ावा दिया, “प्रभु की सेवा में हमेशा तुम्हारे पास बहुत काम हो।” (1 कुरिं. 15:58; 2 कुरिं. 9:8) परमेश्वर की प्रेरणा से पौलुस ने यह भी लिखा, “अगर कोई काम नहीं करना चाहता, तो उसे खाने का भी हक नहीं है।” (2 थिस्स. 3:10) वाकई, हम पौलुस से बहुत कुछ सीख सकते हैं!
14. यूहन्ना 14:12 में दर्ज़ यीशु के शब्दों का क्या मतलब है?
14 इन आखिरी दिनों में सबसे अहम काम है, प्रचार और चेला बनाने का काम। दरअसल यीशु ने कहा था कि उसके चेले उससे भी बड़े-बड़े काम करेंगे। (यूहन्ना 14:12 पढ़िए।) यीशु का यह मतलब नहीं था कि वे उसकी तरह चमत्कार करेंगे। इसके बजाय, वह यह कह रहा था कि उसके चेले बड़े पैमाने पर प्रचार काम करेंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो वे यीशु से भी ज़्यादा इलाकों में प्रचार करेंगे, उससे ज़्यादा लोगों को सिखाएँगे और उससे ज़्यादा समय तक प्रचार काम करेंगे।
15. आपको खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए और क्यों?
15 अगर आप नौकरी करते हैं, तो खुद से पूछिए: ‘क्या मैं काम की जगह पर मेहनती होने के लिए जाना जाता हूँ? क्या मैं पूरी लगन से अपना काम करता हूँ और उसे समय पर पूरा करता हूँ?’ अगर आपका जवाब ‘हाँ’ है, तो आप अपने मालिक का भरोसा जीत पाएँगे। यही नहीं, जब आप अपने सहकर्मियों को गवाही देंगे, तो वे आपकी बात अच्छे से सुनेंगे। अब प्रचार और सिखाने की बात लीजिए। खुद से पूछिए: ‘क्या मैं प्रचार में कड़ी मेहनत करने के लिए जाना जाता हूँ? क्या मैं लोगों से बात करने के लिए अच्छी तैयारी करता हूँ? क्या मैं दिलचस्पी रखनेवालों से जल्द-से-जल्द दोबारा मिलने की कोशिश करता हूँ? क्या मैं प्रचार के अलग-अलग पहलुओं में नियमित तौर पर हिस्सा लेता हूँ?’ अगर आपका जवाब ‘हाँ’ है, तो आपको अपनी सेवा से खुशी मिलेगी।
आराम के बारे में आपका क्या नज़रिया है?
16. (क) आराम करने के बारे में यीशु और उसके प्रेषितों की क्या सोच थी? (ख) लेकिन आज ज़्यादातर लोग क्या सोचते हैं?
16 यीशु के दिनों में कई लोगों की सोच उस अमीर आदमी की तरह थी, जिसके बारे में यीशु ने एक मिसाल में बताया था। उस आदमी का मानना था कि आराम करना और मौज-मस्ती करना ही सबकुछ है। वह मन-ही-मन खुद से कह रहा था, “अब चैन से जी, खा-पी और मौज कर।” (लूका 12:19; 2 तीमु. 3:4) आज भी कई लोग इस अमीर आदमी की तरह सोचते हैं। लेकिन यीशु उनसे कितना अलग था! यह सच है कि वह इस बात को समझता था कि कभी-कभी उसे और उसके प्रेषितों को आराम की ज़रूरत है। मगर यीशु और उसके प्रेषितों के लिए आराम करना ही सबकुछ नहीं था।
17. छुट्टियों में हम अपने समय का कैसे इस्तेमाल करते हैं?
17 आज हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? जिस दिन हमें काम पर नहीं जाना होता है, उस दिन हम न सिर्फ आराम करते हैं बल्कि प्रचार में और सभाओं में भी जाते हैं। देखा जाए तो प्रचार और सभाएँ हमारे लिए बहुत अहमियत रखती हैं, इसलिए हम इन कामों में हिस्सा लेने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। (इब्रा. 10:24, 25) जब हम छुट्टियाँ बिताने कहीं और जाते हैं, तब भी हम सभाओं में लगातार हाज़िर होते हैं और लोगों को गवाही देने के मौके ढूँढ़ते हैं।—2 तीमु. 4:2.
18. हमारा राजा मसीह यीशु हमसे क्या चाहता है?
18 हम इस बात के बहुत शुक्रगुज़ार हैं कि हमारा राजा, मसीह यीशु हमसे बहुत ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता और वह हमें आराम और काम के बारे में सही नज़रिया रखना सिखाता है। (इब्रा. 4:15) वह चाहता है कि जब हमें ज़रूरत हो, हम आराम करें। वह यह भी चाहता है कि हम रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने में कड़ी मेहनत करें और चेला बनाने का काम करें, जिससे हमें ताज़गी मिल सकती है। अगले लेख में हम देखेंगे कि यीशु ने हमें एक किस्म की कठोर गुलामी से आज़ाद कराने के लिए क्या किया है।
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
a बाइबल बताती है कि हम काम और आराम के बारे में किस तरह सही और संतुलित नज़रिया रख सकते हैं। इस लेख में इसराएलियों को दिए गए सब्त के नियम के बारे में समझाया गया है, जिसे वे हर हफ्ते मानते थे। इस बारे में जानने से हम खुद की जाँच कर पाएँगे कि क्या काम और आराम के बारे में हमारा नज़रिया सही है।
b यीशु के चेले हर हाल में सब्त का नियम मानते थे। यहाँ तक कि जब यीशु की मौत हुई, तो उन्होंने उसे दफनाने की तैयारियाँ कुछ वक्त के लिए रोक दीं, क्योंकि अगले दिन सब्त था।—लूका 23:55, 56.
c तसवीर के बारे में: सब्त के दिन यूसुफ अपने परिवार को सभा-घर ले जा रहा है।
d तसवीर के बारे में: एक पिता अपने परिवार का पेट पालने के लिए नौकरी करता है। जब उसे काम से छुट्टी मिलती है, तो वह प्रचार करता है और सभाओं में जाता है। वह ऐसा तब भी करता है जब वह और उसका परिवार छुट्टियाँ बिताने कहीं और जाते हैं।