अध्ययन लेख 13
एक-दूसरे से प्यार करने के लिए जतन कीजिए
“पूरे जतन के साथ एक-दूसरे को दिल से प्यार करो।”—1 पत. 1:22.
गीत 109 दिल से प्यार करें
लेख की एक झलकa
1. यीशु ने अपने चेलों को क्या आज्ञा दी? (बाहर दी तसवीर देखें।)
यीशु ने अपनी मौत से पहले की रात अपने चेलों को एक आज्ञा दी थी, “जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो।” फिर उसने कहा, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूह. 13:34, 35.
2. हमें क्यों अपने भाई-बहनों से प्यार करते रहना है?
2 यीशु ने कहा था कि सब लोग यह साफ देख पाएँगे कि कौन उसके असली चेले हैं। लेकिन यह तभी होगा जब वे एक-दूसरे से वैसा ही प्यार करें जैसे यीशु ने उनसे किया था। पहली सदी में चेले एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे, इसलिए यह साफ नज़र आया कि वे यीशु के सच्चे चेले हैं। आज भी हमारे बीच प्यार देखकर लोग जान पाते हैं कि हम यीशु के चेले हैं। इसलिए हमें अपने भाई-बहनों से प्यार करते रहना है, फिर चाहे किसी वजह से हमें मुश्किल क्यों न लगे।
3. इस लेख से हम क्या सीखेंगे?
3 एक-दूसरे से प्यार करना आसान नहीं होता, क्योंकि हम सब अपरिपूर्ण हैं। जैसे हम गलतियाँ करते हैं, वैसे ही हमारे भाई-बहन भी गलतियाँ करते हैं। फिर भी हमें यीशु की तरह उनसे प्यार करने की कोशिश करनी चाहिए। इस लेख से हम सीखेंगे कि अगर हमें उनसे प्यार होगा, तो हम कैसे शांति बनाए रखेंगे, सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करेंगे और मेहमान-नवाज़ी करेंगे। हम कुछ ऐसे भाई-बहनों का अनुभव देखेंगे जिन्होंने दूसरों से प्यार करना नहीं छोड़ा, इसके बावजूद कि यह उनके लिए मुश्किल था। इस लेख को पढ़ते समय आप खुद से पूछिए, ‘मैं उन भाई-बहनों से क्या सीख सकता हूँ?’
शांति कायम कीजिए
4. अगर एक भाई हमसे नाराज़ है, तो मत्ती 5:23, 24 के मुताबिक हमें क्यों उससे सुलह करनी चाहिए?
4 यीशु ने बताया था कि अगर कोई भाई हमसे नाराज़ है, तो हमें उससे सुलह करनी चाहिए। (मत्ती 5:23, 24 पढ़िए।) उसने समझाया कि ऐसा करना ज़रूरी है, क्योंकि जब दूसरों के साथ हमारा रिश्ता अच्छा होगा तो ही हमें यहोवा की आशीष मिलेगी। जब हम किसी से सुलह करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं, तो यह देखकर यहोवा खुश होता है। लेकिन अगर हम नाराज़ रहेंगे और शांति कायम करने की कोशिश तक नहीं करेंगे, तो यहोवा हमारी उपासना स्वीकार नहीं करेगा।—1 यूह. 4:20.
5. मार्क को एक भाई के साथ सुलह करना क्यों मुश्किल लगा?
5 कभी-कभी दूसरों के साथ शांति बनाए रखना बहुत मुश्किल हो सकता है। इस बात को समझने के लिए ध्यान दीजिए कि मार्कb के साथ क्या हुआ था। जब मंडली के एक भाई ने दूसरे भाई-बहनों से उसके बारे में उलटी-सीधी बातें कहीं, तो उसे बहुत बुरा लगा। मार्क ने क्या किया? वह कहता है, “मैं अपना आपा खो बैठा और उस भाई पर बरस पड़ा।” लेकिन बाद में मार्क को अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने उस भाई से माफी माँगी और सुलह करने की कोशिश की। लेकिन उस भाई ने सुलह करने से इनकार कर दिया। मार्क ने सोचा, “जब वह मानने के लिए तैयार नहीं है, तो मैं क्यों उसके पीछे पड़ूँ?” लेकिन सर्किट निगरान ने मार्क को समझाया कि उसे हार नहीं माननी चाहिए और कोशिश करते रहना चाहिए। तब मार्क ने क्या किया?
6. (क) मार्क ने दूसरे भाई से सुलह करने की कोशिश कैसे की? (ख) उसने कुलुस्सियों 3:13, 14 में दी सलाह कैसे मानी?
6 मार्क ने इस बारे में गहराई से सोचा कि वह दूसरों के साथ कैसे पेश आता है। उसे एहसास हुआ कि उसमें अब भी नम्रता की कमी है और वह कभी-कभी सोचता है कि वह दूसरों से अच्छा है। उसे लगा कि उसे अपनी सोच बदलनी होगी। (कुलु. 3:8, 9, 12) फिर वह उस भाई के पास गया और उसने एक बार फिर उससे माफी माँगी। मार्क ने उस भाई को कुछ चिट्ठियाँ भी लिखीं। उसने लिखा कि उसे अपने किए पर बहुत अफसोस है और चाहता है कि वे पहले जैसे दोस्त बन जाएँ। मार्क ने उस भाई को कुछ छोटे-छोटे तोहफे भी दिए और सोचा कि उसे पसंद आएँगे। लेकिन दूसरा भाई उससे नाराज़ ही रहा। फिर भी मार्क यीशु की आज्ञा मानकर उससे प्यार करता रहा और उससे नाराज़ नहीं हुआ। (कुलुस्सियों 3:13, 14 पढ़िए।) मार्क से हम सीखते हैं कि चाहे दूसरे हमसे सुलह करने के लिए राज़ी न हों, फिर भी अगर हमें उनसे प्यार होगा, तो हम उन्हें माफ करेंगे और प्रार्थना करते रहेंगे कि उनके साथ हमारा रिश्ता पहले जैसा हो जाए।—मत्ती 18:21, 22; गला. 6:9.
7. (क) यीशु ने हमें क्या सलाह दी है? (ख) एक बहन किस वजह से परेशान थी?
7 यीशु ने हमें सलाह दी है कि हम दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें, ठीक जैसा हम चाहते हैं कि वे हमारे साथ करें। उसने यह भी कहा कि हम सिर्फ उन्हीं से प्यार न करें जो हमसे प्यार करते हैं। (लूका 6:31-33) अगर एक भाई या बहन आपसे बात नहीं करता, यहाँ तक कि नमस्ते भी नहीं कहता, तो आप उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे? ध्यान दीजिए कि लारा के साथ क्या हुआ था। वह बताती है, “एक बहन मुझसे दूर-दूर रहने लगी। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रही है। मैं परेशान हो गयी थी और मुझे सभाओं में जाना अच्छा नहीं लगता था।” लारा यह भी कहती है, “शुरू-शुरू में तो मुझे लगा कि मैं क्यों बेकार में परेशान हो रही हूँ। मैंने तो कोई गलती नहीं की। वैसे भी उस बहन के बारे में दूसरे भाई-बहन भी यही सोचते हैं कि वह थोड़ी अजीब-सी है।”
8. (क) लारा ने दूसरी बहन के साथ शांति कायम करने के लिए क्या किया? (ख) हम उससे क्या सीख सकते हैं?
8 मगर फिर लारा ने सोचा कि उसे बहन से सुलह करने के लिए कुछ करना होगा। उसने यहोवा से प्रार्थना की और उस बहन से मिलने गयी। उन दोनों ने उस समस्या के बारे में बात की, एक-दूसरे को गले लगाया और सुलह कर ली। तब ऐसा लगा कि सबकुछ ठीक हो गया है। मगर कुछ समय बाद वह बहन फिर से लारा से दूर-दूर रहने लगी। तब लारा बहुत निराश हो गयी। उसे लगा कि वह तभी खुश रह पाएगी जब वह बहन उसके साथ अच्छा व्यवहार करेगी। लेकिन फिर बाद में लारा ने सोचा कि चाहे वह बहन अपना व्यवहार बदले या नहीं, वह उससे प्यार करती रहेगी और उसे “दिल से माफ” करेगी। (इफि. 4:32–5:2) लारा ने याद रखा कि सच्चा मसीही प्यार “चोट का हिसाब नहीं रखता। यह सबकुछ बरदाश्त कर लेता है, सब बातों पर यकीन करता है, सब बातों की आशा रखता है, सबकुछ धीरज से सह लेता है।” (1 कुरिं. 13:5, 7) इसके बाद से लारा परेशान नहीं रही। कुछ समय बाद वह बहन भी लारा के साथ अच्छा व्यवहार करने लगी। जब आप भी अपने भाई-बहनों के साथ शांति कायम करेंगे और उनसे प्यार करते रहेंगे, तो ‘प्यार और शांति का परमेश्वर आपके साथ रहेगा।’—2 कुरिं. 13:11.
सबके साथ एक-जैसा व्यवहार कीजिए
9. प्रेषितों 10:34, 35 के मुताबिक हमें सबके साथ एक-जैसा व्यवहार क्यों करना चाहिए?
9 यहोवा किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। वह सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करता है। (प्रेषितों 10:34, 35 पढ़िए।) अगर हम भी सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करें, तो यह दिखाएगा कि हम उसके बच्चे हैं। हमें आज्ञा दी गयी है कि हम अपने पड़ोसी से वैसा ही प्यार करें जैसे हम खुद से प्यार करते हैं। इस आज्ञा को मानने से हम सभी भाई-बहनों के साथ मेल-मिलाप से रहेंगे जो कि एक परिवार के लोग हैं।—रोमि. 12:9, 10; याकू. 2:8, 9.
10-11. एक बहन ने अपने दिल से नफरत को कैसे निकाल फेंका?
10 सबके साथ एक जैसा व्यवहार करना कुछ लोगों के लिए आसान नहीं होता। रूत नाम की एक बहन को भी ऐसा करना मुश्किल लगा। जब वह छोटी थी, तब दूसरे देश की एक औरत ने उसके साथ बुरा व्यवहार किया था। रूत कहती है, “मुझे उस देश से ही नफरत हो गयी थी। मुझे लगा कि उस देश के सब लोग उस औरत जैसे ही होंगे, यहाँ तक कि वहाँ के मसीही भाई-बहन भी।” मगर बाद में रूत ने अपने दिल से नफरत को निकाल फेंका।
11 रूत को अपनी सोच बदलने और उस देश के लोगों के बारे में अच्छा सोचने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ी। उसने उस देश के बारे में सालाना किताब में कुछ अनुभव और रिपोर्ट पढ़े। वह कहती है, “मैंने उस देश के लोगों के बारे में अच्छा सोचने के लिए बहुत संघर्ष किया। मैंने जाना कि उस देश के भाई-बहन कितने जोश से यहोवा की सेवा करते हैं। मुझे यकीन हो गया कि वे भी मसीही भाई-बहनों की बिरादरी का हिस्सा हैं।” फिर कुछ समय बाद रूत को एहसास हुआ कि उसे और भी कुछ करना होगा। वह कहती है, “जब भी मैं उस देश के भाई-बहनों से मिलती, तो मैं उनसे दोस्ती करने की खास कोशिश करती थी। मैं उनसे बात करती और उनको अच्छी तरह जानने की कोशिश करती थी।” इसका क्या नतीजा निकला? अब रूत कहती है, “धीरे-धीरे मेरे दिल से नफरत मिट गयी।”
12. सारा में क्या कमज़ोरी थी?
12 कुछ लोगों को शायद एहसास भी न हो कि वे भेद-भाव कर रहे हैं। सारा नाम की एक बहन पर ध्यान दीजिए। उसे लगता था कि वह सबके साथ एक-जैसा व्यवहार कर रही है, क्योंकि वह कभी-भी यह देखकर भाई-बहनों के साथ भेद-भाव नहीं करती थी कि उनकी जाति क्या है, वह अमीर हैं या गरीब या संगठन में उनकी कोई ज़िम्मेदारी है या नहीं। मगर सारा कहती है, “मुझे एहसास होने लगा कि मैं सचमुच भेद-भाव कर रही थी।” सारा एक बहुत ही पढ़े-लिखे परिवार से थी, इसलिए वह हमेशा उन भाई-बहनों से दोस्ती करती थी जो उसके जैसे पढ़े-लिखे हैं। एक बार तो उसने अपने एक दोस्त से कहा भी कि “मैं सिर्फ उन भाई-बहनों से दोस्ती करती हूँ जो मेरे जैसे पढ़े-लिखे हैं। जो कम पढ़े-लिखे हैं उनसे मिलना-जुलना मुझे पसंद नहीं।” मगर सारा को अपनी सोच बदलनी थी। वह यह कैसे कर पायी?
13. सारा से हम क्या सीख सकते हैं?
13 एक सर्किट निगरान ने सारा को यह सोचने का बढ़ावा दिया कि क्या वह सही कर रही है। वह कहती है, “भाई ने पहले मेरी तारीफ की कि मैं बहुत अच्छी तरह सेवा करती हूँ, सभाओं में अच्छे जवाब देती हूँ और मुझे बाइबल का अच्छा ज्ञान है। फिर उसने मुझे समझाया कि जैसे-जैसे हमारा ज्ञान बढ़ता है, हमें नम्रता, मर्यादा और दया जैसे मसीही गुण भी बढ़ाने चाहिए।” सारा ने भाई की सलाह मानी। वह कहती है, “मैंने जाना कि मुझे दूसरों से प्यार करना चाहिए और उन पर कृपा करनी चाहिए। यह बात कोई मायने नहीं रखती कि मैं बहुत पढ़ी-लिखी हूँ।” इसका नतीजा क्या हुआ? भाई-बहनों के बारे में वह अपनी सोच बदल पायी। वह कहती है, “मैं भाई-बहनों को जानने की कोशिश करने लगी कि उनमें कौन-कौन से अच्छे गुण हैं जिनकी वजह से यहोवा उनसे प्यार करता है।” सारा की तरह हमें भी खुद की जाँच करनी चाहिए। अगर हम बहुत पढ़े-लिखे हैं, तो हमें कभी-भी खुद को दूसरों से बेहतर नहीं समझना चाहिए। हम अपने “भाइयों की सारी बिरादरी” से प्यार करते हैं, इसलिए हमें किसी भी बात को लेकर भेद-भाव नहीं करना चाहिए।—1 पत. 2:17.
मेहमान-नवाज़ी कीजिए
14. इब्रानियों 13:16 के मुताबिक, जब हम भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करते हैं तो यहोवा को कैसा लगता है?
14 जब हम दूसरों की मेहमान-नवाज़ी करते हैं, तो यहोवा बहुत खुश होता है। (इब्रानियों 13:16 पढ़िए।) यहोवा इसे हमारी उपासना का एक भाग समझता है। खासकर अगर हम ज़रूरतमंदों की खातिर कुछ करते हैं, तो वह इसकी बहुत कदर करता है। (याकू. 1:27; 2:14-17) इसलिए बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम ‘मेहमान-नवाज़ी करने की आदत डालें।’ (रोमि. 12:13) जब हम भाई-बहनों की मेहमान-नवाज़ी करते हैं, तो उन्हें एहसास दिलाते हैं कि हमें उनसे प्यार है और वे हमारे अपने हैं। जब हम उन्हें अपने घर चाय-नाश्ते या खाने पर बुलाते हैं या उनके साथ थोड़ा समय बिताकर उनसे बात करते हैं, तो यहोवा यह देखकर खुश होता है। (1 पत. 4:8-10) लेकिन कुछ ऐसी बातें हो सकती हैं जो हमें दूसरों की मेहमान-नवाज़ी करने से रोक सकती हैं।
15-16. (क) कुछ भाई-बहन क्यों सोचते हैं कि वे मेहमान-नवाज़ी नहीं कर सकते? (ख) ऐडिथ ने कैसे अपनी सोच बदली?
15 कुछ भाई-बहन किसी वजह से शायद सोचें कि वे मेहमान-नवाज़ी नहीं कर सकते। ऐडिथ नाम की एक बहन ऐसा ही सोचती थी। वह एक विधवा है और साक्षी बनने से पहले वह दूसरों के साथ मिलना-जुलना पसंद नहीं करती थी। उसे लगता था कि दूसरों की खातिरदारी करना उससे नहीं होगा, क्योंकि उसके हालात अच्छे नहीं हैं।
16 लेकिन साक्षी बनने के बाद ऐडिथ ने अपनी सोच बदली। उसने मेहमान-नवाज़ी करने के लिए कुछ कदम उठाए। वह कहती है, “जब हमारा नया राज-घर बन रहा था, तो एक प्राचीन ने मुझे बताया कि इस काम के लिए दूसरी जगह से एक भाई और उसकी पत्नी आ रहे हैं और मुझसे पूछा कि क्या मैं दो हफ्तों के लिए उन्हें अपने घर ठहरा सकती हूँ। तब मैंने बाइबल की वह घटना याद की कि जब सारपत की विधवा ने मेहमान-नवाज़ी की, तो यहोवा ने उसे कितनी आशीष दी।” (1 राजा 17:12-16) ऐडिथ ने कहा कि वह उस जोड़े को अपने घर ठहराने के लिए तैयार है। क्या ऐसा करने से उसे भी आशीष मिली? वह बताती है, “वे दोनों मेरे घर दो हफ्ते नहीं बल्कि दो महीने ठहरे। इस दौरान हम एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए।” ऐडिथ को मंडली में भी कई अच्छे दोस्त मिले। अब वह एक पायनियर है और वह जिनके साथ प्रचार करती है उन्हें अकसर अपने घर चाय-नाश्ते पर बुलाती है। वह कहती है, “दूसरों के लिए कुछ करना मुझे बहुत अच्छा लगता है। जब मैं उन्हें कुछ देती हूँ, तो बदले में मुझे बहुत-सी आशीषें मिलती हैं।”—इब्रा. 13:1, 2.
17. लूक और उसकी पत्नी को किस बात का एहसास हुआ?
17 हो सकता है हम दूसरों की मेहमान-नवाज़ी करते हैं। मगर क्या हम इस मामले में कुछ सुधार कर सकते हैं? लूक और उसकी पत्नी को एहसास हुआ कि उन्हें कुछ सुधार करने की ज़रूरत है। वे हमेशा अपने घर अपने माता-पिता, रिश्तेदारों और दोस्तों को और सर्किट निगरान और उसकी पत्नी को ही बुलाते थे। लूक कहता है, “हमें एहसास हुआ कि हम सिर्फ उन्हीं को बुलाते थे जिनके साथ हमारी अच्छी दोस्ती है।” लूक और उसकी पत्नी ने अपने अंदर सुधार कैसे किया?
18. लूक और उसकी पत्नी ने कैसे अपने अंदर सुधार किया?
18 उन दोनों ने यीशु के इन शब्दों पर गहराई से सोचा: “अगर तुम उन्हीं से प्यार करो जो तुमसे प्यार करते हैं, तो तुम्हें इसका क्या इनाम मिलेगा?” (मत्ती 5:45-47) उन्होंने इस बात को समझा कि उन्हें यहोवा की तरह अपना दिल बड़ा करना है, जो सबके साथ भलाई करता है। इसलिए उन्होंने फैसला किया कि अब वे ऐसे भाई-बहनों को भी घर बुलाएँगे जिन्हें उन्होंने पहले कभी नहीं बुलाया था। लूक कहता है, “सबके साथ वक्त बिताना हमें बहुत अच्छा लगता है। मेहमान भी बहुत खुश होते हैं और यहोवा की सेवा के लिए हम सबका जोश बढ़ता है।”
19. (क) किस बात से साबित होगा कि हम यीशु के असली चेले हैं? (ख) आपने क्या करने का फैसला किया है?
19 इस लेख से हमने सीखा कि अगर हम एक-दूसरे से प्यार करने के लिए जतन करेंगे, तो हम सबके साथ शांति बनाए रखेंगे, सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करेंगे और मेहमान-नवाज़ी करेंगे। अगर हमारे दिल में भाई-बहनों के लिए कोई नफरत है, तो उसे निकाल फेंकना चाहिए और उन्हें दिल से प्यार करना चाहिए। ऐसा करने से हम खुश रहेंगे और इससे साबित होगा कि हम यीशु के असली चेले हैं।—यूह. 13:17, 35.
गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा
a यीशु ने कहा था कि प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान होगी। हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं, इसलिए हम पूरी कोशिश करते हैं कि उनके साथ शांति बनाए रखें, सबके साथ एक-जैसा व्यवहार करें और सबकी मेहमान-नवाज़ी करें। यह सब करना हमेशा आसान नहीं होता। इस लेख से हम सीखेंगे कि एक-दूसरे को दिल से प्यार करने के लिए हम क्या-क्या कर सकते हैं।
b इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
c तसवीर के बारे में: एक बहन दूसरी बहन से सुलह करने की कोशिश कर रही है मगर कामयाब नहीं होती। फिर भी वह हार नहीं मानती। बार-बार कोशिश करने की वजह से वह उससे सुलह कर लेती है।
d तसवीर के बारे में: एक बुज़ुर्ग भाई को लग रहा है कि मंडली में उसको कोई नहीं पूछता।
e तसवीर के बारे में: एक बहन पहले सोचती थी कि वह किसी को अपने घर नहीं ठहरा सकती। मगर बाद में वह अपनी सोच बदलती है और इसलिए उसे खुशी मिलती है।