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मरकुस अध्ययन नोट—अध्याय 15पवित्र शास्त्र का नयी दुनिया अनुवाद (अध्ययन बाइबल)
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तीसरा घंटा: यानी सुबह करीब 9 बजे। कुछ लोगों का कहना है कि यहाँ बताए समय और यूह 19:14-16 में बताए समय में फर्क है। उन आयतों में लिखा है कि ‘दिन के करीब छठे घंटे’ (करीब 12 बजे) पीलातुस ने यीशु को काठ पर लटकाकर मार डालने के लिए सौंप दिया। हालाँकि यह फर्क समझाने के लिए बाइबल में ज़्यादा जानकारी नहीं मिलती, फिर भी कुछ बातें हैं जिन पर ध्यान दिया जा सकता है: खुशखबरी की किताबों में यीशु की ज़िंदगी के आखिरी दिन यानी उसकी मौत से पहले हुईं घटनाओं के समय के बारे में जो बताया गया है, वह आम तौर पर एक-दूसरे से मेल खाता है। जैसे, चारों किताबें बताती हैं कि याजक और मुखिया सूरज निकलने के बाद मिले और फिर वे यीशु को रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस के पास ले गए। (मत 27:1, 2; मर 15:1; लूक 22:66–23:1; यूह 18:28) मत्ती, मरकुस और लूका ने बताया कि जब यीशु को काठ पर लटकाया जा चुका था तब “छठे घंटे से . . . नौवें घंटे तक” देश में अंधकार छाया रहा। (मत 27:45, 46; मर 15:33, 34; लूक 23:44) यीशु को सज़ा देने के समय को लेकर जो फर्क है उसकी एक वजह शायद यह है: कुछ लोगों का मानना था कि कोड़े मारना, काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में ही शामिल है। कई बार सज़ा पानेवाले को कोड़े इतनी बेरहमी से मारे जाते थे कि वह उसी समय दम तोड़ देता था। यीशु को भी इतनी बेदर्दी से कोड़े मारे गए थे कि वह पूरे रास्ते अपना काठ उठाकर नहीं ले जा पाया बल्कि बीच में दूसरे आदमी को उसका काठ उठाना पड़ा। (लूक 23:26; यूह 19:17) अगर यह माना जाए कि काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा कोड़े मारने से शुरू हो जाती थी, तो यीशु को कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने के बीच ज़रूर कुछ वक्त गुज़रा होगा। यह बात मत 27:26 और मर 15:15 से पुख्ता होती है, जहाँ कोड़े लगवाने और काठ पर लटकाकर मार डालने का ज़िक्र साथ-साथ किया गया है। तो फिर लेखकों ने शायद यीशु को मार डालने की सज़ा का अलग-अलग समय इसलिए बताया क्योंकि सज़ा के बारे में उनका नज़रिया अलग था। इन सारी बातों से पता चलता है कि क्यों पीलातुस को यह जानकर ताज्जुब हुआ कि काठ पर लटकाने के बाद इतनी जल्दी यीशु की मौत हो गयी। (मर 15:44) इसके अलावा, उस ज़माने में रात की तरह दिन को भी चार पहरों में बाँटा जाता था और हर पहर तीन घंटे का होता था। बाइबल के लेखक इसी के मुताबिक समय की जानकारी देते थे। इसलिए बाइबल में अकसर तीसरे, छठे और नौवें घंटे का ज़िक्र मिलता है और इन घंटों का हिसाब सूरज निकलने से यानी करीब 6 बजे से लगाया जाता था। (मत 20:1-5; यूह 4:6; प्रेष 2:15; 3:1; 10:3, 9, 30) इतना ही नहीं, उन दिनों घड़ियाँ नहीं होती थीं, इसलिए दिन का कोई समय बताते वक्त अकसर “करीब” शब्द इस्तेमाल होता था, जैसा कि यूह 19:14 में लिखा है। (मत 27:46; लूक 23:44; यूह 4:6; प्रेष 10:3, 9) इन बातों का निचोड़ यह है: मरकुस ने शायद काठ पर लटकाकर मार डालने की सज़ा में कोड़े लगवाने की बात भी शामिल की, जबकि यूहन्ना ने सिर्फ काठ पर लटकाकर मार डालने की बात की। दोनों लेखकों ने शायद मोटे तौर पर घंटों का ज़िक्र किया। मरकुस ने दिन के पहले पहर के आखिरी घंटे, यानी तीसरे घंटे का और यूहन्ना ने दूसरे पहर के आखिरी घंटे यानी छठे घंटे का ज़िक्र किया। यूहन्ना ने जब समय के बारे में बताया तो उसने “करीब” शब्द भी लिखा। शायद यही कुछ वजह हैं कि क्यों खुशखबरी की किताबों में अलग-अलग समय का ज़िक्र किया गया है। और-तो-और, यूहन्ना ने जो समय बताया वह मरकुस के बताए समय से अलग है, यह दिखाता है कि जब सालों बाद यूहन्ना ने खुशखबरी की किताब लिखी, तो उसने मरकुस के ब्यौरे की नकल नहीं की।
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