अध्याय 13
क्या सारे त्योहार परमेश्वर की नज़र में सही हैं?
“पक्का करते रहो कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।”—इफिसियों 5:10.
1. हमें क्या करना चाहिए ताकि यहोवा हमारी उपासना स्वीकार करे? हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?
यीशु ने कहा था, “सच्चे उपासक पिता की उपासना पवित्र शक्ति और सच्चाई से करेंगे। दरअसल, पिता ऐसे लोगों को ढूँढ़ रहा है जो इसी तरह उसकी उपासना करेंगे।” (यूहन्ना 4:23; 6:44) हममें से हर किसी को ‘पक्का करते रहना है कि प्रभु किन बातों को स्वीकार करता है।’ (इफिसियों 5:10) यह आसान नहीं होता। शैतान हमें गुमराह करने की कोशिश करता है ताकि हम ऐसे काम करें, जो यहोवा की नज़र में गलत हैं।—प्रकाशितवाक्य 12:9.
2. सीनै पहाड़ के पास क्या हुआ था?
2 शैतान हमें गुमराह कैसे करता है? एक तरीका है, हमें उलझन में डालकर ताकि हम समझ न पाएँ कि क्या सही है और क्या गलत। इसे समझने के लिए याद कीजिए कि जब इसराएली सीनै पहाड़ के पास डेरा डाले हुए थे, तो उन्होंने क्या किया। मूसा पहाड़ पर गया हुआ था और लोग उसके लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। जब वे इंतज़ार करते-करते थक गए, तो उन्होंने हारून से कहा कि वह उनके लिए एक देवता बनाए। हारून ने उनके लिए सोने का एक बछड़ा बनाया। फिर लोगों ने एक त्योहार मनाया। वे बछड़े के चारों तरफ नाचने लगे और उसके आगे दंडवत करने लगे। उनका मानना था कि ऐसा करके वे यहोवा की उपासना कर रहे हैं, “यहोवा के लिए एक त्योहार” मना रहे हैं। लेकिन उनके मानने से वह त्योहार ‘यहोवा का त्योहार’ नहीं बन गया। उन्होंने जो किया, वह यहोवा की नज़र में मूर्तिपूजा थी, इसलिए बहुत-से लोग मारे गए। (निर्गमन 32:1-6, 10, 28) इस घटना से हम क्या सीखते हैं? यही कि त्योहारों के मामले में हमें धोखे में नहीं रहना चाहिए। बाइबल कहती है, “किसी भी अशुद्ध चीज़ को मत छूओ” यानी हमें ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए, जिसका झूठे धर्मों से नाता हो। हमें यहोवा के वचन से जानना चाहिए कि उसकी नज़र में क्या सही है और क्या गलत।—यशायाह 52:11; यहेजकेल 44:23; गलातियों 5:9.
3, 4. हमें त्योहारों की शुरूआत के बारे में क्यों जानना चाहिए?
3 जब यीशु धरती पर था, तो उसने अपने प्रेषितों को शुद्ध उपासना करना सिखाया ताकि वे आगे चलकर लोगों को भी यही सिखाएँ। उसकी मौत के बाद प्रेषित नए चेलों को यहोवा के सिद्धांत सिखाते रहे। लेकिन प्रेषितों की मौत के बाद झूठे शिक्षक मसीहियों को गलत धारणाएँ सिखाने लगे, जिस वजह से वे गैर-ईसाई धर्मों के रिवाज़ और त्योहार मनाने लगे। इनमें से कुछ त्योहारों को झूठे शिक्षकों ने ईसाई नाम दे दिए, ताकि ऐसा लगे कि वे मसीही धर्म के ही त्योहार हैं। (प्रेषितों 20:29, 30; 2 थिस्सलुनीकियों 2:7, 10; 2 यूहन्ना 6, 7) उनमें से कई त्योहार आज भी बहुत धूम-धाम से मनाए जाते हैं, लेकिन पुराने ज़माने की तरह आज भी इनका नाता झूठी धारणाओं और जादू-टोने से है।a—प्रकाशितवाक्य 18:2-4, 23.
4 आज पूरी दुनिया में उत्सव और त्योहार मनाना लोगों के जीवन का एक हिस्सा बन चुका है। लेकिन जब आप हर बात को यहोवा के नज़रिए से देखना सीखेंगे, तो आपको एहसास होगा कि कुछ उत्सव और त्योहार यहोवा की नज़र में सही नहीं हैं। आपको उनके बारे में अपनी सोच बदलनी पड़ सकती है। शायद यह आसान न हो, मगर यकीन रखिए कि यहोवा आपकी मदद करेगा। अब हम कुछ जाने-माने त्योहारों के बारे में देखेंगे कि वे शुरू कैसे हुए थे। तब हम जान पाएँगे कि यहोवा को ये त्योहार कैसे लगते हैं।
क्रिसमस की शुरूआत
5. यह कैसे साबित होता है कि यीशु 25 दिसंबर को नहीं पैदा हुआ था?
5 दुनिया-भर में लोग मानते हैं कि यीशु का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था, इसलिए वे इस दिन क्रिसमस मनाते हैं। बाइबल में कहीं नहीं लिखा है कि यीशु किस दिन पैदा हुआ था, यहाँ तक कि यह भी नहीं लिखा है कि वह किस महीने पैदा हुआ था। लेकिन हमें थोड़ा-बहुत अंदाज़ा मिलता है कि वह किस महीने पैदा हुआ होगा। लूका ने लिखा कि यीशु बेतलेहेम में पैदा हुआ था और उस वक्त ‘कुछ चरवाहे मैदानों में रह रहे थे’ और अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे। (लूका 2:8-11) लेकिन बेतलेहेम में दिसंबर के महीने में ठंड पड़ती है, बारिश होती है और बर्फ भी गिरती है, इसलिए चरवाहे रात को भेड़ों के साथ मैदान में नहीं रह सकते थे। इससे साफ पता चलता है कि यीशु दिसंबर में नहीं, बल्कि ऐसे महीने में पैदा हुआ होगा, जब ज़्यादा ठंड नहीं पड़ती। अगर हम बाइबल और इतिहास में छानबीन करें, तो ऐसा मालूम पड़ता है कि यीशु सितंबर या अक्टूबर में पैदा हुआ था।
6, 7. (क) क्रिसमस से जुड़े कई रिवाज़ कैसे शुरू हुए? (ख) हमें किस वजह से दूसरों को तोहफा देना चाहिए?
6 दरअसल क्रिसमस की शुरूआत गैर-ईसाई धर्मों के त्योहारों से हुई। इनमें से एक था, सैटरनेलिया त्योहार, जिसे रोम के लोग कृषि-देवता सैटर्न के सम्मान में मनाते थे। एक जाने-माने विश्वकोश में लिखा है, “सैटरनेलिया रोमी लोगों का पर्व था, जो 15 दिसंबर के आस-पास मनाया जाता था। उसी पर्व से क्रिसमस के ज़्यादातर रिवाज़ निकले हैं, जैसे तोहफे देना, मोमबत्तियाँ जलाना, दावत उड़ाना, मौज-मस्ती करना।” फारसी लोग भी 25 दिसंबर को अपने सूर्य देवता मिथ्रा का जन्मदिन मनाते थे।
7 आज ज़्यादातर लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह त्योहार गैर-ईसाई धर्मों से निकला है। वे बस यह सोचकर इसे मनाते हैं कि उन्हें परिवारवालों के साथ खुशियाँ मनाने, अच्छा खाना खाने और तोहफे देने का मौका मिलता है। यहोवा के लोग क्रिसमस जैसे त्योहार नहीं मनाते, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे परिवारवालों और दोस्तों से प्यार नहीं करते। वे बेशक प्यार करते हैं। यहोवा भी चाहता है कि वे अपने परिवारवालों के साथ खुशियाँ मनाएँ और एक-दूसरे को प्यार की खातिर तोहफे दें। दूसरा कुरिंथियों 9:7 में लिखा है, “परमेश्वर खुशी-खुशी देनेवाले से प्यार करता है।” यहोवा चाहता है कि हम जब भी किसी को तोहफा दें, तो खुशी से और प्यार की वजह से दें और यह उम्मीद न करें कि बदले में हमें कुछ मिलेगा। इस वजह से हम किसी खास मौके का इंतज़ार नहीं करते, बल्कि किसी भी वक्त अपने दोस्तों को और परिवारवालों को तोहफा देते हैं या उनके साथ मिलकर खुशियाँ मनाते हैं।—लूका 14:12-14.
8. क्या ज्योतिषी यीशु के लिए उस वक्त तोहफे ले गए थे, जब वह एक नवजात शिशु था?
8 कुछ लोग कहते हैं कि क्रिसमस के दिन एक-दूसरे को तोहफे देना गलत नहीं है। इस बात को सही ठहराने के लिए वे कहते हैं कि जब यीशु एक नवजात शिशु था, तो उसे देखने तीन बुद्धिमान आदमी आए थे और वे उसके लिए कुछ तोहफे लाए थे। यह सच है कि कुछ आदमी यीशु को देखने गए थे और उन्होंने उसे तोहफे भी दिए थे। बाइबल के ज़माने में किसी खास व्यक्ति से मिलने जाते वक्त उसके लिए भेंट ले जाना एक दस्तूर था। (1 राजा 10:1, 2, 10, 13) पर क्या आप जानते हैं कि यीशु से मिलने जो आदमी गए थे, वे यहोवा के उपासक नहीं, बल्कि ज्योतिषी और जादू-टोना करनेवाले थे। इतना ही नहीं जब वे यीशु को देखने गए, तो वह चरनी में पड़ा एक नवजात शिशु नहीं था। वह थोड़ा बड़ा हो गया था और एक घर में रह रहा था।—मत्ती 2:1, 2, 11.
जन्मदिन के बारे में बाइबल में क्या लिखा है?
9. बाइबल में किन दो लोगों के जन्मदिन का ज़िक्र मिलता है?
9 जब एक बच्चे का जन्म होता है, तो वह खुशी का दिन होता है। (भजन 127:3) पर इसका यह मतलब नहीं कि हमें हर साल वह दिन जन्मदिन के तौर पर मनाना चाहिए। बाइबल में सिर्फ दो लोगों के जन्मदिन का ज़िक्र है, एक मिस्र के फिरौन का और दूसरा राजा हेरोदेस अन्तिपास का। (उत्पत्ति 40:20-22; मरकुस 6:21-29 पढ़िए।) वे दोनों यहोवा के उपासक नहीं थे। दरअसल बाइबल में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि यहोवा के किसी उपासक ने कभी जन्मदिन मनाया था।
10. जन्मदिन के बारे में शुरू के मसीहियों का क्या मानना था?
10 एक जाने-माने विश्वकोश के मुताबिक शुरू के मसीही मानते थे कि “जन्मदिन मनाने का रिवाज़ गैर-ईसाई धर्मों से निकला है।” यह रिवाज़ झूठी धारणाओं पर आधारित था। जैसे, पुराने ज़माने में यूनानी लोगों का मानना था कि जब भी किसी का जन्म होता है, तो एक आत्मा मौजूद रहती है और सारी ज़िंदगी उसकी रक्षा करती है। उस आत्मा का एक देवता से नाता होता है, जिसका जन्म भी उसी दिन हुआ था। यूनानी लोगों का मानना था कि अगर वे अपना जन्मदिन मनाएँगे, तभी वह आत्मा उनकी हिफाज़त करेगी। जन्मदिन के रिवाज़ का इस तरह की झूठी धारणाओं से, ज्योतिष-विद्या से और जन्म-कुंडलियों से भी नाता है।
11. उदारता के मामले में यहोवा हमसे क्या चाहता है?
11 कई लोग मानते हैं कि एक व्यक्ति का जन्मदिन उसकी ज़िंदगी का एक खास दिन होता है, इसलिए उस दिन उसे खास तौर से प्यार मिलना चाहिए। मगर हमें अपने परिवार के लोगों से और दोस्तों से हर दिन प्यार करना चाहिए, न कि सिर्फ उनके जन्मदिन पर। यहोवा चाहता है कि हम हर दिन दूसरों पर कृपा करें और उदार बनें। (प्रेषितों 20:35 पढ़िए।) हमें सिर्फ अपने जन्मदिन पर ही नहीं, बल्कि हर दिन यहोवा का एहसान मानना चाहिए कि उसने हमें जीवन दिया है।—भजन 8:3, 4; 36:9.
12. मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर कैसे हो सकता है?
12 सभोपदेशक 7:1 कहता है, “एक अच्छा नाम बढ़िया तेल से भी अच्छा है और मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर है।” मौत का दिन जन्म के दिन से बेहतर कैसे हो सकता है? जब हम पैदा होते हैं, तो हमने कुछ किया ही नहीं होता, न अच्छा, न बुरा। लेकिन मरने के दिन तक तो एक व्यक्ति काफी कुछ कर चुका होता है। अगर उसने यहोवा की सेवा की है और लोगों का भला किया है, तो उसने “अच्छा नाम” कमाया है और यहोवा उसे कभी नहीं भूलेगा। (अय्यूब 14:14, 15) यहोवा के लोग न तो अपना जन्मदिन मनाते हैं, न ही यीशु का। सिर्फ एक ही घटना है, जिसे याद करने की आज्ञा यीशु ने हमें दी है और वह है, उसकी मौत का दिन।—लूका 22:17-20; इब्रानियों 1:3, 4.
ईस्टर की शुरूआत
13, 14. ईस्टर का नाता किस बात से है?
13 कई लोग यह सोचकर ईस्टर मनाते हैं कि इस दिन यीशु जी उठा था। मगर सच तो यह है कि ईस्टर का नाता इयोस्ट्रा देवी से है, जिसे पश्चिमी यूरोप के लोग भोर और वसंत की देवी मानते थे। कथा-कहानियों का शब्दकोश (अँग्रेज़ी) के मुताबिक वह प्रजनन की देवी भी मानी जाती थी। इसी धारणा से ईस्टर के कुछ रिवाज़ जुड़े हैं। जैसे, एक रिवाज़ है ईस्टर में अंडों का इस्तेमाल। इसकी वजह अँग्रेज़ी विश्वकोश, ब्रिटैनिका में इस तरह बतायी गयी है, ‘अंडों को नयी ज़िंदगी और मरे हुओं के ज़िंदा होने का प्रतीक माना जाता है।’ उसी तरह खरगोश भी प्राचीन समय से ही प्रजनन क्षमता की निशानी माना गया है। इन सारी बातों से पता चलता है कि ईस्टर का नाता यीशु के ज़िंदा होने की घटना से नहीं है।
14 जब यहोवा देखता है कि लोग उसके बेटे के ज़िंदा होने की याद में झूठे धर्मों के रिवाज़ मना रहे हैं, तो क्या उसे खुशी होती होगी? बिलकुल नहीं। (2 कुरिंथियों 6:17, 18) असल में यहोवा ने हमसे कभी नहीं कहा कि हम यीशु के ज़िंदा होने की खुशी में कोई जश्न मनाएँ।
नए साल का जश्न
15. नए साल के जश्न की शुरूआत कैसे हुई?
15 एक और जाना-माना जश्न है, नए साल का जश्न। इसकी शुरूआत कैसे हुई? द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया के मुताबिक “ईसा पूर्व 46 में रोमी सम्राट जूलियस सीज़र ने नया साल मनाने के लिए 1 जनवरी की तारीख चुनी थी। रोम के लोगों ने इस दिन को जेनस देवता के नाम समर्पित किया था, जो फाटकों, दरवाज़ों और हर तरह की शुरूआत का देवता था। जेनस से ही जनवरी महीने का नाम पड़ा। इस देवता के दो मुँह थे, एक आगे की तरफ, दूसरा पीछे की तरफ।” ज़्यादातर लोग नए साल का जश्न इसी दिन मनाते हैं, लेकिन कुछ देशों में यह जश्न अलग-अलग तारीख पर मनाया जाता है और उनके रिवाज़ भी अलग-अलग होते हैं। कई जगहों पर लोग इस जश्न में जमकर शराब पीते हैं और रंगरलियाँ मनाते हैं। लेकिन रोमियों 13:13 में हमें यह सलाह दी गयी है, “आओ हम शराफत से चलें जैसे दिन के वक्त शोभा देता है, न कि बेकाबू होकर रंगरलियाँ मनाएँ, शराब के नशे में धुत्त रहें, नाजायज़ संबंधों और निर्लज्ज कामों में डूबे रहें, न ही झगड़े और जलन करने में लगे रहें।”
शादी के रस्मों-रिवाज़
16, 17. शादी की तैयारियाँ करते वक्त हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?
16 शादी खुशी का मौका होता है। दुनिया-भर में लोग शादी का जश्न अपने-अपने तरीके से मनाते हैं। ज़्यादातर लोग कभी नहीं सोचते कि शादी के रस्मों-रिवाज़ कहाँ से निकले हैं। लेकिन सच तो यह है कि कई रिवाज़ झूठे धर्मों से आए हैं। इस वजह से जो मसीही शादी की तैयारियाँ कर रहे हैं, उन्हें ध्यान रखना है कि उनकी शादी से यहोवा खुश हो। अगर वे पता करें कि उनके यहाँ के रस्मों-रिवाज़ कहाँ से निकले हैं, तो वे सही फैसला कर पाएँगे।—मरकुस 10:6-9.
17 माना जाता है कि शादी के कुछ रिवाज़ दूल्हा-दुल्हन के लिए “सौभाग्य” लाते हैं। (यशायाह 65:11) मिसाल के लिए, कुछ जगहों में दूल्हा-दुल्हन पर चावल के दाने या फूल बरसाए जाते हैं। कहते हैं कि इससे उन्हें संतान पैदा करने की शक्ति, खुशहाली और लंबी उम्र मिलती है और भूत-प्रेतों से उनकी रक्षा होती है। मगर ये रिवाज़ झूठे धर्मों से निकले हैं, इसलिए मसीही इन्हें नहीं मानते।—2 कुरिंथियों 6:14-18 पढ़िए।
18. शादी के इंतज़ाम करते वक्त एक मसीही को बाइबल के और किन सिद्धांतों को मानना चाहिए?
18 जो मसीही शादी की तैयारियाँ कर रहे हैं, उन्हें ऐसा इंतज़ाम करना चाहिए कि शादी में आए सब लोग खुश हों और मौके की गरिमा बनी रहे। अगर मेहमानों को मंच पर आकर कुछ कहने का मौका दिया जाता है, तो उन्हें ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए, जिससे किसी को बुरा लगे या जिनके दोहरे मतलब हों या फिर दूल्हा-दुल्हन या कोई और शर्मिंदा हो जाए। (नीतिवचन 26:18, 19; लूका 6:31; 10:27) मसीहियों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे अपनी शानो-शौकत का दिखावा न करें। (1 यूहन्ना 2:16) अगर आप शादी की तैयारियाँ कर रहे हैं, तो ऐसा इंतज़ाम कीजिए कि आपकी शादी का दिन आपके लिए एक खूबसूरत याद बन जाए।—“शादी की रस्में” देखिए।
सलामती का जाम
19, 20. सलामती का जाम पीने का रिवाज़ कैसे शुरू हुआ?
19 कई देशों में शादियों और दूसरी पार्टियों में सलामती का जाम पीना एक आम दस्तूर है। अकसर इन मौकों पर किसी के नाम जाम पीया जाता है। एक व्यक्ति किसी के अच्छे की कामना करता है और बाकी लोग सहमति जताने के लिए अपना-अपना जाम ऊपर उठाते हैं। क्या मसीहियों को यह रस्म माननी चाहिए?
20 शराब और संस्कृति के बारे में अंतर्राष्ट्रीय किताब (अँग्रेज़ी) बताती है कि शायद सलामती का जाम पीने की रस्म किसी प्राचीन गैर-ईसाई धर्म के रिवाज़ से निकली है। उस रिवाज़ में “देवताओं के लिए मदिरा या खून अर्पित किया जाता था” और “बदले में एक वरदान माँगा जाता था। इस तरह की कामना ऐसे शब्दों में की जाती थी, जैसे ‘यह जाम आपकी अच्छी सेहत के नाम!’ या ‘यह जाम आपकी लंबी उम्र के नाम!’” पुराने ज़माने में लोग अपना प्याला ऊपर उठाकर देवताओं से आशीर्वाद माँगते थे। मगर यहोवा से आशीषें पाने के लिए हमें इस तरीके से प्रार्थना नहीं करनी चाहिए।—यूहन्ना 14:6; 16:23.
“यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो”
21. मसीहियों को और किस तरह के त्योहार नहीं मनाने चाहिए?
21 जब आपको फैसला करना होता है कि आप फलाँ त्योहार या उत्सव मनाएँगे या नहीं, तो गौर कीजिए कि उसमें किस तरह की सोच और व्यवहार झलकता है। कुछ त्योहारों और कार्निवल उत्सवों में अश्लील किस्म का नाच-गाना होता है, बेरोक-टोक शराब पी जाती है, यहाँ तक कि नाजायज़ संबंध रखे जाते हैं। कुछ त्योहारों में समलैंगिक जीवन-शैली को या देश-भक्ति को बढ़ावा दिया जाता है। अगर हम इस तरह के त्योहार मनाएँगे, तो क्या हम उन बातों से नफरत कर रहे होंगे, जिनसे यहोवा नफरत करता है?—भजन 1:1, 2; 97:10; 119:37.
22. एक मसीही यह फैसला कैसे कर सकता है कि उसे फलाँ त्योहार मनाना चाहिए या नहीं?
22 मसीहियों को ऐसा कोई भी त्योहार या जश्न नहीं मनाना चाहिए, जिससे परमेश्वर का अपमान होता है। प्रेषित पौलुस ने लिखा, “चाहे तुम खाओ या पीओ या कोई और काम करो, सबकुछ परमेश्वर की महिमा के लिए करो।” (1 कुरिंथियों 10:31; “सही फैसले” देखिए।) यह सच है कि ऐसे त्योहार भी हैं, जिनका नाता अनैतिकता, झूठे धर्म या देश-भक्ति से नहीं है। ऐसे त्योहार शायद बाइबल के सिद्धांतों के खिलाफ न हों। लेकिन हम इन्हें मनाएँगे या नहीं, यह फैसला हमें खुद करना है। हमें यह भी देखना है कि अगर हम इन्हें मनाएँगे, तो इसका दूसरों पर कैसा असर पड़ेगा।
कथनी और करनी से यहोवा की महिमा
23, 24. हम रिश्तेदारों को कैसे समझा सकते हैं कि हमने फलाँ त्योहार मनाना क्यों छोड़ दिया?
23 शायद आपने ऐसे त्योहार मनाना छोड़ दिया हो, जिनसे यहोवा का अपमान होता है। लेकिन यह सब देखकर शायद आपके उन रिश्तेदारों को अच्छा न लगे, जो यहोवा के साक्षी नहीं हैं। वे मानते हैं कि त्योहार ही ऐसा मौका होता है, जब सब लोग इकट्ठा होते हैं और खुशियाँ मनाते हैं। इस वजह से वे सोच सकते हैं कि आप उनसे कोई मेल-जोल नहीं रखना चाहते या उन्हें पराया समझने लगे हैं। आप उनकी गलतफहमी कैसे दूर कर सकते हैं? आप ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं, जिनसे आप उन्हें यकीन दिला सकते हैं कि आप अब भी उनसे प्यार करते हैं। (नीतिवचन 11:25; सभोपदेशक 3:12, 13) आप किसी और मौके पर उन्हें खाने-पीने के लिए बुला सकते हैं।
24 शायद आपके रिश्तेदार किसी त्योहार के बारे में आपसे पूछें कि आपने उसे मनाना क्यों छोड़ दिया। उन्हें जवाब देने के लिए आप हमारे प्रकाशनों में और jw.org पर खोजबीन कर सकते हैं। तब आप उन्हें अच्छी तरह समझा पाएँगे। लेकिन उनसे इस तरह बात मत कीजिए मानो आप बहस जीतना चाहते हैं या उन्हें बता रहे हैं कि उनकी सोच गलत है। उन्हें प्यार से समझाइए कि आपने काफी जाँच-परख करने के बाद ही फैसला किया है कि आप वह त्योहार नहीं मनाएँगे और यह आपका अपना फैसला है। शांति से बात कीजिए। आपके “बोल हमेशा मन को भानेवाले और सलोने” होने चाहिए।—कुलुस्सियों 4:6.
25, 26. हमें अपने बच्चों को यहोवा के सिद्धांत क्यों समझाने चाहिए?
25 हममें से हर किसी को अच्छी तरह पता होना चाहिए कि हम फलाँ त्योहार या उत्सव क्यों नहीं मनाते। (इब्रानियों 5:14) इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं। हमें अपने बच्चों को भी बाइबल के सिद्धांत समझाने चाहिए ताकि उन्हें इन सिद्धांतों को मानने में खुशी मिले। जब यहोवा पर उनका यकीन बढ़ेगा, तो वे भी वही करना चाहेंगे जो उसकी मरज़ी है।—यशायाह 48:17, 18; 1 पतरस 3:15.
26 जब हम साफ और सच्चे मन से यहोवा की उपासना करने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं, तो उसे बहुत खुशी होती है। (यूहन्ना 4:23) लेकिन कई लोगों का मानना है कि इस बेईमान दुनिया में सच्चाई या ईमानदारी से रहना मुमकिन नहीं है। क्या यह सच है? इस बारे में हम अगले अध्याय में देखेंगे।
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