सुखी परिवार का राज़
बजट बनाना और सोच-समझकर पैसे खर्च करना
पति कहता है: “मेरे खयाल से मेरी पत्नी लौराa फिज़ूल में पैसे खर्च करती है। जिन चीज़ों की हमें ज़रूरत नहीं होती, वही खरीद लाती है। उसके हाथ में एक रुपया नहीं टिकता! यह तब एक समस्या बन जाता है, जब हमें कोई बड़ा खर्च उठाना पड़ता है। मैं तो यह बोल-बोलकर थक गया हूँ कि मेरी पत्नी के हाथ में पैसे आए नहीं कि वह उसे उड़ा डालती है।”
पत्नी कहती है: “माना कि मैं ज़्यादा पैसे नहीं बचा पाती, मगर उन्हें क्या पता, आजकल महँगाई कितनी बढ़ गयी है। खाना, साज-सज्जा के सामान और दूसरी चीज़ों के दाम आसमान छू रहे हैं। और फिर, घर पर तो मैं रहती हूँ। मुझे पता है कि घर में किन चीज़ों की ज़रूरत है। इसलिए मैं उन्हें खरीद लेती हूँ, भले ही इसके पीछे हम दोनों में एक बार फिर जंग क्यों न छिड़ जाए।”
पैसा उन विषयों में से एक है, जिसके बारे में ठंडे दिमाग से बात करना पति-पत्नी के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है। इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि मियाँ-बीवी के बीच झगड़े का सबसे बड़ा कारण होता है पैसा।
जो पति-पत्नी पैसों के बारे में सही नज़रिया नहीं रखते, वे शायद तनाव से गुज़रें, उनमें जब-तब तूतू-मैंमैं हो सकती है और वे एक-दूसरे के दिल को ठेस पहुँचा सकते हैं। यहाँ तक कि परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता भी टूट सकता है। (1 तीमुथियुस 6:9, 10) जो माता-पिता सोच-समझकर बजट नहीं बनाते, न ही इस बारे में बात करते हैं, उन्हें ज़्यादा काम करना पड़ सकता है। नतीजा, वे अपने साथी और बच्चों को वह प्यार और वक्त नहीं दे पाते हैं, जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। साथ ही, वे अपने परिवार के साथ मिलकर उपासना भी नहीं कर पाते हैं। यही नहीं, उनके बच्चे भी खर्चीले बनना सीख जाते हैं।
बाइबल भी कबूल करती है: ‘धन रक्षा करता है।’ (सभोपदेशक 7:12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) लेकिन पैसा आपकी शादीशुदा ज़िंदगी और परिवार की रक्षा सिर्फ तभी करेगा, जब आप सोच-समझकर पैसा खर्च करना और इस बारे में बात करना सीखेंगे।b दरअसल, पैसों के बारे में खुलकर चर्चा करने से पति-पत्नी एक-दूसरे से दूर नहीं होते बल्कि और भी करीब आते हैं।
तो फिर, शादीशुदा ज़िंदगी में पैसा इतनी समस्याएँ क्यों लाता है? और आप ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे पैसों के बारे में चर्चा करते वक्त आपके बीच झगड़ा न हो, बल्कि आप मिलकर समस्या का हल निकाल पाएँ?
कैसी-कैसी चुनौतियाँ?
अकसर पति-पत्नी में पैसों को लेकर जो तकरार होती है, उसकी वजह सिर्फ रुपया-पैसा नहीं। बल्कि उसकी और भी गहरी वजह होती है, वह है भरोसा और डर। मिसाल के लिए, जब एक पति अपनी पत्नी से पाई-पाई का हिसाब माँगता है, तो वह दरअसल यह ज़ाहिर करता है कि उसे अपनी पत्नी पर भरोसा नहीं कि उसमें घर के खर्चे चलाने की काबिलीयत है। दूसरी तरफ, जब पत्नी शिकायत करती है कि उसका पति ज़रा भी बचत नहीं करता, तो उसके कहने का मतलब होता है कि उसे डर है कि आगे चलकर कुछ ऐसा हादसा न हो जाए जिससे घर का दिवाला पिट जाए।
पति-पत्नियों में पैसों को लेकर जो झगड़े होते हैं, उसकी दूसरी वजह होती है कि वे अलग-अलग माहौल में पले-बड़े होते हैं। मैथ्यू, जिसकी शादी को 8 साल हो चुके हैं, कहता है: “मेरी पत्नी ऐसे परिवार से है, जहाँ पैसा सोच-समझकर खर्च किया जाता था। इसलिए उसे पैसों की उतनी चिंता नहीं होती, जितनी मुझे होती है। मेरे पिता एक शराबी थे और दिन-भर सिगरेट-पर-सिगरेट पीते थे। और महीनों-महीनों तक वे घर बैठे रहते थे। नतीजा, हमें अकसर ज़रूरत की चीज़ें नहीं मिल पाती थीं। इसलिए तब से मेरे दिल में यह डर बैठ गया है कि अगर हम कर्ज़ लेंगे तो हम उसे कभी नहीं चुका पाएँगे। इसी डर की वजह से मैं पैसों के मामले में अपनी पत्नी के साथ कुछ ज़्यादा ही सख्ती बरतता हूँ।” तनाव की वजह चाहे जो भी हो, आप ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे पैसों को लेकर नोंक-झोंक न हो और आपकी शादीशुदा ज़िंदगी बनी रहे?
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कामयाबी की तरफ चार कदम
बाइबल ऐसी किताब नहीं, जिसमें यह बताया गया हो कि पैसों का इस्तेमाल कैसे किया जाना चाहिए। लेकिन इसमें कुछ कारगर सलाहें ज़रूर दी गयी हैं, जिनकी मदद से पति-पत्नी पैसों से जुड़ी समस्याओं से बच सकते हैं। क्यों न आप इन सलाहों पर गौर करें और नीचे दिए सुझाव आज़माएँ?
1. ठंडे दिमाग से पैसों के बारे में बात करना सीखिए।
“जो सलाह लेते, वे समझदार हैं।” (नीतिवचन 13:10, बुल्के बाइबिल) आपकी जैसी परवरिश हुई है, उसके मुताबिक आपको पैसों के मामले में दूसरों की, खासकर अपने जीवन-साथी की राय लेना शायद अटपटा लगे। मगर फिर भी, बुद्धिमानी इसी में है कि आप इस अहम विषय के बारे में चर्चा करना सीखें। मिसाल के लिए, क्यों न अपने साथी को खुलकर बताएँ कि आपके माता-पिता पैसों के बारे में जो नज़रिया रखते थे, आपका भी वही नज़रिया है? साथ ही, यह भी समझने की कोशिश कीजिए कि आपके साथी पर उसकी परवरिश का कैसा असर हुआ है।
पैसों के बारे में बात करने के लिए समस्या खड़ी होने तक का इंतज़ार मत कीजिए। बाइबल के एक लेखक ने पूछा: “क्या दो व्यक्ति साथ-साथ यात्रा करेंगे, जब तक उन्होंने पहले से तय न कर दिया हो?” (आमोस 3:3, बुल्के बाइबिल) आप इस सिद्धांत पर कैसे चल सकते हैं? अगर आप परिवार के खर्चे पर चर्चा करने और बजट बनाने के लिए एक अलग समय तय करें, तो आप दोनों के बीच कम गलतफहमियाँ होंगी। इससे आप दोनों में बहसबाज़ी भी कम होगी।
इसे आज़माइए: परिवार के पैसों के बारे में बात करने के लिए एक समय चुनिए। यह हर महीने की पहली तारीख या हर हफ्ते का एक दिन हो सकता है। बातचीत छोटी रखिए, करीब 15 मिनट या उससे कम। चर्चा करने के लिए ऐसा समय तय कीजिए, जब आप दोनों इत्मीनान से बात कर सकें। लेकिन ध्यान रखिए कि ऐसी चर्चा खाने के समय नहीं की जानी चाहिए, न ही उस वक्त की जानी चाहिए जब आप अपने बच्चों के साथ फुरसत का समय बिता रहे हों।
2. मिलकर तय कीजिए कि परिवार की आमदनी के लिए कैसा नज़रिया रखेंगे।
“एक-दूसरे का आदर करने में पहल करो।” (रोमियों 12:10) अगर कमानेवाले सिर्फ आप हैं, तो अपनी आमदनी को अपना नहीं बल्कि परिवार का पैसा मानकर चलिए। ऐसा कर आप अपने जीवन-साथी के लिए आदर दिखाते हैं।—1 तीमुथियुस 5:8.
लेकिन अगर आप पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, तो अपनी कमाई और खर्चों के बारे में एक-दूसरे को साफ-साफ बताइए। ऐसा कर आप एक-दूसरे को आदर दिखाते हैं। अगर आप अपने जीवन-साथी को अपनी तनख्वाह और खर्चों के बारे में नहीं बताएँगे, तो आप उसका भरोसा तोड़ रहे होंगे और इससे आपके रिश्ते की डोर कमज़ोर हो जाएगी। यह ज़रूरी नहीं कि हर छोटी-मोटी चीज़ खरीदने से पहले आप अपने जीवन-साथी से पूछें। लेकिन कोई भी बड़ी खरीददारी करने से पहले अच्छा होगा कि आप इस बारे में अपने जीवन-साथी के साथ चर्चा करें। इस तरह आप दिखाएँगे कि आप उसकी राय की कदर करते हैं।
इसे आज़माइए: एक रकम तय कीजिए जिसे आप एक-दूसरे से पूछे बिना खर्च कर सकते हैं। यह रकम 50 से 500 रुपए या उससे भी ज़्यादा हो सकती है। लेकिन जहाँ तय रकम से ज़्यादा खर्च करने की बात आती है, हमेशा अपने जीवन-साथी से पूछकर ऐसा कीजिए।
3. अपनी योजनाएँ कागज़ पर लिखिए।
“परिश्रमी पुरुष की योजनाएं निस्सन्देह समृद्धि लाती हैं।” (नीतिवचन 21:5, नयी हिन्दी बाइबिल) भविष्य के लिए योजना बनाने का एक तरीका है, परिवार का बजट बनाना। ऐसा करने से आपकी मेहनत बेकार भी नहीं जाएगी। नीना, जिसकी शादी को 5 साल हो चुके हैं, कहती है: “जब हम अपनी आमदनी और खर्च कागज़ पर उतार लेते हैं, तो यह देखकर हम शायद हैरत में पड़ जाएँ कि हम कितने पैसे बचा पा रहे हैं और कितने उड़ा रहे हैं। सारा हिसाब-किताब लिख लेने से परिवार की आर्थिक हालत की साफ तसवीर मिलती है।”
आपको ऐसा बजट नहीं बनाना चाहिए, जो बहुत ही पेचीदा हो। डैरन, जिसकी शादी को 26 साल हो चुके हैं और जिसके दो बेटे हैं, कहता है: “पहले-पहल, हम लिफाफे का इस्तेमाल करते थे। हम अलग-अलग लिफाफों में पूरे हफ्ते के खर्चों के हिसाब से पैसे रखते थे। जैसे खाने के लिए, मनोरंजन के लिए और बाल कटाने के लिए वगैरह-वगैरह। अगर कभी एक लिफाफे में पैसे कम पड़ जाते थे, तो हम दूसरे लिफाफे से पैसे लेते थे। लेकिन साथ ही हम इस बात का भी ध्यान रखते थे कि जितना जल्दी हो सके उस लिफाफे के पैसे वापस डाल दें।” अगर आप बिल चुकाने के लिए अकसर क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करते हैं, तो यह और भी ज़रूरी है कि आप कितना खर्च करेंगे, उसकी पहले से योजना बनाएँ और पैसे खर्च करने के बाद उसका हिसाब भी रखें।
इसे आज़माइए: उन खर्चों को लिख लीजिए, जिनकी रकम तय होती है। मिलकर फैसला कीजिए कि आप अपनी आमदनी का कितना हिस्सा बचाकर रखेंगे। उसके बाद उन खर्चों को लिखिए जिनकी रकम कम या ज़्यादा हो सकती है, जैसे खाना-पीना, बिजली और टेलीफोन बिल। अब कुछ महीनों तक उन पैसों का हिसाब रखिए, जो आप असल में खर्च करते हैं। ज़रूरत पड़ने पर अपने जीने के तरीके में बदलाव लाइए, ताकि उधार लेने की नौबत ही न आए।
4. कौन क्या करेगा, यह मिलकर तय कीजिए।
“एक से दो अच्छे हैं, क्योंकि उनके परिश्रम का अच्छा फल मिलता है।” (सभोपदेशक 4:9, 10) कुछ परिवारों में पैसा पति के हाथ में रहता है। जबकि दूसरे परिवारों में, यह ज़िम्मेदारी एक पत्नी बढ़िया तरीके से निभाती है। (नीतिवचन 31:10-28) मगर कुछ जोड़े ऐसे होते हैं, जो यह ज़िम्मेदारी आपस में बाँट लेते हैं। मारियो, जिसकी शादी को 21 साल हो चुके हैं, कहता है: “मेरी पत्नी सारे बिल और छोटे-मोटे खर्चों का हिसाब रखती है। मैं टैक्स, कॉन्ट्रैक्ट्स (जैसे, गाड़ी की किश्ते चुकाना) और किराए का हिसाब रखता हूँ। हम एक-दूसरे को हिसाब-किताब बताते रहते हैं और साझेदारों की तरह काम करते हैं।” घर का खर्च चलाने के लिए आपका तरीका चाहे जो भी हो, ज़रूरी बात यह है कि आप साथ मिलकर काम करें।
इसे आज़माइए: एक-दूसरे की काबिलीयतों और कमज़ोरियों को ध्यान में रखते हुए तय कीजिए कि कौन क्या ज़िम्मेदारी सँभालेगा। कुछ महीनों बाद, चर्चा कीजिए कि आप अपनी ज़िम्मेदारी कैसे निभा रहे हैं। ज़रूरत पड़ने पर फेरबदल कीजिए। समय-समय पर आप बिल चुकाने या खरीदारी करने जैसी ज़िम्मेदारियाँ आपस में अदल-बदल सकते हैं। ऐसा करने से आप अपने साथी के काम की कदर कर पाएँगे।
पैसों के बारे में बातचीत करना क्या दिखाता है
ऐसा मत सोचिए कि पैसों के बारे में चर्चा करने से आप दोनों के बीच का प्यार खत्म हो जाएगा। लीआ ने, जिसकी शादी को 5 साल हो चुके हैं, पाया कि यह बात शत-प्रतिशत सच है। वह कहती है: “मैंने और मेरे पति ने एक-दूसरे से पैसों के बारे में खुलकर बातचीत करना सीखा है। इसका नतीजा यह हुआ कि अब हम मिलकर काम करते हैं और इससे हमारा प्यार भी बढ़ा है।”
जब जोड़े यह बात करते हैं कि वे कैसे अपना पैसा खर्च करेंगे, तो वे दरअसल आपस में अपनी उम्मीदें और हसरतें बाँट रहे होते हैं। साथ ही, शादी के वादे को पक्का करते हैं। जब वे कोई भी बड़ी खरीदारी करने से पहले आपस में सलाह-मशविरा करते हैं तो वे एक-दूसरे की राय और भावनाओं के लिए कदर दिखाते हैं। और जब वे एक-दूसरे को तय की हुई रकम खर्च करने की छूट देते हैं, तो वे एक-दूसरे पर भरोसा ज़ाहिर करते हैं। ज़िंदगी-भर साथ निभाने का वादा, आदर और भरोसा ही एक जोड़े को सच्चे प्यार के रिश्ते में बँधने में मदद देते हैं। ऐसा रिश्ता पैसों से भी कहीं अनमोल है, तो फिर पैसों को लेकर बहस क्यों करें? (w09 08/01)
a नाम बदल दिए गए हैं।
b बाइबल कहती है: “पति अपनी पत्नी का सिर है।” इसलिए पति पर दो खास ज़िम्मेदारियाँ आती हैं। पहली, परिवार के पैसे का कैसे सही इस्तेमाल करना और दूसरी, अपनी पत्नी से प्यार से पेश आना और बिना स्वार्थ के उसके बारे में सोचना।—इफिसियों 5:23, 25.
खुद से पूछिए . . .
मैंने कब आखिरी बार अपने जीवन-साथी के साथ इत्मीनान से पैसों के बारे में बात की?
पैसों के मामले में मेरा जीवन-साथी जो मदद देता है, उसकी कदरदानी ज़ाहिर करने के लिए मैं क्या कह या कर सकता हूँ?