इंसान की शुरूआत विकासवाद से हुई है, क्या बाइबल भी यही सिखाती है?
क्या यह हो सकता है कि परमेश्वर ने विकासवाद के ज़रिए जानवरों से इंसान बनाए हों? क्या परमेश्वर ने ऐसा सिलसिला शुरू किया कि जीवाणु धीरे-धीरे मछली में बदल गए, मछली रेंगनेवाले जंतुओं में, रेंगनेवाले जंतु स्तनधारी जानवरों में और आगे चलकर बंदर इंसान में बदल गए? कुछ वैज्ञानिक और धर्मगुरु विकासवाद की शिक्षा और बाइबल दोनों को मानने का दावा करते हैं। मगर वे कहते हैं कि बाइबल की किताब उत्पत्ति में पहले इंसान की सृष्टि का जो ब्योरा दिया है, वह महज़ एक अच्छी कहानी है। शायद आपके मन भी यह सवाल उठा हो कि ‘क्या बाइबल में दिया सृष्टि का ब्योरा इस शिक्षा से मेल खाता है कि इंसान जानवरों से आया है?’
हम इंसानों के लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि हमारी शुरूआत कैसे हुई। तभी हम जान पाएँगे कि हम कौन हैं, हमारे जीने का क्या मकसद है और हमें कैसे जीना चाहिए। हमारी शुरूआत के बारे में जानने से ही हम समझ सकेंगे कि परमेश्वर ने दुःख-तकलीफों को क्यों रहने दिया है और हमारे भविष्य के लिए उसने क्या मकसद रखा है। अगर हमें यकीन नहीं कि परमेश्वर ने हमें रचा है, तो हम उसके साथ एक अच्छा रिश्ता नहीं बना सकते। इसलिए आइए जाँचें कि बाइबल इंसान की शुरूआत, आज उसकी दशा और उसके भविष्य के बारे में क्या कहती है। इसके बाद हम देखेंगे कि बाइबल और विकासवाद की शिक्षा के बीच क्या कोई तालमेल है।
जब धरती पर सिर्फ एक ही इंसान था
विकासवादी आम तौर पर इस बात से इनकार करते हैं कि एक ही इंसान से पूरी मानवजाति आयी है। इसके बजाय, वे दावा करते हैं कि बहुत-से जानवर धीरे-धीरे इंसान बन गए। लेकिन बाइबल बिलकुल अलग बात बताती है। यह कहती है कि हम सब एक ही इंसान, आदम से आए हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि आदम सचमुच में जीया था। बाइबल में उसकी पत्नी और उनके कुछ बच्चों के नाम भी दिए गए हैं। यही नहीं, बाइबल पूरी-पूरी जानकारी देती है कि आदम ने क्या किया, क्या कहा, वह कब जीया था और कब मरा। यीशु की नज़रों में आदम का ब्योरा अनपढ़-गँवारों के लिए सिर्फ एक अच्छी कहानी नहीं थी। उसने पढ़े-लिखे धर्मगुरुओं से बात करते वक्त भी, इसी ब्योरे का ज़िक्र किया और कहा, ‘क्या तुम ने नहीं पढ़ा, कि जिस ने उन्हें बनाया, उस ने आरम्भ से नर और नारी बनाया?’ (मत्ती 19:3-5) इसके बाद, यीशु ने पहले पुरुष आदम और पहली स्त्री हव्वा के बारे में वे बातें बतायीं, जो उत्पत्ति 2:24 में दर्ज़ हैं।
बाइबल के एक लेखक और अचूक इतिहासकार, लूका से पता चलता है कि यीशु की तरह आदम भी सचमुच में जीया था। लूका ने अपनी किताब में यीशु की वंशावली दी थी, जो आदम से शुरू होती है। (लूका 3:23-38) यही नहीं, प्रेरित पौलुस ने एक भीड़ से कहा था, “परमेश्वर, जिसने इस जगत की और इस जगत के भीतर जो कुछ है, उसकी रचना की . . . एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें।” (प्रेरितों 17:24-26, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इस भीड़ में कुछ ऐसे तत्त्वज्ञानी भी मौजूद थे, जिन्होंने मशहूर यूनानी विश्वविद्यालयों से तालीम हासिल की थी। तो इन सारी बातों से साफ ज़ाहिर है कि बाइबल सिखाती है कि हम “एक ही मनुष्य” से आए हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि बाइबल, शुरूआत में इंसान की दशा के बारे में जो कहती है, क्या वह विकासवाद की शिक्षा से मेल खाती है?
इंसान का सिद्ध से असिद्ध बनना
बाइबल बताती है कि यहोवा परमेश्वर ने पहले आदमी को सिद्ध बनाया था यानी उसमें कोई खोट नहीं थी। ऐसा हो ही नहीं सकता था कि परमेश्वर की सृष्टि में कोई खराबी हो। बाइबल में दिया सृष्टि का ब्योरा कहता है, “परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। . . . तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति 1:27, 31) तो फिर एक सिद्ध इंसान कैसा होता है?
एक सिद्ध इंसान आज़ाद मरज़ी का मालिक होता है, यानी उसे अपने फैसले खुद करने की आज़ादी होती है। साथ ही, वह परमेश्वर के गुणों को पूरी तरह से ज़ाहिर कर सकता है। बाइबल कहती है, “परमेश्वर ने मनुष्य को सीधा बनाया, परन्तु उन्हों ने बहुत सी युक्तियां निकाली हैं।” (सभोपदेशक 7:29) आदम ने अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल किया। उसने परमेश्वर के खिलाफ बगावत की। नतीजा, उसने अपने और अपनी आनेवाली पीढ़ी के लिए सिद्धता खो दी। यही वजह है कि हम इंसान अकसर न चाहते हुए भी गलत काम कर बैठते हैं। प्रेरित पौलुस के साथ भी ऐसा हुआ था। उसने कहा, “जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं।”—रोमियों 7:15.
बाइबल के मुताबिक एक सिद्ध इंसान बढ़िया सेहत के साथ हमेशा के लिए जी सकता है। परमेश्वर ने आदम से कहा था कि अगर वह उसकी आज्ञा नहीं तोड़ेगा, तो उसे बीमारी और मौत कभी नहीं आएगी। (उत्पत्ति 2:16, 17; 3:22, 23) अगर आदम शुरू से बीमार पड़ता और उसमें बगावत करने की फितरत होती, तो परमेश्वर उसे बनाने के बाद यह न कहता कि वह “बहुत ही अच्छा है।” मगर इंसान असिद्ध हो गया। यही वजह है कि वे अपंगता और बीमारी के शिकार होते हैं, इसके बावजूद कि उनके शरीर की रचना कमाल की है। इसलिए विकासवाद की शिक्षा और बाइबल के बीच कोई तालमेल नहीं है। क्योंकि विकासवाद की शिक्षा के मुताबिक इंसान एक ऐसा प्राणी है जो लगातार उन्नति कर रहा है। जबकि बाइबल बताती है कि पहले सिद्ध इंसान के बाद से इंसान की दशा बदतर होते जा रही है।
यह विचार कि परमेश्वर ने इंसान को बनाने के लिए विकासवाद का इस्तेमाल किया है, बाइबल में दी एक और सच्चाई से मेल नहीं खाता। वह सच्चाई क्या है? वह है, परमेश्वर का व्यक्तित्व। अगर परमेश्वर ने विकासवाद का सिलसिला शुरू किया था, तो इसका मतलब यह हुआ कि आज इंसान की तमाम दुःख-तकलीफों और बीमारियों को भी उसी ने शुरू किया था। लेकिन बाइबल परमेश्वर के बारे में कहती है, “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है। परन्तु इसी जाति के लोग . . . बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं; यह उनका कलंक है।” (व्यवस्थाविवरण 32:4, 5) तो फिर यह कहना सही होगा कि आज इंसान की दुःख-तकलीफों की वजह यह नहीं कि परमेश्वर ने विकासवाद का कोई सिलसिला शुरू किया था। बल्कि इसकी असल वजह यह है कि एक इंसान आदम ने परमेश्वर के खिलाफ जाकर अपने और अपने बच्चों के लिए सिद्धता खो दी थी। अब तक हमने आदम के बारे में चर्चा की है। लेकिन आइए कुछ देर के लिए यीशु पर ध्यान दें। उसके बारे में बाइबल जो बताती है, क्या वह विकासवाद की शिक्षा से मेल खाता है?
क्या आप विकासवाद के साथ-साथ बाइबल पर भी आस्था रख सकते हैं?
आपको शायद मालूम हो कि बाइबल की एक खास शिक्षा यह है कि ‘मसीह हमारे पापों के लिये मरा’ था। (1 कुरिन्थियों 15:3; 1 पतरस 3:18) इस शिक्षा और विकासवाद की शिक्षा के बीच कोई तालमेल नहीं है। ऐसा क्यों कहा जा सकता है? यह जानने के लिए पहले हमें समझना होगा कि बाइबल हमें पापी क्यों कहती है और पाप का हम पर क्या असर होता है।
हम सब इसलिए पापी हैं क्योंकि हम प्रेम और न्याय जैसे परमेश्वर के महान गुणों को हू-ब-हू ज़ाहिर नहीं कर सकते। इसलिए बाइबल कहती है, “सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं।” (रोमियों 3:23) बाइबल सिखाती है कि पाप की वजह से ही इंसान मरता है। बाइबल में पहला कुरिन्थियों 15:56 कहता है, “मृत्यु का डंक पाप है।” हमारी बीमारियों की खास वजह भी यही पाप है, जो हमें हमारे पूर्वज आदम से मिला था। यीशु ने एक मौके पर दिखाया कि बीमारी और पाप के बीच गहरा ताल्लुक है। जब उसने लकवे से पीड़ित एक आदमी से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए,” तो वह आदमी बिलकुल ठीक हो गया।—मत्ती 9:2-7.
यीशु के मरने से हमें क्या फायदा होता है? बाइबल बताती है कि यीशु मसीह, आदम से किस तरह अलग था। यह कहती है: “जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।” (1 कुरिन्थियों 15:22) यीशु ने हमारे पापों के लिए अपनी जान कुरबान कर दी। इसलिए जो कोई यीशु पर विश्वास करता और उसकी आज्ञा मानता है उसे वैसी ज़िंदगी जीने की आशा मिलेगी जो आदम ने गँवा दी थी, यानी हमेशा की ज़िंदगी।—यूहन्ना 3:16; रोमियों 6:23.
तो आप देख सकते हैं कि विकासवाद की शिक्षा और बाइबल के बीच कोई तालमेल नहीं है। अगर हमें इस बात पर शक है कि “आदम में सब मरते हैं,” तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि “मसीह में सब जिलाए जाएंगे”?
लोगों को विकासवाद की शिक्षा क्यों पसंद है
बाइबल समझाती है कि विकासवाद जैसी शिक्षाएँ लोगों को इतनी पसंद क्यों आती हैं। यह कहती है, “एक समय ऐसा आयेगा जब लोग उत्तम उपदेश को सुनना तक नहीं चाहेंगे। वे अपनी इच्छाओं के अनुकूल अपने लिए बहुत से गुरु इकट्ठे कर लेंगे, जो वही सुनाएँगे जो वे सुनना चाहते हैं। वे अपने कानों को सत्य से फेर लेंगे और कल्पित कथाओं पर ध्यान देने लगेंगे।” (2 तीमुथियुस 4:3, 4, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हालाँकि आम तौर पर माना जाता है कि विकासवाद की शिक्षा, विज्ञान से जुड़ी है, लेकिन असल में यह धर्म से जुड़ी शिक्षा है। यह लोगों को सिखाती है कि उन्हें ज़िंदगी और परमेश्वर के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए। यह शिक्षा बड़ी चालाकी से लोगों को उकसाती है कि वे अपने अंदर छिपे स्वार्थ को पूरा करें और जो जी में आए वह करें। विकासवाद को माननेवाले कई लोग परमेश्वर पर भी आस्था रखने का दम भरते हैं। लेकिन उन्हें लगता है कि परमेश्वर ने कोई सृष्टि-वृष्टि नहीं की, वह इंसान के मामलों में दखल नहीं देता और न ही लोगों को सज़ा देगा। वाकई, विकासवाद की शिक्षा लोगों को वही बातें सुनाती है, जो वे सुनना पसंद करते हैं।
कई लोग ठोस सबूतों के आधार पर नहीं, बल्कि “अपनी इच्छाओं” के मुताबिक विकासवाद की शिक्षा को बढ़ावा देते हैं। शायद वे वैज्ञानिक क्षेत्र के उन विद्वानों की नज़रों में छाना चाहते हों जो विकासवाद की शिक्षा को मानते हैं। गौर कीजिए कि जीव-रसायन के प्रोफेसर माइकल बीही ने क्या कहा, जिन्होंने सालों से यह अध्ययन किया है कि हमारे शरीर में कोशिकाएँ किस जटिल तरीके से काम करती हैं। उनका कहना है कि लोगों का यह दावा कि विकासवाद के ज़रिए ही कोशिकाएँ बनी हैं, बिलकुल बेबुनियाद है। क्या वाकई एक छोटी-सी कोशिका में विकास हो सकता है? इस बारे में बीही कहते हैं, “विज्ञान इस बात का कोई सबूत नहीं देता कि कोशिका का विकास हुआ है। विज्ञान की कोई भी नामी-गिरामी पत्रिका या किताब यह नहीं बताती कि एक जीवित और जटिल कोशिका का विकास कैसे हुआ था या कैसे हुआ होगा। . . . डार्विन का यह दावा कि कोशिका का विकास हुआ है, एकदम बकवास है।”
अगर विकासवादी अपने विचारों का कोई सबूत पेश नहीं कर सकते, तो वे उन विचारों का ढिंढोरा क्यों पीटते हैं? बीही समझाते हैं: “कई लोग यहाँ तक कि जाने-माने और इज़्ज़तदार वैज्ञानिक भी यह मानना नहीं चाहते हैं कि सारी सृष्टि के पीछे परमेश्वर का हाथ हो सकता है।”
कई पादरी, विकासवाद की शिक्षा को बढ़ावा देते हैं, क्योंकि वे खुद को बुद्धिमान दिखाना चाहते हैं। ऐसे ही कुछ लोग प्रेरित पौलुस के दिनों में भी थे। उनके बारे में पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखे अपने खत में यह कहा, “परमेश्वर के विषय का ज्ञान उन के मनों में प्रगट है। . . . उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं। इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्हों ने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया। वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।” (रोमियों 1:19-22) आप झूठे शिक्षकों से धोखा खाने से कैसे बच सकते हैं?
सबूतों के आधार पर सिरजनहार पर विश्वास कीजिए
विश्वास क्या है, यह बताते वक्त बाइबल प्रमाणों पर ज़ोर देती है। यह कहती है, “विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” (इब्रानियों 11:1) परमेश्वर पर सच्चा विश्वास, प्रमाणों या सबूतों पर टिका होना चाहिए, जो साबित करे कि सचमुच में एक सिरजनहार है। बाइबल बताती है कि आपको ऐसे सबूत कहाँ मिल सकते हैं।
बाइबल के एक लेखक दाऊद ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा, “मैं तेरा धन्यवाद करूंगा, इसलिये कि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूं।” (भजन 139:14) जब हम अपने शरीर और दूसरे जीवित प्राणियों की बेमिसाल रचना पर गहराई से सोचते हैं, तो हमारे बनानेवाले की बुद्धि देखकर हम श्रद्धा और विस्मय से भर जाते हैं। हमारे शरीर में मौजूद हज़ारों व्यवस्थाओं को इतने बढ़िया तरीके से बनाया गया है कि ये एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं और हमें ज़िंदा रखती हैं। हमारे विश्वमंडल में तारों और ग्रहों को नाप-तौलकर अपनी जगह पर रखा गया है और वे एक-दूसरे से नहीं टकराते। यह एक और सबूत है कि एक सिरजनहार है। दाऊद ने लिखा, “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है।”—भजन 19:1.
खुद बाइबल ही इस बात का सबूत है कि एक सिरजनहार है। इसकी 66 किताबों में कमाल का तालमेल पाया जाता है। इसमें दिए नैतिक स्तर दुनिया के स्तरों से कहीं ऊँचे हैं और इसमें दी भविष्यवाणियाँ अचूक तरीके से पूरी हुई हैं। इन सारी बातों की जाँच करने से आपको ढेरों सबूत मिलेंगे कि जिसने बाइबल लिखवायी है वही सिरजनहार है। इसके अलावा, बाइबल की शिक्षाओं की गहरी समझ पाने से भी आपको यकीन हो जाएगा कि बाइबल ही सिरजनहार का वचन है। मिसाल के लिए, जब आप बाइबल से इन सवालों के जवाब जानेंगे कि हम पर दुःख-तकलीफें क्यों आयी हैं, परमेश्वर का राज क्या है, इंसान का भविष्य क्या होगा, और खुशी कैसे पायी जा सकती है, तो आप साफ देख पाएँगे कि परमेश्वर कितना बुद्धिमान है। फिर आप भी पौलुस की तरह बोल उठेंगे, “आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह, और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!”—रोमियों 11:33.
जैसे-जैसे आप इन सबूतों की जाँच करेंगे, आपका विश्वास उतना ही बढ़ता जाएगा। इसके बाद जब-जब आप बाइबल पढ़ेंगे, आपको यकीन होगा कि आप खुद सिरजनहार की बातें सुन रहे हैं। वह कहता है, “मैं ही ने पृथ्वी को बनाया और उसके ऊपर मनुष्यों को सृजा है; मैं ने अपने ही हाथों से आकाश को ताना और उसके सारे गणों को आज्ञा दी है।” (यशायाह 45:12) यहोवा ने ही सारी चीज़ों की सृष्टि की है, इस बात का खुद को यकीन दिलाइए। ऐसा करने पर आपको कभी कोई रंज नहीं होगा। (w 08 1/1)
[पेज 14 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
प्रेरित पौलुस ने पढ़े-लिखे यूनानियों से कहा था, ‘परमेश्वर ने एक ही मनुष्य से मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया’
[पेज 15 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
विकासवाद की शिक्षा के मुताबिक इंसान एक ऐसा प्राणी है जो लगातार उन्नति कर रहा है। जबकि बाइबल बताती है कि पहले सिद्ध इंसान के बाद से इंसान की दशा बदतर होते जा रही है
[पेज 16 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“विज्ञान इस बात का कोई सबूत नहीं देता कि कोशिका का विकास हुआ है”
[पेज 17 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
जीवित प्राणियों की बेमिसाल रचना, हमें अपने बनानेवाले के लिए श्रद्धा और विस्मय से भर देती है