क्या अदन का बाग सच में था?
दुनिया-भर में बहुत-से लोग आदम-हव्वा या अदन के बाग के बारे में जानते हैं। क्या आपने इस बारे में कभी सुना है? अगर नहीं, तो यह किस्सा आपको बाइबल में उत्पत्ति 1:26–3:24 में मिलेगा। आइए इस किस्से पर एक नज़र डालते हैं।
यहोवा परमेश्वरa ने पहले इंसान आदम को मिट्टी से बनाया। उसके रहने के लिए परमेश्वर ने अदन नाम के इलाके में एक बाग लगाया। वहाँ पर नदियाँ बहती थीं और तरह-तरह के पेड़ थे। बाग के बीचों-बीच ‘अच्छे-बुरे के ज्ञान का एक पेड़ था।’ परमेश्वर ने इस पेड़ का फल खाने से मना किया था। अगर इंसान परमेश्वर की आज्ञा तोड़ता, तो वह मर जाता। फिर परमेश्वर ने सोचा कि आदम का एक जीवन-साथी होना चाहिए। इसलिए उसने आदम की पसली से पहली औरत हव्वा को बनाया। परमेश्वर ने उन्हें उस बगीचे की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी और उनसे कहा कि वे बच्चे पैदा करें और पूरी धरती को आबाद करें।
एक बार जब हव्वा अकेली थी, तो एक साँप ने आकर उससे बात की। उसने कहा कि परमेश्वर झूठ बोल रहा है और इंसानों को अच्छी चीज़ें नहीं देना चाहता। अगर वह उस पेड़ का फल खा लेगी, तो परमेश्वर के जैसी हो जाएगी। हव्वा साँप की बातों में आ गयी और उसने पेड़ का फल खा लिया। बाद में आदम ने भी वह फल खाकर परमेश्वर की आज्ञा तोड़ दी। यहोवा ने आदम-हव्वा और साँप को सज़ा सुनायी। इंसानों को अदन के बाग से निकाल दिया गया और स्वर्गदूत उस बाग पर पहरा देने लगे।
पहले के समय में, बहुत-से पढ़े-लिखे लोग, जैसे कई विद्वान और इतिहासकार उत्पत्ति की किताब में लिखी बातों को सच मानते थे। पर आजकल कई लोगों को इन बातों पर यकीन करना मुश्किल लगता है। वे कहते हैं कि यह सब सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी है। ऐसा क्यों? आइए इस किस्से में बतायी ऐसी चार बातों पर ध्यान दें जिनकी वजह से लोग इस किस्से को सच नहीं मानते।
1. क्या अदन का बाग सचमुच की कोई जगह थी?
कई सालों तक कुछ चर्च के अगुवों का मानना था कि धरती पर अभी-भी कहीं-न-कहीं अदन का बाग है। लेकिन कुछ यूनानी दार्शनिकों का कहना था कि ऐसा बाग धरती पर हो ही नहीं सकता, ऐसी जगह तो सिर्फ स्वर्ग में हो सकती है। इन दार्शनिकों की सोच का असर चर्च के अगुवों पर भी होने लगा। वे भी मानने लगे कि अदन का बाग इस पापी दुनिया से बहुत दूर किसी ऊँचे पहाड़ पर रहा होगा।b कुछ और लोगों का कहना था कि यह बाग पृथ्वी के उत्तरी या दक्षिणी ध्रुव पर या चाँद के आस-पास रहा होगा। इस तरह की बातें सुनकर लोगों को लगने लगा कि अदन का बाग सचमुच की कोई जगह नहीं थी। आज के कुछ विद्वानों का भी कहना है कि अदन का बाग कहाँ था, इस बारे में बाइबल जो बताती है, उस पर यकीन नहीं किया जा सकता। इसलिए उनका मानना है कि अदन के बाग जैसी कोई जगह थी ही नहीं।
अदन के बाग के बारे में बाइबल जो बताती है, उसे पढ़कर ऐसा नहीं लगता कि कोई कहानी बतायी जा रही है। उत्पत्ति 2:8-14 में अदन के बाग के बारे में काफी जानकारी दी गयी है। जैसे, इसमें बताया है कि पूरब की तरफ अदन नाम के इलाके में यह बाग लगाया गया था। इसमें यह भी बताया है कि इस बाग से एक नदी बहती थी जो आगे चलकर चार नदियों में बँट जाती थी। बाइबल में इन चारों नदियों के नाम दिए हैं और यह भी बताया है कि ये किन इलाकों से होकर गुज़रती थीं। इस जानकारी का इस्तेमाल करके आज कई विद्वान पता करने की कोशिश करते हैं कि अदन का बाग कहाँ रहा होगा। पर इस बारे में उन सबकी अलग-अलग राय हैं। क्या इस वजह से हमें यह मान लेना चाहिए कि अदन के बाग के बारे में बाइबल में जो बताया, वह सिर्फ एक मनगढ़ंत कहानी है?
नहीं। ध्यान दीजिए कि अदन में हुई घटनाएँ आज से करीब 6,000 साल पहले हुई थीं। इस बीच उस इलाके में काफी कुछ बदल गया होगा। जैसे वहाँ की नदियों का रुख बदल गया होगा। इसके अलावा वहाँ कई भूकंप भी आए होंगे। नूह के दिनों में जो जलप्रलय आया था, उस वजह से भी उस इलाके का नक्शा बदल गया होगा।c इसलिए आज यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि अदन का बाग धरती पर ठीक कहाँ रहा होगा। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि मूसा ने जब अदन के बाग के बारे में लिखा, तो उस वक्त तक अदन का बाग मिट चुका था।
पर फिर भी उत्पत्ति की किताब में बतायी कुछ बातों के सबूत आज भी हमें मिल सकते हैं। जैसे उसमें बतायीं दो नदियाँ, फरात और हिद्देकेल या टिग्रिस आज भी एक ही जगह से निकलती हैं। ये नदियाँ जिन इलाकों से होकर गुज़रती थीं उनके बारे में भी बाइबल में बताया गया है। वहाँ यह भी बताया है कि इन इलाकों में क्या-क्या पाया जाता है। यह जानकारी बीते ज़माने के लोगों के लिए बहुत काम की रही होगी।
तो बाइबल में अदन के बाग के बारे में काफी बारीक जानकारी दी गयी है, जिसे जाँचा-परखा जा सकता है। आम तौर पर कहानियों में इतनी बारीक जानकारी नहीं दी जाती। इसलिए हम कह सकते हैं कि अदन का बाग सचमुच की एक जगह थी और बाइबल में दिया अदन का किस्सा कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं बल्कि सचमुच की घटना है।
2. क्या परमेश्वर ने सच में आदम को मिट्टी से बनाया और हव्वा को आदम की पसली से?
वैज्ञानिकों ने पता किया है कि हमारा शरीर जिन चीज़ों से मिलकर बनता है, वे मिट्टी में पायी जाती हैं। पर इन चीज़ों से एक शरीर कैसे बन सकता है?
कई वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती पर सबकुछ अपने आप आ गया। वे कहते हैं कि सभी जीव एक ही जीव से निकले और यह पहला जीव बहुत ही सरल और साधारण रहा होगा। धीरे-धीरे, कई सालों के चलते उसी एक जीव में से बाकी सभी जटिल जीव भी निकले। पर किसी भी जीव को सरल या साधारण कहना गलत होगा, क्योंकि छोटे-से-छोटा जीव बहुत जटिल होता है। और-तो-और, आज तक वैज्ञानिक यह साबित नहीं कर पाए हैं कि कोई जीव खुद-ब-खुद बन सकता है। इसके बजाय धरती पर पाए जानेवाले जीवों को देखकर यही लगता है कि इन्हें ज़रूर किसी ने बनाया होगा और वह हम इंसानों से कहीं ज़्यादा बुद्धिमान है।d—रोमियों 1:20.
जब आप कोई गाना सुनते हैं, कोई तसवीर देखते हैं, या एक बड़ी मशीन को काम करता देखते हैं, तो क्या आप यह सोचते हैं कि यह सब अपने आप आ गया, इसे किसी ने नहीं बनाया? बिलकुल नहीं। तो फिर हम यह कैसे कह सकते हैं कि इंसान का शरीर अपने आप बन गया होगा? इंसान का शरीर तो इन चीज़ों से और भी जटिल होता है। इसके अलावा, उत्पत्ति की किताब से यह भी पता चलता है कि परमेश्वर ने सिर्फ इंसानों को अपनी छवि में बनाया। (उत्पत्ति 1:26) इसलिए सिर्फ इंसान ही परमेश्वर की तरह नयी चीज़ें बनाने की काबिलीयत रखता है। जैसे गाने लिखना, पेंटिंग बनाना और अलग-अलग मशीनें बनाना। जब इंसान ऐसी चीज़ें बना सकता है, तो सोचिए परमेश्वर क्या-क्या बना सकता होगा!
जहाँ तक औरत को बनाने की बात है, परमेश्वर के लिए आदमी की पसली से औरत को बनाना कोई बड़ी बात नहीं है।e परमेश्वर चाहता तो औरत को किसी और तरीके से भी बना सकता था। लेकिन उसने औरत को इस तरह इसलिए बनाया ताकि आदमी और औरत “एक तन” हों। (उत्पत्ति 2:24) परमेश्वर चाहता था कि आदमी और औरत के बीच एक गहरा रिश्ता हो और वे साथ मिलकर काम करें, इसलिए उसने उन्हें इस तरह बनाया। इससे पता चलता है कि यहोवा कितना बुद्धिमान और प्यार करनेवाला परमेश्वर है।
आज विशेषज्ञों का भी मानना है कि सभी इंसान एक ही आदमी और औरत से निकले। इसलिए बाइबल इंसानों की शुरूआत के बारे में जो बताती है, उस पर यकीन किया जा सकता है।
3. बाइबल में अच्छे-बुरे के ज्ञान के पेड़ और जीवन के पेड़ के बारे में जो बताया है, वह सुनने में बस एक कहानी लगती है।
उत्पत्ति की किताब में बताए दोनों पेड़ बाग के दूसरे पेड़ों से अलग नहीं थे, उनमें कोई खास ताकत नहीं थी। पर वे पेड़ किसी बात को दर्शाते थे और परमेश्वर ने उनका इस्तेमाल इंसानों को कुछ समझाने के लिए किया।
चलिए इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। जब लोगों से कहा जाता है कि उन्हें अपने देश के झंडे का आदर करना चाहिए, तो इसका यह मतलब नहीं होता कि उन्हें उस कपड़े का आदर करना है जिससे झंडा बना है। बल्कि उन्हें देश का आदर करना है, क्योंकि झंडा देश को दर्शाता है। उसी तरह, राजाओं का राजदंड या उनके ताज जैसी चीज़ें उनकी हुकूमत और उनके अधिकार को दर्शाती हैं।
तो फिर ये दोनों पेड़ किस बात को दर्शाते थे? इसका जवाब जानना बहुत ज़रूरी है। इस बारे में लोगों की अलग-अलग राय हैं, पर असल में इसका जवाब बहुत आसान है। अच्छे-बुरे के ज्ञान के पेड़ से परमेश्वर इंसानों को यह समझाना चाहता था कि सिर्फ उसी के पास यह तय करने का अधिकार है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा। (यिर्मयाह 10:23) इसलिए जब आदम और हव्वा ने उस पेड़ का फल खाया, तो यह कोई छोटी-मोटी गलती नहीं थी। और जीवन का पेड़ इस बात को समझाने के लिए लगाया गया था कि सिर्फ परमेश्वर ही इंसानों को हमेशा की ज़िंदगी दे सकता है।—रोमियों 6:23.
4. एक बोलनेवाले साँप की घटना बच्चों की कहानी जैसी लगती है।
जब हम अदन के बाग का किस्सा पढ़ें, तो शायद हमारे मन में कुछ सवाल आएँ। बाइबल की बाकी बातों पर ध्यान देने से हमें इन सवालों के जवाब मिल सकते हैं। आइए ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जानें।
साँप तो बात नहीं कर सकते, तो असल में हव्वा से कौन बात कर रहा था? शायद बीते समय में इसराएली समझ पाए होंगे कि अदन के बाग में असल में हुआ क्या था। उन्होंने ऐसी घटनाओं के बारे में सुना था जब ऐसा लगा कि एक जानवर बात कर रहा है पर असल में एक अदृश्य प्राणी बात कर रहा था। जैसे, उन्होंने बिलाम के किस्से के बारे में सुना होगा, जब ऐसा लगा कि एक गधी बात कर रही है पर असल में एक स्वर्गदूत बात कर रहा था।—गिनती 22:26-31; 2 पतरस 2:15, 16.
क्या दुष्ट स्वर्गदूत भी इस तरह के चमत्कार कर सकते हैं? जी हाँ। इसकी एक मिसाल लीजिए। मूसा एक बार ऐसे पुजारियों से मिला जो झूठी उपासना करते थे और उन्होंने चमत्कार करके एक छड़ी को साँप में बदल दिया। ऐसा चमत्कार वे अपने दम पर तो नहीं कर पाए होंगे। उन्होंने ज़रूर किसी दुष्ट अदृश्य प्राणी की ताकत से ऐसा किया होगा।—निर्गमन 7:8-12.
ऐसा लगता है कि मूसा ने ही अय्यूब नाम की किताब लिखी। बाइबल की इस किताब से हमें परमेश्वर के सबसे बड़े दुश्मन शैतान के बारे में और भी बातें पता चलती हैं। जैसे, शैतान ने परमेश्वर के सेवकों की वफादारी पर सवाल खड़ा किया। (अय्यूब 1:6-11; 2:4, 5) शायद इसलिए इसराएली समझ पाए होंगे कि शैतान ने ही साँप का इस्तेमाल करके हव्वा की वफादारी तोड़ने की कोशिश की होगी।
तो क्या हम मान सकते हैं कि शैतान ने ही साँप का इस्तेमाल करके हव्वा से बात की? जी हाँ। आइए इसकी एक और वजह पर ध्यान दें। यीशु ने शैतान के बारे में कहा कि “वह झूठा है और झूठ का पिता है।” (यूहन्ना 8:44) यीशु ने शैतान को “झूठ का पिता” इसलिए बोला क्योंकि उसी ने सबसे पहला झूठ बोला था। और बाइबल बताती है कि सबसे पहला झूठ साँप ने हव्वा से बोला था कि अगर वह मना किया हुआ फल खाएगी, तो ‘हरगिज़ नहीं मरेगी।’ (उत्पत्ति 3:4) इससे पता चलता है कि जब साँप ने हव्वा से बात की, तो असल में शैतान बात कर रहा था। यह बात हम पक्के तौर पर इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि प्रकाशितवाक्य की किताब में शैतान को “वही पुराना साँप” कहा गया है और ये बातें खुद यीशु ने प्रकट की थीं।—प्रकाशितवाक्य 1:1; 12:9.
क्या ऐसा मुमकिन है कि एक अदृश्य प्राणी एक साँप का इस तरह इस्तेमाल करे कि ऐसा लगे साँप बात कर रहा है? हाँ, ऐसा तो इंसान भी कर सकते हैं। शायद आपने देखा हो कि कैसे एक आदमी कठपुतली का इस्तेमाल करके आवाज़ें निकालता है और लोगों को लगता है कि कठपुतली ही बात कर रही है।
सबसे बड़ा सबूत
तो हमने देखा कि हमारे पास इस बात के पक्के सबूत हैं कि उत्पत्ति की किताब में लिखी बातें सच्ची हैं।
इन सबूतों में से सबसे बड़ा सबूत खुद यीशु ने दिया जिसे बाइबल “विश्वासयोग्य और सच्चा साक्षी” कहती है। (प्रकाशितवाक्य 3:14) यीशु परिपूर्ण था, उसने कभी झूठ नहीं बोला और न ही सच को तोड़-मरोड़कर पेश किया। उसने बताया कि “दुनिया की शुरूआत से पहले” ही वह अपने पिता यहोवा के साथ स्वर्ग में था। (यूहन्ना 17:5) चलिए देखते हैं कि क्या यीशु ने कभी आदम और हव्वा के बारे में बात की।
जब यीशु लोगों को शादी के बारे में यहोवा के स्तर समझा रहा था, तो उसने आदम और हव्वा की बात की। (मत्ती 19:3-6) सोचिए, अगर आदम-हव्वा और अदन का बाग था ही नहीं, तो क्या यीशु यहाँ झूठ बोल रहा था या उसे पूरी जानकारी नहीं थी? ऐसा तो हो ही नहीं सकता क्योंकि जब अदन के बाग में हुई घटनाएँ घटीं, तो यीशु स्वर्ग में मौजूद था और सबकुछ देख रहा था। इसलिए हम यीशु की बात पर पूरा यकीन कर सकते हैं।
सच तो यह है कि अगर कोई उत्पत्ति की किताब में लिखी बातों को सच नहीं मानता, तो वह यीशु पर भी विश्वास नहीं कर सकता। और उसके लिए बाइबल की दूसरी सच्चाइयों और वादों पर यकीन करना भी मुश्किल है। आइए जानें कि ऐसा क्यों है।
[फुटनोट]
a बाइबल बताती है कि परमेश्वर का नाम यहोवा है।
b यह बात बाइबल के हिसाब से सही नहीं है। बाइबल तो बताती है कि परमेश्वर ने जो कुछ बनाया वह सब बिलकुल परिपूर्ण था, पाप तो बाद में आया। (व्यवस्थाविवरण 32:4, 5) जब यहोवा पूरी धरती बना चुका था, तो उसने देखा कि “सबकुछ बहुत बढ़िया था।”—उत्पत्ति 1:31.
c परमेश्वर जो जलप्रलय लेकर आया, उसमें अदन का बाग पूरी तरह खत्म हो गया। ईसा पूर्व 600 के आस-पास यहेजकेल ने अपनी किताब में जो लिखा, उससे ऐसा लगता है कि “अदन के सारे पेड़” बहुत समय पहले ही खत्म हो गए थे। (यहेजकेल 31:18) तो अगर कोई ढूँढ़ने भी जाता तो उसे अदन का बाग नहीं मिलता।
d ब्रोशर जीवन की शुरूआत, पाँच सवाल—जवाब पाना ज़रूरी देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
e विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पसली का कुछ हिस्सा निकाल भी दिया जाए, तो वह दोबारा बढ़कर पहले की तरह हो जाती है।