मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
6-12 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 1-2
“यहोवा धरती पर जीवन की शुरूआत करता है”
इंसाइट-1 पेज 527-528
सृष्टि
परमेश्वर ने सृष्टि के पहले दिन कहा “उजाला हो जाए” और आसमान से धुँधली रौशनी बादलों को चीरती हुई धरती पहुँची। लेकिन यह रौशनी कहाँ से आ रही है इसका पता धरती से नहीं लगाया जा सकता था। ऐसा मालूम होता है कि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे हुई। अनुवादक जे. डब्लयू. वॉट्स ने भी कहा: “रौशनी वजूद में धीरे-धीरे आयी।” (उत 1:3, ए डिस्टिंक्टिव ट्रांस्लेशन ऑफ जेनेसिस) परमेश्वर ने उजाले को अँधेरे से अलग किया और उजाले को दिन कहा और अँधेरे को रात। इससे यह पता चलता है कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए सूरज का चक्कर लगाती है ताकि पूरब और पश्चिम गोलार्ध में रात और दिन हो।—उत 1:3, 4.
दूसरे दिन परमेश्वर ने पानी को दो हिस्सों में बाँटा। कुछ पानी धरती पर रह गया, जबकि ज़्यादातर पानी धरती की सतह से ऊपर उठ गया। इन दोनों हिस्सों के बीच खाली जगह हो गयी। इस खाली जगह को परमेश्वर ने आसमान कहा।—उत 1:6-8.
तीसरे दिन परमेश्वर ने अपनी शक्ति से धरती के पानी को इकट्ठा किया, जिससे सूखी ज़मीन नज़र आने लगी। इस सूखी ज़मीन को परमेश्वर ने धरती कहा। इसी दिन परमेश्वर ने परमाणु जैसे निर्जीव तत्वों में जीवन-शक्ति डाली जिससे घास, पौधे और फलदार पेड़ बने। ये सब अपने आप या विकासवाद से नहीं आए। परमेश्वर ने इन तीनों चीज़ों को ऐसा बनाया कि वे “अपनी-अपनी जाति” के मुताबिक उगने लगे।—उत 1:9-13.
इंसाइट-1 पेज 528 पै 5-8
सृष्टि
गौर करनेवाली बात है कि उत्पत्ति 1:16 में इब्रानी क्रिया बारा (जिसका मतलब है “सृष्टि करना”) इस्तेमाल नहीं हुई है, बल्कि इब्रानी क्रिया असाह इस्तेमाल हुई है, जिसका मतलब है “बनाना।” तो जब आयत 16 में कहा गया है कि परमेश्वर ने “दो बड़ी ज्योतियाँ बनायीं,” तो क्या इसका यह मतलब है कि उनकी सृष्टि की गयी? नहीं। इनकी सृष्टि तो चौथे दिन से बहुत पहले ही हो चुकी थी जो हमें उत्पत्ति 1:1 से पता चलता है। इस आयत में लिखा है कि शुरूआत में परमेश्वर ने “आकाश” यानी सूरज, चाँद और तारों की सृष्टि की। दरअसल चौथे दिन इन ज्योतियों को ‘बनाने’ का मतलब यह है कि अब ये धरती की सतह से नज़र आने लगीं थीं, मानो वे खुली जगह में हों। यह बात हमें उत्पत्ति 1:17 से पता चलती है जहाँ लिखा है, “परमेश्वर ने उन्हें खुले आसमान में तैनात किया ताकि धरती को रौशनी मिले।” यही नहीं इनके ‘बनाने’ का मतलब यह भी है कि अब “इन ज्योतियों की मदद से दिन, साल और मौसम का पता लगाया” जा सकता था। (उत 1:14) आगे चलकर इन ज्योतियों से इंसानों को बहुत फायदे होते।
सृष्टि के पाँचवें दिन परमेश्वर ने धरती पर पहले जीव-जंतुओं की सृष्टि की। परमेश्वर ने सिर्फ एक जीव की सृष्टि नहीं की जिससे आगे चलकर जीव-जंतुओं की अलग-अलग जातियाँ आतीं बल्कि उसने अपनी शक्ति से कई तरह के जीव-जंतुओं को बनाया। बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर ने समुंदर में रहनेवाले बड़े-बड़े जंतुओं और तैरनेवाले दूसरे जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा जो पानी में झुंड बनाकर रहते हैं। उसने पंछियों और कीट-पतंगों को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक सिरजा।” अपनी बनायी सृष्टि से खुश होकर परमेश्वर ने उन्हें आशीष दी और कहा “गिनती में बढ़ जाओ।” यह इसलिए मुमकिन हो पाया क्योंकि परमेश्वर ने इन जीव-जंतुओं को “अपनी-अपनी जाति के मुताबिक” गिनती में बढ़ने की काबिलीयत दी।—उत 1:20-23.
सृष्टि के छठवें दिन “परमेश्वर ने धरती के जंगली जानवरों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सब जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक बनाया।” बाकी सृष्टि की तरह परमेश्वर की बनायी ये चीज़ें भी बहुत अच्छी थीं।—उत 1:24, 25.
छठवें दिन के आखिर में परमेश्वर ने इंसान की सृष्टि की जो जानवरों से श्रेष्ठ था, लेकिन स्वर्गदूतों से कमतर था। परमेश्वर ने इंसान को अपनी छवि में, अपने जैसा बनाया। उत्पत्ति 1:27 में सिर्फ यह लिखा है कि परमेश्वर ने “उन्हें नर और नारी बनाया।” लेकिन उत्पत्ति 2:7-9 में समझाया गया है कि यहोवा परमेश्वर ने ज़मीन की मिट्टी से आदमी को रचा और उसके नथनों में जीवन की साँस फूँकी। तब वह जीता-जागता इंसान बन गया। यहोवा ने उसे एक खूबसूरत बगीचे में रखा और उसके खाने-पीने का भी इंतज़ाम किया। जैसे उत्पत्ति में लिखा है, आदमी की सृष्टि करते वक्त यहोवा ने धरती पर पायी जानेवाली चीज़ों का इस्तेमाल किया। यहोवा ने फिर उसकी पसली से एक औरत की सृष्टि की। (उत 2:18-25) औरत की रचना के बाद, इंसान की एक “जाति” बन गयी।—उत 5:1, 2.
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प्र15 6/1 पेज 5, अँग्रेज़ी
विज्ञान आपकी ज़िंदगी पर असर करता है
यह पृथ्वी और विश्वमंडल कितने साल पुराने हैं?
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि यह पृथ्वी करीब 4 खरब साल पुरानी है और इस विश्वमंडल की शुरूआत लगभग 13 से 14 खरब साल पहले हुई। बाइबल में यह नहीं बताया है कि विश्वमंडल की सृष्टि कब हुई और न ही यह बताया गया है कि पृथ्वी सिर्फ कुछ हज़ार साल पुरानी है। बाइबल की पहली किताब उत्पत्ति 1:1 में लिखा है कि “शुरूआत में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” इस आयत में विश्वमंडल की शुरूआत की कोई तारीख नहीं दी गयी है, इसलिए कुछ वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर वैज्ञानिक यह अनुमान लगाते हैं कि पृथ्वी और आकाश कब वजूद में आए।
इंसाइट-2 पेज 52
यीशु मसीह
यीशु सृष्टिकर्ता नहीं है। यीशु ने सृष्टि के काम में अपने पिता का हाथ बँटाया, लेकिन उसका यह मतलब नहीं है कि वह भी अपने पिता की तरह एक सिरजनहार है। दरअसल उसने परमेश्वर की पवित्र शक्ति की मदद से सृष्टि की। (उत 1:2; भज 33:6) जीवन देनेवाला यहोवा ही है इसलिए हर दृश्य और अदृश्य प्राणी के जीवन पर उसी का हक है। (भज 36:9) यीशु सिर्फ एक माध्यम था जिसके ज़रिए हमारे सृष्टिकर्ता यहोवा ने सब चीज़ें रचीं। खुद यीशु ने कहा कि यहोवा ही सृष्टिकर्ता है और बाइबल की दूसरी आयतें भी ऐसा ही कहती हैं।—मत 19:4-6.
13-19 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 3-5
“पहले झूठ के भयानक अंजाम”
यहोवा का मकसद ज़रूर पूरा होगा!
9 शैतान ने एक साँप के ज़रिए हव्वा को बहकाया कि वह अपने पिता, यहोवा की आज्ञा तोड़ दे। (उत्पत्ति 3:1-5 पढ़िए; प्रका. 12:9) परमेश्वर ने आदम-हव्वा को सिर्फ एक पेड़ का फल खाने से मना किया था। मगर शैतान ने ऐसे जताया मानो परमेश्वर ने उन्हें “बाग के किसी भी पेड़ का फल” खाने से मना किया हो। एक तरह से वह कह रहा था, ‘मतलब, तुम जो करना चाहते हो वह नहीं कर सकते?’ फिर उसने हव्वा से कहा, “तुम हरगिज़ नहीं मरोगे।” यह सरासर झूठ था। इसके बाद उसने हव्वा को कायल करने की कोशिश की कि उसे परमेश्वर की बात मानने की ज़रूरत नहीं। शैतान ने कहा, “परमेश्वर जानता है कि जिस दिन तुम उस पेड़ का फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आँखें खुल जाएँगी।” इस तरह शैतान ने यहोवा पर झूठा इलज़ाम लगाया। उसने कहा कि यहोवा नहीं चाहता है कि तुम उस फल को खाओ क्योंकि उसे खाने से तुम खास किस्म का ज्ञान पा लोगे। आखिर में उसने यह झूठा वादा किया, “तुम परमेश्वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।”
पहले इंसानी जोड़े से हम सबक सीख सकते हैं
क्या हव्वा इस पाप को टाल सकती थी? बेशक, टाल सकती थी! कल्पना कीजिए कि आप हव्वा की जगह होते तो क्या करते। आप जिससे प्रेम करते हैं और जिस पर भरोसा करते हैं, अगर कोई अजनबी उस पर झूठ बोलने का इलज़ाम लगाए तो आपको कैसा लगेगा? सर्प ने जो दावा किया था वह परमेश्वर और आदम की बातों से एकदम अलग था। हव्वा को उसकी बातें सुनकर बिलकुल अलग तरीके से पेश आना चाहिए था। यह बात सुनते ही हव्वा को घिन आनी चाहिए थी और क्रोध से भरकर वहाँ से चला जाना चाहिए था और आगे उस सर्प की बात ही नहीं सुननी थी। परमेश्वर धर्मी है या नहीं और उसके पति ने जो कहा वह सच है या नहीं, यह सवाल करने का सर्प को क्या हक था? मुखियापन के उसूल के लिए लिहाज़ दिखाते हुए, हव्वा को कोई भी फैसला करने से पहले कम-से-कम अपने पति की सलाह लेनी चाहिए थी। अगर कभी हमें भी कुछ ऐसी जानकारी दी जाए जो परमेश्वर के आदेशों के उलट है, तो हमें ऐसी बातें सुनने से साफ इनकार कर देना चाहिए। मगर, हव्वा उस लुभानेवाले की बातों में आ गयी। सही क्या है और गलत क्या इसका फैसला वह खुद करना चाहती थी। इस बात पर उसने जितना ज़्यादा सोचा, उतना ही ज़्यादा उसे यह अच्छी लगी। उसे इस विचार को अपने दिमाग से पूरी तरह निकाल देना चाहिए था या अपने परिवार के मुखिया के साथ इस मामले पर बातचीत करनी चाहिए थी, मगर ऐसा करने के बजाय उसने गलत चीज़ की कामना करके कितनी बड़ी भूल की!—1 कुरिन्थियों 11:3; याकूब 1:14, 15.
आदम अपनी पत्नी की बात सुनता है
हव्वा ने जल्द ही आदम को भी अपने पाप में शामिल होने के लिए उकसाया। बिना कोई एतराज़ उठाए आदम ने अपनी पत्नी की बात क्यों मान ली? (उत्पत्ति 3:6, 17) अब आदम ऐसे दोराहे पर खड़ा था, जहाँ एक तरफ परमेश्वर के लिए वफादारी थी और दूसरी तरफ पत्नी का साथ था। अब वह क्या करेगा, क्या वह अपने सिरजनहार की आज्ञा मानेगा, जिसने उसे सबकुछ दिया था, यहाँ तक कि उसकी प्यारी पत्नी हव्वा भी दी थी? या कोई भी फैसला करने से पहले क्या वह यहोवा से पूछेगा? या, क्या वह अपनी पत्नी के साथ उसके पाप में शामिल होगा? आदम अच्छी तरह जानता था कि हव्वा ने जो पाने की उम्मीद में, मना किया हुआ फल खाया था वह बस एक सपना ही था। प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर की प्रेरणा पाकर लिखा: “आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकाने में आकर अपराधिनी हुई।” (1 तीमुथियुस 2:14) इसलिए आदम ने जान-बूझकर यहोवा के खिलाफ जाने का फैसला किया। ज़ाहिर है कि उसे अपनी पत्नी से अलग होने का इतना डर था कि उसने यह विश्वास न रखा कि परमेश्वर इन हालात को ठीक करने के लिए कोई-न-कोई रास्ता ज़रूर निकालता।
प्र12 9/1 पेज 4 पै 2, अँग्रेज़ी
क्या परमेश्वर सचमुच औरतों की फिक्र करता है?
क्या परमेश्वर ने औरतों को शाप दिया है?
नहीं। इसके बजाय परमेश्वर ने शैतान से कहा “तू शापित ठहरेगा”, जिसे बाइबल में “पुराना साँप, इबलीस” कहा गया है। (प्रकाशितवाक्य 12:9; उत्पत्ति 3:14) जब परमेश्वर ने कहा कि आदम अपनी पत्नी पर “हुक्म” चलाएगा तो परमेश्वर यह नहीं कह रहा था कि उसे यह बात मंज़ूर है। (उत्पत्ति 3:16) इसके बजाय वह बस यह बता रहा था कि पहले जोड़े के पाप का क्या अंजाम होगा।
उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—I
3:17—भूमि किस मायने में शापित ठहरी और कब तक? भूमि का शापित ठहरने का मतलब था कि अब से उस पर खेती करना बहुत मुश्किल होता। भूमि शापित होने की वजह से उस पर काँटे और ऊँटकटारे उग आए थे। नतीजतन, आदम के वंशजों को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी कि नूह के पिता, लेमेक ने कहा: ‘ज़मीन पर यहोवा के शाप की वजह से हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।’ (उत्पत्ति 5:29) जलप्रलय के बाद, यहोवा ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी और अपने मकसद के मुताबिक उन्हें पृथ्वी को भर देने की आज्ञा दी। (उत्पत्ति 9:1) तब शायद परमेश्वर ने भूमि पर से अपना शाप हटा लिया था।—उत्पत्ति 13:10.
इंसाइट-2 पेज 186
प्रसव-पीड़ा
यहाँ उस पीड़ा की बात की गयी है जो एक औरत को जन्म देते समय होती है। परमेश्वर ने पहली औरत, हव्वा से कहा कि उसके पाप करने की वजह से उसे बच्चा जनने में बहुत पीड़ा होगी। अगर उसने परमेश्वर की आज्ञा मानी होती, तो परमेश्वर की आशीष उस पर बनी रहती और बच्चा जनने के दौरान उसे दर्द नहीं होता बल्कि खुशी होती। वह इसलिए कि नीतिवचन 10:22 में लिखा है, “यहोवा की आशीष ही एक इंसान को अमीर बनाती है और वह उसके साथ कोई दर्द नहीं देता।” लेकिन अपरिपूर्ण होने की वजह से इंसान का शरीर ज़्यादा तकलीफ झेलता है। यह बात उत्पत्ति 3:16 से पता चलती है, जहाँ परमेश्वर ने कहा था, “मैं तेरे गर्भ के दिनों का दर्द बहुत बढ़ा दूँगा। तू दर्द से तड़पती हुई बच्चे पैदा करेगी।” (दरअसल जब परमेश्वर किसी बात की इजाज़त देता है, तो इसे बाइबल में अकसर ऐसे लिखा गया है मानो वह खुद यह कर रहा हो।)
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इंसाइट-2 पेज 192 पै 5
लेमेक
लेमेक ने अपनी पत्नियों के लिए जो कविता रची उससे पता चलता है कि उस वक्त लोग बहुत हिंसक हो गए थे। (उत 4:23, 24) उसकी कविता में लिखा है, “लेमेक की पत्नियो, मेरी आवाज़ सुनो, मेरी बात पर कान लगाओ: मैंने एक आदमी को मार डाला जिसने मुझे ज़ख्मी किया, हाँ, एक जवान आदमी को, जिसने मुझ पर वार किया। अगर कैन के कातिल को 7 गुना ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाएगी, लेमेक के कातिल को 77 गुना ज़्यादा कड़ी सज़ा दी जाए।” यहाँ लेमेक अपनी सफाई पेश कर रहा था कि उसने कैन की तरह जानबूझकर उस आदमी की हत्या नहीं की थी। वह यह दावा कर रहा था कि उसने अपनी जान बचाने के लिए उस आदमी को मार डाला जिसने उस पर वार करके उसे ज़ख्मी किया। लेमेक अपनी कविता के ज़रिए गुज़ारिश कर रहा था है कि जो लोग उससे बदला लेने की सोच रहें हैं वे उसकी जान बख्श दें।
इंसाइट-1 पेज 338 पै 2
निंदा
जलप्रलय से पहले, एनोश के ज़माने में जब लोगों ने “यहोवा का नाम पुकारना शुरू किया,” तो इसका यह मतलब नहीं था कि वे पहली बार यहोवा का नाम ले रहे थे। वह इसलिए कि बहुत समय पहले हाबिल ने भी ज़रूर यहोवा का नाम लिया होगा। (उत 4:26; इब्र 11:4) दरअसल उस समय लोग गलत तरीके से यहोवा का नाम इस्तेमाल कर रहे थे। कुछ विद्वानों का भी यही मानना था। उनके मुताबिक लोग इंसानों और उपासना में इस्तेमाल की जानेवाली चीज़ों को यहोवा का नाम दे रहे थे। अगर यह सच है तो ऐसा करना परमेश्वर की निंदा करना होता।
20-26 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 6-8
“उसने ठीक वैसा ही किया”
नूह, दानियेल और अय्यूब जैसा विश्वास रखिए और आज्ञा मानिए
4 नूह को किन मुश्किल हालात का सामना करना पड़ा? नूह के परदादा हनोक के समय तक लोग बहुत बुरे हो चुके थे। वे यहोवा के बारे में ‘घिनौनी बातें’ कहते थे। (यहू. 14, 15) उस वक्त हिंसा बढ़ती जा रही थी और नूह के समय तक “हर तरफ खून-खराबा हो रहा था।” दुष्ट स्वर्गदूत इंसानी रूप में धरती पर आ गए थे और उन्होंने औरतों से शादी कर ली थी। यही नहीं, उनसे जो बेटे हुए वे बहुत खूँखार और बेरहम थे। (उत्प. 6:2-4, 11, 12) लेकिन नूह अपने ज़माने के लोगों से बिलकुल अलग था। बाइबल बताती है कि वह “एक ऐसा इंसान था जिसने यहोवा को खुश किया। . . . उसका चालचलन बिलकुल बेदाग था। नूह सच्चे परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा।”—उत्प. 6:8, 9.
प्र13 4/1 पेज 14 पै 1, अँग्रेज़ी
वह “सच्चे परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहा”
इस काम को करने में कई साल लगे, शायद 40 से 50 साल। उन्हें पेड़ काटने थे, शहतीरें ढोकर ले जानी थीं, उन्हें काटकर आकार देना था और जोड़ना था। जहाज़ में तीन मंज़िलें होतीं, कई सारे खाने होते और एक तरफ दरवाज़ा भी होता। शायद ऊपर खिड़कियाँ और एक छत होती जो बीच में उठी हुई होती ताकि पानी नीचे बह जाए।—उत्पत्ति 6:14-16.
धीरज से दौड़ते रहिए
13 यहोवा के इन सेवकों को धीरज धरते हुए दौड़ में कामयाब होने के लिए किस बात ने मदद दी? ध्यान दीजिए पौलुस ने नूह के बारे में क्या लिखा। (इब्रानियों 11:7 पढ़िए।) “पृथ्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियों को . . . नाश” करनेवाली बात ऐसी थी जो नूह ने ‘उस वक्त तक देखी नहीं’ थी। (उत्प. 6:17) ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, एकदम अजूबा! फिर भी नूह ने इस बात को यह कहकर नज़रअंदाज़ नहीं किया कि यह तो अनहोना है या बहुत मुश्किल है। क्यों? क्योंकि उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा जो भी कहता है, उसे हर हाल में पूरा करता है। नूह ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि उसे इतना मुश्किल काम दिया गया है, वह कैसे पूरा करेगा? इसके बजाय “जैसी परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी, नूह ने . . . सब कुछ वैसा ही किया।” (उत्प. 6:22, NHT) जो कुछ नूह ने किया उस पर गौर कीजिए जैसे जहाज़ बनाना, जानवरों को इकट्ठा करना, जहाज़ में जानवरों और अपने परिवार के लिए खाना जमा करना, लोगों को आनेवाले नाश की चेतावनी देना और अपने परिवार को आध्यात्मिक रूप से मज़बूत करना। बेशक, “सब कुछ वैसा ही” करना आसान नहीं था, लेकिन नूह के विश्वास और धीरज की वजह से उसकी और उसके परिवार की जान बची और उन्हें बहुत-सी आशीषें मिलीं।
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उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—I
7:2—किस बिनाह पर यह फर्क किया गया था कि कौन-सा जानवर शुद्ध है और कौन-सा अशुद्ध? यह इस बिनाह पर नहीं किया गया था कि कौन-सा जानवर खाया जा सकता है और कौन-सा नहीं, बल्कि इस बिनाह पर कि उपासना के लिए किन जानवरों की बलि चढ़ायी जा सकती थी। जलप्रलय से पहले इंसान के खान-पान में जानवरों का माँस शामिल नहीं था। भोजन के लिए “शुद्ध” और “अशुद्ध” जैसे शब्दों का इस्तेमाल मूसा की व्यवस्था से शुरू हुआ और यह पाबंदी तब खत्म हुई जब व्यवस्था को रद्द किया गया। (प्रेरितों 10:9-16; इफिसियों 2:15) शायद नूह को पता था कि यहोवा की उपासना के लिए कौन-से जानवरों की बलि चढ़ाना सही होगा। इसलिए जहाज़ से बाहर निकलने पर सबसे पहले उसने “यहोवा के लिये एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया।”—उत्पत्ति 8:20.
उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—I
7:11—जलप्रलय का पानी कहाँ से आया था? सृष्टि के दूसरे “दिन” की समय-अवधि में जब पृथ्वी पर “वायुमण्डल” बनाया गया तो “वायुमण्डल के नीचे” और “वायुमण्डल के ऊपर” पानी था। (उत्पत्ति 1:6, 7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) “नीचे” का पानी, पृथ्वी में पहले से मौजूद था। और “ऊपर” का पानी, बड़ी मात्रा में नमी के तौर पर पृथ्वी पर फैला हुआ था और इसी से “गहरे जल के सब सोते” (NHT) बने। नूह के दिनों में यही पानी पृथ्वी पर बरसा था।
27 जनवरी–2 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 9-11
“पृथ्वी पर रहनेवाले सब लोगों की एक ही भाषा थी”
इंसाइट-1 पेज 239
महानगरी बैबिलोन
प्राचीन बैबिलोन की पहचान। शिनार के मैदान में जब बैबिलोन शहर को बसाया जा रहा था तब बाबेल की मीनार का निर्माण काम भी चल रहा था। (उत 11:2-9) मीनार और शहर बनाने का यह मकसद नहीं था कि यहोवा का नाम बुलंद हो बल्कि इनके बनानेवाले चाह रहे थे कि ‘इससे उनका बहुत नाम हो।’ प्राचीन बैबिलोन के खँडहरों और मेसोपोटामिया की दूसरी जगहों में मीनारों के अवशेष मिले हैं। इन अवशेषों से तो ऐसा ही लगता है कि प्राचीन बाबेल की मीनार बनाने का मकसद धार्मिक था, फिर चाहे इसकी बनावट जैसी भी रही हो। यहोवा परमेश्वर ने इस मीनार के निर्माण को रोकने के लिए जो कदम उठाया उससे पता चलता है कि इसका नाता झूठे धर्म से था। हालाँकि इस शहर को इब्रानी नाम बाबेल दिया गया था जिसका मतलब है “गड़बड़ी,” लेकिन लोगों ने इसे सुमेरी नाम (का-डिंगिर-रा) और अक्कादी नाम (बाब-इलू) भी दिया, जिनका मतलब है “परमेश्वर का फाटक।” इस तरह वहाँ के बचे हुए निवासियों ने इस शहर का नाम बदल दिया। वे नहीं चाहते थे इस शहर को पुराने नाम से याद किया जाए, जिसे परमेश्वर ने लोगों के बगावती रवैए की वजह से रखा था। लेकिन इन नामों से भी यही पता चलता है कि इस शहर का नाता धर्म से था।
इंसाइट-2 पेज 202 पै 2
भाषा
उत्पत्ति के ब्यौरे में बताया गया है कि जलप्रलय के बाद जब नूह का परिवार बढ़ने लगा तो कुछ लोग एकजुट होकर ऐसे काम में लग गए, जो परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ था। परमेश्वर ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी थी कि वे “धरती को आबाद” करें। (उत 9:1) लेकिन कुछ लोग धरती पर फैलने के बजाय एक ही जगह बसना चाहते थे और वे मेसोपोटामिया के शिनार के मैदान में रहने लगे। आगे चलकर यह शिनार का मैदान धर्म का केंद्र बना, जिसमें एक मीनार भी थी जो उपासना से जुड़ी थी।—उत 11:2-4.
इंसाइट-2 पेज 202 पै 3
भाषा
सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लोगों की भाषा में गड़बड़ी डाली ताकि वे अपने बड़े-बड़े लक्ष्यों को पूरा न कर सकें जो उसके खिलाफ थे। इस वजह से उनका निर्माण काम ठप्प पड़ गया और वे पूरी धरती पर तितर-बितर हो गए। आगे चलकर अगर ये लोग परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ कुछ करने की सोचते, तो उन्हें सिर्फ अपनी भाषा बोलनेवाले लोगों की बुद्धि और ताकत पर निर्भर रहना पड़ता। साथ ही उन्होंने अपने अनुभव और खोजबीन से जो ज्ञान हासिल किया था, वह अब उन तक ही सीमित रहता। एक-दूसरे की भाषा न समझ पाने की वजह से वे यह ज्ञान दूसरों में नहीं बाँट सकते थे। (सभ 7:29 और व्य 32:5 से तुलना करें।) भाषा की गड़बड़ी ने भले ही इंसानों को आपस में बाँट दिया मगर इससे उनका ही फायदा हुआ। अब वे ऐसे लक्ष्य आसानी से हासिल नहीं कर पाते जिनसे लोगों को खतरा या नुकसान होता। (उत 11:5-9; कृपया यश 8:9, 10 से तुलना करें।) आज भी हम देखते हैं कि इंसानों ने अपनी बुद्धि और ज्ञान का गलत इस्तेमाल करके कितना नुकसान किया है। परमेश्वर बहुत पहले से जानता था कि बाबेल में जो काम हो रहा था उसका क्या अंजाम होगा, इसलिए उसने इस काम पर रोक लगा दी।
इंसाइट-2 पेज 472
राष्ट्र
भाषा की गड़बड़ी की वजह से लोग अलग-अलग समूहों में बँट गए। हर समूह ने अपनी संस्कृति, कला, रीति-रिवाज़, तौर-तरीके और धर्म बनाए। हरेक के काम करने का तरीका अलग हो गया। (लैव 18:3) वे परमेश्वर से दूर हो गए और उन्होंने अपने-अपने मनगढ़ंत देवताओं की मूर्तियाँ बनायीं।—व्य 12:30; 2रा 17:29, 33.
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इंसाइट-1 पेज 1023 पै 4
हाम
हो सकता है कि इस घटना में खुद कनान शामिल था और उसके पिता हाम ने उसे नहीं सुधारा। या नूह ने ईश्वर-प्रेरणा से यह बात कही क्योंकि वह जान गया कि हाम में जो बुरी फितरत थी वह उसके बेटे कनान में तो थी ही लेकिन आगे चलकर कनान के वंश में भी होती। नूह ने जो शाप दिया उसके शब्द पहली बार तब पूरे हुए जब इसराएलियों ने कनानियों पर कब्ज़ा किया। जिन लोगों का नाश नहीं हुआ (जैसे गिबोनी [यह 9]), वे इसराएलियों के दास बन गए। दूसरी बार उसके शब्द सदियों बाद पूरे हुए जब हाम के बेटे कनान के वंशजों पर मादी-फारस, यूनान और रोम जैसी विश्व-शक्तियाँ हुकूमत करने लगीं जिनके लोग येपेत के वंशज थे।
इंसाइट-2 पेज 503
निमरोद
शुरू में निमरोद के राज में बाबेल, एरेख, अक्कद और कलने शहर थे जो शिनार के इलाके में थे। (उत 10:10) इसलिए उसकी निगरानी में ही बाबेल और उसकी मीनार का निर्माण काम शुरू हुआ होगा और यहूदियों का भी यही मानना था। इतिहासकार जोसिफस ने अपनी किताब में लिखा: ‘निमरोद धीरे-धीरे एक तानाशाह बन गया और उसका मानना था कि लोगों के दिल से परमेश्वर का डर निकालने का एक ही तरीका है कि वे परमेश्वर के बजाय सिर्फ उसकी ताकत पर निर्भर रहें। उसने ठान लिया था कि अगर परमेश्वर फिर से धरती को नाश करने की सोचेगा, तो वह इतनी ऊँची मीनार बनाएगा कि पानी भी उसे डुबा नहीं पाएगी और इस तरह वह अपने पुरखों की मौत का बदला लेगा। लोग निमरोद की बात मानने के लिए एकदम तैयार हो गए। उनके लिए परमेश्वर के अधीन रहना उसकी गुलामी करने जैसा था। इसलिए वे मीनार बनाने के काम में लग गए और यह काम बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ा।’