मानव अवज्ञा के बावजूद परादीस प्रत्याशाएँ वैध
१. समय के गुज़रने के साथ साथ, पहले आदमी और औरत कहाँ दिखायी देते हैं और कौनसी परिस्थितियों में?
समय बीत चुका है। पहला आदमी और औरत अब मासूमियत में नंगे नहीं हैं। वे कपड़े पहने हुए हैं—जानवरों की खालों से बने लम्बे वस्त्र। वे अदन की पूर्ण बाटिका के प्रवेश के बाहर ही हैं। उनके पीठ बाटिका की ओर हैं। वे उनके सामने के दृश्य की ओर देखते हैं। उन्हें सिर्फ़ अकृषित ज़मीन नज़र आती है। काफ़ी स्पष्ट रूप से इस पर परमेश्वर की आशीष नहीं है। उनके सामने कांटे और ऊंटकटारे दिखायी देते हैं। क्या यह वही पृथ्वी नहीं जिसे वश में करने का कार्याधिकार उन्हें दिया गया था? जी हाँ, लेकिन पहला आदमी और औरत अब ऐसी उपेक्षित भूमि पर अदन की बाटिका फैलाने के उद्देश्य से वहाँ बाहर नहीं हैं।
२. आदमी और औरत परादीस बाटिका में पुनःप्रवेश करने की कोशिश क्यों नहीं करते?
२ ऐसा विषम नज़ारा देखने पर, वे पीछे मुड़कर परादीस बाटिका में फिर से प्रवेश क्यों नहीं करते? सुझाव देना आसान है, लेकिन देखिए उनके पीछे बाटिका के प्रवेश में क्या है। ऐसी सृष्टि जो उन्होंने पहले कभी, बाटिका के अन्दर भी नहीं देखी, करूब, और तलवार की ज्वालामय धार जो खुद को सतत घूमाती है। आदमी और औरत इनके सामने से होकर बाटिका के अन्दर ज़िन्दा कभी नहीं जा सकते थे!—उत्पत्ति ३:२४.
३. ऐसा क्या हुआ था जिस से पहले जोड़े की परिस्थितियाँ इतनी पूरी तरह बदल गयीं?
३ क्या हुआ था? यह कोई इतना पेचीदा रहस्य नहीं जो विज्ञान को हज़ारों सालों तक चकरा दे। इसे सरल रूप से समझाया गया है। आदमी और औरत को वे बढ़िया प्रत्याशाएँ मिलनेवाले थे, जो उनके शादी के दिन पर परमेश्वर के कार्याधिकार से उनके सामने प्रस्तुत हुए थे, लेकिन इसी शर्त पर कि वे अपने स्वर्गीय पिता का आज्ञापालन छोटी सी छोटी बात में करें। उनका पूर्ण आज्ञापालन एक ही खाद्य निषेध से परीक्षित किया जानेवाला था: उन्हें “भले या बुरे के ज्ञान के वृक्ष” का फल नहीं खाना चाहिए। (उत्पत्ति २:१६, १७) अगर उन्होंने परमेश्वर के आज्ञाओं के ख़िलाफ़ ऐसा किया, तो वे ज़रूर मर जाते। परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता की हैसियत से, आदम ने अपनी पत्नी, उम्र में छोटी मानवी सृष्टि, को यही बताया। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से, उस ना·ख़ाशʹ, उस साँप, ने उस बात की सच्चाई का खण्डन किया, जो परमेश्वर ने “भले या बुरे के ज्ञान के” निषिद्ध “वृक्ष” से न खाने की अपनी चेतावनी में आदम से कहा था। साँप ने स्त्री को यह मानने तक धोखा दिया कि परमेश्वर का नियम तोड़कर निषिद्ध फल खाने के परिणामस्वरूप वह परमेश्वर के जैसे बन जाती और क्या भला है और क्या बुरा, यह निर्णय करने में वह परमेश्वर से स्वतंत्र बन जाती।—उत्पत्ति ३:१-५.
कोई पौराणिक कथा नहीं
४, ५. प्रेरित पौलुस कैसे दिखाता है कि साँप का पहली औरत को धोखा देना कोई पौराणिक कथा न थी?
४ अविश्वसनीय? क्या यह किसी पुराणकथा, किसी काल्पनिक कहानी के बहुत ही समान लगता है, जो तथ्यों पर आधारित नहीं और इसलिए आधुनिक, ज्ञानसंपन्न प्रौढ़ दिमाग़ों के लिए अस्वीकार्य है? नहीं, एक अब भी व्यापक रूप से पढ़ा जानेवाला लेखक, एक विश्वसनीय लेखक, एक खास तौर से चुना हुआ प्रेरित, जो अपनी लिखी बातों की यथातथ्यता जानता था, उसके लिए ऐसा न था। कुरिन्थ के दुनियादार शहर में प्रौढ़ मसीहियों की कलीसिया को, इस प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परन्तु मैं डरता हूँ कि जैसे साँप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएँ।”—२ कुरिन्थियों ११:३.
५ यह असंभाव्य लगता है कि पौलुस किसी पौराणिक कथा, किसी गल्प का ज़िक्र करता, और उन कुरिन्थियों को अपना मुद्दा पेश करने के लिए ऐसी काल्पनिक बात इस्तेमाल करता, जो कि विधर्मी यूनानी धर्म की पौराणिक कथाओं से वाक़िफ़ थे। प्रेरित इब्रानी शास्त्रों से उद्धरण करते हुए, जिसको उसने “परमेश्वर का वचन” घोषित किया, प्रेरित पौलुस ने पक्का किया कि “साँप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया।” (१ थिस्सलुनीकियों २:१३) इसके अतिरिक्त, एक मसीही अध्यक्ष को लिखते समय, जिसे “स्वास्थ्यकारी बातों का प्रतिमान” सिखाने का कार्यभार दिया गया था, प्रेरित पौलुस ने कहा: “आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनाई गई। और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकाने में आकर अपराधिनी हुई।”—२ तीमुथियुस १:१३, न्यू.व.; १ तीमुथियुस २:१३, १४.
६. (अ) परमेश्वर के ख़िलाफ़ आदम का पाप औरत के पाप से किस तरह भिन्न था? (ब) हमें क्यों यक़ीन हो सकता है कि साँप के बारे में औरत एक कहानी नहीं बना रही थी?
६ स्त्री का साँप द्वारा बहकाया जाना एक तथ्य है, कोई पौराणिक कथा नहीं, उसी तरह जैसे उस निषिद्ध वृक्ष से अवज्ञा से फल खाने के नतीजे इतिहास के कड़े तथ्य हैं। इस प्रकार परमेश्वर के ख़िलाफ़ पाप की अवस्था में आकर, उसने अपने पति को उसके साथ खाने में साझीदार होने के लिए राज़ी कराया, लेकिन उसने इस लिए न खाया कि उसे भी पूर्ण रूप से धोखा दिया गया था। (उत्पत्ति ३:६) उनका बाद में परमेश्वर को लेखा देने के बारे में वर्णन कहता है: “और आदम ने कहा ‘जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया।’ तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, ‘तू ने यह क्या किया है?’ स्त्री ने कहा, ‘सर्प ने मुझे बहका दिया तब मैं ने खाया।’” (उत्पत्ति ३:१२, १३) स्त्री उस ना·ख़ाशʹ, उस साँप के बारे में कोई कहानी नहीं बना रही थी, और यहोवा परमेश्वर ने उसकी सफ़ाई को एक छलरचना, या मनगढ़न्त बात, नहीं माना। उसने उस साँप से एक ऐसा साधन होने के तौर से निपट लिया, जिसने स्त्री को अपने, उसके परमेश्वर और सृजनहार के, ख़िलाफ़ पाप करने तक धोखा दिया। किसी तुच्छ पौराणिक साँप से निपटना परमेश्वर की शान के ख़िलाफ़ होता।
७. (अ) बाइबल वृत्तांत परमेश्वर के साँप से न्यायिक रूप से निपटने का वर्णन किस तरह करता है? (ब) पहली औरत को धोखा देनेवाला साँप हमें भी धोखा किस तरह दे सकता है? (फुटनोट पर टीका सम्मिलित करें।)
७ अदन की बाटिका में परमेश्वर के उस साँप से न्यायिक निपटारे का वर्णन करते हुए, वृत्तांत कहता है: “तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, ‘तू ने जो यह किया है इसलिए तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा: और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।’” (उत्पत्ति ३:१४, १५) कोई भी संतुलित अदालत तथ्यों से निपटता है और असली सबूत जाँचता है, दंतकथाएँ नहीं। यहोवा परमेश्वर किसी पौराणिक सर्प की ओर अपना न्यायिक दण्ड संबोधित करके खुद को मूर्ख या बेवक़ूफ़ नहीं बना रहा था, लेकिन वह एक वास्तविक, जीवित प्राणी को न्यायदण्ड दे रहा था, जो कि जवाबदेह था। यह, हास्यपद नहीं, बल्कि दयनीय होता अगर उसी सर्प ने हमें यह सोचने तक धोखा दिया कि वह कभी था ही नहीं, कि वह मात्र एक मनगढ़न्त प्राणी था, और कि वह पृथ्वी पर किसी अपराध के लिए जवाबदेह न था।a
८. परमेश्वर ने औरत को क्या दण्ड सुनाया, और उस से उसकी बेटियों और पोतियों पर क्या असर हुआ है?
८ सर्प से संबंधित स्त्री के कथन को एक तथ्य के तौर से मानते हुए, मनुष्य की पत्नी के बारे में विवरण कहता है: “फिर स्त्री से उस ने कहा, ‘मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दुःख को बहुत बढ़ाऊँगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।’” (उत्पत्ति ३:१६) आदम के साथ उसकी शादी पर परमेश्वर की आशीष में इसके जैसे कुछ भी सम्मिलित नहीं किया गया था, जब परमेश्वर ने उनसे कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ।” (उत्पत्ति १:२८) उस पूर्ण मानव जोड़े को दिए धन्य कार्याधिकार से स्त्री के लिए बहुत सारी गर्भावस्थाएँ सूचित हुईं, लेकिन कोई अनावश्यक संताप या अत्यधिक प्रसव-पीड़ा नहीं और न उस पर पति का कोई अत्याचार। अपराधी स्त्री पर सुनाया गया यह न्यायदण्ड उसकी बेटियों और पोतियों पर पीढ़ी पीढ़ी तक असर करता।
आदम पर न्यायदण्ड से परमेश्वर का नियम उन्नत
९, १०. (अ) परमेश्वर ने आदम को कौनसी चेतावनी सीधे दी थी, और अगर परमेश्वर ऐसी सज़ा पर डटा रहा तो क्या नतीजा होता? (ब) परमेश्वर ने आदम के ख़िलाफ़ कौनसा न्यायदण्ड दिया?
९ यद्यपि, औरत को कौनसी बदली हुई परिस्थितियों में उस आदमी के साथ साझी होना था, जिसको उसने अपने साथ मिलकर पाप करने तक फुसलाया था? इस आदमी से, परमेश्वर ने सीधा कहा था: “पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१७) आदम के किसी फल का टुकड़ा सिर्फ़ खाने के कारण, क्या परमेश्वर, न्यायाधीश, ऐसे निश्चयात्मक न्यायदण्ड पर दृढ़ रहता? ज़रा सोचिए कि ऐसी सज़ा लागू करने का मतलब क्या होता! यह उस मर्मस्पर्शी प्रत्याशा को व्यर्थ कर देता जिस पर आदम और हव्वा ने उनके शादी के दिन पर विचार किया था, पूरी पृथ्वी को अपनी संतति से भरने की प्रत्याशा, जहाँ अनन्त काल तक नित्य जवानी में, एक परादीस पृथ्वी पर एक पूर्ण मानव जाति शान्ति से निवास करती है, और जो अपने परमेश्वर और स्वर्गीय पिता के साथ शान्तिमय संबंध रखती है! यक़ीनन, परमेश्वर सारी मनुष्यजाति के पहले मानव माता-पिता पर मृत्युदण्ड सख़्ती से लागू करके मनुष्यजाति और मनुष्य के पार्थीव घर के लिए खुद अपना बढ़िया उद्देश्य निष्फल नहीं करता! लेकिन बाइबलीय वृत्तांत में सीधे सीधे लिपिबद्ध किया गया ईश्वरीय आदेश सुनिए:
१० “और आदम से उस ने कहा, ‘तू ने जो अपनी पत्नी की बात सुनी, और जिस वृक्ष के फल के विषय मैं ने तुझे आज्ञा दी थी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिए भूमि तेरे कारण शापित है; तू उसकी उपज जीवन भर दुःख के साथ खाया करेगा: और वह तेरे लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा; और अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।’”—उत्पत्ति ३:१७-१९.
११. आज्ञाकारिता के संबंध में कौनसे तथ्य आदम के ख़िलाफ़ परमेश्वर के न्यायदण्ड की योग्यता चित्रित करते हैं?
११ उस न्यायदण्ड का अर्थ हुआ कि यह, परमेश्वर के उद्देश्य पर हुए नतीजों की कोई परवाह किए बग़ैर, मनुष्य पर लागू किया जाता। यह उद्देश्य, एक परादीस पृथ्वी को प्रेम और शान्ति से रहनेवाले पूर्ण पुरुष और स्त्रियों से भरना और विश्व-व्याप्त बाटिका अनन्त काल तक जोतना और उसकी देख-रेख करना था। आदमी ने अपनी पत्नी की आवाज़ मानी, परमेश्वर की आवाज़ को मानने के बजाय, जिसने उस से “भले या बुरे के ज्ञान के” निषिद्ध “वृक्ष” से न खाने को कहा। और अगर वह खुद अपने परमेश्वर और सृजनहार की आवाज़ का आज्ञापालन न करता, तो क्या वह अपने बच्चों को ऐसा करने को सिखाने में डटा रहता? क्या यहोवा परमेश्वर का आज्ञापालन करने के लिए उन्हें सिखाने में उसका खुद का आदर्श एक वार्ता का विषय होता?—१ शमूएल १५:२२ से तुलना करें।
१२, १३. (अ) आदम का पाप उसके बच्चों पर किस तरह असर करता? (ब) आदम अनन्त काल तक परादीस में या पृथ्वी पर भी, जीने के योग्य क्यों न था?
१२ क्या आदम के बच्चे परमेश्वर के नियम का पूर्ण रूप से पालन कर सकते थे, जैसे कि वह खुद एक समय अपनी मानव पूर्णता में कर सका था? आनुवंशिकता के नियमों की क्रिया से, क्या वह अपने बच्चों को परमेश्वर की आवाज़ की अवज्ञा करने और किसी और आवाज़ को मानने की अपनी कमज़ोरी और प्रवृत्ति न देता? तथ्यक इतिहास इन सवालों का जवाब देता है।—रोमियों ५:१२.
१३ जो आदमी, सिर्फ़ एक मानव प्राणी की ख़ातिर, परमेश्वर के प्रति पूर्ण प्रेम की अभिव्यक्ति में पूर्ण आज्ञापालन से मुड़ा, क्या वह अनन्त काल तक परादीस में या पृथ्वी पर भी, रहने के योग्य था? क्या उसे पृथ्वी पर अनन्त काल तक रहने देना सुरक्षित भी होता? क्या उसे अपने अपराध में पृथ्वी पर अनन्त काल तक रहने देना परमेश्वर के नियमों को उन्नत करके उसका परम न्याय प्रदर्शित करता, या क्या यह परमेश्वर के नियम के प्रति अनादर सिखाकर यह सूचित करता कि परमेश्वर का वचन अविश्वसनीय था?
अदन की बाटिका से निकाल बाहर होना
१४. बाइबल वृत्तांत परमेश्वर का आदम और उसकी पत्नी के ख़िलाफ़ कार्रवाई लेने का वर्णन किस तरह करता है?
१४ बाइबल वृत्तांत हमें बताता है कि परमेश्वर ने इन मामलों को किस रीति से तय किया: “और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे बनाकर उनको पहना दिए। फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, ‘मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिए अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे।’ तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की बाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस में से वह बनाया गया था। इसलिए आदम को उस ने निकाल दिया और जीवन के वृक्ष के मार्ग का पहरा देने के लिए अदन की बाटिका के पूर्व की ओर करूबों को, और चारों ओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।”—उत्पत्ति ३:२१-२४.
१५. (अ) आदम और उसकी पत्नी ने नंगा होने पर जो शर्म महसूस की, उस भावना के लिए परमेश्वर ने किस तरह क़दर दिखायी? (ब) पहले मानव जोड़े को अदन की बाटिका से किस तरह निकाल दिया गया? (क) अदन की बाटिका के बाहर आदम और उसकी पत्नी के सम्मुख कौनसी बदली हुई परिस्थितियाँ थीं?
१५ आदम और उसकी पत्नी ने अब वस्त्रहीन होने की वजह से जो शर्म की भावना महसूस की, उसका लिहाज़ ईश्वरीय न्यायाधीश ने किया। किसी रीति से जो बताया नहीं गया, उसने जो अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़कर लंगोट बनाए थे, उनके बदले उन्हें चमड़े के लम्बे वस्त्र दिए। (उत्पत्ति ३:७) चमड़े के वस्त्र ज़्यादा समय तक टिकते और अदन की बाटिका के बाहर उन्हें कांटों और ऊँटकटारों और अन्य हानिकारक चीज़ों से ज़्यादा सुरक्षा देते। पाप करने के बाद एक कुविवेक होने के कारण, उन्होंने अदन की बाटिका में पेड़ों के बीच परमेश्वर की दृष्टि से छुपने की कोशिश की। (उत्पत्ति ३:८) अब, दण्डित होने के बाद, उन्होंने परमेश्वर द्वारा बाटिका से निकाल बाहर किए जाने में एक तरह का ईश्वारय दबाव महसूस किया। उन्हें पूरब की ओर संचालित किया गया, और उसके थोड़ी ही देर बाद, बाटिका में से हमेशा के लिए प्रतिषिद्ध होकर, उन्होंने अपने आप को उसके बाहर पाया। वे अब और वह बाटिका बढ़ाने और उसके परादीसीय अवस्था पृथ्वी की छोर तक फैलाने के लिए काम नहीं करते। अब से, वे खेत के पेड़-पौधों से बना खाना खाते, लेकिन यह मानव जीवन की अवस्था में अनन्त काल तक उनका पोषण नहीं करता। वे “जीवन के वृक्ष” से अलग कर दिए गए। कुछ देर बाद—कितनी देर?—उन्हें मरना था!
यहोवा का मूल उद्देश्य अपराजेय
१६. परमेश्वर क्या करने का संकल्प नहीं किया था, और क्यों?
१६ क्या परमेश्वर ने अब एक ब्रह्मांडीय अग्निकांड में, चँद्र, सूर्य, और तारों के साथ साथ, पृथ्वी को विनष्ट करने का निश्चय किया, इसीलिए कि इन दोनों, मिट्टी से बनी सृष्टि ने उसके विरुद्ध पाप किया था? अगर वह ऐसा करता, तो क्या इसका यह मतलब नहीं होता कि वह अपने शानदार उद्देश्य में विफल किया गया था, ये सब सिर्फ़ एक ना·ख़ाशʹ द्वारा शुरू की गयी बातों के कारण? क्या एक नगण्य साँप परमेश्वर के सारे उद्देश्य को विफल कर सकता था? उसने अपना उद्देश्य आदम और हव्वा को उनके शादी के दिन पर बताया था, जब उसने उन्हें आशीष दी और उन्हें बताया कि उनके लिए उसकी क्या इच्छा थी: संपूर्ण पृथ्वी को पूर्ण मानवजाति से भरना, और सारी पृथ्वी में अदन की बाटिका जैसी पूर्णता वश में करना, और साथ साथ, पूरी मनुष्यजाति के अधीन पृथ्वी और उसके पानियों में के सारे निम्न जीवों को शान्ति से रखना। परमेश्वर के पूरा किए गए उद्देश्य की कैसी चकाचौंध करनेवाली दृष्टि, जिसकी तैयारियाँ उसने हज़ारों वर्ष के दौरान छः सृजनात्मक दिन के काम के ज़रिए की थीं! क्या यह प्रशंसनीय उद्देश्य सिर्फ़ एक साँप और पहले मानव जोड़े की उद्दंडता की वजह से अपरिपूरित रखा जानेवाला था? बिल्कुल नहीं!—यशायाह ४६:९-११ से तुलना करें।
१७. सातवें दिन के संबंध में परमेश्वर ने क्या करने का निश्चय किया था, और इसलिए यह दिन किस तरह समाप्ति होगा?
१७ यह अब भी यहोवा परमेश्वर का विश्राम का दिन था, सातवाँ दिन। उसने उस दिन पर आशीष देने का संकल्प किया था और उसे पवित्र ठहराया था। वह ऐसा कुछ होने नहीं देता जिस से यह एक शापित दिन बन जाता, और अपने विश्राम के दिन पर किसी के भी द्वारा षड्यन्त्र किया गया जो शाप आता, उसे वह प्रभावहीन कर देता और उसे एक आशीष बनाता, जिस के परिणामस्वरूप दिन धन्य बन जाता। यह संपूर्ण पृथ्वी को एक पवित्र स्थान के तौर से छोड़ देता, जिस में परमेश्वर की इच्छा का पालन यहाँ पृथ्वी पर किया जाता, जैसा कि यह स्वर्ग में किया जा रहा है, और यह भी पूर्ण मानवों की जाति के द्वारा।—मत्ती ६:१० से तुलना करें।
१८, १९. (अ) पापी पहले मानव जोड़े के कष्ट उठानेवाले वंशज क्यों साहस बाँध सकते हैं? (ब) प्रहरीदुर्ग के आगामी कालमों में किस बात पर विचार-विमर्श किया जाएगा?
१८ परमेश्वर ने कोई भग्नाशा महसूस नहीं की। उसने अपना उद्देश्य नहीं छोड़ा। उसने खुद को सत्य सिद्ध करने का निश्चय किया, एक पूरी तरह से भरोसेमंद व्यक्ति के तौर से, जो कि दोनों संकल्प और संकल्प की हुई बातें पूरा करता है, जिस से उसे सारा श्रेय मिलता है। (यशायाह ४५:१८) पापी पहले मानव जोड़े के अपूर्ण, कष्ट उठानेवाले वंशज साहस बाँध सकते हैं और परमेश्वर का मूल उद्देश्य विश्वसनीय रूप से पूरा करने की अपेक्षा रख सकते हैं, जिस से उनका चिरकालिक लाभ होगा। अभी, उसके विश्राम के दिन की सहस्राब्दियाँ गुज़र चुकी हैं, और उस दिन का आख़री हिस्सा नज़दीक होगा जिस पर उसकी खास आशीष होगी। उसके विश्राम के दिन की “सांझ” बीत रही है, और जैसे पूर्वगामी सभी छः दिनों में हुआ, “भोर” को आना ही होगा। जब यह “भोर” पूर्णता प्राप्त करके सभी देखनेवालों को परमेश्वर के अपरिवर्तनीय उद्देश्य की शानदार निष्पत्ति पूर्ण रूप से ज़ाहिर करेगा, तब यह लिखना संभव होगा: ‘और सांझ हुई फिर भोर हुआ, सातवाँ दिन।’ सचमुच एक आश्चर्यजनक प्रत्याशा!
१९ इस सब के बारे में सोचना बहुत ही उत्तेजक है! और परमेश्वर के नियम के प्रेमी, आज्ञाकारी मानवों के लिए भविष्य में सम्मोहक परादीस प्रत्याशाओं के बारे में प्रहरीदुर्ग के आगामी कालमों में ज़्यादा बताया जाएगा।
[फुटनोट]
a प्रकाशितवाक्य १२:९ में, शैतान इब्लीस की पहचान “पुराना साँप” के तौर से की गयी है; और यूहन्ना ८:४४ में, यीशु उसका ज़िक्र “झूठ का पिता” के तौर से करता है।
आप क्या कहेंगे?
◻ पहले मानव जोड़े ने अपना परादीस घर क्यों खो दिया?
◻ हम क्यों जानते हैं कि साँप के ज़रिए हव्वा को धोखा दिया जाना कोई पौराणिक कथा न थी?
◻ स्त्री पर परमेश्वर ने क्या दण्ड सुनाया?
◻ परमेश्वर ने आदम पर क्या दण्ड सुनाया, और इस से परमेश्वर का नियम क्यों उन्नत हुआ?
◻ परादीस में पूर्ण मानवों से पृथ्वी भर लेने के उद्देश्य से संबंधित परमेश्वर ने कोई भग्नाशा क्यों महसूस न की?