परमेश्वर का मकसद पूरा करने का एक प्रबंध
“[परमेश्वर] अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है।”—इफिसियों 1:11.
1. अप्रैल 12, 2006 को यहोवा के साक्षियों की सारी कलीसियाएँ किस लिए इकट्ठा होंगी?
अप्रैल 12, 2006 की बुधवार की शाम, करीब 1 करोड़ 60 लाख लोग, अलग-अलग जगहों में प्रभु का संध्या भोज मनाने के लिए इकट्ठे होंगे। वे जहाँ-जहाँ इकट्ठे होंगे, उन जगहों में पहले से एक मेज़ पर अखमीरी रोटी और लाल दाखमधु का इंतज़ाम किया गया होगा। रोटी, मसीह की देह की निशानी है और दाखमधु उसके बहाए लहू की। भाषण के आखिर में, जब यह समझाया जाएगा कि यीशु की मौत के स्मारक का मतलब क्या है तो पहले रोटी, फिर दाखमधु हाज़िर लोगों में फिरायी जाएगी। यहोवा के साक्षियों की सिर्फ चंद कलीसियाओं में, हाज़िर लोगों में से एक या दो जन यह रोटी खाएँगे और दाखमधु पीएँगे। लेकिन ज़्यादातर कलीसियाओं में कोई भी इन्हें खाएगा-पीएगा नहीं। ऐसा क्यों है कि सिर्फ चंद मसीही जो स्वर्ग जाने की आशा रखते हैं, रोटी और दाखमधु लेते हैं, जबकि धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा रखनेवाले ज़्यादातर मसीही इन्हें नहीं लेते?
2, 3. (क) यहोवा ने अपने मकसद के मुताबिक क्या-क्या सिरजा? (ख) यहोवा ने किस मकसद से धरती और इंसानों को रचा था?
2 यहोवा ऐसा परमेश्वर है जो अपना हर काम एक मकसद से करता है। और अपना मकसद पूरा करने के लिए वह “अपनी इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है।” (इफिसियों 1:11) उसने सबसे पहले अपने एकलौते बेटे की सृष्टि की। (यूहन्ना 1:1, 14; प्रकाशितवाक्य 3:14) फिर, उस बेटे के ज़रिए उसने आत्मिक बेटों का एक परिवार सिरजा। और आखिर में विश्व की सृष्टि की, जिसमें धरती और उस पर रहने के लिए इंसान भी थे।—अय्यूब 38:4, 7; भजन 103:19-21; यूहन्ना 1:2, 3; कुलुस्सियों 1:15, 16.
3 ईसाईजगत के कई गिरजों में सिखाया जाता है कि धरती तो सिर्फ वह जगह है, जहाँ इंसानों को परखा जाता है कि वे स्वर्ग में परमेश्वर के परिवार में शामिल होने लायक हैं या नहीं। लेकिन यहोवा ने धरती को इसलिए नहीं बनाया था। इसे बनाने के पीछे यहोवा का एक खास मकसद था। उसने धरती को “बसने के लिये” रचा था। (यशायाह 45:18) परमेश्वर ने धरती को इंसानों के लिए और इंसानों को धरती पर रहने के लिए रचा था। (भजन 115:16) वह चाहता था कि पूरी पृथ्वी, धर्मी इंसानों से आबाद हो जाए जो इसे एक फिरदौस बनाएँ और इसकी देखभाल करें। दरअसल, पहले इंसानी जोड़े को स्वर्ग जाने की आशा कभी नहीं दी गयी थी।—उत्पत्ति 1:26-28; 2:7, 8, 15.
यहोवा के मकसद को चुनौती दी गयी
4. पहले इंसान की सृष्टि से ही यहोवा के हुकूमत करने के तरीके पर कैसे सवाल उठाया गया?
4 यहोवा के एक आत्मिक बेटे ने उसके खिलाफ बगावत की और यह ठान लिया कि वह उसके मकसद को नाकाम करके रहेगा। इस तरह उसने परमेश्वर के दिए तोहफे यानी अपनी आज़ाद मरज़ी का गलत इस्तेमाल किया। उसने यहोवा से प्यार करनेवालों और उसकी हुकूमत के अधीन रहनेवालों की शांति में खलल पैदा कर दिया। शैतान ने पहले इंसानी जोड़े को परमेश्वर से आज़ाद होकर अपनी मन-मरज़ी करने के लिए वरगलाया। (उत्पत्ति 3:1-6) शैतान ने इस बात से इनकार नहीं किया कि यहोवा के पास अपार शक्ति है, मगर उसने यह सवाल उठाया कि क्या यहोवा के हुकूमत करने का तरीका सही है। ऐसा करके उसने परमेश्वर के हुकूमत करने के हक पर उँगली उठायी। इस तरह, धरती पर पहले इंसान की सृष्टि से ही यहोवा की हुकूमत पर अहम मसला खड़ा किया गया।
5. कौन-सा दूसरा मसला खड़ा किया गया था और इस वजह से किन-किन की वफादारी पर उँगली उठायी गयी थी?
5 अय्यूब के दिनों में शैतान ने एक दूसरा मसला खड़ा किया जिसका विश्व की हुकूमत के मसले से गहरा ताल्लुक है। उसने यहोवा के सेवकों की नीयत पर सवाल उठाया। शैतान का दावा था कि यहोवा के सेवक बस अपने मतलब के लिए उसके अधीन रहते और उसकी सेवा करते हैं। और अगर उन पर आज़माइशें लायी जाएँ तो वे परमेश्वर के खिलाफ हो जाएँगे। (अय्यूब 1:7-11; 2:4, 5) हालाँकि यह मसला यहोवा के एक इंसानी सेवक की वफादारी को लेकर खड़ा किया गया था, मगर इससे परमेश्वर के आत्मिक बेटों और खुद उसके एकलौते बेटे की वफादारी पर भी उँगली उठायी गयी।
6. यहोवा ने कैसे साबित किया कि वह अपने मकसद और अपने नाम का सच्चा है?
6 लेकिन यहोवा ने अपना मकसद नहीं छोड़ा और अपने नाम के मतलब पर खरा उतरते हुए वह एक भविष्यवक्ता और उद्धारकर्त्ता बना।a उसने शैतान से कहा: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति 3:15) यहोवा अपनी “स्त्री” यानी अपने संगठन के स्वर्गीय हिस्से के वंश के ज़रिए शैतान की चुनौती का मुँहतोड़ जवाब देता। और आदम की संतानों को पाप और मौत से छुटकारा पाने और हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा देता।—रोमियों 5:21; गलतियों 4:26, 31.
‘उसकी इच्छा का पवित्र भेद’
7. यहोवा ने प्रेरित पौलुस के ज़रिए क्या मकसद ज़ाहिर किया?
7 इफिसुस के मसीहियों को लिखी अपनी पत्री में प्रेरित पौलुस ने बढ़िया ढंग से समझाया कि यहोवा अपने मकसद को पूरा करने के लिए कैसा प्रबंध करता है। पौलुस ने लिखा: “उस ने अपनी इच्छा का [पवित्र] भेद उस सुमति के अनुसार हमें बताया जिसे उस ने अपने आप में ठान लिया था। कि समयों के पूरे होने का ऐसा प्रबन्ध हो कि जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृथ्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे।” (इफिसियों 1:9, 10) यहोवा का शानदार मकसद यही है कि विश्व के सभी प्राणी एक हो जाएँ और खुशी-खुशी उसकी हुकूमत के अधीन रहें। (प्रकाशितवाक्य 4:11) तब, यहोवा का नाम पवित्र किया जाएगा, शैतान झूठा साबित होगा और परमेश्वर की इच्छा “जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी” होगी।—मत्ती 6:10.
8. जिस शब्द के लिए “प्रबन्ध” अनुवाद किया गया है, उसका मतलब क्या है?
8 यहोवा की “सुमति” या उसका मकसद एक “प्रबन्ध” के ज़रिए पूरा होगा। पौलुस ने यहाँ ऐसा शब्द इस्तेमाल किया जिसका शाब्दिक अर्थ है, “घरबार के काम का बंदोबस्त।” यह प्रबंध, मसीहाई राज्य की तरह एक सरकार नहीं है बल्कि मामलों को सँभालने का एक तरीका है।b यहोवा जिस बेहतरीन तरीके से अपने मकसद को पूरा करने का प्रबंध करेगा वह एक “पवित्र भेद” है और जैसे-जैसे सदियाँ बीतेंगी, यह भेद प्रकट होगा।—इफिसियों 1:10; 3:9, NW, फुटनोट।
9. यहोवा ने धीरे-धीरे अपनी इच्छा का पवित्र भेद कैसे ज़ाहिर किया?
9 एक-के-बाद-एक वाचाओं के ज़रिए यहोवा ने धीरे-धीरे ज़ाहिर किया कि अदन में जिस वंश के आने का वादा किया गया था, वह मकसद कैसे पूरा होगा। इब्राहीम से बाँधी गयी वाचा ने दिखाया कि यह वंश, उसके खानदान से आएगा और इस वंश के ज़रिए ही “पृथ्वी की सारी जातियां” खुद को आशीष दिलाएँगी। इस वाचा से यह भी पता चला कि वंश के मुख्य भाग के साथ और भी कई लोग शामिल होंगे। (उत्पत्ति 22:17, 18) यहोवा ने जब पैदाइशी इस्राएलियों के साथ व्यवस्था-वाचा बाँधी, तो उनको “याजकों का राज्य” ठहराने का अपना मकसद ज़ाहिर किया। (निर्गमन 19:5, 6) दाऊद के साथ बाँधी गयी वाचा में यहोवा ने बताया कि वह वंश एक ऐसे राज्य का राजा होगा जो हमेशा कायम रहेगा। (2 शमूएल 7:12, 13; भजन 89:3, 4) जब व्यवस्था-वाचा की मदद से यहूदियों ने मसीहा को पहचाना, तो उसके बाद से यहोवा ने अपने मकसद के और भी कई पहलू बताए। (गलतियों 3:19, 24) जैसे, वंश के मुख्य भाग के साथ जो इंसान शामिल होंगे, भविष्यवाणी के मुताबिक उनसे “याजकों का राज्य” बनेगा और नए “इस्राएल” यानी आध्यात्मिक जाति के नाते उनके साथ “नई वाचा” बाँधी जाएगी।—यिर्मयाह 31:31-34; इब्रानियों 8:7-9.c
10, 11. (क) यहोवा ने कैसे ज़ाहिर किया कि भविष्यवाणियों में बताया वंश कौन है? (ख) परमेश्वर का एकलौता बेटा धरती पर क्यों आया?
10 परमेश्वर के मकसद को पूरा करने के लिए जो प्रबंध किया गया था, उसके मुताबिक, वह समय आया जब भविष्यवाणी में बताए वंश को धरती पर आना था। यहोवा ने अपने दूत जिब्राइल को मरियम के पास यह पैगाम देने भेजा कि वह एक बेटे को जन्म देगी और उसका नाम यीशु होगा। स्वर्गदूत ने उससे कहा: “वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका 1:32, 33) इससे साफ पता चला कि यीशु ही वह वंश है जिसके आने का वादा किया गया था।—गलतियों 3:16; 4:4.
11 यहोवा के इस एकलौते बेटे को धरती पर पूरी तरह से परखा जाना था। शैतान की चुनौती का हमेशा-हमेशा के लिए मुँहतोड़ जवाब देना यीशु के हाथों में था। क्या वह अपने पिता का वफादार रहता? इसका जवाब एक पवित्र भेद था। प्रेरित पौलुस ने बाद में यीशु की भूमिका के बारे में समझाते हुए कहा: “इस में सन्देह नहीं, कि भक्ति का भेद गम्भीर है; अर्थात् वह जो शरीर में प्रगट हुआ, आत्मा में धर्मी ठहरा, स्वर्गदूतों को दिखाई दिया, अन्यजातियों में उसका प्रचार हुआ, जगत में उस पर विश्वास किया गया, और महिमा में ऊपर उठाया गया।” (1 तीमुथियुस 3:16) जी हाँ, यीशु मरते दम तक अपनी खराई पर बना रहा और उसने शैतान की चुनौती का एकदम बढ़िया जवाब दिया। लेकिन पवित्र भेद की बाकी बातों पर से परदा उठना अब भी बाकी था।
‘परमेश्वर के राज्य का पवित्र भेद’
12, 13. (क) ‘परमेश्वर के राज्य के पवित्र भेद’ का एक पहलू क्या है? (ख) जब यहोवा ने फैसला किया कि कुछ लोग स्वर्ग जाएँगे, तो इसका क्या मतलब था?
12 यीशु जब एक मौके पर गलील में प्रचार कर रहा था, तो उसकी बातों से पता चला कि पवित्र भेद और मसीहाई राज्य की सरकार का एक-दूसरे से गहरा नाता है। उसने अपने चेलों से कहा: “तुम को स्वर्ग के राज्य [“परमेश्वर के राज्य,” मरकुस 4:11] के [“पवित्र,” NW] भेदों की समझ दी गई है।” (मत्ती 13:11) उस भेद का एक पहलू यह है कि यहोवा, 1,44,000 इंसानों के एक “छोटे झुण्ड” को चुनेगा जो उसके बेटे के साथ, वंश का हिस्सा बनकर स्वर्ग में राज्य करेंगे।—लूका 12:32; प्रकाशितवाक्य 14:1, 4.
13 यहोवा ने इंसानों को धरती पर जीने के लिए बनाया था, इसलिए जब उसने फैसला किया कि कुछ इंसान स्वर्ग जाएँगे, तो यह उसकी तरफ से एक “नई सृष्टि” थी। (2 कुरिन्थियों 5:17) स्वर्ग में जीने की अनोखी आशा रखनेवाले प्रेरित पतरस ने लिखा: “हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद दो, जिस ने यीशु मसीह के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा, अपनी बड़ी दया से हमें जीवित आशा के लिये नया जन्म दिया। अर्थात् एक अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास के लिये। जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी है।”—1 पतरस 1:3-5क.
14. (क) ‘परमेश्वर के राज्य के पवित्र भेद’ में गैर-यहूदी कैसे शामिल हुए? (ख) हम क्यों ‘परमेश्वर की इन गूढ़ बातों’ को समझ पाए हैं?
14 आनेवाले राज्य से जुड़े पवित्र भेद का एक और पहलू है। परमेश्वर की इच्छा है कि स्वर्ग में मसीह के साथ राज करने के लिए जिन चंद लोगों को बुलाया जाएगा, उनमें गैर-यहूदी भी शामिल हों। पौलुस ने यहोवा के “प्रबंध” के इस पहलू को या अपने मकसद को पूरा करने के तरीके को यूँ समझाया: “जो और और समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया है। अर्थात् यह, कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं।” (इफिसियों 3:5, 6) पवित्र भेद के इस पहलू की समझ “पवित्र प्रेरितों” को दी गयी थी। आज भी, अगर पवित्र आत्मा की मदद न होती, तो शायद ही हम ‘परमेश्वर की इन गूढ़ बातों’ को समझ पाते।—1 कुरिन्थियों 2:10; 4:1; कुलुस्सियों 1:26, 27.
15, 16. यहोवा ने मसीह के साथ राज करनेवालों को इंसानों में से क्यों चुना?
15 कहा जाता है कि स्वर्गीय सिय्योन पहाड़ पर ‘मेम्ने’ यानी मसीह यीशु के साथ खड़े “एक लाख चौआलीस हजार जन,” “पृथ्वी पर से मोल लिए गए” हैं और ‘परमेश्वर और मेम्ने के निमित्त पहिले फल होने के लिये मनुष्यों में से मोल लिए गए हैं।’ (प्रकाशितवाक्य 14:1-5) यहोवा ने वंश का मुख्य भाग बनने के लिए अपने पहिलौठे बेटे, मसीह को स्वर्ग में से चुना, मगर उसके साथ राज करनेवालों को इंसानों में से क्यों चुना? प्रेरित पौलुस समझाता है कि उन गिने-चुने लोगों को ‘यहोवा की इच्छा के अनुसार बुलाया’ गया था और यह उसकी “इच्छा की सुमति के अनुसार” था।—रोमियों 8:17, 28-30; इफिसियों 1:5, 11; 2 तीमुथियुस 1:9.
16 यहोवा का मकसद है, अपने महान और पवित्र नाम पर लगे कलंक को मिटाना और पूरे विश्व में अपनी हुकूमत बुलंद करना। अपने बुद्धि-भरे और बेमिसाल “प्रबंध” या मामलों को सँभालने के तरीके से उसने अपने पहिलौठे बेटे को धरती पर भेजा जहाँ उसे मौत तक परखा गया। इसके अलावा, यहोवा ने तय किया कि उसके बेटे के साथ मसीहाई राज्य में वे लोग राज करेंगे जो यीशु की तरह अपनी आखिरी साँस तक यहोवा की हुकूमत को बुलंद करते हैं।—इफिसियों 1:8-12; प्रकाशितवाक्य 2:10, 11.
17. हम क्यों खुश हो सकते हैं कि मसीह और उसके संगी राजा एक वक्त इंसान बनकर जीए थे?
17 यहोवा ने अपने बेटे को धरती पर भेजकर और इंसानों में से कुछ लोगों को उसके साथ राज्य का संगी वारिस चुनकर आदम के वंशजों के लिए अपने महान प्यार का सबूत दिया है। मगर इससे उन लोगों को क्या फायदा होगा जो हाबिल के ज़माने से यहोवा के वफादार रहे हैं? असिद्ध होने की वजह से इंसान पैदाइश से पाप और मौत के गुलाम हैं, इसलिए उन्हें आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से चंगा होने और सिद्ध किए जाने की ज़रूरत है, जिससे यहोवा का वह मकसद पूरा हो जो उसने शुरू में इंसानों के लिए चाहा था। (रोमियों 5:12) धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की आस लगानेवालों को यह जानकर क्या ही सुकून मिलता है कि उनका राजा, यीशु उनके साथ प्यार और समझ से पेश आएगा ठीक जैसे वह धरती पर सेवा के दौरान अपने चेलों के साथ पेश आया था! (मत्ती 11:28, 29; इब्रानियों 2:17, 18; 4:15; 7:25, 26) और यह जानकर उनका कितना ढाढ़स बँधता है कि मसीह के साथ स्वर्ग में ऐसे विश्वासी स्त्री-पुरुष, राजा और याजक बनकर राज करेंगे जो एक वक्त धरती पर हमारी तरह ही अपनी कमज़ोरियों से लड़े हैं और ज़िंदगी की मुश्किलों का सामना किया है!—रोमियों 7:21-25.
यहोवा का अटल मकसद
18, 19. हम क्यों इफिसियों 1:8-11 में दिए पौलुस के शब्दों को अच्छी तरह समझ पाते हैं और अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?
18 अब हम इफिसियों 1:8-11 में पौलुस के शब्दों का मतलब बेहतर तरीके से समझ पाते हैं जो उसने अभिषिक्त मसीहियों से कहे थे। उसने कहा कि यहोवा ने उन पर “अपनी इच्छा का [पवित्र] भेद” ज़ाहिर किया है कि उन्हें मसीह के साथ “उत्तराधिकार प्राप्त हुआ है” और वे उस ‘परमेश्वर के उद्देश्य के अनुसार पहले से निर्धारित हो चुके हैं, जो सब कुछ अपनी सुनिश्चित इच्छा से करता है।’ (नयी हिन्दी बाइबिल) हमने समझा है कि यहोवा के मकसद को अंजाम देने के अद्भुत “प्रबन्ध” का यह एक हिस्सा है। हमने यह भी समझा है कि क्यों प्रभु के संध्या भोज में हाज़िर होनेवालों में से सिर्फ कुछ मसीही ही रोटी खाते और दाखमधु पीते हैं।
19 अगले लेख में हम देखेंगे कि मसीह की मौत का स्मारक, स्वर्ग की आशा रखनेवाले मसीहियों के लिए क्या मायने रखता है। हम यह भी सीखेंगे कि स्मारक किस बात की निशानी है, यह जानने में उन लाखों लोगों को क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए जो धरती पर हमेशा के लिए जीने की आशा रखते हैं।
[फुटनोट]
a परमेश्वर के नाम का शब्द-ब-शब्द मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” इसका मतलब है कि अपने मकसद को पूरा करने के लिए, यहोवा जो ज़रूरी है वह बन सकता है।—निर्गमन 3:14.
b पौलुस के शब्दों से पता चलता है कि उसके दिनों में यह “प्रबन्ध” काम कर रहा था, जबकि जैसा शास्त्र से पता चलता है, मसीहाई राज्य बाद में जाकर सन् 1914 में स्थापित हुआ था।
c परमेश्वर के उद्देश्य के पूरा होने में इन वाचाओं की क्या भूमिका है, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए फरवरी 1, 1990 की प्रहरीदुर्ग के पेज 10-15 देखिए।
दोहराने के लिए
• यहोवा ने किस मकसद से पृथ्वी को बनाया और उस पर इंसानों को रखा?
• यह क्यों ज़रूरी था कि यहोवा के एकलौते बेटे को धरती पर परखा जाए?
• यहोवा ने मसीह के साथ राज करनेवालों को इंसानों में से क्यों चुना?