यहोवा का वचन जीवित है
उत्पत्ति किताब की झलकियाँ—I
“उत्पत्ति” शब्द का मतलब है, “शुरूआत” यानी “पैदाइश।” इस किताब के लिए यह नाम बिलकुल सही है क्योंकि इसमें बताया गया है कि पूरे विश्व की शुरूआत कैसे हुई, इंसान के रहने के लिए धरती कैसे तैयार की गयी और इंसान कैसे वजूद में आया। यह किताब मूसा ने सीनै के वीराने में लिखी थी और शायद उसने सा.यु.पू. 1513 में इसे लिखकर पूरा किया।
उत्पत्ति की किताब, जलप्रलय से पहले की दुनिया और उसके बाद के दौर के बारे में बताती है। इसके अलावा, यह बताती है कि यहोवा परमेश्वर इब्राहीम, इसहाक, याकूब और यूसुफ के साथ कैसे पेश आया। इस लेख में उत्पत्ति 1:1–11:9 की कुछ झलकियाँ पेश की जाएँगी और उस समय तक की जानकारी दी जाएगी जब यहोवा और कुलपिता इब्राहीम के रिश्ते की शुरूआत हुई।
जलप्रलय से पहले की दुनिया
“आदि में,” इन शब्दों से उत्पत्ति किताब की शुरूआत होती है और यहाँ अरबों साल पहले की बात हो रही है। अगर एक इंसान, सृष्टि के छः “दिनों” यानी खास सृष्टि की समय-अवधियों के दौरान पृथ्वी पर मौजूद होता तो क्या-क्या देखता, उसी के मुताबिक इन घटनाओं का ब्यौरा दिया गया है। छठवें दिन के आखिर में परमेश्वर ने इंसान को बनाया। मगर कुछ ही समय बाद, परमेश्वर की आज्ञा तोड़ने की वजह से इंसान ने फिरदौस में जीने की आशीष गँवा दी। इसके बावजूद यहोवा ने इंसानों को एक आशा दी। बाइबल में सबसे पहली भविष्यवाणी एक “वंश” के बारे में की गयी है, जो आगे चलकर पाप के बुरे अंजामों को मिटा देगा और शैतान के सिर को कुचल डालेगा।
इंसान के पाप करने के बाद, अगली 16 सदियों के दौरान, हाबिल, हनोक और नूह जैसे चंद वफादार सेवकों को छोड़, शैतान सभी इंसानों को परमेश्वर से दूर ले जाने में कामयाब रहा। मिसाल के लिए, कैन ने अपने धर्मी भाई, हाबिल का कत्ल कर दिया। “लोग प्रभु का नाम लेने लगे” थे (बुल्के बाइबिल) यानी परमेश्वर के नाम की निंदा करने लगे थे। उस ज़माने में लोगों के सिर पर खून सवार था, और यही रवैया हम लेमेक में देखते हैं। उसने अपनी कविता में बताया कि कैसे उसने एक नौजवान का खून किया मगर यह सफाई दी कि उसे अपने बचाव के लिए ऐसा करना पड़ा। और जब परमेश्वर के आत्मिक बेटों में से कुछ ने बगावत करके पृथ्वी पर स्त्रियों से शादी की, तो उनसे ऐसे बच्चे पैदा हुए जो खूँखार नफिलीम बने और इस वजह से हालात बद-से-बदतर हो गए। ऐसे हालात में भी नूह ने वफादारी दिखाते हुए जहाज़ तैयार किया और बेखौफ, लोगों को उस जलप्रलय के बारे में खबरदार किया जो जल्द ही आनेवाला था। इस तरह वह और उसका परिवार उस नाश से बच निकला।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
1:16—अगर परमेश्वर ने चौथे दिन ज्योतियाँ बनाईं, तो पहले दिन उजियाला कैसे हो सकता था? आयत 16 में “बनाईं” के लिए जो इब्रानी शब्द इस्तेमाल किया गया है और आयत 1, 21 और 27 में “सृष्टि” के लिए जो इब्रानी शब्द इस्तेमाल किया गया है, उन दोनों शब्दों का मतलब अलग है। “आकाश” जिसमें ज्योतियाँ यानी सूरज, चाँद और तारें शामिल हैं, उनकी सृष्टि ‘पहिले दिन’ के शुरू होने से काफी समय पहले हो चुकी थी। लेकिन फिर भी पृथ्वी पर अंधकार था। इन ज्योतियों की धुँधली रोशनी ‘पहिले दिन’ बादलों को चीरती हुई पृथ्वी पर पहुँची और तब ‘उजियाला हुआ।’ इस तरह हमारी घूमती हुई पृथ्वी पर दिन और रात का सिलसिला शुरू हुआ। (उत्पत्ति 1:1-3, 5) मगर तब भी पृथ्वी से ये ज्योतियाँ नज़र नहीं आ रही थीं। सृष्टि की चौथी समय-अवधि के दौरान एक अनोखा बदलाव हुआ। ‘पृथ्वी पर प्रकाश देने’ के लिए सूरज, चाँद और तारों को बनाया गया। (उत्पत्ति 1:17) “परमेश्वर ने” ये ज्योतियाँ इस मायने में “बनाईं” कि अब वे पृथ्वी पर से नज़र आने लगीं।
3:8—क्या यहोवा परमेश्वर ने आदम से सीधे-सीधे बात की? बाइबल बताती है कि परमेश्वर ने अकसर किसी स्वर्गदूत के ज़रिए इंसानों से बातें कीं। (उत्पत्ति 16:7-11; 18:1-3, 22-26; 19:1; न्यायियों 2:1-4; 6:11-16, 22; 13:15-22) ज़्यादातर मामलों में उसने अपने एकलौते बेटे के ज़रिए इंसानों से बात की थी, जिसे “वचन” कहा जाता है। (यूहन्ना 1:1) ज़ाहिर है कि परमेश्वर ने आदम और हव्वा से भी ज़रूर “वचन” के ज़रिए बात की होगी।—उत्पत्ति 1:26-28; 2:16; 3:8-13.
3:17—भूमि किस मायने में शापित ठहरी और कब तक? भूमि का शापित ठहरने का मतलब था कि अब से उस पर खेती करना बहुत मुश्किल होता। भूमि शापित होने की वजह से उस पर काँटे और ऊँटकटारे उग आए थे। नतीजतन, आदम के वंशजों को इतनी तकलीफ उठानी पड़ी कि नूह के पिता, लेमेक ने कहा: ‘प्रभु द्वारा अभिशप्त इस भूमि पर कठिन परिश्रम करने में हमें कष्ट होता है।’ (उत्पत्ति 5:29, बुल्के बाइबिल) जलप्रलय के बाद, यहोवा ने नूह और उसके बेटों को आशीष दी और अपने मकसद के मुताबिक उन्हें पृथ्वी को भर देने की आज्ञा दी। (उत्पत्ति 9:1) तब शायद परमेश्वर ने भूमि पर से अपना शाप हटा लिया था।—उत्पत्ति 13:10.
4:15—यहोवा ने कैसे “कैन के लिये एक चिन्ह ठहराया”? बाइबल यह नहीं कहती है कि कैन के शरीर पर कोई निशान या चिन्ह लगाया गया था। यह चिन्ह शायद परमेश्वर का दिया एक हुक्म था, जिसके बारे में लोग जानते थे और उसे मानते भी थे। यह इसलिए दिया गया ताकि कोई हाबिल के खून का बदला लेने के लिए कैन को मार न डाले।
4:17—कैन को अपनी पत्नी कहाँ से मिली? आदम के “और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं।” (उत्पत्ति 5:4) इसलिए कैन ने अपनी बहनों में से किसी एक को या शायद अपनी किसी भतीजी/भानजी को अपनी पत्नी बनाया। आगे चलकर परमेश्वर की व्यवस्था में इस्राएलियों को अपने सगे भाई-बहनों से शादी करने की मनाही की गयी।—लैव्यव्यवस्था 18:9.
5:24—परमेश्वर ने कैसे ‘हनोक को उठा लिया’? हनोक की जान को शायद खतरा था, मगर परमेश्वर ने उसे अपने दुश्मनों के हाथों मरने नहीं दिया। प्रेरित पौलुस ने लिखा: ‘हनोक को उठा लिया गया था, कि वह मृत्यु को न देखे।’ (इब्रानियों 11:5) इसका यह मतलब नहीं कि परमेश्वर ने उसे जीते-जी स्वर्ग में उठा लिया जहाँ पर वह रहने लगा। दरअसल, यीशु ही वह पहला इंसान था जिसे धरती से स्वर्ग में उठा लिया गया था। (यूहन्ना 3:13; इब्रानियों 6:19, 20) तो “हनोक उठा लिया गया, कि मृत्यु को न देखे,” इसका यह मतलब हो सकता है कि परमेश्वर ने हनोक को भविष्य का एक दर्शन दिखाते वक्त, उसे मौत की नींद सुला दिया। इस तरह हनोक ने न तो मरने का कोई दर्द सहा और न ही अपने दुश्मनों के हाथों ‘मृत्यु देखी’।
6:6—किस मायने में यह कहा जा सकता है कि यहोवा, इंसान को बनाने से “पछताया”? यहाँ जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “पछताया” किया गया उसका मतलब है, किसी के बारे में अपना नज़रिया या इरादा बदलना। यहोवा सिद्ध है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उसने इंसान को बनाकर कोई भूल की थी। मगर हाँ, उसने जलप्रलय से पहले की बुरी पीढ़ी के बारे में अपना नज़रिया ज़रूर बदला। उनकी बुराई देखकर वह इस कदर भड़क उठा कि उसने ठान लिया, अब वह उनका बनानेवाला नहीं बल्कि उनका नाश करनेवाला ठहरेगा। परमेश्वर ने कुछ लोगों को बचाया, जिससे ज़ाहिर होता है कि वह सिर्फ उन लोगों के बारे में पछताया जो बुरे बन चुके थे।—2 पतरस 2:5, 9.
7:2—किस बिनाह पर यह फर्क किया गया था कि कौन-सा जानवर शुद्ध है और कौन-सा अशुद्ध? यह इस बिनाह पर नहीं किया गया था कि कौन-सा जानवर खाया जा सकता है और कौन-सा नहीं, बल्कि इस बिनाह पर कि उपासना के लिए किन जानवरों की बलि चढ़ायी जा सकती थी। जलप्रलय से पहले इंसान के खान-पान में जानवरों का माँस शामिल नहीं था। भोजन के लिए “शुद्ध” और “अशुद्ध” जैसे शब्दों का इस्तेमाल मूसा की व्यवस्था से शुरू हुआ और यह पाबंदी तब खत्म हुई जब व्यवस्था को रद्द किया गया। (प्रेरितों 10:9-16; इफिसियों 2:15) शायद नूह को पता था कि यहोवा की उपासना के लिए कौन-से जानवरों की बलि चढ़ाना सही होगा। इसलिए जहाज़ से बाहर निकलने पर सबसे पहले उसने “यहोवा के लिये एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पक्षियों में से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया।”—उत्पत्ति 8:20.
7:11—जलप्रलय का पानी कहाँ से आया था? सृष्टि के दूसरे “दिन” की समय-अवधि में जब पृथ्वी पर “वायुमण्डल” बनाया गया तो “वायुमण्डल के नीचे” और “वायुमण्डल के ऊपर” पानी था। (उत्पत्ति 1:6, 7, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) “नीचे” का पानी, पृथ्वी में पहले से मौजूद था। और “ऊपर” का पानी, बड़ी मात्रा में नमी के तौर पर पृथ्वी पर फैला हुआ था और इसी से “गहरे जल के सब सोते” (NHT) बने। नूह के दिनों में यही पानी पृथ्वी पर बरसा था।
हमारे लिए सबक:
1:26. इंसानों को परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है, इसलिए उनमें परमेश्वर के गुणों को ज़ाहिर करने की काबिलीयत है। तो बेशक हमें प्रेम, दया, कृपा, भलाई और धीरज जैसे गुण बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इस तरह हम अपने बनानेवाले के नक्शे-कदम पर चल रहे होंगे।
2:22-24. शादी, परमेश्वर का ठहराया हुआ इंतज़ाम है और यह ज़िंदगी-भर का एक पवित्र बंधन है। इस रिश्ते में पति, परिवार का मुखिया होता है।
3:1-5, 16-23. हमें खुशी तभी मिलेगी जब हम अपनी निजी ज़िंदगी में यहोवा की हुकूमत को कबूल करेंगे।
3:18,19; 5:5; 6:7; 7:23. यहोवा का वचन हमेशा पूरा होता है।
4:3-7. यहोवा, हाबिल के बलिदान से खुश था क्योंकि वह विश्वास रखनेवाला, एक धर्मी इंसान था। (इब्रानियों 11:4) दूसरी तरफ, कैन ने अपने कामों से दिखाया कि उसमें विश्वास की कमी थी। जलन रखने, नफरत करने और आखिर में खून करने से उसने साबित कर दिखाया कि उसके काम बुरे थे। (1 यूहन्ना 3:12) इसके अलावा, उसने अपनी भेंट के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा था और बस खानापूर्ति के लिए बलिदान चढ़ाया। जब हम यहोवा को स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाते हैं, तो क्या हमें तन-मन से, साथ ही सही नज़रिया और अच्छा चालचलन रखते हुए ऐसा नहीं करना चाहिए?
6:22. हालाँकि नूह को जहाज़ बनाने में बरसों लग गए, मगर उसने ठीक वैसा ही किया जैसा परमेश्वर ने उसे आज्ञा दी थी। इस तरह नूह और उसका परिवार जलप्रलय से बच गया। यहोवा, आज अपने वचन के ज़रिए हमसे बात करता और अपने संगठन के ज़रिए हमें हिदायतें देता है। इसलिए उन्हें सुनने और मानने में हमारी ही भलाई है।
7:21-24.यहोवा, बुरे लोगों के साथ-साथ धर्मियों को नाश नहीं करता।
एक नए दौर में कदम रखना
जलप्रलय से पहले की दुनिया के नाश के बाद, इंसान ने एक नए दौर में कदम रखा। उन्हें माँस खाने की इजाज़त दी गयी, मगर साथ ही लहू से दूर रहने का हुक्म दिया गया। यहोवा ने खून करनेवालों को सज़ा-ए-मौत की आज्ञा दी और मेघधनुष की वाचा बाँधी जिसमें उसने वादा किया कि वह फिर कभी जलप्रलय नहीं लाएगा। नूह के तीन बेटे, पूरी मानवजाति के पूर्वज बने। और नूह का परपोता, निम्रोद “यहोवा की दृष्टि [“के विरोध में,” NW] में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा।” पृथ्वी में फैलने और उसे भरने के बजाय, लोगों ने एक ही जगह में रहकर बाबुल शहर और एक गुम्मट बनाने का फैसला किया जिससे वे मशहूर हो जाएँ। मगर यहोवा ने उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। उसने उनकी भाषा में गड़बड़ी पैदा की और उन्हें पूरी दुनिया में तितर-बितर कर दिया।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
8:11—अगर जलप्रलय में सारे पेड़ नाश हो गए थे, तो फिर कबूतरी को जलपाई या जैतून की पत्ती कहाँ से मिली? यहाँ दो बातें मुमकिन हो सकती हैं। जैतून काफी मज़बूत पेड़ है इसलिए जलप्रलय के वक्त, कुछ महीनों तक पानी के नीचे रहने के बाद भी यह पेड़ पूरी तरह नाश नहीं हुआ होगा। जब पानी सूख गया तो जैतून के पेड़ पर नयी-नयी पत्तियाँ निकलने लगी होंगी। या यह भी हो सकता है कि पानी का तल घटने के बाद, जैतून का एक नया अंकुर फूटा होगा, जिसकी पत्ती तोड़कर कबूतरी नूह के पास लायी।
9:20-25—नूह ने कनान को शाप क्यों दिया? शायद कनान का कसूर यह था कि उसने अपने दादा, नूह के साथ कोई घिनौनी हरकत की होगी। हालाँकि कनान के पिता, हाम ने खुद उसकी हरकत को देखा था, मगर उसने उसे रोका नहीं उलटा इस बारे में अपने भाइयों को जाकर बताया। दूसरी तरफ, नूह के बाकी दो बेटे, शेम और येपेत ने आगे बढ़कर अपने पिता के शरीर को ढका। इसके लिए उन्हें आशीष दी गयी जबकि कनान को शाप दिया गया और अपने बेटे पर आए कलंक की वजह से हाम को भी ज़िल्लत सहनी पड़ी।
10:25—पेलेग के दिनों में पृथ्वी कैसे “बंट गई” थी? पेलेग, सा.यु.पू. 2269 से 2030 तक जीया। “उसके दिनों” में यहोवा ने बाबुल के बनानेवालों की भाषा में गड़बड़ी पैदा करके उनमें फूट डाल दी और उन्हें पूरी पृथ्वी पर तितर-बितर कर दिया। (उत्पत्ति 11:9) इस तरह, पेलेग के दिनों में “पृथ्वी [यानी पृथ्वी की आबादी] बंट गई” थी।
मारे लिए सबक:
9:1; 11:9. इंसान की कोई भी साज़िश या कोशिश यहोवा के मकसद को नाकाम नहीं कर सकती।
10:1-32. अध्याय 5 और 10 में जलप्रलय से पहले और उसके बाद की वंशावली दिखाती है कि कैसे नूह के तीन बेटों के ज़रिए सभी इंसानों का पहले मनुष्य, आदम के साथ रिश्ता है। अश्शूरी, कसदी, इब्री, अरामी और कुछ अरबी कबीले, शेम के वंशज हैं। कूशी, मिस्री, कनानी, साथ ही अफ्रीका और अरब की कुछ जातियाँ, हाम से आयी हैं। आर्य लोग (इंडो-यूरोपीयन), येपेत के वंशज हैं। सभी इंसानों का एक-दूसरे के साथ नाता है और इसीलिए परमेश्वर की नज़रों में वे सब बराबर हैं। (प्रेरितों 17:26) इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए हमें भी अपनी सोच और अपने बर्ताव में किसी तरह का भेद-भाव नहीं करना चाहिए।
परमेश्वर के वचन में ताकत है
उत्पत्ति किताब का पहला भाग ही इंसान की शुरूआत की बिलकुल सही-सही जानकारी देता है। इन पन्नों से हम समझ पाते हैं कि धरती पर इंसानों को बनाने में परमेश्वर का मकसद क्या था। यह जानकर हमें कितनी तसल्ली मिलती है कि निम्रोद जैसे इंसान की कोई भी कोशिश, परमेश्वर के मकसद को पूरा होने से नहीं रोक सकती!
परमेश्वर की सेवा स्कूल की तैयारी करते वक्त जब आप, हर हफ्ते के लिए दिए बाइबल अध्यायों को पढ़ते हैं, तो “बाइबल सवालों के जवाब पाना” उपशीर्षक के तहत दी गयी जानकारी पर गौर करने से आप कुछ मुश्किल आयतों को समझ पाएँगे। “हमारे लिए सबक” के तहत जानकारी आपको दिखाएगी कि हफ्ते की बाइबल पढ़ाई से आपको किस तरह फायदा पहुँच सकता है। जहाँ ठीक लगे, वहाँ इस जानकारी का इस्तेमाल सेवा सभा के भाग, कलीसिया की ज़रूरतें में भी किया जा सकता है। इसमें शक नहीं कि यहोवा का वचन सचमुच जीवित है और उसमें हमारी ज़िंदगी पर ज़बरदस्त असर करने की ताकत है।—इब्रानियों 4:12.