क्या आपको याद है?
प्रहरीदुर्ग के हाल के अंकों को पढ़ने में क्या आपको मज़ा आया? अगर हाँ तो आप इन बातों को याद करना आपको दिलचस्प लगेगा:
◻ अपने लोगों की अगुवाई करने के लिए यहोवा ने जिन पुरुषों को चुना है उन पर हम क्यों भरोसा रख सकते हैं?
यहोवा कुछ लोगों को खास ज़िम्मेदारियों के लिए इसलिए चुनता है क्योंकि उनके पास वे खास गुण होते हैं जो उसकी मरज़ी के मुताबिक और उस वक्त के हिसाब से उसके लोगों की अगुवाई करने के लिए ज़रूरी होते हैं।—८/१५, पेज १४.
◻ योना के अनुभव से हम क्या सीख सकते हैं?
योना को अपनी ही चिंता पड़ी थी दूसरों की नहीं। हम योना से सीख सकते हैं कि हम खुद को और अपनी भावनाओं को दूसरों से ज़्यादा अहमियत न दें।—८/१५, पेज १९.
◻ यह कैसे कहा जा सकता है कि “यहोवा का नाम एक दृढ़ गढ़ है”? (नीतिवचन १८:१०)
परमेश्वर के नाम की शरण लेने का मतलब है खुद यहोवा पर भरोसा रखना। (भजन २०:१; १२२:४) इसका मतलब है हम उसकी प्रभुता के लिए वफादारी दिखाएँ, उसके नियमों और उसूलों को मानें और उसकी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास रखें और उसे छोड़ किसी और की भक्ति न करें। (यशायाह ५०:१०; इब्रानियों ११:६)—९/१, पेज १०.
◻ बड़े-बड़े लोगों के सामने पौलुस के गवाही देने का तरीका हमारे लिए कैसे एक उदाहरण है?
पौलुस ने बहुत ही सूझ-बूझ के साथ राजा अग्रिप्पा से बात की और उसने ऐसे मुद्दे पर अधिक ज़ोर दिया जिस पर दोनों एकमत थे। उसी तरह हमें सुसमाचार की सकारात्मक बातों पर ज़ोर देना चाहिए, उस आशा पर जो हम सबके पास है। (१ कुरिन्थियों ९:२२)—९/१, पेज ३१.
◻ यहोवा के धीरज से किसे फायदा होता है?
यहोवा के धीरज की वज़ह से, करोड़ों अन्य लोगों को “परमेश्वर के . . . दिन” से बच निकलने का मौका दिया जा रहा है। (२ पतरस ३:९-१५) उसका धीरज हमें “डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते” रहने का भी मौका दे रहा है। (फिलिप्पियों २:१२)—९/१५, पेज २०.
◻ सेप्टुआजॆंट बाइबल अनुवाद का क्या महत्व था?
बाइबल का यह अनुवाद यहोवा परमेश्वर, उसके राज्य और उस राज्य के राजा यीशु मसीह के बारे में ज्ञान फैलाने में मुख्य रूप से शामिल था। सेप्टुआजॆंट के ज़रिए महत्त्वपूर्ण नींव भी डाली जा रही थी ताकि पहली सदी में यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदी और अन्यजाति के लोग राज्य का सुसमाचार स्वीकार कर सकें।—९/१५, पेज ३०.
◻ गुमराह बेटे की कहानी परमेश्वर के बारे में हमें क्या सिखाती है?
एक तो यह कि यहोवा “दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य” है। (निर्गमन ३४:६) दूसरा, वह “क्षमा करने को तत्पर रहता है,” जब दिल में बदलाव की बिनाह पर वह दया दिखा सकता है। (भजन ८६:५)—१०/१, पेज १२, १३.
◻ यशायाह ६५:२१-२५ में जिस शांति का वादा किया गया है वह कब पूरा होगा?
अभिषिक्त लोग और ‘अन्य भेड़’ के लोग आज इस आध्यात्मिक बाग में साथ-साथ यहोवा की उपासना करते हुए उससे मिलनेवाली शांति का मज़ा ले रहे हैं। (यूहन्ना १०:१६, NW) और यह शांति पृथ्वी पर असली बाग में फैल जाएगी, जब ‘परमेश्वर की इच्छा जैसी स्वर्ग में वैसे ही पृथ्वी पर भी पूरी होगी।’ उस वक्त भविष्यवक्ता यशायाह के शब्द सच होंगे। (मत्ती ६:१०)—१०/१५, पेज २४.
◻ मसीही विवाह की सालगिरह को मनाते हैं पर जन्मदिन की क्यों नहीं मनाते?
बाइबल यह नहीं कहती कि विवाह करना बुरा है। सो, मसीही अपने विवाह की सालगिरह मनाना चाहते हैं या नहीं, यह पूरी तरह से एक निजी मामला है। वे अपने विवाह की सालगिरह पर कुछ समय निकालकर उस अवसर की खुशी की याद ताज़ा करें और अपने संकल्प को पक्का करें कि वे दंपति के रूप में सफल होने के लिए और मेहनत करेंगे। बाइबल में जिन जन्मदिन उत्सवों का ज़िक्र किया गया है, वे मूर्तिपूजक लोगों के थे और उनमें क्रूर काम हुए।—१०/१५, पेज ३०, ३१.
◻ पहला कुरिन्थियों ३:१२, १३ में दिए गए पौलुस के दृष्टांत में “आग” का क्या मतलब है और सब मसीहियों को क्या पता होना चाहिए?
हम सब जीवन में एक आग से गुज़रते हैं, वह है हमारे विश्वास की परीक्षाएँ। (यूहन्ना १५:२०; याकूब १:२, ३) ऐसे हर व्यक्ति की परीक्षा होगी जिसे हम सच्चाई सिखाते हैं। अगर हम घटिया तरीके से सिखाएँगे तो उसके नतीजे बहुत बुरे हो सकते हैं जैसा पौलुस ने चिताया था। (१ कुरिन्थियों ३:१५)—११/१, पेज ११.
◻ कैसे नूह ‘परमेश्वर के साथ साथ चला’? (उत्पत्ति ६:९)
नूह के परमेश्वर के साथ-साथ चलने का मतलब है कि नूह ने वही किया जो परमेश्वर ने उसे बताया था। यहोवा की इच्छा पूरी करने में अपनी ज़िंदगी लगाने की वज़ह से उसका परमेश्वर के साथ एक नज़दीकी और गहरा रिश्ता बन।—११/१५, पेज १०.
◻ हम नहीं जानते कि दुष्टों से पलटा लेने का परमेश्वर का ठहराया हुआ समय कौन-सा है, इससे हमें क्या साबित करने का मौका मिलता है?
इससे हमें यह साबित करने का मौका मिलता है कि हम सचमुच यहोवा से प्रेम करते हैं और अनंतकाल तक उसके मार्गों पर चलते रहना चाहते हैं। यह दिखाता है कि हम परमेश्वर के वफादार हैं और मामलों को निपटाने के उसके तरीके पर भरोसा रखते हैं। इसके अलावा, यह हमें सतर्क और आध्यात्मिक रूप से जागते रहने में मदद देता है। (मत्ती २४:४२-४४)—११/१५, पेज १८.
◻ “परमेश्वर के पुत्र के नाम पर विश्वास” करने का क्या मतलब है? (१ यूहन्ना ५:१३)
इसका मतलब है कि मसीह की सभी आज्ञाओं का पालन करना। जिसमें उसकी यह आज्ञा भी शामिल है कि हम “एक दूसरे से प्रेम” करें। (यूहन्ना १५:१४, १७) प्यार सबकी भलाई चाहता है। जातिवाद, अलग-अलग धर्म और समाज के नाम पर होनेवाले भेद-भाव और पूर्वधारणा की इसमें कोई जगह नहीं है।—१२/१, पेज ७.
◻ यहोवा के साक्षियों से क्यों ‘लोग बैर करते’ हैं? (मत्ती १०:२२)
जिन कारणों से पहली सदी के मसीहियों पर अत्याचार किए गए थे, उन्हीं कारणों से आज यहोवा के साक्षियों से बेवज़ह नफरत की जा रही है। इनमें पहला कारण है, यहोवा के साक्षियों का अपने धर्म की शिक्षाओं पर अमल करने का तरीका, जिसे कई लोग पसंद नहीं करते। दूसरा कारण है कि यहोवा के साक्षियों पर सरासर गलत इलज़ाम लगाए गए हैं।—१२/१, पेज १४.