“परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया”
“जब परमेश्वर ने हम से ऐसा प्रेम किया, तो हम को भी आपस में प्रेम रखना चाहिए।”—१ यूहन्ना ४:११.
१. मार्च २३ को सूर्यास्त के बाद, संसार-भर में लाखों लोग राज्यगृहों और अन्य सभा स्थानों में क्यों इकट्ठा होंगे?
रविवार, मार्च २३, १९९७ के दिन, सूर्यास्त के बाद, इस बात में कोई सन्देह नहीं कि संसार-भर में यहोवा के साक्षियों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे राज्यगृहों तथा अन्य सभा स्थानों में १,३०,००,००० से ज़्यादा लोग जमा होंगे। क्यों? क्योंकि मानवजाति के लिए परमेश्वर के प्रेम की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति ने उनके हृदयों को छू लिया है। यीशु मसीह ने यह कहते हुए परमेश्वर के प्रेम के इस शानदार प्रमाण की ओर ध्यान केन्द्रित किया: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”—यूहन्ना ३:१६.
२. परमेश्वर के प्रेम के प्रति हमारी प्रतिक्रिया के बारे में हम सभी फ़ायदेमन्द रूप से ख़ुद से कौन-से प्रश्न पूछ सकते हैं?
२ जब हम उस प्रेम पर ग़ौर करते हैं जो परमेश्वर ने दिखाया, तो हम ख़ुद से यह पूछकर अच्छा करते हैं कि ‘परमेश्वर ने जो किया है क्या मैं वाक़ई उसका मूल्यांकन करता हूँ? जिस तरीक़े से मैं अपना जीवन प्रयोग कर रहा हूँ क्या वह इस मूल्यांकन का प्रमाण देता है?’
“परमेश्वर प्रेम है”
३. (क) परमेश्वर के लिए प्रेम का प्रदर्शन करना असाधारण क्यों नहीं है? (ख) सृष्टि के उसके कार्यों में सामर्थ और बुद्धि कैसे प्रकट होती है?
३ परमेश्वर के लिए प्रेम प्रदर्शित करना अपने आप में कोई असाधारण बात नहीं है क्योंकि “परमेश्वर प्रेम है।” (१ यूहन्ना ४:८) प्रेम उसका प्रबल गुण है। जब वह मनुष्यों के रहने के लिए पृथ्वी तैयार कर रहा था, तो उसका पहाड़ों को खड़ा करना और झीलों और समुद्रों में पानी इकट्ठा करना सामर्थ का हैरतअंगेज़ प्रदर्शन था। (उत्पत्ति १:९, १०) जब परमेश्वर ने जल-चक्र और आक्सीजन चक्र चलाए, जब उसने अनगिनत सूक्ष्मजीवियों और विभिन्न प्रकार की वनस्पति को सृष्ट किया जो पृथ्वी के रासायनिक तत्त्वों को उस रूप में तबदील करते हैं जिसे मनुष्य जीवित रहने के लिए पचा सके, जब उसने पृथ्वी ग्रह पर दिनों और महीनों की लम्बाई के साथ मेल खाने के लिए हमारी जैविक घड़ियों को बनाया, तो उससे महान बुद्धि प्रकट हुई। (भजन १०४:२४; यिर्मयाह १०:१२) फिर भी, भौतिक सृष्टि में परमेश्वर के प्रेम का प्रमाण और भी प्रमुख है।
४. भौतिक सृष्टि में, हम सभी को परमेश्वर के प्रेम के कौन-से प्रमाण देखना और उसका मूल्यांकन करना चाहिए?
४ जब हम रसीले, पक्के फल खाते हैं जो स्पष्टतः केवल हमारे पोषण के लिए ही नहीं बल्कि हमें आनन्द देने के लिए भी बनाया गया था, तो हमारा तालु हमें परमेश्वर के प्रेम के बारे में बताता है। हमारी आँखें इसका सुस्पष्ट प्रमाण विस्मयकारी सूर्यास्त, एक खुली रात को तारों-भरे आकाश, फूलों के विभिन्न प्रकार और ज्वलन्त रंगों, छोटे-छोटे जानवरों की अठखेलियों, और मित्रों की मधुर मुस्कानों में देखती हैं। हमारी नाक हमें इसका आभास कराती है जब हम वसन्त के फूलों की मीठी ख़ुशबू लेते हैं। हमारे कान इसका संदेश पाते हैं जब हम झरने की आवाज़, पंछियों के गीत, और प्रिय-जनों की आवाज़ें सुनते हैं। हम इसे महसूस करते हैं जब कोई प्रियजन हमारा स्नेही आलिंगन करता है। कुछ जानवरों को ऐसी चीज़ों को देखने, सुनने, या सूँघने की क्षमता दी गयी है जिन्हें मनुष्य देख, सुन, या सूँघ नहीं सकते। लेकिन मानवजाति के पास, जो परमेश्वर के स्वरूप में बनायी गयी है, परमेश्वर के प्रेम को ऐसे तरीक़े से महसूस करने की क्षमता है जिस तरीक़े से कोई भी जानवर नहीं कर सकता।—उत्पत्ति १:२७.
५. यहोवा ने आदम और हव्वा को भरपूर प्रेम कैसे दिखाया?
५ जब यहोवा परमेश्वर ने पहले मानव, आदम और हव्वा को बनाया, तो उसने उनके चारों ओर अपने प्रेम के प्रमाण दिए। उसने एक बाग़, एक परादीस लगाया था और उसमें हर प्रकार के पेड़ों को उगाया। उसने उसे सींचने के लिए एक नदी प्रदान की थी और उसे मनोहर पक्षियों और जानवरों से भर दिया। उसने यह सब आदम और हव्वा को उनके घर के रूप में दिया। (उत्पत्ति २:८-१०, १९) यहोवा ने उनके साथ, अपने विश्वव्यापी परिवार के एक भाग, अपने बच्चों की तरह बर्ताव किया। (लूका ३:३८) अदन को एक नमूने के तौर पर प्रदान करने के बाद, इस पहले मानव जोड़े के स्वर्गीय पिता ने इस पृथ्वी को ढकने के लिए परादीस को फैलाने की संतोषजनक नियुक्ति उनके सामने रखी। पूरी पृथ्वी को उनकी संतान से भर जाना था।—उत्पत्ति १:२८.
६. (क) आदम और हव्वा द्वारा चुने गए विद्रोही मार्ग के बारे में आप कैसा महसूस करते हैं? (ख) क्या बात सूचित कर सकती है कि जो अदन में हुआ था उससे हमने सबक़ सीखा है और कि हमने उस ज्ञान से लाभ उठाया है?
६ लेकिन, कुछ समय बाद आदम और हव्वा ने आज्ञाकारिता की एक परीक्षा का, अर्थात् निष्ठा की एक परीक्षा का सामना किया। पहले एक और फिर दूसरा उस प्रेम के प्रति मूल्यांकन दिखाने में असफल हो गया जो उन्हें दिखाया गया था। जो उन्होंने किया वह आघातपूर्ण था। वह अक्षम्य था! परिणामस्वरूप, उन्होंने परमेश्वर के साथ अपना रिश्ता गवाँ दिया, उसके परिवार से बहिष्कृत कर दिए गए, और अदन से निकाल दिए गए। हम आज अभी तक उनके पाप के परिणामों को महसूस करते हैं। (उत्पत्ति २:१६, १७; ३:१-६, १६-१९, २४; रोमियों ५:१२) लेकिन जो हुआ क्या हमने उससे सबक़ सीखा है? कैसे हम परमेश्वर के प्रेम के प्रति अनुक्रिया दिखा रहे हैं? प्रतिदिन हम जो निर्णय करते हैं क्या वे दिखाते हैं कि हम उसके प्रेम का मूल्यांकन करते हैं?—१ यूहन्ना ५:३.
७. आदम और हव्वा ने जो किया उसके बावजूद, यहोवा ने उनकी संतान के लिए प्रेम कैसे दिखाया?
७ हमारे पहले मानवीय माता-पिता के लिए जो परमेश्वर ने किया था उसके प्रति मूल्यांकन दिखाने की उनकी भारी कमी ने भी परमेश्वर के अपने प्रेम को कम नहीं किया। जो मनुष्य उस समय तक पैदा नहीं हुए थे उनके लिए करुणा महसूस करते हुए—जिनमें हम जो आज जीवित हैं शामिल हैं—परमेश्वर ने आदम और हव्वा को उनकी मृत्यु से पहले अपना परिवार बढ़ाने की अनुमति दी। (उत्पत्ति ५:१-५; मत्ती ५:४४, ४५) यदि उसने ऐसा नहीं किया होता, तो हममें से कोई भी पैदा नहीं हुआ होता। अपनी इच्छा के क्रमिक प्रकटीकरण द्वारा, यहोवा ने आदम की उस संतान के लिए आशा का आधार भी प्रदान किया जो विश्वास जताती। (उत्पत्ति ३:१५; २२:१८; यशायाह ९:६, ७) उसके प्रबन्ध में वह माध्यम शामिल था जिसके द्वारा सभी जातियों के लोग उसे प्राप्त कर सकते थे जो आदम ने खो दिया था, अर्थात् परमेश्वर के विश्वमंडलीय परिवार के स्वीकृत सदस्यों के रूप में परिपूर्ण जीवन। उसने ऐसा एक छुड़ौती प्रदान करने के द्वारा किया।
एक छुड़ौती क्यों?
८. परमेश्वर बस यह घोषित क्यों नहीं कर सकता था कि हालाँकि आदम और हव्वा को मरना पड़ेगा, उनकी किसी-भी आज्ञाकारी संतान को मरना नहीं पड़ेगा?
८ क्या मानव जीवन के रूप में एक छुड़ौती मूल्य दिया जाना वाक़ई ज़रूरी था? क्या परमेश्वर बस यह घोषित नहीं कर सकता था कि हालाँकि आदम और हव्वा का अपने विद्रोह के कारण मरना ज़रूरी है, उनकी सभी संतानें जो परमेश्वर की आज्ञा मानती सर्वदा जीवित रह सकती हैं? एक अदूरदर्शी मानव दृष्टिकोण से, शायद यह उचित जान पड़े। लेकिन, यहोवा “धर्म और न्याय से प्रीति रखता” है। (भजन ३३:५) आदम और हव्वा के पापी बनने के बाद ही उन्होंने संतान उत्पन्न की; सो उनमें से कोई भी बच्चा परिपूर्ण पैदा नहीं हुआ। (भजन ५१:५) उन सब में पाप वंशागत था, और पाप की सज़ा मृत्यु है। यदि यहोवा ने इसे नज़रअंदाज़ किया होता, तो उसने अपने विश्वमंडलीय परिवार के सदस्यों के सामने कैसा उदाहरण रखा होता? वह ख़ुद अपने धार्मिक स्तरों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था। उसने न्याय की माँगों का आदर किया। कोई भी कभी-भी वैध रूप से उस तरीक़े में दोष नहीं पा सकता था जिस तरीक़े से परमेश्वर ने इसमें शामिल वाद-विषयों को निपटाया था।—रोमियों ३:२१-२३.
९. न्याय के ईश्वरीय स्तर के अनुसार, किस प्रकार की छुड़ौती की ज़रूरत थी?
९ तब, आदम की उन संतानों को छुड़ाने के लिए जो यहोवा के प्रति प्रेममय आज्ञाकारिता प्रदर्शित करतीं, कैसे एक उचित आधार प्रदान किया जा सकता था? यदि एक परिपूर्ण मनुष्य बलिदानरूपी मृत्यु मरता, तो न्याय के अनुसार उस परिपूर्ण जीवन का मूल्य उन लोगों के पापों को ढाँप सकता था जो विश्वास से उस छुड़ौती को स्वीकार करते। जबकि एक आदमी, आदम सम्पूर्ण मानव परिवार के पापी होने के लिए ज़िम्मेदार था, एक अन्य परिपूर्ण मनुष्य का बहाया गया लहू, बराबर क़ीमत का होने के कारण, न्याय के तराज़ू को संतुलित कर सकता था। (१ तीमुथियुस २:५, ६) लेकिन ऐसा एक व्यक्ति कहाँ मिल सकता था?
क़ीमत कितनी ज़्यादा थी?
१०. क्यों आदम की संतान ज़रूरी छुड़ौती प्रदान करने में असमर्थ थी?
१० पापी आदम की संतानों के बीच, ऐसा कोई नहीं था जो वह क़ीमत दे सकता जिसकी ज़रूरत थी ताकि जीवन की उन प्रत्याशाओं को वापस ख़रीदा जा सके जिन्हें आदम खो बैठा था। “उन में से कोई अपने भाई को किसी भांति छुड़ा नहीं सकता है; और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित्त में कुछ दे सकता है, (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)। कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और क़ब्र को न देखे।” (भजन ४९:७-९) मानवजाति को बेसहारा छोड़ने के बजाय, यहोवा ने ख़ुद दयापूर्वक प्रबन्ध किया।
११. यहोवा ने उचित छुड़ौती के लिए ज़रूरी परिपूर्ण मानव जीवन किस माध्यम से प्रदान किया?
११ यहोवा ने पृथ्वी पर एक स्वर्गदूत को नहीं भेजा जो एक रूप धारण किए हुए शरीर को अर्पित करने के द्वारा मरने का नाटक करता जबकि वह एक आत्मा के रूप में जीवित रहता। इसके बजाय, एक ऐसा चमत्कार करने के द्वारा जिसे केवल परमेश्वर, अर्थात् सृष्टिकर्ता तैयार कर सकता था, उसने एक स्वर्गीय पुत्र की जीवन-शक्ति और व्यक्तित्व के नमूने को एक स्त्री, यहूदा के गोत्र के एली की बेटी मरियम के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। परमेश्वर की सक्रिय शक्ति, उसकी पवित्र आत्मा ने माँ के गर्भ में उस बच्चे के विकास की रक्षा की, और वह एक परिपूर्ण मनुष्य के रूप में पैदा हुआ। (लूका १:३५; १ पतरस २:२२) तब इस व्यक्ति के पास छुड़ौती प्रदान करने के लिए वह ज़रूरी क़ीमत थी जो ईश्वरीय न्याय की माँगों को पूरी तरह संतुष्ट करती।—इब्रानियों १०:५.
१२. (क) किस अर्थ में यीशु परमेश्वर का “एकलौता पुत्र” है? (ख) छुड़ौती प्रदान करने के लिए इस जन को भेजना हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम पर कैसे ज़ोर देता है?
१२ अपने दसियों हज़ार स्वर्गीय पुत्रों में से यहोवा ने यह नियुक्ति किसे दी? उसे जिसका वर्णन शास्त्र में उसके “एकलौते पुत्र” के रूप में किया गया है। (१ यूहन्ना ४:९) इस अभिव्यक्ति का प्रयोग, मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद वह जो बना, उसका वर्णन करने के लिए नहीं किया गया, बल्कि इससे पहले स्वर्ग में वह जो था, उसका वर्णन करने के लिए किया गया है। वही ऐसा एकमात्र व्यक्ति है जिसे बिना किसी और के सहयोग से यहोवा ने सीधे सृष्ट किया। वह सारी सृष्टि में पहलौठा है। यही वह व्यक्ति है जिसे अन्य सभी प्राणियों को अस्तित्त्व में लाने के लिए परमेश्वर द्वारा प्रयोग किया गया था। स्वर्गदूत परमेश्वर के पुत्र हैं, जैसे आदम परमेश्वर का पुत्र था। लेकिन यीशु का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि उसके पास ‘ऐसी महिमा थी जैसी पिता के एकलौते की महिमा’ है। बताया गया है कि वह “पिता की गोद में” रहता था। (यूहन्ना १:१४, १८) पिता के साथ उसका एक नज़दीकी, विश्वास-भरा, स्नेही सम्बन्ध है। मानवजाति के लिए अपने पिता के प्रेम का वह सहभागी है। नीतिवचन ८:३०, ३१ स्पष्ट करता है कि उसका पिता इस पुत्र के बारे में कैसा महसूस करता है और उसका पुत्र मानवजाति के बारे में कैसा महसूस करता है: “प्रति दिन मैं उसकी [यहोवा की] प्रसन्नता थी, और हर समय उसके साम्हने आनन्दित रहती थी। . . . और मेरा [यीशु, यहोवा के कुशल कारीगर, बुद्धि के मूर्त्त रूप का] सुख मनुष्यों की संगति से होता था।” यही अति प्रिय पुत्र था जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर छुड़ौती प्रदान करने के लिए भेजा। अतः यीशु का यह कथन कितना अर्थपूर्ण है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया”!—यूहन्ना ३:१६.
१३, १४. इब्राहीम द्वारा इसहाक को बलिदान चढ़ाने की कोशिश के बाइबल वृत्तान्त से यहोवा ने जो किया उसका मूल्यांकन करने में हमें कैसे मदद मिलनी चाहिए? (१ यूहन्ना ४:१०)
१३ इस बात को कुछ हद तक समझने में हमारी मदद करने के लिए कि इसका अर्थ क्या है, यीशु के पृथ्वी पर आने से बहुत समय पहले लगभग ३,८९० वर्ष पहले, परमेश्वर ने इब्राहीम को निर्देश दिया: “अपने पुत्र को अर्थात् अपने एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा; और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा।” (उत्पत्ति २२:१, २) विश्वास से, इब्राहीम ने आज्ञा का पालन किया। ख़ुद को इब्राहीम की जगह रखकर देखिए। तब क्या होता यदि वह आपका पुत्र होता, आपका एकलौता पुत्र जिसे आप बहुत प्रेम करते हैं? जब आप होमबलि के लिए लकड़ी चीरते, मोरिय्याह देश तक जाने के लिए कई दिनों की यात्रा करते, और अपने पुत्र को वेदी पर रखते तो आपकी क्या भावनाएँ होतीं?
१४ एक करुणामय माता या पिता को ऐसी भावनाएँ क्यों होती हैं? उत्पत्ति १:२७ कहता है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार बनाया। हमारा प्रेम और करुणा बहुत छोटे पैमाने पर यहोवा का अपना प्रेम और करुणा दिखाते हैं। इब्राहीम के मामले में, परमेश्वर ने हस्तक्षेप किया, ताकि इसहाक को सचमुच बलिदान न किया जाए। (उत्पत्ति २२:१२, १३; इब्रानियों ११:१७-१९) लेकिन, उसके अपने मामले में, यहोवा छुड़ौती देते-देते रुक नहीं गया, हालाँकि उसने और उसके पुत्र ने ऐसा करने के लिए बड़ी क़ीमत अदा की। जो किया गया था वह परमेश्वर की कोई बाध्यता नहीं थी, लेकिन इसके बजाय, यह असाधारण अपात्र अनुग्रह की एक अभिव्यक्ति थी। क्या हम पूर्ण रूप से इसका मूल्यांकन करते हैं?—इब्रानियों २:९.
यह जो संभव करता है
१५. छुड़ौती ने इस वर्तमान रीति-व्यवस्था में भी जीवन को कैसे प्रभावित किया है?
१५ परमेश्वर द्वारा किए गए इस प्रेममय प्रबन्ध का उन लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव होता है जो विश्वास से इसे स्वीकार करते हैं। पाप के कारण, वे पहले परमेश्वर से दूर थे। जैसे उसका वचन कहता है, वे “बुरे कामों के कारण मन से बैरी” थे। (कुलुस्सियों १:२१-२३) लेकिन ‘उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा उनका मेल परमेश्वर के साथ’ हुआ है। (रोमियों ५:८-१०) अपनी जीवन-शैली को बदलने और उस क्षमा को स्वीकार करने पर जिसे परमेश्वर ने उनके लिए संभव किया है, जो मसीह के बलिदान पर विश्वास जताते हैं, उन्हें शुद्ध अन्तःकरण का अनुग्रह दिया जाता है।—इब्रानियों ९:१४; १ पतरस ३:२१.
१६. छोटे झुण्ड को छुड़ौती में उनके विश्वास के कारण कौन-सी आशिषें प्रदान की गई हैं?
१६ पृथ्वी के लिए परमेश्वर के आरंभिक उद्देश्य को पूरा करने के नज़रिए से, यहोवा ने इनकी एक सीमित संख्या, एक छोटे झुण्ड को, उसके पुत्र के साथ स्वर्गीय राज्य में संग रहने का अपात्र अनुग्रह दिखाया है। (लूका १२:३२) इन्हें “हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से” लिया गया है “और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया [गया है]; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०) इन्हें प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तुम को . . . लेपालकपन की आत्मा मिली है, जिस से हम हे अब्बा, हे पिता कहकर पुकारते हैं। आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं। और यदि सन्तान हैं, तो वारिस भी, बरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं।” (रोमियों ८:१५-१७) परमेश्वर द्वारा उसके पुत्रों के रूप में गोद लिए जाने में, उन्हें वह अतिप्रिय रिश्ता प्रदान किया जाता है जिसे आदम ने गवाँ दिया था; लेकिन इन पुत्रों को स्वर्गीय सेवा के अतिरिक्त विशेषाधिकार दिए जाएँगे—ऐसे जो आदम के पास कभी-भी नहीं थे। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि प्रेरित यूहन्ना ने कहा: “देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाएं”! (१ यूहन्ना ३:१) ऐसों के लिए परमेश्वर न केवल सैद्धान्तिक प्रेम (अगापे), बल्कि कोमल स्नेह (फिलिया) भी दिखाता है, जो उस बन्धन की विशेषता है जो सच्चे मित्रों के बीच होता है।—यूहन्ना १६:२७.
१७. (क) उन सभी के लिए जो छुड़ौती में विश्वास जताते हैं, क्या मौक़ा दिया जाता है? (ख) “परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता” का उनके लिए क्या अर्थ होगा?
१७ दूसरों के लिए भी—वे सभी जो यीशु मसीह के माध्यम से परमेश्वर के उद्धार प्रबन्ध में विश्वास जताते हैं—यहोवा वह मूल्यवान सम्बन्ध स्थापित करने का मौक़ा देता है जो आदम ने खो दिया था। प्रेरित पौलुस ने समझाया: “सृष्टि [आदम की वंशज मानव सृष्टि] बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है [अर्थात्, वे उस समय का इन्तज़ार कर रहे हैं जब यह स्पष्ट रूप से प्रकट होता है कि परमेश्वर के पुत्र जो मसीह के साथ स्वर्गीय राज्य के वारिस हैं मानवजाति के पक्ष में सकारात्मक क़दम उठा रहे हैं]। क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करनेवाले की ओर से व्यर्थता के आधीन [वे मृत्यु की प्रत्याशा के साथ पाप में पैदा हुए थे, और किसी भी तरह से वे ख़ुद को स्वतंत्र नहीं कर सकते थे, परमेश्वर द्वारा दी गई] इस आशा से की गई। कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर, परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।” (रोमियों ८:१९-२१) उस स्वतंत्रता का क्या अर्थ होगा? कि वे पाप और मृत्यु के दासत्व से स्वतंत्र कर दिए गए हैं। उनके पास परिपूर्ण मन और शरीर होगा, अपने घर के रूप में परादीस, और अनन्त जीवन होगा, जिसमें वे अपनी परिपूर्णता का आनन्द उठाएँगे और एकमात्र सच्चे परमेश्वर, यहोवा के प्रति अपना मूल्यांकन दिखाएँगे। और यह सब कैसे संभव किया गया? परमेश्वर के एकलौते पुत्र के छुड़ौती बलिदान के माध्यम से।
१८. मार्च २३ के दिन सूर्यास्त के बाद, हम क्या कर रहे होंगे, और क्यों?
१८ सामान्य युग ३३, निसान १४ के दिन, यरूशलेम की एक उपरौठी कोठरी में यीशु ने अपनी मृत्यु का स्मारक प्रारंभ किया। उसकी मृत्यु का वार्षिक समारोह सभी सच्चे मसीहियों के जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना बन गया है। यीशु ने ख़ुद आज्ञा दी: “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो।” (लूका २२:१९) १९९७ में स्मारक, मार्च २३ को सूर्यास्त के बाद (जब से निसान १४ शुरू होता है) मनाया जाएगा। उस दिन, इस स्मारक के मौक़े पर उपस्थित होने से ज़्यादा और कोई बात महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकती।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ किन तरीक़ों से परमेश्वर ने मानवजाति के लिए अत्याधिक प्रेम दिखाया है?
◻ आदम की संतान की छुड़ौती के लिए एक परिपूर्ण मानव जीवन की ज़रूरत क्यों थी?
◻ कौन-सी बड़ी क़ीमत देकर यहोवा ने छुड़ौती प्रदान की?
◻ छुड़ौती क्या संभव करती है?
[पेज 10 पर तसवीर]
परमेश्वर ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया