परमेश्वर के करीब आइए
परमेश्वर के प्यार का सबसे बड़ा सबूत
आज से हज़ारों साल पहले इब्राहीम नाम का एक आदमी रहता था। वह परमेश्वर से बहुत प्यार करता था और उसकी हर आज्ञा मानता था। वह अपने बेटे इसहाक से भी बहुत प्यार करता था। इसहाक तब पैदा हुआ जब इब्राहीम बहुत बूढ़ा हो गया था। जब इसहाक करीब 25 साल का हुआ, तब इब्राहीम को अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ा। परमेश्वर ने उसे एक ऐसा काम करने के लिए कहा, जो किसी भी पिता के लिए हरगिज़ आसान नहीं। परमेश्वर ने उसे अपने बेटे की कुरबानी देने के लिए कहा। लेकिन जब वह इसहाक की कुरबानी देनेवाला था, तो परमेश्वर ने ऐन मौके पर अपना एक स्वर्गदूत भेजकर उसे रोक दिया। यह कहानी बाइबल में उत्पत्ति 22:1-18 में दर्ज़ है। यह घटना परमेश्वर के उस महान प्रेम की एक झलक थी, जो आगे चलकर उसने हम सब के लिए दिखाया।
उत्पत्ति अध्याय 22 की आयत 1 कहती है: ‘परमेश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली।’ इसमें कोई शक नहीं कि इब्राहीम को परमेश्वर पर अटूट विश्वास था, लेकिन अब उसके विश्वास की सबसे कड़ी परीक्षा होनेवाली थी। परमेश्वर ने उससे कहा: “अपने पुत्र को अर्थात् एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर . . . जा; और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा।” (आयत 2) क्या परमेश्वर यह आज्ञा देकर इब्राहीम से हद-से-ज़्यादा की माँग कर रहा था? जी नहीं, क्योंकि परमेश्वर अपने सेवकों पर ऐसी कोई परीक्षा नहीं आने देता, जो उनकी बरदाश्त से बाहर हो। तो इब्राहीम की परीक्षा दिखाती है कि परमेश्वर को उस पर पूरा भरोसा था कि वह इसमें खरा उतरेगा।—1 कुरिन्थियों 10:13.
इब्राहीम ने परमेश्वर की बात मानने में बिलकुल देर नहीं की। बाइबल कहती है: “इब्राहीम बिहान को तड़के उठा और अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दो सेवक, और अपने पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिये लकड़ी चीर ली; तब कूच करके उस स्थान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उस से की थी।” (आयत 3) ज़ाहिर है कि परीक्षा की बात इब्राहीम ने अपने तक ही रखी, उसने किसी को कुछ नहीं बताया।
परमेश्वर ने इब्राहीम को जिस पहाड़ पर जाने के लिए कहा था, वहाँ पहुँचने में उन्हें तीन दिन लगे। इस बीच इब्राहीम के पास अपने फैसले पर दोबारा गौर करने के लिए काफी वक्त था। लेकिन उसका इरादा बिलकुल भी कमज़ोर नहीं हुआ। उसे परमेश्वर पर मज़बूत विश्वास था। यह कैसे कहा जा सकता है? जब उसने दूर से वह पहाड़ देखा जो परमेश्वर ने बताया था, तो उसने अपने सेवकों से कहा: “यहीं ठहरो, और मैं और यह लड़का वहां जाकर आराधना करेंगे और फिर तुम्हारे पास लौट आएंगे।” (NHT) फिर जब इसहाक ने पूछा कि कुरबानी के लिए भेड़ कहाँ है, तो इब्राहीम ने कहा: ‘होमबलि की भेड़ का उपाय परमेश्वर करेगा।’ (आयत 5, 8) इससे पता चलता है कि इब्राहीम को उम्मीद थी कि वह अपने बेटे के साथ वापस लौटेगा। उसे यह उम्मीद क्यों थी? क्योंकि उसने “विचार किया कि परमेश्वर सामर्थी है और वह [इसहाक] को जिला सकता है।”—इब्रानियों 11:19, आर.ओ.वी.
पहाड़ पर पहुँचने के बाद इब्राहीम ने “अपने पुत्र को बलि” करने के लिए जैसे ही “छुरी” निकाली, एक स्वर्गदूत ने उसका हाथ रोक दिया। तब परमेश्वर ने वहाँ झाड़ियों में एक मेढ़ा फँसा दिया और इब्राहीम से कहा कि वह “अपने पुत्र के स्थान पर” (NHT) उस मेढ़े की बलि चढ़ाए। (आयत 10-13) इब्राहीम अपने बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए तैयार था और यह परमेश्वर की नज़रों में ऐसा था मानो उसने वाकई उसकी बलि चढ़ा दी हो। (इब्रानियों 11:17) जैसा कि एक बाइबल विद्वान भी कहता है, “अपने बेटे की बलि चढ़ाने के लिए इब्राहीम का बेझिझक तैयार हो जाना, असल में उसकी बलि चढ़ाने के बराबर ही था।”
यहोवा को इब्राहीम पर जो भरोसा था, वह सही साबित हुआ। और इब्राहीम को भी यहोवा पर भरोसा रखने का इनाम मिला। यहोवा ने इब्राहीम के साथ पहले जो करार किया था, उसे फिर से दोहराते हुए उसने कहा कि इब्राहीम के ज़रिए सब देशों के लोग आशीष पाएँगे। साथ ही, इस करार के बारे में उसने इब्राहीम को और भी जानकारी दी।—आयत 15-18.
परमेश्वर ने इब्राहीम को तो अपने बेटे की कुरबानी देने से रोक दिया, लेकिन खुद अपने बेटे यीशु की बलि देने से वह पीछे नहीं हटा। इब्राहीम जिस तरह इसहाक को कुरबान करने के लिए तैयार हो गया, वह उस बलिदान की एक झलक थी जो परमेश्वर ने दी है। परमेश्वर ने हमें पापों से छुटकारा दिलाने के लिए अपने इकलौते बेटे यीशु को बलिदान कर दिया। (यूहन्ना 3:16) यह बलिदान हमारे लिए यहोवा के प्यार का सबसे बड़ा सबूत है। जब परमेश्वर ने हमारी खातिर इतनी बड़ी कुरबानी दी है, तो हमें भी खुद से पूछना चाहिए, ‘परमेश्वर को खुश करने के लिए मैं कौन-कौन से त्याग और बलिदान करने के लिए तैयार हूँ?’ (w09 2/1)