मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
13-19 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 31
“याकूब और लाबान ने शांति का करार किया”
इंसाइट-1 पेज 883 पै 1
गलएद
याकूब और लाबान ने शांति से अपना झगड़ा मिटाया, फिर उन्होंने एक-दूसरे के साथ एक करार किया। इसके बाद, याकूब ने एक पत्थर लिया और उसे खड़ा किया। उसने अपने “भाई-बंधुओं” से भी कहा कि वे कुछ पत्थर जमा करें और उनका एक ढेर लगाएँ। शायद यह ढेर मेज़ की आकार में लगाया गया था। याकूब और लाबान के बीच जो करार हुआ था, उसकी निशानी के तौर पर उन्होंने उस ढेर पर खाना खाया। लाबान ने अरामी (या सीरियाई) भाषा में उस ढेर का नाम “यगर-साहदूता” रखा। लेकिन याकूब ने इस ढेर को इब्रानी में “गलएद” कहा। इन दोनों नाम का एक ही मतलब है। इस ढेर के नाम पर ही उस जगह का नाम पड़ा, जहाँ याकूब और लाबान ने करार किया था। लाबान ने कहा, “पत्थरों का यह ढेर [इब्रानी में गल] हम दोनों के बीच एक साक्षी [इब्रानी में एद] है।” (उत 31:44-48) पत्थरों का ढेर (और वह खड़ा किया गया पत्थर) देखनेवालों के लिए किस बात की निशानी होता? आयत 49 के मुताबिक “पहरा मीनार [इब्रानी में मिट्सपा]” इस बात की निशानी होता कि याकूब और लाबान ने एक-दूसरे के साथ शांति कायम करने और अपने-अपने परिवार में भी शांति बनाए रखने का वादा किया है। (उत 31:50-53) आगे चलकर कुछ और मौकों पर भी पत्थरों को करार की निशानी के तौर पर इस्तेमाल किया गया।—यह 4:4-7; 24:25-27.
इंसाइट-2 पेज 1172
पहरा मीनार
याकूब ने जो पत्थरों का ढेर लगाया था, उसका नाम “गलएद” (मतलब “साक्षी का ढेर”) और “पहरा मीनार” रखा। पत्थरों का यह ढेर याकूब और लाबान के बीच एक साक्षी ठहरता। किस मायने में? यह उन्हें इस बात की याद दिलाता कि यहोवा उन्हें देख रहा है। लाबान के शब्दों से भी यह बात पता चलती है। उसने कहा, “जब हम एक-दूसरे से दूर रहेंगे तब यहोवा हम दोनों पर नज़र रखे कि हम इस करार को निभाते हैं या नहीं।”—उत 31:45-49.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 1087-1088
कुल देवताओं की मूरतें
मेसोपोटामिया और आस-पास के इलाकों में पुरातत्व खोज से पता चला है कि परिवार के जिस सदस्य के पास कुल देवताओं की मूरतें होती थीं, उसे परिवार की ज़मीन-जायदाद मिलती थी। नूज़ी नाम के शहर में मिले एक शिलालेख के मुताबिक, कुछेक हालात में कुल देवताओं की मूरतें होने से एक दामाद अपने ससुर की मौत के बाद अदालत में जाकर उसकी जायदाद पाने का दावा कर सकता था। (पूर्व के प्राचीन पाठ अँग्रेज़ी, जे. प्रिचर्ड द्वारा संपादित, 1974, पेज 219, 220 और फु 51) हो सकता है, राहेल ने यही सोचकर अपने पिता की मूरतें चुरायी हों। शायद उसे लगा हो कि वह कुछ गलत नहीं कर रही है, क्योंकि उसके पिता ने खुद उसके पति याकूब को कई बार धोखा दिया था। (उत 31:14-16 से तुलना करें।) तो जैसा कि हमने देखा, जायदाद का हकदार वही होता था जिसके पास कुल देवताओं की मूरतें होती थीं। इस वजह से जब लाबान को पता चला कि उसकी मूरतें गायब हैं, तो वह उन्हें हर हाल में वापस पाना चाहता था। वह अपने भाई-बंधुओं के साथ याकूब का पीछा करने निकल पड़ा और सात दिन का सफर तय किया। (उत 31:19-30) मगर याकूब नहीं जानता था कि राहेल ने लाबान की मूरतें चुरायी थीं। (उत 31:32) इस बात का भी कोई इशारा नहीं मिलता कि याकूब ने उन मूरतों का इस्तेमाल करके लाबान के बेटों से जायदाद हड़पने की कोशिश की। याकूब का इन मूरतों से कोई लेना-देना नहीं था। तो फिर लाबान की इन मूरतों का क्या हुआ होगा? याकूब के कहने पर जब उसके घराने के लोगों ने झूठे देवताओं की मूर्तियाँ निकाल दीं और याकूब ने उन्हें शेकेम के पासवाले बड़े पेड़ के नीचे गाड़ दिया, तो उनके साथ लाबान की मूरतों को भी गाड़ दिया होगा।—उत 35:1-4.
प्र13 3/15 पेज 21 पै 8
यहोवा हमारा निवासस्थान है
8 जब याकूब हारान पहुँचा, तो उसके मामा लाबान ने खुशी-खुशी उसका स्वागत किया और आगे चलकर लिआ और राहेल को उसकी पत्नियाँ होने के लिए दे दिया। मगर कुछ समय बाद, लाबान याकूब के साथ ज़्यादती करने लगा और उसने उसकी मज़दूरी दस बार बदली। (उत्प. 31:41, 42) याकूब ने यह सब सहा क्योंकि उसे भरोसा था कि यहोवा उसे सँभालेगा। नतीजा, यहोवा ने याकूब को आशीष दी। जब उसने याकूब को वापस कनान लौटने के लिए कहा, तब तक याकूब के पास “बहुत-से दास-दासियाँ, भेड़-बकरियाँ, ऊँट और गधे हो गए।” (उत्प. 30:43) अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर करते हुए याकूब ने यहोवा से प्रार्थना की: “तूने अपने दास को अपने अटल प्यार और वफादारी का सबूत दिया है, जबकि मैं इसके काबिल नहीं था। जब मैं इस यरदन नदी के पार गया था तब मेरे पास सिर्फ एक लाठी थी, मगर आज मेरे पास इतना कुछ है कि इसके दो दल हैं।”—उत्प. 32:10.
20-26 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 32-33
“आशीष पाने के लिए क्या आप संघर्ष कर रहे हैं?”
क्या आप सच्ची लगन से यहोवा की खोज कर रहे हैं?
बाइबल में ऐसे कई लोगों के उदाहरण हैं, जिन्होंने पूरी लगन से यहोवा की खोज की है। याकूब एक ऐसा ही व्यक्ति था, जिसने भोर होने तक परमेश्वर के एक देहधारी स्वर्गदूत के साथ ज़ोरदार मल्लयुद्ध किया। नतीजा यह हुआ कि याकूब को इस्राएल (परमेश्वर से संघर्ष करनेवाला) नाम दिया गया, क्योंकि उसने परमेश्वर के साथ “युद्ध” किया यानी वह अड़ा रहा, यत्न करता रहा, डटा रहा। याकूब ने सच्चे दिल से जो कोशिश की, स्वर्गदूत ने उसके लिए उसे आशीष दी।—उत्पत्ति 32:24-30.
इंसाइट-2 पेज 190
लँगड़ा, लँगड़ाना
याकूब लँगड़ाने लगा। जब याकूब करीब 97 साल का था, तो उसने पूरी रात परमेश्वर के एक स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ी। उसने उस स्वर्गदूत को तब तक नहीं छोड़ा, जब तक उसने याकूब को आशीर्वाद नहीं दिया। कुश्ती करते वक्त स्वर्गदूत ने याकूब की जाँघ का जोड़ छुआ और उसका जोड़ खिसक गया। इस वजह से याकूब लँगड़ाकर चलने लगा। (उत 32:24-32; हो 12:2-4) यह हमेशा उसे इस बात की याद दिलाता कि उसने परमेश्वर के शक्तिशाली स्वर्गदूत को नहीं हराया था। लेकिन फिर उस स्वर्गदूत ने यह क्यों कहा कि याकूब “परमेश्वर [यानी परमेश्वर के स्वर्गदूत] से और इंसानों से लड़ा और आखिरकार जीत गया”? क्योंकि यह परमेश्वर का मकसद था और खुद उसने याकूब को स्वर्गदूत से लड़ने दिया। स्वर्गदूत से कुश्ती लड़कर याकूब को यह ज़ाहिर करने का मौका मिला कि वह यहोवा की आशीष की दिल से कदर करता है और उसे हर हाल में पाना चाहता है।
इंसाइट-1 पेज 1228
इसराएल
1. यह नाम परमेश्वर ने याकूब को दिया था जब वह करीब 97 साल का था। बात उस वक्त की है जब याकूब अपने भाई एसाव से मिलने जा रहा था। रात का वक्त था। याकूब ने यब्बोक नदी पार करके एक आदमी से कुश्ती लड़ी जो दरअसल एक स्वर्गदूत था। वह काफी देर तक लड़ता रहा और उसने हार नहीं मानी, इसलिए उसे यहोवा की तरफ से एक आशीष मिली। उसका नाम बदलकर इसराएल रखा गया। इन घटनाओं की याद में याकूब ने उस जगह का नाम पनीएल या पनूएल रखा। (उत 32:22-31) कुछ समय बाद जब याकूब बेतेल नाम की जगह में था, तो परमेश्वर ने फिर से कहा कि अब से उसका नाम याकूब नहीं, इसराएल होगा। तब से लेकर उसकी मौत तक याकूब को कई बार इसराएल नाम से बुलाया गया। (उत 35:10, 15; 50:2; 1इत 1:34) बाइबल में इसराएल नाम का ज़िक्र 2,500 से भी ज़्यादा बार आया है। लेकिन अकसर वहाँ याकूब की बात नहीं, बल्कि एक राष्ट्र के तौर पर उसके वंशजों की बात की गयी है।—निर्ग 5:1, 2.
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मन को भानेवाली बोली से रिश्तों में मिठास आती है
10 मन को भानेवाली बोली और अच्छी बातचीत से रिश्ते बनते हैं और आपस में शांति कायम रहती है। इतना ही नहीं, रिश्तों को सुधारने के लिए अगर हम भले काम करने की कोशिश करें तो इससे हमारी बातचीत में भी निखार आ सकता है। दूसरों को मदद करने के मौके ढूँढ़ना, प्यार से तोहफे देना, मेहमाननवाज़ी दिखाना, ऐसे भले काम हमें उनके साथ खुलकर बातचीत करने का मौका देते हैं। और ऐसा करके हम उस इंसान के “सिर पर अंगारों का ढेर” रखते हैं, जिससे उसके अच्छे गुण निखरकर सामने आ सकते हैं और मामले को आसानी से सुलझाया जा सकता है।—रोमि. 12:20, 21.
11 कुलपिता याकूब ने इस बात को समझा था। उसका जुड़वा भाई एसाव उससे इतना गुस्सा था कि उसे अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। कई सालों के बाद याकूब लौटा। तो एसाव 400 आदमियों के साथ उससे मिलने आया। याकूब ने मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना की। फिर उसने एसाव के लिए बहुत-से पालतू पशु तोहफे के तौर पर भेजे। उस तोहफे का बड़ा अच्छा असर हुआ। जब दोनों भाई मिले, तब एसाव का दिल पिघल चुका था और उसने दौड़कर अपने भाई को गले लगाया।—उत्प. 27:41-44; 32:6, 11, 13-15; 33:4, 10.
इंसाइट-1 पेज 980
परमेश्वर, इसराएल का परमेश्वर है
पनीएल में यहोवा के एक स्वर्गदूत से कुश्ती लड़ने के बाद याकूब को इसराएल नाम दिया गया। फिर वह अपने भाई एसाव से मिला और उससे सुलह की। इसके बाद वह सुक्कोत में रहने लगा, फिर कुछ समय बाद शेकेम गया। शेकेम में उसने हमोर के बेटों से ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा और वहाँ डेरा डाला। (उत 32:24-30; 33:1-4, 17-19) “याकूब ने वहाँ परमेश्वर के लिए एक वेदी बनायी और उसका यह नाम रखा, ‘परमेश्वर, इसराएल का परमेश्वर है।’” (उत 33:20) याकूब ने वेदी का नाम अपने नए नाम पर क्यों रखा? वह यह ज़ाहिर करना चाहता था कि उसे यह नाम स्वीकार है और वह इससे बहुत खुश है। वह इस बात के लिए भी एहसानमंद था कि परमेश्वर ने उसे वादा किए गए देश में सुरक्षित वापस लाया। “परमेश्वर, इसराएल का परमेश्वर है,” ये शब्द बाइबल में सिर्फ एक बार आया है।
27 अप्रैल–3 मई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | उत्पत्ति 34-35
“बुरी संगति के भयानक अंजाम होते हैं”
प्र97 2/1 पेज 30 पै 4
शेकेम—घाटी में बसा शहर
जब यह कुँवारी लड़की दीना बार-बार शेकेम शहर आया करती थी, तो वहाँ के जवान लड़कों को क्या लगा होगा? क्या उन्हें लगा होगा कि वह अकेली है, उसके साथ कोई नहीं है? हो सकता है ऐसा लगा हो। तभी उस शहर के प्रधान के बेटे की ‘नज़र दीना पर पड़ी और उसने उसे पकड़ लिया और उसका बलात्कार करके उसे भ्रष्ट कर डाला।’ दीना ने अनैतिक काम करनेवाले कनानियों के साथ वक्त बिताकर खतरा क्यों मोल लिया? क्या इसलिए कि उसे लगा उसे अपनी उम्र की लड़कियों के साथ मेल-जोल रखना है? क्या वह अपने कुछ भाइयों की तरह ज़िद्दी और मनमानी करनेवाली थी? उसने चाहे जो भी सोचा हो, लेकिन उसके बार-बार शेकेम जाने के भयानक अंजाम हुए। इस घटना का ब्यौरा उत्पत्ति की किताब में दिया गया है। उसे पढ़िए और समझने की कोशिश कीजिए कि जो भयानक अंजाम हुए, उससे याकूब और लिआ को कितना दुख झेलना पड़ा होगा, कितनी शर्मिंदगी महसूस हुई होगी।—उत्पत्ति 34:1-31; 49:5-7.
“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”
14 शेकेम दीना की तरफ आकर्षित हो गया था, इसलिए एक दिन उसने दीना को “पकड़ लिया” और “उसे भ्रष्ट कर डाला।” यह काम शेकेम की नज़रों में गलत नहीं था, क्योंकि कनानी लोगों में यह आम बात थी। (उत्पत्ति 34:1-4 पढ़िए।) इस एक अपराध की वजह से ऐसी घटनाएँ घटीं कि दीना और उसके परिवार को भारी कीमत चुकानी पड़ी।—उत्पत्ति 34:7, 25-31; गलातियों 6:7, 8.
प्र10 1/1 पेज 11 पै 1-2
जब कोई आपके दिल को ठेस पहुँचाए
जो लोग बदला लेने की ताक में रहते हैं, वे अकसर अपने दिल को पहुँची चोट पर मरहम लगाने के लिए ऐसा करते हैं। मिसाल के लिए, बाइबल में दी एक घटना पर गौर कीजिए। कनान देश के रहनेवाले शेकेम ने इब्री कुलपिता याकूब की बेटी दीना का बलात्कार किया था। जब याकूब के बेटों को यह खबर मिली, तो “उन्हें यह बात बहुत बुरी लगी और वे क्रोध से भर गए।” (उत्पत्ति 34:1-7) उनमें से दो, शिमोन और लेवी ने बदला लेने की ठान ली। उन्होंने शेकेम और उसके घराने के खिलाफ साज़िश रची। उन्होंने छल से कनानियों के नगर घुसकर शेकेम के साथ-साथ सारे पुरुषों को जान से मार डाला।—उत्पत्ति 34:13-27.
क्या इस तरह खून बहाने से मामला सुलझ गया? जब याकूब को अपने बेटों के कारनामों का पता चला, तो उसने उन्हें यह कहकर झिड़का: ‘तुमने मुझे कितनी बड़ी मुसीबत में डाल दिया! अब यहाँ के लोग मुझसे नफरत करने लगेंगे। वे सब एकजुट होकर मुझ पर हमला कर देंगे। वे मुझे और मेरे घराने को खाक में मिला देंगे।’ (उत्पत्ति 34:30) जी हाँ, बदला लेने से मामला सुलझने के बजाय और बिगड़ गया। गुस्से से भड़के उस देश के लोग अब याकूब के परिवार के जानी दुश्मन बन गए। वे किसी भी वक्त उन पर हमला कर सकते थे। इसलिए परमेश्वर ने याकूब को हिदायत दी कि वह अपने परिवार को लेकर बेतेल चला जाए।—उत्पत्ति 35:1, 5.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 600 पै 4
दबोरा
1. रिबका की धाई। जब रिबका इसहाक से शादी करने के लिए अपने पिता बतूएल का घर छोड़कर वादा किए गए देश में आयी, तो दबोरा भी उसके साथ आयी। (उत 24:59) दबोरा ने कई साल इसहाक के घर में सेवा की। फिर शायद रिबका की मौत के बाद वह याकूब के घराने की सेवा करने लगी। ऐसा मालूम होता है कि इसहाक और रिबका की शादी के 125 साल बाद, दबोरा की मौत हो गयी। उसे बेतेल के पास एक बड़े पेड़ के नीचे दफनाया गया। उस पेड़ का नाम अल्लोन-बक्कूत रखा गया जिसका मतलब है, “रोने का विशाल पेड़।” इससे पता चलता है कि याकूब और उसका परिवार दबोरा से बहुत प्यार करते थे।—उत 35:8.
आपने पूछा
क्या प्राचीन इसराएल में मसीहा का पुरखा बनने के लिए पहलौठा होना ज़रूरी था?
पहले हमारे प्रकाशनों में यही बात बतायी जाती थी। वह इसलिए कि इब्रानियों 12:16 पढ़कर हमें यही लगता था। वहाँ लिखा है कि एसाव ने “पवित्र चीज़ों की कदर नहीं की और एक वक्त के खाने के बदले पहलौठा होने का हक [याकूब को] बेच दिया।” यह आयत पढ़कर हमने समझा था कि जब याकूब को ‘पहलौठे का हक’ मिला तो उसे मसीहा का पुरखा बनने का सम्मान भी मिला।—मत्ती 1:2, 16; लूका 3:23, 34.
लेकिन बाइबल के दूसरे ब्यौरों का अध्ययन करने से पता चलता है कि मसीहा का पुरखा होने के लिए ज़रूरी नहीं था कि एक व्यक्ति पहलौठा हो। आइए कुछ ब्यौरों पर गौर करें।
याकूब (यानी इसराएल) का पहलौठा था रूबेन, जो उसे लिआ से हुआ था। बाद में उसकी प्यारी पत्नी राहेल से उसे जो पहला बेटा हुआ वह यूसुफ था। आगे चलकर, रूबेन ने एक घिनौना काम किया जिस वजह से पहलौठे का हक यूसुफ को मिल गया। (उत्प. 29:31-35; 30:22-25; 35:22-26; 49:22-26; 1 इति. 5:1, 2) मगर मसीहा न तो रूबेन के वंश से आया, न ही यूसुफ के। वह यहूदा के वंश से आया जो लिआ का चौथा बेटा था।—उत्प. 49:10.