“सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर”
“क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा?”—मरकुस ११:१७.
१. आदम और हव्वा ने आरम्भ में परमेश्वर के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध का आनन्द उठाया?
जब आदम और हव्वा को सृजा गया था, उन्होंने अपने स्वर्गीय पिता के साथ एक नज़दीक़ी सम्बन्ध का आनन्द उठाया। यहोवा परमेश्वर ने उनके साथ बातचीत की और मानवजाति के लिए अपने शानदार उद्देश्य की रूपरेखा दी। निश्चित ही, उसके सृष्टि के अद्भुत कामों से प्रेरित होकर वे प्रायः यहोवा की स्तुति गाने लगते थे। मानव परिवार के भावी माता और पिता के तौर पर अपनी भूमिका की अपेक्षा करते वक़्त यदि आदम और हव्वा को मार्गदर्शन की ज़रूरत होती तो वे अपने परादीस घर के किसी भी स्थान से परमेश्वर तक पहुँच सकते थे। उन्हें एक मन्दिर में याजक की सेवाओं की ज़रूरत नहीं थी।—उत्पत्ति १:२८.
२. कौन-सा बदलाव आया जब आदम और हव्वा ने पाप किया?
२ स्थिति तब बदल गई जब एक विद्रोही स्वर्गदूत ने हव्वा को यह सोचने के लिए भरमाया कि यदि वह यहोवा की सर्वसत्ता को अस्वीकार कर देती तो जीवन में उसकी स्थिति बेहतर हो जाती, और कहा कि वह “परमेश्वर के तुल्य” हो जाती। तदनुसार, हव्वा ने उस वृक्ष का फल खा लिया जिससे परमेश्वर ने उन्हें खाने से वर्जित किया था। तब शैतान ने हव्वा का प्रयोग उसके पति को प्रलोभित करने के लिए किया। यह दिखाते हुए कि वह अपनी पत्नी के साथ अपने सम्बन्ध को परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध से ज़्यादा क़ीमती समझता है, अनर्थकारी रूप से आदम ने अपनी पापपूर्ण पत्नी की सुनी। (उत्पत्ति ३:४-७) असल में, आदम और हव्वा ने अपने ईश्वर के तौर पर शैतान को चुना।—२ कुरिन्थियों ४:४ से तुलना कीजिए।
३. आदम और हव्वा के विद्रोह के कौन-से बुरे परिणाम थे?
३ ऐसा करने से, पहले मानव जोड़े ने न केवल परमेश्वर के साथ अपना मूल्यवान सम्बन्ध खो दिया बल्कि एक पार्थिव परादीस में अनन्तकाल तक जीने की प्रत्याशा को भी खो दिया। (उत्पत्ति २:१६, १७) उनके पापपूर्ण शरीर अन्ततः विकृत हो गए जब तक कि उनकी मृत्यु न हुई। उनकी सन्तान को यह पापपूर्ण स्थिति विरासत में मिली। “इस रीति से,” बाइबल समझाती है, “मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई।”—रोमियों ५:१२.
४. पापपूर्ण मानवजाति के लिए परमेश्वर ने क्या आशा प्रदान की?
४ पापपूर्ण मानवजाति का उनके पवित्र सृष्टिकर्ता के साथ मेल कराने के लिए किसी चीज़ की ज़रूरत थी। आदम और हव्वा को दण्ड सुनाते वक़्त, परमेश्वर ने उनकी भावी सन्तान के लिए एक “वंश” की प्रतिज्ञा करने के द्वारा आशा प्रदान की जो कि मानवजाति को शैतान के विद्रोह के प्रभाव से बचाता। (उत्पत्ति ३:१५) बाद में, परमेश्वर ने प्रकट किया कि आशिष का वंश इब्राहीम के माध्यम से आता। (उत्पत्ति २२:१८) इस प्रेममय उद्देश्य को मन में रखते हुए, परमेश्वर ने अपनी चुनी हुई जाति होने के लिए इब्राहीम के वंशजों, इस्राएलियों का चयन किया।
५. इस्राएल के साथ परमेश्वर की व्यवस्था वाचा के विवरणों में हमें क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?
५ सा.यु.पू. १५१३ में, इस्राएलियों ने परमेश्वर के साथ एक वाचा के सम्बन्ध में प्रवेश किया और उसके नियमों को मानने के लिए सहमत हुए। उस व्यवस्था वाचा को उन सब के लिए जो आज परमेश्वर की उपासना करना चाहते हैं, बड़ी दिलचस्पी का होना चाहिए क्योंकि इसने प्रतिज्ञात वंश की ओर इशारा किया। पौलुस ने कहा इसमें “आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है।” (इब्रानियों १०:१) जब पौलुस ने यह कथन किया, तब वह चल निवासस्थान, अथवा उपासना के तम्बू में इस्राएल के याजकों की सेवा की चर्चा कर रहा था। वह ‘यहोवा का मन्दिर’ अथवा ‘यहोवा का भवन’ कहलाता था। (१ शमूएल १:९, २४) यहोवा के पार्थिव घर में की गई पवित्र सेवा की जाँच करने के द्वारा, हम और गहराई से उस दयापूर्ण प्रबन्ध का मूल्यांकन कर सकते हैं जिसके द्वारा आज पापपूर्ण मनुष्य परमेश्वर के साथ पुनर्मिलन कर सकते हैं।
परमपवित्र स्थान
६. परमपवित्र स्थान में क्या स्थित था, और वहाँ परमेश्वर की उपस्थिति कैसी प्रदर्शित होती थी?
६ बाइबल कहती है कि “परम प्रधान हाथ के बनाए घरों में नहीं रहता।” (प्रेरितों ७:४८) फिर भी, अपने पार्थिव घर में परमेश्वर की उपस्थिति, परमपवित्र स्थान नामक सबसे अन्दर के भाग में एक बादल द्वारा चित्रित होती थी। (लैव्यव्यवस्था १६:२) स्पष्टतः, यह बादल तेज़ चमकता था और परमपवित्र स्थान को प्रकाश देता था। यह एक पवित्र सन्दूक के ऊपर ठहरा था जो “साक्षी-पत्र का सन्दूक” कहलाता था, जिसमें पत्थर की तख़्तियाँ थीं जिन पर परमेश्वर द्वारा इस्राएल को दी गईं कुछ आज्ञाएँ खुदी थीं। सन्दूक के ढक्कन पर पंखों को फैलाए हुए सोने के दो करूब थे, जो परमेश्वर के स्वर्गीय संगठन में ऊँचे पद के आत्मिक जीवों को चित्रित करते थे। प्रकाश का चमत्कारी बादल ढक्कन के ऊपर और करूबों के बीच में स्थित था। (निर्गमन २५:२२) यह करूबों पर स्थित एक स्वर्गीय रथ पर विराजमान सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सचित्रण था। (१ इतिहास २८:१८) यह समझाता है कि क्यों राजा हिजकिय्याह ने प्रार्थना की थी: “हे सेनाओं के यहोवा, हे करूबों पर विराजमान इस्राएल के परमेश्वर।”—यशायाह ३७:१६.
पवित्र स्थान
७. पवित्र स्थान में कौन-से सामान थे?
७ निवासस्थान का दूसरा भाग पवित्र स्थान कहलाता था। इस भाग के अन्दर, प्रवेश द्वार की बाँईं ओर एक सात-डालियोंवाली ख़ूबसूरत दीवट रखी थी, और दाँईं ओर भेंट की रोटी की मेज़ थी। सीधे सामने एक वेदी थी जिसमें से जलते धूप की सुगन्ध उठती थी। यह वेदी एक परदे के सामने स्थित थी जो कि पवित्र स्थान को परमपवित्र स्थान से अलग करता था।
८. पवित्र स्थान में याजक नियमित रूप से कौन-सी सेवाएँ करते थे?
८ प्रत्येक सुबह और प्रत्येक शाम को, एक याजक को निवासस्थान में प्रवेश करके धूप की वेदी पर धूप जलाना था। (निर्गमन ३०:७, ८) सुबह जब धूप जलता था, तब सोने की दीवट पर रखे सात दीपकों में तेल भरना होता था। शाम को पवित्र स्थान में प्रकाश प्रदान करने के लिए ये दीपक जलाए जाते थे। प्रत्येक सब्त के दिन एक याजक को भेंट की रोटी की मेज़ पर १२ ताज़ी रोटियाँ रखनी पड़ती थीं।—लैव्यव्यवस्था २४:४-८.
आँगन
९. पानी के हौद का क्या उद्देश्य था, और इससे हम कौन-सा सबक़ सीख सकते हैं?
९ निवासस्थान का एक आँगन भी था, जो तम्बू के कपड़े से बने एक बाड़े से घिरा हुआ था। इस आँगन में एक बड़ा हौद था जहाँ पर याजक पवित्र स्थान में प्रवेश करने से पहले अपने हाथ और पाँव धोते थे। आँगन में स्थित वेदी पर बलिदान चढ़ाने से पहले भी उन्हें ऐसा करना था। (निर्गमन ३०:१८-२१) शुद्धता की यह माँग आज परमेश्वर के सेवकों के लिए एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि यदि वे चाहते हैं कि परमेश्वर उनकी उपासना स्वीकार करे तो उनका शारीरिक, नैतिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है। (२ कुरिन्थियों ७:१) अंततः वेदी की आग के लिए लकड़ियाँ और हौद के लिए पानी ग़ैर-यहूदी मन्दिर के दासों द्वारा प्रदान किया जाता था।—यहोशू ९:२७.
१०. बलिदान की वेदी पर चढ़ाई जानेवाली कुछ भेंटें क्या थीं?
१० प्रत्येक सुबह और प्रत्येक शाम, बलिदान के रूप में भेड़ का एक बच्चा अन्नबलि और अर्घ के साथ वेदी पर जलाया जाता था। (निर्गमन २९:३८-४१) अन्य बलिदान ख़ास दिनों पर चढ़ाए जाते थे। कभी-कभी किसी अमुक व्यक्तिगत पाप के कारण एक बलिदान चढ़ाना होता था। (लैव्यव्यवस्था ५:५, ६) अन्य अवसरों पर एक इस्राएली स्वैच्छिक मेलबलि दे सकता था जिसमें से कुछ भाग याजक और भेंट चढ़ानेवाला खाया करते थे। यह दिखाता था कि पापी मानव परमेश्वर के साथ शान्ति क़ायम कर सकते थे, मानो उसके साथ एक भोजन का आनन्द ले रहे हों। यहाँ तक कि एक परदेशी भी यहोवा का एक उपासक बन सकता था और उसके घर में स्वैच्छिक भेंट चढ़ाने का विशेषाधिकार प्राप्त कर सकता था। लेकिन यहोवा को योग्य सम्मान देने के लिए, याजक केवल सबसे उत्तम कोटि की भेंट स्वीकार कर सकते थे। अन्नबलि के आटे को अच्छी तरह पिसा हुआ होना था और बलिदानों के पशुओं को निर्दोष होना था।—लैव्यव्यवस्था २:१; २२:१८-२०; मलाकी १:६-८.
११. (क) पशु बलि के लहू का क्या किया जाता था, और यह किसकी ओर इशारा करता था? (ख) मनुष्य और पशु दोनों के लहू के बारे में परमेश्वर का क्या दृष्टिकोण है?
११ इन बलिदानों का लहू वेदी के पास लाया जाता था। यह उस जाति के लिए प्रतिदिन एक अनुस्मारक का काम करता था कि वे पापी थे और एक छुड़ानेवाले की ज़रूरत में थे, जिसका बहाया गया लहू हमेशा के लिए उनके पापों का प्रायश्चित्त कर सकता था और उन्हें मृत्यु से बचा सकता था। (रोमियों ७:२४, २५; गलतियों ३:२४. इब्रानियों १०:३ से तुलना कीजिए।) लहू के इस पवित्र प्रयोग ने इस्राएलियों को यह भी याद दिलाया कि लहू जीवन को सूचित करता है और कि जीवन परमेश्वर की अमानत है। मनुष्य द्वारा लहू के किसी भी अन्य प्रयोग को हमेशा परमेश्वर द्वारा वर्जित किया गया है।—उत्पत्ति ९:४; लैव्यव्यवस्था १७:१०-१२; प्रेरितों १५:२८, २९.
प्रायश्चित्त का दिन
१२, १३. (क) प्रायश्चित्त का दिन क्या था? (ख) इससे पहले कि महायाजक परमपवित्र स्थान में लहू ले आए, उसे क्या करना पड़ता था?
१२ साल में एक बार, जो प्रायश्चित्त दिन कहलाया जाता था, सारी इस्राएल जाति साथ ही यहोवा की उपासना करनेवाले परदेशियों को किसी भी काम में हाथ नहीं लगाना होता था और उपवास करना पड़ता था। (लैव्यव्यवस्था १६:२९, ३०) इस महत्त्वपूर्ण दिन पर, वह जाति परमेश्वर के साथ एक और साल शान्तिपूर्ण सम्बन्ध का आनन्द उठाने के लिए चित्रात्मक तरीक़े से पापों से शुद्ध की जाती थी। आइए हम दृश्य की कल्पना करें और कुछ विशेषताओं पर ध्यान दें।
१३ महायाजक निवासस्थान के आँगन में है। अपने आपको हौद के पानी से शुद्ध करने के बाद, वह बलिदान के लिए एक बैल का वध करता है। बैल का लहू एक कटोरे में उंड़ेला जाता है; इसे लेवी के याजकीय गोत्र के पापों का प्रायश्चित्त करने के लिए ख़ास तरीक़े से इस्तेमाल किया जाएगा। (लैव्यव्यवस्था १६:४, ६, ११) लेकिन बलिदान चढ़ाने की इस क्रिया को आगे बढ़ाने से पहले महायाजक को कुछ करने की ज़रूरत है। वह सुगन्धित धूप लेता है (संभवतः उसे एक करछी में डालकर) और एक धूपदान में वेदी से जलते हुए कोयले लेता है। अब वह पवित्र स्थान में प्रवेश करता है और परमपवित्र स्थान के परदे की ओर चलता है। वह धीरे-से परदे को पार करता है और वाचा के सन्दूक के सामने खड़ा हो जाता है। इसके बाद, किसी अन्य मनुष्य की दृष्टि से परे, वह जलते कोयलों पर धूप उड़ेलता है, और परमपवित्र स्थान मीठी सुगन्ध के बादल से भर जाता है।—लैव्यव्यवस्था १६:१२, १३.
१४. परमपवित्र स्थान में महायाजक को क्यों दो भिन्न पशुओं का लहू लेकर प्रवेश करना था?
१४ अब परमेश्वर दया दिखाने के लिए इच्छुक है और एक चित्रात्मक रूप से प्रायश्चित्त स्वीकार करता है। इस कारण से सन्दूक का ढक्कन “दया का आसन” अथवा ‘प्रायश्चित्त का ढकना’ कहलाता था। (इब्रानियों ९:५, NW, फुटनोट) याजक परमपवित्र स्थान से बाहर जाता है, बैल का लहू लेता है, और परमपवित्र स्थान में दुबारा प्रवेश करता है। व्यवस्था में जैसी आज्ञा है, वह लहू में अपनी उंगली डुबोता है और सन्दूक के ढक्कन के सामने सात बार उसे छिड़कता है। (लैव्यव्यवस्था १६:१४) इसके बाद वह वापस आँगन में जाता है और एक बकरा वध करता है, जो कि “साधारण जनता के लिये” एक पापबलि है। वह बकरे का कुछ लहू परमपवित्र स्थान में लाता है और बैल के लहू की तरह उससे भी वैसा ही करता है। (लैव्यव्यवस्था १६:१५) प्रायश्चित्त के दिन में अन्य ज़रूरी सेवाएँ भी होती थीं। उदाहरण के लिए, महायाजक को दूसरे बकरे के सिर पर हाथ रखकर “इस्राएलियों के सब अधर्म के कामों” का अंगीकार करना होता था। तब इस जीवित बकरे को, लाक्षणिक अर्थ में जाति के पापों को ले जाने के लिए जंगल में ले जाया जाता था। इस तरीक़े से “याजकों के और मण्डली के सब लोगों के लिये” प्रत्येक वर्ष प्रायश्चित्त किया जाता था।—लैव्यव्यवस्था १६:१६, २१, २२, ३३.
१५. (क) सुलैमान का मन्दिर कैसे निवासस्थान के समान था? (ख) निवासस्थान और मन्दिर दोनों में पवित्र सेवा करने के बारे में इब्रानियों की पुस्तक क्या कहती है?
१५ परमेश्वर की वाचा के लोगों के तौर पर इस्राएल के इतिहास के पहले ४८६ वर्षों में, चल निवासस्थान ने उनके परमेश्वर, यहोवा की उपासना करने के एक स्थान के तौर पर काम किया। इसके बाद, इस्राएल के सुलैमान को एक स्थायी इमारत बनाने का विशेषाधिकार दिया गया। हालाँकि इस मन्दिर को ज़्यादा बड़ा और ज़्यादा अलंकृत होना था, ईश्वरीय रूप से दी गई योजना निवासस्थान के नमूने पर ही आधारित थी। निवासस्थान की तरह, यह एक ज़्यादा बड़ी, ज़्यादा प्रभावशाली उपासना की व्यवस्था का चित्रण था जिसे “मनुष्य . . . नहीं, बरन” यहोवा ‘खड़ा करता।’—इब्रानियों ८:२, ५; ९:९, ११.
पहला और दूसरा मन्दिर
१६. (क) मन्दिर को समर्पित करते वक़्त सुलैमान ने कौन-सा प्रेममय निवेदन किया था? (ख) सुलैमान की प्रार्थना के प्रति अपनी स्वीकृति को यहोवा ने कैसे दिखाया?
१६ उस भव्य मन्दिर को समर्पित करते समय, सुलैमान ने यह उत्प्रेरित निवेदन शामिल किया: “परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरे बड़े नाम . . . के कारण दूर देश से आए, और आकर इस भवन की ओर मुंह किए हुए प्रार्थना करे, तब तू अपने स्वर्गीय निवासस्थान में से सुने, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसके अनुसार करना; जिस से पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर, तेरी प्रजा इस्राएल की नाईं तेरा भय मानें; और निश्चय करें, कि यह भवन जो मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।” (२ इतिहास ६:३२, ३३) प्रत्यक्ष रूप से, परमेश्वर ने सुलैमान की समर्पण प्रार्थना के लिए अपनी स्वीकृति प्रकट की। आग की एक ज्वाला स्वर्ग से गिरी और वेदी पर की पशु बलियों को भस्म कर दिया, और यहोवा का तेज भवन में भर गया।—२ इतिहास ७:१-३.
१७. सुलैमान द्वारा निर्मित मन्दिर को अन्ततः क्या हुआ, और क्यों?
१७ अफ़सोस की बात है, इस्राएलियों ने यहोवा का हितकर भय मानना छोड़ दिया। आगे चलकर, उन्होंने उसके महान नाम को रक्तपात, मूर्तिपूजा, परस्त्रीगमन, कौटुम्बिक व्यभिचार जैसे कामों के द्वारा और अनाथों, विधवाओं, और परदेशियों पर दुर्व्यवहार करने के द्वारा कलंकित किया। (यहेजकेल २२:२, ३, ७, ११, १२, २६, २९) अतः, वर्ष सा.यु.पू. ६०७ में, परमेश्वर ने मन्दिर को नष्ट करने के लिए बाबुलीय सेनाओं को लाने के द्वारा न्यायदण्ड दिया। बचे हुए इस्राएलियों को बंदी बनाकर बाबुल ले जाया गया।
१८. दूसरे मन्दिर में, उन ग़ैर-इस्राएली पुरुषों के लिए जिन्होंने पूरे हृदय से यहोवा की उपासना का समर्थन किया, कौन-से विशेषाधिकार खुल गए?
१८ सत्तर साल के बाद एक पश्चातापी यहूदी शेषवर्ग यरूशलेम लौटा और उन्हें यहोवा के मन्दिर का पुनःनिर्माण करने का विशेषाधिकार दिया गया। दिलचस्पी की बात है, इस दूसरे मन्दिर में सेवा करने के लिए याजकों और लेवियों की कमी थी। परिणामस्वरूप, नतिनों को जो कि ग़ैर-इस्राएली मन्दिर के दासों के वंशज थे, परमेश्वर के घर में सेवकों के तौर पर कार्य करने का बड़ा विशेषाधिकार दिया गया। हालाँकि, वे याजकों और लेवियों के बराबर कभी-भी नहीं बने।—एज्रा ७:२४; ८:१७, २०.
१९. दूसरे मन्दिर के विषय में परमेश्वर ने क्या प्रतिज्ञा की, और यह शब्द कैसे सच साबित हुए?
१९ शुरूआत में ऐसा लगा कि यह दूसरा मन्दिर पहले मन्दिर की अपेक्षा कुछ भी नहीं होगा। (हाग्गै २:३) लेकिन यहोवा ने प्रतिज्ञा की: “मैं सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा . . . इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी।” (हाग्गै २:७, ९) इन शब्दों को सच साबित करते हुए, दूसरे मन्दिर ने अधिक महिमा प्राप्त की। यह पहले मन्दिर से १६४ साल अधिक समय तक रहा और अनेकों-अनेक उपासक अनेकों-अनेक देशों से इसके आँगनों में इकट्ठा हुए। (प्रेरितों २:५-११ से तुलना कीजिए।) राजा हेरोदेस के समय में इस दूसरे मन्दिर की मरम्मत शुरू हुई और उसके आँगनों को बढ़ाया गया। पत्थर के एक विशालकाय चबूतरे पर उठा हुआ और सुन्दर खम्भों की कतार से घिरा हुआ, यह भव्यता में सुलैमान द्वारा बनाए गए पहले मन्दिर की बराबरी कर रहा था। इसमें जातियों के उन लोगों के लिए एक बड़ा, बाहरी आँगन था जो यहोवा की उपासना करना चाहते थे। अन्यजातियों के इस आँगन को अन्दरवाले आँगनों से जो केवल इस्राएलियों के लिए आरक्षित थे, एक पत्थर की दीवार अलग करती थी।
२०. (क) कौन-सी असाधारण विशिष्टता से यह पुनःनिर्मित मन्दिर चिन्हित किया गया? (ख) किस बात ने दर्शाया कि यहूदियों ने इस मन्दिर को ग़लत दृष्टि से देखा, और उसके जवाब में यीशु ने क्या किया?
२० इस दूसरे मन्दिर ने, परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह को उसके आँगनों में शिक्षा देने की महान विशिष्टता का आनन्द उठाया। लेकिन जैसा पहले मन्दिर के साथ था, आम तौर पर यहूदियों के पास परमेश्वर के घर के रखवाले होने के अपने विशेषाधिकार का उचित दृष्टिकोण नहीं था। यहाँ तक कि वे व्यापारियों को अन्यजातियों के आँगन में व्यापार करने की भी अनुमति देते थे। इसके अलावा, यरूशलेम के चारों ओर सामान ले जाने के लिए लोगों को मन्दिर को एक छोटे-रास्ते के रूप में इस्तेमाल करने दिया जा रहा था। अपनी मृत्यु से चार दिन पहले, यीशु ने मन्दिर को ऐसे ग़ैर-धार्मिक कार्यों से शुद्ध किया, जिस दौरान वह कहता रहा: “क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा? पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है।”—मरकुस ११:१५-१७.
परमेश्वर अपने पार्थिव घर को हमेशा के लिए छोड़ देता है
२१. यरूशलेम के मन्दिर के विषय में यीशु ने क्या सूचित किया?
२१ परमेश्वर की शुद्ध उपासना का समर्थन करने के लिए यीशु के साहसपूर्ण कार्य के कारण, यहूदी धार्मिक अगुवों ने उसे मार डालने की ठानी। (मरकुस ११:१८) यह जानते हुए कि जल्दी ही उसकी हत्या कर दी जाएगी, यीशु ने यहूदी धार्मिक अगुवों से कहा: “तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” (मत्ती २३:३७, ३८) उसने इसके द्वारा सूचित किया कि परमेश्वर इससे आगे यरूशलेम के प्रतिरूपी मन्दिर में की जानेवली उपासना के तरीक़े को स्वीकार नहीं करता। वह इसके आगे “सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर” नहीं रहता। जब उसके शिष्यों ने यीशु को मन्दिर की शानदार इमारतें दिखाईं, उसने कहा: “क्या तुम यह सब नहीं देखते? . . . यहां पत्थर पर पत्थर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा।”—मत्ती २४:१, २.
२२. (क) मन्दिर के विषय में यीशु के शब्द कैसे पूरे हुए? (ख) पार्थिव नगर में अपनी आशा केन्द्रित करने के बजाय, आरंभिक मसीहियों ने किस बात की खोज की?
२२ यीशु की भविष्यवाणी ३७ वर्ष बाद सा.यु. ७० के वर्ष में पूरी हुई, जब रोमी सेनाओं ने यरूशलेम और उसके मन्दिर को नष्ट किया। इस बात ने प्रभावशाली प्रमाण दिया कि परमेश्वर ने वाक़ई अपने प्रतिरूपी घर को छोड़ दिया था। यीशु ने यरूशलेम में एक और मन्दिर के पुनःनिर्मित होने के बारे में पूर्वकथन नहीं किया। उस पार्थिव नगर के बारे में, प्रेरित पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को लिखा: “यहां हमारा कोई स्थिर रहनेवाला नगर नहीं, बरन हम एक आनेवाले नगर की खोज में हैं।” (इब्रानियों १३:१४) प्रारंभिक मसीही “स्वर्गीय यरूशलेम”—शहरनुमा परमेश्वर के राज्य—का हिस्सा बनने के लिए आशा रखते थे। (इब्रानियों १२:२२) अतः, यहोवा परमेश्वर की सच्ची उपासना पृथ्वी पर एक भौतिक मन्दिर में केन्द्रित नहीं रही। हमारे अगले लेख में, हम उस श्रेष्ठ प्रबन्ध पर ग़ौर करेंगे जिसको परमेश्वर ने उन सभी लोगों के लिए स्थापित किया है जो उसकी उपासना “आत्मा और सच्चाई” से करने की इच्छा रखते हैं।—यूहन्ना ४:२१, २४.
पुनर्विचार प्रश्न
◻ आदम और हव्वा ने परमेश्वर के साथ किस सम्बन्ध को खो दिया?
◻ निवासस्थान की विशेषताओं में हमें क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?
◻ निवासस्थान के आँगन की गतिविधियों से हम क्या सीखते हैं?
◻ परमेश्वर ने अपने मन्दिर के नष्ट किए जाने की अनुमति क्यों दी?
[पेज 10, 11 पर तसवीरें]
हेरोदेस द्वारा पुनःनिर्मित मन्दिर
१. परमपवित्र स्थान
२. पवित्र स्थान
३. होमबलि की वेदी
४. ढाला हुआ बड़ा हौज़
५. याजकों का आँगन
६. इस्राएल का आँगन
७. स्त्रियों का आँगन