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“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”प्रहरीदुर्ग—2010 | अक्टूबर 15
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13. यीशु के सोचने के तरीके को जान लेने से हमें क्या मदद मिलती है?
13 हमने अभी यीशु के सोचने के तरीके को और अच्छी तरह जाना है। इससे हमें बाइबल की उन घटनाओं को समझने में मदद मिलेगी जिन्हें समझना शायद हमें मुश्किल लगा हो। उदाहरण के लिए ज़रा उस बात पर गौर कीजिए जो यहोवा ने मूसा से उस वक्त कही थी, जब इसराएलियों ने उपासना के लिए सोने का बछड़ा बनाया था। परमेश्वर ने कहा: “मैं ने इन लोगों को देखा, और सुन, वे हठीले हैं। अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिस से मैं उन्हें भस्म करूं; परन्तु तुझ से एक बड़ी जाति उपजाऊंगा।”—निर्ग. 32:9, 10.
14. यहोवा की बात का मूसा ने क्या जवाब दिया?
14 घटना आगे बताती है: “तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएं, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुंचाने से फिर जा। अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याक़ूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपनी ही किरिया खाकर यह कहा था, कि मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें। तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उस ने कहा था पछताया।”—निर्ग. 32:11-14.a
15, 16. (क) यहोवा ने जो कहा उससे मूसा को क्या मौका मिला? (ख) किस मायने में यहोवा “पछताया”?
15 क्या मूसा को वाकई यहोवा की सोच सुधारने की ज़रूरत थी? बेशक नहीं! हालाँकि यहोवा ने बताया कि वह क्या करना चाहता है, मगर यह उसका आखिरी फैसला नहीं था। यहोवा दरअसल मूसा को परख रहा था, ठीक जैसे यीशु ने फिलिप्पुस और यूनानी स्त्री को परखा था। मूसा को अपनी बात इज़हार करने का मौका दिया गया।b यहोवा ने मूसा को अपने और इसराएलियों के बीच बिचवई ठहराया और उसकी इस भूमिका की इज़्ज़त की। उस वक्त क्या मूसा खीज उठता? क्या वह मौके का फायदा उठाकर यहोवा से कहता कि वह इसराएलियों को भूल जाए और उसके ही वंश से एक शक्तिशाली जाति बनाए?
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“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”प्रहरीदुर्ग—2010 | अक्टूबर 15
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b कुछ विद्वान कहते हैं कि निर्गमन 32:10 में यहोवा की यह बात “मुझे मत रोक” दरअसल मूल इब्रानी भाषा में एक मुहावरा है, जिसका मतलब न्यौता देना हो सकता है। यह असल में मूसा को यहोवा और इसराएलियों के बीच “खड़े” होने या बिचवई बनने का एक न्यौता था। (भज. 106:23; यहे. 22:30) बात चाहे जो भी हो, हम देखते हैं कि मूसा ने यहोवा के सामने बेझिझक अपने दिल की बात कह दी।
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