झुंड से भटके हुओं की मदद कीजिए
“मेरे साथ आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है।”—लूका 15:6.
1. यीशु ने कैसे साबित किया कि वह एक ऐसा चरवाहा है जो अपनी भेड़ों से प्यार करता है?
यहोवा के एकलौते बेटे, यीशु मसीह को “भेड़ों का महान रखवाला” कहा गया है। (इब्रा. 13:20) यीशु के पैदा होने से पहले यह भविष्यवाणी की गयी थी कि वह एक ऐसा चरवाहा होगा जो इस्राएल की “खोई हुई भेड़ों” को ढूँढ़ेगा और उसने वाकई ऐसा किया। (मत्ती 2:1-6; 15:24) इतना ही नहीं, जैसे एक चरवाहा अपनी भेड़ की हिफाज़त करने के लिए अपनी जान तक दे सकता है, ठीक उसी तरह यीशु ने भेड़-समान लोगों की खातिर अपनी जान दी, ताकि वे उसकी छुड़ौती बलिदान से फायदा पा सकें।—यूह. 10:11, 15; 1 यूह. 2:1, 2.
2. कुछ मसीही शायद किन वजहों से ठंडे पड़ गए हैं?
2 अफसोस की बात है कि कुछ समर्पित सेवक, जो एक वक्त पर यीशु के बलिदान की कदर करते थे, अब मसीही कलीसिया के साथ संगति नहीं करते। हो सकता है कि निराशा, खराब सेहत या ऐसी कुछ और वजहों से सच्चाई के लिए उनका जोश कम हो गया हो और वे ठंडे पड़ गए हों। लेकिन जीवन में शांति और खुशी तो परमेश्वर के झुंड में रहकर ही मिलती है। यही बात दाऊद ने भजन 23 में लिखी: “यहोवा मेरा चरवाहा है, मुझे कुछ घटी न होगी।” (भज. 23:1) जी हाँ, जो परमेश्वर के झुंड का हिस्सा बने रहते हैं उन्हें आध्यात्मिक मायने में कभी कोई घटी नहीं होती, लेकिन जो झुंड से भटक जाते हैं वे ऐसी खुशियों से महरूम रहते हैं। तो फिर कौन उनकी मदद कर सकता है? उन्हें मदद किस तरह दी जा सकती है? और ऐसा क्या किया जा सकता है कि वे परमेश्वर के झुंड में लौट आएँ?
कौन मदद कर सकता है?
3. खोयी हुई भेड़ों को चराई में सही-सलामत लौटा लाने के लिए क्या करने की ज़रूरत है? और यह बात यीशु ने कैसे समझायी?
3 खोयी हुई भेड़ों को परमेश्वर की चराई में सही-सलामत लौटा लाने में बहुत मेहनत लगती है। (भज. 100:3) यीशु ने यह बात एक दृष्टांत के ज़रिए समझायी: “तुम क्या समझते हो? यदि किसी मनुष्य की सौ भेड़ें हों, और उन में से एक भटक जाए, तो क्या निन्नानवे को छोड़कर, और पहाड़ों पर जाकर, उस भटकी हुई को न ढ़ूंढ़ेगा? और यदि ऐसा हो कि उसे पाए, तो मैं तुम से सच कहता हूं, कि वह उन निन्नानवे भेड़ों के लिये जो भटकी नहीं थीं इतना आनन्द नहीं करेगा, जितना कि इस भेड़ के लिये करेगा। ऐसा ही तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है यह इच्छा नहीं, कि इन छोटों में से एक भी नाश हो।” (मत्ती 18:12-14) झुंड से भटके हुए भेड़-समान लोगों की कौन मदद कर सकता है?
4, 5. प्राचीनों को परमेश्वर के झुंड के लिए कैसा रवैया रखना चाहिए?
4 जब मसीही प्राचीन भटकी हुई भेड़ों की मदद करते हैं, तो उन्हें यह बात याद रखनी चाहिए कि परमेश्वर का झुंड ऐसे लोगों से बना है, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की है। ये सभी परमेश्वर की “चराई की भेड़ें हैं,” जो उसके लिए अनमोल हैं। (भज. 79:13) इन प्यारी भेड़ों को कोमल परवाह की ज़रूरत है। इसलिए भेड़ों से प्यार करनेवाले चरवाहों को उनमें निजी दिलचस्पी लेनी चाहिए। ऐसा करने का एक तरीका है, दोस्ताना अंदाज़ में उनसे रखवाली भेंट करना। इसके काफी अच्छे नतीजे निकल सकते हैं। जब एक चरवाहा भटकी हुई भेड़ का प्यार से हौसला बढ़ाता है, तो इससे उस भेड़ का परमेश्वर पर विश्वास मज़बूत हो सकता है और झुंड में लौट आने की उसकी चाहत बढ़ सकती है।—1 कुरि. 8:1.
5 परमेश्वर के झुंड के चरवाहों का यह फर्ज़ बनता है कि वे भटकी हुई भेड़ों को ढूँढ़ें और उनकी मदद करने की पूरी कोशिश करें। प्रेरित पौलुस ने इस ज़िम्मेदारी के बारे में इफिसुस शहर के मसीही प्राचीनों को याद दिलाते हुए कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने लोहू से मोल लिया है।” (प्रेरि. 20:28) उसी तरह, प्रेरित पतरस ने अभिषिक्त प्राचीनों को यह सलाह दी: “परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में है रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच-कमाई के लिये नहीं, पर मन लगा कर। और जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, बरन झुंड के लिये आदर्श बनो।”—1 पत. 5:1-3.
6. खासकर आज परमेश्वर की भेड़ों की रखवाली करना क्यों ज़रूरी है?
6 मसीही चरवाहों को ‘अच्छे चरवाहे’ यीशु की मिसाल पर चलना चाहिए। (यूह. 10:11) यीशु को भेड़ों की खैरियत की फिक्र थी। इसलिए उसने रखवाली की अहमियत पर ज़ोर देते हुए शमौन पतरस से कहा: “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।” (यूहन्ना 21:15-17 पढ़िए।) खासकर आज के समय में, भेड़ों की रखवाली करना और भी ज़रूरी है क्योंकि शैतान परमेश्वर के समर्पित सेवकों की खराई तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। वह उनकी कमज़ोरियों का फायदा उठाता है और उन्हें पाप में फँसाने के लिए इस दुनिया का इस्तेमाल करता है। (1 यूह. 2:15-17; 5:19) जो परमेश्वर की सेवा में ठंडे पड़ चुके हैं, वे आसानी से शैतान का शिकार बन जाते हैं। इसलिए उन्हें ‘पवित्र शक्ति के अनुसार चलने’ (NW) के लिए मदद की ज़रूरत है। (गल. 5:16-21, 25) अगर हम उनकी मदद करना चाहते हैं तो यह ज़रूरी है कि हम प्रार्थना करें और परमेश्वर पर भरोसा रखें, उसकी पवित्र शक्ति से मार्गदर्शन लें और उसके वचन का कुशलता से इस्तेमाल करें।—नीति. 3:5, 6; लूका 11:13; इब्रा. 4:12.
7. प्राचीनों के लिए भेड़-समान लोगों की चरवाही करना क्यों अहमियत रखता है?
7 इस्राएल देश में चरवाहे अपनी भेड़ों को हाँकने के लिए एक लंबी मोड़दार लाठी का इस्तेमाल करते थे। जब भेड़ें एक-एक करके बाड़े से बाहर निकलतीं या अंदर आतीं, तो वे चरवाहे की “लाठी के तले” निकलती थीं, जिससे वह उन सबकी गिनती कर पाता था। (लैव्य. 27:32; मीका 2:12; 7:14) मसीही चरवाहों को भी चाहिए कि वे परमेश्वर के झुंड की हरेक भेड़ को अच्छी तरह जानें और उनकी खोज-खबर रखें। (नीतिवचन 27:23 से तुलना कीजिए।) यही वजह है कि प्राचीनों की बैठकों में भेड़ों की रखवाली के बारे में खास तौर पर चर्चा की जाती है। इसमें भटकी हुई भेड़ों को मदद देने के इंतज़ामों पर भी बात की जाती है। खुद यहोवा कहता है कि वह अपनी खोयी हुई भेड़ों को ढूँढ़ेगा और उनकी देखभाल करेगा। (यहे. 34:11) इसलिए जब प्राचीन, भटकी हुई भेड़ों को झुंड में लाने के लिए कारगर कदम उठाते हैं तो परमेश्वर को बहुत खुशी होती है।
8. किन तरीकों से प्राचीन, भेड़ों में निजी दिलचस्पी दिखा सकते हैं?
8 जब बीमार भाई-बहनों से मसीही चरवाहे मुलाकात करते हैं, तो उनका चेहरा खिल उठता है और उनकी हिम्मत बढ़ती है। उसी तरह, जब आध्यात्मिक तौर पर बीमार भेड़ों में निजी दिलचस्पी ली जाती है, तो उनका भी हौसला बढ़ता है। जब प्राचीन ऐसी भेड़ से मिलते हैं तो वे उसके लिए बाइबल से कुछ आयतें पढ़ सकते हैं, किसी लेख या सभाओं में सीखे कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं और उसके साथ प्रार्थना कर सकते हैं। वे यह भी बता सकते हैं कि भाई-बहन उसे कलीसिया में फिर से देखकर कितने खुश होंगे। (2 कुरि. 1:3-7; याकू. 5:13-15) जी हाँ, सिर्फ एक मुलाकात, एक फोन या फिर एक चिट्ठी कमाल कर सकती है! इससे भेड़ का हौसला तो बढ़ता ही है, साथ ही हमदर्द चरवाहे की खुशी भी दुगनी हो जाती है।
साझी कोशिश
9, 10. आप क्यों कह सकते हैं कि भटकी हुई भेड़ों की चिंता करना सिर्फ प्राचीनों की ज़िम्मेदारी नहीं?
9 हम कठिन समय में जी रहे हैं और ज़िंदगी की भाग-दौड़ में शायद हमें यह पता ही न चले कि कौन कलीसिया से धीरे-धीरे दूर जा रहा है। (इब्रा. 2:1) मगर यहोवा की नज़रों में उसकी भेड़ें बेशकीमती हैं। ठीक जैसे हमारे शरीर के हर अंग की अहमियत होती है, उसी तरह कलीसिया में हरेक भेड़ की अपनी अहमियत है। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम सभी एक-दूसरे की चिंता करें और सच्चे दिल से परवाह दिखाएँ। (1 कुरि. 12:25) क्या आपमें ऐसा रवैया है?
10 हालाँकि भटकी हुई भेड़ों को ढूँढ़ने और उनकी मदद करने में प्राचीन अगुवाई करते हैं, मगर यह ज़िम्मेदारी सिर्फ उन्हीं की नहीं। कलीसिया के दूसरे भाई-बहन भी इन चरवाहों का साथ दे सकते हैं। जी हाँ, हम भटके हुए मसीहियों को वापस झुंड में लाने के लिए उनका हौसला बढ़ा सकते हैं, उन्हें आध्यात्मिक मदद दे सकते हैं और हमें ऐसा करना भी चाहिए। तो हम उनकी मदद कैसे कर सकते हैं?
11, 12. आपको सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों की मदद करने का कौन-सा खास मौका मिल सकता है?
11 कुछ मामलों में प्राचीन शायद किसी तजुरबेकार राज्य प्रचारक को ऐसे मसीही के साथ बाइबल अध्ययन करने को कहें, जो झुंड में वापस लौटने की इच्छा ज़ाहिर करता है। ऐसी मदद का मकसद होता है, उसमें सच्चाई के लिए “पहिला सा प्रेम” फिर जगाना। (प्रका. 2:1, 4) इसके लिए कुछ ऐसे लेखों पर उसके साथ चर्चा की जा सकती है, जिन्हें कलीसिया के साथ संगति न करने की वजह से वह नहीं पढ़ पाया था। ऐसी चर्चा से परमेश्वर के लिए उसका प्यार बढ़ेगा और उसका विश्वास मज़बूत होगा।
12 अगर प्राचीन आपसे किसी ऐसे मसीही के साथ अध्ययन करने को कहें, तो यहोवा से प्रार्थना कीजिए कि वह आपका मार्गदर्शन करे और आपकी मेहनत पर आशीष दे। बाइबल यकीन दिलाती है: “अपना सब काम यहोवा को सौंप दे, और तेरी योजनाएं सफल होंगी।” (नीति. 16:3, NHT) बाइबल की उन आयतों और विश्वास मज़बूत करनेवाली बातों पर मनन कीजिए, जिन्हें आप अपनी चर्चा में इस्तेमाल करना चाहते हैं। प्रेरित पौलुस की बेहतरीन मिसाल को भी याद कीजिए। (रोमियों 1:11, 12 पढ़िए।) पौलुस रोम के मसीहियों से मिलने के लिए बेताब था क्योंकि वह उन्हें आत्मिक वरदान देकर उनका विश्वास मज़बूत करना चाहता था। साथ ही, वह चाहता था कि खुद उसकी भी हौसला-अफज़ाई हो। तो परमेश्वर के झुंड से भटकी हुई भेड़ों की मदद करते वक्त क्या हममें भी पौलुस जैसा जज़्बा नहीं होना चाहिए?
13. सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों के साथ आप किन बातों पर चर्चा कर सकते हैं?
13 चर्चा के दौरान आप पूछ सकते हैं कि उन्होंने सच्चाई कैसे सीखी। उनके बीते दिनों की सुनहरी यादें ताज़ा कीजिए। उनसे बातों-बातों में कोई मज़ेदार अनुभव बताने को कहिए, जो शायद सभाओं में, प्रचार के दौरान या अधिवेशनों में उनके साथ हुआ हो। उन बढ़िया लम्हों को भी याद कीजिए जो आपने परमेश्वर की सेवा में एक-साथ गुज़ारे हों। आपको परमेश्वर के और करीब आने में जो खुशी मिली है, उसके बारे में बताइए। (याकू. 4:8) परमेश्वर ने आपके लिए जिस तरह परवाह दिखायी है और खासकर क्लेश में आशा और शांति दी है, उसके लिए अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर कीजिए।—रोमि. 15:4; 2 कुरि. 1:3, 4.
14, 15. सच्चाई में ठंडे पड़ चुके मसीहियों को किन आशीषों के बारे में याद दिलाना फायदेमंद होगा?
14 सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों की मदद करने के लिए हम और क्या कर सकते हैं? ऐसे लोगों को यह याद दिलाना फायदेमंद होगा कि जब वे कलीसिया के साथ संगति करते थे तब वे किन आशीषों का आनंद उठाते थे। जैसे परमेश्वर के वचन और उसके मकसद के बारे में उनका ज्ञान बढ़ता जा रहा था। (नीति. 4:18) ‘पवित्र शक्ति के अनुसार’ (NW) चलने की वजह से वे पाप करने की इच्छओं को काबू में रख पाते थे। (गल. 5:22-26) इस वजह से उनका विवेक शुद्ध था, वे पूरे दिल से यहोवा से प्रार्थना कर पाते थे और “परमेश्वर की शान्ति” का अनुभव कर पाते थे। यह शांति ‘जो समझ से बिलकुल परे है, उनके हृदय और विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखती थी।’ (फिलि. 4:6, 7) इन मुद्दों को मन में रखिए और सच्चाई में ठंडे पड़ चुके अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों में सच्ची दिलचस्पी दिखाइए। प्यार से उनका हौसला बढ़ाने की हर मुमकिन कोशिश कीजिए ताकि वे झुंड में लौट आएँ।—फिलिप्पियों 2:4 पढ़िए।
15 एक प्राचीन के नाते जब आप किसी ऐसे शादीशुदा जोड़े से रखवाली भेंट करते हैं, जो सच्चाई में ठंडा पड़ चुका है, तो आप उन्हें याद दिला सकते हैं कि पहली बार परमेश्वर के वचन से सच्चाई सीखने पर वे किस कदर खुशी से भर गए थे। उन्हें सीखी हुई बातें कितनी कायल कर देनेवाली लगी थीं और उन्होंने खुद को झूठी शिक्षाओं से कितना आज़ाद महसूस किया था! (यूह. 8:32) किस तरह यहोवा, उसके प्यार और उसके शानदार मकसद के बारे में सीखकर उनका दिल एहसान से भर आया था! (लूका 24:32 से तुलना कीजिए।) उन्हें याद दिलाइए कि समर्पित मसीहियों का परमेश्वर के साथ एक अटूट रिश्ता होता है और वे दिल खोलकर उससे प्रार्थना कर पाते हैं। उनसे गुज़ारिश कीजिए कि वे दोबारा ‘आनंदित परमेश्वर की महिमा के सुसमाचार’ को कबूल कर लें।—1 तीमु. 1:11, NW.
उन्हें प्यार दिखाते रहिए
16. उदाहरण देकर समझाइए कि आध्यात्मिक तौर पर मदद देने के लिए जो मेहनत की जाती है वह कैसे रंग लाती है।
16 हमने जिन सुझावों पर चर्चा की, क्या वे कारगर हैं? बेशक हैं। एक भाई की मिसाल लीजिए। वह 12 साल की उम्र में राज्य प्रचारक बना, मगर 15 की उम्र में सच्चाई में ठंडा पड़ गया। लेकिन बाद में वह फिर से जोशीला प्रचारक बना और अब पिछले 30 से भी ज़्यादा सालों से पूरे समय की सेवा कर रहा है। उसके अंदर यह जोश दोबारा कैसे पैदा हुआ? इसके पीछे काफी हद तक एक मसीही प्राचीन का हाथ था। वह प्रचारक कितना एहसानमंद था कि उस प्राचीन ने उसे आध्यात्मिक मदद दी!
17, 18. झुंड से भटकी हुई भेड़ की मदद करने के लिए आपको कौन-से गुण दिखाने पड़ सकते हैं?
17 सच्चाई में ठंडे पड़ चुके लोगों की मदद करने के लिए हम मसीहियों को कौन-सा गुण उकसाता है? प्यार का गुण। इस बारे में यीशु ने कहा: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:34, 35) जी हाँ, प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान है। क्या ऐसा प्यार उन बपतिस्मा-शुदा मसीहियों की खातिर नहीं दिखाया जाना चाहिए जो अब सच्चाई में ठंडे पड़ गए हैं? ज़रूर दिखाया जाना चाहिए! मगर उन्हें मदद देने के लिए प्यार के अलावा और भी कई गुण दिखाने की ज़रूरत पड़ सकती है।
18 अगर आपको किसी ऐसे मसीही की मदद करने के लिए कहा जाए, जो परमेश्वर के झुंड से भटक गया है, तो आपको कौन-से गुण दिखाने पड़ सकते हैं? प्यार के अलावा शायद आपको कृपा, दया, कोमलता और सहनशीलता जैसे गुण दिखाने पड़ें। और कभी-कभी ऐसे हालात भी पैदा हो सकते हैं जब आपको उसे माफ करना पड़े। पौलुस ने लिखा: “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। और यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्ध है बान्ध लो।”—कुलु. 3:12-14.
19. भटकी हुई भेड़ों को झुंड में वापस लाने के लिए आप जो मेहनत करते हैं, वह बेकार क्यों नहीं है?
19 अगले लेख में इस बात पर चर्चा की जाएगी कि परमेश्वर के झुंड से कुछ भेड़ें किन वजहों से भटक जाती हैं। और यह भी बताया जाएगा कि जब एक ठंडा पड़ चुका मसीही वापस आता है तो वह कलीसिया के भाई-बहनों से क्या उम्मीद कर सकता है। अगले लेख का अध्ययन करते वक्त इस लेख में सीखी हुई बातों को भी मन में रखिए और इस बात का यकीन रखिए कि भटकी हुई भेड़ों की मदद करने के लिए आप जो भी मेहनत करते हैं, वह बेकार नहीं जाएगी। इस दुनिया में लोग दौलत कमाने के लिए अपनी सारी ज़िंदगी लगा देते हैं, मगर दुनिया की तमाम दौलत से कहीं ज़्यादा कीमती है, एक इंसान की ज़िंदगी। यीशु ने खोयी हुई भेड़ के अपने दृष्टांत में इसी बात पर ज़ोर दिया था। (मत्ती 18:12-14) यहोवा की प्यारी भेड़ों को झुंड में वापस लाने के लिए जब आप कड़ी मेहनत करते हैं तो हमेशा याद रखिए कि उनकी ज़िंदगी अनमोल है।
आप क्या जवाब देंगे?
• झुंड से भटकी हुई भेड़ों के लिए मसीही चरवाहों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?
• आप उन मसीहियों की कैसे मदद कर सकते हैं, जो अब कलीसिया के साथ संगति नहीं करते?
• झुंड से भटकी हुई भेड़ों की मदद करने के लिए आपको कौन-से गुण दिखाने पड़ सकते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
मसीही चरवाहे भटकी हुई भेड़ों की प्यार से मदद करने की पूरी कोशिश करते हैं