क्या आप यहोवा के प्यार-भरे मार्गदर्शन के मुताबिक चलेंगे?
“मैं . . . सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।”—भज. 119:128.
1, 2. (क) अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए जब आप निर्देशन माँगते हैं, तब आप किस तरह की चेतावनियों की कदर करेंगे और क्यों? (ख) यहोवा अपने सेवकों को किस बारे में खबरदार करता है और क्यों?
कल्पना कीजिए: आपको किसी खास जगह जाना है। आप अपने ऐसे भरोसेमंद दोस्त से मदद लेते हैं, जिसे सही रास्ता मालूम है। वह आपको रास्ते की छोटी-से-छोटी जानकारी देते समय शायद कुछ ऐसा भी कहे: “उस मोड़ पर थोड़ी सावधानी बरतना। वहाँ जो निशान लगा है, वह तुम्हें गुमराह कर सकता है। बहुत-से लोग उस निशान से धोखा खाकर रास्ता भटक गए हैं।” क्या आप अपने दोस्त की ऐसी परवाह की कदर करेंगे और उसकी चेतावनी पर ध्यान देंगे? यहोवा भी ऐसे दोस्त की तरह है। वह हमें हमारी मंज़िल, अनंत जीवन तक पहुँचने के लिए बड़े ध्यान से निर्देशन देता है, साथ ही हमें ऐसे खतरों से आगाह करता है जिनसे हम रास्ता भटक सकते हैं।—व्यव. 5:32; यशा. 30:21.
2 इस और अगले लेख में हम कुछ ऐसे ही खतरों पर गौर करेंगे, जिनके बारे में हमारा दोस्त परमेश्वर यहोवा हमें खबरदार करता है। वह ऐसा इसलिए करता है क्योंकि उसे हमारी चिंता है और हमसे प्यार करता है। वह चाहता है कि हम अपनी मंज़िल तक पहुँचें। जब वह देखता है कि उसके लोगों पर दुनिया का बुरा असर हो रहा है और वे अपने रास्ते से भटक रहे हैं तो उसे बड़ा दुख होता है। (यहे. 33:11) इस लेख में हम तीन खतरों पर गौर करेंगे। एक है बाहरी, दूसरा अंदरूनी और तीसरा है ऐसी कल्पनाएँ जो खतरनाक साबित हो सकती हैं। हमें इनके बारे में जानने की ज़रूरत है और यह भी कि हमारा पिता यहोवा कैसे हमें इनका विरोध करना सिखाता है। एक भजनहार ने प्रेरित होकर यहोवा से कहा: मैं “सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं।” (भज. 119:128) क्या आप भी ऐसा ही करते हैं? आइए देखें कि आप कैसे बुरे मार्गों से और ज़्यादा बैर कर सकते हैं और उनसे दूर रह सकते हैं।
“बहुतों के पीछे” मत हो लेना
3. (क) जब हमें सही रास्ता नहीं मालूम होता तो बाकी मुसाफिरों के पीछे चलना क्यों खतरनाक हो सकता है? (ख) निर्गमन 23:2 में कौन-सा ज़रूरी सिद्धांत दिया गया है?
3 लंबे सफर पर निकलते वक्त अगर आपको रास्ता ठीक से नहीं पता, तो आप क्या करेंगे? आप शायद दूसरे मुसाफिरों के पीछे-पीछे जाने की सोचें खासकर तब, जब आप देखें कि लोगों की भीड़ भी उसी तरफ जा रही है। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि क्या पता मुसाफिर वहाँ न जा रहे हों, जहाँ आप जाना चाहते हैं या फिर हो सकता है कि वे आगे जाकर रास्ता भटक जाएँ। इस बारे में उस सिद्धांत पर गौर कीजिए जिस पर इसराएलियों को दिया एक नियम आधारित था। जो न्यायी के तौर पर काम करते थे या जो न्यायिक मामलों में गवाही देते थे, उन्हें सावधान किया गया था कि वे “बहुतों के पीछे” होकर कोई फैसला न करें। (निर्गमन 23:2 पढ़िए।) इसमें शक नहीं कि असिद्ध इंसान आसानी से साथियों के दबाव में आकर गलत न्याय कर बैठते हैं। लेकिन क्या दूसरों के पीछे न हो लेने का सिद्धांत सिर्फ न्यायिक मामलों तक सीमित है? नहीं, ऐसा नहीं है।
4, 5. किस तरह यहोशू और कालेब पर भीड़ के पीछे हो लेने का दबाव आया, लेकिन किस बात ने उन्हें विरोध करने की हिम्मत दी?
4 सच्चाई यह है कि “बहुतों के पीछे” हो लेने का खतरा हम पर हर वक्त मँडराता रहता है। यह दबाव हम पर कभी भी आ सकता है, जिसका विरोध करना मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए यहोशू और कालेब पर आए साथियों के दबाव के बारे में सोचिए। वे उन 12 पुरुषों के समूह में थे, जो वादा किए गए देश में जासूसी करने गए थे। लौटने पर दस पुरुषों ने बहुत बुरी और निराश करनेवाली खबर दी। उन्होंने यहाँ तक दावा किया कि वहाँ के कुछ लोग बड़े डील-डौलवाले नेफिलिम की संतान हैं, जो स्वर्गदूतों के स्त्रियों के साथ संबंध रखने की वजह से पैदा हुए थे। (उत्प. 6:4) यह बात कितनी बेतुकी थी। दुष्ट नेफिलिम तो सदियों पहले जल-प्रलय में नाश हो गए थे और उनकी एक भी संतान धरती पर नहीं बची थी। लेकिन इस तरह की बेबुनियादी बातें भी उन लोगों पर ज़बरदस्त असर कर जाती हैं, जिनका विश्वास कमज़ोर होता है। उन दस जासूसों से मिली बुरी खबर इसराएलियों में तुरंत फैल गयी और वे घबरा गए। उन्होंने मान लिया कि वादा किए हुए देश में जाने के लिए यहोवा के बताए रास्ते पर चलना बुद्धिमानी नहीं होगी। इन नाज़ुक हालात में यहोशू और कालेब ने क्या किया?—गिन. 13:25-33.
5 ये दोनों लोगों के पीछे नहीं हो लिए। उन्होंने सच्ची बात बतायी और उस पर टिके रहे, इसके बावजूद कि लोगों को उनकी बात रास नहीं आयी, यहाँ तक कि वे पत्थरवाह करके उन्हें मार डालने की सोचने लगे। लेकिन यहोशू और कालेब को इतना साहस कहाँ से मिला? इसमें शक नहीं कि यह काफी हद तक उनके विश्वास से मुमकिन हुआ। जिनमें विश्वास होता है वे बेतुकी बातों और परमेश्वर यहोवा के वादों में फर्क देख सकते हैं। आगे चलकर इन दोनों पुरुषों ने बताया कि यहोवा के दर्ज़ हर वादे को पूरा होते देखकर उन्हें कैसा महसूस हुआ। (यहोशू 14:6, 8; 23:2, 14 पढ़िए।) यहोशू और कालेब अपने वफादार परमेश्वर से बहुत प्यार करते थे और अविश्वासी भीड़ के पीछे होकर वे यहोवा को दुख पहुँचाने की सोच भी नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने निडर होकर अपनी बात कही और हमारे लिए एक उम्दा उदाहरण पेश किया।—गिन. 14:1-10.
6. हम पर किन तरीकों से बहुतों के पीछे हो लेने के दबाव आ सकता है?
6 क्या आप पर कभी बहुतों के पीछे हो लेने का दबाव आया है? जो यहोवा को नहीं जानते और जो उसके नैतिक स्तरों का मज़ाक उड़ाते हैं, ऐसे लोग आज भारी तादाद में हैं। मौज-मस्ती के लिए ये लोग ऐसे विचार फैलाते हैं जिनका कोई आधार नहीं होता। वे टीवी कार्यक्रमों, फिल्मों और वीडियो गेम्स में अनैतिकता, हिंसा और भूत-प्रेतों की बातों को खूब बढ़-चढ़कर दिखाते हैं मानों इनसे कोई नुकसान नहीं होता। (2 तीमु. 3:1-5) जब आप अपने और अपने परिवार के लिए मनोरंजन का चुनाव करते हैं तो क्या आप दूसरों के कमज़ोर विवेक के आधार पर फैसला करते हैं और अपने विवेक को उनके मुताबिक ढाल लेते हैं? क्या ऐसा करना “बहुतों के पीछे” हो लेना नहीं होगा?
7, 8. (क) हम अपनी “सोचने-समझने की शक्ति” को कैसे तालीम दे सकते हैं और ऐसी तालीम, नियमों की सूची का पालन करने से बेहतर क्यों है? (ख) बहुत-से जवान मसीहियों का उदाहरण क्यों आपके दिल को छू जाता है?
7 यहोवा ने हमें “सोचने-समझने की शक्ति” दी है, जिसकी बदौलत हम अपने फैसले खुद ले पाते हैं। लेकिन इस शक्ति का “इस्तेमाल” करके पहले इसे तालीम देने की ज़रूरत है। (इब्रा. 5:14) अगर हम आँख मूँदकर लोगों के पीछे हो लेंगे, या बस नियमों की लंबी सूची के मुताबिक चलेंगे तो हम अपनी सोचने-समझने की शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर पाएँगे। इसलिए यहोवा के लोगों को इस बारे में कोई सूची नहीं दी जाती कि उन्हें कैसी फिल्मों, किताबों और इंटरनेट की साइटों से दूर रहना है क्योंकि दुनिया बड़ी तेज़ी से बदल रही है और ऐसी सूची जल्द ही पुरानी हो जाएगी। (1 कुरिं. 7:31) इससे भी बदतर ऐसी सूची पर चलने से हम ध्यान देकर और प्रार्थना के ज़रिए बाइबल सिद्धांतों को परखने से चूक जाएँगे, जिनके आधार पर हमें फैसले लेने होते हैं।—इफि. 5:10.
8 यह सच है कि बाइबल पर आधारित फैसले करने की वजह से कई बार लोग हमें पसंद नहीं करते। स्कूल जानेवाले मसीही जवानों को भी ज़बरदस्त दबावों का सामना करना पड़ता है। वे भी वैसा ही करने और देखने के दबाव में आ सकते हैं, जैसा लोग करते और देखते हैं। (1 पत. 4:4) लेकिन हमें यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि हमारे मसीही जवान और बुज़ुर्ग, सभी यहोशू और कालेब की तरह विश्वास दिखाते हैं और भेड़चाल में शामिल नहीं होते।
“अपने मन और अपनी अपनी दृष्टि” के वश में न होना
9. (क) सफर करते समय अपने मन की सुनकर दूसरा रास्ता चुनना क्यों खतरनाक हो सकता है? (ख) गिनती 15:37-39 में पाया जानेवाला नियम इसराएलियों के लिए क्यों ज़रूरी था?
9 अब हम दूसरे खतरे के बारे में चर्चा करेंगे, जो है अंदरूनी। हम इसे ऐसे समझ सकते हैं: आप अपने नक्शे के मुताबिक अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रहे हैं और अचानक आप ऐसा मोड़ देखते हैं, जहाँ से बड़ा प्यारा नज़ारा दिखायी देता है। क्या आप आवेग में आकर उसी रास्ते पर चल पड़ेंगे? साफ है कि अगर आप मन के वश में होकर ऐसा करेंगे, तो आप अपनी मंज़िल तक कभी नहीं पहुँचेंगे। इस बारे में यहोवा के एक और नियम पर गौर कीजिए जो उसने प्राचीन इसराएल को दिया था। आज बहुत-से लोगों को यह समझना मुश्किल लग सकता है कि परमेश्वर ने उन्हें क्यों अपने कपड़ों में झालर और नीला फीता लगाने को कहा था। (गिनती 15:37-39 पढ़िए।) क्या आप समझ सकते हैं, ऐसा करना क्यों ज़रूरी था? इस नियम का पालन करके परमेश्वर के लोग, झूठे धर्म के लोगों से खुद को अलग रख सकते थे और इससे उन्हें परमेश्वर की मंज़ूरी मिलती। (लैव्य. 18:24, 25) लेकिन यह नियम हम इंसानों की एक कमज़ोरी को भी उजागर करता है, जो हमें हमारी मंज़िल यानी हमेशा की ज़िंदगी से दूर ले जा सकती है। वह कैसे?
10. यहोवा ने कैसे दिखाया कि वह इंसानी स्वभाव को बखूबी पहचानता है?
10 गौर कीजिए कि यहोवा ने इस नियम को देने का क्या कारण बताया: “तुम अपने अपने मन और अपनी अपनी दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो।” यहोवा इंसानी स्वभाव को बखूबी पहचानता है। वह जानता है कि हम आँखों से जो देखते हैं, वह हमारे मन को बहका सकता है। तभी तो बाइबल हमें यह चेतावनी देती है: “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देनेवाला होता है, उस में असाध्य रोग लगा है; उसका भेद कौन समझ सकता है?” (यिर्म. 17:9) क्या अब आपने जाना कि इसराएलियों को दी गयी चेतावनी क्यों बिलकुल ठीक थी? यहोवा को मालूम था कि इसराएली झूठे धर्म के लोगों के तौर-तरीके देखेंगे और बहक जाएँगे। उनका दिल चाहेगा कि वे भी उन लोगों की तरह बनें और फिर वे उनकी तरह सोचने, महसूस और काम करने लगेंगे।—नीति. 13:20.
11. हमारी आँखें हमें कैसे लुभा सकती हैं?
11 हमारे दिनों में अपनी आँखों से दिल को धोखा देना और भी आसान हो गया है। आज दुनिया अपनी चमक-दमक से आँखों को और ज़्यादा लुभा रही है। ऐसे में हम गिनती 15:39 में दिए सिद्धांत को अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं? गौर कीजिए: अगर आपके स्कूल या काम की जगह पर या पास-पड़ोस में लोग उत्तेजित करनेवाले छोटे और तंग कपड़े पहनते हैं तो क्या आप पर इसका असर हो सकता है? क्या आप भी ‘अपने मन और दृष्टि’ के वश में होकर बहक सकते हैं? और फिर उनकी तरह कपड़े पहनकर अपने स्तरों को गिरा सकते हैं?—रोमि. 12:1, 2.
12, 13. (क) अगर हमारी आँखें ऐसी चीज़ें देखती हैं जो उन्हें नहीं देखनी चाहिए तो हम क्या कर सकते हैं? (ख) क्या बात हमारी मदद करेगी ताकि हम दूसरों के लिए प्रलोभन का कारण न बनें?
12 हमें संयम पैदा करने की सख्त ज़रूरत है। अगर हमारी आँखें ऐसी चीज़ें देखती हैं जो उन्हें नहीं देखनी चाहिए तो हमें वफादार अय्यूब के मज़बूत इरादे को याद करना चाहिए। उसने अपनी आँखों से एक वाचा बाँधी थी और ठान लिया था कि वह अपनी पत्नी के सिवाय किसी और को रोमानी तौर पर नहीं देखेगा। (अय्यू 31:1) उसी तरह राजा दाविद ने ठाना था: “मैं किसी ओछे काम पर चित्त न लगाऊंगा।” (भज. 101:3) जिन कामों से हमारा साफ ज़मीर दूषित हो जाता है और यहोवा के साथ हमारा रिश्ता खराब हो जाता है, वे सभी “ओछे काम” हैं। इनमें वे प्रलोभन शामिल हैं, जो आँखों को लुभाते हैं और दिल को गलत काम करने के लिए बहकाते हैं।
13 बेशक हम कभी नहीं चाहेंगे कि हम “ओछे काम” करें और दूसरों को गलत रास्ते पर चलने के लिए लुभाएँ। इसलिए हम सलीकेदार कपड़े पहनने की परमेश्वर की सलाह को गंभीरता से लेंगे। (1 तीमु. 2:9) सलीकेदार कपड़े सिर्फ आपकी पसंद-नापसंद से ताल्लुक नहीं रखते, बल्कि इसमें दूसरों के ज़मीर और भावनाओं का ख्याल रखना भी शामिल है। हमें अपनी मरज़ी से ज़्यादा दूसरों के मन की शांति और भलाई का ध्यान रखना चाहिए। (रोमि. 15:1, 2) हमारी मसीही मंडलियों में हज़ारों जवान हैं, जिन्होंने इस मामले में बेहतरीन मिसाल रखी है। जब वे ‘अपने मन और दृष्टि के वश में’ रहने के बजाय, हर काम से यहाँ तक कि अपने पहनावे से भी यहोवा को खुश करते हैं तो हमें उन पर बड़ा गर्व होता है।
“व्यर्थ वस्तुओं” का पीछा मत करना
14. “व्यर्थ” बातों के पीछे भागने के बारे में शमूएल ने क्या चेतावनी दी?
14 कल्पना कीजिए कि आप सफर के दौरान एक बड़े रेगिस्तान से गुज़र रहे हैं। अचानक आपको लगता है कि वहाँ पानी है, जो एक मृग तृष्णा है। क्या होगा अगर आप उस भ्रम में अपना रास्ता छोड़ दें? आपकी जान खतरे में पड़ सकती है। यहोवा अच्छी तरह जानता है कि जो चीज़ असल नहीं, उस पर भरोसा रखना कितना जानलेवा होता है। एक उदाहरण पर गौर कीजिए। इसराएली अपने लिए इंसानी राजा चाहते थे, जैसा उनके आस-पास के देशों में हुआ करते थे। ऐसी इच्छा दरअसल घोर पाप था क्योंकि इस तरह वे अपने राजा यहोवा परमेश्वर को ठुकरा रहे थे। हालाँकि यहोवा ने उन्हें इंसानी राजाओं की इजाज़त दे दी, मगर उसने भविष्यवक्ता शमूएल के ज़रिए उन्हें आगाह किया कि वे “व्यर्थ” या भ्रम में डालनेवाली बातों के पीछे भाग रहे हैं।—1 शमूएल 12:21 पढ़िए।
15. किन तरीकों से इसराएली व्यर्थ बातों के पीछे भाग रहे थे?
15 क्या उन लोगों ने यह सोचा था कि यहोवा के बजाय वे इंसानी राजाओं पर ज़्यादा भरोसा रख सकते हैं, जो दिखायी देते हैं? अगर ऐसी बात थी तो वे वाकई व्यर्थ बातों के पीछे भाग रहे थे। इससे वे भ्रम में डालनेवाली शैतान की दूसरी बातों में फँस सकते थे। इंसानी राजा उन्हें आसानी से मूर्तिपूजा में फँसा सकते थे। मूर्तिपूजकों को यह भ्रम होता है कि दिखायी देनेवाले लकड़ी और पत्थर के देवता ही सच्चे और भरोसे के लायक हैं। उन्हें अदृश्य परमेश्वर यहोवा, पर भरोसा नहीं होता जिसने सारी कायनात रची है। लेकिन प्रेषित पौलुस ने साफ बताया कि मूर्तियाँ “कुछ नहीं” हैं। (1 कुरिं. 8:4) हालाँकि आप उन्हें देख और छू सकते हैं, लेकिन वे न तो देख सकती हैं, ना ही सुन, बोल या काम कर सकती हैं। अगर आप उनकी पूजा करने लगें तो आप व्यर्थ बातों के पीछे जा रहे होंगे, जो सिर्फ तबाह करनेवाली मृग तृष्णा है!—भज. 115:4-8.
16. (क) व्यर्थ बातों के पीछे भागने के लिए शैतान कैसे बहुतों को फँसा रहा है? (ख) हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर के मुकाबले धन-दौलत व्यर्थ है?
16 शैतान आज भी लोगों को व्यर्थ बातों के पीछे भागने के लिए कायल करता है। उदाहरण के लिए उसने अनगिनत लोगों को यह भरोसा दिलाया है कि धन-दौलत ही उन्हें सच्ची सुरक्षा दे सकती है। पैसा, विरासत और ऊँची तनख्वाहवाली नौकरी दिखने में फायदेमंद लग सकती है। लेकिन जब हमारी सेहत खराब हो जाती है, आर्थिक व्यवस्था डगमगाती है, या कुदरती आफत टूट पड़ती है तब क्या यह धन-दौलत काम आती है? जब लोग खालीपन महसूस करते हैं, एक मकसद या सही राह की तलाश में होते हैं और जीवन के गंभीर सवालों का जवाब पाना चाहते हैं, तब क्या रुपया-पैसा उनकी ये ज़रूरतें पूरी करता है? क्या पैसा मौत से निजात दिल सकता है? अगर हम रुपये-पैसे से अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी करने की कोशिश करेंगे तब भी हमें निराशा हाथ लगेगी। धन-दौलत हमें खुशियाँ नहीं दे सकती, हमें बीमारी और मौत से छुटकारा नहीं दिला सकती, यह सिर्फ भ्रम है। (नीति. 23:4, 5) लेकिन हमारा परमेश्वर यहोवा कितना सच्चा है! अगर हमारा उसके साथ मज़बूत रिश्ता है, तो हमें ज़रूर सच्ची सुरक्षा मिलेगी। क्या ही अनमोल आशीष! आइए हम कभी भ्रम या व्यर्थ बातों के चक्कर में ना आएँ बल्कि हमेशा परमेश्वर यहोवा के वफादार रहें।
17. इस लेख में बताए खतरों के बारे में आपने क्या करने की ठान ली है?
17 क्या हमारे लिए यह आशीष नहीं कि यहोवा हमारा दोस्त है और जीवन के सफर में हमें राह दिखाता है? अगर हम परमेश्वर की प्यार-भरी चेतावनियों पर ध्यान दें और इन तीन खतरों, जैसे भेड़चाल, अपने मन और भ्रम में डालनेवाली बातों से सावधान रहें, तो मुमकिन है कि हम अपने अनंत जीवन की मंज़िल तक पहुँच जाएँगे। आइए अगले लेख में हम यहोवा की तीन और चेतावनियों पर गौर करें जो हमें गलत रास्तों से नफरत करने और उनसे दूर रहने में मदद देती हैं, जिन पर चलकर कई लोग भटक चुके हैं।—भज. 119:128.
आप क्या सोचते हैं?
नीचे की आयतों में दिए गए सिद्धांत आप कैसे निजी तौर पर लागू कर सकते हैं?
[पेज 11 पर तसवीर]
क्या आप पर बहुतों के पीछे हो लेने का दबाव आया है?
[पेज 13 पर तसवीर]
आवेग में आकर कदम उठाने का क्या खतरा हो सकता है?
[पेज 14 पर तसवीर]
क्या आप व्यर्थ बातों के पीछे भाग रहे हैं?