अध्ययन लेख 6
भरोसा रखिए कि यहोवा जो भी करता है, सही करता है
“वह चट्टान है, उसका काम खरा है, क्योंकि वह जो कुछ करता है न्याय के मुताबिक करता है। वह विश्वासयोग्य परमेश्वर है जो कभी अन्याय नहीं करता, वह नेक और सीधा-सच्चा है।”—व्यव. 32:4.
गीत 3 हमारी ताकत, आशा और भरोसा
एक झलकa
1-2. (क) आज बहुत-से लोगों का अधिकारियों से भरोसा क्यों उठ गया है? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
आज बहुत-से लोग किसी भी अधिकारी पर भरोसा नहीं कर पाते। उन्होंने देखा है कि चाहे मंत्री हों या अदालत के जज-वकील, वे अमीरों की तरफदारी करते हैं और गरीबों के साथ अन्याय करते हैं। बाइबल में लिखी यह बात कितनी सच है, “इंसान, इंसान पर हुक्म चलाकर सिर्फ तकलीफें लाया है।” (सभो. 8:9) इतना ही नहीं, कुछ धर्म गुरु भी बुरे-बुरे काम करते हैं। यह देखकर लोगों का परमेश्वर से भी भरोसा उठ गया है। इसलिए जब कोई व्यक्ति बाइबल के बारे में जानने लगता है, तो उसके लिए यहोवा और उसके संगठन में अगुवाई करनेवाले भाइयों पर भरोसा करना मुश्किल होता है।
2 बाइबल विद्यार्थियों को तो यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा बढ़ाना ही चाहिए। लेकिन उनके साथ-साथ हमें भी भरोसा बढ़ाना चाहिए, फिर चाहे हम यहोवा की उपासना सालों से क्यों न कर रहे हों। कई बार ऐसे हालात उठते हैं, जिनमें इस बात पर भरोसा करना मुश्किल हो सकता है कि यहोवा का काम करने का तरीका हमेशा सही है। इस लेख में हम खासकर तीन हालात के बारे में चर्चा करेंगे: (1) जब हम बाइबल का कोई किस्सा पढ़ते हैं, (2) जब हमें यहोवा के संगठन से कोई हिदायत मिलती है और (3) भविष्य में जब हम मुश्किलों का सामना करेंगे।
बाइबल पढ़ते वक्त यहोवा पर भरोसा कीजिए
3. बाइबल के कुछ किस्से पढ़ने से हमारे मन में किस तरह के सवाल आ सकते हैं?
3 बाइबल में किसी घटना के बारे में पढ़ते वक्त, शायद हमें समझ न आए कि यहोवा ने एक व्यक्ति के साथ जो किया, क्यों किया या उसने जो फैसला लिया, क्यों लिया। उदाहरण के लिए, गिनती की किताब में बताया गया है कि यहोवा ने एक इसराएली को मौत की सज़ा दी, क्योंकि वह सब्त के दिन लकड़ियाँ इकट्ठा कर रहा था। (गिन. 15:32, 35) और दूसरा शमूएल में बताया गया है कि जब दाविद ने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया और उसके पति उरियाह को मरवा डाला, तो यहोवा ने उसे माफ कर दिया। (2 शमू. 12:9, 13) इन घटनाओं को पढ़ने के बाद शायद हम सोचें, ‘यहोवा ने उस आदमी को एक छोटी-सी गलती के लिए इतनी बड़ी सज़ा क्यों दी, जबकि उसने दाविद के बड़े-बड़े पापों के लिए उसे माफ कर दिया?’ बाइबल पढ़ते वक्त अगर हम तीन बातों का ध्यान रखें, तो हमें इस सवाल का जवाब मिलेगा।
4. उत्पत्ति 18:20, 21 और व्यवस्थाविवरण 10:17 से कैसे पता चलता है कि यहोवा के फैसले हमेशा सही होते हैं?
4 बाइबल में हर घटना की पूरी जानकारी नहीं दी गयी है। उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि दाविद को अपने किए पर सच्चा पछतावा था। (भज. 51:2-4) लेकिन जिस इसराएली ने सब्त का नियम तोड़ा था, हम नहीं जानते कि वह कैसा इंसान था। क्या उसे अपने किए पर अफसोस था? क्या उसने पहले भी कई बार यहोवा का कानून तोड़ा था? जब उसे चेतावनी दी गयी, तो क्या उसने सुना या अनसुना कर दिया? इस बारे में बाइबल में कुछ नहीं बताया गया है। लेकिन एक बात पक्की है, यहोवा “कभी अन्याय नहीं करता।” (व्यव. 32:4) वह इंसानों की तरह सुनी-सुनायी बातों पर यकीन नहीं करता, किसी के साथ भेदभाव नहीं करता और न ही किसी और वजह से अन्याय करता है। वह अपने फैसले सबूतों के आधार पर लेता है। (उत्पत्ति 18:20, 21; व्यवस्थाविवरण 10:17 पढ़िए।) हम यहोवा और उसके स्तरों के बारे में जितना सीखेंगे, उतना हमें यकीन होगा कि यहोवा के फैसले हमेशा सही होते हैं। भले ही बाइबल का कोई किस्सा पढ़ते वक्त हमारे मन में सवाल आएँ, फिर भी हम यहोवा के बारे में जितना जानते हैं उससे हमें यकीन होता है कि वह “हर काम में नेक है।”—भज. 145:17.
5. अपरिपूर्ण होने की वजह से क्या हो सकता है? (“अपरिपूर्णता हमारे नज़रिए को धुँधला कर देती है” बक्स पर भी ध्यान दें।)
5 अपरिपूर्ण होने की वजह से हम हर मामले को सही नज़र से नहीं देख पाते। यहोवा ने हमें अपनी छवि में बनाया है, इसलिए हम चाहते हैं कि सबके साथ न्याय हो। (उत्प. 1:26) लेकिन अपरिपूर्ण होने की वजह से कई बार हम मामले को गलत नज़र से देखते हैं। ऐसा तब भी हो सकता है, जब शायद हमें लगे कि हमें मामले की पूरी जानकारी है। योना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब नीनवे के लोगों ने पश्चाताप किया, तो यहोवा ने उन पर दया करने का फैसला किया। इस पर योना को बहुत गुस्सा आया और उसे लगा कि यहोवा का फैसला गलत है। (योना 3:10–4:1) लेकिन गौर कीजिए, यहोवा की दया की वजह से क्या हुआ। नीनवे के 1,20,000 से भी ज़्यादा लोगों की जान बच गयी! बाद में योना को एहसास हुआ कि यहोवा नहीं, बल्कि वह गलत है।
6. यहोवा को क्यों अपने हर फैसले की वजह बताने की ज़रूरत नहीं है?
6 यहोवा को अपने हर फैसले की वजह बताने की ज़रूरत नहीं है। यह सच है कि कई बार कोई फैसला लेने से पहले या बाद में उसने अपने सेवकों की राय ली। (उत्प. 18:25; योना 4:2, 3) और कुछ मौकों पर उसने अपने फैसले की वजह भी बतायी। (योना 4:10, 11) लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हर बार उसे ऐसा करना है। उसी ने सबकुछ बनाया है। इसलिए कुछ भी करने से पहले उसे हमसे पूछने की ज़रूरत नहीं है और न ही कुछ करने के बाद, हमें सफाई देने की ज़रूरत है।—यशा. 40:13, 14; 55:9.
यहोवा पर भरोसा कीजिए और हिदायतें मानिए
7. हमें किन पर भरोसा करना मुश्किल लग सकता है और क्यों?
7 हो सकता है कि हमें इस बात का पूरा भरोसा हो कि यहोवा का काम करने का तरीका हमेशा सही है। लेकिन वह अपने संगठन में जिन भाइयों को अगुवाई करने के लिए ठहराता है, उन पर यकीन करना शायद हमें मुश्किल लगे। हम शायद सोचें कि क्या वे यहोवा की हिदायतों के मुताबिक काम करते हैं या अपने मन-मुताबिक। पुराने ज़माने के कुछ लोगों की भी यही सोच रही होगी। आइए पैराग्राफ 3 में दी मिसालों की बात करें। जिस आदमी ने सब्त का नियम तोड़ा था, उसके एक रिश्तेदार के मन में शायद यह सवाल आया हो, ‘क्या मूसा ने मौत की सज़ा सुनाने से पहले वाकई यहोवा से बात की?’ और उरियाह के किसी दोस्त ने सोचा होगा कि ‘दाविद तो राजा है। उसने सज़ा से बचने के लिए ज़रूर अपनी पदवी का फायदा उठाया होगा।’ लेकिन ज़रा सोचिए, यहोवा अगुवाई करनेवाले भाइयों पर पूरा भरोसा करता है। इसलिए अगर हम उन पर भरोसा नहीं करते, तो हम कैसे कह सकते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है?
8. पहली सदी की मंडलियों और आज के संगठन में क्या बात एक-जैसी है? (प्रेषितों 16:4, 5)
8 आज यहोवा ने संगठन की अगुवाई करने के लिए “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को ठहराया है। (मत्ती 24:45) पहली सदी के शासी निकाय की तरह, यह दास परमेश्वर के सभी लोगों की निगरानी करता है और प्राचीनों को हिदायतें देता है। (प्रेषितों 16:4, 5 पढ़िए।) प्राचीन उन्हीं हिदायतों के मुताबिक मंडली में काम करते हैं। इसलिए जब हम प्राचीनों और संगठन से मिलनेवाली हिदायतें मानते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमें यहोवा के काम करने के तरीके पर भरोसा है।
9. प्राचीनों का फैसला मानना हमें कब मुश्किल लग सकता है और क्यों?
9 कई बार प्राचीनों का फैसला मानना हमें मुश्किल लग सकता है। उदाहरण के लिए, हाल के सालों में बहुत-सी मंडलियों को मिला दिया गया और इस वजह से कुछ मंडलियों को दूसरे सर्किट में डाल दिया गया। ऐसे में राज-घरों का अच्छा इस्तेमाल करने के लिए प्राचीनों ने कुछ प्रचारकों से कहा कि वे दूसरी मंडली में जाएँ। अगर हमसे दूसरी मंडली में जाने के लिए कहा जाए, तो क्या हम जाएँगे? ऐसा करना शायद हमें मुश्किल लगे, क्योंकि हमें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को छोड़कर जाना पड़ सकता है। एक और वजह से यह हिदायत मानना हमें मुश्किल लग सकता है। यहोवा प्राचीनों को नहीं बताता कि उन्हें किसे भेजना चाहिए और किसे नहीं। यह फैसला वे खुद लेते हैं। लेकिन यहोवा को उन पर भरोसा है, इसलिए हमें भी उन पर भरोसा करना चाहिए और उनकी बात माननी चाहिए।b
10. हमें प्राचीनों के फैसले क्यों मानने चाहिए? (इब्रानियों 13:17)
10 कई बार हम प्राचीनों के फैसलों से सहमत नहीं होते, तब भी हमें उन्हें मानना चाहिए। क्यों? क्योंकि ऐसा करने से हमारे बीच शांति और एकता बनी रहेगी। (इफि. 4:2, 3) इसके अलावा, प्राचीनों का निकाय जो फैसले लेता है, उन्हें मानने से मंडली में प्यार और खुशी का माहौल बना रहेगा। (इब्रानियों 13:17 पढ़िए।) प्राचीनों के फैसले मानने की एक और बड़ी वजह है। यहोवा ने प्राचीनों पर भरोसा करके मंडली की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी उन्हें दी है। (प्रेषि. 20:28) इसलिए जब हम उन पर भरोसा करते हैं, तो हम यहोवा पर भरोसा करते हैं।
11. प्राचीनों से मिलनेवाली हिदायतें सही हैं, इस बात पर हम कैसे यकीन कर सकते हैं?
11 हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि प्राचीन जो हिदायतें देते हैं, वे सही हैं? ध्यान दीजिए कि जब भी वे मंडली से जुड़े मामलों के बारे में बात करते हैं, तो वे पहले प्रार्थना करते हैं और पवित्र शक्ति माँगते हैं। फिर वे बाइबल के सिद्धांतों पर गौर करते हैं और संगठन से मिली हिदायतें मानते हैं। प्राचीन दिल से यहोवा को खुश करना चाहते हैं और उसके लोगों की अच्छी देखभाल करना चाहते हैं। वे यह भी जानते हैं कि उन्हें यहोवा को इसका लेखा देना होगा। (1 पत. 5:2, 3) ज़रा सोचिए, एक तरफ जहाँ दुनिया के लोगों में जाति, धर्म और राजनीतिक मसलों को लेकर फूट पड़ी है, वहीं दूसरी तरफ यहोवा की उपासना करनेवालों में एकता है। यह सिर्फ और सिर्फ इसलिए हो पाया है क्योंकि यहोवा अपने संगठन पर आशीष दे रहा है!
12. प्राचीन कैसे पता लगाते हैं कि पाप करनेवाले को पछतावा है या नहीं?
12 यहोवा ने प्राचीनों को एक बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। वह है, मंडली को शुद्ध बनाए रखना। जब कोई मसीही बड़ा पाप करता है, तो यहोवा चाहता है कि प्राचीन फैसला करें कि उसे मंडली में रहने देना है या निकाल देना है। लेकिन यह फैसला करना आसान नहीं है। प्राचीनों को पता लगाना होता है कि क्या उस व्यक्ति को अपने किए पर सच्चा पछतावा है। वह व्यक्ति शायद “हाँ” कहे, लेकिन उसके काम क्या दिखाते हैं? उसने जो पाप किया है, क्या उसे उससे नफरत है? क्या उसने ठान लिया है कि वह यह गलती दोबारा नहीं करेगा? अगर बुरे दोस्तों की वजह से उसने पाप किया है, तो क्या वह उन्हें छोड़ने के लिए तैयार है? प्राचीन यहोवा से प्रार्थना करते हैं, सबूतों की जाँच करते हैं, बाइबल के सिद्धांतों पर गौर करते हैं और पाप करनेवाले का रवैया देखते हैं। इसके बाद वे फैसला लेते हैं कि उसका बहिष्कार करें या नहीं। कुछ मामलों में एक व्यक्ति को बहिष्कृत करना पड़ता है। —1 कुरिं. 5:11-13.
13. जब हमारे किसी दोस्त या रिश्तेदार का बहिष्कार हो जाता है, तो हम क्या सोचने लग सकते हैं?
13 अगर एक बहिष्कृत व्यक्ति हमारा दोस्त या रिश्तेदार नहीं है, तो प्राचीनों का फैसला मानना हमारे लिए आसान होता है। लेकिन अगर वह हमारा दोस्त या रिश्तेदार है, तो क्या हम तब भी प्राचीनों पर भरोसा करेंगे और उनका फैसला मानेंगे? हो सकता है कि हम सोचें, ‘क्या प्राचीनों ने वाकई सारे सबूतों की जाँच की है? क्या उन्होंने सच में यहोवा की नज़र से मामले को देखा है?’ आइए जानें कि ऐसे में सही सोच रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं।
14. अगर हमारे किसी दोस्त या रिश्तेदार को बहिष्कृत किया जाता है, तो हमें कौन-सी बातें याद रखनी चाहिए?
14 हमें याद रखना चाहिए कि बहिष्कार करने का इंतज़ाम यहोवा की तरफ से है। इससे मंडली को तो फायदा होता ही है, लेकिन इसके साथ-साथ पाप करनेवाले को भी फायदा हो सकता है। अगर वह पश्चाताप नहीं करता और उसे मंडली में रहने दिया जाए, तो उसकी देखा-देखी दूसरे भी गलत काम करने लग सकते हैं। (गला. 5:9) खुद उसे भी अपनी गलती का एहसास नहीं होगा। इस वजह से वह न तो अपनी सोच सुधारेगा और न ही अपने गलत काम छोड़कर यहोवा की मंज़ूरी पाने की कोशिश करेगा। (सभो. 8:11) हम यकीन रख सकते हैं कि प्राचीन इस मामले में बहुत सोच-समझकर फैसला लेते हैं। उन्हें एहसास है कि इसराएल के न्यायियों की तरह, वे “इंसान की तरफ से नहीं, यहोवा की तरफ से न्याय करते” हैं।—2 इति. 19:6, 7.
आज यहोवा पर भरोसा करेंगे, तो आगे भी कर पाएँगे
15. आज हमें यहोवा की हर हिदायत क्यों माननी चाहिए?
15 इस दुनिया का अंत बहुत करीब है, इसलिए हमें यहोवा के काम करने के तरीके पर और भी भरोसा करना चाहिए। क्यों? क्योंकि महा-संकट के दौरान हमें शायद ऐसी हिदायतें मिलें, जो हमें अजीब या बेतुकी लगें। उस वक्त यहोवा हममें से हरेक से बात नहीं करेगा, बल्कि शायद अगुवाई करनेवाले भाइयों के ज़रिए हमें हिदायतें देगा। वह वक्त यह सोचने का नहीं होगा कि क्या ये हिदायतें वाकई यहोवा की तरफ से हैं या प्राचीन अपनी चला रहे हैं। उस मुश्किल दौर में क्या आप यहोवा और उसके संगठन पर भरोसा करेंगे? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आप अभी क्या कर रहे हैं। अगर आप आज यहोवा के संगठन से मिलनेवाली हर हिदायत मानते हैं, तो महा-संकट के दौरान भी आप ऐसा कर पाएँगे।—लूका 16:10.
16. भविष्य में यहोवा पर भरोसा करना क्यों मुश्किल हो सकता है?
16 हमें एक और बात पर गहराई से सोचना चाहिए। वह यह कि दुनिया के अंत के समय यहोवा जो फैसले लेगा, क्या हम उन्हें मानेंगे? आज हम उम्मीद तो करते हैं कि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग, यहाँ तक कि हमारे रिश्तेदार भी, यहोवा को जानें और उनकी जान बचे। लेकिन हर-मगिदोन में उनकी जान बचेगी या नहीं, यह यहोवा के हाथ में है। वह यीशु के ज़रिए फैसला सुनाएगा कि किस पर दया की जानी चाहिए और किस पर नहीं। (मत्ती 25:31-34, 41, 46; 2 थिस्स. 1:7-9) क्या उस वक्त हम यहोवा का फैसला मानेंगे या उसकी सेवा करना छोड़ देंगे? हमें अभी से यहोवा पर पूरा भरोसा करना होगा, तभी भविष्य में हम उस पर भरोसा कर पाएँगे।
17. भविष्य में यहोवा जो फैसले लेगा, उनसे हमें कौन-सी आशीषें मिलेंगी?
17 जब यहोवा इस दुनिया का नाश करके नयी दुनिया लाएगा, तो सोचिए उस वक्त हमें कैसा लगेगा। झूठे धर्म नहीं होंगे। ऐसे कारोबार और सरकारें मिट जाएँगी, जिनकी वजह से लोगों को बहुत तकलीफें सहनी पड़ीं। सब सेहतमंद होंगे, बुढ़ापा नहीं होगा, यहाँ तक कि मौत भी नहीं रहेगी। शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को हज़ार साल के लिए कैद किया जाएगा। उनकी बगावत की वजह से जो भी नुकसान हुआ है, उसे ठीक किया जाएगा। (प्रका. 20:2, 3) उस वक्त हम कितने खुश होंगे कि हमने यहोवा के काम करने के तरीके पर भरोसा किया।
18. इसराएलियों से हम क्या सीखते हैं? (गिनती 11:4-6; 21:5)
18 नयी दुनिया में भी कुछ ऐसे हालात आ सकते हैं, जिनमें हमें यहोवा के काम करने के तरीके पर भरोसा करना पड़े। याद कीजिए कि मिस्र से आज़ाद होने के तुरंत बाद, कुछ इसराएलियों ने क्या किया। यहोवा का एहसान मानने के बजाय वे शिकायत करने लगे। मिस्र में उन्हें जो ताज़ा खाना मिलता था, वे उसे याद करने लगे और यहोवा ने उन्हें जो मन्ना दिया था, उसे बेकार समझने लगे। (गिनती 11:4-6; 21:5 पढ़िए।) अगर हम सावधान न रहें, तो महा-संकट के बाद हम भी उनकी तरह बन सकते हैं। हमें नहीं पता कि धरती को फिरदौस बनाने के लिए कितना काम होगा या कितना समय लगेगा। शुरू-शुरू में शायद ज़िंदगी इतनी आसान न हो। ऐसे में क्या हम शिकायत करेंगे या यहोवा का एहसान मानेंगे? यहोवा आज हमारे लिए जो कर रहा है, अगर हम उसका एहसान मानें, तो भविष्य में भी हम उसका एहसान ज़रूर मानेंगे।
19. इस लेख से हमने कौन-सी खास बातें सीखीं?
19 इस लेख से हमने सीखा कि हमें पूरा यकीन होना चाहिए कि यहोवा का काम करने का तरीका हमेशा सही है। हमें उन लोगों पर भी भरोसा करना चाहिए, जिन पर यहोवा भरोसा करता है। आइए हम उन शब्दों को याद रखें, जो यहोवा ने भविष्यवक्ता यशायाह के ज़रिए कहे थे, “शांत रहो और मुझ पर भरोसा करो। तब तुम्हें हिम्मत मिलेगी।”—यशा. 30:15.
गीत 98 परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा शास्त्र
a इस लेख में हम सीखेंगे कि यहोवा और अगुवाई करनेवाले भाइयों पर भरोसा करना क्यों ज़रूरी है। हम यह भी जानेंगे कि ऐसा करने से हमें न सिर्फ आज फायदा होगा बल्कि भविष्य में भी हम मुश्किलों का अच्छे-से सामना कर पाएँगे।
b कुछ भाई-बहनों और परिवारों के हालात ऐसे होते हैं, जिनकी वजह से उनकी मंडली नहीं बदली जाती। नवंबर 2002 की हमारी राज-सेवा में “प्रश्न बक्स” पढ़ें।