मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लैव्यव्यवस्था 18-19
“आपका चालचलन हमेशा शुद्ध रहे”
शैतान का एक खतरनाक फंदा—इससे कैसे बचें?
जब यहोवा आस-पास के राष्ट्रों के अनैतिक कामों का ज़िक्र कर रहा था, तो उसने इसराएलियों से कहा, “न ही तुम कनान के लोगों के जैसे काम करना, जहाँ मैं तुम्हें ले जा रहा हूँ। . . . वह देश अशुद्ध है और मैं उसमें रहनेवालों को उनके गुनाहों की सज़ा दूँगा।” इसराएल के पवित्र परमेश्वर की नज़र में कनान के लोगों का रहन-सहन इतना घिनौना था कि इस वजह से वह देश अशुद्ध या दूषित हो गया था।—लैव्य. 18:3, 25.
यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करता है
13 वहीं दूसरी तरफ, दूसरे देश के अगुवे इंसानी बुद्धि के मुताबिक चलते थे जो बहुत सीमित होती है। मिसाल के लिए, कनानी राजा और उनके लोग घिनौने काम करते थे। वे बच्चों की बलि चढ़ाते थे, मूर्तियों को पूजते थे, अपने नज़दीकी रिश्तेदारों और जानवरों के साथ यौन-संबंध रखते थे। यही नहीं, वहाँ की औरतें औरतों के साथ और आदमी आदमियों के साथ संबंध रखते थे। (लैव्य. 18:6, 21-25) इसके अलावा, बैबिलोन और मिस्र के राजा साफ-सफाई के उन नियमों को नहीं मानते थे जिन्हें परमेश्वर के लोग मानते थे। (गिन. 19:13) परमेश्वर के लोग साफ देख सकते थे कि उनके अगुवे दूसरे देश के अगुवों से कितने अलग हैं। ये अगुवे उन्हें अपने शरीर को साफ-सुथरा रखने, उपासना के मामले में और लैंगिक मामलों में शुद्ध बने रहने का बढ़ावा देते थे। इससे साफ पता चलता है कि यहोवा उनकी अगुवाई कर रहा था।
परमेश्वर क्या कदम उठाएगा?
लेकिन उनका क्या होगा जो अपने तौर-तरीके बदलना नहीं चाहते और बुराई करने में लगे रहते हैं? ज़रा इस वादे पर गौर कीजिए: “धर्मी लोग [“धरती पर,” एन. डब्ल्यू. ] बसे रहेंगे, और खरे लोग ही उस में बने रहेंगे। दुष्ट लोग [धरती पर] से नाश होंगे, और विश्वासघाती उस में से उखाड़े जाएंगे।” (नीतिवचन 2:21, 22) जी हाँ, फिर दुनिया पर बुरे लोगों का असर नहीं होगा। उस शांति-भरे माहौल में, परमेश्वर की आज्ञा माननेवाले इंसान धीरे-धीरे पाप और असिद्धता से आज़ाद कर दिए जाएँगे जो उन्हें आदम से विरासत में मिले हैं।—रोमियों 6:17, 18; 8:21.
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“मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं!”
11 मूसा की व्यवस्था का एक और नियम दिखाता है कि परमेश्वर को अपने लोगों की खैरियत की परवाह थी। वह नियम, बीनने के इंतज़ाम के बारे में था। यहोवा ने यह आज्ञा दी थी कि जब एक इस्राएली किसान अपने खेत में फसल की कटाई करता है, तो उसे ज़रूरतमंदों को बची हुई फसल को बीनने या इकट्ठा करने की इजाज़त देनी चाहिए। किसानों से कहा गया था कि वे अपने खेत के कोने-कोने तक कटाई न करें, ना ही दाख की बारी का दाना-दाना और ना ही जैतून पेड़ों का सारा फल तोड़ लें। गेहूँ की जो बालें खेत में भूल से छूट जाती थीं, उन्हें दोबारा उठाना मना था। बीनने का इंतज़ाम गरीबों, परदेशियों, अनाथों और विधवाओं की खातिर किया गया प्यार-भरा इंतज़ाम था। यह सच है कि बीनने के लिए इन मोहताज लोगों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी, मगर कम-से-कम उन्हें दूसरों के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ता था।—लैव्यव्यवस्था 19:9, 10; व्यवस्थाविवरण 24:19-22; भजन 37:25.
11-17 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लैव्यव्यवस्था 20-21
“यहोवा ने अपने लोगों को दुनिया से अलग किया है”
क्या आप फिरदौस की आशा पर यकीन रख सकते हैं?
12 लेकिन एक बात है जिसे हमें नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा था: “जितनी आज्ञाएं मैं आज तुम्हें सुनाता हूं उन सभों को माना करना, इसलिये कि तुम सामर्थी होकर उस देश में . . . प्रवेश करके उसके अधिकारी हो जाओ।” (व्यवस्थाविवरण 11:8) लैव्यव्यवस्था 20:22, 24 में भी उसी देश का ज़िक्र है: “तुम मेरी सब विधियों और मेरे सब नियमों को समझ के साथ मानना; जिससे यह न हो कि जिस देश में मैं तुम्हें लिये जा रहा हूं वह तुम को उगल देवे। और मैं तुम लोगों से कहता हूं, कि तुम तो उनकी भूमि के अधिकारी होगे, और मैं इस देश को जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम्हारे अधिकार में कर दूंगा।” जी हाँ, इस्राएलियों को वादा किए गए देश में बने रहने के लिए ज़रूरी था कि वे यहोवा परमेश्वर के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाए रखें। जब उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ दिया, तभी परमेश्वर ने उनको बाबुलियों के हवाले कर दिया। बाबुलियों ने उन पर फतह हासिल की और उन्हें अपने देश से निकाल दिया।
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विरासत
एक व्यक्ति की मौत पर उसकी जो ज़मीन-जायदाद उसके वारिस या किसी और हकदार को मिलती है, उसे विरासत कहते हैं। ऐसी कोई भी चीज़ जो माता-पिता से या पुरखों से आनेवाली पीढ़ियों को मिलती है, वह भी विरासत होती है। इब्रानी भाषा में विरासत के लिए खास तौर से जो क्रिया इस्तेमाल होती है, वह है नशाल (संज्ञा, नशाला )। इसका मतलब है कोई चीज़ बापदादों से विरासत में पाना या आनेवाली पीढ़ी को देना। (गि 26:55; यहे 46:18) इब्रानी में विरासत के लिए एक और क्रिया इस्तेमाल होती है। वह है याराश। कुछ आयतों में इस क्रिया का मतलब ‘वारिस बनना’ है, मगर ज़्यादातर आयतों में इसका मतलब है कोई ज़मीन-जायदाद ‘अधिकार में करना।’ (उत 15:3; लैव 20:24) इस क्रिया का एक और मतलब है, सैनिक हमला करके किसी इलाके पर ‘कब्ज़ा करना’ और वहाँ के लोगों को ‘खदेड़ देना।’ (व्य 2:12; 31:3) यूनानी में विरासत के लिए शब्द है, क्लेरोस। इसका असल में मतलब था, ‘चिट्ठी।’ बाद में इस शब्द का मतलब “हिस्सा” और “विरासत” भी समझा जाने लगा।—मत 27:35; प्रेष 1:17; 26:18.
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पक्षी
जल-प्रलय के बाद नूह ने जानवरों के साथ-साथ “शुद्ध पंछियों” की भी बलि चढ़ायी। (उत 8:18-20) इसके बाद से परमेश्वर ने इंसान को पक्षियों का माँस खाने की इजाज़त दे दी। बस उन्हें उनका खून नहीं खाना था। (उत 9:1-4; लैव 7:26; 17:13 से तुलना करें।) परमेश्वर ने शायद किसी तरह यह ज़ाहिर किया था कि वह सिर्फ कुछ पक्षियों का बलिदान स्वीकार करेगा। शायद इसी कारण से उस वक्त कुछ पक्षियों को शुद्ध कहा गया था। बाइबल से पता चलता है कि मूसा का कानून आने तक खाने के मामले में किसी भी पक्षी को अशुद्ध नहीं कहा गया था। बाद में मूसा के कानून में कुछ पक्षियों को “अशुद्ध” बताया गया, जिसका मतलब यह था कि उन्हें खाना मना था। (लैव 11:13-19, 46, 47; 20:25; व्य 14:11-20) यह साफ नहीं बताया गया है कि किन कारणों से कुछ पक्षियों को “अशुद्ध” कहा गया था। हालाँकि जिन पक्षियों को अशुद्ध कहा गया था उनमें से ज़्यादातर पक्षी शिकार करते हैं, पर इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें इसी वजह से अशुद्ध कहा गया था। कुछ ऐसे पक्षियों को भी अशुद्ध कहा गया था जो शिकार नहीं करते। जब नया करार लागू हुआ, तो यह नियम हटा दिया गया कि अशुद्ध पक्षियों को खाना मना है। यह बात परमेश्वर ने एक दर्शन में पतरस को बतायी थी।—प्रेष 10:9-15.
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व्यवस्थाविवरण किताब की झलकियाँ
लैव 14:1. अपने शरीर को चीरना-फाड़ना दिखाता है कि एक इंसान उसकी कदर नहीं करता और इस रिवाज़ का नाता झूठे धर्म से हो सकता है, इसलिए हमें इससे दूर रहना चाहिए। (1 राजा 18:25-28) मरे हुओं के लिए इस तरह शोक ज़ाहिर करना सही नहीं होगा क्योंकि हमें पुनरुत्थान की आशा मिली है।
18-24 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लैव्यव्यवस्था 22-23
“इसराएलियों के त्योहारों से मिलनेवाली सीख”
इंसाइट-1 पेज 826-827
बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार
बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के पहले दिन एक खास सभा होती थी। यह पहला दिन सब्त भी होता था। इस त्योहार के दूसरे दिन यानी नीसान 16 को जौ की फसल के पहले फल का एक पूला लाकर याजक को दिया जाता था। इसराएल देश में जौ की फसल ही साल की सबसे पहली फसल होती थी। इसराएली इस त्योहार से पहले नयी फसल का न तो अनाज खा सकते थे, न उस अनाज से बनी रोटी और न ही उसे भूनकर खा सकते थे। जब याजक को जौ का पूला लाकर दिया जाता, तो वह यहोवा के सामने उसे आगे-पीछे हिलाता था। ऐसा करना उस पूले को यहोवा के लिए अर्पित करने जैसा था। इसके अलावा, एक साल के नर मेम्ने की होम-बलि, तेल मिलाया हुआ अनाज का चढ़ावा और अर्घ भी चढ़ाना था। (लैव 23:6-14) आगे चलकर याजक अनाज या उससे बने आटे को वेदी पर जलाने लगे, मगर कानून में ऐसा करने के लिए नहीं बताया गया था। याजक जो पूला और दूसरे बलिदान यहोवा के लिए अर्पित करता था, वह सब पूरे राष्ट्र की तरफ से होता था। इसके अलावा, ऐसे हर परिवार और व्यक्ति को भी धन्यवाद बलियाँ चढ़ानी थीं जिनकी इसराएल में विरासत की ज़मीन होती थी।—निर्ग 23:19; व्य 26:1, 2.
त्योहार मनाने का कारण। इस त्योहार में लोगों को बिन-खमीर की रोटियाँ खानी थीं, क्योंकि यहोवा ने मूसा के ज़रिए ऐसा करने की सख्त हिदायत दी थी। निर्गमन 12:14-20 में इस बारे में लिखा है। आयत 19 कहती है, “इन सात दिनों के दौरान तुम्हारे घरों में खमीरा आटा बिलकुल भी न पाया जाए।” व्यवस्थाविवरण 16:3 में बिन-खमीर की रोटियों को ‘दुख की रोटियाँ’ कहा गया है। हर साल जब यहूदी इस त्योहार में ये रोटियाँ खाते, तो उन्हें याद रहता कि उन्होंने हड़बड़ी में मिस्र देश छोड़ा था। ऐसे में उनके पास आटे में खमीर मिलाने के लिए भी वक्त नहीं था। (निर्ग 12:34) उन्हें याद रहता कि मिस्र में गुलामी करते समय उन्होंने कितना दुख झेला था। यहोवा ने उन्हें बताया कि उन्हें यह त्योहार क्यों मनाना है। उसने कहा, “तुम ऐसा इसलिए करना ताकि तुम्हें सारी ज़िंदगी वह दिन याद रहे जब तुम मिस्र से बाहर आए थे।” जब इसराएली वादा किए गए देश में जाते, तो वे एक आज़ाद राष्ट्र बनते। तब उन्हें हमेशा याद रखना था कि यहोवा ने ही उन्हें छुड़ाया था। इसी को ध्यान में रखकर वे बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार मनाते जो कि इसराएलियों के तीन बड़े त्योहारों में से पहला त्योहार था।—व्य 16:16.
इंसाइट-2 पेज 598 पै 2
पिन्तेकुस्त त्योहार
पिन्तेकुस्त त्योहार के दिन गेहूँ की फसल का पहला फल यहोवा को अर्पित किया जाता था। इसे अर्पित करने का तरीका जौ का पहला फल चढ़ाने के तरीके से अलग था। एपा के दो-दहाई भाग मैदे में (4.4 लीटर के बराबर) खमीर मिलाकर दो रोटियाँ बनायी जाती थीं और उन्हें तंदूर में सेंका जाता था। इसराएलियों को “अपने घरों से” ये रोटियाँ लाकर उनका चढ़ावा देना था। इसका मतलब यह था कि वे रोज़ अपने लिए जो रोटियाँ बनाते थे, वैसे ही बनाकर लाना था। ये पवित्र चढ़ावे की रोटियाँ जैसी नहीं होतीं बल्कि आम रोटियाँ थीं। (लैव 23:17) उन्हें रोटियों के अलावा होम-बलियाँ, एक पाप-बलि और दो नर मेम्नों की शांति-बलियाँ भी चढ़ानी थीं। याजक रोटियों और मेम्नों के टुकड़ों के नीचे हाथ रखता और उन्हें यहोवा के सामने आगे-पीछे हिलाता था। ऐसा करना यहोवा के सामने ये सब अर्पित करने जैसा था। जब ये सब यहोवा को अर्पित कर दिए जाते, तो इसके बाद याजक उन्हें शांति-बलि के तौर पर खा सकता था।—लैव 23:18-20.
क्या आप यहोवा के संगठन के साथ-साथ आगे बढ़ रहे हैं?
11 यहोवा का संगठन हमें पौलुस की इस सलाह पर चलने का बढ़ावा देता है: “आओ हम प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लें, और एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है। बल्कि एक-दूसरे की हिम्मत बंधाएँ, और जैसे-जैसे तुम उस दिन को नज़दीक आता देखो, यह और भी ज़्यादा किया करो।” (इब्रा. 10:24, 25) पुराने ज़माने में इसराएली यहोवा की उपासना करने और उसके ज़रिए सिखलाए जाने के लिए नियमित तौर पर इकट्ठा होते थे। नहेमायाह के ज़माने में मनाया जानेवाला झोपड़ियों का त्योहार ऐसा ही एक खुशी का मौका था। (निर्ग. 23:15, 16; नहे. 8:9-18) आज हमारे ज़माने में भी सभाएँ, सम्मेलन और अधिवेशन होते हैं। हमें इन सभी मौकों पर हाज़िर होने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि ये हमें यहोवा के करीब बने रहने और उसकी सेवा में खुशी पाने में मदद देते हैं।—तीतु. 2:2.
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निर्दोष बने रहिए!
3 परमेश्वर के सेवक किस तरह निर्दोष रह सकते हैं? पूरे दिल से यहोवा से प्यार करके और हर हाल में उसके वफादार रहकर। इससे हम हमेशा वही काम करेंगे, जिससे यहोवा को खुशी हो। आइए देखें कि बाइबल में शब्द “निर्दोष” किस तरह इस्तेमाल हुआ है। जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “निर्दोष” किया गया है, उसका बुनियादी मतलब है, “पूरा, जिसमें कोई खोट या दोष न हो।” उदाहरण के लिए, इसराएली यहोवा को जानवरों का बलिदान चढ़ाते थे। कानून में बताया गया था कि बलिदान के जानवरों में कोई दोष नहीं होना चाहिए। (लैव्य. 22:21, 22) परमेश्वर के लोगों को ऐसा जानवर नहीं चढ़ाना था, जो लँगड़ा या बीमार हो या फिर जिसकी एक आँख या एक कान न हो। यहोवा के लिए यह बात बहुत मायने रखती थी कि जानवर स्वस्थ हो, उसमें कोई दोष न हो। (मला. 1:6-9) हम यहोवा की भावनाएँ समझ सकते हैं, क्योंकि जब हम कोई चीज़ खरीदते हैं, तो सबसे पहले देखते हैं कि कहीं उसमें कोई दोष तो नहीं या उसके कुछ हिस्से गायब तो नहीं, फिर चाहे वह किताब हो या औज़ार या कोई फल। हम ऐसी चीज़ चाहते हैं, जो पूरी हो और जिसमें कोई दोष न हो। यहोवा भी चाहता है कि उसके लिए हमारा प्यार और वफादारी पूर्ण हो, उनमें कोई कमी या दोष न हो।
प्र07 7/15 पेज 26, अँग्रेज़ी
आपने पूछा
इसराएल में जब जौ की फसल की कटाई शुरू होती थी, तब सभी इसराएली आदमी बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार मनाने गए होते थे। तो फिर कौन जौ की फसल के पहले फल का पूला काटकर पवित्र-स्थान में लाता था?
मूसा के कानून में इसराएलियों को यह आज्ञा दी गयी थी: “साल में तीन बार सभी आदमी अपने परमेश्वर यहोवा के सामने हाज़िर हुआ करें। बिन-खमीर की रोटी के त्योहार, कटाई के त्योहार और छप्परों के त्योहार के लिए उन्हें उस जगह हाज़िर होना है जो परमेश्वर चुनेगा।” (व्यवस्थाविवरण 16:16) राजा सुलैमान के दिनों से परमेश्वर का चुना हुआ स्थान यरूशलेम का मंदिर था।
पहला त्योहार यानी बिन-खमीर की रोटी का त्योहार वसंत की शुरूआत में होता था। नीसान 14 को फसह मनाया जाता था। फिर उसके अगले दिन यानी नीसान 15 से बिन-खमीर की रोटियों का त्योहार शुरू होता और सात दिन तक यानी नीसान 21 तक चलता था। इस त्योहार के दूसरे दिन यानी नीसान 16 को जौ की फसल की कटाई शुरू होती थी, जो कि पवित्र कैलेंडर के मुताबिक पहली फसल थी। नीसान 16 के दिन महायाजक को जौ की “फसल के पहले फल का एक पूला” पवित्र स्थान में ‘यहोवा के सामने आगे-पीछे हिलाना’ होता था। (लैव्यव्यवस्था 23:5-12) अब सवाल यह है कि इस फसल की कटाई कौन करता था, क्योंकि सभी आदमियों को तो बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के लिए जाने की आज्ञा दी गयी थी?
बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार में फसल का पहला फल अर्पित करने की आज्ञा पूरे राष्ट्र को दी गयी थी। ऐसा नहीं कहा गया था कि हर इसराएली फसल की कटाई करे और अपनी तरफ से पहले फल का पूला पवित्र स्थान में ले जाए। इसके बजाय, पूरे राष्ट्र की तरफ से कुछ लोगों को ऐसा करना था। इसलिए सभी इसराएलियों की तरफ से कुछ लोगों को पवित्र स्थान के पास किसी जौ के खेत में भेजा जाता था ताकि वे पूला काटकर ले आएँ। इस बारे में इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका में लिखा है, “अगर यरूशलेम के पास के किसी इलाके में जौ की फसल पक चुकी होती, तो वहीं से पूला लाया जाता था। वरना यह इसराएल के किसी भी इलाके से लाया जा सकता था। तीन आदमी अपनी-अपनी हँसिया से पूला काटते और अपनी-अपनी टोकरी में भरकर ले आते थे।” फिर जौ का एक पूला महायाजक को दिया जाता था और वह उसे यहोवा को अर्पित करता था।
फसल का पहला फल चढ़ाने की आज्ञा मानकर इसराएली यहोवा के लिए अपनी एहसानमंदी ज़ाहिर कर पाते थे। यहोवा उनकी ज़मीन और फसल पर जो आशीष देता था, उसके लिए अपनी कदरदानी ज़ाहिर करने का यह अच्छा मौका था। (व्यवस्थाविवरण 8:6-10) यही नहीं, पहले फल के चढ़ावे से भविष्य में ‘आनेवाली अच्छी बातों की एक छाया’ मिली। (इब्रानियों 10:1) ईसवी सन् 33 में जब यीशु मसीह की मौत हुई, तो वह उस साल के नीसान 16 को ज़िंदा हुआ था। यह वही दिन था जब फसल का पहला फल यहोवा को चढ़ाया जाता था। यीशु के बारे में प्रेषित पौलुस ने लिखा, “मसीह को मरे हुओं में से ज़िंदा किया गया है और जो मौत की नींद सो गए हैं उनमें वह पहला फल है . . . हर कोई एक सही क्रम में: पहले मसीह जो पहला फल है। इसके बाद वे जो मसीह के हैं, उसकी मौजूदगी के दौरान ज़िंदा किए जाएँगे।” (1 कुरिंथियों 15:20-23) महायाजक यहोवा के सामने पहले फल का जो पूला आगे-पीछे हिलाता था, वह ज़िंदा किए गए यीशु को दर्शाता था। अब तक जितने लोगों की मौत हुई है, उनमें यीशु ही वह पहला इंसान था जिसे ज़िंदा किया गया और हमेशा की ज़िंदगी दी गयी। फिर यीशु ने पूरी मानवजाति के लिए पाप और मौत से छुटकारा पाने का रास्ता खोल दिया।
25-31 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लैव्यव्यवस्था 24-25
“इसराएल में छुटकारे का साल और भविष्य में छुटकारा”
3 यीशु जिस रिहाई की बात कर रहा था, उसे अच्छी तरह समझने के लिए आइए पहले छुटकारे के उस इंतज़ाम पर गौर करें, जो परमेश्वर ने इसराएलियों के लिए किया था। यहोवा ने उनसे कहा, “तुम 50वें साल को पवित्र मानना और देश के सभी निवासियों के लिए छुटकारे का ऐलान करना। तुम सबके लिए 50वाँ साल छुटकारे का साल होगा। उस साल तुममें से हर किसी को उसकी बेची हुई जायदाद लौटा दी जाएगी। हर कोई अपने परिवार के पास लौट जाए।” (लैव्यव्यवस्था 25:8-12 पढ़िए।) पिछले लेख में हमने देखा था कि हर हफ्ते सब्त मनाने से इसराएलियों को फायदा हुआ। लेकिन छुटकारे के साल से उन्हें क्या फायदा होता? मान लीजिए, एक इसराएली कर्ज़ में डूबा है। कर्ज़ चुकाने के लिए उसे मजबूरन अपनी ज़मीन बेचनी पड़ती है। लेकिन फिर छुटकारे का साल आता है और उसे उसकी ‘जायदाद लौटा दी जाती है।’ अब वह अपनी ज़मीन अपने बच्चों के लिए बचाकर रख सकता है। एक और हालात पर ध्यान दीजिए। एक इसराएली बड़ी मुसीबत में है। उस पर बहुत बड़ा कर्ज़ है और उसे उतारने के लिए उसे अपने बच्चे को या फिर खुद को गुलामी में बेचना पड़ता है। लेकिन छुटकारे के साल वह दास “अपने परिवार के पास लौट” जाता है। इस इंतज़ाम की वजह से कोई भी हमेशा के लिए दास नहीं बना रहता। सच में, यहोवा को अपने लोगों की कितनी परवाह थी!
इंसाइट-1 पेज 1200 पै 2
विरासत
इसराएल में हर परिवार की जो ज़मीन होती थी, वह विरासत में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलती थी। इसलिए किसी को भी अपनी ज़मीन हमेशा के लिए बेचने का अधिकार नहीं था। अगर एक इसराएली अपनी ज़मीन बेचता, तो वह उसे सिर्फ पट्टे पर दे सकता था, यानी वह ज़मीन सिर्फ कुछ समय के लिए ही खरीदनेवाले की होती। उसकी ज़मीन में छुटकारे के साल तक जो पैदावार होगी, उस पैदावार की बराबर कीमत पर वह अपनी ज़मीन पट्टे पर दे सकता था। छुटकारे के साल उन सभी इसराएलियों को उनकी ज़मीन लौटा दी जाती थी जिन्होंने उसे बेच दिया था। अगर एक इसराएली के बस में होता, तो वह छुटकारे का साल आने से पहले खुद उसे वापस खरीद सकता था। (लैव 25:13, 15, 23, 24) जिनका घर खुली बस्ती में होता, वे अगर अपना घर बेच देते, तो उन्हें भी छुटकारे के साल अपना घर वापस मिल जाता था, क्योंकि खुली बस्तियों में जो घर होते थे, उन्हें खेत का हिस्सा माना जाता था। लेकिन अगर एक इसराएली का घर शहरपनाहवाले नगर में होता और उसे वह बेच देता, तो उसके पास अपना घर वापस खरीदने का हक एक साल तक होता था। अगर वह एक साल के अंदर अपना घर वापस नहीं खरीद पाता तो छुटकारे के साल उसे घर वापस नहीं मिलता। इस मामले में लेवियों के लिए कानून थोड़ा अलग था। उनके शहरों में जो घर थे, उन्हें अगर लेवी बेच देते, तो वे कभी-भी उन्हें वापस खरीद सकते थे। लेवियों के पास अपना घर वापस खरीदने का अधिकार हमेशा के लिए होता था, क्योंकि इसराएल देश में उन्हें विरासत की कोई ज़मीन नहीं दी गयी थी।—लैव 25:29-34.
इंसाइट-2 पेज 122-123
छुटकारे का साल
जब इसराएलियों ने छुटकारे के साल के बारे में परमेश्वर का दिया कानून माना, तो इससे देश का भला हुआ। किसी को भी तंगी नहीं झेलनी पड़ी। आज कई देशों का हाल यह है कि लोग या तो बहुत अमीर होते हैं या बहुत गरीब, मगर छुटकारे के साल का नियम मानने से इसराएल देश की ऐसी हालत नहीं होती थी। कोई भी गरीब या बेरोज़गार नहीं होता बल्कि सबके पास काम होता। उनकी मेहनत की वजह से देश की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती थी। यहोवा की आशीष से पैदावार अच्छी होती। इसके अलावा लोगों को परमेश्वर के नियमों के बारे में सिखाया जाता था और जब वे उन नियमों को मानते तो देश में खुशहाली होती थी। इसराएल में जब परमेश्वर के बताए तरीके से हुकूमत चलती, तो ही सबकुछ कायदे से और सही-सही होता।—यश 33:22.
ढूँढ़े अनमोल रत्न
जब कोई आपके दिल को ठेस पहुँचाए
अगर दो इसराएलियों के बीच हाथापाई हो जाती और पहला दूसरे की आँख फोड़ देता, तो इसराएल जाति को दिए कानून के मुताबिक पहले इंसान की आँख भी फोड़ी जानी थी। मगर यह कदम न तो वह व्यक्ति उठा सकता था जिसकी आँख फोड़ी गयी थी, न ही उसके परिवार का कोई सदस्य। इसके बजाय, कानून की यह माँग थी कि मज़लूम मामले को ठहराए गए न्यायियों के पास लाए ताकि मामले को ठीक से सुलझाया जा सके। यह मिसाल साफ दिखाती है कि लोगों को पता था कि दूसरों के खिलाफ जानबूझकर हिंसा के काम करने से उनके साथ भी वही किया जाएगा, इसलिए वे बेवजह बदला नहीं लेते थे। लेकिन इस मामले में और भी कुछ शामिल था।
1-7 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | लैव्यव्यवस्था 26-27
“यहोवा की आशीष कैसे पाएँ?”
“निरर्थक बातों” को ठुकराइए
8 “धन” किस मायने में हमारे लिए देवता बन सकता है? इस बात को समझने के लिए आइए एक मिसाल लें। प्राचीन इस्राएल के एक खेत में पड़ा एक पत्थर, घर या दीवार बनाने के काम आ सकता था। लेकिन अगर उसी पत्थर के आगे “दण्डवत्” किया जाता, तो यह यहोवा के लोगों के लिए ठोकर का कारण बन सकता था। (लैव्य. 26:1) उसी तरह, पैसे की अपनी एक जगह है। दुनिया में जीने के लिए हमें इसकी ज़रूरत है। यहाँ तक कि हम यहोवा की सेवा में भी इसका अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। (सभो. 7:12; लूका 16:9) लेकिन अगर हम धन-दौलत कमाने को मसीही सेवा से ज़्यादा अहमियत देने लगें, तो यह हमारे लिए देवता बन सकता है। (1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए। ) इस दुनिया में जहाँ लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ है, वहाँ हमें इस मामले में सही नज़रिया बनाए रखने की ज़रूरत है।—1 तीमु. 6:17-19.
इंसाइट-1 पेज 223 पै 3
विस्मय
यहोवा मूसा के साथ बहुत ही अनोखे तरीके से पेश आया और उसने मूसा को कई खास ज़िम्मेदारियाँ दीं। इसलिए परमेश्वर के लोग मूसा का गहरा आदर (इब्रानी, मोहरा ) करते थे। (व्य 34:10, 12; निर्ग 19:9) वे मूसा के अधीन रहते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यहोवा ने मूसा को अधिकार सौंपा है। वे जानते थे कि यहोवा मूसा के ज़रिए ही उनसे बात कर रहा है। इसराएलियों को बताया गया था कि उनके दिल में यहोवा के पवित्र-स्थान के लिए भी गहरा आदर होना चाहिए। (लैव 19:30; 26:2) पवित्र-स्थान का गहरा आदर करने की वजह से उन्हें यहोवा की उपासना उसी तरीके से करनी थी जैसे यहोवा ने उन्हें बताया था। साथ ही उन्हें पवित्र-स्थान में ऐसा कुछ नहीं करना था जो उसकी आज्ञाओं के खिलाफ होता।
प्र92 1/1 पेज 20 पै 10
“परमेश्वर की शान्ति” को आपके हृदय को सुरक्षित रखने दें
10 यहोवा ने इसराएलियों से कहा था, “अगर तुम मेरी विधियों पर चलते रहोगे, मेरी आज्ञाओं का पालन करते रहोगे और उनके मुताबिक चलोगे, तो मैं तुम्हारे लिए वक्त पर बारिश कराऊँगा और देश की ज़मीन पैदावार देगी और मैदान के पेड़ फल दिया करेंगे। मैं इस देश को शांति दूँगा और तुम चैन की नींद सो पाओगे, कोई तुम्हें नहीं डराएगा। मैं देश से खूँखार जंगली जानवरों को दूर कर दूँगा और कोई भी तलवार लेकर तुम्हारे देश पर हमला नहीं करेगा। मैं तुम्हारे बीच चलूँगा-फिरूँगा और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूँगा और तुम भी मेरे लोग बने रहोगे।” (लैव्यव्यवस्था 26:3, 4, 6, 12) इसका क्या मतलब है कि इसराएल देश में शांति होती? देश पर दुश्मन हमला नहीं करते, देश फलता-फूलता और लोगों का यहोवा के साथ अच्छा रिश्ता रहता। लेकिन यह सब तभी होता जब लोग यहोवा का कानून मानते।—भजन 119:165.
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बीमारी
परमेश्वर का कानून तोड़ने से बीमारी फैली। इसराएल राष्ट्र को पहले से बताया गया था कि अगर वे जानबूझकर परमेश्वर के नियमों को तोड़ेंगे, तो वह उनके ‘बीच बीमारी फैला देगा।’ (लैव 26:14-16, 23-25; व्य 28:15, 21, 22) बाइबल की कई आयतों से पता चलता है कि अच्छी सेहत और परमेश्वर के साथ अच्छा रिश्ता उसकी आशीष से ही मुमकिन है (व्य 7:12, 15; भज 103:1-3; नीत 3:1, 2, 7, 8; 4:21, 22; प्रक 21:1-4) जबकि बीमारी का कारण पाप और अपरिपूर्णता है। (निर्ग 15:26; व्य 28:58-61; यश 53:4, 5; मत 9:2-6, 12; यूह 5:14) यह सच है कि बीते समय में जब कुछ लोगों ने परमेश्वर के खिलाफ काम किया, तो उसने उन्हें सज़ा देने के लिए फौरन बीमारी से पीड़ित किया। जैसे मिरयम, उज्जियाह और गेहजी को उसने कोढ़ की बीमारी से पीड़ित किया। (गि 12:10; 2इत 26:16-21; 2रा 5:25-27) मगर ज़्यादातर देखा गया है कि जब लोगों या राष्ट्रों में बीमारी फैली, तो यह यहोवा की तरफ से कोई सज़ा नहीं थी। गलत काम करने की वजह से उनमें बीमारी फैली यानी उन्होंने अपने ही बुरे काम का अंजाम भुगता। पाप करने का बुरा असर उनके शरीर पर पड़ा। इस तरह उन्होंने जो बोया वही काटा। (गल 6:7, 8) प्रेषित पौलुस ने बताया कि जिन लोगों ने नीच अनैतिक काम किए, उन्हें परमेश्वर ने ‘अशुद्ध काम करने के लिए छोड़ दिया ताकि वे अपने ही शरीर का अनादर करें। और उन्होंने अपनी करतूतों का पूरा-पूरा अंजाम भुगता।’—रोम 1:24-27.
8-14 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 1-2
“यहोवा अपने लोगों को व्यवस्थित करता है”
प्र94 12/1 पेज 9 पै 4
हमारे जीवन में यहोवा की उपासना का उचित स्थान
4 यदि आप वीराने में डेरा डाले हुए इस्राएल को ऊपर से देख सकते, तो आपने क्या देखा होता? तंबुओं का एक विशाल, लेकिन सुव्यवस्थित क्रम, जिसमें संभवतः 30 लाख या उससे ज़्यादा लोग रह रहे थे, जो तीन-गोत्र विभाजनों के अनुसार उत्तर, दक्षिण, पूरब, और पश्चिम में समूहित किए गए थे। ज़्यादा क़रीब से देखने पर, आप छावनी के मध्य के आस-पास एक और समूहन भी देख पाते। इन चार थोड़े छोटे तंबुओं के झुंड में लेवी के गोत्र के परिवार रहते थे। छावनी के बीचोंबीच, कपड़े की दीवार से अलग किए गए एक क्षेत्र में एक अनोखा भवन था। यह ‘मिलापवाला तम्बू,’ या निवासस्थान था, जिसे उन इस्राएलियों ने यहोवा की योजनानुसार बनाया था जिनके “हृदय में बुद्धि का प्रकाश” था।—गिनती 1:52, 53; 2:3, 10, 17, 18, 25; निर्गमन 35:10.
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छावनी
इसराएलियों की छावनी बहुत बड़ी थी। सेना में जिन आदमियों के नाम लिखे गए थे, उनकी कुल गिनती 6,03,550 थी। उनके अलावा, इसराएलियों की छावनी में औरतें, बच्चे, बूढ़े, अपंग लोग, 22,000 लेवी और गैर-इसराएलियों की “एक मिली-जुली भीड़” भी थी। (निर्ग 12:38, 44; गि 3:21-34, 39) तो छावनी में सब लोगों की कुल गिनती 30,00,000 या उससे ज़्यादा रही होगी। हमें ठीक-ठीक नहीं पता कि वे सब कितने बड़े इलाके में डेरा डालते थे। बाइबल बताती है कि जब वे यरीहो के सामने मोआब के वीरानों में पहुँचे, तो उन्होंने “बेत-यशिमोत से लेकर दूर आबेल-शित्तीम तक” डेरा डाला था।—गि 33:49.
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इंसाइट-2 पेज 764
नाम-लिखाई
लोगों के गोत्र और घराने के हिसाब से उनका नाम और उनकी वंशावली लिखी जाती थी। बाइबल में जहाँ-जहाँ इसराएल देश में नाम-लिखाई की बात की गयी है वह सिर्फ जन-गणना के लिए या लोगों की गिनती लेने के लिए नहीं की गयी थी। इसके बजाय यह नाम-लिखाई कर वसूलने, सेना में लोगों को भरती करने और लेवियों को पवित्र-स्थान में काम सौंपने के लिए की गयी थी।
प्र08 7/1 पेज 21, अँग्रेज़ी
क्या आप जानते थे?
बाइबल में इसराएल के 12 गोत्रों का ज़िक्र क्यों किया जाता है जबकि असल में 13 गोत्र थे?
इसराएल के सारे गोत्र या घराने कुलपिता याकूब के बेटों से निकले थे। याकूब का नाम बदलकर इसराएल कर दिया गया था। याकूब के 12 बेटे थे, रूबेन, शिमोन, लेवी, यहूदा, दान, नप्ताली, गाद, आशेर, इस्साकार, जबूलून, यूसुफ और बिन्यामीन। (उत्पत्ति 29:32–30:24; 35:16-18) इनमें ग्यारह भाइयों के नाम पर ग्यारह गोत्र थे, लेकिन यूसुफ के नाम पर कोई गोत्र नहीं था। यूसुफ के बदले उसके दोनों बेटों के नाम पर दो गोत्र थे, यानी एप्रैम और मनश्शे के नाम पर। वे दोनों भी गोत्रों के प्रधान थे। इस तरह इसराएल में कुल मिलाकर 13 गोत्र थे। तो फिर बाइबल में ज़्यादातर 12 गोत्रों का ही ज़िक्र क्यों किया जाता है?
पहला कारण यह है कि सभी इसराएलियों में से लेवी गोत्र के आदमियों को यहोवा की सेवा के लिए अलग किया गया था। इसलिए उन्हें सेना में भरती नहीं किया जाता था। वे पहले पवित्र डेरे में सेवा करते थे और बाद में मंदिर में। यहोवा ने मूसा से कहा था, “सिर्फ लेवी गोत्र के आदमियों के नाम न लिखना और न ही उनकी गिनती बाकी इसराएलियों की गिनती में शामिल करना। तू लेवियों को पवित्र डेरे की, जिसमें गवाही का संदूक रखा है और उसकी सारी चीज़ों की ज़िम्मेदारी सौंपना।”—गिनती 1:49, 50.
दूसरा कारण यह है कि लेवी गोत्र को वादा किए गए देश में अलग से कोई ज़मीन नहीं दी गयी थी। उन्हें 48 शहर दिए गए थे जो इसराएल देश के अलग-अलग इलाके में थे।—गिनती 18:20-24; यहोशू 21:41.
इन दो कारणों से लेवी गोत्र को आम तौर पर इसराएल के गोत्रों में नहीं गिना जाता था। इसलिए बाइबल में ज़्यादातर इसराएल के 12 गोत्रों का ही ज़िक्र मिलता है।—गिनती 1:1-15.
15-21 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 3-4
“लेवियों के काम”
इंसाइट-2 पेज 683 पै 3
याजक
कानून के करार में। जब यहोवा ने दसवें कहर में मिस्रियों के हर पहलौठे को मार डाला था, तब उसने कहा था कि उसने इसराएलियों के हर पहलौठे को अपने लिए अलग किया है। (निर्ग 12:29; गि 3:13) इसका मतलब यह था कि अब से इसराएलियों के सभी पहलौठों पर यहोवा का हक होता और वह उन्हें खास सेवा के लिए अलग से चुन लेता। परमेश्वर चाहता तो उन पहलौठों को पवित्र-स्थान की देखरेख करने और वहाँ याजकों के नाते सेवा करने का काम सौंप सकता था। मगर उनके बदले उसने लेवी गोत्र के सभी आदमियों को इस खास सेवा के लिए चुना। इसी वजह से इसराएल के बाकी 12 गोत्रों के आदमियों की जगह लेवी गोत्र के आदमियों को चुना गया। (यूसुफ के बेटे एप्रैम और मनश्शे के वंशजों को दो गोत्र माना जाता था, इसलिए लेवियों के अलावा 12 गोत्र थे।) जब जन-गणना की गयी, तो पाया गया कि बाकी 12 गोत्रों के पहलौठों की गिनती लेवी आदमियों की गिनती से ज़्यादा थी। उनके 273 पहलौठे ज़्यादा थे। इसलिए परमेश्वर ने कहा कि उन 273 में से हर पहलौठे की फिरौती के लिए पाँच शेकेल (करीब 800 रुपए) दिए जाएँ। यह पैसा हारून और उसके बेटों को दिया जाना था। (गि 3:11-16, 40-51) परमेश्वर ने इस इंतज़ाम के बारे में बताने से पहले ही बता दिया था कि उसने लेवी गोत्र में से हारून के परिवार के आदमियों को याजक का काम करने के लिए चुन लिया है।—गि 1:1; 3:6-10.
इंसाइट-2 पेज 241
लेवी
काम। लेवियों का गोत्र लेवी के तीन बेटों के घरानों से बना था। वे थे गेरशोन (गेरशोम), कहात और मरारी। (उत 46:11; 1इत 6:1, 16) वीराने में इन तीनों घरानों को पवित्र डेरे के पास छावनी डालने के लिए कहा गया था। कहात के घराने में से हारून का परिवार पवित्र डेरे के सामने यानी पूरब में छावनी डालता था। कहात के घराने के बाकी परिवार दक्षिण में छावनी डालते थे। गेरशोन के वंशज पश्चिम में और मरारी के वंशज उत्तर में छावनी डालते थे। (गि 3:23, 29, 35, 38) पवित्र डेरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए उसके हिस्से खोलना, उन्हें ढोकर ले जाना और फिर उन्हें दोबारा जोड़कर खड़ा करना, यह सब लेवियों का काम था। जब भी डेरा उठाने का समय आता, तो हारून और उसके बेटे उस परदे को उतार देते जो पवित्र भाग और परम-पवित्र भाग के बीच में होता था। फिर वे करार के संदूक को, वेदियों को और बाकी पवित्र चीज़ों और बरतनों को ढक देते थे। इसके बाद कहात के वंशज इन चीज़ों को ढोकर ले जाते थे। गेरशोन के वंशज तंबू के कपड़े, चादरें, परदे, आँगन की कनातें और तंबू की रस्सियाँ (ये रस्सियाँ शायद पवित्र डेरे की थीं) उठाकर ले जाते थे। मरारी के वंशज चौखटें, खंभे, तंबू की खूँटियाँ और दूसरी रस्सियाँ (ये रस्सियाँ शायद डेरे के आँगन की थीं) उठाकर ले जाते थे।—गि 1:50, 51; 3:25, 26, 30, 31, 36, 37; 4:4-33; 7:5-9.
इंसाइट-2 पेज 241
लेवी
मूसा के दिनों में लेवी गोत्र के आदमी 30 साल की उम्र में पवित्र डेरे में सेवा शुरू करते थे। जैसे तंबू के हिस्से और उसका सामान एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम। (गि 4:46-49) डेरे के कुछ काम वे 25 साल की उम्र से भी शुरू कर सकते थे। लेकिन शायद इस उम्र में वे भारी काम नहीं कर सकते थे, जैसे पवित्र डेरे को ढोकर ले जाना। (गि 8:24) राजा दाविद के दिनों में काम शुरू करने की उम्र घटाकर 20 कर दी गयी। दाविद ने उम्र घटाने की यह वजह बतायी कि अब डेरे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की ज़रूरत नहीं थी। बहुत जल्द उसकी जगह मंदिर बननेवाला था। लेवियों को 50 की उम्र तक सेवा करनी थी। (गि 8:25, 26; 1इत 23:24-26) इसके बाद भी अगर कोई सेवा करना चाहता, तो यह उसकी मरज़ी थी। लेवियों के लिए ज़रूरी था कि उन्हें कानून का अच्छा ज्ञान हो। उन्हें अकसर लोगों के सामने कानून पढ़कर सुनाने और उसके बारे में सिखाने का काम दिया जाता था।—1इत 15:27; 2इत 5:12; 17:7-9; नहे 8:7-9.
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परमेश्वर का भय मानकर बुद्धिमान बनिए!
13 दाऊद को मुसीबत की घड़ी में जब यहोवा से मदद मिली, तब वह और भी ज़्यादा परमेश्वर का भय मानने लगा और उस पर उसका भरोसा भी मज़बूत हुआ। (भजन 31:22-24) लेकिन गौर कीजिए कि तीन मौकों पर दाऊद में कुछ समय के लिए परमेश्वर का भय नहीं था और इसका अंजाम बहुत भयानक निकला। पहले मौके पर उसने यहोवा की वाचा के संदूक को यरूशलेम लाने के लिए एक बैलगाड़ी का इस्तेमाल किया, जबकि परमेश्वर की व्यवस्था में साफ लिखा था कि लेवियों को उसे अपने कंधे पर उठाना चाहिए था। इसलिए जब उज्जा ने, जो बैलगाड़ी के आगे-आगे चल रहा था, संदूक को गिरने से बचाने के लिए उसे पकड़ा, तो परमेश्वर ने उसके “दोष के कारण” वहीं पर उसे मार डाला। हालाँकि उज्जा ने बड़ा पाप किया, मगर देखा जाए तो इस बुरे हादसे के लिए दाऊद ज़िम्मेदार था। उसने परमेश्वर की व्यवस्था में दिए नियम को ठीक-ठीक नहीं माना था। परमेश्वर का भय मानने का मतलब है, उसके बताए तरीकों के मुताबिक काम करना।—2 शमूएल 6:2-9; गिनती 4:15; 7:9.
22-28 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | गिनती 5-6
“क्या आपमें नाज़ीरों जैसा जज़्बा है?”
गिनती किताब की झलकियाँ
गि 6:1-7. नाज़ीरों को अंगूर की बनी चीज़ों और हर तरह की शराब से परहेज़ करना था। इसके लिए उन्हें अपनी इच्छाओं का त्याग करने की ज़रूरत थी। उन्हें अपने बाल बढ़ाने थे क्योंकि लंबे बाल, यहोवा के अधीन रहने की निशानी थी, ठीक जैसे स्त्रियों को भी अपने पतियों या पिताओं के अधीन रहना था। नाज़ीरों को अपनी शुद्धता बनाए रखने के लिए किसी भी लाश से दूर रहना था, यहाँ तक कि अपने नज़दीकी रिश्तेदारों की लाश से भी। आज पूरे समय के सेवक नाज़ीरों की मिसाल पर चलते हैं। यहोवा और उसके इंतज़ामों के अधीन रहने के लिए वे भी त्याग की भावना दिखाते और अपनी ख्वाहिशों को दरकिनार कर देते हैं। हो सकता है, उन्हें यहोवा की सेवा के लिए किसी दूर देश जाना पड़े और इसलिए वे अपने किसी अज़ीज़ की मौत होने पर उसके अंतिम-संस्कार के लिए जा न सकें।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
पाठकों के प्रश्न
मगर शिमशोन एक अलग मायने में नाज़ीर था। उसके जन्म से पहले, यहोवा के स्वर्गदूत ने उसकी माँ से कहा: “तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा उत्पन्न होगा। और उसके सिर पर छुरा न फिरे, क्योंकि वह जन्म ही से परमेश्वर का नाज़ीर रहेगा; और इस्राएलियों को पलिश्तियों के हाथ से छुड़ाने में वही हाथ लगाएगा।” (न्यायियों 13:5) खुद शिमशोन ने नाज़ीर होने की मन्नत नहीं मानी थी। परमेश्वर ने उसे पैदाइशी नाज़ीर ठहराया था, और उसे सारी ज़िंदगी ऐसे ही रहना था। लाश को छूने की पाबंदी उस पर लागू नहीं हो सकती थी। अगर यह लागू होती और वह अनजाने में किसी लाश को छू लेता, तो क्या वह दोबारा पैदा होकर नाज़ीर की ज़िंदगी फिर से शुरू कर सकता था? नहीं। तो ज़ाहिर है कि जो ज़िंदगी-भर नाज़ीर बने रहते, उनसे की गयी माँगों और खुद बने नाज़ीरों से की गयी माँगों में थोड़ा-बहुत फर्क था।