मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
5-11 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 11-12
“यहोवा किस तरह की उपासना चाहता है?”
इंसाइट-2 पेज 1007, पैरा 4
जान
पूरी जान से सेवा कीजिए। जान का मतलब पूरा इंसान होता है। फिर भी कुछ आयतों में कहा गया है कि हम न सिर्फ “पूरी जान से” बल्कि “पूरे दिल से” यहोवा की सेवा करें। (व्य 4:29; 11:13, 18) जब जान का मतलब पूरा इंसान है, तो फिर अलग से क्यों कहा गया है कि हम दिल से भी सेवा करें? जवाब के लिए एक मिसाल पर गौर कीजिए: अगर एक इंसान किसी की गुलामी करने के लिए खुद को बेच देता है, तो दूसरा आदमी उसका मालिक बन जाता है। फिर भी हो सकता है कि वह गुलाम पूरे दिल से अपने मालिक की सेवा न करे। (इफ 6:5 से तुलना करें; कुल 3:22) “तन-मन” से परमेश्वर की सेवा करने का मतलब है खुद को पूरी तरह उसकी सेवा में लगा देना। अपनी ताकत, काबिलीयत और हर चीज़ लगा देना।—मत 5:28-30 से तुलना करें; लूक 21:34-36; इफ 6:6-9; फिल 3:19; कुल 3:23, 24.
इंसाइट-1 पेज 84, पैरा 3
वेदी
यहोवा ने इसराएलियों को आज्ञा दी कि वे झूठे धर्म की सभी वेदियाँ तोड़ दें और वेदियों के पास जो पूजा-लाठें और पूजा-स्तंभ होते थे, उन्हें भी नष्ट कर दें। (निर्ग 34:13; व्य 7:5, 6; 12:1-3) इसराएलियों को कनानियों के जैसी वेदियाँ नहीं बनानी थीं और उनकी तरह वेदियों पर बच्चों की बलि नहीं चढ़ानी थी। (व्य 12:30, 31; 16:21) उनसे यह भी कहा गया कि वे बहुत सारी वेदियाँ न बनाएँ। उन्हें एकमात्र सच्चे परमेश्वर यहोवा के लिए एक ही वेदी बनानी थी और वह भी उस जगह जो यहोवा बताता। (व्य 12:2-6, 13, 14, 27; बैबिलोन में एक देवी इशतर के लिए 180 वेदियाँ बनायी गयी थीं।)
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इंसाइट-1 पेज 925-926
गरिज्जीम पहाड़
जब इसराएली कनान देश में गए, तो उसके कुछ ही समय बाद उनके सभी गोत्र गरिज्जीम पहाड़ और एबाल पहाड़ के पास इकट्ठा हुए, ठीक जैसे मूसा ने बताया था। वहाँ उन्हें पढ़कर सुनाया गया कि अगर वे यहोवा की आज्ञाएँ मानेंगे, तो उन्हें क्या-क्या आशीषें मिलेंगी और अगर वे नहीं मानेंगे, तो उन्हें क्या-क्या शाप मिलेगा। गरिज्जीम पहाड़ के सामने शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, यूसुफ और बिन्यामीन गोत्र जमा हुए। लेवी करार का संदूक लिए हुए घाटी में खड़े थे। बाकी छः गोत्र एबाल पहाड़ के सामने जमा हुए।—व्य 11:29, 30; 27:11-13; यह 8:28-35.
12-18 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 13-15
“यहोवा ने गरीबों की मदद करने के लिए कानून दिए”
इंसाइट-2 पेज 1110 पै 3
दसवाँ हिस्सा
लेवियों को जो दसवाँ हिस्सा दिया जाता था, इसके अलावा हर साल शायद एक और बार उपज का दसवाँ हिस्सा अलग रखा जाता था। जब इसराएली परिवार सालाना त्योहारों के लिए यरूशलेम जाते थे, तो ज़्यादातर वे ही उपज के इस दसवें हिस्से को खाते-पीते थे। जो परिवार यरूशलेम से काफी दूर रहते थे, उनके लिए जानवरों या अनाज का दसवाँ हिस्सा लेकर उतनी दूर जाना मुश्किल होता। इसलिए वे उसे बेच देते और मिलनेवाला पैसा त्योहारों के वक्त खर्च करते थे। (व्य 12:4-7, 11, 17, 18; 14:22-27) लेकिन हर तीसरे और छठे साल के आखिर में इसराएली परिवार इस दसवें हिस्से को त्योहारों के समय खा-पी नहीं सकते थे। उन्हें यह हिस्सा लेवियों, परदेसियों, अनाथों और विधवाओं को दे देना था।—व्य 14:28, 29; 26:12.
इंसाइट-2 पेज 833
सब्त का साल
सब्त के साल लोगों का कर्ज़ माफ कर दिया जाता था। जब इसराएली दूसरों का कर्ज़ माफ कर देते, तो इससे यहोवा की महिमा होती थी। कुछ लोगों का कहना है कि कर्ज़ असल में माफ नहीं होता था। सब्त के साल बस एक इसराएली को किसी और इसराएली से ज़बरदस्ती नहीं करनी थी कि वह कर्ज़ चुकाए, क्योंकि सब्त के साल किसान को कोई उपज नहीं मिलती थी। मगर वह एक परदेसी से कर्ज़ चुकाने की माँग कर सकता था। (व्य 15:1-3) कुछ रब्बियों का मानना है कि गरीबों को जो कर्ज़ दिया जाता था उसे दान समझकर माफ कर दिया जाता था, लेकिन व्यापार के लिए दिया गया कर्ज़ माफ नहीं होता था।
इंसाइट-2 पेज 978 पै 6
दास
मालिक और दास के आपसी व्यवहार के बारे में कानून। एक इसराएली को अपने इसराएली दास के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना था जैसे वह एक परदेसी के साथ करता। जो परदेसी एक इसराएली का दास होता, वह उस इसराएली की जायदाद बन जाता था। वह उस दास को विरासत में अपने बेटे को दे सकता था। (लैव 25:44-46) लेकिन जहाँ तक इसराएली दास की बात है, उसे गुलामी के सातवें साल या छुटकारे के साल रिहा कर देना था। इनमें से जो भी साल पहले आता, उस साल उसे इसराएली दास को रिहा कर देना था। इसराएली के साथ उसे दास जैसा नहीं बल्कि दिहाड़ी के मज़दूर जैसा व्यवहार करना था। (निर्ग 21:2; लैव 25:10; व्य 15:12) जब वह इसराएली दास को रिहा करता, तो उसे कुछ देना होता था ताकि वह आज़ाद होने के बाद अपनी एक अलग ज़िंदगी शुरू कर सके।—व्य 15:13-15.
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पाठकों के प्रश्न
निर्गमन 23:19 में बतायी इस पाबंदी से हम क्या सीख सकते हैं: “बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना”?
मूसा की कानून-व्यवस्था में दिए इस नियम का, बाइबल में तीन बार ज़िक्र आता है। यह नियम हमें सिखाता है कि यहोवा की नज़र में क्या उचित है और उसमें कैसी करुणा और कोमल भावनाएँ हैं। साथ ही, यह नियम इस बात पर ज़ोर देता है कि यहोवा को झूठी उपासना से सख्त नफरत है।—निर्गमन 34:26; व्यवस्थाविवरण 14:21.
बकरी या किसी और जानवर के बच्चे को उसी की माँ के दूध में पकाना, यहोवा के ठहराए इंतज़ाम के खिलाफ होता। परमेश्वर ने यह इंतज़ाम ठहराया है कि मादा जानवर के दूध से उसके बच्चों का पोषण हो और वे बढ़ सकें। इसलिए जैसा एक विद्वान कहता है, बकरी के बच्चे को उसी की माँ के दूध में पकाना, “माँ-बच्चे के बीच परमेश्वर के ठहराए पवित्र बंधन की तौहीन करना है।”
कहा जाता है कि बकरी के बच्चे को उसकी माँ के दूध में पकाना, झूठे धर्म के लोगों का एक आम रिवाज़ था। वे मानते थे कि ऐसा करने से पानी बरसेगा। अगर यह वाकई झूठे धर्म का रिवाज़ था, तो इस्राएली इस पाबंदी की वजह से आस-पास की जातियों के उस रिवाज़ से दूर रह सके जो बेमतलब का और क्रूरता से भरा था। मूसा की कानून-व्यवस्था में उन्हें साफ बताया गया था कि वे दूसरी जातियों की रीत पर न चलें।—लैव्यव्यवस्था 20:23.
आखिरी सीख यह है कि इस पाबंदी से हमें यहोवा की कोमल करुणा देखने को मिलती है। दरअसल, व्यवस्था में ऐसे बहुत-से नियम दिए गए थे जिनमें इस्राएलियों से कहा गया था कि वे जानवरों पर क्रूरता न करें और कुदरत के नियम के खिलाफ कोई भी काम न करें। मिसाल के लिए, किसी भी जानवर के बच्चे की बलि तब तक नहीं चढ़ायी जा सकती थी, जब तक कि वह अपनी माँ के साथ कम-से-कम सात दिन तक न रहा हो, जानवर और उसके बच्चे को एक ही दिन बलि नहीं चढ़ाया जाना था और किसी घोंसले से चिड़िया के साथ-साथ उसके अंडों या बच्चों को लेना मना था।—लैव्यव्यवस्था 22:27, 28; व्यवस्थाविवरण 22:6, 7.
इन सारी बातों से साफ है कि मूसा की कानून-व्यवस्था, सिर्फ जटिल नियमों और पाबंदियों की लंबी-चौड़ी लिस्ट नहीं है। इसके बजाय यह हमें कई ज़रूरी सबक सिखाती है। इसके पीछे छिपे सिद्धांत हमें उन ऊँचे नैतिक आदर्शों की और भी साफ समझ देते हैं, जिनसे यहोवा के शानदार गुणों की सही झलक मिलती है।—भजन 19:7-11.
19-25 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 16-18
“सही फैसला करने के लिए सिद्धांत”
इंसाइट-1 पेज 343 पै 5
अंधापन
जो न्यायी बेईमान होने की वजह से किसी के साथ अन्याय करता, उसे बाइबल में अंधा बताया गया है। कानून में न्यायियों से कहा गया कि वे रिश्वत या तोहफे न लें और पक्षपात न करें, क्योंकि ये उसे अंधा कर देंगी और वह सही फैसला नहीं कर पाएगा। “रिश्वत एक बुद्धिमान इंसान को भी अंधा कर सकती है।” (व्य 16:19) और यहाँ तक कि एक ऐसा न्यायी जो ईमानदार और काबिल है, अगर घूस ले तो उसकी नीयत बिगड़ सकती है। वह जानबूझकर या फिर न चाहते हुए भी गलत फैसला सुना सकता है।—लैव 19:15.
इंसाइट-2 पेज 511 पै 7
संख्या
दो। बाइबल में ज़्यादातर कानूनी मामलों के सिलसिले में संख्या दो का ज़िक्र आता है। किसी मुकद्दमे के लिए अगर दो लोग गवाही दें, तो यकीन किया जाता था न कि एक की गवाही पर। जब न्यायियों के सामने कोई मुकद्दमा होता, तो दो या तीन गवाहों का होना ज़रूरी था। मसीही मंडली में भी किसी मामले का फैसला करते समय एक से ज़्यादा गवाहों का होना ज़रूरी होता है।—व्य 17:6; 19:15; मत 18:16; 2कुर 13:1; 1ती 5:19; इब्र 10:28.
इंसाइट-2 पेज 685 पै 6
याजक
अगर एक मुकद्दमा निपटाना बहुत मुश्किल लगता और न्यायी उसका फैसला नहीं कर पाते, तो वे याजकों के पास जा सकते थे। याजक उन्हें मामले को निपटाने में मदद करते थे।—व्य 17:8, 9.
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इंसाइट-1 पेज 787
बिरादरी से निकाल देने का इंतज़ाम
परमेश्वर ने कानून दिया था कि जो लोग किसी मुकद्दमे में गवाही देते हैं, वे ही सबसे पहले दोषी को पत्थरों से मारें। (व्य 17:7) ऐसा करके वे दिखाते कि कानून के लिए उनके दिल में कितना जोश है और वे चाहते हैं कि मंडली के लोग कानून को हर हाल में मानें और मंडली शुद्ध रहे। परमेश्वर ने यह कानून इसलिए भी दिया था ताकि कोई बिना सोचे-समझे गवाही न दे या जानबूझकर झूठी गवाही न दे।
बढ़ाएँ प्रचार में हुनर
इंसाइट-1 पेज 519, पै 4
मसीही मंडली। मसीही मंडली के पास सरकारी अदालत जैसा अधिकार नहीं है, फिर भी अगर मंडली के कुछ लोग सही चाल नहीं चलते तो उनके खिलाफ मंडली कार्रवाई कर सकती है। यहाँ तक कि उन्हें मंडली से निकाल भी सकती है। प्रेषित पौलुस ने मंडली को बताया कि जिन भाइयों को ज़िम्मेदारी दी गयी है उन्हें मंडली के लोगों का न्याय करना चाहिए। (1 कुर 5:12, 13) पौलुस और पतरस, दोनों ने मंडलियों को और निगरानी करनेवालों को लिखा कि वे अच्छी तरह ध्यान दें कि मंडली के लोग परमेश्वर के सिद्धांतों के मुताबिक चलते हैं या नहीं। अगर कोई गलत कदम उठाने जा रहा है, तो वे उसे समझाएँ और कड़ी सलाह दें। (2 ती 4:2; 1पत 5:1, 2; गल 6:1 से तुलना करें।) जो लोग मंडली में फूट डालते हैं या गुट बनाते हैं, उन्हें दो बार चेतावनी देनी चाहिए और अगर वे न मानें तो उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। (तीत 3:10, 11) लेकिन जो लोग जानबूझकर पाप करते रहते हैं, उन्हें मंडली से निकाल देना चाहिए। यह उन्हें सुधारने के लिए ज़रूरी है और इससे उन्हें पता चलेगा कि मंडली में उनके गलत कामों को बरदाश्त नहीं किया जाएगा। (1 ती 1:20) पौलुस ने मंडली में ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों से कहा कि वे मिलकर ऐसे मामले की सुनवाई करें और न्यायियों की तरह उसका फैसला करें। (1 कुर 5:1-5; 6:1-5) किसी इलज़ाम के दो या तीन गवाह होने पर ही वे उसे सच मानें। वे पहले से कोई राय कायम न करें बल्कि सबूतों को अच्छी तरह जाँचें और किसी का पक्ष न लें।—1 ती 5:19, 21.
26 जुलाई-1 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 19-21
“यहोवा इंसान के जीवन को अनमोल समझता है”
न्याय और दया करने में यहोवा की मिसाल पर चलिए
4 यहोवा ने छ: शरण नगर ठहराए थे जहाँ भागकर जाना आसान था। उसने इसराएलियों को यरदन के दोनों तरफ तीन-तीन नगर चुनने के लिए कहे थे। क्यों? वह इसलिए कि भागनेवाला जल्द-से-जल्द और आसानी से शरण नगर तक पहुँच सके। (गिन. 35:11-14) शरण नगर तक जानेवाली सड़कों को भी अच्छी हालत में रखा जाता था। (व्यव. 19:3) प्राचीन यहूदी किताबें बताती हैं कि सड़क के किनारे चिन्ह हुआ करते थे जिससे भागनेवाले को शरण नगर ढूँढ़ने में कोई दिक्कत न हो। इसराएल में शरण नगर इसलिए थे ताकि अनजाने में खून करनेवाला किसी पराए देश में हिफाज़त न ढूँढ़े, जहाँ वह झूठे देवताओं को पूजने के लिए लुभाया जा सकता था।
न्याय और दया करने में यहोवा की मिसाल पर चलिए
9 शरण नगर का इंतज़ाम करने की एक खास वजह यह थी कि इसराएली खून के दोषी न बनें। (व्यव. 19:10) यहोवा के लिए जीवन अनमोल है और वह कत्ल जैसे घिनौने काम से नफरत करता है। (नीति. 6:16, 17) यहोवा सच्चा न्यायी और पवित्र परमेश्वर है, इसलिए वह अनजाने में हुए कत्ल को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। यह सच है कि अनजाने में खून करनेवाले पर दया की जा सकती थी मगर उसे पहले मुखियाओं को सारी बात बतानी होती थीं। अगर मुखिया इस नतीजे पर पहुँचते थे कि वह कत्ल अनजाने में हुआ है, तो खून करनेवाले को तब तक शरण नगर में रहना होता था जब तक महायाजक की मौत नहीं हो जाती। इसका मतलब था कि उसे बाकी की ज़िंदगी शायद शरण नगर में ही बितानी पड़े। इस इंतज़ाम से इसराएली समझ पाए कि यहोवा जीवन को कितना अनमोल समझता है। जीवन देनेवाले का आदर करने के लिए उन्हें ऐसे हर काम से दूर रहना था जिससे एक इंसान की जान को खतरा हो।
इंसाइट-1 पेज 344
खून
अगर कोई किसी से नफरत करे और चाहे कि वह मर जाए या उसे बदनाम करे या उसके बारे में झूठी गवाही देकर उसकी जान खतरे में डाल दे, तो यह उसका खून करने के बराबर है।—लैव 19:16; व्य 19:18-21; 1यूह 3:15.
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 518 पै 1
अदालत
शहर के “फाटक” का मतलब था शहर के अंदर फाटक के पासवाली खुली जगह। उस जगह मुकद्दमों के लिए गवाह मिलना आसान होता था। जैसे ज़मीन-जायदाद की बिक्री जैसे मामलों के लिए, क्योंकि दिन के वक्त वहाँ लोगों का आना-जाना लगा रहता था। फाटक के पास न्याय करने का एक और फायदा यह था कि न्यायी सँभलकर फैसला सुनाते और अन्याय नहीं कर सकते थे, क्योंकि वहाँ काफी लोग होते थे।
2-8 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 22-23
“मूसा के कानून से पता चलता है कि यहोवा जानवरों की परवाह करता है”
इंसाइट-1 पेज 375-376
बोझ
मान लीजिए एक इसराएली देखता कि एक गधा उस बोझ के नीचे दबा हुआ है जिसे वह ढो रहा है। मगर वह गधा एक ऐसे आदमी का है जो उस आदमी से नफरत करता है। ऐसे में उसे क्या करना था? उसे यूँ ही चले नहीं जाना था बल्कि उस आदमी की मदद करनी थी ताकि वह गधे को बोझ से छुड़ा सके।—निर्ग 23:5.
इंसाइट-1 पेज 621 पै 1
व्यवस्थाविवरण
इसराएलियों के लिए ऐसी चिड़िया को उठा लेना मना था जो घोंसले में अंडों या बच्चों पर बैठी होती। वह अपने बच्चों की रक्षा कर रही होती है, इसलिए उसकी लाचारी का फायदा उठाना गलत था। वे चाहे तो बच्चों को ले सकते थे और चिड़िया को उड़ा सकते थे। फिर चिड़िया और भी अंडे देकर बच्चों को सेंक सकती थी।—व्य 22:6, 7.
“असमान जूए में न जुतो”
जैसा आप यहाँ देख सकते हैं कि ऊँट और साँड मिलकर जोत रहे हैं और दोनों को ही मुश्किल हो रही है। जुआ दरअसल समान आकार और ताकत रखनेवाले दो जानवरों को एक-साथ जोतने के लिए होता है, मगर इस जूए में दो अलग किस्म के जानवर साथ बंधे हैं इसलिए दोनों ही तकलीफ में हैं। बोझ ढोनेवाले ऐसे जानवरों को कोई तकलीफ न हो, इसलिए परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा था: “बैल और गदहा दोनों संग जोतकर हल न चलाना।” (व्यवस्थाविवरण 22:10) यही सिद्धांत साँड और ऊँट के लिए भी लागू होता है।
आम तौर पर एक किसान, दो किस्म के जानवरों को एक जूए में जोतकर उन्हें तकलीफ नहीं देना चाहता। लेकिन अगर उसके पास दो साँड नहीं हैं तो वह शायद दो किस्म के जानवरों को जो उसके पास हैं, एक-साथ जोत दे। लगता है, इस चित्र में दिखाए गए 19वीं सदी के किसान की भी यही मजबूरी थी। जानवरों के आकार और वज़न में फर्क होने की वजह से कमज़ोर जानवर को ताकतवर जानवर के साथ चलने में काफी मुश्किल होती है और दूसरी तरफ ताकतवर जानवर को ज़्यादा बोझ उठाना पड़ता है।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 600
कर्ज़, कर्ज़दार
एक इसराएली सिर्फ तभी कर्ज़ लेता था जब वह बहुत तंगी में होता। कर्ज़ लेना इतना अच्छा नहीं माना जाता था, क्योंकि कर्ज़ लेनेवाला कर्ज़ देनेवाले का गुलाम समझा जाता था। (नीत 22:7) इसराएलियों को आज्ञा दी गयी कि अगर कोई इसराएली तकलीफ में है, तो वे दिल खोलकर उसकी मदद करें और अपने फायदे की न सोचें। उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए उससे ब्याज की माँग नहीं करनी थी। (निर्ग 22:25; व्य 15:7, 8; भज 37:26; 112:5) लेकिन वे दूसरे देशों से आनेवाले परदेसियों से ब्याज ले सकते थे। (व्य 23:20) यहूदी विद्वानों का मानना है कि इसराएली व्यापार करनेवाले परदेसियों से ब्याज ले सकते थे, न कि तंगी झेल रहे परदेसियों से। इसराएल देश में ज़्यादातर परदेसी कुछ ही समय के लिए रहते थे, क्योंकि वे व्यापार करने आते थे। उनसे ब्याज की माँग करना सही था, क्योंकि ये व्यापारी खुद भी दूसरों को उधार देकर उनसे ब्याज लेते थे।
बढ़ाएँ प्रचार में हुनर
सज 4/15 पेज 13, अँग्रेज़ी
क्या जानवरों को मार डालना गलत है?
लोग क्या कहते हैं? कुछ लोग मज़े के लिए जानवरों और मछलियों का शिकार करते हैं और यह उन्हें खेल जैसा लगता है। मगर कुछ लोग मानते हैं कि ऐसा करना गलत है। वे रूस के उपन्यास लेखक लियो टौलस्टौय की तरह महसूस करते हैं जिसने लिखा कि जानवरों को मारना और खाना बिलकुल गलत है।
बाइबल में क्या लिखा है? परमेश्वर ने इंसानों को अपनी जान बचाने और कपड़ों के लिए जानवरों को मारने की इजाज़त दी है। (निर्गमन 21:28; मरकुस 1:6) बाइबल में यह भी लिखा है कि इंसान खाने के लिए जानवरों को मार सकते हैं। उत्पत्ति 9:3 में लिखा है, “तुम हर चलते-फिरते जानवर को जो ज़िंदा है, मारकर खा सकते हो।” यीशु ने भी मछलियाँ पकड़ने में अपने चेलों की मदद की थी जिन्हें उन्होंने बाद में खाया था।—यूहन्ना 21:4-13.
मगर बाइबल में यह भी लिखा है कि परमेश्वर “हिंसा से प्यार करनेवाले से नफरत करता है।” (भजन 11:5) इसका मतलब, परमेश्वर नहीं चाहता कि हम सिर्फ मज़े के लिए या अपना शौक पूरा करने के लिए जानवरों को चोट पहुँचाएँ या उन्हें मार डालें।
बाइबल के मुताबिक परमेश्वर जानवरों की जान को भी बहुत अनमोल समझता है।
• बाइबल में लिखा है कि जब परमेश्वर ने सृष्टि की, तब उसने “धरती के जंगली जानवरों, पालतू जानवरों और ज़मीन पर रेंगनेवाले सब जंतुओं को उनकी अपनी-अपनी जाति के मुताबिक बनाया। और परमेश्वर ने देखा कि यह अच्छा है।”—उत्पत्ति 1:25.
• बाइबल में यहोवा के बारे में लिखा है, “वह जानवरों को खाना देता है।” (भजन 147:9) परमेश्वर ने पर्यावरण को इस तरह बनाया है कि जानवरों के लिए भरपूर खाना और रहने की जगह मिलती है।
• इसराएल के राजा दाविद ने प्रार्थना की थी, “हे यहोवा, तू इंसान और जानवर, दोनों को सलामत रखता है।” (भजन 36:6) इसकी एक मिसाल जलप्रलय की घटना है। उस वक्त यहोवा ने आठ इंसानों के साथ-साथ सब किस्म के जानवरों को सलामत रखा था।—उत्पत्ति 6:19.
इन सारी बातों से साफ पता चलता है कि यहोवा जानवरों को अनमोल समझता है और चाहता है कि हम जानवरों के साथ अच्छी तरह पेश आएँ।
“नेक जन अपने पालतू जानवरों का खयाल रखता है।”—नीतिवचन 12:10.
9-15 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 24-26
“मूसा के कानून से पता चलता है कि यहोवा स्त्रियों का खयाल रखता है”
इंसाइट-2 पेज 1196 पै 4
औरत
जिस आदमी की नयी-नयी शादी हुई होती है, उसे एक साल तक सेना से छूट मिलती थी। इससे उस नए जोड़े को अपना परिवार बढ़ाने का मौका मिलता। फिर जब वह आदमी सेना में जाता, तो बच्चे के होने से पत्नी के लिए उसकी जुदाई बरदाश्त करना आसान होता। और अगर पति युद्ध में मारा जाए, तो बच्चा उस औरत के जीने का सहारा होता।—व्य 20:7; 24:5.
इंसाइट-1 पेज 963 पै 2
बालें बीनने का इंतज़ाम
दाविद ने कहा था, “न तो मैंने कभी किसी नेक इंसान को त्यागा हुआ, न ही उसकी औलाद को रोटी के लिए भीख माँगते हुए देखा।” (भज 37:25) कानून में बताया गया था कि गरीब लोग खेतों में बची हुई बालें बीनकर ले जा सकते हैं। इसलिए उन्हें और उनके बच्चों को कभी-भी भीख माँगने की नौबत नहीं आती। वे कड़ी मेहनत करके रोटी कमाते थे और कभी भूखे नहीं रहते थे।
प्र11 3/1 पेज 23, अँग्रेज़ी
क्या आप जानते हैं?
पुराने ज़माने में इसराएल में अगर एक आदमी की मौत हो जाती और उसका कोई बेटा नहीं होता, तो उसके भाई को उसकी विधवा से शादी करनी होती थी। ऐसा करके वह अपने मरे हुए भाई के लिए संतान पैदा करता। तब उसका वंश चलता रहता। (उत्पत्ति 38:8) इस इंतज़ाम को देवर-भाभी विवाह कहा जाता था। बाद में मूसा के कानून में भी ऐसा करने के लिए कहा गया। (व्यवस्थाविवरण 25:5, 6) रूत की किताब के मुताबिक बोअज़ ने जो किया, उससे पता चलता है कि अगर एक आदमी का कोई भाई ज़िंदा नहीं बचता, तो उसके रिश्तेदारों में से किसी आदमी को विधवा से शादी करनी थी।—रूत 1:3, 4; 2:19, 20; 4:1-6.
मरकुस 12:20-22 में सदूकियों ने देवर-भाभी विवाह का ज़िक्र किया। इससे पता चलता है कि यीशु के दिनों में भी लोग यह दस्तूर मानते थे। पहली सदी के इतिहासकार फ्लेवियस जोसीफस के मुताबिक इस दस्तूर की वजह से एक परिवार का नाम कभी नहीं मिटता, विरासत उसके पास ही रहती और विधवा बेसहारा नहीं होती थी। उस ज़माने में एक पत्नी को पति की जायदाद पाने का हक नहीं था। इसलिए देवर-भाभी विवाह से विधवा को जो बच्चा होता, उसे अपने पिता की विरासत मिल जाती थी।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 640 पै 5
तलाक
तलाकनामा। मूसा के कानून में तलाक के बारे में जो कहा गया था, आगे चलकर उसका लोगों ने गलत फायदा उठाया। मगर कानून में ऐसा नहीं बताया गया कि एक आदमी कोई भी छोटी-मोटी वजह से अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है। तलाक देने के लिए पति को कुछ कदम उठाने होते थे। उसे एक तलाकनामा लिखना था और अपनी पत्नी के हाथ में देना था और उसे अपने घर से निकाल देना था। (व्य 24:1) बाइबल में इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया गया है। लेकिन यह कानूनी कार्रवाई करने के लिए पति को शायद पहले उन आदमियों से बात करनी थी जिन्हें अधिकार का पद सौंपा गया था। वे आदमी उस पति-पत्नी को ज़रूर एक करने की कोशिश करते होंगे। तो तलाकनामा तैयार करने और पूरी कार्रवाई करने में समय लगता। इस दौरान पति दोबारा सोच सकता था कि तलाक देना सही होगा या नहीं। और तलाक देने के लिए सही कारण भी होना चाहिए था। अगर वह सारी कार्रवाई कायदे से करता, तो वह जल्दबाज़ी में कोई फैसला नहीं करता। तब वह अपनी पत्नी का हक नहीं मारता और उसे बेसहारा नहीं छोड़ता।
16-22 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 27-28
“ये सारी आशीषें तुम्हें आ घेरेंगी”
पवित्र शक्ति के निर्देशन में चलनेवाले राजा से आशीष पाइए!
18 सुनने का मतलब है कि परमेश्वर के वचन में जो कहा गया है और जो आध्यात्मिक भोजन मुहैया कराया जाता है, उसे अपने दिल में उतारना। (मत्ती 24:45) इसका यह भी मतलब है कि हम परमेश्वर और उसके बेटे की आज्ञा मानें। यीशु ने कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा।” (मत्ती 7:21) तो परमेश्वर की सुनने में उसके ठहराए इंतज़ाम, जैसे मसीही मंडली और “आदमियों के रूप में [दिए] तोहफे” या नियुक्त प्राचीनों के खुशी-खुशी अधीन रहना शामिल है।—इफि. 4:8.
क्या यहोवा की आशीषें आपको जा लेंगी?
2 व्यवस्थाविवरण 28:2 में जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद “हमेशा सुनता रहे” किया गया है, उसका मतलब ऐसा काम है जो लगातार किया जाता है। इससे ज़ाहिर होता है कि यहोवा के लोगों के लिए कभी-कभार उसकी बात सुन लेना काफी नहीं है; बल्कि उन्हें हमेशा, हर बात में उसकी सुननी चाहिए। सिर्फ तभी परमेश्वर की आशीषें उनको जा लेंगी। जिस इब्रानी क्रिया का अनुवाद “जा लेंगी” किया गया है, उसका कई बार यह मतलब बताया जाता है: “दौड़कर पकड़ लेना” या “पहुँच जाना।”
यहोवा की आशीष पाने के लिए मेहनत कीजिए
4 इसराएलियों को किस रवैये के साथ परमेश्वर की आज्ञा माननी थी? परमेश्वर के नियम में बताया गया था कि अगर उसके लोग “आनन्द और प्रसन्नता के साथ” उसकी सेवा नहीं करेंगे तो इससे परमेश्वर नाराज़ होगा। (व्यवस्थाविवरण 28:45-47 पढ़िए। ) यहोवा नहीं चाहता कि उसकी आज्ञाएँ बेमन से मानी जाएँ, ऐसा तो जानवर या दुष्ट स्वर्गदूत भी कर सकते हैं; वह इससे ज़्यादा का हकदार है। (मर. 1:27; याकू. 3:3) सच्चे दिल से परमेश्वर की आज्ञा मानना दिखाएगा कि हम उससे प्यार करते हैं, जिसमें हमारी खुशी झलकेगी। हमें उसकी आज्ञाएँ बोझ नहीं लगेंगी, साथ ही यहोवा के इस वादे पर हम विश्वास ज़ाहिर करेंगे कि “वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रा. 11:6; 1 यूह. 5:3.
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इंसाइट-1 पेज 360
सीमा-चिन्ह
ज़्यादातर लोगों का गुज़ारा अपनी ज़मीन की उपज से ही होता था। इसलिए अगर कोई किसी की ज़मीन का सीमा-चिन्ह खिसकाकर उसकी ज़मीन हड़प लेता, तो वह एक तरह से उसकी रोज़ी-रोटी छीन लेता। यह चोरी करने के बराबर था।—अय 24:2.
23-29 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 29-30
“यहोवा की सेवा करना बहुत मुश्किल नहीं है”
यहोवा हमें खुद चुनाव करने का मौका देता है
परमेश्वर हमसे क्या चाहता है, क्या यह जानना और उसके मुताबिक काम करना बहुत मुश्किल है? मूसा ने कहा: “जो आज्ञा मैं आज तुझे देता हूं, वह न तो तेरे लिए बहुत कठिन है न तुझसे परे है।” (आयत 11, NHT) यहोवा हमसे ऐसा कोई काम करने के लिए नहीं कहता, जिसे पूरा करना हमारे लिए नामुमकिन हो। वह हमसे हद-से-ज़्यादा की माँग नहीं करता। इसके अलावा, हम यह आसानी से जान सकते हैं कि वह हमसे क्या चाहता है। यह पता करने के लिए हमें “आकाश में” जाने की ज़रूरत नहीं है, न ही हमें “समुद्र पार” जाने की ज़रूरत है। (आयत 12, 13) बाइबल साफ-साफ बताती है कि हमें कैसी ज़िंदगी जीनी चाहिए।—मीका 6:8.
यहोवा हमें खुद चुनाव करने का मौका देता है
“मुझे अकसर यह डर सताता था कि मैं कुछ-न-कुछ गलत कर बैठूँगी और यहोवा की वफादार नहीं रह पाऊँगी।” यह बात एक मसीही स्त्री ने कही। उसके साथ बचपन में कुछ बुरे अनुभव हुए थे, जिनकी वजह से उसे लगता था कि वह ज़रूर कोई गलती कर बैठेगी। क्या वाकई ऐसा होता है? क्या हम सचमुच हालात के सामने बेबस हैं? नहीं। यहोवा परमेश्वर ने हमें आज़ाद मरज़ी का तोहफा दिया है, यानी हम खुद यह चुनाव कर सकते हैं कि हम कैसी ज़िंदगी जीएँगे। यहोवा चाहता है कि हम सही चुनाव करें और उसका वचन बाइबल ऐसा करने में हमारी मदद करती है। कैसे? यह जानने के लिए आइए हम बाइबल की एक किताब व्यवस्थाविवरण के अध्याय 30 में दर्ज़ मूसा के शब्दों पर गौर करें।
यहोवा हमें खुद चुनाव करने का मौका देता है
हम कौन-सा रास्ता चुनते हैं, क्या इससे यहोवा को कोई फर्क पड़ता है? बिलकुल पड़ता है! परमेश्वर की प्रेरणा से मूसा ने कहा: “जीवन को चुन ले।” (आयत 19, NHT) लेकिन हम जीवन को कैसे चुन सकते हैं? मूसा ने समझाया: “अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करना, उसकी सुनना तथा उस से लिपटे रहना।” (आयत 20) अगर हमारे दिल में यहोवा के लिए प्यार होगा, तो हम हर हाल में उसकी बात सुनेंगे, उसकी आज्ञा मानेंगे और उसके वफादार बने रहेंगे। इस तरह हम जीवन को चुन रहे होंगे। हम आज जीवन की सबसे बेहतरीन राह पर चल रहे होंगे और इससे हमें परमेश्वर की नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी पाने की आशा मिलेगी।—2 पतरस 3:11-13; 1 यूहन्ना 5:3.
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इंसाइट-1 पेज 665 पै 3
कान
कुछ इसराएलियों के कान ऐसे बंद हो गए थे कि वे सुन नहीं पा रहे थे। और यहोवा ने भी उनके कान नहीं खोले। अगर एक इंसान यहोवा को खुश करना चाहे, तो यहोवा उसके कान खोल देता है यानी अपनी मरज़ी जानने में उसकी मदद करता है। लेकिन अगर एक इंसान यहोवा की बात न माने, तो वह सुनने में मंद पड़ जाएगा और यहोवा उसे ऐसे ही रहने देगा। फिर वह इंसान यहोवा की मरज़ी नहीं जान पाएगा।—व्य 29:4; रोम 11:8.
30 अगस्त-5 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | व्यवस्थाविवरण 31-32
“एक ईश्वर-प्रेरित गीत में बतायी मिसालों से सीखिए”
“मेरे मन को एक कर कि मैं तेरे नाम का डर मानूँ”
8 इसराएली वादा किए गए देश में कदम रखने ही वाले थे। उसी वक्त यहोवा ने मूसा को एक गीत सिखाया। (व्यव. 31:19) फिर मूसा को वह गीत इसराएलियों को सिखाना था। (व्यवस्थाविवरण 32:2, 3 पढ़िए।) इन आयतों पर मनन करने से हमें यहोवा की सोच पता चलती है। वह नहीं चाहता कि उसका नाम लोगों से छिपा रहे, मानो यह इतना पवित्र है कि इसे ज़बान पर नहीं लाया जा सकता। इसके बजाय वह चाहता है कि हर कोई उसका नाम जाने! इसराएलियों के लिए यहोवा और उसके महान नाम के बारे में सीखना वाकई सम्मान की बात थी। जैसे हलकी बौछार से पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं, उसी तरह मूसा की बातों से इसराएलियों को ताज़गी मिली होगी। अगर हम चाहते हैं कि हमारी बातों से लोगों को ताज़गी मिले तो हम क्या कर सकते हैं?
9 घर-घर प्रचार करते वक्त या सरेआम गवाही देते वक्त हम बाइबल से लोगों को परमेश्वर का नाम बता सकते हैं। हम उन्हें कुछ किताबें-पत्रिकाएँ दे सकते हैं और वीडियो दिखा सकते हैं। हम उन्हें अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के बारे में भी बता सकते हैं। हम स्कूल में, काम की जगह पर या सफर करते वक्त मौका ढूँढ़कर लोगों को परमेश्वर और उसके नाम के बारे में बता सकते हैं। हम उन्हें यह भी बता सकते हैं कि परमेश्वर इंसानों और इस धरती के लिए क्या-क्या करेगा। इससे वे समझ पाएँगे कि परमेश्वर सच में उनसे प्यार करता है। जब हम लोगों को अपने पिता यहोवा के बारे में सच्चाई बताते हैं, तो हम उसका नाम पवित्र कर रहे होते हैं। हम ऐसी कई झूठी बातों का परदाफाश कर रहे होते हैं जो उन्हें सिखायी गयी थीं। हम लोगों को बाइबल से जो सिखाते हैं, उससे उन्हें बहुत ताज़गी मिलती है।—यशा. 65:13, 14.
प्र09 5/1 पेज 14 पै 4, अँग्रेज़ी
बाइबल में बतायी गयी मिसालें—क्या आप उनका मतलब समझते हैं?
बाइबल की कुछ आयतों में यहोवा की तुलना बेजान चीज़ों से की गयी है। उसे “इसराएल की चट्टान,” “बड़ी चट्टान” और “मज़बूत गढ़” कहा गया है। (2 शमूएल 23:3; भजन 18:2; व्यवस्थाविवरण 32:4) यहोवा और एक चट्टान में क्या बातें मिलती-जुलती हैं? एक बड़ी चट्टान मज़बूती से एक जगह टिकी होती है और उसे हिलाया नहीं जा सकता। यहोवा पर आप भरोसा रख सकते हैं कि वह एक बड़ी चट्टान की तरह आपको सुरक्षा दे सकता है।
बच्चों को सिखाते वक्त यहोवा जैसे बनिए
7 गौर कीजिए कि यहोवा ने इस्राएलियों से व्यवहार करते वक्त उन्हें कैसा प्रेम दिखाया। इस्राएल जाति हाल में बनी थी और यहोवा को इस जाति के लिए कैसा प्रेम है, यह समझाने के लिए मूसा ने एक बेजोड़ मिसाल दी। उसने कहा: “जैसे उकाब अपने घोंसले को हिला हिलाकर अपने बच्चों के ऊपर ऊपर मण्डलाता है, वैसे ही उस ने अपने पंख फैलाकर उसको अपने परों पर उठा लिया। यहोवा अकेला ही [याकूब की] अगुवाई करता रहा।” (व्यवस्थाविवरण 32:9,11,12) अपने बच्चों को उड़ना सिखाने के लिए, मादा उकाब ‘अपने घोंसले को हिलाती’ है, जो अकसर एक ऊँचे टीले पर बना होता है। अपने पंख फड़फड़ाकर वह अपने बच्चों को उड़ने के लिए उकसाती है। जब आखिरकार बच्चा, अपने घोंसले से छलाँग लगाता है तो उसकी माँ उसके ऊपर ‘मंडराती’ रहती है। जब उसे लगता है कि बच्चा ज़मीन से जा टकराएगा, तो वह झपट्टा मारकर उसके नीचे चली जाती है और उसे “अपने परों पर” उठा लेती है। यहोवा ने भी इसी तरह बड़े प्यार से इस्राएल जाति की देखभाल की थी जिसका जन्म अभी-अभी हुआ था। उसने उन्हें मूसा के ज़रिए कानून-व्यवस्था दी। (भजन 78:5-7) और फिर, परमेश्वर लगातार इस जाति पर नज़र लगाए रहा, और जब कभी उसके लोगों पर मुसीबत आती तो वह उन्हें बचाने के लिए फौरन कार्यवाही करता।
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व्यवस्थाविवरण किताब की झलकियाँ
व्यवस्थाविवरण 31:12 कलीसिया की सभाओं में बच्चों को चाहिए कि वे बड़ों के साथ बैठें और ध्यान से सुनने और सीखने की कोशिश करें।
बढ़ाएँ प्रचार में हुनर
प्र07 5/15 पेज 15-16, अँग्रेज़ी
आपके बच्चे आपको देख रहे हैं!
हम अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना और उसका डर मानना कैसे सिखा सकते हैं? इसका जवाब मूसा के कानून से हमें मिल सकता है। यहोवा ने इसराएली माता-पिताओं से कहा था, “तू अपने परमेश्वर यहोवा से पूरे दिल, पूरी जान और पूरी ताकत से प्यार करना। आज मैं तुझे जो आज्ञाएँ दे रहा हूँ, वे तेरे दिल में बनी रहें। और तू इन्हें अपने बेटों के मन में बिठाना और अपने घर में बैठे, सड़क पर चलते, लेटते, उठते इनके बारे में उनसे चर्चा करना।”—व्यवस्थाविवरण 6:5-7.
इन आयतों से माता-पिता को कुछ ज़रूरी सीख मिलती है। एक तो यह कि एक माँ या पिता होने के नाते आपको एक अच्छी मिसाल रखनी चाहिए। आप अपने बच्चों को यहोवा से प्यार करना तभी सिखा पाएँगे जब आप खुद यहोवा से प्यार करेंगे और उसकी बातें आपके दिल में होंगी। यह क्यों ज़रूरी है? क्योंकि आपके बच्चों के सबसे पहले शिक्षक आप ही हैं। वे आपको देखकर जो सीखते हैं, वह उनके दिल पर गहरी छाप छोड़ सकता है। माता-पिता जो कहते और करते हैं बच्चे भी काफी हद तक वैसे ही बन जाते हैं। कोई और चीज़ उन पर इतना असर नहीं करती जितना कि उनके माता-पिता।
आप किन बातों को अहमियत देते हैं, आपके उसूल और लक्ष्य क्या हैं, यह सिर्फ आपकी बातों से नहीं बल्कि कामों से भी पता चलेगा। (रोमियों 2:21, 22) बच्चे जब बहुत छोटे होते हैं, तब से वे अपने माता-पिता को बहुत गौर से देखते हैं। बच्चे समझ जाते हैं कि उनके माता-पिता किन बातों को अहमियत देते हैं। ज़्यादातर बच्चे भी उन्हीं बातों को अहमियत देने लगते हैं। अगर आप सच में यहोवा से प्यार करते हैं, तो यह बात आपके बच्चे भाँप लेंगे। अगर आप राज के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, तो वे समझ जाएँगे। (मत्ती 6:33) अगर आप सभी सभाओं में जाते हैं और प्रचार काम लगातार करते हैं, तो वे समझ जाएँगे कि यहोवा की पवित्र सेवा करना आपकी नज़र में सबसे ज़रूरी है।—मत्ती 28:19, 20; इब्रानियों 10:24, 25.