मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2022 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
6-12 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 23-26
“मंदिर में उपासना के लिए अच्छी व्यवस्था”
इंसाइट-2 पेज 241
लेवी
राजा दाविद ने लेवियों का काम बहुत अच्छी तरह व्यवस्थित किया। उसने कुछ लेवियों को अधिकारी, न्यायी, पहरेदार, खज़ाने की देखभाल करनेवाले और अलग-अलग कामों की देखरेख करनेवाले ठहराया। उसने बाकी लेवियों को मंदिर में, आँगनों में और भोजन के कमरों में याजकों की मदद करने का काम सौंपा। ये लेवी चढ़ावा चढ़ाने और बलिदान करने के काम में, शुद्ध करने के काम में और नाप-तौल से जुड़े काम में याजकों का हाथ बँटाते थे। वे मंदिर में अलग-अलग जगह पहरा देने के काम में भी मदद करते थे। इसके अलावा, कई लेवी जो संगीतकार थे उन्हें 24 दलों में बाँटा गया था, ठीक जैसे याजकों को 24 दलों में बाँटा गया था। ये लेवी बारी-बारी से मंदिर में सेवा करते थे। लेवियों को ठीक क्या काम करना था, यह चिट्ठियाँ डालकर तय किया जाता था।—1इत 23, 25, 26; 2इत 35:3-5, 10.
इंसाइट-2 पेज 686
याजक
जो याजक अधिकारी थे, वे अपने साथी याजकों के काम की निगरानी करते थे। याजकों को ठीक क्या काम करना था, यह चिट्ठियाँ डालकर तय किया जाता था। सभी याजकों को 24 दलों में बाँटा गया था और हर दल साल में दो बार मंदिर में सेवा करता था, हर बार एक हफ्ते के लिए। और जब त्योहार होते थे, तो ज़ाहिर है कि सभी याजक मंदिर में सेवा करते थे, क्योंकि उस वक्त लोगों के लाए हुए हज़ारों बलिदान चढ़ाए जाते थे। (1इत 24:1-18, 31; 2इत 5:11. 2इत 29:31-35; 30:23-25; 35:10-19 से तुलना करें।)
यहोवा के स्तुतिगीत गाइए
8 वास्तव में, मंदिर में गायन उपासना का इतना महत्त्वपूर्ण भाग था कि 4,000 लेवी सांगीतिक सेवा के लिए अलग ठहराए गए थे। (1 इतिहास 23:4, 5) इनको गायकों के साथ-साथ होना था। उपासना के लिए सही उत्साह प्रदान करने में संगीत का, ख़ासकर गायकों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान था। ज़रूरी नहीं था कि यह व्यवस्था की गंभीर बातों को सिखाने के लिए हो। यह इस्राएलियों को उत्साही ढंग से यहोवा की उपासना करने में मदद करता था। नोट कीजिए कि इस पहलू को कितनी तैयारी और विस्तृत ध्यान मिलता था: “इन सभों की गिनती भाइयों समेत जो यहोवा के गीत सीखे हुए और सब प्रकार से निपुण थे, दो सौ अठासी थी।” (1 इतिहास 25:7) नोट कीजिए कि उन्होंने यहोवा के स्तुतिगीत गायन को कितनी गंभीरता से लिया। वे गीत सीखे हुए और निपुण थे!
इंसाइट-1 पेज 898
दरबान, पहरेदार
मंदिर में: दाविद के दिनों में करीब 4,000 पहरेदार थे और उन्हें अलग-अलग दलों में बाँटा गया था। हर दल की जब भी बारी आती थी, तो वह 7 दिन के लिए सेवा करता था। पहरेदार, यहोवा के भवन पर पहरा देते थे और इस बात का ध्यान रखते थे कि भवन के दरवाज़े सही समय पर खोले जाएँ और बंद किए जाएँ। (1इत 9:23-27; 23:1-6) इसके अलावा, कुछ पहरेदार मंदिर में लोगों के लाए हुए दान की देखभाल करते थे। (2रा 12:9; 22:4) एक बार कुछ पहरेदारों को खास ज़िम्मेदारी दी गयी थी। उन्हें छोटे यहोआश को दुष्ट रानी अतल्याह से बचाने के लिए मंदिर के फाटक पर पहरा देना था। (2रा 11:4-8) फिर जब राजा योशियाह ने देश से मूर्तिपूजा खत्म की, तो दरबानों ने मंदिर से बाल देवता की उपासना से जुड़ी हर चीज़ बाहर निकालने में उसकी मदद की।—2रा 23:4.
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सच्ची उपासना कीजिए, खुश रहिए
10 सभाओं में भाई-बहनों के साथ गीत गाकर। (भज. 28:7) इसराएलियों को पता था कि यहोवा की उपासना करने के लिए गीत गाना कितना ज़रूरी है। राजा दाविद ने 288 लेवियों को मंदिर में गीत गाने का काम सौंपा था। (1 इति. 25:1, 6-8) आज जब हम यहोवा के लिए गीत गाते हैं, तो उसे बता रहे होते हैं कि हम उससे कितना प्यार करते हैं। हमें यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि हम ठीक से नहीं गा पाते। ज़रा सोचिए, हम सब बात करते वक्त “कई बार गलती करते हैं,” फिर भी हम सभाओं में जवाब और भाषण देने और दूसरों को गवाही देने से पीछे नहीं हटते। (याकू. 3:2) उसी तरह चाहे हमें लगे कि हम ठीक से नहीं गा पाते, फिर भी हमें यहोवा की तारीफ में गीत गाने चाहिए।
13-19 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 इतिहास 27-29
“एक पिता की प्यार-भरी नसीहत”
अपनी मसीही पहचान की रक्षा करना
9 बाइबल की सच्चाई का खुद को यकीन दिलाइए। यहोवा के सेवकों के नाते हमारी पहचान होने का एहसास, अगर बाइबल के ज्ञान की ठोस बुनियाद पर न टिका हो तो यह कमज़ोर पड़ सकता है। (फिलिप्पियों 1:9, 10) छोटे-बड़े हर मसीही को, खुद यह तसल्ली करनी चाहिए कि वह जिन बातों पर विश्वास करता है वे वाकई बाइबल में पायी जानेवाली सच्चाइयाँ हैं। पौलुस ने संगी विश्वासियों से गुज़ारिश की: “सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:21) परमेश्वर का भय माननेवाले माता-पिता के साये में पले नौजवान मसीहियों को यह समझना ज़रूरी है कि वे अपने माता-पिता के विश्वास की वजह से सच्चे मसीही नहीं बन जाएँगे। सुलैमान के पिता दाऊद ने उसे उकसाया कि “तू अपने पिता के परमेश्वर को जान और सम्पूर्ण हृदय . . . से उसकी सेवा कर।” (1 इतिहास 28:9, NHT) नौजवान सुलैमान के लिए अपने पिता को यहोवा पर विश्वास बढ़ाते हुए देखना काफी न था। उसे खुद यहोवा को जानना था और उसने ऐसा ही किया। उसने परमेश्वर से बिनती की: “अब मुझे ऐसी बुद्धि और ज्ञान दे, कि मैं इस प्रजा के साम्हने अन्दर-बाहर आना-जाना कर सकूं।”—2 इतिहास 1:10.
पूरे दिल से यहोवा की सेवा करते रहिए
13 इस मिसाल से हम क्या सीखते हैं? यह वाकई काबिले-तारीफ है कि हम लगातार मंडली की सभाओं में हाज़िर होते हैं और प्रचार में भाग लेते हैं। मगर पूरे दिल से यहोवा की सेवा करने में इससे ज़्यादा कुछ शामिल है। (2 इति. 25:1, 2, 27) अगर एक मसीही के दिल में कहीं भी “पीछे छोड़ी हुई चीज़ों” के लिए यानी दुनिया की चीज़ों या उसके जीने के तरीके के लिए प्यार है, तो परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता खतरे में पड़ सकता है। (लूका 17:32) अगर हम ‘दुष्ट बातों से घिन करें और अच्छी बातों से लिपटे रहें,’ तभी हम “परमेश्वर के राज के लायक” होंगे। (रोमि. 12:9; लूका 9:62) इसलिए आइए हम सब ठान लें कि शैतान की दुनिया की कोई भी चीज़ हमें राज के कामों को पूरे दिलो-जान से करने से न रोक सके, फिर चाहे वह चीज़ हमें कितनी ही ज़रूरी या अच्छी क्यों न लगे।—2 कुरिं. 11:14; फिलिप्पियों 3:13, 14 पढ़िए।
“तू हिम्मत से काम ले . . . और काम में लग जा”
20 राजा दाविद ने सुलैमान को यकीन दिलाया कि जब तक मंदिर बनाने का काम पूरा नहीं हो जाता तब तक यहोवा उसके साथ रहेगा। (1 इति. 28:20) सुलैमान ने इस बात पर ज़रूर मनन किया होगा। कम उम्र और कम तजुरबे की वजह से वह इस काम से पीछे नहीं हटा। इसके बजाय, उसने हिम्मत रखी और यहोवा की मदद से उस आलीशान मंदिर को साढ़े सात साल में खड़ा किया।
21 जिस तरह यहोवा ने सुलैमान की मदद की, उसी तरह वह हमारी भी मदद करेगा ताकि हम हिम्मत रख सकें और परिवार और मंडली में अपना काम पूरा कर सकें। (यशा. 41:10, 13) अगर हम हिम्मत के साथ यहोवा की सेवा करें, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि वह हमें आज और भविष्य में आशीषें देगा। इसलिए आइए हिम्मत रखें और काम में लग जाएँ।
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कैसे निभाएँ दोस्ती, जब दाँव पर हो दोस्ती
दाविद के और भी दोस्त थे, जिन्होंने मुसीबत के वक्त उसका साथ दिया। हुशै दाविद का ऐसा ही दोस्त था। (2 शमू. 16:16; 1 इति. 27:33) वह शायद दरबारी था, जो राजा के साथ-साथ रहता था। वह कभी-कभी राजा के ऐसे आदेशों का पालन करता था, जो गुप्त होते थे।
जब दाविद का बेटा अबशालोम राजगद्दी हथियाने की कोशिश कर रहा था, तब बहुत-से इसराएली उसकी तरफ हो गए थे, मगर हुशै नहीं हुआ। वह दाविद के पास गया, जिसकी जान खतरे में थी। दाविद उस वक्त बहुत दुखी था, क्योंकि उसके अपने बेटे ने और उसके कुछ भरोसेमंद लोगों ने उससे गद्दारी की। लेकिन हुशै दाविद का वफादार रहा। उसने अपनी जान जोखिम में डालकर वह काम किया, जिससे दुश्मनों की साज़िश नाकाम हो गयी। हुशै ने यह काम सिर्फ इसलिए नहीं किया कि वह दरबारी था और यह उसका फर्ज़ बनता था, बल्कि सच्चे दोस्त होने के नाते किया।—2 शमू. 15:13-17, 32-37; 16:15–17:16.
20-26 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 इतिहास 1-4
“राजा सुलैमान ने लिया एक गलत फैसला”
इंसाइट-1 पेज 174 पै 5
सेना
इसराएल में सुलैमान ही वह पहला राजा था, जिसने अपनी सेना के लिए बहुत सारे घोड़े और रथ इकट्ठा किए थे। इनमें से ज़्यादातर घोड़े मिस्र से मँगवाए गए थे। उसके पास इतने सारे घोड़े और रथ थे कि इन्हें रखने के लिए इसराएल के अलग-अलग इलाकों में शहर बनवाने पड़े। (1रा 4:26; 9:19; 10:26, 29; 2इत 1:14-17) मगर सुलैमान की इस नयी रणनीति पर यहोवा ने कभी आशीष नहीं दी।—यश 31:1.
इंसाइट-1 पेज 427
रथ
सुलैमान के राज से पहले, इसराएल की सेना में बहुत सारे रथ नहीं थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि परमेश्वर ने आज्ञा दी थी कि राजा बहुत सारे घोड़े न हासिल करे। और जितने कम घोड़े होते उतने ही कम रथ होते क्योंकि घोड़ों से ही रथ चलते थे। (व्य 17:16) लेकिन अगर एक राजा बहुत सारे घोड़े हासिल करता, तो इसका मतलब यह होता कि उसे अपने देश की हिफाज़त के लिए अपनी सेना पर भरोसा है।
जब सुलैमान ने अपनी सेना बढ़ायी, तो उसने रथों की गिनती बढ़ाकर 1,400 कर दी। (1रा 10:26, 29; 2इत 1:14, 17) इन घोड़ों और रथों की देखभाल यरूशलेम में की जाती थी। इसके अलावा कुछ और नगर भी थे जिनमें इनकी देखभाल के लिए कुछ खास सुविधाएँ थीं। इन नगरों को ‘रथों के शहर’ कहा जाता था।—1रा 9:19, 22; 2इत 8:6, 9; 9:25.
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दूसरा इतिहास किताब की झलकियाँ
1:11, 12. सुलैमान की इस गुज़ारिश से यहोवा ने जाना कि बुद्धि और ज्ञान हासिल करना इस राजा की सबसे बड़ी ख्वाहिश थी। वाकई, हमारी प्रार्थनाएँ परमेश्वर को बताती हैं कि हमारी सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है। इसलिए यह जाँचना बुद्धिमानी होगी कि हम अपनी प्रार्थनाओं में यहोवा से क्या कहते हैं।
27 मार्च–2 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 इतिहास 5-7
“यह भवन सदा मेरे दिल के करीब रहेगा”
एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ो
बाद में जब दाऊद यरूशलेम का राजा बना तो उसने यहोवा के लिए एक स्थायी भवन बनाने की अपनी ज़बरदस्त इच्छा ज़ाहिर की ताकि इससे यहोवा की महिमा हो। दाऊद ने अपनी ज़िंदगी में कई युद्ध लड़े थे, इसलिए यहोवा ने उससे कहा: “तू मेरे नाम का भवन न बनाने पाएगा।” इसके बजाय यहोवा ने मंदिर बनाने के लिए दाऊद के बेटे सुलैमान को चुना। (1 इतिहास 22:6-10) मंदिर बनाने में साढ़े सात साल लग गए और आखिर में सा.यू.पू. 1026 में सुलैमान ने मंदिर का उद्घाटन किया। यहोवा ने उस इमारत पर यह कहकर अपनी मंज़ूरी ज़ाहिर की: “यह जो भवन तू ने बनाया है, उस में मैं ने अपना नाम सदा के लिये रखकर उसे पवित्र किया है; और मेरी आंखें और मेरा मन नित्य वहीं लगे रहेंगे।” (1 राजा 9:3) जब तक इस्राएली यहोवा के वफादार रहते तब तक यहोवा का अनुग्रह उस भवन पर बना रहता। लेकिन अगर वे सही रास्ते से हट जाते तो यहोवा का अनुग्रह उस जगह पर नहीं होता और वह ‘भवन मलबे का ढेर हो जाता।’ —1 राजा 9:4-9, NHT; 2 इतिहास 7:16, 19, 20.
इंसाइट-2 पेज 1077-1078
मंदिर
इतिहास: कई बार जब इसराएलियों ने यहोवा की उपासना करना छोड़ दिया, तो यहोवा ने दूसरे देशों को उन पर हमला करने और मंदिर का खज़ाना लूटने दिया। उदाहरण के लिए, मिस्र के राजा शीशक ने सुलैमान के बेटे रहूबियाम के दिनों में (ई.पू. 993) मंदिर का खज़ाना लूट लिया। यह मंदिर के उद्घाटन के करीब 33 साल बाद की ही बात थी। (1रा 14:25, 26; 2इत 12:9) आखिरकार, ई.पू. 607 में बैबिलोन के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया। (2रा 25:9; 2इत 36:19; यिर्म 52:13)
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वह “आदमियों के मन का जाननेवाला है”
सच, हम सुलैमान की प्रार्थना से दिलासा पा सकते हैं। चाहे एक इंसान हमारी भावनाएँ यानी हमारे मन के “दुःख” और “खेद” न समझ पाए, लेकिन यहोवा हमारा मन जानता है और उसे हमारी सच्ची परवाह है। (नीतिवचन 14:10) अगर हम दिल खोलकर उससे प्रार्थना करें, तो हमारे मन का बोझ हलका हो सकता है। बाइबल कहती है, “तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ उसी पर डाल दो, क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।”—1 पतरस 5:7.
10-16 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 इतिहास 8-9
“उसे बुद्धि की बहुत कदर थी”
जब दरियादिली दिखायी जाती है
इसमें कोई शक नहीं कि सुलैमान से मिलने के लिए शीबा की रानी को बड़ी ज़हमत उठानी पड़ी और अपना काफी समय भी लगाना पड़ा। शीबा देश शायद वहाँ था, जहाँ आज का यमन गणराज्य है; यानी कि यरूशलेम तक पहुँचने के लिए रानी को अपने ऊँटों के कारवाँ के साथ लगभग 1,600 किलोमीटर का लंबा सफर तय करना पड़ा था। यीशु ने उसके बारे में ठीक ही कहा था कि वह “पृथ्वी की छोर से आई” थी। लेकिन, आखिर ऐसी क्या बात थी कि शीबा की रानी ने यह ज़हमत उठाई? जी हाँ, वह खासकर “सुलैमान का ज्ञान सुनने” के लिए आयी थी।—लूका 11:31.
एक ऐसी मुलाकात जिसका अंजाम बहुत बढ़िया निकला
बात चाहे जो भी हो, शीबा की रानी “बहुत भारी दल, और मसालों, और बहुत सोने, और मणि से लदे ऊंट साथ लिये हुए” यरूशलेम पहुँची। (1 राजा 10:2क) कुछ विद्वान कहते हैं कि इस “भारी दल” के साथ हथियारबंद सैनिक भी थे। क्यों न हों, आखिर उन्हें एक गौरवशाली रानी की हिफाज़त जो करनी थी। और वह अपने साथ करोड़ों डॉलरों का बेशकीमती सामान लेकर सफर कर रही थी।
लेकिन, ध्यान दीजिए कि शीबा की रानी ने सुलैमान की जो कीर्ति सुनी वह “यहोवा के नाम के विषय” में थी। यानी वह सिर्फ व्यापार या लेन-देन के लिए सुलैमान के पास नहीं आयी थी। ज़ाहिर है कि उसके आने की एक खास वज़ह थी, सुलैमान की बुद्धि भरी बातें सुनना। और, खासकर हो सके तो सुलैमान के परमेश्वर यहोवा के बारे में कुछ बातें जानना। यह रानी शायद शेम या हाम के वंश की थी, जो यहोवा के उपासक थे। इसलिए वह अपने पूर्वजों के परमेश्वर के बारे में जानना चाहती थी।
एक ऐसी मुलाकात जिसका अंजाम बहुत बढ़िया निकला
जब शीबा की रानी ने सुलैमान की बुद्धि और उसके राज्य की खुशहाली देखी तो वह “दंग रह गई।” (1 राजा 10:4, 5, NHT) कुछ लोग इन शब्दों का मतलब यों बताते हैं कि रानी की “साँस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।” एक विद्वान ने तो यह भी कहा कि वह बेहोश हो गयी! सच चाहे जो भी हो, यह बात तो पक्की है कि रानी ने जो कुछ देखा और सुना, उससे वह चकित हो गई। उसने सुलैमान के सेवकों को धन्य कहा, क्योंकि उनको राजा की बुद्धिमानी की बातें सुनने का मौका मिलता था और उसने यहोवा की स्तुति की जिसने सुलैमान को राजगद्दी दी थी। बाद में उसने राजा को बहुत कीमती तोहफे दिए। उसने जो सोना दिया सिर्फ उसी की कीमत, आज के हिसाब से, लगभग 4,00,00,000 डॉलर थी। सुलैमान ने भी शीबा की रानी को तोहफे दिए, उसने “जो कुछ चाहा, वही राजा सुलैमान ने उसकी इच्छा के अनुसार उसको दिया।”—1 राजा 10:6-13.
झूठे ईश्वरों के विरुद्ध साक्षी
सुलैमान से मिलने आए लोगों में से प्रमुख थी शीबा की रानी। उस जाति और उसके राजा पर यहोवा की आशिष स्वयं देखने के बाद उसने कहा: ‘धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा, जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ, कि तुझे अपनी राजगद्दी पर इसलिये विराजमान किया कि तू अपने परमेश्वर यहोवा की ओर से राज्य करे; तेरे परमेश्वर ने इस्राएल से प्रेम किया।’—2 इतिहास 9:8.
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इंसाइट-2 पेज 1097
राजगद्दी
इसराएल में जितने भी राजा हुए थे, उनमें से सिर्फ सुलैमान की राजगद्दी के बारे में बारीकी से बताया गया है। (1रा 10:18-20; 2इत 9:17-19) बाइबल में लिखा है, “राजगद्दी के दोनों तरफ हाथ रखने के लिए टेक बनी थी और दोनों तरफ टेक के पास एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था। राजगद्दी तक जानेवाली छ: सीढ़ियों में से हर सीढ़ी के दोनों तरफ भी एक-एक शेर खड़ा हुआ बना था यानी कुल मिलाकर 12 शेर थे।” (2इत 9:17-19) ये शेर राजा सुलैमान के अधिकार की निशानी थे। (उत 49:9, 10; प्रक 5:5) और सीढ़ियों पर बने 12 शेर शायद इसराएल के 12 गोत्रों को दर्शाते थे, जो इस राजगद्दी पर बैठनेवाले राजा का साथ देते थे।
17-23 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 इतिहास 10-12
“अच्छी सलाह मानने के फायदे”
वह परमेश्वर की मंज़ूरी पा सकता था
रहूबियाम बड़ी उलझन में पड़ गया। अगर वह लोगों की बात मान ले, तो शायद उसे और उसके परिवार को और राजमहल में रहनेवाले लोगों को कुछ ऐशो-आराम की चीज़ें छोड़नी पड़ें। लेकिन अगर वह लोगों की गुज़ारिश सुनने से इनकार कर दे, तो हो सकता है कि वे उससे बगावत करने लगें। ऐसे में उसने क्या किया? सबसे पहले तो उसने उन बुज़ुर्गों से बातचीत की, जो उसके पिता की मदद करते थे। उन्होंने उसे सलाह दी कि वह लोगों की सुने। फिर उसने अपनी ही उम्र के जवानों से भी सलाह ली और लोगों पर ज़ुल्म करने का फैसला किया। उसने लोगों से कहा, “मैं तुम लोगों का बोझ और भारी कर दूँगा, उसे बढ़ा दूँगा। मेरा पिता तुम्हें कोड़ों से पिटवाता था, मगर मैं तुम्हें कीलोंवाले कोड़ों से पिटवाऊँगा।”—2 इति. 10:6-14.
आप सही फैसले कैसे कर सकते हैं
यहोवा ने कलीसिया में अनुभवी लोगों का भी इंतज़ाम किया है जिनसे हम अपने फैसलों के बारे में बात कर सकते हैं। (इफिसियों 4:11,12) मगर हमें ऐसे लोगों की तरह नहीं होना चाहिए जो सलाह माँगने के लिए हर किसी के पास जाते हैं जब तक कि उन्हें उनके मन मुताबिक सलाह देनेवाला न मिल जाए। फिर वे उसकी सलाह पर चलते हैं। हमें रहूबियाम का उदाहरण भी याद रखना चाहिए जो एक चेतावनी है। जब उसे एक गंभीर फैसला करना था तब उसके पिता के साथ सेवा कर चुके कुछ बुज़ुर्गों ने उसे बेहतरीन सलाह दी। लेकिन उसने उनकी सलाह ठुकराकर ऐसे नौजवानों से राय माँगी जो उसी के साथ पले-बड़े थे। उन नौजवानों की बातों में आकर उसने बड़ी मूर्खता का फैसला किया और नतीजा यह हुआ कि वह अपने राज्य के बहुत बड़े हिस्से से हाथ धो बैठा।—1 राजा 12:1-17.
इसलिए जब आपको सलाह की ज़रूरत हो तो ऐसे लोगों के पास जाइए जिन्हें ज़िंदगी का तजुर्बा हो, बाइबल का अच्छा ज्ञान रखते हों और जिनके दिल में सही उसूलों के लिए गहरी कदर हो। (नीतिवचन 1:5; 11:14; 13:20) हो सके तो अपने मामले से जुड़े सभी सिद्धांतों पर और उसके बारे में आपने जो अध्ययन किया है, उस पर समय निकालकर मनन कीजिए। इस तरह जब आप यहोवा के वचन के आधार पर अपने मामले को अच्छी तरह समझ पाएँगे तो आपके लिए सही फैसला करना आसान हो सकता है।—फिलिप्पियों 4:6,7.
इंसाइट-2 पेज 768 पै 1
रहूबियाम
रहूबियाम बहुत घमंडी था और उसे लोगों की भावनाओं की कोई परवाह नहीं था। इसलिए ज़्यादातर लोगों ने उसका साथ देना छोड़ दिया। इसराएल के 12 गोत्रों में से सिर्फ यहूदा और बिन्यामीन गोत्र और बाकी गोत्रों के कुछ लोग उसका साथ देते रहे। इसके अलावा, पूरे इसराएल के याजक और लेवी उसका साथ देते रहे।—1रा 12:16, 17; 2इत 10:16, 17; 11:13, 14, 16.
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इंसाइट-1 पेज 966-967
बकरा
यहोशू 24:14 से पता चलता है कि मिस्र में रहते वक्त इसराएलियों पर कुछ हद तक झूठी उपासना का असर हुआ था। (यहे 23:8, 21) इसी वजह से कुछ विद्वानों का मानना है कि जब बाइबल में कहा गया है कि यारोबाम ने “बकरों” के लिए याजक ठहराए थे, तो इस बात से पता चलता है कि इसराएली मिस्र के लोगों के जैसे किसी-न-किसी तरह बकरों की पूजा करने लगे थे। (2इत 11:15, फु.)
लेकिन यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इन “बकरों” का क्या मतलब है। हो सकता है यह शब्द यह बताने के लिए इस्तेमाल किया गया हो कि लोग जिन झूठे देवताओं की पूजा करते थे वे शायद बकरों की तरह दिखते थे। या हो सकता है कि यह शब्द सिर्फ यह बताने के लिए इस्तेमाल किया गया हो कि सभी मूर्तियाँ घिनौनी हैं। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। “मूर्तियों” के लिए जो इब्रानी शब्द इस्तेमाल हुआ है, उसका मतलब है “मल।” लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि मूर्तियाँ सचमुच में मल से बनी थीं। इसके बजाय इब्रानी में शब्द “मल” सिर्फ यह बताने के लिए इस्तेमाल हुआ था कि मूर्तियाँ घिनौनी हैं।—लैव 26:30, फु.; व्य 29:17, फु.
24-30 अप्रैल
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 इतिहास 13-16
“हर मामले में यहोवा पर भरोसा रखें”
जवान भाइयो, आप दूसरों का भरोसा कैसे जीत सकते हैं?
12 जब आसा जवान था, तो वह बहुत नम्र और हिम्मतवाला था। अपने पिता अबियाह के बाद जब उसे राजा बनाया गया, तो उसने पूरे देश में मूर्तिपूजा को मिटाने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाया। उसने “यहूदा के लोगों को बढ़ावा दिया कि वे अपने पुरखों के परमेश्वर यहोवा की खोज करें और उसके कानून और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।” (2 इति. 14:1-7) बाद में जब इथियोपिया का राजा जेरह दस लाख सैनिक लेकर यहूदा पर हमला करने आया, तो आसा ने यहोवा पर भरोसा रखा और उससे मदद माँगी। उसने कहा, “हे यहोवा, तू जिन लोगों की मदद करना चाहता है, उनकी मदद ज़रूर कर सकता है, फिर चाहे वे गिनती में ज़्यादा हों या उनके पास ताकत न हो। हे हमारे परमेश्वर यहोवा, हमारी मदद कर क्योंकि हमने तुझ पर भरोसा किया है।” इस प्रार्थना से पता चलता है कि आसा को यहोवा पर पूरा यकीन था कि वह उसे और उसके लोगों को ज़रूर बचाएगा। आसा ने यहोवा पर भरोसा किया और ‘यहोवा ने इथियोपिया के लोगों को हरा दिया।’—2 इति. 14:8-12.
जवान भाइयो, आप दूसरों का भरोसा कैसे जीत सकते हैं?
13 ज़रा सोचिए, दस लाख लोगों की सेना का मुकाबला करना कोई आसान बात नहीं थी। पर आसा ने यहोवा पर भरोसा रखा, इसलिए वह उनका मुकाबला कर सका। लेकिन कुछ समय बाद, इसराएल का दुष्ट राजा बाशा एक छोटी-सी सेना लेकर यहूदा पर हमला करने आया। उस वक्त आसा ने यहोवा पर भरोसा नहीं किया बल्कि उसने सीरिया के राजा से मदद माँगी। इस फैसले का बहुत बुरा अंजाम हुआ। तब से आसा लगातार युद्ध में ही उलझा रहा। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता हनानी के ज़रिए आसा से कहा, “तूने अपने परमेश्वर यहोवा पर भरोसा करने के बजाय सीरिया के राजा पर भरोसा किया, इसलिए सीरिया के राजा की सेना तेरे हाथ से निकल गयी है।” (2 इति. 16:7, 9; 1 राजा 15:32) इससे आप क्या सीखते हैं?
जवान भाइयो, आप दूसरों का भरोसा कैसे जीत सकते हैं?
14 नम्र रहिए और यहोवा पर भरोसा करते रहिए। जब आपने बपतिस्मा लिया, तब आपको यहोवा पर पूरा भरोसा था और यहोवा आपके इस फैसले से खुश था। लेकिन यहोवा पर भरोसा करना मत छोड़िए। यह सच है कि जब आपको ज़िंदगी में बड़े-बड़े फैसले करने होते हैं, तो आप यहोवा पर निर्भर रहते हैं। लेकिन छोटे-छोटे फैसलों के बारे में क्या? क्या तब भी आप यहोवा पर भरोसा करते हैं? आपको छोटे-बड़े सभी फैसलों में यहोवा पर निर्भर रहना चाहिए, फिर चाहे मनोरंजन करने की बात हो, नौकरी करने की बात हो या ज़िंदगी में कोई लक्ष्य रखने की। इन मामलों में बाइबल के सिद्धांत ढूँढ़िए और फिर फैसले कीजिए। (नीति. 3:5, 6) इससे यहोवा खुश होगा और आप मंडली में एक अच्छा नाम बना पाएँगे।—1 तीमुथियुस 4:12 पढ़िए।
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पूरे दिल से यहोवा की सेवा कीजिए!
7 हम कैसे जान सकते हैं कि हम यहोवा की सेवा में पूरी तरह लगे हुए हैं या नहीं? खुद से पूछिए, ‘क्या मैं तब भी यहोवा की आज्ञा मानूँगा, जब उसे मानना मेरे लिए मुश्किल हो? क्या मैंने ठान लिया है कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूँगा, जिससे यहोवा की शुद्ध मंडली पर दाग लगे?’ ज़रा सोचिए कि जब आसा ने अपनी दादी को राजमाता के पद से हटाया, तो उसे कितनी हिम्मत से काम लेना पड़ा होगा। कभी-कभी शायद आपको भी हिम्मत से काम लेना पड़े। जैसे, अगर आपके परिवार का कोई सदस्य या आपका दोस्त पाप करता है और पश्चाताप नहीं करता और इस वजह से उसका बहिष्कार कर दिया जाता है, तो आप क्या करेंगे? क्या आप ठान लेंगे कि आप उससे कोई नाता नहीं रखेंगे? आपके मन में क्या आएगा?