“उन पहिले दिनों को स्मरण करो” क्यों?
“उन पहिले दिनों को स्मरण करो।” प्रेरित पौलुस की यह सलाह, जिसे सा.यु. ६१ के क़रीब लिखा गया था, यहूदिया के इब्रानी मसीहियों को दी गयी थी। (इब्रानियों १०:३२) इस टिप्पणी का कारण क्या था? उन प्रथम-शताब्दी यहोवा के उपासकों के लिए अतीत को न भूलने की ज़रूरत क्यों थी? आज एक समान अनुस्मारक को मानने से क्या हम लाभ प्राप्त कर सकते हैं?
शताब्दियों से, बाइबल लेखकों ने अतीत को महत्त्वहीन समझने या उस पर ध्यान न देने के विरुद्ध बार-बार चिताया है। पहले के समयों को और घटनाओं को मन में रखा जाना था और उन पर ध्यान देना था। यहोवा ने भी कहा: “प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से हैं; क्योंकि ईश्वर मैं ही हूं, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूं और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है।” (यशायाह ४६:९) आइए इस सलाह को मानने के तीन महत्त्वपूर्ण कारणों की जाँच करें।
प्रेरणा और प्रोत्साहन
पहला, यह प्रेरणा और प्रोत्साहन का बड़ा कारण हो सकता है। जब पौलुस ने इब्रानी कलीसिया को अपनी पत्री लिखी, तो वह ऐसे संगी मसीहियों को लिख रहा था जिनका विश्वास यहूदियों के विरोध के कारण हर दिन परखा जाता था। धीरज विकसित करने की उनकी ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए, पौलुस ने कहा: “उन पहिले दिनों को स्मरण करो, जिन में तुम ज्योति पाकर दुखों के बड़े झमेले में स्थिर रहे।” (इब्रानियों १०:३२) आध्यात्मिक युद्ध में निष्ठा के गत कार्यों को याद करना उन्हें इस दौड़ को पूरा करने के लिए ज़रूरी साहस देता। उसी समान, भविष्यवक्ता यशायाह ने लिखा: “इस बात को स्मरण करो और स्थिर रहो।” (यशायाह ४६:८, फुटनोट) इसी चाहनेयोग्य प्रभाव को मन में रखते हुए यीशु मसीह ने इफिसुस की कलीसिया को कहा: “इसलिए स्मरण कर कि तू कहां से [अपने पहले-से प्रेम से] गिरा है और मन फिरा और पहिले के समान कार्य कर।”—प्रकाशितवाक्य २:४, ५, NHT.
“प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण करो, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षों को विचारो” का यह प्रबोधन, इस्राएल को दिए गए मूसा के भाषणों में बार-बार आनेवाला विषय था, जब उसने उस जाति से यहोवा के प्रति निर्भीक निष्ठा का आवाहन किया। (व्यवस्थाविवरण ३२:७) व्यवस्थाविवरण ७:१८ में अभिलिखित उसके शब्दों पर ध्यान दीजिए: “तौभी उन [कनानियों] से न डरना, जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने फ़िरौन से और सारे मिस्र से किया उसे भली भांति स्मरण रखना।” अपने लोगों के पक्ष में किए गए यहोवा के उद्धारक कार्यों को याद करना, परमेश्वर के नियमों को लगातार वफ़ादारी से उनके द्वारा पालन किए जाने के लिए एक प्रेरणा होना था।—व्यवस्थाविवरण ५:१५; १५:१५.
दुःख की बात है, इस्राएली बार-बार भूलने के पाप में पड़ गए। इसका परिणाम क्या हुआ? “वे बारबार ईश्वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे। उन्हों ने न तो उसका भुजबल स्मरण किया, न वह दिन जब उस ने उनको द्रोही के वश से छुड़ाया था।” (भजन ७८:४१, ४२) आख़िरकार, यहोवा की आज्ञाओं को भूलते रहने का परिणाम हुआ उन्हें अस्वीकार किया जाना।—मत्ती २१:४२, ४३.
भजनहार द्वारा एक उत्तम उदाहरण रखा गया जिसने लिखा: “मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्भुत कामों को स्मरण करूंगा। मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।” (भजन ७७:११, १२) अतीत की निष्ठावान् सेवा और यहोवा के प्रेमपूर्ण कार्यों को यूँ मनन करते हुए याद करना हमें आवश्यक प्रेरणा, प्रोत्साहन और क़दरदानी देगा। साथ ही, ‘उन पहिले दिनों को स्मरण करना’ थकान को दूर करने का काम कर सकता है और हम जितना कर सकते हैं वह करने और वफ़ादारी से धीरज धरने के लिए हमें प्रेरित कर सकता है।
पिछली ग़लतियों से सीखना
दूसरा, न भूलना पिछली ग़लतियों और उनके परिणामों से सीखने का एक ज़रिया हो सकता है। इस बात को मन में रखते हुए, मूसा ने इस्राएलियों को सलाह दी: “इस बात का स्मरण रख और कभी भी न भूलना, कि जंगल में तू ने किस किस रीति से अपने परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया; और जिस दिन से तू मिस्र देश से निकला है जब तक तुम इस स्थान पर न पहुंचे तब तक तुम यहोवा से बलवा ही बलवा करते आए हो।” (व्यवस्थाविवरण ९:७) इस्राएलियों की ओर से ऐसी अवज्ञाकारिता के परिणाम की ओर मूसा ने ध्यान आकर्षित किया कि ‘उनका परमेश्वर यहोवा उन चालीस वर्षों में उन्हें सारे जंगल के मार्ग में ले चला।’ इसे याद रखने के लिए उनको क्यों प्रोत्साहित किया गया था? यह उनको नम्र बनाने और उनके विद्रोही मार्गों के एक सुधार के तौर पर कार्य करने के लिए था, जिससे वे ‘अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते हुए उसके मार्गों पर चलते, और उसका भय मानते रहते।’ (व्यवस्थाविवरण ८:२-६) उन्हें अपनी पिछली ग़लतियों को न दोहराने के अर्थ में सीखना था।
एक लेखक ने कहा: “एक समझदार व्यक्ति व्यक्तिगत अनुभव से सीखता है, एक बुद्धिमान जन दूसरों के अनुभव से।” जबकि मूसा ने इस्राएल के लोगों को अपनी पिछली ग़लतियों पर ध्यान देने के द्वारा सीखने को कहा, प्रेरित पौलुस ने दूसरों को—प्रथम-शताब्दी कुरिन्थ कलीसिया, और विस्तृत रूप से हमें—उसी ऐतिहासिक अभिलेख से एक सबक़ सीखने की सलाह दी। उसने लिखा: “परन्तु ये सब बातें, जो उन [इस्राएलियों] पर पड़ीं, दृष्टान्त की रीति पर थीं: और वे हमारी चितावनी के लिये जो जगत के अन्तिम समय में रहते हैं लिखी गईं हैं।” (तिरछे टाइप हमारे।) (१ कुरिन्थियों १०:११) यीशु मसीह के मन में एक अन्य प्राचीन बाइबलीय घटना थी और उससे सीखने की ज़रूरत थी जब उसने कहा: “लूत की पत्नी को स्मरण रखो।” (लूका १७:३२; उत्पत्ति १९:१-२६) अंग्रेज़ कवि और दार्शनिक सैमुएल टेलर कॉलरिज ने लिखा: “काश मनुष्य इतिहास से सीख पाते, तो वह हमें कितने सबक़ सिखा सकता है!”
मर्यादा और कृतज्ञता
तीसरा, स्मरण करना हम में परमेश्वर को प्रसन्न करनेवाले मर्यादा और कृतज्ञता के गुण पैदा कर सकता है। जब हम अपने विश्वव्याप्त आध्यात्मिक परादीस के अनेक पहलुओं में आनन्द मनाते हैं, ऐसा हो कि हम कभी न भूलें कि वह कुछ आधार-शिलाओं पर खड़ा है। इनमें निष्ठा, प्रेम, आत्म-त्याग, कठिनाई का सामना करते वक़्त साहस, धीरज, सहिष्णुता, और विश्वास शामिल हैं—हमारे ऐसे मसीही भाई-बहनों द्वारा दिखाए गए गुण जिन्होंने दशकों पहले विभिन्न देशों में कार्य की शुरूआत की। मॆक्सिको में परमेश्वर के लोगों के आधुनिक इतिहास पर अपनी रिपोर्ट को ख़त्म करते वक़्त, यहोवा के साक्षियों की वार्षिकी १९९५ ने कहा: “उन व्यक्तियों को जो केवल हाल ही में यहोवा के साक्षियों की संगति में आए हैं, मॆक्सिको में कार्य की शुरूआत करने में भाग लेनेवालों द्वारा झेली गयीं कठिनाइयों से शायद आश्चर्य हो। वे एक आध्यात्मिक परादीस के आदी हो चुके हैं जहाँ भरपूर आध्यात्मिक अन्न है, जहाँ लाखों परमेश्वर का भय माननेवाले साथी हैं, और जहाँ परमेश्वर की सेवा एक सुव्यवस्थित तरीक़े से की जाती है।”
उन प्रारंभिक अग्रगामियों ने अकसर अकेले या छोटे अलग-थलग समूहों में कार्य किया। राज्य संदेश को घोषित करने में जब वे लगे रहे, उन्होंने अकेलेपन, अभाव के कष्ट, और खराई की अन्य कठिन परीक्षाओं का सामना किया। हालाँकि प्रारंभिक समय के इन सेवकों में से अनेक व्यक्ति अब नहीं रहे, यह जानना कितना सुखद है कि यहोवा उनकी वफ़ादार सेवा को स्मरण रखता है! प्रेरित पौलुस ने इसकी पुष्टि की, जब उसने लिखा: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रानियों ६:१०) अगर यहोवा क़दरदानी से स्मरण रखता है, तो क्या हमें भी कृतज्ञता की भावना के साथ ऐसा ही नहीं करना चाहिए?
जो सत्य के साथ अभी-अभी परिचित हुए हैं वे इस ऐतिहासिक जानकारी को यहोवा के साक्षी—परमेश्वर के राज्य के उद्घोषक (अंग्रेज़ी) प्रकाशन के ज़रिए प्राप्त कर सकते हैं।a इसके अलावा, अगर हमें एक ऐसे परिवार या एक ऐसी मसीही कलीसिया का भाग होने का विशेषाधिकार प्राप्त है जिसके सदस्यों में लम्बे अरसे से सेवा करनेवाले वृद्ध भाई या बहने हैं, तो हमसे व्यवस्थाविवरण ३२:७ (NHT) की आत्मा में आग्रह किया जाता है कि “प्राचीनकाल के दिनों को स्मरण कर, पीढ़ी पीढ़ी के वर्षों पर विचार कर। अपने पिता से पूछ, वह तुझे बताएगा और अपने प्राचीनों से, वे तुझे समझाएंगे।”
जी हाँ, ईश्वरीय भक्ति के गत कार्यों को याद करना हमें प्रेरित कर सकता है कि अपनी मसीही सेवा में आनन्द से धीरज धरना जारी रखें। साथ ही, इतिहास में ऐसे सबक़ हैं जो हमें सीखने की ज़रूरत है। और परमेश्वर द्वारा हमारे आशीष-प्राप्त आध्यात्मिक परादीस पर मनन करना मर्यादा और कृतज्ञता के मनभावने गुणों को जन्म देता है। सचमुच, “उन पहिले दिनों को स्मरण करो।”
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।