बाइबल पढ़ाई से पूरा-पूरा फायदा उठाइए
‘मैं परमेश्वर के कानून में खुशी पाता हूँ।’—रोमि. 7:22.
1-3. बाइबल पढ़ने और उसकी शिक्षाएँ लागू करने से क्या फायदे हो सकते हैं?
“मैं हर सुबह यहोवा का धन्यवाद करती हूँ कि उसने मुझे बाइबल समझने में मदद दी।” ये शब्द एक बुज़ुर्ग मसीही बहन के हैं जिसने 40 से भी ज़्यादा बार पूरी बाइबल पढ़ी है और आज भी पढ़ रही है। एक जवान बहन का कहना है कि बाइबल पढ़ने से यहोवा उसके लिए एक असल शख्स बन गया। नतीजा, वह यहोवा के और करीब आ पायी है। वह कहती है, “मैं अपनी ज़िंदगी में इतनी खुश पहले कभी नहीं थी!”
2 प्रेषित पतरस ने सभी को बढ़ावा दिया, “शुद्ध दूध के लिए, जो परमेश्वर के वचन में पाया जाता है, ज़बरदस्त भूख पैदा करो।” (1 पत. 2:2) जब हम अपनी यह भूख बाइबल अध्ययन करके पूरी करते हैं और बाइबल की शिक्षाओं को अपनी ज़िंदगी में लागू करते हैं, तो हमारा ज़मीर साफ बना रहता है और हमें जीने का एक मकसद मिलता है। हम ऐसे लोगों के साथ गहरी दोस्ती कायम कर पाते हैं जो परमेश्वर से प्यार करते हैं और उसकी उपासना करते हैं। इन आशीषों का लुत्फ उठाने के लिए ज़रूरी है कि हम “परमेश्वर के कानून में खुशी” पाएँ। (रोमि. 7:22) ऐसा करने के और भी फायदे हैं। उनमें से कुछ क्या हैं? आइए देखें।
3 जितना ज़्यादा आप यहोवा और उसके बेटे यीशु के बारे में जानेंगे उतना ज़्यादा आपका उन दोनों और लोगों के लिए प्यार बढ़ेगा। बाइबल का सही ज्ञान लेने से आप जान पाएँगे कि बहुत जल्द जब परमेश्वर इस व्यवस्था का नाश करेगा तब वह कैसे आज्ञा माननेवालों को बचाएगा। जब आप प्रचार में लोगों से मिलते हैं तो उन्हें यह खुशखबरी सुना सकते हैं। और जब आप परमेश्वर के वचन से सीखी बातें दूसरों को बताएँगे तो यहोवा ज़रूर आपको आशीष देगा।
पढ़िए और मनन कीजिए
4. “मंद स्वर” में बाइबल पढ़ने का क्या मतलब है?
4 यहोवा नहीं चाहता कि उसके सेवक जल्दबाज़ी में उसका वचन पढ़ें। बीते समय में उसने यहोशू को हिदायत दी: “कानून की यह किताब तेरे मुँह से न हटे, इसे दिन-रात मंद स्वर में पढ़ना।” (यहो. 1:8, एन.डब्ल्यू.; भज. 1:2) क्या इस हिदायत का मतलब यह है कि हमें उत्पत्ति से प्रकाशितवाक्य की सभी आयतें धीमी आवाज़ में पढ़नी चाहिए? जी नहीं। इसका मतलब है कि हमें बाइबल की आयतें इस गति से पढ़नी चाहिए कि हम उन पर मनन कर पाएँ। “मंद स्वर में” बाइबल पढ़ने से आप उन आयतों पर ध्यान दे पाएँगे जो खासकर उस वक्त आपकी मदद कर सकती हैं और आपका हौसला बढ़ा सकती हैं। जब आप ऐसे वाक्य, आयतें या ब्यौरे पढ़ते हैं तो उन्हें धीरे-धीरे पढ़िए, आप चाहे तो उन्हें धीमी आवाज़ में भी पढ़ सकते हैं। इस तरह पढ़ने से हो सकता है बाइबल में दर्ज़ कोई बात आपके दिल को छू जाए। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि जब हम परमेश्वर के वचन में दी सलाह पूरी तरह समझ जाते हैं, तो हमें इसे अपने जीवन में लागू करने का बढ़ावा मिलता है।
5-7. उदाहरण देकर समझाइए कि कैसे मंद स्वर में बाइबल पढ़ने से आपको (क) परमेश्वर के नैतिक स्तरों पर चलने में मदद मिलेगी; (ख) दूसरों के साथ सब्र और प्यार से पेश आने में मदद मिलेगी; (ग) मुश्किल समय में भी यहोवा पर भरोसा बनाए रखने में मदद मिलेगी।
5 मंद स्वर में बाइबल पढ़ने का एक फायदा है आपको उन किताबों पर मनन करने का मौका मिलता है जिन्हें समझना आपको मुश्किल लगता है। इस बात को समझने के लिए तीन उदाहरणों पर गौर कीजिए। पहला, एक जवान मसीही भाई के बारे में सोचिए जो मंद स्वर में होशे की किताब पढ़ रहा है। अध्याय 4 की आयत 11 से 13 पढ़ने के बाद वह कुछ देर रुक जाता है। (होशे 4:11-13 पढ़िए।) उन आयतों ने उसका ध्यान क्यों खींचा? क्योंकि वह स्कूल में अनैतिक काम करने के दबाव का सामना कर रहा है। वह उन आयतों पर गौर करता है और सोचता है, ‘यहोवा उन गलत कामों को भी देख सकता है जो लोग अकेले में करते हैं। मैं उसे ठेस नहीं पहुँचाना चाहता।’ इसलिए भाई ठान लेता है कि वह परमेश्वर के ठहराए नैतिक स्तरों पर चलेगा और उसकी नज़र में शुद्ध बना रहेगा।
6 दूसरे उदाहरण में एक मसीही बहन योएल की भविष्यवाणी पढ़ रही है। वह अध्याय 2 आयत 13 पर आकर रुकती है। (योएल 2:13 पढ़िए।) इस आयत को मंद स्वर में पढ़ते वक्त वह सोचती है कि कैसे वह यहोवा की मिसाल पर चल सकती है जो “अनुग्रहकारी, दयालु, विलम्ब से क्रोध करनेवाला, करुणानिधान” है। वह फैसला करती है कि अब से वह अपने पति और दूसरों पर ताने नहीं कसेगी और न ही गुस्से में आकर उन्हें कुछ बुरा-भला कहेगी, जैसे वह कभी-कभार कह देती है।
7 तीसरा, एक ऐसे मसीही पिता की कल्पना कीजिए जिसकी नौकरी छूट गयी है और जिसे इस बात की चिंता है कि वह कैसे अपनी पत्नी और बच्चों की देखभाल करेगा। वह नहूम 1:7 में पढ़ता है कि यहोवा “अपने शरणागतों की सुधी रखता है” और “संकट के दिन में वह दृढ़ गढ़” की तरह उनकी हिफाज़त करता है। यह पढ़कर उसे बहुत दिलासा मिलता है। वह यहोवा की प्यार-भरी परवाह को महसूस करता है और हद-से-ज़्यादा चिंता करना छोड़ देता है। फिर वह आयत 15 मंद स्वर में पढ़ता है। (नहूम 1:15 पढ़िए।) हमारे इस भाई को एहसास होता है कि मुश्किल समय में भी खुशखबरी का प्रचार करके, वह इस बात का सबूत दे सकता है कि यहोवा उसका दृढ़ गढ़ है। भाई ठान लेता है कि नौकरी ढूँढ़ने के साथ-साथ वह सप्ताह के दौरान होनेवाले प्रचार काम में भी हिस्सा लेगा।
8. चंद शब्दों में बताइए कि बाइबल पढ़ते वक्त आपने कौन-सा अनमोल खज़ाना पाया है?
8 जिन मुद्दों पर अभी हमने गौर किया, वे बाइबल की उन किताबों से हैं जिन्हें समझना शायद कुछ लोगों को मुश्किल लगे। जब आप होशे, योएल और नहूम की किताबें इस इरादे से पढ़ेंगे कि आप उनसे कुछ सीख पाएँ, तो आपको उनमें दी दूसरी आयतें पढ़ने का भी मन करेगा। ज़रा सोचिए हमें इन भविष्यवक्ताओं की किताबों से कितनी बुद्धि और दिलासा मिलता है! दरअसल, बाइबल की सभी किताबों से हमें मदद मिल सकती है। परमेश्वर का वचन हीरे की खान की तरह है। जब आप बाइबल पढ़ते हैं तो इन हीरों की तलाश कीजिए, जिनसे आपको परमेश्वर का मार्गदर्शन मिलेगा और आपका हौसला बढ़ेगा।
समझ हासिल करने की जी-तोड़ कोशिश कीजिए
9. हम परमेश्वर की मरज़ी के बारे में अपनी समझ कैसे बढ़ा सकते हैं?
9 हर दिन बाइबल का एक हिस्सा पढ़ना ज़रूरी है, क्योंकि इससे आपको ज्ञान मिलेगा लेकिन इसके साथ-साथ आपको समझ भी हासिल करनी चाहिए। आप यहोवा के संगठन के प्रकाशित साहित्यों में उन लोगों की संस्कृति, जगहों और घटनाओं के बारे में खोजबीन कर सकते हैं जिनके बारे में आपने पढ़ा है। अगर बाइबल पढ़ते वक्त आप सोचते हैं कि उसमें बतायी कोई बात ज़िंदगी में कैसे लागू करें, तो आप मंडली के किसी प्राचीन या तजुरबेकार मसीही से मदद ले सकते हैं। अपनी समझ बढ़ाना क्यों ज़रूरी है, इसे समझने के लिए आइए हम पहली सदी के एक मसीही पर ध्यान दें जिसे सच्चाई की सही समझ हासिल करने की ज़रूरत थी। वह था अपुल्लोस।
10, 11. (क) अपुल्लोस को खुशखबरी का एक बेहतर सेवक बनने में किस तरह मदद मिली? (ख) अपुल्लोस के वाकये से हम क्या सीखते हैं? (बक्स “क्या आप नयी समझ के मुताबिक सिखा रहे हैं?” देखिए।)
10 अपुल्लोस एक यहूदी मसीही था जो “शास्त्र का बहुत अच्छा ज्ञान रखता था” और “पवित्र शक्ति के तेज से भरपूर था।” प्रेषितों की किताब उसके बारे में कहती है: “वह यीशु के बारे में सही-सही बातें बोलता और सिखाता था। मगर उसे सिर्फ उस बपतिस्मे की जानकारी थी जिसका यूहन्ना ने प्रचार किया था।” अनजाने में अपुल्लोस बपतिस्मे के बारे में पुरानी समझ दे रहा था। इफिसुस में उसकी बातें सुनने के बाद प्रिस्किल्ला और अक्विला नाम के एक मसीही जोड़े ने उसे “परमेश्वर के मार्ग की बारीकियों की और भी सही समझ दी।” (प्रेषि. 18:24-26) इससे अपुल्लोस को क्या फायदा हुआ?
11 इफिसुस में प्रचार करने के बाद अपुल्लोस अखया प्रांत गया। वहाँ “पहुँचने के बाद, अपुल्लोस ने उन लोगों की बहुत मदद की जिन्होंने परमेश्वर की महा-कृपा की वजह से विश्वास किया था, क्योंकि उसने सरेआम और बड़े दमदार तरीके से यहूदियों को पूरी तरह से गलत साबित किया और शास्त्र से साफ-साफ दिखाया कि यीशु ही मसीह था।” (प्रेषि. 18:27, 28) अब अपुल्लोस मसीही बपतिस्मे की सही समझ दे सकता था। इस वजह से वह नए लोगों की “बहुत मदद” कर पाया, ताकि वे सच्ची उपासना में तरक्की कर सकें। इस वाकये से हम क्या सीखते हैं? यही कि अपुल्लोस की तरह हम बाइबल में जो पढ़ते हैं, उसकी समझ हासिल करने की हमें जी-तोड़ कोशिश करनी चाहिए। साथ ही, अगर एक अनुभवी मसीही भाई या बहन हमें सुझाव देता है कि हम कैसे और भी असरदार तरीके से सिखा सकते हैं, तो हमें नम्रता और एहसान-भरे दिल से उसे कबूल करना चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो हम और भी अच्छी तरह यहोवा की सेवा कर पाएँगे।
सीखी हुई बातों से दूसरों की मदद कीजिए
12, 13. मिसाल देकर समझाइए कि आप बाइबल विद्यार्थी को आध्यात्मिक तरक्की करने में शास्त्र का समझदारी से कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?
12 प्रिस्किल्ला, अक्विला और अपुल्लोस की तरह हम भी दूसरों की मदद कर सकते हैं। जब आप बाइबल में दिलचस्पी दिखानेवाले किसी व्यक्ति की मदद करते हैं ताकि वह अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाए और फिर वह आध्यात्मिक तरक्की करता है, तो आपको कैसा लगता है? या फिर एक प्राचीन के नाते आप उस वक्त कैसा महसूस करते हैं जब कोई मसीही आपका शुक्रियादा करता है क्योंकि आपने उसे मुश्किल घड़ी में बाइबल से सलाह दी थी जिससे उसे मदद मिली? बेशक जब हम बाइबल की मदद से किसी को अपनी ज़िंदगी और बेहतर बनाने में मदद देते हैं, तो हमें संतोष और खुशी मिलती है।a आप लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं?
13 एलिय्याह के दिनों में कई इसराएली सच्ची और झूठी उपासना के बीच डाँवाँडोल हो रहे थे। एलिय्याह ने उन्हें जो सलाह दी थी, उसे जानने से हम उन बाइबल विद्यार्थियों की मदद कर पाएँगे जो आध्यात्मिक तरक्की करने से पीछे हटते हैं। (1 राजा 18:21 पढ़िए।) मान लीजिए एक बाइबल विद्यार्थी इस बात से डरता है कि बाइबल अध्ययन करने से उसके दोस्त या परिवारवाले उसके साथ कैसे पेश आएँगे। ऐसे में आप उसके साथ यशायाह 51:12, 13 पर चर्चा करके यहोवा की उपासना करने का उसका इरादा और मज़बूत कर सकते हैं।—पढ़िए।
14. क्या बात आपको बाइबल की आयतें याद दिलाएगी ताकि आप दूसरों की मदद कर सकें?
14 जी हाँ, बाइबल में ऐसी कई बातें हैं जो एक व्यक्ति का हौसला बढ़ा सकती हैं, उसे सही राह दिखा सकती हैं या उसका इरादा मज़बूत कर सकती हैं। लेकिन शायद आप सोचें, ‘मैं कैसे सही वक्त पर सही आयत का इस्तेमाल कर सकता हूँ?’ रोज़ बाइबल पढ़िए और परमेश्वर के विचारों पर मनन कीजिए। इस तरह धीरे-धीरे आपके पास आयतों का एक बेशकीमती खज़ाना इकट्ठा हो जाएगा और ज़रूरत पड़ने पर यहोवा की पवित्र शक्ति आपको वे आयतें याद दिलाएगी।—मर. 13:11; यूहन्ना 14:26 पढ़िए।b
15. परमेश्वर का वचन और अच्छी तरह समझने में क्या बात आपकी मदद करेगी?
15 राजा सुलैमान की तरह प्रार्थना में यहोवा से बुद्धि माँगिए ताकि आप यहोवा के संगठन में मिली ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह पूरी कर सकें। (2 इति. 1:7-10) पुराने ज़माने के भविष्यवक्ताओं की तरह परमेश्वर के वचन की ‘बहुत लगन के साथ पूछताछ कीजिए और बड़े ध्यान से खोजबीन कीजिए।’ इससे आपको यहोवा और उसकी मरज़ी के बारे में सही ज्ञान लेने में मदद मिलेगी। (1 पत. 1:10-12) प्रेषित पौलुस ने तीमुथियुस को उकसाया कि वह “विश्वास के वचनों से और उस उत्तम शिक्षा से” अपने मन का पोषण करे। (1 तीमु. 4:6) अगर आप ऐसा करें, तो आप अपनी समझ बढ़ा सकेंगे और बेहतर तरीके से दूसरों की मदद कर पाएँगे। साथ ही, इससे आपका विश्वास भी मज़बूत होगा।
परमेश्वर के वचन से मिले हिफाज़त
16. (क) “हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच” करने से बिरीया के लोगों को क्या फायदा हुआ? (ख) आज हमारे लिए हर दिन बाइबल पढ़ना क्यों बहुत ज़रूरी है?
16 मकिदुनिया प्रांत के बिरीया शहर में रहनेवाले यहूदियों की आदत थी कि वे “हर दिन बड़े ध्यान से शास्त्र की जाँच करते” थे। उन्हें शास्त्र का थोड़ा-बहुत ज्ञान था इसलिए जब पौलुस ने उन्हें खुशखबरी का प्रचार किया तो उन्होंने उसकी बातों की तुलना अपने ज्ञान से की। नतीजा, बहुत-से यहूदियों को यकीन हो गया कि वह सच्चाई की बातें सिखा रहा है और वे “विश्वासी बन गए।” (प्रेषि. 17:10-12) यह बात दिखाती है कि हर दिन बाइबल पढ़ने से यहोवा पर हमारा विश्वास मज़बूत होता है। ऐसा विश्वास जो “आशा की हुई चीज़ों का पूरे भरोसे के साथ इंतज़ार करना है,” हमारे लिए बहुत ज़रूरी है क्योंकि तभी हम विनाश से बचकर नयी दुनिया में जा सकेंगे।—इब्रा. 11:1.
17, 18. (क) मज़बूत विश्वास और प्यार एक मसीही के लाक्षणिक दिल की हिफाज़त कैसे करता है? (ख) हमारी आशा हमें खतरे से कैसे बचाती है?
17 पौलुस ने लिखा, “हम जो दिन के हैं, आओ हम अपने होश-हवास बनाए रखें और विश्वास और प्यार का कवच और उद्धार की आशा का टोप पहने रहें।” (1 थिस्स. 5:8) मैदाने-जंग में एक सैनिक को दुश्मन के हमलों से अपने दिल की हिफाज़त करना बहुत ज़रूरी है। उसी तरह एक मसीही को पाप के हमलों से अपने लाक्षणिक दिल की हिफाज़त करना बहुत ज़रूरी है। जब यहोवा का एक सेवक उसके वादों पर मज़बूत विश्वास रखता है साथ ही, उससे और लोगों से प्यार करता है तो मानो वह सबसे बढ़िया कवच पहनकर अपने लाक्षणिक दिल की हिफाज़त करता है। वह कोई भी ऐसा गलत कदम उठाने से दूर रहता है जिससे वह यहोवा की मंज़ूरी खो दे।
18 पौलुस ने एक टोप का भी ज़िक्र किया, वह है, “आशा का टोप।” बाइबल के ज़माने में युद्ध के दौरान अगर एक सिपाही अपने सिर की हिफाज़त नहीं करता तो वह बड़ी आसानी से अपनी जान गँवा सकता था। लेकिन एक अच्छे टोप से वह खतरनाक और जानलेवा हमलों से अपने सिर को बचा सकता था। यहोवा का वचन पढ़ने से उसके बचाने की शक्ति पर हमारी आशा पक्की होती है। यही आशा हमें धर्मत्यागियों की “खोखली बातों” को ठुकराने में मदद देगी। अगर हम ऐसा न करें तो ये खोखली बातें पूरी मंडली में फैल सकती हैं, ठीक जैसे एक सड़ा हुआ घाव पूरे शरीर में फैल जाता है। (2 तीमु. 2:16-19) हमारी आशा हमें हिम्मत देती है ताकि हम गलत काम का डटकर विरोध कर सकें।
ज़िंदगी पाने का रास्ता
19, 20. हम परमेश्वर के वचन की इतनी कदर क्यों करते हैं? और यह हम कैसे दिखा सकते हैं? (बक्स “यहोवा मुझे ठीक वही चीज़ देता है जिसकी मुझे ज़रूरत है” देखिए।)
19 जितना ज़्यादा हम अंत के करीब आ रहे हैं, उतना ज़्यादा हमें यहोवा के वचन पर भरोसा रखने की ज़रूरत है। परमेश्वर के वचन से हमें अपनी बुरी आदतों को छोड़ने और पापी शरीर के रुझान के खिलाफ लड़ने में मदद मिलती है। बाइबल से हमें हौसला और दिलासा मिलता है जिससे हम शैतान और उसकी दुनिया से आनेवाली परीक्षाओं का सामना कर पाते हैं। यहोवा के वचन में दी हिदायतें हमें जीवन की राह पर बने रहने में मदद देती हैं।
20 परमेश्वर की मरज़ी है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो।” “सब किस्म के लोगों” में यहोवा के सेवक भी आते हैं और वे लोग भी जिन्हें हम प्रचार करते और सिखाते हैं। मगर हर कोई जो उद्धार पाना चाहता है उसे “सच्चाई का सही ज्ञान” लेना होगा। (1 तीमु. 2:4) शैतान की इस व्यवस्था से बच निकलने के लिए ज़रूरी है कि हम बाइबल पढ़ें और उसमें दी हिदायतों को अपनी ज़िंदगी में लागू करें। जी हाँ, हर दिन बाइबल पढ़कर हम दिखाएँगे कि हमें परमेश्वर के वचन की कितनी कदर है!—यूह. 17:17.
a हम किसी पर दबाव डालने या उनकी निंदा करने के लिए बाइबल से सलाह नहीं देते। हमें बाइबल विद्यार्थी के साथ सब्र और प्यार से पेश आना चाहिए ठीक जैसे यहोवा हमारे साथ पेश आता है।—भज. 103:8.
b लेकिन तब क्या जब आपको किसी ब्यौरे के कुछ शब्द तो याद हैं मगर यह याद नहीं कि वे बाइबल की किस किताब, अध्याय या आयत में दर्ज़ हैं? इसके लिए आप बाइबल के पीछे के पन्नों में दी गयी सूची में, वॉचटावर लाइब्रेरी में या फिर न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन बाइबल की कनकॉर्डन्स में वे शब्द देखकर आयत का पता लगा सकते हैं।