उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए | योनातान
‘उनके बीच गहरी दोस्ती हो गयी’
युद्ध का शोरगुल खत्म हो गया था और एलाह घाटी में खामोशी छायी हुई थी। सैनिकों की पूरी छावनी में दोपहर की हलकी-हलकी हवा बह रही थी। राजा शाऊल ने कुछ आदमियों को अपने तंबू में बुलाया था। उसका सबसे बड़ा बेटा, योनातान भी आया हुआ था। उनके बीच एक जवान चरवाहा पूरे जोश से अपना किस्सा सुना रहा था। यह नौजवान दाविद है और शाऊल उसके एक-एक शब्द को बड़े ध्यान से सुन रहा था। लेकिन योनातान को कैसा लगा? उसे इसराएल की सेना में सेवा करते कई साल हो गए थे और इस दौरान उसने कई जंग जीते थे। मगर आज इसराएलियों को जीत उसने नहीं बल्कि दाविद ने दिलायी थी। दाविद ने उस लंबे-चौड़े गोलियात को मार गिराया था! सब उसकी वाह-वाही कर रहे थे। क्या यह देखकर योनातान को दाविद से जलन हुई?
इसका जवाब जानकर शायद आपको हैरानी हो। बाइबल बताती है कि उसने क्या किया, “दाविद और शाऊल की इस बातचीत के बाद, योनातान और दाविद के बीच गहरी दोस्ती हो गयी और वह अपनी जान के बराबर दाविद से प्यार करने लगा।” योनातान ने दाविद को अपनी सैनिक की पोशाक यहाँ तक कि अपनी कमान भी दे दी। यह गौर करनेवाली बात है क्योंकि वह एक अच्छा तीरंदाज़ था। और-तो-और, इन दोनों ने आपस में दोस्ती का करार भी किया। उन्होंने एक-दूसरे से वादा किया कि वे हमेशा दोस्त रहेंगे और एक-दूसरे का साथ देंगे।—1 शमूएल 18:1-5.
इस तरह योनातान और दाविद की दोस्ती शुरू हुई और आगे चलकर वे इतने पक्के दोस्त बने कि बाइबल में उनकी दोस्ती की मिसाल दी जाती है। यहोवा पर विश्वास रखनेवालों के लिए दोस्ती बहुत मायने रखती है। अगर हम सोच-समझकर दोस्त बनाएँ, सुख-दुख में उनका साथ दें और उनके वफादार रहें, तो हम एक-दूसरे का विश्वास मज़बूत कर पाएँगे। (नीतिवचन 27:17) आइए देखें कि योनातान किस तरह का दोस्त था और हम उससे क्या सीख सकते हैं।
उनमें दोस्ती किस वजह से हुई?
योनातान ने पहली मुलाकात में ही दाविद से दोस्ती क्यों कर ली? जवाब जानने के लिए आइए सबसे पहले कुछ बातों पर ध्यान दें। योनातान बहुत ही मुश्किल दौर से गुज़र रहा था। उसका पिता शाऊल कितना बदल गया था! एक वक्त पर वह नम्र, आज्ञाकारी और यहोवा पर विश्वास रखनेवाला राजा था। लेकिन अब वह घमंडी और आज्ञा न माननेवाला बन गया था।—1 शमूएल 15:17-19, 26.
शाऊल के स्वभाव में यह बदलाव देखकर योनातान को ज़रूर दुख हुआ होगा, क्योंकि वह अपने पिता के बहुत करीब था। (1 शमूएल 20:2) योनातान को यह चिंता भी सता रही होगी कि उसके पिता की वजह से न जाने अब यहोवा के चुने हुए राष्ट्र पर क्या बीतेगी। क्या इसराएली भी अपने राजा की तरह बन जाएँगे और यहोवा की मंज़ूरी खो बैठेंगे? सच में, वह समय विश्वास रखनेवाले योनातान के लिए बिलकुल भी आसान नहीं रहा होगा।
इन बातों से हम समझ पाते हैं कि योनातान ने जवान दाविद से दोस्ती क्यों की। उसने देखा कि दाविद का विश्वास मज़बूत है। जहाँ शाऊल के सभी सैनिक लंबे-चौड़े गोलियात को देखकर थर-थर काँपने लगे, वहीं दाविद बिलकुल भी नहीं घबराया। दाविद का मानना था कि वह यहोवा के नाम से जंग के मैदान में उतर रहा है और इसके आगे गोलियात के सभी हथियार कुछ भी नहीं हैं।—1 शमूएल 17:45-47.
योनातान की सोच दाविद से मिलती-जुलती थी। कुछ साल पहले की बात है। योनातान अपने हथियार ढोनेवाले सैनिक के साथ दुश्मनों से लड़ने निकल पड़ा था। उसे पूरा यकीन था कि वे दोनों अकेले ही सैनिकों की पूरी चौकी पर हमला कर सकते हैं और उन्हें धूल चटा सकते हैं। उसे इतना यकीन क्यों था? क्योंकि जैसा उसने कहा, ‘यहोवा के लिए कोई बात रुकावट नहीं है।’ (1 शमूएल 14:6) तो देखा आपने, योनातान और दाविद में कई बातें मिलती-जुलती थीं: उन दोनों को यहोवा पर पूरा विश्वास था और वे उससे बहुत प्यार करते थे। यही वजह थी कि उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गयी। यह सच है कि योनातान और दाविद में बहुत फर्क था। योनातान एक शक्तिशाली राजकुमार था और उसकी उम्र 50 के आस-पास थी, जबकि दाविद एक मामूली चरवाहा था और उसकी उम्र करीब 20 साल थी, फिर भी ये बातें उनकी दोस्ती में रुकावट नहीं बनीं।a
योनातान और दाविद ने जो करार किया था, उस वजह से उनकी दोस्ती कायम रही। वह कैसे? दाविद जानता था कि यहोवा ने उसे इसराएल का अगला राजा चुना है। क्या उसने यह बात योनातान से छिपाए रखी? नहीं। अच्छे दोस्त एक-दूसरे से कोई बात नहीं छिपाते, वे हमेशा सच बोलते हैं। जब दाविद ने योनातान को यह बात बतायी होगी, तो उसे कैसा लगा होगा? हो सकता है, योनातान ने सोचा हो कि एक दिन वह राजा बनेगा और जो गलतियाँ उसके पिता ने की थीं, उन्हें वह सुधारेगा। लेकिन अब यह जानकर कि वह नहीं बल्कि दाविद राजा बनेगा, क्या उसे दुख हुआ? बाइबल इस बारे में कुछ नहीं बताती। मगर इतना ज़रूर बताती है कि योनातान वफादार था और उसमें मज़बूत विश्वास था। योनातान साफ देख सकता था कि दाविद पर यहोवा की पवित्र शक्ति काम कर रही है। (1 शमूएल 16:1, 11-13) इस वजह से वह दाविद के साथ किया करार निभाता रहा। वह दाविद को अपना दुश्मन नहीं, दोस्त मानता रहा। योनातान की यही ख्वाहिश थी कि यहोवा की मरज़ी पूरी हो।
योनातान और दाविद में यह बात मिलती-जुलती थी कि उन दोनों को यहोवा पर मज़बूत विश्वास था और वे उससे बहुत प्यार करते थे
योनातान और दाविद की दोस्ती उनके लिए एक आशीष साबित हुई। हम योनातान के विश्वास से क्या सीख सकते हैं? यही कि परमेश्वर के सेवक सच्ची दोस्ती की दिल से कदर करते हैं। यह ज़रूरी नहीं कि हमारे दोस्त हमारी उम्र के हों या उनकी परवरिश हमारी जैसी हुई हो। लेकिन अगर उनमें सच्चा विश्वास हो, तो उस दोस्ती से हमारा बहुत भला हो सकता है। योनातान और दाविद के साथ ऐसा ही हुआ। उन्होंने कई मौकों पर एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया। आगे चलकर उन्हें और भी हौसले की ज़रूरत पड़ती, क्योंकि उनकी दोस्ती की ज़बरदस्त परीक्षा होनेवाली थी।
किसके वफादार रहें?
शुरू-शुरू में शाऊल को दाविद से बहुत लगाव था। उसने दाविद को अपनी सेना का सेनापति भी बनाया। मगर फिर शाऊल को दाविद से जलन होने लगी। अफसोस की बात है कि जिस भावना को योनातान ने अपने अंदर बढ़ने नहीं दिया, उसी भावना को शाऊल ने अपने दिल में पनपने दिया। दरअसल दाविद एक-के-बाद-एक इसराएल के दुश्मन पलिश्तियों पर जीत हासिल करता गया। इस वजह से सब लोग उसके गुण गाने लगे और उसकी इज़्ज़त करने लगे। इसराएल की कुछ औरतें ने तो यह गीत भी गाया, “शाऊल ने मारा हज़ारों को, दाविद ने मारा लाखों को!” शाऊल को यह गीत सुनकर बिलकुल अच्छा नहीं लगा। बाइबल बताती है, “उस दिन से शाऊल हर वक्त दाविद को शक की निगाह से देखने लगा।” (1 शमूएल 18:7, 9) उसे डर था कि कहीं दाविद उससे उसका राजपाट न छीन ले। शाऊल का ऐसा सोचना बिलकुल गलत था! यह सच है कि दाविद जानता था कि शाऊल के बाद वही इसराएल का राजा बनेगा। मगर उसके मन में कभी यह खयाल नहीं आया कि वह यहोवा के अभिषिक्त राजा को राजगद्दी से हटाकर खुद राजा बन जाए।
शाऊल ने एक ऐसी चाल चली जिससे दाविद युद्ध में मारा जाता। लेकिन उसकी चाल नाकाम हो गयी। दाविद युद्ध-पर-युद्ध जीतता गया और उसकी और भी इज़्ज़त की जाने लगी। इसके बाद शाऊल ने घर के सभी सेवकों और अपने सबसे बड़े बेटे से दाविद को मार डालने की बात की और उन्हें इस साज़िश में शामिल करने की कोशिश भी की। ज़रा सोचिए, अपने पिता का बरताव देखकर योनातान का दिल कितना छलनी हो गया होगा! (1 शमूएल 18:25-30; 19:1) इसमें कोई शक नहीं कि वह अपने पिता का वफादार था, मगर वह अपने दोस्त का भी वफादार था। लेकिन अब जब इन दोनों में से किसी एक के वफादार रहने की बात आयी, तो वह किसका साथ देता?
योनातान ने अपने पिता से कहा, “हे राजा, अपने सेवक दाविद के खिलाफ कोई पाप मत कर, क्योंकि उसने तेरे खिलाफ कोई पाप नहीं किया है बल्कि हमेशा तेरी भलाई के लिए ही काम किया है। उसने अपनी जान हथेली पर रखकर उस पलिश्ती को मार डाला था और इस वजह से यहोवा ने पूरे इसराएल को शानदार जीत दिलायी थी।” हैरानी की बात है कि इस मौके पर शाऊल ने योनातान की बात मान ली और शपथ भी खायी कि वह दाविद की जान नहीं लेगा। लेकिन शाऊल अपने वादे का पक्का नहीं रहा। जब दाविद ने इसराएल को और भी जीत दिलायी, तो शाऊल जलन से इस कदर भर गया कि उसने दाविद को मार डालने के लिए उस पर भाला फेंका। (1 शमूएल 19:4-6, 9, 10) दाविद बाल-बाल बचा और फिर वह शाऊल के दरबार से भाग गया।
क्या कभी आपको यह फैसला करना पड़ा है कि आप किसके वफादार रहेंगे? यकीन मानिए, ऐसा करना आसान नहीं होता। हो सकता है, कुछ लोग कहें कि आपको हर हाल में अपने परिवार से वफा निभानी चाहिए। लेकिन योनातान जानता था कि यह गलत है। उसका दोस्त दाविद यहोवा का वफादार और आज्ञाकारी सेवक था, तो भला वह अपने पिता का साथ कैसे दे सकता था! योनातान ने ठान लिया था कि वह यहोवा का वफादार रहेगा, इसलिए उसने दाविद का पक्ष लिया। बेशक योनातान सबसे पहले यहोवा का वफादार था, मगर देखा जाए तो वह अपने पिता का भी वफादार साबित हुआ। वह कैसे? उसने अपने पिता की हाँ-में-हाँ नहीं मिलायी, बल्कि उसकी गलत सोच सुधारने की कोशिश की। अगर हम भी योनातान की तरह वफादार रहें, तो इसमें हमारा ही भला होगा।
मुश्किल हालात में भी वफादार रहा
योनातान ने अपने पिता और दाविद के बीच सुलह करवाने की एक बार फिर कोशिश की, लेकिन सुलह करना तो दूर, शाऊल उसकी बात तक सुनने को तैयार नहीं था। इस बीच दाविद चोरी-छिपे योनातान से मिलने आया। उसने अपने बुज़ुर्ग दोस्त को अपनी चिंताएँ बतायीं और कहा, “मेरी मौत बहुत करीब है।” योनातान ने दाविद से कहा कि वह शाऊल से उसकी सुलह करवाने की दोबारा कोशिश करेगा। इसके बाद वह तीर चलाकर दाविद तक यह संदेश पहुँचा देगा कि वह इसमें कामयाब हुआ है या नहीं। योनातान ने दाविद से सिर्फ एक चीज़ माँगी, उसने कहा, “तू मेरे घराने के साथ वफादारी निभाना, तब भी जब यहोवा तेरे सभी दुश्मनों को धरती से मिटा देगा।” दाविद ने वादा किया कि वह हमेशा योनातान के घराने की देखभाल करेगा।—1 शमूएल 20:3, 13-27.
योनातान ने शाऊल से दाविद के बारे में अच्छी बातें कहने की कोशिश की, मगर कोई फायदा नहीं हुआ। शाऊल आग-बबूला हो गया और उसे “बागी औरत की औलाद” कहा। उसने यह भी कहा कि दाविद से वफा निभाकर दरअसल योनातान अपने परिवार की बेइज़्ज़ती कर रहा है। उसने उसे अपने बारे में सोचने के लिए कहा। शाऊल का कहना था, “जब तक यिशै का वह बेटा ज़िंदा रहेगा तू राजा नहीं बन पाएगा और तेरा राज कायम नहीं रहेगा।” लेकिन योनातान को अपनी चिंता नहीं थी। उसने एक बार फिर अपने पिता से मिन्नत की, “तू क्यों उसकी जान के पीछे पड़ा है? उसने ऐसा क्या किया है?” शाऊल अपना आपा खो बैठा। उसकी उम्र हो गयी थी, मगर अब भी उसमें दम था। उसने अपने बेटे पर ज़ोर से भाला फेंका! लेकिन उसका निशाना चूक गया। अपने पिता का बरताव देखकर योनातान बहुत दुखी हुआ और उससे यह बेइज़्ज़ती सही नहीं गयी। वह गुस्से से वहाँ से चला गया।—1 शमूएल 20:24-34, फुटनोट।
योनातान ने साबित किया कि वह स्वार्थी नहीं है
अगले दिन सुबह योनातान उस मैदान में गया जहाँ दाविद छिपा हुआ था। जैसा उसने दाविद से कहा था, उसने तीर चलाकर इशारा किया कि शाऊल अब भी उसकी जान का दुश्मन है। फिर योनातान ने अपने सेवक को वापस शहर भेज दिया। अब मैदान में वह और दाविद ही थे, उन्हें सिर्फ थोड़ी देर के लिए बात करने का मौका मिला। दोनों दोस्त खूब रोए और योनातान ने भारी मन से दाविद को विदा किया, जो अब से एक भगोड़े की ज़िंदगी जीनेवाला था।—1 शमूएल 20:35-42.
इन मुश्किल हालात में योनातान ने साबित किया कि वह सच में वफादार है और स्वार्थी नहीं है। शैतान सभी वफादार लोगों का दुश्मन है और अगर योनातान अपने पिता की तरह ताकत या ओहदे के पीछे भागा होता, तो शैतान को बहुत खुशी होती। याद रखिए, शैतान इस कोशिश में लगा हुआ है कि इंसान सिर्फ अपने बारे में सोचें और अपनी इच्छाएँ पूरी करें। उसने हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा के साथ यही कोशिश की और वह कामयाब हुआ। (उत्पत्ति 3:1-6) लेकिन योनातान के साथ उसकी यह कोशिश नाकाम रही। शैतान कितना खीज उठा होगा! क्या आप भी शैतान की कोशिशों को नाकाम करेंगे? आज हम ऐसे वक्त में जी रहे हैं, जब स्वार्थ महामारी का रूप ले चुका है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) क्या हम योनातान की तरह वफादार और निस्वार्थ होंगे?
“तू मेरा कितना अज़ीज़ था!”
शाऊल दाविद से इस कदर नफरत करने लगा कि उसके सिर पर खून सवार हो गया। उसे जहाँ भी दाविद के होने की खबर मिलती, वह तुरंत अपनी सेना को इकट्ठा करता और उसे पकड़ने निकल पड़ता। एक निर्दोष इंसान को खत्म करने का यह पागलपन देखकर योनातान कितना लाचार महसूस कर रहा होगा! (1 शमूएल 24:1, 2, 12-15; 26:20) क्या उसने शाऊल के इन अभियानों में हिस्सा लिया? गौर करनेवाली बात है कि बाइबल में कहीं इस बात का ज़िक्र नहीं मिलता कि योनातान शाऊल के साथ गया था। योनातान यहोवा और दाविद का वफादार था और उसने दाविद से दोस्ती का करार किया था। इस वजह से हम सोच भी नहीं सकते कि वह शाऊल के इन गलत कामों में भागीदार रहा होगा।
योनातान का अपने दोस्त के लिए प्यार कभी कम नहीं हुआ। कुछ वक्त बाद वह दाविद से दोबारा मिलने होरेश नाम की जगह गया। होरेश का मतलब है, “घना जंगल।” यह जगह हेब्रोन से कुछ किलोमीटर दूर दक्षिण-पूरब में एक वीरान और पहाड़ी इलाके में थी। योनातान ने अपने दोस्त से मिलने का जोखिम क्यों उठाया? बाइबल बताती है कि वह ‘यहोवा पर दाविद का भरोसा और बढ़ाना’ चाहता था। (1 शमूएल 23:16) उसने यह भरोसा कैसे बढ़ाया?
योनातान ने अपने दोस्त से कहा, “मत डर।” उसने उसे यह भरोसा भी दिलाया, “मेरा पिता शाऊल तुझे नहीं पकड़ सकेगा।” योनातान को इतना भरोसा क्यों था? वह इसलिए कि उसे यहोवा के वादे पर पूरा विश्वास था। योनातान ने दाविद से कहा, “तू ही इसराएल का राजा होगा।” कई साल पहले यहोवा ने भविष्यवक्ता शमूएल को यही बात बताने का काम सौंपा था और अब योनातान दाविद को याद दिला रहा है कि यहोवा के वादे भरोसे के लायक हैं, वे हमेशा पूरे होते हैं। लेकिन अगर दाविद राजा बनेगा, तो योनातान क्या करेगा? उसने खुद कहा, “मैं तुझसे दूसरे दर्जे पर रहूँगा।” योनातान में कितनी नम्रता थी! वह इसी बात से खुश था कि वह दाविद के अधीन रहकर सेवा करेगा, जो उससे 30 साल छोटा था। योनातान ने आखिर में कहा, “यह बात मेरा पिता शाऊल भी जानता है।” (1 शमूएल 23:17, 18) जी हाँ, शाऊल भी मन-ही-मन जानता था कि वह उस आदमी से नहीं जीत सकता, जिसे यहोवा ने इसराएल का अगला राजा चुना है।
अगले कुछ सालों के दौरान दाविद ने ज़रूर इस घटना को बार-बार याद किया होगा और योनातान के साथ हुई उस बातचीत को अपने दिल में सँजोए रखा होगा। और क्यों न हो, यह उनकी आखिरी मुलाकात जो थी! अफसोस, योनातान की यह इच्छा पूरी नहीं हुई कि वह दाविद से दूसरे दर्जे पर रहेगा।
योनातान अपने पिता के साथ इसराएल के कट्टर दुश्मन पलिश्तियों से युद्ध करने गया। भले ही उसके पिता ने बहुत गलतियाँ की थीं, मगर योनातान ने हमेशा यहोवा की सेवा को पहली जगह दी थी, इसलिए वह साफ ज़मीर के साथ युद्ध कर सका। हमेशा की तरह इस बार भी योनातान ने पूरी वफादारी और बहादुरी से जंग लड़ी, फिर भी इसराएल के लिए यह युद्ध भारी पड़ रहा था। शाऊल की दुष्टता इस हद तक बढ़ गयी थी कि उसने जादू-टोने का सहारा लिया, जो परमेश्वर के कानून में एक गंभीर अपराध था। इस वजह से शाऊल पर यहोवा की आशीष नहीं रही। उसके तीनों बेटे जिसमें योनातान भी था, युद्ध में मारे गए। शाऊल खुद भी बुरी तरह घायल हो गया और उसने अपनी जान ले ली।—1 शमूएल 28:6-14; 31:2-6.
योनातान ने कहा, “तू ही इसराएल का राजा होगा और मैं तुझसे दूसरे दर्जे पर रहूँगा।”—1 शमूएल 23:17
उनकी मौत की खबर सुनते ही दाविद का कलेजा छलनी हो गया! उसमें इतनी दया और करुणा थी कि उसने शाऊल के लिए भी शोक मनाया, उस इंसान के लिए जिसने उसका जीना दूभर कर दिया था। दाविद ने शाऊल और योनातान के लिए एक शोकगीत लिखा। इसमें उसने अपने दोस्त के लिए जिसकी वह बहुत इज़्ज़त करता था, ऐसे दिल छू लेनेवाले शब्द लिखे जो शायद ही किसी और ने लिखे हों। उसने कहा, “मेरे भाई योनातान, तुझे खोने के गम से मैं बहुत दुखी हूँ, तू मेरा कितना अज़ीज़ था! मेरे लिए तेरा प्यार औरतों के प्यार से कहीं बढ़कर था।”—2 शमूएल 1:26.
दाविद योनातान से किया अपना वादा नहीं भूला। सालों बाद उसने योनातान के बेटे मपीबोशेत को, जो पैरों से लाचार था, ढूँढ़ निकाला और उसका खयाल रखा। (2 शमूएल 9:1-13) योनातान वफादार था, अपने वादों का पक्का था और मुश्किल-से-मुश्किल हालात में भी अपने दोस्त से वफा निभाना जानता था। इसमें कोई शक नहीं कि दाविद ने उससे बहुत कुछ सीखा होगा। क्या हम भी उससे सीखेंगे? क्या हम योनातान जैसे लोगों को अपना दोस्त बनाएँगे? क्या हम खुद ऐसे दोस्त साबित होंगे? अगर हम यहोवा पर अपने दोस्तों का विश्वास बढ़ाएँ, सबसे पहले यहोवा के वफादार रहें और अपने स्वार्थ के बारे में न सोचें, तो हम योनातान जैसे दोस्त साबित होंगे। यही नहीं, हम उसके विश्वास की मिसाल पर भी चलेंगे।
a बाइबल में योनातान का ज़िक्र सबसे पहले तब आता है, जब शाऊल राजा बनकर हुकूमत करना शुरू करता है। उस वक्त योनातान इसराएल का सेनापति था, तो उसकी उम्र कम-से-कम 20 साल रही होगी। (गिनती 1:3; 1 शमूएल 13:2) शाऊल ने 40 साल तक राज किया, इसलिए जब उसकी मौत हुई, तो योनातान करीब 60 साल का रहा होगा। उस वक्त दाविद की उम्र 30 साल थी। (1 शमूएल 31:2; 2 शमूएल 5:4) इसका मतलब है कि योनातान दाविद से करीब 30 साल बड़ा था।