कैसे निभाएँ दोस्ती, जब दाँव पर हो दोस्ती
जॉनी और मैउरीट्स्यो करीब 50 साल से अच्छे दोस्त हैं। मगर एक वक्त ऐसा भी था, जब उनकी दोस्ती खतरे में पड़ गयी थी। मैउरीट्स्यो कहता है, “जब मैं मुश्किल दौर से गुज़र रहा था, तब मुझसे कुछ बड़ी गलतियाँ हो गयीं। इस वजह से हमारी दोस्ती खतरे में पड़ गयी।” जॉनी कहता है, “मैउरीट्स्यो ने मेरा बाइबल अध्ययन शुरू किया था। जब परमेश्वर के स्तरों की बात आती, तो मैं हमेशा उसी से सलाह लेता था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि वह ऐसा कर सकता है। मैं जानता था कि अब हम दोस्त नहीं रह सकते। मुझे लगा कि अब मेरा कोई नहीं है। मैं पूरी तरह टूट गया था।”
अच्छे दोस्त बहुत मुश्किल से मिलते हैं और उनके साथ लंबे समय तक दोस्ती रखने के लिए हमें मेहनत करनी होती है। अगर हमारी दोस्ती खतरे में पड़ जाए, तो हम क्या कर सकते हैं? हम बाइबल में बताए गए उन लोगों से काफी कुछ सीख सकते हैं, जो सच्चे दोस्त थे, मगर बाद में जिनकी दोस्ती खतरे में पड़ गयी थी।
जब कोई दोस्त कुछ गलत कर बैठे
दाविद एक चरवाहा और राजा था। उसके कई अच्छे दोस्त थे। आप शायद कहें कि उनमें से एक था योनातान। (1 शमू. 18:1) लेकिन दाविद के दूसरे दोस्त भी थे, जैसे भविष्यवक्ता नातान। बाइबल में यह नहीं बताया गया है कि वे कब एक-दूसरे के दोस्त बने। लेकिन एक बार दाविद ने नातान को अपने दिल की बात बतायी थी, जैसे कोई अपने दोस्त को बताता है। उसने नातान से कहा कि वह यहोवा के लिए भवन बनाना चाहता है। यह बात उसने नातान को इसलिए बतायी कि वह उसे अपना दोस्त मानता था और जानता था कि उस पर यहोवा की पवित्र शक्ति है। वह उसकी राय लेना चाहता था।—2 शमू. 7:2, 3.
लेकिन फिर ऐसी घटना घटी, जिससे उनकी दोस्ती खतरे में पड़ गयी। राजा दाविद ने बतशेबा के साथ व्यभिचार किया और उसके पति उरियाह को मरवा डाला। (2 शमू. 11:2-21) वैसे दाविद काफी सालों तक यहोवा का वफादार रहा था और उसने न्याय के काम किए थे। लेकिन अब वह यह बड़ा पाप कर बैठा! आखिर इस अच्छे राजा ने ऐसा क्यों किया? क्या उसे पता नहीं था कि यह कितना बड़ा पाप है? क्या उसने यह सोचा कि वह इसे परमेश्वर से छिपा सकता है?
अब नातान क्या करता? क्या वह यह सोचता कि कोई-न-कोई तो राजा को उसकी गलती बता ही देगा? कुछ और लोग भी तो जानते थे कि उरियाह को मरवाने के लिए दाविद ने कैसी साज़िश रची है। फिर नातान ही क्यों? वह क्यों अपनी बरसों पुरानी दोस्ती खतरे में डाले? उसकी जान भी तो जा सकती थी। आखिर दाविद ने बेकसूर उरियाह को तो मरवा ही डाला था।
नातान परमेश्वर का भविष्यवक्ता था। वह जानता था कि अगर वह चुप रहेगा, तो दाविद के साथ उसकी दोस्ती पहले जैसी नहीं रहेगी और उसका ज़मीर भी उसे कचोटेगा। उसका दोस्त ऐसे रास्ते पर निकल पड़ा था, जिस पर यहोवा की मंज़ूरी नहीं थी। सही राह पर आने के लिए उसे मदद की सख्त ज़रूरत थी, उसे एक सच्चे दोस्त की ज़रूरत थी! नातान ऐसा ही दोस्त था। उसने दाविद को परमेश्वर का संदेश सुनाया, लेकिन इस तरह से ताकि उसे एहसास हो जाए कि उसने कितना बड़ा पाप किया है और वह पश्चाताप करे। नातान जानता था कि राजा एक चरवाहा रह चुका है, इसलिए उसने सोचा कि वह उससे बात करने के लिए ऐसा उदाहरण देगा, जो उसके दिल को छू जाए।—2 शमू. 12:1-14.
अगर आपका दोस्त कोई बड़ी गलती या पाप करता है, तो आप क्या करेंगे? आप शायद सोचें कि अगर मैं उसकी गलती के बारे में बात करूँगा, तो हमारी दोस्ती में दरार पड़ सकती है या आपको शायद लगे कि दोस्त की गलती प्राचीनों को बताकर दोस्त के साथ गद्दारी करना होगा, जबकि आप जानते हैं कि प्राचीन उसकी मदद कर सकते हैं। आप क्या करेंगे?
देखिए ऐसे हालात में जॉनी ने क्या किया, जिसका हमने पहले ज़िक्र किया था। वह कहता है, “मुझे लगा कि कोई तो बात है। मैउरीट्स्यो मुझसे अब उतना खुलकर बात नहीं करता। मैंने सोचा कि मैं उससे पूछूँगा कि आखिर बात क्या है, जबकि ऐसा करना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मैं इस उधेड़-बुन में था कि उसे बताऊँ, तो क्या बताऊँ। वह तो सब जानता है। पता नहीं उसका रवैया कैसा होगा! लेकिन जब मैंने वे बातें याद कीं, जिनका हमने एक साथ अध्ययन किया था, तो मुझे उससे बात करने की हिम्मत मिली। जब मुझे मदद चाहिए थी, तब मैउरीट्स्यो ने भी आकर मुझसे बात की थी। मैं उसके साथ अपनी दोस्ती खोना नहीं चाहता था, बल्कि उसकी मदद करना चाहता था, क्योंकि मुझे उसकी फिक्र थी।”
मैउरीट्स्यो कहता है, “जॉनी को सच में मेरी फिक्र थी और वह अपनी जगह सही था। मैं जानता था कि मुझे जो अंजाम भुगतने पड़ रहे हैं, उसमें उसका कोई दोष नहीं है और न ही यहोवा का। इस वजह से मैंने प्राचीनों की सलाह कबूल की और कुछ समय बाद परमेश्वर के साथ मेरा रिश्ता फिर से अच्छा हो गया।”
जब दोस्त मुसीबत में हो
दाविद के और भी दोस्त थे, जिन्होंने मुसीबत के वक्त उसका साथ दिया। हुशै दाविद का ऐसा ही दोस्त था। (2 शमू. 16:16; 1 इति. 27:33) वह शायद दरबारी था, जो राजा के साथ-साथ रहता था। वह कभी-कभी राजा के ऐसे आदेशों का पालन करता था, जो गुप्त होते थे।
जब दाविद का बेटा अबशालोम राजगद्दी हथियाने की कोशिश कर रहा था, तब बहुत-से इसराएली उसकी तरफ हो गए थे, मगर हुशै नहीं हुआ। वह दाविद के पास गया, जिसकी जान खतरे में थी। दाविद उस वक्त बहुत दुखी था, क्योंकि उसके अपने बेटे ने और उसके कुछ भरोसेमंद लोगों ने उससे गद्दारी की। लेकिन हुशै दाविद का वफादार रहा। उसने अपनी जान जोखिम में डालकर वह काम किया, जिससे दुश्मनों की साज़िश नाकाम हो गयी। हुशै ने यह काम सिर्फ इसलिए नहीं किया कि वह दरबारी था और यह उसका फर्ज़ बनता था, बल्कि सच्चे दोस्त होने के नाते किया।—2 शमू. 15:13-17, 32-37; 16:15–17:16.
यह देखकर कितनी खुशी होती है कि भाई-बहन एक मज़बूत बंधन में बँधे हुए हैं, फिर चाहे उनके दोस्तों को मंडली में कोई ज़िम्मेदारी या खास सम्मान मिला हो या नहीं। भाई-बहन अपने व्यवहार से मानो अपने दोस्तों से कह रहे होते हैं, “हम तुम्हारे दोस्त इसलिए नहीं हैं कि यह हमारा फर्ज़ है, बल्कि इसलिए हैं कि तुम हमारे लिए बहुत मायने रखते हो।”
फेडेरीको नाम के भाई ने कुछ ऐसा ही अनुभव किया। वह अपने प्यारे दोस्त ऐन्टोनयो की मदद से एक मुश्किल दौर पार कर पाया। फेडेरीको कहता है, “जब ऐन्टोनयो हमारी मंडली में आया, तो जल्द ही हम दोस्त बन गए। हम दोनों सहायक सेवक थे। हमें एक साथ काम करके बहुत मज़ा आता था। कुछ समय बाद ऐन्टोनयो को प्राचीन नियुक्त किया गया। दोस्त होने के साथ-साथ वह मंडली में मेरे लिए एक अच्छी मिसाल था।” फिर फेडेरीको ने कुछ गलती की। उसने फौरन मंडली से मदद ली, मगर अब वह पायनियर या सहायक सेवक नहीं रहा। ऐसे में ऐन्टोनयो उसके साथ किस तरह पेश आया?
फेडेरीको कहता है, “ऐन्टोनयो मेरा दर्द समझता था। उसने मुझे बहुत सँभाला। उसे इस बात की बहुत फिक्र थी कि यहोवा के साथ मेरा रिश्ता फिर से अच्छा हो जाए और उसने कभी मेरा साथ नहीं छोड़ा। वह मेरा हौसला बढ़ाता रहा, ताकि मैं हिम्मत न हारूँ और उपासना से जुड़े काम अच्छे से कर पाऊँ।” ऐन्टोनयो कहता है, “मैं फेडेरीको के साथ और ज़्यादा समय बिताने लगा। मैं चाहता था कि वह बेझिझक मुझसे बात करे और बताए कि उस पर क्या बीत रही है।” खुशी की बात है कि कुछ समय बाद यहोवा के साथ फेडेरीको का रिश्ता फिर से मज़बूत हो गया। थोड़े समय बाद उसे फिर से पायनियर और सहायक सेवक नियुक्त किया गया। ऐन्टोनयो कहता है, “हालाँकि अब हम अलग-अलग मंडलियों में सेवा करते हैं, लेकिन अब हमारी दोस्ती पहले से भी ज़्यादा गहरी है।”
क्या आपके साथ धोखा हुआ है?
अगर आपका करीबी दोस्त ऐसे वक्त पर आपको पीठ दिखा दे, जब आपको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो, तो आपको कैसा लगेगा? बेशक आपको बहुत दुख होगा। क्या आप उसे माफ कर पाएँगे? क्या आप फिर से उसके अच्छे दोस्त हो पाएँगे?
ज़रा यीशु पर गौर कीजिए। धरती पर रहते समय उसने अपने वफादार प्रेषितों के साथ काफी वक्त बिताया था और उनके बीच खास रिश्ता था। तभी तो उसने उन्हें अपना दोस्त कहा। (यूहन्ना 15:15) लेकिन ध्यान दीजिए कि उसकी मौत से पहले जब उसे गिरफ्तार किया गया, तो उसके साथ क्या हुआ। प्रेषित उसे छोड़कर भाग गए। पतरस ने तो सरेआम कहा था कि वह यीशु का साथ कभी नहीं छोड़ेगा, मगर उसी रात उसने यीशु को जानने से भी इनकार कर दिया।—मत्ती 26:31-33, 56, 69-75.
यीशु जानता था कि उसे अकेले ही आखिरी परीक्षा से गुज़रना होगा। फिर भी इस दौरान प्रेषितों ने जो किया, उससे वह दुखी हो सकता था और नाराज़ भी। मगर ज़िंदा किए जाने के कुछ दिनों बाद उसने अपने चेलों से जो बातचीत की, उससे पता चलता है कि उसके दिल में कोई कड़वाहट नहीं थी, न ही उसे कोई दुख था। यीशु ने उनसे उनकी गलतियों का कोई ज़िक्र नहीं किया, उनका भी नहीं जो उन्होंने उसकी गिरफ्तारी के दिन की थीं।
इसके बजाय यीशु ने पतरस और दूसरे प्रेषितों का हौसला बढ़ाया। उसे उन पर पूरा भरोसा था। तभी उसने उन्हें उस काम के लिए हिदायतें दीं, जो मानव इतिहास में शिक्षा देने का सबसे अहम काम है। यीशु अब भी प्रेषितों को अपना दोस्त मानता था। उसके प्यार ने उनके दिलों पर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने ठान लिया कि अब वे अपने गुरु को कभी निराश नहीं करेंगे। उन्होंने वह काम अच्छी तरह किया, जो यीशु ने अपने चेलों को दिया था।—प्रेषि. 1:8; कुलु. 1:23.
एलवीरा और जूलियाना अच्छी दोस्त थीं। लेकिन एक बार एलवीरा ने कुछ गलत किया, जिस वजह से उनके रिश्ते में खटास आ गयी। एलवीरा उस वक्त को याद करते हुए कहती है, “जब उसने मुझे बताया कि मैंने जो किया, उस वजह से उसे दुख हुआ, तो मुझे बहुत बुरा लगा। जूलियाना मुझसे नाराज़ हो सकती थी। फिर भी वह मेरे बारे में सोच रही थी और यह भी कि मेरे इस व्यवहार से क्या नुकसान हो सकता है। यह बात मेरे दिल को छू गयी। मैं इस बात की हमेशा कदर करती हूँ कि उसने यह नहीं सोचा कि मैंने उसके साथ क्या किया, बल्कि यह सोचा कि मुझे क्या नुकसान हो सकता है। मैंने यहोवा का शुक्रिया अदा किया कि उसने मुझे ऐसी दोस्त दी, जिसे खुद से ज़्यादा मेरी परवाह है।”
अब सवाल है कि जब दोस्ती खतरे में हो, तो एक अच्छा दोस्त कैसे पेश आएगा? ज़रूरत पड़ने पर वह हमसे खुलकर, मगर प्यार से बात करेगा। वह नातान और हूशै की तरह पेश आएगा, जिन्होंने मुश्किल हालात में भी अपने दोस्त का साथ नहीं छोड़ा। वह यीशु की तरह भी पेश आएगा, जिसने अपने दोस्तों को माफ कर दिया। क्या आप भी ऐसे दोस्त हैं?