उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
उसने अपने परमेश्वर में दिलासा पाया
अंधेरा घिरने लगा था और एलिय्याह तेज़ बारिश में भागता जा रहा था। अभी यिज्रैल पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना था और एलिय्याह में जवानी का दमखम भी नहीं रह गया था। फिर भी वह बिना थके दौड़ता जा रहा था, क्योंकि “यहोवा की शक्ति” उस पर काम कर रही थी। इस वजह से वह अपने शरीर में जैसी ताकत महसूस कर रहा था, वैसी उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। और क्यों न हो अभी-अभी वह राजा अहाब के शाही रथ के भी आगे जो निकल गया।—1 राजा 18:46.
अब राजा अहाब उसके बहुत पीछे छूट गया और वह अकेले ही खाली सड़क पर भागता जा रहा था। कल्पना कीजिए कि जब बारिश की बूँदें एलिय्याह के चेहरे पर पड़ती हैं, तो वह किस तरह बार-बार अपनी पलकें झपकाता है। साथ ही रह-रहकर वह अपनी ज़िंदगी के इस सबसे महत्त्वपूर्ण दिन के बारे में सोचता है। इसमें कोई शक नहीं कि यह दिन एलिय्याह के परमेश्वर यहोवा और सच्ची उपासना के लिए बहुत बड़ी जीत का दिन था। इस वक्त तूफान में पीछे खड़ा कर्मेल पर्वत दिखायी नहीं दे रहा था, लेकिन उसी पर्वत पर यहोवा ने बहुत बड़ा चमत्कार करके एलिय्याह के ज़रिए बाल की उपासना को करारी हार दी थी। बाल देवता के सैकड़ों नबियों की सच्चाई सामने आ गयी कि वे दुष्ट और मक्कार हैं। उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया, जो कि न्याय के मुताबिक बिलकुल सही था। फिर एलिय्याह ने यहोवा से प्रार्थना की कि साढ़े तीन साल से इसराएल देश में पड़ रहा सूखा खत्म हो जाए। यहोवा ने एलिय्याह की प्रार्थना सुन ली और बारिश होने लगी!a—1 राजा 18:18-45.
यिज्रैल की ओर 30 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करते वक्त एलिय्याह को लगा होगा कि अब आखिरकार कुछ बदलाव ज़रूर होंगे। अहाब को बदलना होगा! अपनी आँखों से इतना सब देखने के बाद अहाब के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं कि वह बाल की उपासना छोड़ दे, अपनी रानी ईज़ेबेल को गलत काम करने से रोके और यहोवा के सेवकों पर ज़ुल्म ढाना बंद करे।
जब सबकुछ हमारे मन-मुताबिक चल रहा होता है, तो ज़ाहिर-सी बात है कि हमारी उम्मीदें बढ़ने लगती हैं। हम शायद सोचने लगें कि अब हमारे हालात सुधरते जाएँगे, हो सकता है हम यह तक सोचें कि ज़िंदगी की सबसे बड़ी परेशानियाँ खत्म हो चुकी हैं। अगर एलिय्याह को भी ऐसा लगा, तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं क्योंकि वह भी “हमारे जैसी भावनाएँ रखनेवाला इंसान था।” (याकूब 5:17) लेकिन असल में एलिय्याह की परेशानियाँ खत्म नहीं हुई थीं। सच तो यह है कि कुछ घंटों में वह इतना डर गया, इतना निराश हो गया कि वह अपनी मौत माँगने लगा। उसके साथ ऐसा क्या हुआ? और यहोवा ने किस तरह अपने भविष्यवक्ता को अपना विश्वास और अपनी हिम्मत दोबारा पाने में मदद दी? आइए देखें।
हालात ने एक दूसरा ही रुख मोड़ा
जब अहाब यिज्रैल में अपने महल पहुँचा, तो क्या उसने दिखाया कि अब वह बदल गया है और परमेश्वर को ज़्यादा अहमियत देने लगा है? बाइबल बताती है: “अहाब ने ईज़ेबेल को एलिय्याह के सब काम विस्तार से बताए कि उस ने सब नबियों को तलवार से किस प्रकार मार डाला।” (1 राजा 19:1) गौर कीजिए कि दिन की घटनाओं के बारे में बताते वक्त अहाब ने एलिय्याह के परमेश्वर यहोवा के बारे में एक बार भी ज़िक्र नहीं किया। अहाब ने उस दिन हुई सारी घटनाओं को इंसानी नज़रिए से देखा, उसने सिर्फ यह देखा कि एलिय्याह ने क्या किया। इससे साफ पता चलता है कि उसने अभी-भी यहोवा परमेश्वर का आदर करना नहीं सीखा था। दिन की घटनाओं के बारे में सुनकर दुष्ट ईज़ेबेल ने क्या किया?
उसका चेहरा तमतमा गया! गुस्से से भरकर उसने एलिय्याह के पास यह संदेश भेजा: “यदि मैं कल इसी समय तक तेरा प्राण उनका सा न कर डालूं तो देवता मेरे साथ वैसा ही वरन उस से भी अधिक करें।” (1 राजा 19:2) कितनी बड़ी धमकी! ईज़ेबेल एक तरह से कसम खा रही थी कि वह अगले दिन तक एलिय्याह को जान से मारकर बाल के नबियों के खून का बदला ज़रूर लेगी। और अगर वह ऐसा नहीं कर पाती है तो वह अपने देवताओं के हाथों मरने के लिए तैयार है। कल्पना कीजिए एलिय्याह उस तूफानी रात में यिज्रैल के किसी छोटे-से सराय में सो रहा है, तभी रानी का एक सेवक आकर उसे नींद से जगाता है और उसे उसकी मौत का फरमान सुनाता है। यह सुनकर एलिय्याह पर क्या असर हुआ?
निराशा और डर ने आ घेरा
अगर एलिय्याह इस बात के सपने सँजोए हुए था कि बाल की उपासना के खिलाफ चल रही उसकी लड़ाई लगभग खत्म हो चुकी है, तो उस एक पल में उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया। इतना सब होने के बाद भी ईज़ेबेल में कोई बदलाव नहीं आया। एलिय्याह के कई वफादार साथियों को पहले ही ईज़ेबेल के हुक्म पर मौत के घाट उतारा जा चुका था और लग रहा था कि अब एलिय्याह की बारी है। बाइबल बताती है: “वह डर गया।” (ए न्यू हिंदी ट्रांसलेशन) क्या इस डर की वजह यह थी कि वह ईज़ेबेल के हाथों अपनी दर्दनाक मौत के बारे में सोचने लगा? हाँ, शायद तभी उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। बात चाहे जो भी रही हो, एक चीज़ तो तय है कि एलिय्याह “अपना प्राण लेकर भागा।”—1 राजा 18:4; 19:3.
परमेश्वर पर विश्वास करनेवाला एलिय्याह अकेला ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिस पर डर हावी हो गया। कई सदियों बाद, प्रेषित पतरस भी ऐसे ही हालात से गुज़रा। मिसाल के लिए, एक बार जब यीशु ने उसे पानी पर चलने की ताकत दी, तो पतरस कुछ कदम पानी पर चला लेकिन फिर वह ‘तूफान को देखने लगा।’ तब उसकी हिम्मत चली गयी और वह डूबने लगा। (मत्ती 14:30) पतरस और एलिय्याह के उदाहरणों से हमें एक ज़रूरी सबक मिलता है। अगर हम अपनी हिम्मत बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें उन खतरों के बारे में नहीं सोचना चाहिए जिनसे हमें डर लगता है, बल्कि हमें अपना ध्यान अपनी आशा और ताकत के स्रोत यहोवा परमेश्वर पर लगाए रखना चाहिए।
“बस”
एलिय्याह डर के मारे वहाँ से भागा और यिज्रैल से करीब 150 किलोमीटर दूर बेर्शेबा नाम के एक नगर पहुँचा। यह नगर यहूदा देश की दक्षिणी सीमा के पास था। एलिय्याह ने वहाँ अपने सेवक को छोड़ दिया और अकेले ही वीराने की ओर बढ़ गया। बाइबल बताती है कि उसने ‘एक दिन का मार्ग’ तय किया। हो सकता है कि वह तड़के सुबह निकला हो और उसने खाने-पीने का या दूसरा कोई सामान साथ ना लिया हो। पूरी तरह टूट चुका एलिय्याह डर के मारे कहीं रुकना नहीं चाहता था, इसलिए चिलचिलाती धूप में वह ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर आगे बढ़ता जा रहा था। जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, एलिय्याह की हालत पस्त होने लगी। थककर वह एक झाऊ के पेड़ के नीचे बैठ गया। हालाँकि यह पेड़ ज़्यादा छाया तो नहीं देता, लेकिन इस वीराने में यही एक पेड़ था जिसके नीचे बैठा जा सकता था।—1 राजा 19:4.
एलिय्याह पूरी तरह निराश हो चुका था। वह अपनी मौत के लिए यहोवा से प्रार्थना करने लगा। उसने कहा: “मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूं।” वह जानता था कि उसके पुरखा मिट्टी में मिल चुके हैं और वे किसी के लिए कुछ अच्छा नहीं कर सकते। (सभोपदेशक 9:10) एलिय्याह भी इस वक्त खुद को उनकी तरह नकारा समझ कर रहा था। ताज्जुब नहीं कि उसने कहा: “बस।” वह मर जाना चाहता था।
क्या यह जानकर हमें धक्का लगना चाहिए कि परमेश्वर का एक सेवक इतना निराश हो सकता है? बिलकुल नहीं। बाइबल में ऐसे बहुत से वफादार स्त्री-पुरुषों के बारे में बताया गया है जो इतने निराश हो चुके थे कि उन्होंने मौत की भीख माँगी। जैसे रिबका, याकूब, मूसा और अय्यूब।—उत्पत्ति 27:46; 37:35; गिनती 11:13-15; अय्यूब 14:13.
आज हम ‘संकटों से भरे वक्त’ में जी रहे हैं, इसलिए ताज्जुब नहीं कि कई लोग, यहाँ तक कि परमेश्वर के वफादार सेवक भी कभी-कभी निराश हो जाते हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) अगर आप खुद को कभी ऐसे हालात में पाते हैं, तो एलिय्याह की मिसाल पर चलिए: परमेश्वर से अपने दिल की हर बात कह दीजिए। आखिरकार यहोवा “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है।” (2 कुरिंथियों 1:3) क्या उसने एलिय्याह को दिलासा दिया?
यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता को सँभाला
आपको क्या लगता है, जब यहोवा ने स्वर्ग से नीचे देखा होगा कि उसका प्यारा भविष्यवक्ता वीराने में उस पेड़ के नीचे बैठा मौत की गुहार लगा रहा है, तो उसे कैसा महसूस हुआ होगा? हमें अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत नहीं। एलिय्याह जब सो गया, तो यहोवा ने उसके पास एक स्वर्गदूत को भेजा। स्वर्गदूत ने धीमे से एलिय्याह को जगाया और कहा: “उठकर खा।” स्वर्गदूत ने उसके सिरहाने ताज़ी गर्म रोटी और पानी रख दिया था। एलिय्याह उठा, खाना खाया और पानी पिया। क्या एलिय्याह ने स्वर्गदूत को धन्यवाद दिया? बाइबल सिर्फ इतना बताती है कि भविष्यवक्ता ने रोटी खाई, पानी पिया और दोबारा सो गया। क्या वह इतना निराश हो गया था कि उससे कुछ बोलते नहीं बना? बात चाहे जो भी रही हो, स्वर्गदूत ने उसे दूसरी बार उठाया, शायद सुबह-सुबह। एक बार फिर उसने एलिय्याह से गुज़ारिश की, “उठकर खा।” इसके बाद स्वर्गदूत ने उससे ये खास शब्द कहे, “क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है।”—1 राजा 19:5-7.
परमेश्वर से मिली समझ की वजह से स्वर्गदूत जानता था कि एलिय्याह कहाँ जा रहा है। वह यह भी जानता था कि सफर एलिय्याह के लिए बहुत लंबा होगा और वह अपनी ताकत से इसे पूरा नहीं कर पाएगा। इस बात से हमें कितना दिलासा मिलता है कि हम एक ऐसे परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं जो हमारे लक्ष्यों और हमारी सीमाओं को हमसे बेहतर जानता है! (भजन 103:13, 14) स्वर्गदूत ने जो खाना दिया उसे खाने से एलिय्याह को क्या फायदा हुआ?
बाइबल में हम पढ़ते हैं: “उस ने उठकर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा।” (1 राजा 19:8) एलिय्याह ने 40 दिन और 40 रात तक कुछ नहीं खाया, ठीक जैसे करीब 600 साल पहले मूसा ने और करीब 1,000 साल बाद यीशु ने किया। (निर्गमन 34:28; लूका 4:1, 2) उस एक वक्त के खाने से उसकी सारी परेशानियाँ दूर नहीं हो गयीं, लेकिन इस खाने ने चमत्कारिक तरीके से उसे इतने दिनों तक ताकत दी। सोचिए कि यह बुज़ुर्ग वीराने में आगे बढ़ता जा रहा है जहाँ कोई रास्ता या पगडंडी नहीं है और वह भी एक दिन या एक हफ्ते नहीं बल्कि पूरे 40 दिन के लिए।
आज भी यहोवा अपने सेवकों को सँभालता है। हालाँकि वह चमत्कार करके हमें खाना तो नहीं देता मगर हमारी आध्यात्मिक भूख यानी उससे मार्गदर्शन पाने की भूख ज़रूर मिटाता है। (मत्ती 4:4) परमेश्वर के वचन बाइबल और उस पर आधारित साहित्य पढ़ने से हम परमेश्वर के बारे में सीख पाते हैं और उसके साथ हमारा रिश्ता बना रहता है। इस तरह का आध्यात्मिक भोजन लेने से शायद हमारी सारी समस्याएँ दूर न हों, लेकिन हम उन मुश्किलों का सामना ज़रूर कर पाएँगे जो हमारे बरदाश्त के बाहर होती हैं। इसके अलावा यह ज्ञान हमें “हमेशा की ज़िंदगी” की ओर भी ले जाता है।—यूहन्ना 17:3.
एलिय्याह करीब 320 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करके आखिरकार होरेब पर्वत पर पहुँचा। सालों पहले इसी पर्वत पर यहोवा परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए जलती हुई झाड़ी में से मूसा से बात की थी और यहीं पर यहोवा ने इसराएल देश के साथ कानून व्यवस्था का करार बाँधा था। एलिय्याह ने एक गुफा के अंदर शरण ली।
यहोवा ने कैसे अपने भविष्यवक्ता को दिलासा और हिम्मत दी
होरेब पर्वत पर एलिय्याह के पास यहोवा का “वचन” पहुँचा, शायद एक स्वर्गदूत के ज़रिए। यहोवा ने एलिय्याह से एक आसान-सा सवाल किया: “एलिय्याह तेरा यहां क्या काम?” सवाल शायद बहुत ही प्यार से पूछा गया था, क्योंकि जवाब में एलिय्याह ने परमेश्वर के सामने अपनी सारी भावनाएँ उँडेल दी। उसने कहा: “सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है, क्योंकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा टाल दी, तेरी वेदियों को गिरा दिया, और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है, और मैं ही अकेला रह गया हूं; और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं।” (1 राजा 19:9, 10) एलिय्याह की बात से उसके निराश होने की कम-से-कम तीन वजह पता चलती हैं।
पहली वजह, एलिय्याह को लगा कि उसकी मेहनत बेकार गयी। सालों से वह यहोवा की सेवा के लिए “बड़ी जलन” दिखा रहा था, वह परमेश्वर के पवित्र नाम और उसकी उपासना को पहली जगह दे रहा था, फिर भी हालात बद-से-बदतर होते जा रहे थे। लोग परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर रहे थे और विद्रोही बन गए थे। साथ ही झूठी उपासना ज़ोर पकड़ती जा रही थी। दूसरी वजह, एलिय्याह अकेला महसूस कर रहा था। उसने कहा, “मैं ही अकेला रह गया हूं,” मानो इसराएल देश में यहोवा की सेवा करनेवाला वही अकेला रह गया हो। तीसरी वजह, एलिय्याह डर गया था। उसके कई साथी भविष्यवक्ताओं को मारा जा चुका था और उसे यकीन था कि अगली बारी उसकी है। एलिय्याह के लिए यह सब अपने मुँह से कबूल करना आसान नहीं रहा होगा, लेकिन वह घमंड या शर्मिंदगी की वजह से अपने दिल की बात कहने से पीछे नहीं हटा। उसने प्रार्थना में दिल खोलकर अपने परमेश्वर से बात की और इस तरह उसने परमेश्वर के सभी वफादार लोगों के लिए एक बेहतरीन मिसाल रखी।—भजन 62:8.
एलिय्याह का डर और चिंता दूर करने के लिए यहोवा ने क्या किया? स्वर्गदूत ने एलिय्याह से कहा कि वह गुफा के मुँह पर खड़ा हो जाए। एलिय्याह ने ऐसा ही किया, उसे नहीं मालूम था कि आगे क्या होनेवाला है। एक ज़बरदस्त आँधी चली! उसके शोर से कान के परदे फटने लगे होंगे, क्योंकि वह इतनी शक्तिशाली थी कि उससे पहाड़ फटने और चट्टानें टूटने लगीं। कल्पना कीजिए, एलिय्याह अपने एक हाथ से अपनी आँखें ढक रहा है और दूसरे हाथ से अपने भारी कपड़े को थामे रखने की कोशिश कर रहा है। फिर उसे अपना संतुलन बनाए रखने में मुश्किल होने लगी, क्योंकि एक बहुत बड़े भूकंप की वजह से धरती हिलने लगी। अभी वह ठीक-से सँभल भी नहीं पाया था कि एक बहुत बड़ी आग वहाँ से गुज़री और एलिय्याह को उसकी भयंकर ताप से बचने के लिए गुफा के अंदर वापस जाना पड़ा।—1 राजा 19:11, 12.
आँधी, भूकंप और आग के बाद हर बार बाइबल याद दिलाती है कि यहोवा कुदरत के इन शक्तिशाली प्रदर्शनों में नहीं था। एलिय्याह को मालूम था कि यहोवा, बाल की तरह कोई मनगढ़ंत प्रकृति-देवता नहीं है। बाल को उसके पथभ्रष्ट उपासक “बादलों की सवारी करनेवाला,” यानी बरसात का देवता समझते थे। यहोवा ही कुदरत में पायी जानेवाली ज़बरदस्त शक्ति का असली स्रोत है। साथ ही वह अपनी बनायी सारी चीज़ों से कहीं ज़्यादा महान है। यहाँ तक कि वह स्वर्ग में भी नहीं समा सकता! (1 राजा 8:27) इन सब बातों से एलिय्याह को कैसे मदद मिली? याद कीजिए कि वह कितना डर रहा था। जब असीमित शक्ति का मालिक यहोवा परमेश्वर उसके साथ है, तो उसे अहाब और ईज़ेबेल से डरने की क्या ज़रूरत!—भजन 118:6.
आग गुज़रने के बाद सबकुछ शांत हो गया और एलिय्याह को “एक दबा हुआ धीमा शब्द सुनाई दिया।” उस आवाज़ ने एलिय्याह को फिर से अपने दिल की बात बताने के लिए कहा और एलिय्याह ने दूसरी बार ऐसा किया।b तब उसका दिल हल्का हो गया होगा। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि उस ‘दबे हुए धीमे शब्द’ ने आगे जो कहा, उससे एलिय्याह को और दिलासा मिला होगा। यहोवा ने एलिय्याह को भरोसा दिलाया कि वह बेकार नहीं है। किस तरह? परमेश्वर ने उसे बताया कि इसराएल से बाल की उपासना को जड़ से मिटाने के लिए भविष्य में क्या-क्या होनेवाला है। इससे पता चलता है कि एलिय्याह का काम बेकार नहीं गया था, क्योंकि परमेश्वर का मकसद आगे बढ़ता जा रहा था और उसे कोई भी पूरा होने से रोक नहीं सकता था। इसके अलावा, परमेश्वर के मकसद में एलिय्याह की भूमिका अभी खत्म नहीं हुई थी, क्योंकि यहोवा ने उसे कुछ खास निर्देश देकर वापस भेजा।—1 राजा 19:12-17.
लेकिन एलिय्याह खुद को अकेला महसूस करने लगा था, उसके बारे में क्या? यहोवा ने इसे दूर करने के लिए दो काम किए। पहला, उसने एलिय्याह से कहा कि वह एलीशा का अभिषेक करे जो कि उसके बाद भविष्यवक्ता बनता। जवान एलीशा आगे के कई सालों के लिए एलिय्याह का साथी और सहायक बनता। वाकई यह सुनकर एलिय्याह को कितना दिलासा मिला होगा! दूसरा, यहोवा ने उसे यह सनसनीखेज़ खबर दी: “मैं सात हजार इस्राएलियों को बचा रखूंगा। ये तो वे सब हैं, जिन्हों ने न तो बाल के आगे घुटने टेके, और न मुंह से उसे चूमा है।” (1 राजा 19:18) एलिय्याह अकेला नहीं था। उसे यह जानकर बहुत खुशी हुई होगी कि इसराएल में ऐसे हज़ारों वफादार लोग हैं, जिन्होंने बाल की उपासना नहीं की। उस समय लगभग सभी यहोवा के खिलाफ जा रहे थे, ऐसे में यहोवा की सेवा में एलिय्याह जो मिसाल कायम करता और जो वफादारी दिखाता, उससे उन हज़ारों लोगों को यहोवा की उपासना करते रहने का बढ़ावा मिलता। यहोवा के स्वर्गदूत, यानी अपने परमेश्वर के ‘दबे हुए धीमे शब्द’ के ज़रिए यह बात सुनकर एलिय्याह को कितनी तसल्ली मिली होगी।
एलिय्याह की तरह हम भी सृष्टि में पायी जानेवाली ज़बरदस्त प्राकृतिक शक्तियों को देखकर हैरान हो जाते हैं और ऐसा होना भी चाहिए। सृष्टि साफ-साफ और बारीकी से सृष्टिकर्ता की ताकत ज़ाहिर करती है। (रोमियों 1:20) यहोवा आज भी अपने वफादार सेवकों की मदद करने के लिए अपनी असीमित शक्ति का इस्तेमाल करता है। (2 इतिहास 16:9) लेकिन परमेश्वर खास तौर से अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमसे बात करता है। (यशायाह 30:21) एक मायने में देखा जाए तो बाइबल उस ‘दबे हुए धीमे शब्द’ की तरह है, जिसके ज़रिए यहोवा आज हमें मार्गदर्शन देता है, सुधारता है, हिम्मत देता है और अपने प्यार का यकीन दिलाता है।
यहोवा ने होरेब पर्वत पर एलिय्याह को जो दिलासा दिया, क्या उसे एलिय्याह ने स्वीकार किया? बिलकुल किया! जल्द ही वह अपने काम में लग गया और पहले की तरह झूठी उपासना की बुराइयों के खिलाफ एक निडर और वफादार भविष्यवक्ता बन गया। उसकी तरह अगर हम भी परमेश्वर के प्रेरित वचन को दिल में उतारेंगे यानी “शास्त्र से दिलासा” लेंगे, तो हम एलिय्याह के विश्वास की मिसाल पर चल पाएँगे।—रोमियों 15:4. (w11-E 07/01)
[फुटनोट]
a जनवरी-मार्च, 2008 की प्रहरीदुर्ग पत्रिका में दिया लेख “उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए—वह सच्ची उपासना के पक्ष में खड़ा हुआ” देखिए।
b इस ‘दबे हुए धीमे शब्द’ का स्रोत शायद वही स्वर्गदूत होगा जिसने 1 राजा 19:9 में ‘यहोवा का वचन’ एलिय्याह को पहुँचाया था। आयत 15 में इस स्वर्गदूत को सिर्फ “यहोवा” कहा गया है। शायद हमें उस स्वर्गदूत का ध्यान आए जिसने यहोवा के कहे मुताबिक वीराने में इसराएलियों को रास्ता दिखाया था और जिसके बारे में परमेश्वर ने कहा: “उस में मेरा नाम रहता है।” (निर्गमन 23:21) हम यह दावे के साथ तो नहीं कह सकते, लेकिन गौरतलब है कि यीशु धरती पर आने से पहले “वचन” यानी यहोवा के सेवकों से बात करनेवाला खास प्रवक्ता था।—यूहन्ना 1:1.
[पेज 15 पर तसवीर]
यहोवा ने एलिय्याह को अच्छे और बुरे समय में ज़बरदस्त तरीके से आशीष दी
[पेज 16 पर तसवीर]
गहरे दुख में एलिय्याह ने अपने दिल की हर बात यहोवा के सामने उँडेल दी
[पेज 17 पर तसवीर]
यहोवा ने अपनी असीमित ताकत का इस्तेमाल करके एलिय्याह को दिलासा दिया और उसकी हौसला अफज़ाई की