मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 शमूएल 18-19
“बरजिल्लै की तरह बनें, मर्यादा में रहें”
बुज़ुर्ग मसीहियो—यहोवा आपकी वफादारी की बहुत कदर करता है
दाविद ने बरजिल्लै से गुज़ारिश की कि वह उसके साथ यरूशलेम चले। बरजिल्लै “एक अमीर आदमी था” और उसे खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी, फिर भी दाविद ने उससे कहा कि वह उसके खाने-पीने का खयाल रखेगा। (2 शमू. 19:31-33) उसने सोचा होगा कि बरजिल्लै उसे बढ़िया सलाह दे सकता है, क्योंकि उसे सालों का तजुरबा है। शायद इसी वजह से वह उसे अपने साथ ले जाना चाहता था। बरजिल्लै के पास भी यह एक बढ़िया मौका था कि वह महल में रहे और राज-दरबार में काम करे।
बुज़ुर्ग मसीहियो—यहोवा आपकी वफादारी की बहुत कदर करता है
लेकिन बरजिल्लै अपनी हदें जानता था। उसने दाविद से कहा, “तेरा यह दास 80 साल का हो गया है। क्या अब मैं अच्छे-बुरे में फर्क कर सकता हूँ?” उसने ऐसा क्यों कहा? इतनी उम्र में तो उसमें काफी बुद्धि रही होगी, जिससे वह अच्छी सलाह दे सकता था, जैसे सालों बाद कुछ “बुज़ुर्गों” ने राजा रहूबियाम को अच्छी सलाह दी थी। (1 राजा 12:6, 7; भज. 92:12-14; नीति. 16:31) दरअसल बरजिल्लै के कहने का मतलब था कि उम्र ढलने की वजह से अब वह काफी कमज़ोर हो गया है और ज़्यादा कुछ नहीं कर पाता। उसके मुँह का स्वाद चला गया है और उसे कम सुनायी पड़ता है। (सभो. 12:4, 5)
प्र07 7/15 पेज 15 पै 1-2, अँग्रेज़ी
बरजिल्लै अपनी हद जानता था
बरजिल्लै से हम सीखते हैं कि हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम क्या कर सकते हैं और क्या नहीं। जब हमें कोई ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो हमें इस वजह से ना नहीं कहना चाहिए कि उसे करना मुश्किल है या हमें लगता है कि हमसे नहीं होगा। अगर हम यहोवा पर भरोसा रखकर वह ज़िम्मेदारी लें, तो उसे पूरा करने के लिए यहोवा हमें बुद्धि और ताकत देगा।—फिलिप्पियों 4:13; याकूब 4:17; 1 पतरस 4:11.
लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि हम सभी ज़िम्मेदारियों के लिए हाँ कह दें। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि एक भाई के पास पहले ही बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हों। और उसे एहसास हो कि अगर वह और ज़िम्मेदारियाँ लेगा, तो वह दूसरे ज़रूरी काम अच्छी तरह नहीं कर पाएगा, जैसे अपने परिवार की देखभाल करना। ऐसे में अच्छा रहेगा कि वह मर्यादा में रहकर कुछ ज़िम्मेदारियाँ लेने से मना कर दे।—फिलिप्पियों 4:5; 1 तीमुथियुस 5:8.
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‘अपनी दौड़ पूरी कीजिए’
19 क्या आप भी कुछ मुश्किलें झेल रहे हैं और आपको लगता है कि कोई आपका दर्द नहीं समझता? अगर ऐसा है, तो मपीबोशेत को याद करने से आपको हिम्मत मिलेगी। (2 शमू. 4:4) वह अपंग होने की वजह से पहले से कई मुश्किलें झेल रहा था। ऊपर से दाविद ने भी उसे गलत समझा और उसके साथ अन्याय किया। उसके साथ जो भी हुआ, उसमें उसकी कोई गलती नहीं थी। फिर भी इन मुश्किलों की वजह से वह कड़वाहट से नहीं भर गया। इसके बजाय, उसने अपनी ज़िंदगी की अच्छी बातों पर ध्यान दिया। बहुत पहले दाविद ने उस पर जो कृपा की थी, उसके लिए वह एहसानमंद था। (2 शमू. 9:6-10) इसलिए जब दाविद ने उसके साथ अन्याय किया, तो वह नाराज़ नहीं हो गया या मन-ही-मन कुढ़ता नहीं रहा। मपीबोशेत ने इस अन्याय के लिए यहोवा पर भी दोष नहीं लगाया। उसने बस इस बात पर ध्यान दिया कि यहोवा ने दाविद को राजा चुना है और वह कैसे दाविद का साथ दे सकता है। (2 शमू. 16:1-4; 19:24-30) मपीबोशेत वाकई बेमिसाल था, इसीलिए यहोवा ने उसके बारे में बाइबल में लिखवाया ताकि हम उससे सीख सकें।—रोमि. 15:4.
11-17 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 शमूएल 20-21
“यहोवा न्याय का परमेश्वर है”
इंसाइट-1 पेज 932 पै 1
गिबोन
गिबोनी जानते थे कि बिना कानूनी कार्रवाई के वे किसी को मौत की सज़ा नहीं दे सकते। इसलिए उन्होंने इंतज़ार किया। बाद में दाविद ने मामले की जाँच-पड़ताल की और गिबोनियों से पूछा कि उन्हें न्याय दिलाने के लिए वह क्या कर सकता है। तब गिबोनियों ने कहा कि वह ‘शाऊल के वंशजों में से सात आदमियों’ को उनके हवाले कर दे ताकि वे उन्हें मार डाल सकें। उन्होंने ऐसा क्यों कहा? ऐसा नहीं था कि ‘पिताओं के पाप के लिए बच्चों को मार डाला जाता।’ (व्य 24:16) इसके बजाय, बाइबल में लिखा है, “शाऊल और उसका घराना खून का दोषी है।” इससे पता चलता है कि जब शाऊल ने गिबोनियों का कत्लेआम करवाया होगा, तो शायद उसके वंशजों ने भी उसका साथ दिया था। (2शम 21:1-9) इसलिए उन सात वंशजों को मार डाला जाना था, ठीक जैसे कानून में लिखा था, “जान के बदले जान” ली जाए।—व्य 19:21.
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मसीही प्राचीन—‘हमारी खुशी के लिए हमारे सहकर्मी’
14 शैतान और उसके हिमायतियों के विरोध के बावजूद आज दुनिया-भर में यहोवा के लोग उसकी सेवा में लगे हुए हैं। हममें से कुछ लोगों की ज़िंदगी में भी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ आयी थीं। लेकिन दाविद की तरह यहोवा पर भरोसा रखकर हमने उन “गोलियत” जैसी बड़ी मुश्किलों का सामना किया और उन पर जीत हासिल की। फिर भी कई बार इस दुनिया से आनेवाले दबाव झेलते-झेलते हम थक जाते हैं और निराश हो जाते हैं। ऐसी कमज़ोर हालत में हम उन्हीं मुश्किलों का सामना करने में नाकाम हो सकते हैं जिनका सामना करने में हम पहले कई बार कामयाब हुए थे। ऐसी ज़रूरत की घड़ी में जब प्राचीन हमें सहारा देते हैं, तो हमें एक बार फिर खुशी से यहोवा की सेवा करने की हिम्मत मिलती है। बहुत से लोगों का ऐसा अनुभव रहा है। एक पायनियर बहन जो करीब 65 साल की है, बताती है, “कुछ समय पहले, मेरी तबियत ठीक नहीं थी और मैं प्रचार में जाकर बहुत थक गयी थी। जब एक प्राचीन ने मेरी हालत पर गौर किया तो वे मुझसे मिलने आए और उन्होंने मेरे साथ बाइबल की कुछ आयतों पर चर्चा की जिससे मेरा काफी हौसला बढ़ा। मैंने उनके बताए सुझाव लागू किए और मुझे बहुत फायदा हुआ।” बहन आगे कहती है, “वाकई उस भाई ने मेरे लिए कितनी परवाह दिखायी! उन्होंने मेरी हालत पर ध्यान दिया और मेरी मदद की!” हमें यह जानकर कितना अच्छा लगता है कि हमारे बीच ऐसे प्राचीन हैं जो हम पर गौर करते हैं और हमारी “सहायता” करने के लिए अबीशै की तरह हर वक्त तैयार रहते हैं।
18-24 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 शमूएल 22
“यहोवा से मदद लीजिए”
क्या आप सचमुच “परमेश्वर के करीब” आ सकते हैं?
11 यह पढ़ना एक अलग बात है कि परमेश्वर “अत्यन्त बली है।” (यशायाह 40:26) लेकिन, जब हम यह पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने इस्राएल को लाल सागर से कैसे बचाया और 40 साल तक वीराने में उस जाति की कैसे देखभाल की, तो हमें इस वचन के असली मायने समझ में आते हैं। आप मन की आँखों से देख सकते हैं कि हिलोरें मारता सागर कैसे दो भागों में बँटता जा रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इस्राएल जाति जो कुल मिलाकर शायद 30,00,000 लोग थे, सागर की सूखी ज़मीन पर चल रहे हैं और उनके दोनों तरफ पानी जमा होकर, बड़ी-बड़ी विशाल दीवारों की तरह खड़ा हुआ है। (निर्गमन 14:21; 15:8) वीराने में परमेश्वर ने कैसे उनकी हिफाज़त और देखभाल की, आप इसका भी सबूत देख सकते हैं। चट्टान से पानी बह निकला। सफेद दानों के रूप में भोजन ज़मीन पर गिरा। (निर्गमन 16:31; गिनती 20:11) यहोवा ने, सिर्फ यह नहीं दिखाया कि उसके पास शक्ति है बल्कि यह कि वह अपने लोगों की खातिर इसका इस्तेमाल भी करता है। क्या यह जानकर हमें तसल्ली नहीं होती कि हमारी प्रार्थनाएँ एक ऐसा शक्तिशाली परमेश्वर सुनता है जो “हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक” है?—भजन 46:1.
यहोवा की वफादारी और उसके माफ करने के गुण की कदर कीजिए
4 यहोवा किस तरह वफादारी दिखाता है? वह अपने सेवकों का साथ कभी नहीं छोड़ता। उनमें से एक था, राजा दाविद, जिसने यहोवा के बारे में कहा: “किसी वफादार के साथ तू वफादारी से पेश आएगा।” (2 शमू. 22:26, एन.डब्ल्यू.) जब दाविद परीक्षाओं के दौर से गुज़र रहा था, तब यहोवा ने उसे सही राह दिखाकर, उसकी हिफाज़त करके और उसे बचाकर अपनी वफादारी का सबूत दिया। (2 शमू. 22:1) दाविद जानता था कि यहोवा सिर्फ शब्दों से ही नहीं, बल्कि अपने कामों से भी वफादारी दिखाता है। यहोवा दाविद के साथ वफादारी से क्यों पेश आया? क्योंकि खुद दाविद भी “वफादार” था। यहोवा अपने सेवकों की वफादारी देखकर बहुत खुश होता है, और बदले में उनके साथ भी वफादारी से पेश आता है।—नीति. 2:6-8.
5 जब हम यहोवा की वफादारी पर मनन करते हैं, तो हमारा हौसला बढ़ता है। रीड नाम का एक मसीही भाई कहता है, “जब भी मैं पढ़ता हूँ कि यहोवा दाविद के साथ मुश्किल घड़ी में कैसे पेश आया, तो मुझे बहुत मदद मिलती है। यहाँ तक कि जब दाविद भगोड़े की ज़िंदगी जी रहा था, और उसे कभी एक गुफा में ठहरना पड़ता, तो कभी दूसरी में, तब भी यहोवा ने हर वक्त उसे सँभाले रखा। इससे मुझे बहुत हिम्मत मिलती है! यह बात मुझे याद दिलाती है कि चाहे मेरे हालात कैसे भी हों, मुझे कोई उम्मीद नज़र न आए, लेकिन यहोवा मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेगा, बशर्ते मैं उसका वफादार बना रहूँ।” बेशक, आपने भी ऐसा ही महसूस किया होगा।—रोमि. 8:38, 39.
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खुद को बाकियों से छोटा समझने का रवैया अपनाइए
7 परमेश्वर की नम्रता की मिसाल ने भजनहार दाविद पर गहरा असर किया। उसने यहोवा के लिए गीत गाया: “तू ने मुझ को अपने उद्धार की ढाल दी है, और तेरी नम्रता मुझे बढ़ाती है।” (2 शमू. 22:36) दाविद को इसराएल में जो भी महानता मिली उसका श्रेय उसने यहोवा की नम्रता को दिया। दूसरे शब्दों में कहें तो यहोवा झुका या उसने खुद को नम्र किया ताकि वह दाविद पर ध्यान दे सके और उसकी मदद कर सके। (भज. 113:5-7) हमारे बारे में क्या? हममें जो गुण, जो काबिलीयतें हैं और परमेश्वर की सेवा में हमें जो ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं, क्या ये सबकुछ हमने यहोवा से “नहीं पाया”? (1 कुरिं. 4:7) खुद को दूसरों से छोटा समझनेवाला इंसान इस मायने में “बड़ा” होता है कि वह यहोवा के लिए बहुत ही अनमोल बन जाता है। (लूका 9:48) कैसे? आइए देखें।
25-31 जुलाई
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 2 शमूएल 23-24
“क्या आपका बलिदान सच में एक बलिदान है?”
इंसाइट-1 पेज 146
अरौना
अरौना दाविद को खलिहान, बैल और लकड़ियाँ मुफ्त में देना चाहता था। पर दाविद यह सब मुफ्त में नहीं लेना चाहता था। दूसरा शमूएल 24:24 में बताया गया है कि दाविद ने 50 शेकेल चाँदी देकर यह सब खरीदा। लेकिन 1 इतिहास 21:25 में लिखा है कि दाविद ने 600 शेकेल सोना देकर वह जगह खरीदी। इन दोनों आयतों में अलग-अलग रकम क्यों बतायी गयी है? 2 शमूएल में पहले की बात की गयी है, जब दाविद ने एक छोटी-सी जगह पर वेदी खड़ी की थी। इसलिए उसने जो रकम दी थी, वह सिर्फ उस छोटी-सी जगह, बैलों और लकड़ियों के लिए थी। लेकिन 1 इतिहास में बाद के समय की बात की गयी है, जब उसी इलाके में मंदिर बनाने के लिए और भी बड़ी जगह चाहिए थी। (1इत 22:1-6; 2इत 3:1) इसलिए जो रकम दी गयी थी वह और भी बड़ी थी।
“सच्चाई के बुनियादी ढाँचे” से सीखिए
8 अगर एक इसराएली यहोवा का एहसान मानने के लिए अपनी मरज़ी से कोई बलि चढ़ाना चाहता या फिर एक होम-बलि के ज़रिए उसकी मंज़ूरी पाने की दरखास्त करता, तो वह खुशी-खुशी यहोवा को सबसे बेहतर जानवर चढ़ाता। हालाँकि आज के ज़माने में मसीही, जानवरों की बलि नहीं चढ़ाते मगर हम अपना समय, अपनी ताकत और अपने साधन यहोवा की सेवा में लगाकर एक तरह से यहोवा को बलि चढ़ा रहे होते हैं। प्रेषित पौलुस ने कहा कि मसीही आशा का “सरेआम ऐलान” करना और “भलाई करना और अपनी चीज़ों से दूसरों की मदद करना,” एक तरह से बलिदान हैं जिनसे परमेश्वर खुश होता है। (इब्रा. 13:15, 16) यहोवा के लोग जिस रवैए से ये काम करते हैं उससे वे दिखाते हैं कि वे परमेश्वर के कितने एहसानमंद हैं। तो फिर जिस रवैए और इरादे से पुराने ज़माने के इसराएली अपनी मरज़ी से बलिदान चढ़ाते थे, क्या हम भी अपनी सेवा उसी रवैए और इरादे से करते हैं?
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दूसरा शमूएल किताब की झलकियाँ
23:15-17. दाऊद, ज़िंदगी और लहू के बारे में परमेश्वर के नियम का इतना गहरा आदर करता था कि उसने इस मौके पर एक ऐसा काम करने से इनकार किया जो उस नियम को तोड़ने के बराबर था। परमेश्वर की सभी आज्ञाओं के लिए हमारे अंदर भी दाऊद जैसा रवैया होना चाहिए।
1-7 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 राजा 1-2
“क्या आप अपनी गलतियों से सीखते हैं?”
इंसाइट-2 पेज 987 पै 4
सुलैमान
जब अदोनियाह और उसके साथियों ने लोगों को यह ऐलान करते हुए सुना, “राजा सुलैमान की जय हो!” तो वे डर के मारे भाग गए। अदोनियाह मंदिर में जाकर छिप गया। जब इस बारे में सुलैमान को बताया गया तो वह चाहता तो उसे मार डालता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया बल्कि इस शर्त पर उसे छोड़ दिया कि “वह भला आदमी बनकर रहेगा।” सुलैमान ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि यहोवा ने कहा था कि उसकी हुकूमत के दौरान चारों तरफ शांति होगी। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुलैमान ने एक अच्छी शुरूआत की। उसने अदोनियाह से बदला नहीं लिया।—1रा 1:41-53.
इंसाइट-1 पेज 49
अदोनियाह
दाविद की मौत के बाद अदोनियाह बतशेबा के पास गया। उसने उसे मनाया कि वह सुलैमान से जाकर गुज़ारिश करे कि वह दाविद की उप-पत्नी अबीशग उसे दे दे। अदोनियाह ने बतशेबा से यह भी कहा, “तू अच्छी तरह जानती है कि राजगद्दी मुझे मिलनी थी और पूरा इसराएल भी यही उम्मीद लगाए था कि मैं राजा बनूँगा।” उसकी इस बात से पता चलता है कि उसका इरादा क्या था। हालाँकि उसने माना कि यहोवा ने सुलैमान को राजा बनाया है, फिर भी उसे लगा कि राजा बनने का अधिकार उसका था जो उससे छीन लिया गया है। (1रा 2:13-21) इसलिए उसने सोचा होगा कि भले ही उसे राजगद्दी नहीं मिली, लेकिन उसे कुछ तो मिलना चाहिए। अदोनियाह की गुज़ारिश से यह भी पता चलता है कि उस पर अब भी राजा बनने का जुनून सवार था। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि उन दिनों यह नियम था कि जब एक राजा की मौत हो जाती थी, तो उसकी पत्नियाँ और उप-पत्नियाँ अगले राजा को ही मिलती थीं। (2शम 3:7; 16:21 से तुलना कीजिए।) सुलैमान अदोनियाह की गुज़ारिश से समझ गया कि उसके मन में क्या चल रहा है। इसलिए उसने अदोनियाह को फौरन मरवा डाला।—1रा 2:22-25.
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पहला राजा किताब की झलकियाँ
2:37, 41-46. एक इंसान का यह सोचना कितना खतरनाक है कि वह परमेश्वर के नियमों के खिलाफ जाकर भी सज़ा से बच सकता है! जो लोग ‘जीवन को पहुँचानेवाले सकरे मार्ग से’ जानबूझकर हट जाते हैं, उन्हें अपनी बेवकूफी का अंजाम ज़रूर भुगतना पड़ेगा।—मत्ती 7:14.
8-14 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 राजा 3-4
“बुद्धि अनमोल है”
उसके अच्छे और बुरे उदाहरण से सीखिए
4 जब सुलैमान राजा बना तो यहोवा सपने में उसे दिखायी दिया और उससे कहा कि वह जो चाहे माँग सकता है। अपने तजुरबे की कमी को समझते हुए सुलैमान ने परमेश्वर से बुद्धि माँगी। (1 राजा 3:5-9 पढ़िए।) यहोवा इस बात से खुश हुआ कि सुलैमान ने दौलत और शोहरत की बजाय बुद्धि माँगी इसलिए उसने सुलैमान को ‘बुद्धि और विवेक से भरे मन’ के साथ-साथ धन-दौलत से भी नवाज़ा। (1 राजा 3:10-14) जैसे यीशु ने बताया, सुलैमान की बुद्धि इतनी लाजवाब थी कि शीबा की रानी उसके बारे में सुनकर बड़ी दूर से उससे मिलने आयी ताकि वह खुद उसकी बुद्धि देख सके।—1 राजा 10:1, 4-9.
5 हम यह उम्मीद नहीं करते कि परमेश्वर कोई चमत्कार करके हमें बुद्धि देगा। सुलैमान ने कहा कि “बुद्धि यहोवा ही देता है।” लेकिन उसने यह भी बताया कि हमें इस गुण को पाने के लिए मेहनत करनी होगी। उसने कहा: ‘बुद्धि की बात ध्यान से सुन, और समझ की बात मन लगाकर सोच।’ उसने यह भी कहा: ‘यत्न से पुकार,’ ‘ढ़ूंढ़’ और ‘खोज में लगा रह।’ (नीति. 2:1-6) जी हाँ, बुद्धि पाना हमारे लिए भी मुमकिन है।
6 हमें खुद से पूछना चाहिए ‘क्या मैं भी उसी तरह बुद्धि की कदर करता हूँ जैसे सुलैमान ने की थी?’ आर्थिक उथल-पुथल के चलते कई लोग अच्छी नौकरी या ऊँची शिक्षा हासिल करने में लग गए हैं। आपके और आपके परिवार के बारे में क्या कहा जा सकता है? आप जो चुनाव करते हैं क्या उससे यह ज़ाहिर होता है कि आप बुद्धि की कदर करते हैं और उसे पाने के लिए मेहनत करते हैं? क्या आप अपने लक्ष्यों में थोड़ा फेरबदल करके ज़्यादा बुद्धि पा सकते हैं? इसमें दो राय नहीं कि अगर आप बुद्धि पाने और उसका इस्तेमाल करने की कोशिश करें, तो आपको ज़रूर फायदा होगा, जैसा कि सुलैमान ने लिखा: “तब तू धर्म और न्याय, और सीधाई को, निदान सब भली-भली चाल समझ सकेगा।”—नीति. 2:9.
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प्र98 2/1 पेज 11 पै 15
यहोवा वाचाओं का परमेश्वर है
15 जब इब्राहीम के वंशज व्यवस्था के अधीन एक जाति के तौर पर संगठित हुए, तब कुलपिता से किए गए अपने वादे के मुताबिक़ यहोवा ने उन्हें आशीष दी। ईसा पूर्व 1473 में, मूसा का उत्तराधिकारी, यहोशू इस्राएल को कनान में ले गया। उसके बाद उन गोत्रों के बीच हुए उस देश के बँटवारे से, उस देश को इब्राहीम के वंश को देने का यहोवा का वादा पूरा हुआ। जब इस्राएल वफ़ादार रहा, तब यहोवा ने अपना वादा निभाया कि वह उन्हें उनके दुश्मनों पर विजय देगा। यह ख़ासकर राजा दाऊद के शासन के समय सच था। दाऊद के बेटे सुलैमान के समय तक, इब्राहीम के साथ की गयी वाचा का तीसरा पहलू पूरा हुआ। “यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे।”—1 राजा 4:20.
15-21 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 राजा 5-6
“उन्होंने दिलो-जान से काम किया”
“लबानोन के विशाल देवदार वृक्ष की तरह”
देवदार के आकार और उसकी लकड़ी के टिकाऊ होने की वज़ह से यह एक लंबे अरसे से घर और जहाज़ बनाने साथ ही फर्नीचर बनाने के काम आता रहा है। देवदार की लकड़ी की खुशबू और आग जैसा उसका लाल रंग बहुत ही आकर्षक होता है। इस लकड़ी में राल की मात्रा अधिक होने की वज़ह से यह जल्दी नहीं सड़ती न ही इसमें आसानी से कीड़े लगते हैं।
इंसाइट-1 पेज 424
देवदार
मंदिर बनाने के लिए बहुत-से देवदार की लकड़ी लगी होगी। और इन लकड़ियों को यरूशलेम तक लाने में बहुत सारा काम शामिल था। सबसे पहले पेड़ों को काटा जाता था। फिर इन्हें ढोकर भूमध्य सागर के तट पर बसे सोर या सीदोन शहर तक लाया जाता था। वहाँ उनके बेड़े बनाकर समुंदर के रास्ते से शायद याफा तक लाया जाता था। फिर याफा से उन्हें ढोकर यरूशलेम लाया जाता था। यह सारा काम करने के लिए हज़ारों मज़दूर लगे होंगे। (1रा 5:6-18; 2इत 2:3-10)
इंसाइट-2 पेज 1077 पै 1
मंदिर
सुलैमान ने पूरे इसराएल से 30,000 आदमियों को काम पर लगाया। वह उनमें से दस-दस हज़ार को हर महीने बारी-बारी से लबानोन भेजता था। वे एक महीने काम करते थे और दो महीने अपने घर पर रहते थे। (1रा 5:13, 14) सुलैमान ने देश के परदेसियों में से 70,000 आदमियों को आम मज़दूरी के लिए और 80,000 आदमियों को पत्थर काटने के लिए लगाया। (1रा 5:15; 9:20, 21; 2इत 2:2) इसके अलावा, उसने काम की निगरानी करने के लिए 550 आदमियों को ठहराया और शायद उनकी मदद करने के लिए 3,300 आदमियों को रखा। (1रा 5:16; 9:22, 23) ऐसा मालूम पड़ता है कि निगरानी करनेवालों और उनकी मदद करनेवालों में से 250 आदमी इसराएली थे और 3,600 परदेसी थे।—2इत 2:17, 18.
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सज 5/12 पेज 17, बक्स, अँग्रेज़ी
बाइबल—भविष्यवाणियों की एक किताब, भाग 1
बाइबल में ठीक-ठीक बताया गया है कि कुछ घटनाएँ कब घटीं। यह जानकारी कितने काम की है, इसका एक उदाहरण 1 राजा 6:1 में मिलता है। उसमें बताया गया है कि राजा सुलैमान ने यरूशलेम का मंदिर बनाना कब शुरू किया। उस आयत में लिखा है, “सुलैमान ने इसराएल का राजा बनने के चौथे साल के जिव महीने में (यानी दूसरे महीने में) यहोवा के लिए भवन बनाने का काम शुरू किया। यह इसराएलियों के मिस्र से निकलने का 480वाँ साल था।” यानी इसराएल को मिस्र छोड़े पूरे 479 साल हो चुके थे।
बाइबल के मुताबिक, सुलैमान के राज का चौथा साल ईसा पूर्व 1034 था। अगर इस साल से हम 479 साल पीछे गिने तो हम ईसा पूर्व 1513 पर आते हैं। यह वही साल है जब इसराएलियों ने मिस्र छोड़ा था।
22-28 अगस्त
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 राजा 7
“दो खंभों के नाम का गहरा मतलब”
प्र13 12/1 पेज 13 पै 3, अँग्रेज़ी
“पहाड़ों से तुम ताँबा खोद निकालोगे”
राजा सुलैमान ने यरूशलेम का मंदिर बनाने में बहुत सारा ताँबा इस्तेमाल किया था। इसमें से ज़्यादातर ताँबा उसके पिता दाविद ने इकट्ठा किया था। जब दाविद ने सीरियाई लोगों को हराया था, तो वह उनके इलाके से यह सारा ताँबा लाया था। (1इत 18:6-8) इसी ताँबे से पानी का एक बड़ा हौद बनाया गया था, जिसे मंदिर के अंदर रखा गया था। इस हौद को “सागर” कहा जाता था। यह हौद करीब 30 टन का था और इसमें 66,000 लीटर पानी भरा जा सकता था। इस हौद के पानी से याजक हाथ-पैर धोते थे। (1रा 7:23-26, 44-46) इसी ताँबे से मंदिर के बरामदे के बाहर दो ऊँचे-ऊँचे खंभे भी बनाए गए। हर खंभे की ऊँचाई 26 फुट थी, उसका व्यास 5.6 फुट था, उसकी दीवार की मोटाई 3 इंच थी और यह अंदर से खोखला था। दोनों खंभों के ऊपर ताँबे का एक-एक कंगूरा लगा था, जिसकी ऊँचाई 7.3 फुट थी। (1रा 7:15, 16; 2इत 4:17) इन सारी चीज़ों को बनाने के लिए वाकई बहुत सारा ताँबा लगा होगा!
इंसाइट-1 पेज 348
बोअज़
2. ताँबे का ऊँचा खंभा जो उत्तर की तरफ था, उसका नाम बोअज़ था, जिसका शायद मतलब है “ताकत के साथ।” और जो खंभा दक्षिण की तरफ था, उसका नाम था याकीन, जिसका मतलब है “वह [यानी यहोवा] मज़बूती से कायम करे।“ इसलिए अगर एक व्यक्ति मंदिर के सामने खड़ा होता और दोनों खंभों के नाम दाएँ से बाएँ पढ़ता तो वह समझ जाता कि इनका मतलब है, ‘यहोवा मंदिर को मज़बूती से और ताकत के साथ कायम करे।’—1रा 7:15-21.
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इंसाइट-1 पेज 263
नहाना-धोना
यहोवा चाहता है कि उसके लोग साफ-सुथरे और शुद्ध रहें। मंदिर में साफ-सफाई के लिए जो इंतज़ाम किए गए थे और सेवा करनेवालों को जो हिदायतें दी गयी थीं, उनसे यह बात पता चलती है। मंदिर में ताँबे का एक बड़ा-सा हौद था जिसके पानी से याजकों को हाथ-पैर धोने होते थे। (2इत 4:2-6) महायाजक से कहा गया था कि वह प्रायश्चित के दिन दो बार नहाए। (लैव 16:4, 23, 24) जो याजक अजाजेल के लिए बकरे को छोड़कर आता था उसे छावनी में वापस आने से पहले नहाना था और अपने कपड़े धोने थे। यही हिदायत उन्हें भी माननी थी जो बलिदान किए हुए जानवर की खाल वगैरह और लाल रंग की गाय को छावनी के बाहर ले जाते थे।—लैव 16:26-28; गि 19:2-10.
29 अगस्त–4 सितंबर
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 राजा 8
“सुलैमान की प्रार्थना—दिल से और नम्रता से”
बाइबल के अध्ययन से अपनी प्रार्थनाएँ निखारिए
9 अगर हम चाहते हैं कि परमेश्वर हमारी प्रार्थनाओं का जवाब दे, तो हमें दिल से दुआ करनी होगी। यह बात हम सुलैमान से सीख सकते हैं। ईसा पूर्व 1026 में, जब यरूशलेम में यहोवा के मंदिर का उद्घाटन हुआ तब वहाँ जमी भीड़ के सामने सुलैमान ने दिल की गहराइयों से प्रार्थना की। यह प्रार्थना 1 राजा, अध्याय 8 में दर्ज़ है। जब वाचा का संदूक परम-पवित्र स्थान में रखा गया और मंदिर यहोवा के बादल से भर गया, तो सुलैमान ने यहोवा का गुणगान किया।
10 सुलैमान की प्रार्थना का अध्ययन कर गौर कीजिए कि उसमें मन या दिल के बारे में क्या बताया गया है। सुलैमान ने कबूल किया कि सिर्फ यहोवा ही इंसानों का दिल पढ़ सकता है। (1 राजा 8:38, 39) सुलैमान की प्रार्थना यह भी दिखाती है कि ऐसे पापियों के लिए भी आशा है, जो ‘सम्पूर्ण मन से परमेश्वर की ओर फिरते हैं।’ अगर किसी दुश्मन ने यहोवा के लोगों को हिरासत में ले लिया है, तो यहोवा उनकी मदद की दुहाई ज़रूर सुनेगा, बशर्ते उनका दिल यहोवा की ओर पूरी तरह से लगा रहे। (1 राजा 8:48, 58, 61) इसलिए यह निहायत ज़रूरी है कि हम दिल से प्रार्थना करें।
वफादार हाथों को उठाकर प्रार्थना करें
7 चाहे हम सभा में प्रार्थना कर रहे हों या अकेले में, बाइबल के इस महत्त्वपूर्ण सिद्धांत को याद रखना अच्छा होगा कि हमें हमेशा दीन होकर प्रार्थना करनी चाहिए। (2 इतिहास 7:13, 14) यरूशलेम में यहोवा के मंदिर के समर्पण पर राजा सुलैमान ने भी सब के लिए प्रार्थना करते वक्त दीनता दिखायी। सुलैमान ने एक ऐसा आलीशान और शानदार भवन बनाया था जो शायद ही कभी इस दुनिया में बना हो। फिर भी, उसने दीन होकर प्रार्थना की: “क्या परमेश्वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा।”—1 राजा 8:27.
8 सभाओं में दूसरों की ओर से प्रार्थना करते वक्त हमें भी सुलैमान की तरह दीन होना चाहिए। हमें ढोंग भरी आवाज़ में प्रार्थना नहीं करनी चाहिए मगर हमारे बोलने के अंदाज़ से दीनता ज़रूर दिखाई देनी चाहिए। दीन प्रार्थनाएँ भारी-भरकम शब्दों से भरा एक तमाशा नहीं होतीं। नम्र प्रार्थनाओं से प्रार्थना करनेवाले व्यक्ति की तरफ नहीं बल्कि जिससे प्रार्थना की जा रही है उसकी तरफ ध्यान जाता है। (मत्ती 6:5) प्रार्थना में जो कहा जाता है उससे भी दीनता दिखाई देती है। अगर हम दीनता से प्रार्थना करते हैं तो हमारी प्रार्थना ऐसी नहीं होगी मानो हम परमेश्वर से कह रहे हों कि हम यह-यह चाहते हैं और ऐसा ही होना चाहिए। इसके बजाय, हम यहोवा से बिनती करेंगे कि वह वही करे जो उसकी पवित्र इच्छा के अनुसार हो। भजनहार ने ऐसा ही सही नज़रिया दिखाते हुए गिड़गिड़ाकर मिन्नत की: “हे यहोवा, हमारी बिनती सुन, बचा ले! हे यहोवा, हमारी बिनती सुन, सुख-समृद्धि दे!”—भजन 118:25, NHT; लूका 18:9-14.
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इंसाइट-1 पेज 1060 पै 4
आकाश, स्वर्ग
सुलैमान के कहने का यह मतलब नहीं था कि परमेश्वर सर्वव्यापी है, यानी वह हर जगह है और कण-कण में बसता है। उसके कहने का यह मतलब भी नहीं था कि परमेश्वर का कोई निवास-स्थान नहीं है। सुलैमान ने आगे जो कहा उससे यह बात पता चलती है। उसने प्रार्थना में यहोवा से कहा, ‘तू अपने निवास-स्थान स्वर्ग से सुनना।‘ इससे पता चलता है कि आसमान या आकाश से भी और ऊँचा स्वर्ग है, जहाँ यहोवा और स्वर्गदूत रहते हैं।—1रा 8:30, 39.