उनके विश्वास की मिसाल पर चलिए
वह सच्ची उपासना के पक्ष में खड़ा हुआ
यहोवा का भविष्यवक्ता, एलिय्याह टकटकी लगाए उस भीड़ को देख रहा था, जिसमें लोग पैर घसीटते हुए कर्मेल पर्वत पर चढ़ रहे थे। सुबह-सुबह की धुँधली रोशनी में भी लोगों के हुलिए से साफ नज़र आ रहा था कि गरीबी और भुखमरी से उनका हाल बेहाल है। यह सब साढ़े तीन साल से पड़े सूखे का नतीजा था।
इस भीड़ में बाल देवता की उपासना करनेवाले 450 नबियाँ भी थे। वे घमंड से चूर थे और उनके मन में एलिय्याह के लिए कूट-कूटकर नफरत भरी थी। रानी ईज़बेल ने यहोवा के बहुत-से सेवकों को मरवा डाला था। इसके बावजूद एलिय्याह डरा नहीं, बल्कि पूरी हिम्मत के साथ बाल की उपासना के खिलाफ आवाज़ उठाता रहा। मगर कब तक? बाल की उपासना करनेवाले याजकों ने शायद एलिय्याह के बारे में यह सोचा होगा कि एक अकेला इंसान भला उनका क्या बिगाड़ सकता है। (1 राजा 18:3, 19, 20) कर्मेल पर्वत पर राजा अहाब भी अपने शाही रथ पर सवार होकर आया। उसे भी एलिय्याह एक आँख नहीं सुहाता था।
फिर भी, यह दिन उस अकेले भविष्यवक्ता एलिय्याह के लिए एक यादगार दिन बननेवाला था। वह अच्छाई और बुराई के बीच का अब तक का सबसे बेहतरीन मुकाबला देखनेवाला था। जैसे-जैसे दिन निकल रहा था, एलिय्याह के दिल में क्या बीत रही थी? ऐसा नहीं था कि उसे ज़रा भी डर नहीं लगा, आखिर वह “हमारे समान दुख-सुख भोगी मनुष्य” जो ठहरा। (याकूब 5:17) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि एलिय्याह ने ज़रूर अविश्वासी लोगों, उनके धर्मत्यागी राजा और खून के प्यासे याजकों के बीच खुद को बड़ा अकेला महसूस किया होगा।—1 राजा 18:22.
लेकिन आप शायद सोच रहे होंगे कि इस्राएलियों पर यह नौबत आयी कैसे? इस कहानी का आपसे क्या लेना-देना? बाइबल हमें बढ़ावा देती है कि हम परमेश्वर के सेवकों की ज़िंदगी को करीबी से जाँचें और ‘उनके विश्वास की मिसाल पर चलें।’ (इब्रानियों 13:7, NW) तो फिर, आइए हम एलिय्याह की मिसाल की जाँच करें।
बरसों से चले आ रहे संघर्ष का अंत
एलिय्याह के वतन और उसके लोगों की सबसे बड़ी खासियत थी, यहोवा की उपासना। मगर दुःख की बात है कि एलिय्याह ने अपनी ज़िंदगी के ज़्यादातर सालों में यही देखा कि कैसे यहोवा की उपासना को दरकिनार किया गया और पैरों तले रौंदा गया। ऐसे में वह चाहकर भी कुछ न कर सका। क्यों? क्योंकि इस्राएल बरसों से एक संघर्ष में शामिल था। वह संघर्ष, सच्ची और झूठी उपासना के बीच था। दूसरे शब्दों में कहें तो, यह यहोवा परमेश्वर की उपासना और आस-पास की जातियों के धर्म के बीच की लड़ाई थी, जिसमें मूर्तियों को पूजा जाता था। और खासकर एलिय्याह के दिनों में, यह संघर्ष और भी कड़ा हो गया था। क्यों?
राजा अहाब ने सीदोन के राजा की बेटी, ईज़बेल से शादी कर ली थी। ईज़बेल, बाल देवता की उपासक थी। उसने ठान लिया था कि वह इस्राएल देश से यहोवा की उपासना का नामो-निशान मिटा देगी और उसकी जगह बाल की उपासना कायम करेगी। देखते-ही-देखते उसका पति अहाब उसके इशारों पर नाचने लगा। उसने बाल देवता के लिए एक मंदिर और वेदी बनायी। यहाँ तक कि इस देवता के आगे सबसे पहले उसी ने सिजदा किया। इस तरह, उसने यहोवा को बहुत नाराज़ किया।—1 राजा 16:30-33.a
लेकिन बाल की उपासना करने में क्या खराबी थी? इस उपासना के बहकावे में आकर बहुत-से इस्राएलियों ने सच्चे परमेश्वर से अपना मुँह फेर लिया था। यही नहीं, यह धर्म अपने आप में बहुत ही घिनौना था और इसमें क्रूरता-भरे रीति-रिवाज़ माने जाते थे। जैसे, बाल के मंदिर में न सिर्फ स्त्रियाँ बल्कि पुरुष भी वेश्यावृत्ति करते थे। बाल के उपासक बढ़-चढ़कर नीच लैंगिक काम करते थे। यहाँ तक कि वे बाल देवता के आगे अपने ही बच्चों की बलि चढ़ाते थे। इसलिए यहोवा ने एलिय्याह को अहाब के पास यह ऐलान करने के लिए भेजा कि देश में सूखा पड़ेगा और यह तब खत्म होगा, जब परमेश्वर का भविष्यवक्ता इसके अंत होने का ऐलान करेगा। (1 राजा 17:1) इसके सालों बाद, एलिय्याह एक बार फिर राजा अहाब के सामने हाज़िर हुआ। उसने राजा से कहा कि वह सभी लोगों और बाल के नबियों को कर्मेल पर्वत पर इकट्ठा करे।
मगर यह संघर्ष आज हमारे लिए क्या मायने रखता है? कुछ लोग शायद यह नतीजा निकालें कि यह संघर्ष हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता, क्योंकि आज, दुनिया में न तो बाल देवता का मंदिर है और ना ही उसकी वेदी। लेकिन यह सिर्फ एक बीता इतिहास नहीं है। (रोमियों 15:4) शब्द “बाल” का मतलब है, “मालिक” या “स्वामी।” यहोवा ने अपने लोगों को साफ-साफ जता दिया था कि उन्हें सिर्फ उसे अपना पति और स्वामी मानना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें केवल यहोवा को अपना “बाल” चुनना था। (यशायाह 54:5) क्या आप इस बात से सहमत नहीं कि आज भी लोग, परमप्रधान परमेश्वर को छोड़ तरह-तरह के मालिकों की सेवा कर रहे हैं? सचमुच, लगभग सभी लोगों के लिए रुपया-पैसा, करियर, मनोरंजन, बदचलनी की ज़िंदगी और अनगिनत दूसरे देवी-देवता उनके मालिक बन गए हैं। (मत्ती 6:24; रोमियों 6:16) तो फिर, हम देख सकते हैं कि बाल की उपासना में जो खास बातें थीं, वे आज भी मौजूद हैं। इसलिए एलिय्याह ने यह दिखाने के लिए कि यहोवा सच्चा परमेश्वर है या बाल, जिस परीक्षा की पेशकश रखी, उससे हम काफी कुछ सीख सकते हैं। यह कहानी हमें आज बुद्धिमानी से चुनाव करने में मदद दे सकती है कि हम किसकी सेवा करेंगे।
‘दो विचारों में लटकना’—कैसे?
कर्मेल पर्वत से, जहाँ तेज़ हवाएँ चलती थीं, इस्राएल का पूरा इलाका साफ नज़र आता था। यानी पर्वत के नीचे, कीशोन नदी की घाटी से लेकर उस इलाके तक, जो दूर उत्तर दिशा में महासागर (भूमध्य सागर) और लबानोन की पर्वतमाला के बीच पड़ता है।b लेकिन उस खास दिन पर, जब धीरे-धीरे सूरज ऊपर आया, तो इस्राएल के पूरे देश का नज़ारा बहुत ही बुरा दिखायी दे रहा था। यहोवा ने इब्राहीम की संतानों को जो उपजाऊ ज़मीन दी थी, वह एकदम बंजर हो चुकी थी। कड़कती धूप में ज़मीन मानो तपकर पत्थर बन चुकी थी और उसमें बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गयी थीं। और यह सब परमेश्वर के लोगों की बेवकूफी की वजह से हुई थी! जब लोग जमा हो गए, तब एलिय्याह ने उनके पास आकर कहा: ‘तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे? यदि यहोवा सच्चा परमेश्वर है, तो उसके पीछे हो लो; और यदि बाल है, तो उसके पीछे हो लो।’—1 राजा 18:21.
एलिय्याह के कहने का क्या मतलब था कि लोग ‘दो विचारों में लटक रहे हैं’? बात यह थी कि उन लोगों को एहसास नहीं था कि उन्हें एक चुनाव करने की ज़रूरत है। वह है कि वे यहोवा की उपासना करेंगे या बाल की। उन्हें लगा कि वे दोनों कर सकते हैं। यानी, वे एक तरफ घिनौने रीति-रिवाज़ मानकर बाल को खुश कर सकते हैं और दूसरी तरफ, यहोवा परमेश्वर की मंज़ूरी पाने की गुज़ारिश भी कर सकते हैं। उन्होंने शायद मन-ही-मन सोचा होगा कि बाल देवता उनकी फसल और मवेशियों को आशीष देगा, जबकि ‘सेनाओं का यहोवा’ युद्ध में उनकी हिफाज़त करेगा। (1 शमूएल 17:45) मगर वे एक बुनियादी सच्चाई भूल गए थे, एक ऐसी सच्चाई जिससे आज भी बहुत-से लोग बेखबर हैं। वह यह कि यहोवा को यह कतई मंज़ूर नहीं कि लोग उसकी उपासना करने के साथ-साथ दूसरे देवी-देवताओं की भी उपासना करें। इसके बजाय, वह चाहता है कि इंसान सिर्फ उसी की और उसे छोड़ किसी और की उपासना न करे। और यह सही भी है क्योंकि केवल वही हमारी उपासना पाने का हकदार है। इसलिए अगर कोई यहोवा के साथ-साथ दूसरे देवी-देवताओं की उपासना करते हैं, तो यहोवा न सिर्फ उसे ठुकरा देता है बल्कि उसे इस बात से घृणा भी आती है!—निर्गमन 20:5.
इस्राएलियों का दो विचारों में लटकना, दो नावों पर पैर रखने के बराबर था। आज भी बहुत-से लोग यह भूल करते हैं। वे धीरे-धीरे “बाल” देवताओं के पीछे जाने लगते हैं और सच्चे परमेश्वर की उपासना को ताक पर रख देते हैं। एलिय्याह ने जिन साफ और ज़ोरदार शब्दों में अपील की थी कि दो विचारों में लटकना छोड़ दो, उससे हमें खुद की जाँच करने में मदद मिलती है कि हम अपनी ज़िंदगी में किसकी उपासना को और किन बातों को पहली जगह देते हैं।
एक आखिरी परीक्षा
इसके बाद, एलिय्याह ने उनके आगे एक आसान-सी परीक्षा रखी। उसने बाल की पूजा करनेवाले याजकों से कहा कि वे एक वेदी तैयार करें, उस पर बलि का जानवर रखें और फिर, बाल से प्रार्थना करें कि वह आग भेजकर उनकी बलि को स्वीकार करे। उनके बाद, एलिय्याह को एक वेदी बनाना था और अपने परमेश्वर से बलिदान को स्वीकार करने की प्रार्थना करना था। एलिय्याह ने कहा: “जो आग गिराकर उत्तर दे वही [सच्चा] परमेश्वर ठहरे।” दरअसल, एलिय्याह को अच्छी तरह मालूम था कि सच्चा परमेश्वर कौन है। उसका विश्वास इतना मज़बूत था कि उसने बेझिझक, बाल के नबियों को पहले बलि चढ़ाने को कहा। उसने अपने दुश्मनों को अपनी बात साबित करने का पूरा-पूरा मौका दिया। उसने उन्हें बलि चढ़ाने के लिए बछड़ा चुनने और बाल को सबसे पहले प्रार्थना करने की इज़ाजत दी।c—1 राजा 18:24, 25.
हालाँकि आज हमारे ज़माने में चमत्कार नहीं होते, मगर यहोवा बदला नहीं है। हम भी एलिय्याह की तरह यहोवा पर पूरा भरोसा रख सकते हैं। मिसाल के लिए, जब कोई बाइबल की शिक्षाओं को नहीं मानते, तो हमें उनकी बात को बीच में नहीं काटना चाहिए बल्कि उसे अपनी बात कहने का मौका देना चाहिए। एलिय्याह की तरह, हमें भी शायद सच्चे परमेश्वर पर भरोसा रखने की ज़रूरत पड़े कि वह मामले को सुलझाएगा। हम अपना यह भरोसा कैसे दिखा सकते हैं? खुद पर निर्भर होने के बजाय परमेश्वर के प्रेरित वचन, बाइबल पर भरोसा रखकर। क्योंकि यह मामलों को “सुधारने” के लिए तैयार की गयी है।—2 तीमुथियुस 3:16.
एलिय्याह के कहे मुताबिक बाल के नबियों ने एक वेदी बनायी, उस पर बलि का जानवर रखा और फिर वे अपने देवता को पुकारने लगे। उन्होंने बार-बार चिल्लाया: “हे बाल हमारी सुन, हे बाल हमारी सुन!” इस तरह कई मिनट और फिर कई घंटे बीत गए। “परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देनेवाला हुआ।” जब दोपहर हो गयी, तब एलिय्याह उनका ठट्ठा करने लगा। वह उन्हें ताना कसते हुए कहने लगा कि बाल ज़रूर कुछ काम में उलझा होगा, इसलिए शायद वह तुम लोगों को जवाब नहीं दे रहा है; या वह गहरी नींद में हो और अब किसी को उसे जगाने की ज़रूरत है। एलिय्याह ने उन ढोंगियों से कहा: “ऊंचे शब्द से पुकारो।” एलिय्याह साफ देख सकता था कि बाल की उपासना करना कितनी बड़ी मूर्खता और खुद को धोखा देना है। और वह चाहता था कि परमेश्वर के लोग भी यह सच्चाई जान लें।—1 राजा 18:26, 27.
एलिय्याह की बात सुनते ही बाल के उपासकों पर मानो पागलपन का दौरा पड़ गया। उन्होंने और भी “बड़े शब्द से पुकार पुकार के अपनी रीति के अनुसार छुरियों और बर्छियों से अपने अपने को यहां तक घायल किया कि लोहू लुहान हो गए।” मगर इन सबका कोई फायदा नहीं हुआ! “कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया।” (1 राजा 18:28, 29) इससे साफ ज़ाहिर था कि बाल देवता नाम का कोई भगवान् था ही नहीं। वह तो शैतान की उपज थी, ताकि वह यहोवा के लोगों को बहकाकर उससे दूर ले जा सकें। उस ज़माने की तरह, आज भी यहोवा को छोड़ किसी और को अपना मालिक मानने से न सिर्फ निराशा हाथ लगती है, बल्कि शर्मिंदा भी होना पड़ता है।—भजन 25:3; 115:4-8.
परीक्षा का नतीजा
दोपहर में जब काफी वक्त बीत गया, तब एलिय्याह की बारी आयी। उसने यहोवा की उस वेदी को दोबारा खड़ा किया, जिसे बेशक दुश्मनों ने ढा दिया था। उसने वेदी बनाने के लिए 12 पत्थरों का इस्तेमाल किया। क्यों? हो सकता है, वह 10 गोत्रों के इस्राएलियों को याद दिलाना चाहता था कि पूरे 12 गोत्रों को जो कानून-व्यवस्था दी गयी थी, वह अब भी उन पर लागू होती है। इसके बाद, उसने वेदी पर बलि का जानवर रखा और उन दोनों को पानी से पूरी तरह भिगो दिया। उसने यह पानी ज़रूर पास के भूमध्य सागर से लाया होगा। उसने वेदी के चारों तरफ भी खाई बनायी और उसे पानी से भर दिया। जैसे उसने बाल के उपासकों को अपना दावा साबित करने का पूरा मौका दिया, वैसे ही उसने यहोवा के सामने सारी मुश्किलें रखकर उसे यह साबित करने का पूरा-पूरा मौका दिया कि वही सच्चा परमेश्वर है। देखा आपने, यहोवा परमेश्वर पर एलिय्याह का विश्वास कितना मज़बूत था।—1 राजा 18:30-35.
जब सबकुछ तैयार हो गया, तब एलिय्याह ने प्रार्थना की। उसकी प्रार्थना बहुत ही सरल मगर ज़बरदस्त थी। यही नहीं, उसकी प्रार्थना से साफ ज़ाहिर था कि क्या बातें उसके लिए ज़्यादा अहमियत रखती हैं। सबसे पहली और ज़रूरी बात थी कि वह जग-ज़ाहिर करना चाहता था कि ‘इस्राएल का परमेश्वर,’ बाल नहीं बल्कि यहोवा है। दूसरी, वह यह दिखाना चाहता था कि वह यहोवा का बस एक सेवक है और कुछ नहीं, इसलिए सारी महिमा और श्रेय यहोवा को मिलना चाहिए। आखिरी बात, उसने साबित किया कि उसे अब भी अपने लोगों की चिंता थी, क्योंकि वह यह देखने के लिए तरस रहा था कि यहोवा “उनका मन लौटा” दे। (1 राजा 18:36, 37) विश्वासघाती होकर इस्राएलियों ने अपने ऊपर मुसीबतें लायी थीं, फिर भी एलिय्याह उनसे प्यार करता था। उसी तरह, जब हम प्रार्थना करते हैं, तो क्या हम भी परमेश्वर के नाम के लिए चिंता ज़ाहिर कर सकते हैं, नम्रता दिखा सकते हैं और ज़रूरतमंदों के लिए करुणा दिखा सकते हैं?
एलिय्याह के प्रार्थना करने से पहले, लोगों ने सोचा होगा कि क्या यहोवा भी बाल के जैसा झूठा साबित होगा? मगर एलिय्याह की प्रार्थना के फौरन बाद उन्हें अपने सवाल का जवाब मिल गया। बाइबल कहती है: “तब यहोवा की आग आकाश से प्रगट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्थरों और धूलि समेत भस्म कर दिया, और गड़हे में का जल भी सुखा दिया।” (1 राजा 18:38) यह क्या ही हैरतअँगेज़ जवाब था! यह देखकर लोगों ने क्या किया?
सब-के-सब ऊँची आवाज़ में बोल उठे: “यहोवा ही [सच्चा] परमेश्वर है, यहोवा ही [सच्चा] परमेश्वर है।” (1 राजा 18:39) आखिरकार, उनकी आँखें खुल गयीं। मगर फिर भी इसका यह मतलब नहीं कि उन्होंने सच्चा विश्वास दिखाया। सच पूछिए तो आकाश से आग आते देख उनका यह कबूल करना कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है, विश्वास दिखाने का कोई बड़ा सबूत नहीं है। तभी एलिय्याह ने उन्हें एक और तरीके से विश्वास ज़ाहिर करने के लिए कहा। उसने उन्हें यहोवा की कानून-व्यवस्था का पालन करने को कहा, जो उन्हें बरसों पहले से करते आना चाहिए था। और परमेश्वर की कानून-व्यवस्था में यह लिखा था कि झूठे भविष्यवक्ताओं और मूर्तिपूजकों को मौत के घात उतार देना चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 13:5-9) बाल की उपासना करनेवाले याजक, यहोवा परमेश्वर के कट्टर दुश्मन थे और उन्होंने जानबूझकर उसके मकसद के खिलाफ काम किया था। क्या वे दया के लायक थे? ज़रा सोचिए, जब इन याजकों ने मासूम बच्चों पर कोई दया नहीं दिखायी और उन्हें बाल देवता को बलि चढ़ा दी, तो क्या उन्हें दया दिखायी जानी चाहिए? (नीतिवचन 21:13; यिर्मयाह 19:5) हरगिज़ नहीं। वे दया के बिलकुल भी लायक नहीं थे। इसलिए एलिय्याह ने उन्हें मौत के घात उतारने का हुक्म दिया और ऐसा ही हुआ।—1 राजा 18:40.
आज के कुछ आलोचक, कर्मेल पर्वत पर हुई इस परीक्षा में नुक्स निकालते हैं। कुछ के मन में शायद यह डर हो कि धर्म के कट्टरपंथी लोग इस कहानी की मिसाल देकर दूसरे धर्मों के लोगों के खिलाफ हिंसा करने की बात को सही करार देने की कोशिश कर सकते हैं। और अफसोस की बात है कि आज ऐसे बहुत-से कट्टरपंथी लोग हैं, जो धर्म के नाम पर खून-खराबा करते हैं। लेकिन एलिय्याह कोई हठधर्मी नहीं था। इसके बजाय, बाल की उपासना करनेवालों को मौत के घात उतारकर उसने यहोवा की तरफ से न्याय किया था। इसके अलावा, सच्चे मसीही जानते हैं कि वे एलिय्याह की तरह नहीं बन सकते और दुष्टों को नहीं मार सकते। क्योंकि मसीहा के आने के बाद, यीशु के सभी चेलों के लिए स्तर बदल गए। यह हम मसीह के शब्दों से देख सकते हैं, जो उसने पतरस से कहे थे: “अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।” (मत्ती 26:52) भविष्य में यहोवा अपने बेटे के ज़रिए सारे दुष्टों के खिलाफ अपना न्याय चुकाएगा।
एक सच्चे मसीही की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपने विश्वास के मुताबिक ज़िंदगी बसर करे। (यूहन्ना 3:16) इसका एक तरीका है, एलिय्याह जैसे वफादार लोगों की मिसाल पर चलकर। उसने सिर्फ यहोवा की उपासना की और दूसरों को भी ऐसा करने का बढ़ावा दिया। उसने बड़ी हिम्मत के साथ उस झूठे धर्म का पर्दाफाश किया, जिसकी शुरूआत शैतान ने लोगों को यहोवा से दूर ले जाने के लिए की थी। इसके अलावा, एलिय्याह ने अपनी काबिलीयतों और इच्छा पर भरोसा रखने के बजाय, यहोवा पर भरोसा रखा कि वह मामले को सुलझाएगा। वाकई, एलिय्याह सच्ची उपासना के पक्ष में खड़ा हुआ था। तो फिर, आइए हम भी उसके विश्वास की मिसाल पर चलें! (w 08 1/1)
[फुटनोट]
a इससे पहले की जिन घटनाओं में एलिय्याह और अहाब का आमना-सामना हुआ था, उनके बारे में जानने के लिए 1 अप्रैल, 1992 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में दिया लेख, “क्या आपमें एलिय्याह जैसा विश्वास है?” देखिए।
b कर्मेल पर्वत आम तौर हरा-भरा होता था, क्योंकि भूमध्य सागर से नम हवा पर्वत की ढलान पर बहती थी। इस वजह से पर्वत पर काफी ओस पड़ती थी और अकसर बारिश भी होती थी। बाल देवता को बारिश का श्रेय दिया जाता था, इसलिए ज़ाहिर है कि यह पर्वत बाल की उपासना की बहुत ही खास जगह रही होगी। मगर सूखे की वजह से यह पर्वत बंजर हो चुका था। इसलिए इस बात का परदाफाश करने के लिए कि बाल की उपासना एक ढकोसला है, यह पर्वत बहुत ही बढ़िया जगह थी।
c गौर कीजिए कि एलिय्याह ने उनसे कहा: तुम बलि को “आग न लगाना।” कुछ विद्वानों का कहना है कि इस तरह के मूर्तिपूजक कभी-कभी ऐसी वेदी तैयार करते थे, जिसके नीचे एक नली छिपी होती थी। इसी नली के ज़रिए वे आग भेजते थे, ताकि देखनेवालों को यह लगे कि बलि को चमत्कारिक तरीके से आग लगायी गयी है।
[पेज 20 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
यहोवा को छोड़ किसी और को अपना मालिक मानने से सिर्फ निराशा हाथ लगती है
[पेज 21 पर तसवीर]
‘यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है!’