प्राचीन कैसे दूसरों को योग्य बनने के लिए तालीम देते हैं?
“जो बातें तू ने मुझसे सुनी हैं . . . वे बातें विश्वासयोग्य पुरुषों को सौंप दे।”—2 तीमु. 2:2.
1. (क) परमेश्वर के लोग हमेशा से तालीम पाने के बारे में क्या जानते हैं? (ख) यह बात आज हम पर कैसे लागू होती है? (ग) हम इस लेख में किस बारे में चर्चा करेंगे?
परमेश्वर के लोग हमेशा से जानते हैं कि तालीम पाने से कामयाबी मिलती है। उदाहरण के लिए, जब लोग लूत को बंदी बनाकर ले गए थे, तो अब्राहम अपने “निपुण” यानी तालीम पाए हुए दासों को लेकर उसे छुड़ाने गया और उसे छुड़ाने में कामयाब हुआ। (उत्प. 14:14-16) उसी तरह, राजा दाविद के दिनों में यहोवा की महिमा में गीत गाने के लिए “निपुण” या तालीम पाए हुए गायक थे। (1 इति. 25:7) बीते ज़माने के परमेश्वर के सेवकों की तरह आज अगर हम कामयाब होना चाहते हैं, तो हमारे लिए बहुत ज़रूरी है कि हम तालीम लें। वह इसलिए कि आज हमें शैतान और उसकी दुनिया से लड़ना पड़ता है। (इफि. 6:11-13) साथ ही, हम यहोवा के नाम का सरेआम ऐलान करके, उसकी महिमा करने की जी तोड़ कोशिश करते हैं। (इब्रा. 13:15, 16) यहोवा ने मंडली में प्राचीनों को ज़िम्मेदारी सौंपी है कि वे दूसरों को तालीम दें। (2 तीमु. 2:2) कुछ प्राचीनों ने कौन-से तरीके अपनाकर दूसरे भाइयों को तालीम दी है, ताकि वे यहोवा के लोगों की देखभाल कर सकें?
विद्यार्थी के दिल में यहोवा के लिए प्यार बढ़ाइए
2. विद्यार्थी को कोई नया हुनर सिखाने से पहले एक प्राचीन शायद क्या करना चाहे और क्यों?
2 प्राचीनों की तुलना एक माली से की जा सकती है। बीज बोने से पहले, शायद माली को मिट्टी में खाद डालनी पड़े, जिससे पौधा अच्छी तरह उगे और बड़ा होकर मज़बूत हो। उसी तरह, एक प्राचीन विद्यार्थी को कोई नया हुनर सिखाने से पहले शायद उसके साथ कुछ बाइबल सिद्धांतों पर चर्चा करे। इससे विद्यार्थी को सीखी हुई बातें लागू करने के लिए अपना दिल तैयार करने में मदद मिलेगी।—1 तीमु. 4:6.
3. (क) मरकुस 12:29, 30 में दिए यीशु के शब्द किस तरह विद्यार्थी के साथ बातचीत शुरू करने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं? (ख) एक प्राचीन की प्रार्थना विद्यार्थी पर किस तरह असर कर सकती है?
3 शिक्षक के लिए यह समझना ज़रूरी है कि सच्चाई ने किस तरह विद्यार्थी के विचारों और भावनाओं पर असर किया है। ऐसा करने के लिए आप उससे पूछ सकते हैं, ‘आपने यहोवा को जो समर्पण किया, उसका आपकी ज़िंदगी के फैसलों पर कैसे असर हुआ है?’ इस सवाल से अच्छी बातचीत शुरू हो सकती है कि हम कैसे यहोवा की सेवा पूरे दिल से कर सकते हैं। (मरकुस 12:29, 30 पढ़िए।) आप चाहें तो उस भाई के साथ प्रार्थना भी कर सकते हैं और यहोवा से उसके लिए पवित्र शक्ति माँग सकते हैं, जो तालीम लेने के लिए ज़रूरी है। जब वह भाई आपको उसके लिए प्रार्थना करते सुनेगा, तो मुमकिन है उसे और भी ज़्यादा सेवा करने का बढ़ावा मिलेगा।
4. (क) बाइबल के कुछ ब्यौरों का उदाहरण दीजिए जो विद्यार्थी को तरक्की करने में मदद दे सकते हैं? (ख) दूसरों को सिखाते वक्त प्राचीनों का क्या मकसद होना चाहिए?
4 जब आप तालीम देना शुरू करते हैं, तो अच्छा होगा अगर आप बाइबल के कुछ ब्यौरों पर चर्चा करें। इनसे विद्यार्थी देख पाएगा कि दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना, भरोसेमंद और नम्र होना कितना अहमियत रखता है। (1 राजा 19:19-21; नहे. 7:2; 13:13; प्रेषि. 18:24-26) ये गुण विद्यार्थी के लिए उतने ही ज़रूरी हैं जितना मिट्टी के लिए खाद। ये गुण विद्यार्थी को बढ़ने में मदद देते हैं, यानी वह तेज़ी से तरक्की कर पाता है। फ्राँस का एक प्राचीन, ज़ॉन-क्लोड बताता है कि तालीम देते वक्त उसका मकसद होता है, विद्यार्थी को बाइबल सिद्धांतों पर आधारित फैसले लेने में मदद देना। वह आगे कहता है, “मैं ऐसे मौकों की तलाश में रहता हूँ जब मैं विद्यार्थी के साथ कोई खास आयत पढ़ सकूँ जिससे उसकी ‘आँखें खुल’ सकें और वह परमेश्वर के वचन की ‘अद्भुत बातें’ देख सके।” (भज. 119:18) विद्यार्थी को आध्यात्मिक तौर पर मज़बूत करने के कुछ और तरीके क्या हैं?
लक्ष्य रखने का सुझाव दीजिए और उसकी वजह बताइए
5. (क) विद्यार्थी से यह पूछना कितना ज़रूरी है कि उसने यहोवा की सेवा में क्या लक्ष्य रखे हैं? (ख) यह क्यों ज़रूरी है कि प्राचीन, भाइयों को उनकी नौजवानी से ही तालीम दें? (फुटनोट देखिए।)
5 विद्यार्थी से पूछिए कि यहोवा की सेवा में उसके लक्ष्य क्या हैं। अगर उसने कोई लक्ष्य नहीं रखा है तो उसे एक ऐसा लक्ष्य रखने में मदद दीजिए, जिसे वह हासिल कर सके। जोश के साथ उसे अपने लक्ष्य के बारे में बताइए और यह भी बताइए कि वह लक्ष्य हासिल करने पर आपको कितनी खुशी हुई थी। यह तरीका आसान ही नहीं बल्कि असरदार भी है। अफ्रीका में रहनेवाला विक्टर नाम का एक प्राचीन, जो पायनियर भी है, कहता है: “जब मैं जवान था तब एक प्राचीन ने मुझसे मेरे लक्ष्यों के बारे में सवाल पूछे। उन सवालों ने मुझे अपनी सेवा के बारे में गहराई से सोचने में मदद दी।” अनुभवी प्राचीनों का कहना है कि भाइयों को तभी से तालीम देना शुरू करना चाहिए, जब वे नौजवान होते हैं, हो सके तो किशोर अवस्था के शुरूआती सालों से ही। आप उनकी उम्र के हिसाब से उन्हें मंडली में ज़िम्मेदारी सौंप सकते हैं। अगर भाई अपनी नौजवानी में ही तालीम पाएँ, तो वे बड़े होने पर भी अपने लक्ष्यों पर ध्यान लगाए रख पाएँगे, यहाँ तक कि उस वक्त भी जब उनके सामने बहुत-सी रुकावटें आएँगीं।—भजन 71:5, 17 पढ़िए।a
6. यीशु ने दूसरों को सिखाने का कौन-सा ज़रूरी तरीका अपनाया?
6 विद्यार्थी में सेवा करने का जोश भरने के लिए, सिर्फ इतना बताना काफी नहीं कि उसे क्या करना है। आपको उसे यह भी समझाना होगा कि ऐसा करना क्यों ज़रूरी है। महान शिक्षक, यीशु ने अपने प्रेषितों से प्रचार करने के लिए कहा था। लेकिन उससे पहले उसने उन्हें यह भी बताया कि उन्हें यह आज्ञा क्यों माननी है। उसने कहा: “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार मुझे दिया गया है। इसलिए जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” (मत्ती 28:18, 19) यीशु के सिखाने का तरीका आप कैसे अपना सकते हैं?
7, 8. (क) प्राचीन कैसे यीशु के सिखाने का तरीका अपना सकते हैं? (ख) विद्यार्थी की तारीफ करना कितना ज़रूरी है? (ग) दूसरों को तालीम देने में कौन-से सुझाव प्राचीनों की मदद कर सकते हैं? (“दूसरों को तालीम कैसे दें” बक्स देखिए।)
7 जब आप किसी भाई को कोई काम सौंपते हैं, तो उसे बाइबल से समझाइए कि वह काम क्यों ज़रूरी है। ऐसा करके आप उन्हें यह सिखा रहे होंगे कि हम कोई काम बाइबल सिद्धांतों पर चलने की वजह से करते हैं, न कि नियम-कानून मानने की वजह से। उदाहरण के लिए, अगर आप एक भाई से कहते हैं कि वह राज-घर के दरवाज़े के आस-पास की जगह साफ-सुथरी रखे, जिससे वहाँ चलने-फिरने में कोई परेशानी न हो तो आप उसे तीतुस 2:10 दिखा सकते हैं। उसे समझाइए कि उसके इस काम की वजह से कैसे राज के संदेश पर और भी ज़्यादा लोगों का ध्यान खिंचेगा। साथ ही, विद्यार्थी को मंडली के बुज़ुर्गों के बारे में सोचने का बढ़ावा दीजिए और यह भी कि कैसे उसका यह काम उनकी मदद करेगा। इस तरह की बातचीत से उसे ऐसी तालीम मिलेगी जिसकी मदद से वह नियमों के बजाय लोगों के बारे में सोच पाएगा। जब वह देखेगा कि किस तरह उसके काम से भाई-बहनों को फायदा हो रहा है तो उसे यह जानकर अच्छा महसूस होगा कि वह दूसरों की सेवा कर रहा है।
8 जब विद्यार्थी आपके सुझावों को लागू करता है, तो उसकी तारीफ करना कभी मत भूलिए। ऐसा करना कितना ज़रूरी है? यह उतना ही ज़रूरी है जितना पौधे के लिए पानी। जैसे पानी से पौधे को बढ़ने और मज़बूत बने रहने में मदद मिलती है, वैसे ही विद्यार्थी की तारीफ करने से उसे यहोवा की सेवा में तरक्की करने में मदद मिलती है।—मत्ती 3:17 से तुलना कीजिए।
एक और चुनौती
9. (क) कुछ अमीर देशों में प्राचीनों को दूसरों को तालीम देना शायद क्यों मुश्किल लगे? (ख) कुछ नौजवान भाई परमेश्वर की सेवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह क्यों नहीं देते?
9 अमीर देशों में प्राचीनों को करीब 25-35 साल के बपतिस्मा-शुदा भाइयों को मंडली में और ज़्यादा सेवा करने का बढ़ावा देना शायद मुश्किल लगे। करीब 20 देशों के तजुरबेकार प्राचीनों ने हमें बताया कि उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि कुछ नौजवान भाई मंडली में ज़्यादा सेवा नहीं करते। ज़्यादातर प्राचीनों ने बताया कि कुछ भाई जब नौजवान थे, तो उनके माता-पिता ने उन्हें यहोवा की सेवा में लक्ष्य रखने का बढ़ावा नहीं दिया। वहीं जब कुछ नौजवान भाई परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा करना चाहते थे तो उनके माता-पिता ने उन्हें ऊँची शिक्षा या दुनिया में करियर बनाने जैसे लक्ष्य रखने का बढ़ावा दिया! इसलिए उन्होंने परमेश्वर की सेवा को अपनी ज़िंदगी में कभी पहली जगह नहीं दी।—मत्ती 10:24.
10, 11. (क) एक प्राचीन कैसे धीरे-धीरे एक भाई को अपनी सोच सुधारने में मदद दे सकता है? (ख) प्राचीन एक भाई को बढ़ावा देने के लिए कौन-सी आयतें इस्तेमाल कर सकता है और क्यों? (फुटनोट देखिए।)
10 अगर ऐसा लगता है कि एक भाई को मंडली में ज़्यादा सेवा करने में दिलचस्पी नहीं है, तो उसकी सोच सुधारने में बहुत मेहनत करनी होगी और सब्र रखना होगा। लेकिन उसकी सोच सुधारी जा सकती है। एक माली पौधे को सहारा देकर धीरे-धीरे उसे सीधे बढ़ने में मदद दे सकता है। उसी तरह, आप धीरे-धीरे एक भाई को यह समझने में मदद दे सकते हैं कि उसे मंडली में ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ कबूल करने के लिए अपना रवैया बदलने की ज़रूरत है। लेकिन कैसे?
11 समय निकालकर उस भाई के दोस्त बनने की कोशिश कीजिए। उसे इस बात का एहसास दिलाइए कि मंडली में उसकी ज़रूरत है। फिर जैसे-जैसे समय बीतता है, उसके साथ बैठकर ऐसी आयतों पर तर्क कीजिए जिनकी मदद से वह यहोवा को किए अपने समर्पण के बारे में सोच सके। (सभो. 5:4; यशा. 6:8; मत्ती 6:24, 33; लूका 9:57-62; 1 कुरिं. 15:58; 2 कुरिं. 5:15; 13:5) कुछ इस तरह के सवाल पूछकर यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसके दिल में क्या है: ‘जब आपने अपनी ज़िंदगी यहोवा को समर्पित की थी, तब आपने उससे क्या वादा किया था? आपको क्या लगता है, जब आपने बपतिस्मा लिया तब यहोवा को कैसा महसूस हुआ होगा?’ (नीति. 27:11) ‘उस वक्त शैतान को कैसा महसूस हुआ होगा?’ (1 पत. 5:8) यहाँ जो आयतें दी हैं, ये और ऐसी ही दूसरी आयतें एक भाई के दिल पर ज़बरदस्त असर कर सकती हैं।—इब्रानियों 4:12 पढ़िए।b
विद्यार्थियो, वफादार रहिए
12, 13. (क) एलीशा ने एक विद्यार्थी के नाते कैसा रवैया दिखाया? (ख) यहोवा ने एलीशा को उसकी वफादारी का क्या इनाम दिया?
12 नौजवान भाइयो, मंडली को आपकी मदद की ज़रूरत है! किस तरह का रवैया यहोवा की सेवा में आपको कामयाब होने में मदद करेगा? जवाब जानने के लिए, आइए बीते ज़माने के एक विद्यार्थी की ज़िंदगी में हुई कुछ घटनाओं पर चर्चा करें। वह विद्यार्थी था, एलीशा।
13 आज से करीब 3,000 साल पहले भविष्यवक्ता एलिय्याह ने जवान एलीशा को अपना सेवक बनने का न्यौता दिया। एलीशा फौरन तैयार हो गया और वफादारी से भविष्यवक्ता के लिए मामूली काम करने लगा। (2 राजा 3:11) एलिय्याह ने एलीशा को करीब 6 साल तक तालीम दी। फिर जब इसराएल में एलिय्याह का काम बस खत्म होने ही वाला था, उसने अपने सेवक से कहा कि वह उसकी सेवा करना बंद कर सकता है। लेकिन एलीशा ने तीन बार उससे कहा, “मैं आपका साथ नहीं छोड़ूँगा!” (हिंदी ईज़ी-टू-रीड वर्शन) उसने ठान लिया था कि जब तक हो सकेगा, वह अपने शिक्षक के साथ ही रहेगा। उसकी इस वफादारी का यहोवा ने उसे इनाम दिया। उसने एलीशा को यह मौका दिया कि वह एलिय्याह को बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ते हुए देख सके।—2 राजा 2:1-12.
14. (क) आज विद्यार्थी एलीशा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? (ख) एक विद्यार्थी के लिए वफादार बने रहना क्यों ज़रूरी है?
14 एक विद्यार्थी के नाते, आप एलीशा की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? अगर कोई ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो उसे फौरन कबूल कीजिए, फिर चाहे वह कोई छोटा काम ही क्यों न हो। याद रखिए, आपका शिक्षक आपका दोस्त है। उसे बताइए कि वह आपके लिए जो कर रहा है, उसकी आप दिल से कदर करते हैं। यह भी ज़ाहिर कीजिए कि आप उससे सीखते रहना चाहते हैं। सबसे ज़रूरी है, वफादारी से अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी कीजिए। यह क्यों ज़रूरी है? जब आप दिखाएँगे कि आप वफादार और भरोसेमंद हैं तो प्राचीनों को इस बात का यकीन होगा कि यहोवा चाहता है कि आपको मंडली में और ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ दी जाएँ।—भज. 101:6; 2 तीमुथियुस 2:2 पढ़िए।
तजुरबेकार प्राचीनों का आदर कीजिए
15, 16. (क) एलीशा ने किन तरीकों से दिखाया कि वह अपने शिक्षक की इज़्ज़त करता है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।) (ख) दूसरे भविष्यवक्ता एलीशा पर भरोसा क्यों रख पाए?
15 एलीशा के ब्यौरे से यह भी पता चलता है कि आज भाइयों के लिए तजुरबेकार प्राचीनों का आदर करना कितना ज़रूरी है। एलिय्याह और एलीशा यरीहो में भविष्यवक्ताओं के एक समूह से मिलने के बाद, यरदन नदी पर गए। फिर “एलिय्याह ने अपनी चद्दर पकड़कर ऐंठ ली, और जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया।” उन दोनों ने सूखी ज़मीन पर चलकर यरदन नदी पार की और वे “चलते चलते बातें कर रहे थे।” एलीशा ने अपने शिक्षक की कही हर बात बड़े ध्यान-से सुनी और उससे सीखता रहा। एलीशा ने कभी ऐसा नहीं सोचा कि उसे सबकुछ पता है। फिर एलिय्याह एक बवंडर में स्वर्ग पर उठा लिया गया और एलीशा वापस यरदन नदी पर आ गया। वहाँ उसने एलिय्याह की चद्दर पानी पर मारी और कहा, “एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहाँ है?” नदी का पानी फिर से दो भागों में बँट गया।—2 राजा 2:8-14.
16 क्या आपने गौर किया, एलीशा का पहला चमत्कार ठीक वैसा ही था जैसा एलिय्याह का आखिरी चमत्कार? इससे हम क्या सीख सकते हैं? एलीशा ने ऐसा नहीं सोचा कि अब उसके पास अधिकार है इसलिए उसे हर काम उस तरह से करने की ज़रूरत नहीं जैसे एलिय्याह ने किया था। इसके बजाय, उसने एलिय्याह के तरीके अपनाकर दिखाया कि वह अपने शिक्षक की कितनी इज़्ज़त करता है। इस वजह से बाकी भविष्यवक्ता भी एलीशा पर भरोसा रख पाए। (2 राजा 2:15) एलीशा ने 60 सालों तक एक नबी के तौर पर सेवा की। और यहोवा ने उसे एलिय्याह से कहीं ज़्यादा चमत्कार करने की शक्ति दी। इससे आज के विद्यार्थियों को क्या सीख मिलती है?
17. (क) आज विद्यार्थी एलीशा के जैसा रवैया कैसे दिखा सकते हैं? (ख) आगे चलकर यहोवा किस तरह वफादार विद्यार्थियों को इस्तेमाल कर सकता है?
17 जब आपको मंडली में ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं, तो कभी ऐसा मत सोचिए कि आपको उन्हें बिलकुल अलग तरीके से करने की ज़रूरत है। याद रखिए, मंडली में कोई फेरबदल तभी किया जाता है जब मंडली में इसकी ज़रूरत हो या जब यहोवा के संगठन से ऐसा करने का निर्देशन मिले। आपको अपनी मरज़ी से कभी कोई फेरबदल नहीं करना चाहिए। जब एलीशा ने एलिय्याह के तरीकों से काम किया तो एक तरह से उसने दूसरे भविष्यवक्ताओं को उस पर भरोसा करने में मदद दी। साथ ही, उसने दिखाया कि वह अपने शिक्षक की इज़्ज़त करता है। उसी तरह, जब आप अपने शिक्षकों के बाइबल पर आधारित तरीके अपनाएँगे, तो आप तजुरबेकार प्राचीनों की इज़्ज़त कर रहे होंगे और इससे बाकी भाई-बहन आप पर भरोसा रख पाएँगे। (1 कुरिंथियों 4:17 पढ़िए।) जैसे-जैसे आप तजुरबा हासिल करेंगे, आप ऐसे बदलाव कर पाएँगे जिससे मंडली को यहोवा के संगठन के मुताबिक चलने में मदद मिलेगी, जो आगे बढ़ता जा रहा है। आगे चलकर यहोवा शायद एलीशा की तरह आपको भी अपने शिक्षकों से ज़्यादा बड़े-बड़े काम करने में मदद दे।—यूह. 14:12.
18. मंडली में भाइयों को तालीम देना क्यों आज बहुत ज़रूरी है?
18 हमें उम्मीद है कि इस लेख में और पिछले लेख में दिए सुझावों से, ज़्यादा-से-ज़्यादा प्राचीनों को बढ़ावा मिलेगा कि वे दूसरे भाइयों को तालीम देने के लिए समय निकालें। हमारी दुआ है कि योग्य भाई खुशी-खुशी तालीम पाने के लिए तैयार रहें और सीखी हुई बातें लागू करके यहोवा के लोगों की देखभाल करें। इस तरह की तालीम से दुनिया-भर की सभी मंडलियाँ मज़बूत होंगी और हममें से हरेक को आनेवाले रोमांचक दौर में वफादार बने रहने में मदद मिलेगी।
a अगर एक नौजवान भाई प्रौढ़ है, नम्र है और उसमें ऐसे गुण भी हैं जो मंडली में सेवा करने के लिए ज़रूरी होते हैं तो मंडली के प्राचीन, सहायक सेवक बनाने के लिए उसकी सिफारिश कर सकते हैं, भले ही उसकी उम्र 20 साल से कम हो।—1 तीमु. 3:8-10, 12; 1 जुलाई, 1989 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) का पेज 29 देखिए।
b आप चाहें तो 15 अप्रैल, 2012 की प्रहरीदुर्ग का पेज 14-16, पैराग्राफ 8-13 और “खुद को परमेश्वर के प्यार के लायक बनाए रखो” किताब के अध्याय 16, पैराग्राफ 1-3 में दिए मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं।