“तुम मेरी बाट जोहते रहो”
“इस कारण यहोवा की यह वाणी है, . . . तुम मेरी बाट जोहते रहो।”—सपन्याह ३:८.
१. भविष्यवक्ता सपन्याह द्वारा कौन-सी चेतावनी दी गई थी, और आज जीवित लोगों के लिए इसमें दिलचस्पी की कौन-सी बात है?
“यहोवा का भयानक दिन निकट है।” यह चेतावनी-भरी पुकार भविष्यवक्ता सपन्याह द्वारा सा.यु.पू. सातवीं शताब्दी के मध्य में की गई थी। (सपन्याह १:१४) ४० या ५० सालों के अन्दर ही, इस भविष्यवाणी की पूर्ति हुई जब यहोवा के न्यायदण्ड देने का दिन यरूशलेम और उन जातियों पर आ पड़ा जिन्होंने यहोवा के लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने के द्वारा उसकी सर्वसत्ता का विरोध किया था। २०वीं शताब्दी के अन्त में जी रहे लोगों के लिए यह दिलचस्पी की बात क्यों है? हम उस समय में जी रहे हैं जब यहोवा का अन्तिम “भयानक दिन” वेग से समीप आ रहा है। ठीक सपन्याह के दिनों के जैसे, यहोवा के “क्रोध की आग” यरूशलेम के आधुनिक-दिन समतुल्य—मसीहीजगत—और उन सभी राष्ट्रों के विरुद्ध भड़कने पर है जो यहोवा के लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उसकी विश्व सर्वसत्ता का विरोध करते हैं।—सपन्याह १:४; २:४, ८, १२, १३; ३:८; २ पतरस ३:१२, १३.
सपन्याह—एक साहसी साक्षी
२, ३. (क) सपन्याह के बारे में हम क्या जानते हैं, और क्या सूचित करता है कि वह यहोवा का एक साहसी साक्षी था? (ख) कौन-से तथ्य हमें सपन्याह की भविष्यवाणी करने के समय और स्थान का पता लगाने में मदद देते हैं?
२ भविष्यवक्ता सपन्याह के बारे में थोड़ी ही जानकारी उपलब्ध है, जिसके नाम (इब्रानी, सेफानयाह) का अर्थ है “यहोवा ने छिपाया (सुरक्षित रखा) है।” लेकिन, दूसरे भविष्यवक्ताओं की विषमता में सपन्याह अपनी वंशावली चौथी पीढ़ी, अर्थात् “हिजकिय्याह” के समय तक देता है। (सपन्याह १:१. यशायाह १:१; यिर्मयाह १:१; यहेजकेल १:३ से तुलना कीजिए।) यह इतना असाधारण है कि अधिकतर टीकाकार वफ़ादार राजा हिजकिय्याह की पहचान उसके परदादा के पिता के रूप में कराते हैं। यदि वह था तो सपन्याह राजवंशी था, और इसने यहूदा के राजकुमारों के प्रति उसकी कठोर भर्त्सना को और अधिक अर्थपूर्ण और प्रभावशाली बना दिया होगा और यह दिखाया होगा कि वह यहोवा का साहसी साक्षी और भविष्यवक्ता था। यरूशलेम की स्थलाकृति और राजदरबार में जो हो रहा था इसके बारे में उसका गहरा ज्ञान यह सूचित करता है कि शायद उसने यहोवा के न्यायदण्ड की उद्घोषणा राजधानी में ही की हो।—सपन्याह १:८-११, NW, फुटनोट देखिए।
३ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि जबकि सपन्याह ने ईश्वरीय न्यायदण्ड की उद्घोषणा यहूदा के पदाधिकारी “हाकिमों” (अधिपतियों, अथवा कुलपतियों) और “राजकुमारों” के विरुद्ध की थी, अपनी आलोचना में उसने स्वयं राजा का ज़िक्र कभी नहीं किया।a (सपन्याह १:८; ३:३) इससे यह सूचित होता है कि युवा राजा योशिय्याह ने पहले ही सच्ची उपासना की ओर झुकाव दिखाया था, हालाँकि सपन्याह ने जिस स्थिति की निन्दा की उसको देखते हुए, स्पष्टतः उसने अब तक अपने धार्मिक सुधार के कार्य शुरु नहीं किए थे। यह सब सूचित करता है कि सपन्याह ने यहूदा में योशिय्याह के आरंभिक सालों में भविष्यवाणी की, जिसने सा.यु.पू. ६५९ से ६२९ तक शासन किया। निःसन्देह सपन्याह के ओजस्वी रूप से भविष्यवाणी करने से युवा योशिय्याह का उस समय यहूदा में प्रचलित मूर्तिपूजा, हिंसा और भ्रष्टाचार का बोध बढ़ा और इसने मूर्तिपूजा के विरुद्ध किए गए उसके भावी अभियान को प्रोत्साहित किया।—२ इतिहास ३४:१-३.
यहोवा के भड़कते हुए क्रोध के कारण
४. यहोवा ने किन शब्दों में यहूदा और यरूशलेम के विरुद्ध अपने क्रोध को व्यक्त किया?
४ यहोवा के पास यहूदा के प्रधानों और निवासियों और उसकी राजधानी, यरूशलेम के प्रति क्रोधित महसूस करने का उचित कारण था। अपने भविष्यवक्ता सपन्याह के द्वारा उसने कहा: “मैं यहूदा पर और यरूशलेम के सब रहनेवालों पर हाथ उठाऊंगा, और इस स्थान में बाल के बचे हुओं को और याजकों समेत देवताओं के पुजारियों के नाम को नाश कर दूंगा। जो लोग अपने अपने घर की छत पर आकाश के गण को दण्डवत् करते हैं, और जो लोग दण्डवत् करते हुए यहोवा की सेवा करने की शपथ खाते और अपने मोलेक [“मल्काम,” NW] की भी शपथ खाते हैं।”—सपन्याह १:४, ५.
५, ६. (क) सपन्याह के समय में यहूदा में धार्मिक स्थिति कैसी थी? (ख) यहूदा के पदाधिकारी हाकिमों और उनके अधीन काम करनेवालों की क्या स्थिति थी?
५ यहूदा बाल उपासना की घिनौनी प्रजनन धर्मविधियों, पैशाचिक ज्योतिषविद्या, और विधर्मी ईश्वर मल्काम की उपासना से कलंकित था। यदि मल्काम ही मोलेक है, जैसे कुछ सुझाते हैं, तो यहूदा की झूठी उपासना में बच्चों की घृणास्पद बलि देना भी शामिल था। ऐसी धार्मिक प्रथाएँ यहोवा की दृष्टि में घृणित थीं। (१ राजा ११:५, ७; १४:२३, २४; २ राजा १७:१६, १७) वे अपने ऊपर यहोवा का और अधिक क्रोध ले आए क्योंकि वे मूर्तिपूजक अब भी यहोवा के नाम की शपथ खाते थे। वह ऐसी धार्मिक अशुद्धता को और अधिक सहन नहीं करता और विधर्मी और धर्मत्यागी याजकों दोनों को नाश करता।
६ इसके अलावा, यहूदा के पदाधिकारी प्रधान भ्रष्ट थे। उसके हाकिम खूँख़ार “गरजते हुए सिंह” के समान थे और उसके न्यायियों की तुलना भूखे “भेड़िये” से की गई है। (सपन्याह ३:३, NHT) उनके अधीन काम करनेवाले ‘अपने स्वामी के घर को उपद्रव और छल से भर’ देने के दोषी थे। (सपन्याह १:९) भौतिकवाद प्रबल था। अनेक लोग धन एकत्रित करने के लिए परिस्थिति का फ़ायदा उठा रहे थे।—सपन्याह १:१३.
यहोवा के दिन के बारे में शंकाएँ
७. ‘यहोवा के भयानक दिन’ से पहले कितने समय सपन्याह ने भविष्यवाणी की, और अनेक यहूदियों की आध्यात्मिक स्थिति क्या थी?
७ जैसा कि हम पहले ही देख चुके हैं, वह अनर्थकारी धार्मिक स्थिति जो सपन्याह के दिनों में प्रचलित थी, यह सूचित करती है कि उसने एक साक्षी और भविष्यवक्ता के तौर पर अपना कार्य, राजा योशिय्याह के मूर्तिपूजा के विरुद्ध अपना अभियान शुरू करने से पहले, जारी रखा था जो लगभग सा.यु.पू. ६४८ में हुआ। (२ इतिहास ३४:४, ५) तब, बहुत संभव है कि सपन्याह ने यहूदा के राज्य पर ‘यहोवा के भयानक दिन’ से पहले कम-से-कम ४० साल भविष्यवाणी की थी। इस अंतराल में, अनेक यहूदियों ने शंकाओं को पनपने दिया और उदासीन बनकर यहोवा का अनुसरण करना “छोड़ दिया।” सपन्याह ने उनके बारे में कहा “उन्हों ने न तो यहोवा की खोज की और न उससे पूछा।” (सपन्याह १:६, NHT) स्पष्टतः, यहूदा के लोग भावशून्य थे, और परमेश्वर के बारे में कोई परवाह नहीं करते थे।
८, ९. (क) यहोवा उनको क्यों जाँचता, “जो लोग दाखमधु के तलछट तथा मैल के समान बैठे हुए” थे? (ख) किन तरीक़ों से यहोवा यहूदा के निवासियों की ओर तथा उनके पदाधिकारी और धार्मिक अगुओं की ओर ध्यान देता?
८ यहोवा ने उन लोगों को जाँचने के लिए अपने उद्देश्य को प्रकट किया जो कि उसके लोग होने का दावा कर रहे थे। अपने तथाकथित उपासकों के बीच, वह उन लोगों को ढूँढ निकालता जो अपने हृदयों में मानवीय मामलों में हस्तक्षेप करने की उसकी योग्यता अथवा अभिप्राय के प्रति शंकाएँ रखते थे। उसने कहा: “उस समय मैं दीपक लिए हुए यरूशलेम में ढूंढ़-ढांढ़ करूंगा, और जो लोग दाखमधु के तलछट तथा मैल के समान बैठे हुए मन में कहते हैं कि यहोवा न तो भला करेगा और न बुरा, उनको मैं दण्ड दूंगा।” (सपन्याह १:१२) यह अभिव्यक्ति “जो लोग दाखमधु के तलछट तथा मैल के समान बैठे हुए . . . हैं” (दाखमधु बनाने के बारे में एक उल्लेख) उन लोगों को सूचित करती है जो कि हौज़ की तलहटी में तलछट के समान बैठे हुए हैं, और जो मानवजाति के मामलों में सन्निकट ईश्वरीय हस्तक्षेप की किसी भी उद्घोषणा से विचलित नहीं होना चाहते।
९ यहोवा यहूदा और यरूशलेम के निवासियों और उनके याजकों की ओर ध्यान देता जिन्होंने उसकी उपासना को विधर्म के साथ मिला दिया था। यदि वे यरूशलेम की चारदीवारी के अन्दर, मानो रात के अन्धकार में सुरक्षित महसूस करते, तो वह उन्हें मानो चमकते दीपक लिए हुए ढूँढता जो उस आध्यात्मिक अन्धकार को बेध डालता जिसमें उन्होंने शरण ली थी। वह उन्हें उनकी धार्मिक भावशून्यता से झंझोड़ कर बाहर निकाल देता, पहले न्यायदण्ड के विस्मयकारी सन्देशों से, और उसके बाद उन न्यायदण्डों को कार्यान्वित करने से।
“यहोवा का भयानक दिन निकट है”
१०. सपन्याह ने ‘यहोवा के भयानक दिन’ का वर्णन किस तरह किया?
१० यहोवा ने सपन्याह को यह उद्घोषणा करने के लिए उत्प्रेरित किया: “यहोवा का भयानक दिन निकट है, वह बहुत वेग से समीप चला आता है; यहोवा के दिन का शब्द सुन पड़ता है।” (सपन्याह १:१४) वाक़ई सभी के आगे दुःखद दिन थे—याजक, हाकिम, और लोग—जिन्होंने चेतावनी सुनने से और सच्चाई की ओर लौटने से इनकार कर दिया। न्यायदण्ड कार्यान्वित करने के उस दिन का वर्णन करते हुए, भविष्यवाणी आगे कहती है: “वह रोष का दिन होगा, वह संकट और सकेती का दिन, वह उजाड़ और उधेड़ का दिन, वह अन्धेर और घोर अन्धकार का दिन, वह बादल और काली घटा का दिन होगा। वह गढ़वाले नगरों और ऊंचे गुम्मटों के विरुद्ध नरसिंगा फूंकने और ललकारने का दिन होगा।”—सपन्याह १:१५, १६.
११, १२. (क) यरूशलेम के ख़िलाफ़ कौन-सा न्याय संदेश घोषित किया गया? (ख) क्या भौतिक संपन्नता यहूदियों को बचाती?
११ कुछ ही दशकों में, बाबुल की सेना यहूदा पर धावा बोलती। यरूशलेम नहीं बचता। उसके आवासी और व्यापारी विभाग उजाड़े जाते। “यहोवा की यह वाणी है, कि उस दिन मछली फाटक के पास चिल्लाहट का, और नये टोले मिश्नाह में हाहाकार का, और टीलों पर बड़े धमाके का शब्द होगा। हे मक्तेश [यरूशलेम के एक भाग] के रहनेवालो, हाय, हाय, करो! क्योंकि सब ब्योपारी मिट गए; जितने चान्दी से लदे थे, उन सब का नाश हो गया है।”—सपन्याह १:१०, ११, फुटनोट, NW.
१२ यह मानने से इनकार करते हुए कि यहोवा का दिन निकट था, अनेक यहूदी आकर्षक व्यापारिक जोखिमों में पूरी तरह लिप्त हो गए थे। लेकिन अपने वफ़ादार भविष्यवक्ता सपन्याह के द्वारा, यहोवा ने पूर्वबताया था कि ‘उनकी धन सम्पत्ति लूटी जाती, और उनके घर उजाड़ होते।’ वे अपना बनाया हुआ दाखमधु नहीं पीते, और ‘यहोवा के रोष के दिन में, न तो चान्दी से उनका बचाव होता, और न सोने से।’—सपन्याह १:१३, १८.
अन्य जातियों का न्याय किया जाता है
१३. सपन्याह ने मोआब, अम्मोन और अश्शूर के ख़िलाफ़ कौन-सा न्याय संदेश घोषित किया?
१३ अपने भविष्यवक्ता सपन्याह के माध्यम से, यहोवा ने उन जातियों के विरुद्ध भी अपना क्रोध प्रकट किया जिन्होंने उसके लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया था। उसने घोषित किया: “मोआब ने जो मेरी प्रजा की नामधराई और अम्मोनियों ने जो उसकी निन्दा करके उसके देश की सीमा पर चढ़ाई की, वह मेरे कानों तक पहुंची है। इस कारण इस्राएल के परमेश्वर, सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, मेरे जीवन की शपथ, निश्चय मोआब सदोम के समान, और अम्मोनी अमोरा की नाईं बिच्छू पेड़ों के स्थान और नमक की खानियां हो जाएंगे, और सदैव उजड़े रहेंगे . . . वह अपना हाथ उत्तर दिशा की ओर बढ़ाकर अश्शूर को नाश करेगा, और नीनवे को उजाड़ कर जंगल के समान निर्जल कर देगा।”—सपन्याह २:८, ९ १३.
१४. क्या प्रमाण है कि अन्य जातियों ने इस्राएलियों और उनके परमेश्वर, यहोवा के विरुद्ध “बड़ाई मारी”?
१४ मोआब और अम्मोन इस्राएल के पुराने शत्रु थे। (न्यायियों ३:१२-१४ से तुलना कीजिए।) पैरिस के लूव्र म्यूज़ियम में, मोआबी शिला एक शिलालेख दिखाती है जिसमें मोआबी राजा मेशा का घमण्ड-भरा कथन है। वह अपने देवता कीमोश की सहायता से अनेक इस्राएली नगरों को ले लिए जाने के बारे में अहंकार से उल्लेख करता है। (२ राजा १:१) सपन्याह के समकालिक, यिर्मयाह ने इस्राएलियों के क्षेत्र गाद पर अम्मोनियों के अपने देवता मल्काम के नाम पर अधिकार करने के बारे में कहा। (यिर्मयाह ४९:१) और अश्शूर के सम्बन्ध में, सपन्याह के समय से लगभग एक शताब्दी पहले, राजा शल्मनेसेर पंचम ने सामरिया पर घेरा डाला और उसे ले लिया। (२ राजा १७:१-६) उसके कुछ समय बाद, राजा सन्हेरीब ने यहूदा पर आक्रमण कर, उसके अनेक गढ़वाले नगरों को ले लिया, और यहाँ तक कि यरूशलेम को धमकाया। (यशायाह ३६:१, २) अश्शूर के राजा के प्रवक्ता ने यरूशलेम के आत्मसमर्पण की माँग करते वक़्त वाक़ई यहोवा के विरुद्ध बड़ाई मारी थी।—यशायाह ३६:४-२०.
१५. कैसे यहोवा जातियों के देवताओं को अपमानित करता जिन्होंने उसके लोगों के विरुद्ध बड़ाई मारी थी?
१५ भजन ८३ कई देशों का ज़िक्र करता है, जिनमें मोआब, अम्मोन और अश्शूर शामिल हैं, जिन्होंने इस्राएल के विरुद्ध बड़ाई मारी थी, और शेख़ी बघारते हुए कहा था: “आओ, हम उनको ऐसा नाश करें कि राज्य [जाति, फुटनोट] भी मिट जाए; और इस्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे।” (भजन ८३:४) भविष्यवक्ता सपन्याह ने साहसपूर्वक घोषित किया कि इन सभी घमण्डी जातियों और उनके देवताओं को यहोवा द्वारा अपमानित किया जाता। “यह उनके गर्व का पलटा होगा, क्योंकि उन्हों ने सेनाओं के यहोवा की प्रजा की नामधराई की, और उस पर बड़ाई मारी है। यहोवा उनको डरावना दिखाई देगा, वह पृथ्वी भर के देवताओं को भूखों मार डालेगा, और अन्यजातियों के सब द्वीपों के निवासी अपने अपने स्थान से उसको दण्डवत् करेंगे।”—सपन्याह २:१०, ११.
“तुम . . . बाट जोहते रहो”
१६. (क) किन लोगों के लिए यहोवा के दिन का समीप आना आनन्द का कारण था, और क्यों? (ख) इस वफ़ादार शेषवर्ग के लिए कौन-सी उत्तेजक पुकार निकली?
१६ जबकि आध्यात्मिक आलस्य, संदेहवाद, मूर्तिपूजा, भ्रष्टाचार और भौतिकवाद यहूदा और यरूशलेम के प्रधानों और अनेक निवासियों में प्रचलित था, प्रत्यक्षतः कुछ वफ़ादार यहूदियों ने सपन्याह की चेतावनी-भरी भविष्यवाणियों पर ध्यान दिया। वे यहूदा के हाकिमों, न्यायियों, और याजकों के घृणित कार्यों से दुःखी थे। सपन्याह की उद्घोषणाएँ इन वफ़ादार जनों के लिए सांत्वना का स्रोत थीं। संताप का कारण होने के बजाय, उनके लिए यहोवा के दिन का आना आनन्द का कारण था, क्योंकि यह ऐसे घृणित कार्यों का अंत लाता। इस वफ़ादार शेषवर्ग ने यहोवा की उत्तेजक पुकार को सुना था: “इस कारण यहोवा की यह वाणी है, कि जब तक मैं नाश करने को न उठूं, तब तक तुम मेरी बाट जोहते रहो। मैं ने यह ठाना है कि जाति-जाति के और राज्य-राज्य के लोगों को मैं इकट्ठा करूं, कि उन पर अपने क्रोध की आग पूरी रीति से भड़काऊं।”—सपन्याह ३:८.
१७. कब और कैसे सपन्याह के न्याय संदेश जातियों पर पूरे होने लगे?
१७ जिन्होंने उस चेतावनी पर ध्यान दिया था वे आश्चर्यचकित नहीं हुए थे। अनेक लोग सपन्याह की भविष्यवाणी की पूर्ति देखने के लिए जीवित रहे। सा.यु.पू. ६३२ में, नीनवे बाबुलियों, मादियों और उत्तर से संयुक्त सेनाओं, संभवतः साइथियावासियों द्वारा लिया गया और नाश किया गया था। इतिहासकार विल ड्यूरॆन्ट वर्णन करता है: “नाबोपोलास्सर के नेतृत्व के अधीन बाबुलियों की सेना, साइएक्सारीज़ के नेतृत्व के अधीन मादियों की सेना के साथ और काउकासस के साइथियावासियों के एक झुण्ड के साथ मिल गयी, और अद्भुत सरलता और तेज़ी से उत्तर के किलों पर क़ब्ज़ा कर लिया . . . एक ही झटके में अश्शूर इतिहास से ग़ायब हो गया।” यह ठीक वैसा ही था जैसे सपन्याह ने भविष्यवाणी की थी।—सपन्याह २:१३-१५.
१८. (क) यरूशलेम पर कैसे ईश्वरीय न्यायदण्ड कार्यान्वित किया गया, और क्यों? (ख) मोआब और अम्मोन के बारे में सपन्याह की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?
१८ अनेक यहूदी जो यहोवा की बाट जोह रहे थे, वे यहूदा और यरूशलेम पर उसके न्यायदण्डों को देखने के लिए भी जीवित रहे। यरूशलेम के बारे में सपन्याह ने भविष्यवाणी की थी: “हाय बलवा करनेवाली और अशुद्ध और अन्धेर से भरी हुई नगरी! उस ने मेरी नहीं सुनी, उस ने ताड़ना से भी नहीं माना, उस ने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा, वह अपने परमेश्वर के समीप नहीं आई।” (सपन्याह ३:१, २) अपनी बेवफ़ाई के कारण, यरूशलेम बाबुलियों द्वारा दो बार घेरा गया और अंत में सा.यु.पू ६०७ में ले लिया गया और नाश किया गया। (२ इतिहास ३६:५, ६, ११-२१) और मोआब और अम्मोन के विषय में, यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स के अनुसार, यरूशलेम के पतन के पाँचवें साल में, बाबुलियों ने उनसे युद्ध किया और उन्हें जीत लिया। बाद में उनका अस्तित्व ही मिट गया, जैसी भविष्यवाणी की गई थी।
१९, २०. (क) यहोवा ने उन लोगों को कैसे प्रतिफल दिया जो उसकी बाट जोहते रहे? (ख) इन घटनाओं का हमारे लिए महत्त्व क्यों है, और अगले लेख में किस बात पर विचार किया जाएगा?
१९ सपन्याह की भविष्यवाणी के इन और अन्य विवरणों की पूर्ति, उन यहूदियों और ग़ैर-यहूदियों के लिए विश्वास मज़बूत करनेवाला एक अनुभव था जो यहोवा की बाट जोह रहे थे। यहूदा और यरूशलेम पर जो विनाश आया था उसमें बचने वालों में से यिर्मयाह, कूशी एबेदमेलेक, और योनादाब का घराना, अर्थात् रेकाबी थे। (यिर्मयाह ३५:१८, १९; ३९:११, १२, १६-१८) निर्वासन में वफ़ादर यहूदी और उनकी संतान, जिन्होंने यहोवा की बाट जोहना जारी रखा था, उस आनन्दित शेषवर्ग का हिस्सा बने जो सा.यु.पू. ५३७ में बाबुल से रिहा हुआ था और सच्ची उपासना की पुनःस्थापना करने यहूदा लौटा।—एज्रा २:१; सपन्याह ३:१४, १५, २०.
२० इन सब बातों का हमारे समय के लिए क्या अर्थ है? अनेक तरीक़ों से सपन्याह के दिनों की स्थिति आज मसीहीजगत में हो रहे घृणित कामों के समान है। इसके अलावा, उस समय के यहूदियों के विभिन्न रवैये उन रवैयों के समान हैं जो कि आज के समय में पाए जा सकते हैं, यहाँ तक कि कभी-कभी यहोवा के लोगों में भी। ये मामले हैं जिन्हें अगले लेख में लिया जाएगा।
[फुटनोट]
a ऐसा लगता है कि अभिव्यक्ति “राजकुमारों” सभी राजकीय हाकिमों को सूचित करती है चूँकि योशिय्याह के अपने बेटे उस समय बहुत ही छोटे थे।
पुनर्विचार के द्वारा
◻ सपन्याह के दिनों में यहूदा में धार्मिक स्थिति कैसी थी?
◻ पदाधिकारी प्रधानों के बीच कौन-सी परिस्थितियाँ मौजूद थीं, और अनेक लोगों का रवैया क्या था?
◻ कैसे जातियों ने यहोवा के लोगों के विरुद्ध बड़ाई मारी?
◻ सपन्याह ने यहूदा और अन्य जातियों को कौन-सी चेतावनी दी?
◻ उन लोगों को प्रतिफल कैसे दिया गया जो यहोवा की बाट जोहते रहे?
[पेज 9 पर तसवीरें]
यह मोआबी शिला पुष्टि करती है कि मोआब के राजा मेशा ने प्राचीन इस्राएल के विरुद्ध निन्दनीय शब्द कहे थे
[चित्र का श्रेय]
Moabite Stone: Musée du Louvre, Paris
[पेज 10 पर तसवीरें]
सपन्याह की भविष्यवाणी का समर्थन करते हुए, बाबुल के इतिहास की यह कीलाक्षर पटिया संयुक्त सेनाओं द्वारा नीनवे के नाश को अभिलिखित करती है
[चित्र का श्रेय]
Cuneiform tablet: Courtesy of The British Museum