यहोवा का वचन जीवित है
एज्रा किताब की झलकियाँ
बाइबल की एज्रा की किताब उन घटनाओं से शुरू होती है जहाँ दूसरा इतिहास किताब का ब्यौरा खत्म होता है। इसका लेखक, याजक एज्रा सबसे पहले बताता है कि कैसे फारसी राजा, कुस्रू यह फरमान जारी करता है कि बाबुल की बंधुआई में रहनेवाले यहूदी अपने वतन लौटने के लिए आज़ाद हैं। किताब इस वाकये के साथ खत्म होती है कि जिन इस्राएलियों ने आस-पास की जातियों के साथ मिलकर खुद को अशुद्ध कर लिया था, उन्हें शुद्ध करने के लिए एज्रा क्या कदम उठाता है। इस किताब में कुल मिलाकर 70 साल का, यानी सा.यु.पू. 537 से लेकर सा.यु.पू. 467 तक का इतिहास दर्ज़ है।
इस किताब को लिखने का एज्रा का मकसद बिलकुल साफ है: यह दिखाना कि यहोवा ने अपने लोगों को बाबुल की बंधुआई से छुड़ाने और यरूशलेम में सच्ची उपासना बहाल करने का वादा कैसे पूरा किया। इसलिए एज्रा सिर्फ उन घटनाओं को दर्ज़ करता है जो इस मकसद से ताल्लुक रखती हैं। एज्रा की किताब बताती है कि कैसे विरोध और परमेश्वर के लोगों की अपनी असिद्धताओं के बावजूद मंदिर को दोबारा बनाया गया और यहोवा की उपासना फिर से शुरू की गयी। यह ब्यौरा आज हमारे लिए बहुत मायने रखता है क्योंकि हम भी बहाली के एक दौर में जी रहे हैं। आज बहुत-से लोग “यहोवा के पर्वत” की तरफ धारा की तरह चले आ रहे हैं, और वह समय करीब है जब सारी धरती “यहोवा की महिमा के ज्ञान से . . . भर जाएगी।”—यशायाह 2:2, 3; हबक्कूक 2:14.
मंदिर दोबारा बनाया जाता है
कुस्रू के फरमान जारी करने पर, करीब 50,000 यहूदी बंधुए, गवर्नर जरुब्बाबेल यानी शेशबस्सर की अगुवाई में यरूशलेम लौटते हैं। वहाँ पहुँचते ही वे फौरन उसी जगह वेदी खड़ी करते हैं जहाँ पुराने मंदिर में उसकी जगह थी और यहोवा को बलिदान चढ़ाना शुरू करते हैं।
अगले साल इस्राएली, यहोवा के भवन की नींव डालते हैं। दुश्मन लगातार इस काम में खलल पैदा करते हैं और आखिरकार उसे बंद करने के लिए राजा से हुक्म जारी करवाने में कामयाब हो जाते हैं। तब भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह लोगों को उकसाते हैं कि वे पाबंदी के बावजूद मंदिर का काम दोबारा शुरू करें। फारसी कानून को पत्थर की लकीर माना जाता था इसलिए दुश्मन, कुस्रू के फरमान का विरोध करने के डर से यहूदियों को परेशान नहीं करते। अधिकारियों की तहकीकात से कुस्रू का वह हुक्मनामा मिलता है जो उसने “परमेश्वर के भवन के विषय जो यरूशलेम में है” जारी किया था। (एज्रा 6:3) अब मंदिर का काम बिना किसी रुकावट के पूरे ज़ोरों पर चलता है और जल्द ही पूरा हो जाता है।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
1:3-6—जो इस्राएली अपने वतन नहीं लौटे क्या उनका विश्वास कमज़ोर था? कुछ इस्राएली शायद इसलिए अपने वतन नहीं लौटे क्योंकि उन्हें बाबुल में अपनी ऐशो-आराम की ज़िंदगी छोड़ना पसंद नहीं था या उनमें सच्ची उपासना के लिए कोई कदर नहीं थी। लेकिन सभी इस्राएलियों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। बाबुल से यरूशलेम 1,600 किलोमीटर दूर था और यह सफर तय करने में चार-पाँच महीने लग जाते। इसके अलावा, 70 सालों से उजाड़ पड़े देश में बसने और दोबारा निर्माण काम करने के लिए काफी दम-खम की ज़रूरत थी। इसलिए कुछ इस्राएली खराब सेहत, बुढ़ापे और परिवार की ज़िम्मेदारियों जैसे मुश्किल हालात की वजह से यरूशलेम लौट न सके।
2:43—नतीनवंशी कौन थे? वे गैर-इस्राएली जाति के लोग थे जो मंदिर में दास या सेवक के नाते काम करते थे। इनमें यहोशू के दिनों के गिबोनियों के वंशज और दूसरे लोग भी शामिल थे “जिन्हें दाऊद और हाकिमों ने लेवियों की सेवा करने को ठहराया था।”—एज्रा 8:20.
2:55—सुलैमान के दासों की संतान कौन थे? ये वे गैर-इस्राएली थे जिन्हें यहोवा की सेवा में खास ज़िम्मेदारियाँ दी गयी थीं। उन्होंने शायद मंदिर में शास्त्रियों या नकलनवीसों के तौर पर या फिर प्रशासन के किसी ओहदे पर सेवा की होगी।
2:61-63—यहोवा से सीधे जवाब पाने के लिए, जिन ऊरीम और तुम्मीम का इस्तेमाल किया जाता था, क्या वे बाबुल से लौटे बंधुओं के लिए उपलब्ध थे? जो लोग खुद को याजकों के वंशज कहते थे, वे अपने दावे को साबित करने के लिए ऊरीम और तुम्मीम का इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन एज्रा यह नहीं बताता है कि उन्होंने वाकई इनका इस्तेमाल किया था या नहीं, वह तो सिर्फ इसे एक गुंजाइश बताता है। बाइबल में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि उस वक्त या उसके बाद के किसी दौर में ऊरीम और तुम्मीम का इस्तेमाल किया गया हो। यहूदी परंपरा के मुताबिक, सा.यु.पू. 607 में मंदिर के नाश के साथ ऊरीम और तुम्मीम भी लापता हो गए थे।
3:12—“वे बूढ़े जिन्हों ने [यहोवा का] पहिला भवन देखा था” क्यों रो पड़े? उन्हें अब भी याद था कि सुलैमान का बनाया मंदिर कितना शानदार था। नए मंदिर की जो नींव उन्होंने देखी वह ‘उनकी दृष्टि में कुछ भी नहीं थी’। (हाग्गै 2:2, 3) क्या यह मंदिर पुराने मंदिर जैसा आलीशान बनेगा? शायद यही सोचकर वे नाउम्मीद और निराश हो गए, और इसलिए रो पड़े।
3:8-10; 4:23, 24; 6:15, 16—मंदिर को दोबारा बनाने में कितने साल लगे? मंदिर की नींव ‘उनके आने के दूसरे वर्ष में’ यानी सा.यु.पू. 536 में डाली गयी थी। मगर सा.यु.पू. 522 में राजा अर्तक्षत्र के दिनों में इस काम पर पाबंदी लगा दी गयी। फिर राजा दारा की हुकूमत के दूसरे साल यानी सा.यु.पू. 520 में पाबंदी हटा दी गयी। और उसकी हुकूमत के छठे साल में यानी सा.यु.पू. 515 में मंदिर बनकर तैयार हो गया। (बक्स, “सा.यु.पू. 537 से 467 के दौरान राज करनेवाले फारसी राजा” देखिए।) इस तरह मंदिर को बनाने में करीब 20 साल लगे।
4:8–6:18—इन आयतों को अरामी भाषा में क्यों लिखा गया था? इन आयतों में ज़्यादातर, राजाओं को लिखी सरकारी अधिकारियों की चिट्ठियाँ और राजाओं के जवाब दर्ज़ हैं। एज्रा ने अरामी भाषा में लिखे सरकारी दस्तावेज़ों से इनकी नकल बनायी थी। अरामी उस ज़माने की सरकारी और कारोबार में इस्तेमाल की जानेवाली भाषा थी। प्राचीन शेम-वंशियों की इस भाषा में लिखे बाइबल के कुछ और वचन हैं: एज्रा 7:12-26; यिर्मयाह 10:11; और दानिय्येल 2:4ख–7:28.
हमारे लिए सबक:
1:2. करीब 200 साल पहले यशायाह ने जो भविष्यवाणी की थी, वह पूरी हुई। (यशायाह 44:28) यहोवा के वचन में दी भविष्यवाणियाँ कभी नाकाम नहीं होतीं।
1:3-6. बाबुल में रह जानेवाले चंद इस्राएलियों की तरह, आज यहोवा के कई साक्षी पूरे समय की सेवा नहीं कर सकते या जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है, वहाँ नहीं जा सकते। फिर भी वे इस तरह की सेवा करनेवालों की मदद करते और उनका जोश बढ़ाते हैं। इसके अलावा, वे राज्य के प्रचार और चेला बनाने के काम को आगे बढ़ाने के लिए तहेदिल से दान देते हैं।
3:1-6. राजा नबूकदनेस्सर सा.यु.पू. 607 के पाँचवें महीने (आब, जो जुलाई/अगस्त का समय है) में यरूशलेम आया था, और दो महीने के अंदर शहर को पूरी तरह उजाड़ दिया गया। (2 राजा 25:8-17, 22-26) इसके बाद, सा.यु.पू. 537 (तिशरी, जो सितंबर/अक्टूबर का समय है) के सातवें महीने में वफादार यहूदी बाबुल से लौट आए और उन्होंने अपना पहला बलिदान चढ़ाया। तो जैसे भविष्यवाणी में बताया गया था, यरूशलेम की 70 साल की बदहाली ठीक वक्त पर खत्म हुई। (यिर्मयाह 25:11; 29:10) जी हाँ, यहोवा का वचन जो भी भविष्यवाणी करता है, हमेशा पूरा होता है।
4:1-3. बचे हुए वफादार यहूदियों ने एक ऐसी पेशकश ठुकरा दी जिससे उन्हें उपासना के मामले में झूठे धर्म के लोगों के साथ समझौता करना पड़ता। (निर्गमन 20:5; 34:12) उन यहूदियों की तरह, आज यहोवा के उपासक ऐसे किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में भाग नहीं लेते जिसमें दूसरे धर्मों की उपासना में हिस्सा लेना ज़रूरी होता है।
5:1-7; 6:1-12. यहोवा घटनाओं का रुख इस तरह मोड़ सकता है कि उसके लोग कामयाब हो सकें।
6:14, 22. जब हम यहोवा का काम पूरे जोश के साथ करते हैं, तो वह हमसे खुश होता है और हमें इनाम देता है।
6:21. जब यरूशलेम में रहनेवाले सामरियों ने और बाबुल लौटने के बाद झूठे धर्मों से अशुद्ध होनेवाले यहूदियों ने खुद अपनी आँखों से देखा कि यहोवा का काम किस तरह आगे बढ़ रहा था, तो उन पर इसका गहरा असर हुआ और उन्होंने ज़िंदगी में ज़रूरी बदलाव किए। क्या इससे हमें बढ़ावा नहीं मिलता कि हम परमेश्वर से मिले हर काम को, जिसमें राज्य का प्रचार काम भी शामिल है, पूरे जोश के साथ करते रहें?
एज्रा यरूशलेम आता है
नए मंदिर के उद्घाटन को 50 साल बीत चुके हैं। साल है सा.यु.पू. 468. एज्रा, अपने साथ बचे हुए यहूदियों को और यहोवा के काम के लिए मिला दान लेकर बाबुल से यरूशलेम आता है। यरूशलेम पहुँचने पर वह क्या देखता है?
हाकिम, एज्रा को बताते हैं: “न तो इस्राएली लोग, न याजक, न लेवीय इस ओर के देशों के लोगों से अलग हुए; वरन उनके से, . . . घिनौने काम करते हैं।” इतना ही नहीं, “हाकिम और सरदार इस विश्वासघात में मुख्य हुए हैं।” (एज्रा 9:1, 2) एज्रा को यह सुनकर बड़ा धक्का लगता है। मगर फिर उसे ‘हियाव बान्धकर काम’ करने का बढ़ावा दिया जाता है। (एज्रा 10:4) हालात को सुधारने के लिए एज्रा कदम उठाता है और लोग उसकी बात मानते हैं।
बाइबल सवालों के जवाब पाना:
7:1, 7, 11—क्या ये सभी आयतें उस अर्तक्षत्र की बात कर रही हैं जिसने निर्माण काम को रोका था? जी नहीं। अर्तक्षत्र ऐसा नाम या उपाधि है जो दो फारसी राजाओं के लिए इस्तेमाल की गयी थी। एक था बारदिया या गौमाता, जिसने सा.यु.पू. 522 में मंदिर के काम को रोकने का हुक्म दिया था। एज्रा के यरूशलेम आने के दौरान जिस अर्तक्षत्र का राज चल रहा था, वह था अर्तक्षत्र लॉन्गिमेनस।
7:28–8:20—बाबुल में रहनेवाले बहुत-से यहूदी, एज्रा के साथ यरूशलेम लौटने के लिए राज़ी क्यों नहीं थे? हालाँकि यहूदियों के पहले समूह को अपने वतन लौटे 60 साल से ज़्यादा हो गए थे, मगर अब भी यरूशलेम सही तरह से बसाया नहीं गया था। ऐसे में जो यहूदी यरूशलेम लौटते उन्हें मुसीबतों और खतरों से भरे माहौल में नए सिरे से ज़िंदगी शुरू करनी पड़ती। कुछ यहूदी शायद बाबुल में ऐशो-आराम की ज़िंदगी बिता रहे थे, जबकि यरूशलेम में इस तरह दौलत कमाने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी। शायद इसलिए वे जाने से हिचकिचाए। एक और बात यह है कि यरूशलेम की वापसी यात्रा जोखिम-भरी थी। यरूशलेम लौटनेवालों के लिए ज़रूरी था कि वे यहोवा पर मज़बूत विश्वास रखें, उनमें सच्ची उपासना के लिए जोश हो और यरूशलेम तक का सफर तय करने की हिम्मत हो। एज्रा ने भी यहोवा से सामर्थ पाकर खुद को मज़बूत किया। एज्रा के उकसाने पर 1,500 परिवारों ने, यानी कुल-मिलाकर शायद 6,000 लोगों ने उसके साथ जाने का फैसला किया। उसने कुछ और भी कदम उठाए जिसकी वजह से 38 लेवी और 220 नतीन लोग भी उसके साथ रवाना हो गए।
9:1, 2—दूसरी जातियों से शादी करने का खतरा कितना बड़ा था? बहाल की गयी इस्राएल जाति की ज़िम्मेदारी थी कि वह मसीहा के आने तक यहोवा की उपासना को अशुद्ध होने से बचाए रखे। दूसरी जातियों के लोगों से शादी करने से सच्ची उपासना को बहुत बड़ा खतरा था। कुछ इस्राएलियों ने मूर्तिपूजा करनेवालों से शादी की थी, इसलिए पूरी-की-पूरी इस्राएल जाति का विधर्मी जातियों में मिल जाने का खतरा पैदा हो गया था। अगर ऐसा ही चलता रहता तो धरती पर से सच्ची उपासना का नामो-निशान मिट जाता। ऐसे में मसीहा किसके पास आता? इसलिए ताज्जुब नहीं कि यह हाल देखकर एज्रा को बड़ा झटका लगा!
10:3, 44—स्त्रियों के साथ-साथ उनके बच्चों को भी क्यों भेज दिया गया था? अगर बच्चों को रहने दिया जाता तो शायद उनकी माँओं की उनके पास लौटने की गुंजाइश रहती। दूसरी बात यह है कि छोटे बच्चों को खास तौर से माँ की ममता की ज़रूरत होती है। इसलिए उन्हें अपनी माँ के साथ भेज दिया गया था।
हमारे लिए सबक:
7:10. एज्रा, परमेश्वर के वचन का मन लगाकर अध्ययन करता था और एक कुशल शिक्षक था। इसलिए वह हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। उसने यहोवा की व्यवस्था से सलाह पाने के लिए प्रार्थना के ज़रिए अपने मन को तैयार किया। और व्यवस्था से सलाह लेते वक्त उसने यहोवा की बातों पर पूरा ध्यान लगाया। इसके बाद वह सीखी हुई बातों को अमल में लाया और दूसरों को सिखाने में बहुत मेहनत की।
7:13. यहोवा ऐसे सेवकों को पसंद करता है जो कोई भी काम करने के लिए खुशी-खुशी तैयार हों।
7:27, 28; 8:21-23. यहोवा ने जो भलाई के काम किए उसके लिए एज्रा ने यहोवा को श्रेय दिया, यरूशलेम का लंबा और जोखिम-भरा सफर शुरू करने से पहले सच्चे दिल से उससे बिनती की और परमेश्वर की महिमा की खातिर वह खुद को खतरे में डालने के लिए तैयार था। हम उससे क्या ही बढ़िया सबक सीख सकते हैं।
9:2. “केवल प्रभु में” विवाह करने की सलाह को हमें गंभीरता से लेना चाहिए।—1 कुरिन्थियों 7:39.
9:14, 15. बुरी संगति से हम यहोवा की मंज़ूरी खो सकते हैं।
10:2-12, 44. अन्यजातियों की स्त्रियों से विवाह करनेवालों ने नम्र होकर पश्चाताप किया और अपने गलत तौर-तरीके बदले। उनका रवैया और उन्होंने जो कदम उठाए, वह सचमुच काबिले-तारीफ है।
यहोवा अपने वादों को निभाता है
वाकई, एज्रा की किताब हमारे लिए किसी खज़ाने से कम नहीं! यहोवा ने सही समय पर अपने लोगों को बाबुल की बंधुआई से छुड़ाकर और यरूशलेम में सच्ची उपासना बहाल करके अपना वादा पूरा किया। क्या इससे यहोवा और उसके वादों पर हमारा विश्वास और भी पक्का नहीं होता?
एज्रा की किताब में बताए उन लोगों के बारे में ज़रा सोचिए जिन्होंने बढ़िया मिसाल कायम की है। एज्रा और उन इस्राएलियों की भक्ति हमारे लिए एक आदर्श है, जो सच्ची उपासना को बहाल करने में हिस्सा लेने के लिए यरूशलेम लौटे। इस किताब में परमेश्वर का भय माननेवाले कुछ परदेशियों के विश्वास की और पश्चाताप करनेवाले यहूदियों की नम्रता की भी मिसालें दी गयी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि ईश्वर-प्रेरणा से दर्ज़ एज्रा के शब्द इस बात का साफ सबूत देते हैं कि “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल” है।—इब्रानियों 4:12.
[पेज 18 पर चार्ट/तसवीर]
सा.यु.पू. 537 से 467 के दौरान राज करनेवाले फारसी राजा
कुस्रू महान (एज्रा 1:1) मौत सा.यु.पू. 530 में हुई
कैमबीसिस या क्षयर्ष (एज्रा 4:6) सा.यु.पू. 530-22
अर्तक्षत्र—बारदिय या गौमाता (एज्रा 4:7) सा.यु.पू. 522 (उसने सिर्फ सात महीने हुकूमत की, फिर उसे मार डाला गया)
दारा प्रथम (एज्रा 4:24) सा.यु.पू. 522-486
जरक्सीज़ या क्षयर्षa सा.यु.पू. 486-75 (उसने सा.यु.पू. 496-86 तक दारा प्रथम के साथ-साथ राज किया)
अर्तक्षत्र लॉन्गिमेनस (एज्रा 7:1) सा.यु.पू. 475-24
[फुटनोट]
a एज्रा की किताब में जरक्सीज़ का नाम नहीं है। बाइबल में एस्तेर की किताब में उसका ज़िक्र बतौर क्षयर्ष किया गया है।
[तसवीर]
क्षयर्ष
[पेज 17 पर तसवीर]
कुस्रू
[पेज 17 पर तसवीर]
‘कुस्रू बेलन’ में बंधुओं को अपने वतन लौटने की इजाज़त देने की नीति बतायी गयी है
[चित्र का श्रेय]
बेलन: Photograph taken by courtesy of the British Museum
[पेज 20 पर तसवीर]
क्या आप जानते हैं कि एज्रा किस तरह एक कुशल शिक्षक बना?