अध्याय दस
आत्मिक प्राणियों का हम पर क्या असर होता है
क्या स्वर्गदूत लोगों की मदद करते हैं?
दुष्टात्माओं ने इंसानों को अपने बस में कैसे किया है?
क्या हमें दुष्टात्माओं से डरना चाहिए?
1. हम स्वर्गदूतों के बारे में क्यों जानना चाहेंगे?
एक इंसान को अच्छी तरह जानने के लिए अकसर हम उसके परिवार के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। उसी तरह, अगर हम यहोवा को जानना चाहते हैं तो हमें उसके परिवार को अच्छी तरह जानना होगा। उसका परिवार स्वर्गदूतों से बना है, जिन्हें बाइबल ‘परमेश्वर के पुत्र’ कहती है। (अय्यूब 38:7) तो अब सवाल आता है कि परमेश्वर के ठहराए मकसद में स्वर्गदूतों की क्या भूमिका है? क्या इतिहास में हुई घटनाओं में उनका कोई हाथ रहा है? वे जो भूमिका निभा रहे हैं, क्या आपकी ज़िंदगी पर उसका कोई असर होता है? अगर हाँ, तो क्या?
2. स्वर्गदूतों को किसने बनाया, और उनकी गिनती कितनी है?
2 बाइबल में सैकड़ों बार स्वर्गदूतों का ज़िक्र आता है। आइए ऐसी कुछ आयतों पर गौर करें, जिनसे हम स्वर्गदूतों के बारे में और ज़्यादा सीख सकेंगे। स्वर्गदूतों को किसने बनाया? इसका जवाब कुलुस्सियों 1:16 में दिया गया है: “उसी [यीशु मसीह] में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की।” इसका मतलब है कि हर आत्मिक प्राणी को जिन्हें हम स्वर्गदूत कहते हैं, यहोवा परमेश्वर ने अपने पहिलौठे पुत्र के ज़रिए बनाया था। इन स्वर्गदूतों की गिनती कितनी है? बाइबल दिखाती है कि इनकी गिनती करोड़ों-करोड़ है और ये सभी बहुत शक्तिशाली हैं।—भजन 103:20.a
3. अय्यूब 38:4-7 हमें स्वर्गदूतों के बारे में क्या बताता है?
3 परमेश्वर के वचन, बाइबल की एक और किताब में बताया गया है कि जब पृथ्वी की नींव डाली गयी, तब ‘परमेश्वर के सब पुत्र जयजयकार करने लगे।’ (अय्यूब 38:4-7) इन आयतों से पता चलता है कि स्वर्गदूतों को इंसानों से बहुत पहले, यहाँ तक कि इस धरती की रचना से भी बहुत पहले बनाया गया था। बाइबल के इन हवालों से यह भी पता चलता है कि स्वर्गदूतों में भावनाएँ होती हैं, क्योंकि लिखा है कि वे “एक संग आनन्द से गाते थे।” यह भी गौर कीजिए कि ‘परमेश्वर के सब पुत्रों’ ने एक संग खुशियाँ मनायी थीं। जी हाँ, उस वक्त सभी स्वर्गदूतों में एकता थी और वे एक परिवार की तरह मिलकर यहोवा परमेश्वर की सेवा करते थे।
स्वर्गदूतों से मदद और हिफाज़त
4. बाइबल कैसे दिखाती है कि वफादार स्वर्गदूतों को इंसानों में दिलचस्पी है?
4 स्वर्गदूतों ने इंसान की सृष्टि होते देखी थी। तभी से वफादार स्वर्गदूतों ने यह दिखाया कि उन्हें इंसानों के बढ़ते परिवार में और परमेश्वर के मकसद के पूरा होने में गहरी दिलचस्पी है। (नीतिवचन 8:30, 31; 1 पतरस 1:11, 12) मगर जैसे-जैसे वक्त गुज़रता गया, उन्होंने देखा कि ज़्यादातर इंसान अपने प्यारे सिरजनहार की सेवा करने के बजाय उससे मुँह मोड़ लेते हैं। यह देखकर बेशक इन वफादार स्वर्गदूतों को गहरा दुःख पहुँचता होगा। मगर, जब कोई इंसान अपने बुरे काम छोड़कर यहोवा के पास लौट आता है, तो “स्वर्गदूतों . . . में आनन्द मनाया जाता है।” (लूका 15:10, NHT) इन्हें यहोवा के सेवकों की बहुत परवाह है, इसलिए यहोवा ने धरती पर अपने वफादार सेवकों की हिम्मत बँधाने और उनकी रक्षा करने के लिए बार-बार इन स्वर्गदूतों का इस्तेमाल किया है। (इब्रानियों 1:7, 14) आइए इसकी कुछ मिसालें देखें।
5. बाइबल से कुछ मिसालें बताइए जब स्वर्गदूतों ने परमेश्वर के सेवकों की मदद की।
5 प्राचीन समय में जब परमेश्वर सदोम और अमोरा के दुष्ट नगरों का नाश करने जा रहा था, तब दो स्वर्गदूतों ने धर्मी लूत और उसकी बेटियों की जान बचायी। वे उनका हाथ पकड़कर उन्हें सही-सलामत उस इलाके से बाहर ले गए। (उत्पत्ति 19:15, 16) इसके सदियों बाद, स्वर्गदूतों ने परमेश्वर के वफादार नबी दानिय्येल की जान बचायी। उसे शेरों की माँद में फेंक दिया गया था। लेकिन उसका बाल तक बाँका नहीं हुआ। क्यों? दानिय्येल खुद जवाब देता है: “मेरे परमेश्वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुंह को . . . बन्द कर रखा।” (दानिय्येल 6:22) पहली सदी में, एक स्वर्गदूत ने प्रेरित पतरस को कैद से आज़ाद कराया। (प्रेरितों 12:6-11) और जब यीशु ने धरती पर अपनी सेवा शुरू की, उस वक्त स्वर्गदूतों ने उसका साथ दिया और उसकी हिम्मत बंधायी। (मरकुस 1:13) और यीशु की मौत से कुछ ही समय पहले एक स्वर्गदूत ने उसके पास आकर उसे ‘सामर्थ दी।’ (लूका 22:43) यीशु को ज़िंदगी की ऐसी अहम और नाज़ुक घड़ियों में स्वर्गदूतों की मदद पाकर क्या ही हिम्मत मिली होगी!
6. (क) आज स्वर्गदूत परमेश्वर के लोगों की हिफाज़त कैसे करते हैं? (ख) अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?
6 आज स्वर्गदूत परमेश्वर के सेवकों के सामने प्रकट नहीं होते, ना ही वे हमें दिखायी देते हैं। फिर भी ये शक्तिशाली स्वर्गदूत मौजूद हैं और परमेश्वर के लोगों की हिफाज़त कर रहे हैं। वे खासकर उन्हें ऐसे खतरों से बचाते हैं, जिससे उनका आध्यात्मिक नुकसान हो सकता है। बाइबल कहती है: “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है।” (भजन 34:7) ये शब्द हमारी कितनी हिम्मत बँधाते हैं और हमें कितनी राहत पहुँचाते हैं। क्यों? क्योंकि अच्छे स्वर्गदूतों के अलावा दूसरे खतरनाक और दुष्ट स्वर्गदूत भी हैं, जो हमें तबाह करने पर तुले हैं। ये कौन हैं? कहाँ से आए हैं? और ये हमें किन तरीकों से नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं? जवाब के लिए, आइए हम दुनिया की शुरूआत में हुई घटनाओं पर ध्यान दें।
वे आत्मिक प्राणी जो हमारे दुश्मन हैं
7. लोगों को परमेश्वर से दूर ले जाने में शैतान किस हद तक कामयाब रहा?
7 जैसा हमने इस किताब के तीसरे अध्याय में सीखा था, एक स्वर्गदूत के मन में दूसरों पर हुकूमत करने की इच्छा ज़ोर पकड़ने लगी। अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए उसने परमेश्वर के खिलाफ बगावत कर दी। बाद में आगे चलकर यह स्वर्गदूत शैतान इब्लीस कहलाया। (प्रकाशितवाक्य 12:9) हव्वा को बहकाने के बाद अगले 1,600 साल तक वह करीब-करीब हर इंसान को परमेश्वर से दूर ले जाने में कामयाब रहा। मगर हाबिल, हनोक और नूह जैसे चंद वफादार लोग उसके बहकावे में नहीं आए।—इब्रानियों 11:4, 5, 7.
8. (क) कुछ स्वर्गदूत, दुष्टात्माएँ कैसे बन गए? (ख) नूह के दिनों में जलप्रलय से बचने के लिए, दुष्टात्माओं को मजबूरन क्या करना पड़ा?
8 नूह के ज़माने में कुछ और स्वर्गदूतों ने यहोवा के खिलाफ बगावत कर दी। परमेश्वर के स्वर्गीय परिवार में अपनी जगह छोड़कर, वे धरती पर आ गए और इंसान का शरीर धारण कर लिया। किस लिए? उत्पत्ति 6:2 में हम पढ़ते हैं: “परमेश्वर के पुत्रों ने मनुष्य की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्हों ने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया।” मगर यहोवा ने इन स्वर्गदूतों की ऐसी करतूतों को और वे जिस कदर इंसानों को भ्रष्ट कर रहे थे उसे ज़्यादा दिन तक बरदाश्त नहीं किया। उसने धरती पर एक महाजलप्रलय लाकर सभी दुष्टों का सफाया कर दिया और सिर्फ उन लोगों को ज़िंदा रखा जो उसके वफादार सेवक थे। (उत्पत्ति 7:17, 23) जलप्रलय से बचने के लिए उन बागी स्वर्गदूतों को अपना इंसानी शरीर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा और वे अपनी आत्मिक देह में स्वर्ग लौट गए। ये दुष्ट दूत इब्लीस की तरफ हो चुके थे, इसलिए वह इन ‘दुष्टात्माओं का सरदार’ बन गया।—मत्ती 9:34.
9. (क) जब दुष्टात्माएँ स्वर्ग लौटीं, तो उनका क्या हुआ? (ख) अब हम दुष्टात्माओं के बारे में क्या जाँच करनेवाले हैं?
9 परमेश्वर का हुक्म तोड़नेवाली ये दुष्टात्माएँ जब स्वर्ग लौटीं, तो उन्हें भी अपने सरदार शैतान की तरह परमेश्वर के परिवार से बेदखल कर दिया गया। (2 पतरस 2:4, NHT, फुटनोट) आज ये दुष्ट दूत भले ही इंसानी शरीर धारण न कर सकते हों, मगर ये इंसानों को अपने बस में करके उनसे बुरे-बुरे काम करवा सकते हैं। दरअसल, इन्हीं दुष्टात्माओं की मदद से आज शैतान ‘सारे संसार को भरमा रहा है।’ (प्रकाशितवाक्य 12:9; 1 यूहन्ना 5:19) वह कैसे? दुष्टात्माएँ ऐसे तरीके इस्तेमाल करती हैं, जो खास तौर पर लोगों को गुमराह करने के लिए ही तैयार किए गए हैं। आइए ऐसे कुछ तरीकों की जाँच करें।
दुष्टात्माएँ कैसे गुमराह करती हैं
10. भूतविद्या क्या है?
10 लोगों को गुमराह करने के लिए दुष्टात्माएँ भूतविद्या का इस्तेमाल करती हैं। भूतविद्या क्या है? भूतविद्या में या तो सीधे-सीधे या फिर किसी ओझा या तांत्रिक के ज़रिए दुष्टात्माओं से संपर्क किया जाता है। लेकिन बाइबल कड़े शब्दों में भूतविद्या की निंदा करती है और हमें खबरदार करती है कि हम इससे जुड़ी हर चीज़ से दूर रहें। (गलतियों 5:19-21) जैसे एक मछुवारा मछलियाँ पकड़ने के लिए चारा इस्तेमाल करता है, उसी तरह दुष्टात्माएँ इंसानों को अपने बस में करने के लिए भूतविद्या का इस्तेमाल करती हैं। और जैसे एक मछुवारा अलग-अलग किस्म का चारा डालता है, उसी तरह दुष्टात्माएँ भी हर किस्म के लोगों को फँसाने के लिए भूतविद्या के अलग-अलग रूप इस्तेमाल करती हैं।
11. शकुन-विचारना क्या है, और हमें क्यों उससे दूर रहना चाहिए?
11 इसका एक रूप है, शकुन-विचारना। शकुन-विचारना क्या है? इसमें भविष्य जानने या ऐसी किसी बात का पता लगाने की कोशिश की जाती है, जिसके बारे में हमें नहीं मालूम। शकुन-विचारने के कुछ रूप हैं, ज्योतिष-विद्या, टैरो ताश के पत्ते, काँच की गेंद में देखना, हाथ की रेखाएँ पढ़ना, स्वप्न-फल के ज़रिए शुभ-अशुभ या रहस्यमयी चिन्हों का अर्थ जानना। बहुत-से लोगों को लगता है कि भविष्य के बारे में पूछताछ करने में कोई नुकसान नहीं है। मगर बाइबल दिखाती है कि भविष्य बतानेवालों के अंदर दुष्टात्माएँ काम करती हैं। मिसाल के लिए, प्रेरितों 16:16-18 (NHT) बताता है कि एक लड़की के अंदर “भविष्य बताने वाली आत्मा” थी, जिसकी मदद से वह ‘शकुन विचारा’ करती थी। लेकिन जब उस लड़की में से यह दुष्टात्मा निकाल दी गयी, तो फिर वह भविष्य बताने के काबिल नहीं रही।
12. मरे हुओं से बात करने की कोशिश करना क्यों खतरनाक है?
12 दुष्टात्माएँ एक और तरीके से लोगों को गुमराह करती हैं। वे हमें मरे हुओं से बात करने के लिए उकसाती हैं। जिनका कोई अपना मर जाता है, वे अकसर इस फंदे में फँस जाते हैं। वे अपने मरे हुओं से बात करने के लिए ओझाओं के पास जाते हैं। हो सकता है, ये ओझा उनके मरे हुए अज़ीज़ों की आवाज़ में बात करें या उनकी तरफ से उन्हें कोई खास संदेश दें। इससे लोगों को यकीन हो जाता है कि उनके मरे हुए अभी-भी किसी रूप में ज़िंदा हैं और उनसे बात करने से उनका गम दूर हो सकता है। मगर इस तरह का “दिलासा” न सिर्फ एक धोखा है, बल्कि बहुत खतरनाक भी है। क्यों? क्योंकि लोग जो आवाज़ सुनते हैं, वह असल में दुष्टात्माओं की आवाज़ होती है, जो मरे हुओं की आवाज़ की नकल करती हैं और उनकी आदतों या कामों के बारे में ओझाओं को बताती हैं। (1 शमूएल 28:3-19) मगर जैसा हमने छठे अध्याय में सीखा था, मरने पर एक इंसान का अस्तित्त्व पूरी तरह मिट जाता है। (भजन 115:17) इसलिए “जो मृतकों को बुलाता” है वह दरअसल दुष्टात्माओं के जाल में फँस चुका है और परमेश्वर की मरज़ी के खिलाफ काम कर रहा है। (व्यवस्थाविवरण 18:10, 11, NHT; यशायाह 8:19) इसलिए खबरदार! दुष्टात्माएँ आपको फँसाने के लिए यह जो चारा डाल रही हैं उससे दूर रहिए।
13. जो पहले दुष्टात्माओं के खौफ में जीते थे, वे क्या कर पाए हैं?
13 दुष्टात्माएँ न सिर्फ लोगों को गुमराह करती हैं बल्कि उन्हें डराती भी हैं। आज शैतान और उसके दुष्ट दूत जानते हैं कि उनका “थोड़ा ही समय और बाकी” रह गया है और बहुत जल्द उन्हें कैद में डाल दिया जाएगा, जहाँ उनका कोई ज़ोर नहीं चलेगा। इसलिए अब वे पहले से ज़्यादा खूँखार बन चुके हैं। (प्रकाशितवाक्य 12:12, 17) फिर भी, आज दुनिया में ऐसे हज़ारों लोग मौजूद हैं जिन्होंने खुद को इनकी गिरफ्त से छुड़ा लिया है। अब वे पहले की तरह रात-दिन दुष्टात्माओं के खौफ में नहीं जीते। वे खुद को छुड़ाने में कैसे कामयाब हुए? जो इंसान भूतविद्या में उलझा हुआ है, वह इससे बाहर निकलने के लिए क्या कर सकता है?
दुष्टात्माओं का विरोध कैसे करें
14. इफिसुस के मसीहियों की तरह, हम दुष्टात्माओं के चंगुल से कैसे आज़ाद हो सकते हैं?
14 बाइबल न सिर्फ यह बताती है कि दुष्टात्माओं का विरोध कैसे करें, बल्कि यह भी कि उनके चंगुल से कैसे आज़ाद हों। आइए पहली सदी के उन मसीहियों की मिसाल पर गौर करें, जो इफिसुस शहर में रहते थे। उनमें से कुछ लोग, मसीही बनने से पहले भूतविद्या में उलझे हुए थे। जब उन्होंने इन कामों को छोड़ने का फैसला किया तब उन्होंने क्या किया? बाइबल बताती है: “जादू करनेवालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पोथियां इकट्ठी करके सब के साम्हने जला दीं।” (प्रेरितों 19:19) जी हाँ, इन नए मसीहियों ने जादू-टोने की किताबों को जलाकर ऐसे हर इंसान के लिए एक बढ़िया मिसाल कायम की है, जो आज दुष्टात्माओं का विरोध करना चाहता है। इसलिए जो यहोवा की सेवा करना चाहता है, उसे भूतविद्या से जुड़ी हर चीज़ को नष्ट कर देना चाहिए। भूतविद्या को बढ़ावा देनेवाली किताबें, पत्रिकाएँ, फिल्में, संगीत और पोस्टरों को नष्ट कर देना चाहिए, फिर चाहे वे कितने ही लुभावने और मज़ेदार क्यों न लगते हों। इतना ही नहीं, ऐसे तावीज़ों, धागों और दूसरी ऐसी चीज़ों को भी नष्ट कर देना चाहिए जो बुरी नज़र से या खतरे से बचने के लिए पहनी जाती हैं।
15. दुष्टता की आत्मिक सेनाओं का विरोध करने के लिए हमें और क्या करने की ज़रूरत होगी?
15 इफिसुस के मसीहियों ने जब जादू-टोने की किताबें जलायीं, तो उसके कुछ साल बाद प्रेरित पौलुस ने उन्हें लिखा: “हमारा यह मल्लयुद्ध . . . दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है।” (इफिसियों 6:12) गौर कीजिए, पौलुस ने कहा कि दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से उनका संघर्ष अब भी जारी है। यह दिखाता है कि दुष्टात्माओं ने हार नहीं मानी थी। वे अब भी उन मसीहियों को अपने बस में करना चाहती थीं। तो फिर, उनका विरोध करने के लिए मसीहियों को और क्या करने की ज़रूरत थी? पौलुस ने कहा: “विश्वास की [बड़ी] ढाल लेकर स्थिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट [शैतान] के सब जलते हुए तीरों को बुझा सको।” (इफिसियों 6:16) हमारे विश्वास की ढाल जितनी ज़्यादा मज़बूत होगी, हम उतनी कड़ाई से दुष्टता की आत्मिक सेनाओं का विरोध कर पाएँगे।—मत्ती 17:20.
16. हम अपना विश्वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं?
16 हम अपना विश्वास कैसे मज़बूत कर सकते हैं? परमेश्वर के वचन, बाइबल का अध्ययन करने से। आइए एक मिसाल लें। एक दीवार की मज़बूती उसकी बुनियाद की मज़बूती पर निर्भर करती है। उसी तरह, हमारे विश्वास की मज़बूती उसकी बुनियाद पर निर्भर करती है और वह बुनियाद है, परमेश्वर के वचन का सही ज्ञान। अगर हम हर दिन बाइबल पढ़ें और उसका अध्ययन करें, तो हमारा विश्वास मज़बूत होगा और एक मज़बूत दीवार की तरह दुष्टात्माओं से हमारी रक्षा करने के लिए एक ढाल का काम करेगा।—1 यूहन्ना 5:5.
17. दुष्टात्माओं का विरोध करने के लिए कौन-सा एक और कदम उठाना ज़रूरी है?
17 दुष्टात्माओं का विरोध करने के लिए इफिसुस के मसीहियों को एक और कदम उठाने की ज़रूरत थी, क्योंकि उनका शहर भूतविद्या और जादू-टोने से भरा हुआ था। इसलिए अपनी हिफाज़त करने के लिए उन्हें एक और चीज़ की ज़रूरत थी। उसका ज़िक्र करते हुए, पौलुस ने उन्हें बताया: “हर समय और हर प्रकार से आत्मा में प्रार्थना, और बिनती करते रहो।” (इफिसियों 6:18) आज हम भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो भूतविद्या और जादू-टोने से भरी हुई है। इसलिए दुष्टात्माओं का कामयाबी से मुकाबला करने के लिए यहोवा से हिफाज़त के लिए बिनती करना बहुत ज़रूरी है। बेशक, हमें प्रार्थना में यहोवा का नाम लेना चाहिए। (नीतिवचन 18:10) हमें बार-बार परमेश्वर से यह प्रार्थना करते रहना चाहिए कि वह हमें “उस दुष्ट,” शैतान इब्लीस से ‘बचाए।’ (मत्ती 6:13, NHT, फुटनोट) यहोवा सच्चे दिल से की गयी ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब ज़रूर देगा।—भजन 145:19.
18, 19. (क) हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि दुष्टात्माओं के खिलाफ लड़ाई में जीत हमारी होगी? (ख) अगले अध्याय में किस सवाल का जवाब दिया जाएगा?
18 यह सच है कि दुष्टात्माएँ बहुत खतरनाक हैं, लेकिन अगर हम इब्लीस का विरोध करें और यहोवा की मरज़ी पूरी करने के ज़रिए उसके करीब आएँ तो हमें उनसे डरने की ज़रूरत नहीं। (याकूब 4:7, 8) याद रखिए कि दुष्टात्माओं की ताकत की एक सीमा है। नूह के दिनों में उन्हें कैद की सज़ा मिल चुकी है, और आनेवाले वक्त में उन्हें आखिरी न्यायदंड दिया जाएगा। (यहूदा 6) यह भी मत भूलिए कि हमारी हिफाज़त करने के लिए यहोवा के शक्तिशाली स्वर्गदूत हमारे साथ हैं। (2 राजा 6:15-17) इन स्वर्गदूतों की बड़ी ख्वाहिश है कि हम दुष्टात्माओं का विरोध करने में कामयाब हों। वे मानो हमारा हौसला बढ़ा रहे हैं कि हम हिम्मत न हारें। तो आइए हम यहोवा के और वफादार आत्मिक प्राणियों से बने उसके परिवार के करीब रहें। यह भी ज़रूरी है कि हम किसी भी किस्म की भूतविद्या से कोई भी नाता न रखें और हमेशा परमेश्वर के वचन की सलाह पर अमल करें। (1 पतरस 5:6, 7; 2 पतरस 2:9) अगर हम ऐसा करते रहेंगे, तो बेशक इन दुष्टात्माओं के खिलाफ लड़ाई में जीत हमारी होगी।
19 लेकिन अब सवाल यह है कि परमेश्वर ने इन दुष्टात्माओं को और बुराई को अब तक क्यों बरदाश्त किया है, जिसकी वजह से लोगों को इतने सारे दुःख झेलने पड़ रहे हैं? इस सवाल का जवाब अगले अध्याय में दिया जाएगा।
a धर्मी स्वर्गदूतों के बारे में प्रकाशितवाक्य 5:11 कहता है: ‘उनकी गिनती लाखों और करोड़ों की थी।’ जी हाँ, बाइबल से पता चलता है कि लाखों-करोड़ों स्वर्गदूत बनाए गए थे।