सृष्टि कहती है, “वे निरुत्तर हैं”
“क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।—रोमियों १:२०.
१, २. (क) अय्यूब ने यहोवा से कौन-सी कटु शिकायत की? (ख) अय्यूब ने बाद में कौन-सी बात वापस ली?
प्राचीन समय का एक व्यक्ति, अय्यूब, जिसकी यहोवा परमेश्वर के प्रति अटूट ख़राई थी, शैतान द्वारा भयानक रीति से परखा गया था। इब्लीस ने अय्यूब की सब भौतिक सम्पत्ति छीन ली थी, उसके बेटे-बेटियों की हत्या कर दी थी, और उसे एक घृणित रोग से पीड़ित किया था। अय्यूब ने सोचा कि परमेश्वर उस पर ये विपत्तियाँ ला रहा था, और उसने यहोवा से कटु रीति से शिकायत की: “क्या तुझे अन्धेर करना, . . . भला लगता है? . . . कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है? तुझे तो मालूम ही है, कि मैं दुष्ट नहीं हूं।”—अय्यूब १:१२-१९; २:५-८; १०:३, ६, ७.
२ इसके कुछ समय बाद, परमेश्वर को कहे अय्यूब के शब्दों से एक पूर्ण परिवर्तन प्रतिबिम्बित हुआ: “मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा, अर्थात् जो बातें मेरे लिये अधिक कठिन और मेरी समझ से बाहर थीं जिनको मैं जानता भी नहीं था। मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं; इसलिये मुझे अपने ऊपर घृणा आती है, और मैं धूलि और राख में पश्चात्ताप करता हूं।” (अय्यूब ४२:३, ५, ६) क्या हुआ था जिससे अय्यूब की प्रतिक्रिया में बदलाव आया?
३. सृष्टि के संबंध में अय्यूब को कौन-सा नया दृष्टिकोण प्राप्त हुआ?
३ अंतरिम समय में, यहोवा ने आँधी में से अय्यूब का सामना किया था। (अय्यूब ३८:१) उसने अय्यूब से प्रश्न पर प्रश्न पूछे थे। ‘जब मैं ने पृथ्वी की नेव डाली, तब तू कहां था? किस ने द्वार मूंदकर समुद्र को रोक दिया और उसकी लहरों पर सीमाएँ लगाईं कि वे कहाँ तक आ सकती हैं? क्या तू पृथ्वी पर बादलों से मेंह बरसा सकता है? क्या तू घास उगा सकता है? क्या तू राशियों का गुच्छा गूंथ सकता है और उन्हें उनके मार्ग पर चला सकता है?’ अय्यूब की पुस्तक के अध्याय ३८ से ४१ में, यहोवा ने अय्यूब पर इन प्रश्नों से तथा अपनी सृष्टि के बारे में बहुत-से अन्य प्रश्नों से बौछार की। उसने अय्यूब को दिखाया कि परमेश्वर और मनुष्य के बीच कितना विशाल अंतर है। अय्यूब को शक्तिशाली रीति से परमेश्वर की सृष्टि में प्रतिबिम्बित बुद्धि और शक्ति की याद दिलाई गई, ऐसी चीज़ें जिन्हें करना या यहाँ तक कि समझना भी अय्यूब की शक्ति से बाहर था। अय्यूब, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सृष्टि द्वारा प्रकट परमेश्वर की विस्मयकारी शक्ति और अविश्वसनीय बुद्धि से अभिभूत, यह सोचकर चकित हुआ कि उसने यहोवा के साथ बहस करने की हिम्मत कैसे की। इसलिए उसने कहा: “मैं ने कानों से तेरा समाचार सुना था, परन्तु अब मेरी आंखें तुझे देखती हैं।”—अय्यूब ४२:५.
४. हमें यहोवा की सृष्टि से क्या समझ लेना चाहिए, और उन व्यक्तियों की क्या स्थिति है जो इसे समझने से चूक जाते हैं?
४ कई सदियों के पश्चात्, एक उत्प्रेरित बाइबल लेखक ने इस बात की पुष्टि की कि यहोवा के गुण उसकी सृष्टि से देखे जा सकते हैं। प्रेरित पौलुस ने रोमियों १:१९, २० में लिखा: “परमेश्वर के विषय का ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है। क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात् उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहां तक कि वे निरुत्तर हैं।”
५. (क) मनुष्य में कौन-सी जन्मजात ज़रूरत होती है, और कुछ लोग इसे अनुचित रीति से कैसे पूरा करते हैं? (ख) अथेने में यूनानी लोगों के लिए पौलुस की क्या सलाह थी?
५ एक उच्चतर शक्ति की उपासना करने की जन्मजात ज़रूरत के साथ मनुष्य को सृजा गया था। डॉ. सी. जी. जुंग ने, अपनी पुस्तक द अंडिस्कवर्ड सॅल्फ़ (The Undiscovered Self), में इस ज़रूरत का उल्लेख इस प्रकार किया कि “एक सहज-वृत्तिक मनोवृत्ति जो मनुष्य में विशेष है, और इसका प्रदर्शन पूरे मानव इतिहास में देखा जा सकता है।” प्रेरित पौलुस ने उपासना के संबंध में मनुष्य के जन्मजात आवेग की बात की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि क्यों अथेने में यूनानी लोगों ने इतने सारे ज्ञात और अज्ञात देवताओं के नाम पर इतनी सारी मूर्तियाँ और वेदियाँ बनाईं। पौलुस ने उनके लिए सच्चे परमेश्वर की पहचान भी करवाई और दिखाया कि उन्हें सच्चे परमेश्वर यहोवा को ढूंढ़ने के द्वारा इस स्वाभाविक आवेग को सही रीति से संतुष्ट करना चाहिए, “कदाचित उसे टटोलकर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं!” (प्रेरितों १७:२२-३०) हम जितने उसकी सृष्टि के निकट हैं, उतने ही हम उसके गुणों और विशेषताओं को समझने के निकट हैं।
अद्भुत जल-चक्र
६. जल-चक्र में हम यहोवा के कौन-से गुण देखते हैं?
६ उदाहरण के लिए, ढेर-से पानी को बाँधे रहने में रोयेंदार बादलों की योग्यता में हम यहोवा के कौन-से गुण देखते हैं? हम उसके प्रेम और बुद्धि को देखते हैं, क्योंकि वह इस प्रकार पृथ्वी के लाभ के लिए वर्षा देने का प्रबंध करता है। वह सभोपदेशक १:७ में उल्लेखित जल-चक्र की अद्भुत अभिकल्पना द्वारा ऐसा करता है: “सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।” यह किस प्रकार से होता है, इस विषय में बाइबल में अय्यूब की पुस्तक सुस्पष्ट है।
७. समुद्र से बादलों तक पानी कैसे पहुँचता है, और रोयेंदार बादल कैसे ढेर-सा पानी बाँध सकते हैं?
७ जब नदियां समुद्र में जाती हैं, वे वहाँ नहीं रहतीं। यहोवा “जल की बूंदें ऊपर को खींच लेता है, वे कुहरे से मेंह होकर टपकती हैं।” क्योंकि पानी भाप के रूप में और अंत में हल्के कोहरे के रूप में होता है, “घटाएं ऊपर स्थिर हैं, उसके संपूर्ण कौशल का आश्चर्यकर्म।” (अय्यूब ३६:२७; ३७:१६; द न्यू इंग्लिश बाइबल) बादल जब तक कोहरे के रूप में होते हैं, वे हवा में बहते रहते हैं: “वह जल को अपने बादलों में बान्धे रखता है—कोहरा उसके बोझ से नहीं फटता।” या जैसे एक अन्य अनुवाद कहता है: “वह पानी को घने बादलों में बंद रखता है, और बादल इसके भार से नहीं फटते।”—अय्यूब २६:८, द जरूसलेम बाइबल; ऐन.ई. (NE).
८. किन विविध चरणों द्वारा “आकाश के कुप्पों” को उण्डेला जाता है और जल-चक्र पूरा किया जाता है?
८ “कौन आकाश के कुप्पों को उण्डेल सकता है,” ताकि पृथ्वी पर मेंह बरसाए? (अय्यूब ३८:३७) वही जिसके संपूर्ण कौशल ने उन्हें वहाँ रखा है, जो ‘कुहरे से मेंह को टपकाता है।’ और कोहरे से मेंह टपकाने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है? सूक्ष्म घन पदार्थ की ज़रूरत होती है, जैसे कि धूल या लवण के कण—हवा के प्रत्येक त्रिघाती सेंटिमीटर में हज़ारों से लाखों की संख्या में—ताकि ये बूंदों के बनने के लिए केंद्रक के तौर पर काम कर सकें। यह अनुमान लगाया गया है कि दस लाख छोटी-छोटी मेघ-बूंदों से वर्षा की एक साधारण बूंद बनती है। केवल यह सब होने के बाद ही बादल अपना पानी पृथ्वी पर डाल सकते हैं, जिससे नदियाँ बनती हैं और ये नदियाँ पानी को समुद्र में लौटा देती हैं। इस प्रकार जल-चक्र पूरा होता है। और क्या यह सब कुछ संयोग से हो गया? सच में, “निरुत्तर”!
सुलैमान की बुद्धि का एक स्रोत
९. सुलैमान को एक प्रकार की चींटी में क्या ख़ास बात नज़र आई?
९ प्राचीन दुनिया में, सुलैमान की बुद्धि अतुलनीय थी। उसकी ज़्यादातर बुद्धि यहोवा की सृष्टि से संबद्ध थी: “[सुलैमान] ने लबानोन के देवदारुओं से लेकर भीत में से उगते हुए जूफा तक के सब पेड़ों की चर्चा और पशुओं पक्षियों और रेंगनेवाले जन्तुओं और मछलियों की चर्चा की।” (१ राजा ४:३३) इसी राजा सुलैमान ने लिखा: “हे आलसी, च्यूंटियों के पास जा; उनके काम पर ध्यान दे, और बुद्धिमान हो। उनके न तो कोई न्यायी होता है, न प्रधान, और न प्रभुता करनेवाला, तौभी वे अपना आहार धूपकाल में संचय करती हैं, और कटनी के समय अपनी भोजन-वस्तु बटोरती हैं।”—नीतिवचन ६:६-८.
१०. फ़सल एकत्रित करनेवाली चींटियों के बारे में सुलैमान के दृष्टांत की यथार्थता कैसे सिद्ध हुई?
१० किसने चींटियों को ग्रीष्म काल में भोजन बटोरना सिखाया ताकि शीत काल में उनका गुज़ारा हो सके? सदियों तक सुलैमान के इस वृत्तांत की यथार्थता पर संदेह किया गया कि ये चींटियाँ बीज को एकत्रित करके शीत काल के लिए बटोरती हैं। किसी को उनके अस्तित्व का सबूत नहीं मिला था। लेकिन १८७१ में, एक ब्रीटिश प्रकृतिविज्ञानी को उनके भूमिगत अन्नागार मिले, और उनके बारे में बाइबल की बात सिद्ध हुई। परन्तु इन चींटियों को पूर्वदृष्टि कैसे मिली कि ये ग्रीष्म काल में ही जान जाती हैं कि आगे शीत काल है? तथा इसके बारे में क्या करना चाहिए, इसकी बुद्धि उन्हें कैसे मिली? बाइबल ख़ुद समझाती है कि यहोवा की बहुत-सी सृष्टि में उनके अपने बचाव के लिए बुद्धि की योजना डाली गई है। फ़सल एकत्रित करनेवाली चींटियों को अपने सृष्टिकर्ता से यह आशीष मिली है। नीतिवचन ३०:२४ (NW) इसके बारे में कहता है: “वे सहज वृत्ति से बुद्धिमान हैं।” यह कहना कि ऐसी बुद्धि संयोग से आ सकती है, तर्क विरुद्ध है; इसके पीछे एक बुद्धिमान सृष्टिकर्ता का हाथ है, इस बात को न समझना निरुत्तर है।
११. (क) विशाल सिक्वइया वृक्ष इतना अद्भुत क्यों है? (ख) प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में पहली अभिक्रिया के बारे में कौन-सी इतनी आश्चर्यजनक बात है?
११ एक विशाल सिक्वइया वृक्ष के नीचे खड़ा एक व्यक्ति, इसकी विराट् भव्यता पर चकित होकर, उचित रीति से अपने आप को एक छोटी चींटी के समान महसूस करता है। इस वृक्ष का आकार अति विशाल है: ९० मीटर लंबा, व्यास में ११ मीटर, छाल ०.६ मीटर मोटी, जड़ें तीन या चार एकड़ ज़मीन तक फैली हुईं। तब भी, इन सब बातों से भी अधिक शानदार है इस वृक्ष के वर्धन में सम्मिलित रसायन और भौतिकी। इसकी पत्तियाँ जड़ों से पानी, हवा से कार्बन डाइऑक्साइड, और सूर्य से ऊर्जा लेकर शर्करा निर्मित करती हैं और ऑक्सीजन छोड़ती हैं—यह प्रक्रिया जिसे प्रकाश-संश्लेषण कहा जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ ७० रसायनिक अभिक्रियाएँ शामिल हैं, जिन में से सबके बारे में हमें समझ प्राप्त नहीं है। आश्चर्य की बात है कि पहली अभिक्रिया सूर्य से प्राप्त प्रकाश पर निर्भर करती है जिसका रंग और तरंग-दैर्घ्य बिलकुल सही है; नहीं तो प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया को शुरू करने के लिए क्लोरोफ़िल अणु इसका अवशोषण न कर पाते।
१२. (क) पानी के प्रयोग में सिक्वइया वृक्ष के बारे में कौन-सी बात अद्भुत है? (ख) पौधों के वर्धन में नाइट्रोजन क्यों ज़रूरी है, और इसका चक्र कैसे पूरा होता है?
१२ यह भी एक अद्भुत तथ्य है कि यह वृक्ष जड़ से अत्यधिक पानी को खींचकर इस ९० मीटर ऊँचे विशालकाय वृक्ष के सिरे तक पहुँचा सकता है। प्रकाश-संश्लेषण के लिए जितना पानी ज़रूरी है उससे अधिक पानी ऊपर खींचा जाता है। शेष पानी पत्तियों के ज़रिये वाष्पोत्सर्जन (transpiration) द्वारा हवा में छोड़ा जाता है। इससे वृक्ष जल-शीतित होता है, कुछ-कुछ हमारा पसीने द्वारा शीतित होने के समान। वर्धन के लिए प्रोटीन बनाने के लिए शर्करा, या कार्बोहाइड्रेट में नाइट्रोजन मिलाने की ज़रूरत होती है। पत्ती हवा से लिए गैसीय नाइट्रोजन का प्रयोग नहीं कर सकती है, लेकिन मिट्टी के जीव मिट्टी में पाए जानेवाले गैसीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट और नाइट्राइट में बदल सक हैं जो कि पानी में घुलनशील हैं। तब ये जड़ से पत्तियों तक पहुँचते हैं। जब पौधे और पशु जिन्होंने अपने प्रोटीन में इस नाइट्रोजन को प्रयोग किया था, मरकर सड़ जाते हैं, तब नाइट्रोजन मुक्त होता है, और इस प्रकार नाइट्रोजन चक्र पूरा होता है। इस सब में चकरा देनेवाली जटिलता शामिल है। यह संयोग से हो सकनेवाला कार्य नहीं है।
बिना वाणी या शब्दों या आवाज़ के, वे बोलते हैं!
१३. तारामय आकाश ने दाऊद को क्या बताया, और वे आज भी हमें क्या बताते हैं?
१३ एक तारामय रात्रि आकाश, जो देखनेवालों को श्रद्धा से भर देता है, सृष्टिकर्ता का क्या ही विस्मयकारी प्रतिबिम्ब है! भजन ८:३, ४ में दाऊद ने अपना महसूस किया हुआ विस्मय व्यक्त किया: “जब मैं आकाश को, जो तेरे हाथों का कार्य है, और चंद्रमा और तारागण को जो तू ने नियुक्त किए हैं, देखता हूं; तो फिर मनुष्य क्या है कि तू उसका स्मरण रखे, और आदमी क्या है कि तू उसकी सुधि ले?” जिन लोगों के पास देखने के लिए आँख, सुनने के लिए कान, और महसूस करने के लिए हृदय है, उन से ये तारामय आकाश बात करते हैं, जैसे उन्होंने दाऊद से भी की थी: “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है।”—भजन १९:१-४.
१४. तारों में से एक तारे की विशाल ऊर्जा हमारे लिए क्यों अत्यावश्यक है?
१४ तारों के विषय में हमारा जितना ज्ञान बढ़ता है, उतने ही ज़ोर से वे हम से बात करते हैं। यशायाह ४०:२६ में, हमें उनकी अत्यधिक ऊर्जा पर ध्यान देने के लिए निमंत्रण मिलता है: “अपनी आंखें ऊपर उठाकर देखो, किस ने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम लेलेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता।” उन तारों में से एक, हमारे सूर्य, की अत्यधिक ऊर्जा और गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी को उसके परिक्रमा पथ पर स्थिर रखते हैं, पौधों को उगाते हैं, हमें गर्मी देते हैं, और इस पृथ्वी पर सब जीवन संभव बनाते हैं। प्रेरित पौलुस ने प्रेरणा के अधीन कहा: “एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है।” (१ कुरिन्थियों १५:४१) विज्ञान को हमारे सूर्य जैसे पीले तारों के बारे में ज्ञान है, और साथ ही नीले तारे, लाल विशाल तारे, श्वेत छोटे तारे, न्यूरॉन तारे, और विस्फोट होते अधिनव तारों के बारे में ज्ञान है, जो अबोध्य शक्ति मुक्त करते हैं।
१५. बहुत-से आविष्कारकों ने सृष्टि से क्या सीखा है और उन्होंने कैसे उनकी नक़ल करने की कोशिश की है?
१५ कई आविष्कारकों ने सृष्टि से ज्ञान लिया है और जीवित प्राणियों की योग्यताओं की नक़ल करने की कोशिश की है। (अय्यूब १२:७-१०) सृष्टि की केवल कुछ उल्लेखनीय विशेषताओं पर ध्यान दीजिए। समुद्री पक्षी जिन में समुद्र-जल को लवणरहित करनेवाली ग्रंथियाँ हैं; मछली और ईल मछली जो विद्युत् पैदा करती हैं; मछली, कृमि, और कीट जो संदीप्ति उत्पन्न करते हैं; चमगादड़ और डॉल्फ़िन जो सोनार का प्रयोग करते हैं; भिड़ जो काग़ज़ बनाती हैं; चींटियाँ जो सेतु निर्माण करती हैं; ऊदबिलाव जो बाँध निर्माण करते हैं; सांप जिनमें आंतरिक थर्मामीटर होता है; तालाबी कीट जो साँस लेनेवाली नली और निमज्जन घंटियों का प्रयोग करते हैं; ऑक्टोपस जो जेट चालन का प्रयोग करते हैं; मकड़ियाँ जो सात प्रकार के जाल बनाती हैं और छतद्वार, जाली, और कमंद बनाती हैं और जिनके बच्चे गुब्बारे उड़ानेवाले होते हैं, जो बड़ी ऊँचाई पर हज़ारों किलोमीटर सफ़र करते हैं; मछली और कठिनिवर्ग (crustaceans) जो पनडुब्बी के समान प्लवन हौज़ का प्रयोग करते हैं; और पक्षी, कीट, समुद्री कच्छप, मछली, और स्तनधारी जो प्रव्रजन के अद्भुत कमाल करते हैं—ऐसी योग्यताएँ जिन्हें समझाना विज्ञान की शक्ति के बाहर है।
१६. विज्ञान को पता लगने से हज़ारों साल पहले, कौन-सी वैज्ञानिक सच्चाइयाँ बाइबल में लेखबद्ध की गईं?
१६ विज्ञान को वैज्ञानिक सच्चाइयों का ज्ञान होने से हज़ारों साल पहले, ये बातें बाइबल में लेखबद्ध की गईं। पासटर से हज़ारों साल पहले मूसा की व्यवस्था (सा.यु.पू. १६वीं सदी) ने रोगाणुओं के बारे में ज्ञान प्रतिबिम्बित किया। (लैव्यव्यवस्था, अध्याय १३, १४) सा.यु.पू. १७वीं सदी में, अय्यूब ने कहा: “वह . . . बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।” (अय्यूब २६:७) मसीह से एक हज़ार साल पहले, सुलैमान ने रुधिर परिवहन के विषय में लिखा; चिकित्सीय विज्ञान को केवल १७वीं सदी में इसके बारे में ज्ञान हुआ। (सभोपदेशक १२:६) उससे पहले, भजन १३९:१६ ने आनुवंशिक कूट का ज्ञान प्रतिबिम्बित किया: “तेरी आंखों ने मेरे बेडौल तत्व को देखा; और मेरे सब अंग जो दिन दिन बनते जाते थे वे रचे जाने से पहिले तेरी पुस्तक में लिखे हुए थे।” सा.यु.पू. ७वीं सदी में, इससे पहले कि प्रकृतिविज्ञानियों को प्रव्रजन के बारे में समझ मिली, यिर्मयाह ने इस प्रकार लिखा, जैसे यिर्मयाह ८:७ में लिपिबद्ध है: “आकाश में लगलग भी अपने नियत समयों को जानता है, और पण्डुकी, सूपाबेनी, और सारस भी अपने आने का समय रखते हैं।”
वह “सृष्टिकर्ता” जिसे विकासवादी चुन रहे हैं
१७. (क) कुछ लोग जो सृष्ट अद्भुत चीज़ों के पीछे एक बुद्धिमान सृष्टिकर्ता के हाथ को पहचानने से इन्कार करते हैं, उनके विषय में रोमियों १:२१-२३ क्या कहता है? (ख) एक तरह से, विकासवादी किस चीज़ को अपना “सृष्टिकर्ता” चुन रहे हैं?
१७ जो लोग इन सृष्ट अद्भुत चीज़ों के पीछे एक बुद्धिमान सृष्टिकर्ता के हाथ को समझने से इन्कार करते हैं, उनके विषय में एक शास्त्रवचन कहता है: ‘वे व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया। वे अपने पाप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए। और अबिनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगनेवाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।’ उन्होंने “परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है।” (रोमियों १:२१-२३, २५) विकासवादी विज्ञानियों के साथ भी ऐसा ही है, जो वास्तव में, प्रजीवाणु-कृमि-मछली-उभयचर-सरीसृप-स्तनधारी-“बन्दर-मनुष्य”के एक काल्पनिक आरोही कड़ी को अपने “सृष्टिकर्ता” के तौर पर महिमा देते हैं। फिर भी, वे जानते हैं कि इस कड़ी को शुरू करने के लिए ऐसा कोई एक पूरे तरीक़े से साधारण एक-कोशीय जीव नहीं है। सबसे साधारण ज्ञात जीव में भी एक ख़रब परमाणु होते हैं, जिसमें हज़ारों रसायनिक अभिक्रियाएँ समक्षणिक होती हैं।
१८, १९. (क) किस उचित व्यक्ति को जीवन आरंभ करने का श्रेय दिया जाना चाहिए? (ख) हम यहोवा की कितनी सृष्टि देख सकते हैं?
१८ यहोवा परमेश्वर जीवन का सृष्टिकर्ता है। (भजन ३६:९) वही पहला महान कर्ता है। उसके नाम, यहोवा का अर्थ है “वह पूर्ण करता है।” हम उसकी सृष्टि नहीं गिन सकते हैं। निश्चय ही लाखों और सृष्टियाँ होंगी जिनका मनुष्य को ज्ञान नहीं है। भजन १०४:२४, २५ इस का संकेत देता है: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है।” अय्यूब २६:१४ इस बात पर सुस्पष्ट है: “देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?” हम कुछ किनारे देखते हैं, कुछ फुसफुसाहट सुनते हैं, परन्तु उसकी शक्तिशाली गरज को पूर्णतः समझना हमारे बस की बात नहीं है।
१९ लेकिन, उसको देखने के लिए हमारे पास उसकी भौतिक सृष्टि से भी बेहतर एक स्रोत है। वह बेहतर स्रोत उसका वचन, बाइबल है। उसी स्रोत की ओर हम अब अपने अगले लेख में ध्यान घुमाएँगे।
क्या आपको याद है?
▫ अय्यूब ने क्या सीखा जब यहोवा ने आँधी में से उसके साथ बात की?
▫ पौलुस ने क्यों कहा कि कुछ लोग निरुत्तर हैं?
▫ जल-चक्र कैसे कार्य करता है?
▫ सूर्य का प्रकाश हमारे लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य करता है?
▫ विज्ञान को ज्ञान होने से पहले, बाइबल ने कौन-सी वैज्ञानिक सच्चाइयों को स्पष्ट किया?